भारतीय विरासत और संस्कृति
ओडिशा सरकार बनाम भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (It’s Odisha govt vs ASI)
संदर्भ
ओडिशा स्थित कोणार्क सूर्य मंदिर को यूनेस्को ने वर्ष 1984 में विश्व धरोहर स्थल घोषित किया था और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण इस मंदिर का संरक्षक है। लेकिन हाल ही में एक क्षेत्रीय समाचार पत्र ने अपनी रिपोर्ट में मंदिर की मरम्मत में अनियमितता की जानकारी दी। मंदिर की मरम्मत में अनियमितता की बात सामने आते ही ओडिशा सरकार ने इसकी जाँच के लिये समिति बनाने की मांग की है।
ओडिशा सरकार का तर्क
- मंदिर की नक्काशी ओडिशा के गर्व का प्रतीक है जिसमें समकालीन जीवन और दैनिक गतिविधियों को परिष्कृत और प्रतीकात्मक चित्रण के माध्यम से दर्शाया गया है। ऐसे में क्षेत्रीय समाचार पत्र की रिपोर्ट में मौजूदा कोणार्क सूर्य मंदिर के कलात्मक नक्काशी वाले 40% पत्थरों को हटाकर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा उनके स्थान पर सादे पत्थर लगाए जाने की बात सामने आना गंभीर चिंता का विषय है।
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण का तर्क
- भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने मंदिर के कलात्मक पत्थरों के प्रतिस्थापन के आरोपों को ख़ारिज करते हुए कहा है कि कोणार्क सूर्य मंदिर से एक भी नक्काशीयुक्त पत्थर को प्रतिस्थापित नहीं किया गया है और न ही विश्व धरोहर स्थलों की मरम्मत से संबंधित दिशा-निर्देशों का उल्लंघन किया गया है।
कोणार्क सूर्य मंदिर
- बंगाल की खाड़ी के तट पर स्थित कोणार्क सूर्य मंदिर भगवान सूर्य के रथ का एक विशाल प्रतिरूप है। यह मंदिर ओडिशा के पुरी ज़िले में स्थित है।
- रथ के 24 पहियों को प्रतीकात्मक डिज़ाइनों से सजाया गया है और सात घोड़ों द्वारा इस रथ को खींचते हुए दर्शाया गया है।
- यह भारत के चुनिंदा सूर्य मंदिरों में से एक है।
- भारतीय उपमहाद्वीप के पूर्वी तट पर स्थित कोणार्क सूर्य मंदिर, मंदिर वास्तुकला और कला के उत्कृष्ट उदाहरणों में से एक है।
विविध
कैंसर के मामलों में हुई 15.7% की वृद्धि (15.7% increase in cancer cases)
चर्चा में क्यों?
हाल ही में वैश्विक कैंसर वेधशाला (ग्लोबोकन) [Global Cancer Observatory (Globocan)], 2018 द्वारा जारी भारत-विशिष्ट डेटा से प्राप्त जानकारी के अनुसार, वर्ष 2012 से 2018 तक देश में कैंसर के मामलों में उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की गई है, जो कि चिंता का विषय है। इस डेटा के अनुसार, वर्ष 2018 में तकरीबन 11.57 लाख कैंसर के मामलें दर्ज किये गए, जो कि वर्ष 2012 में दर्ज 10 लाख मामलों की तुलना में 15.7 प्रतिशत अधिक हैं।
ग्लोबोकन क्या है?
- ग्लोबोकन (Globocan), कैंसर नियंत्रण एवं अनुसंधान (cancer control and research) के संबंध में कैंसर के वैश्विक आँकड़े प्रस्तुत करने वाला एक संवादात्मक (interactive) वेब-आधारित मंच है।
- IARC (International Agency for Research on Cancer) द्वारा हाल ही में प्रकाशित ग्लोबोकन, 2018 डेटाबेस में विश्व के 185 देशों में 36 प्रकार के कैंसर के कारण होने वाली घटनाओं और मृत्यु दरों का अनुमान व्यक्त किया गया है।
प्रमुख बिंदु
- वर्ष 2018 में कैंसर के कारण होने वाली मौतों की संख्या में 12.1 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, जबकि 2012 में इसके कारण सात लाख लोगों की मौत हुई थी।
- रिपोर्ट के अनुसार, सबसे अधिक चिंता का विषय यह है कि होंठ और मुख गुहा कैंसर (oral cavity cancer) की संख्या में सबसे अधिक वृद्धि देखने को मिली है, इसकी संख्या में वर्ष 2012 से अब तक 114.2 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है।
- स्तन कैंसर के मामलों में भी 10.7 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई। वर्ष 2012 के 1.45 लाख मामलों की तुलना में वर्ष 2018 में 1.62 लाख स्तन कैंसर के मामले सामने आए।
- इन सबके बीच एक अच्छी बात यह है कि गर्भाशय ग्रीवा कैंसर (cervical cancer) के मामलों की संख्या में 21.2 प्रतिशत की गिरावट आई है। जहाँ वर्ष 2012 में 1.23 लाख गर्भाशय ग्रीवा के कैंसर के मामले दर्ज किये गए थे, वहीं वर्ष 2018 में मात्र 96,922 मामले ही सामने आए।
धुँआ रहित तम्बाकू है चुनौती
- इस समस्त परिदृश्य में धुँआ रहित तम्बाकू (smokeless tobacco-SLT) एक बड़ी चुनौती है। यह पहली बार है कि किसी पत्रिका द्वारा धुँआ रहित तम्बाकू पर एक विशेष रिपोर्ट प्रकाशित की गई है। रिपोर्ट के अनुसार, वर्तमान में देश के 13 राज्यों में यह समस्या चिंता का कारण बनी हुई है।
- वैश्विक सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट के रूप में विश्व के 140 देशों के तकरीबन 360 मिलियन लोगों द्वारा धुँआ रहित रहित तंबाकू का उपभोग किया जा रहा है। इतना ही नहीं वैश्विक स्तर पर 6,50,000 से अधिक मौतों का कारण यही SLT है।
- लगभग 200 मिलियन भारतीय SLT का उपभोग करते हैं, जिसके कारण हर साल करीब 3,50,000 लोगों की मौत होती है।
कृषि
सुस्त पड़ती फसल बीमा योजना (Is crop insurance scheme losing steam)
संदर्भ
हाल ही में एक आरटीआई आवेदन के जवाब से यह खुलासा हुआ है कि 2017-2018 के दौरान 84 लाख से अधिक किसानों ने फसल बीमा योजना से अपने हाथ पीछे खींच लिये। गौरतलब है कि यह संख्या 2016-17 में केंद्र सरकार द्वारा शुरू की गई महत्त्वकांक्षी प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के पहले वर्ष में बीमाकृत किसानों की संख्या का 15 प्रतिशत है।
बीमा कंपनियों को मुनाफा
- रिलायंस, आईसीआईसीआई, एचडीएफसी और इफ्को तथा अन्य दूसरी बीमा कंपनियों ने योजना की शुरुआत के बाद से लगभग ₹15,795 करोड़ का मुनाफा कमाया है।
- हालाँकि यह मुनाफा अभी और बढ़ सकता है क्योंकि 2017-18 की रबी फसलों की बीमा के दावे अब तक प्राप्त नहीं हुए हैं। वर्ष 2016-17 के लिये यही मुनाफा लगभग ₹6,459 करोड़ था।
- राजस्थान से 31,25,025; महाराष्ट्र से 19,46,992; उत्तर प्रदेश से 14,69,052 और मध्य प्रदेश से 2,90,312 किसानों ने इस योजना से अपने हाथ वापस खींच लिये।
क्यों असफल हुई योजना?
- कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय में आरटीआई दायर करने वाले कार्यकर्त्ता ने आँकड़ों का हवाला देते हुए यह आरोप लगाया कि यह योजना किसानों के नाम पर निजी बीमा कंपनियों को मुनाफा पहुँचाने के उद्देश्य से शुरू की गई है। भारत सरकार बीमा कंपनियों का सहारा लिये बिना ही किसानों की मदद कर सकती थी।
- हालाँकि बीमा कंपनियों ने इस योजना के शुरुआती वर्ष में कई हज़ार करोड़ रुपए का मुनाफा कमाया, लेकिन उसी वर्ष उन्हें तमिलनाडु तथा आंध्र प्रदेश में घाटे का सामना करना पड़ा। तमिलनाडु में ₹1,22,737 लाख के सकल प्रीमियम के मुकाबले बीमा कंपनियों द्वारा चुकाया गया कुल दावा लगभग ₹3,35,562 लाख था।
- इसी तरह, कंपनियों को आंध्र प्रदेश में लगभग ₹3,012 लाख के घाटे का सामना करना पड़ा।
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना क्या है?
योजना के मुख्य उद्देश्य
|
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
2030 तक न्यूमोनिया के कारण 17 लाख भारतीय बच्चों की मृत्यु संभावित : ग्लोबल स्टडी(Pneumonia Can Kill 17 Lakh Indian Children By 2030 : Global Study)
चर्चा में क्यों?
12 नवंबर, ‘वर्ल्ड न्यूमोनिया डे’ के अवसर पर जारी एक वैश्विक अध्ययन के मुताबिक, भारत में 2030 तक 17 लाख से अधिक बच्चे न्यूमोनिया के कारण मौत के मुँह में जा सकते हैं। यह अध्ययन जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी एवं यूनाइटेड किंगडम की ग्लोबल चैरिटी ऑर्गनाइज़ेशन ‘सेव द चिल्ड्रेन’ के विश्लेषण पर आधारित है।
महत्त्वपूर्ण तथ्य
- अध्ययन में 2030 तक पूरे विश्व में न्यूमोनिया के कारण 5 साल से कम उम्र के करीब 1.1 करोड़ बच्चों के मरने की आशंका जताई गई है। यह रोग उपचार योग्य होने के बावजूद बड़ी संख्या में मौतों का कारण बनता जा रहा है।
- नाइजीरिया, 17.3 लाख बच्चों की संभावित मृत्यु के साथ इस भार को सबसे ज्यादा वहन करने वाले देश के रूप में सामने आया है। भारत करीब 17.1 लाख के आँकड़े के साथ दूसरे स्थान पर है। इसके बाद पाकिस्तान और डेमोव्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो का स्थान आता है।
- यह पूर्वानुमान जॉन हॉपकिन्स रिसर्चर्स द्वारा विकसित एक मॉडल ‘द लाइव्स सेव्ड टूल’ (LiST) पर आधारित है।
- इसके अनुसार ‘समेकित कार्यवाही’ जिसमें टीकाकरण, उपचार एवं पोषण शामिल है, के द्वारा 1.1 करोड़ मौतों में से 40 लाख से अधिक को आसानी से टाला जा सकता है।
- 2030 तक इन तीन उपायों के हस्तक्षेप द्वारा कुल 41 लाख मौतों को टाला जा सकता है।
- वर्ल्ड बैंक के आँकड़ों के अनुसार 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों की 16% मौतों के लिये न्यूमोनिया को ज़िम्मेदार माना गया है जिससे 2015 में 9,20,136 बच्चों की मौत हुई थी।
- जबकि यह दर्शाता है कि बैक्टीरिया के कारण होने वाले न्यूमोनिया का उपचार एंटीबायोटिक द्वारा किया जा सकता है, तब भी इस रोग से पीड़ित सिर्फ एक-तिहाई बच्चे ही सही समय पर एंटीबायोटिक प्राप्त कर पाते हैं।
न्यूमोनिया: न्यूमोनिया फेफड़े का एक संक्रमण है जिसमें सामान्यतया बैक्टीरिया एवं वायरस द्वारा सभी उम्र के लोगों में यह रोग उत्पन्न हो सकता है। बच्चों के टीकाकरण द्वारा इस रोग का बचाव किया जा सकता है। |
जैव विविधता और पर्यावरण
बन्नेरघट्टा पार्क के इको-सेंसिटिव ज़ोन में कमी (Bannerghatta Park’s Eco-Sensitive Zone Reduced)
चर्चा में क्यों?
पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ने बन्नेरघट्टा नेशनल पार्क के लिये एक नई अधिसूचना जारी की है। नई अधिसूचना के तहत बन्नेरघट्टा नेशनल पार्क के इको-सेंसिटिव ज़ोन में कमी की गई है।
प्रमुख बिंदु
- बन्नेरघट्टा नेशनल पार्क के लिये पहली अधिसूचना लगभग ढाई साल पहले जारी की गई थी जिसमें नेशनल पार्क के 268.96 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र को पर्यावरण संवेदी क्षेत्र या इको-सेंसिटिव ज़ोन (Eco-Sensitive Zones- ESZs) घोषित किया गया था।
- नवीनतम अधिसूचना में पार्क के इको-सेंसिटिव ज़ोन को घटाकर 169 वर्ग किमी. कर दिया गया है।
- इको-सेंसिटिव ज़ोन जो जंगल को नुकसान पहुँचाने वाली कुछ निश्चित गतिविधियों को नियंत्रित और प्रतिबंधित करता है, में कमी तेज़ी से शहरीकरण की ओर बढ़ रहे बंगलूरू शहर के आस-पास खनन तथा वाणिज्यिक विकास के लिये और अधिक क्षेत्र उपलब्ध करा सकता है।
- वह क्षेत्र जहाँ ESZ में बहुत अधिक कमी की गई है, वहाँ या तो खनन किया जा रहा है या वे संभावित खनन क्षेत्र हैं। ESZ में कमी के चलते लाभ प्राप्त करने वाला एक अन्य क्षेत्र रियल एस्टेट भी है क्योंकि अब बन्नेरघट्टा नेशनल पार्क के निकटवर्ती राजमार्गों के आस-पास की ज़मीन पर्यावरणीय बाधाओं से मुक्त हो गई है।
क्या है इको-सेंसिटिव ज़ोन?
- इको-सेंसिटिव ज़ोन या पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा किसी संरक्षित क्षेत्र, राष्ट्रीय उद्यान और वन्यजीव अभयारण्य के आसपास के अधिसूचित क्षेत्र हैं।
- इको-सेंसिटिव ज़ोन में होने वाली गतिविधियाँ 1986 के पर्यावरण (संरक्षण अधिनियम) के तहत विनियमित होती हैं और ऐसे क्षेत्रों में प्रदूषणकारी उद्योग लगाने या खनन करने की अनुमति नहीं होती है।
- सामान्य सिद्धांतों के अनुसार, इको-सेंसिटिव ज़ोन का विस्तार किसी संरक्षित क्षेत्र के आसपास 10 किमी. तक के दायरे में हो सकता है। लेकिन संवेदनशील गलियारे, कनेक्टिविटी और पारिस्थितिक रूप से महत्त्वपूर्ण खंडों एवं प्राकृतिक संयोजन के लिये महत्त्वपूर्ण क्षेत्र होने की स्थिति में 10 किमी. से भी अधिक क्षेत्र को इको-सेंसिटिव ज़ोन में शामिल किया जा सकता है।
- राष्ट्रीय उद्यानों और वन्यजीव अभयारण्यों के आस-पास इको-सेंसिटिव ज़ोन के लिये घोषित दिशा-निर्देशों के तहत निषिद्ध उद्योगों को इन क्षेत्रों में काम करने की अनुमति नहीं है।
- ये दिशा-निर्देश वाणिज्यिक खनन, जलाने योग्य लकड़ी के वाणिज्यिक उपयोग और प्रमुख जल-विद्युत परियोजनाओं जैसी गतिविधियों को प्रतिबंधित करते हैं।
- कुछ गतिविधियों जैसे कि पेड़ गिराना, भूजल दोहन, होटल और रिसॉर्ट्स की स्थापना सहित प्राकृतिक जल संसाधनों का वाणिज्यिक उपयोग आदि को इन क्षेत्रों में नियंत्रित किया जाता है।
- मूल उद्देश्य राष्ट्रीय उद्यानों और वन्यजीव अभयारण्यों के आसपास कुछ गतिविधियों को नियंत्रित करना है ताकि संरक्षित क्षेत्रों की निकटवर्ती संवेदनशील पारिस्थितिक तंत्र पर ऐसी गतिविधियों के नकारात्मक प्रभाव को कम किया जा सके।
पर्यावरण संवेदी क्षेत्र का महत्त्व
- औद्योगीकरण, शहरीकरण और विकास की अन्य पहलों के दौरान भू-परिदृश्य में बहुत से परिवर्तन होते हैं जो कभी-कभी भूकंप, बाढ़, भूस्खलन और बादल फटने जैसी प्राकृतिक आपदाओं का कारण बन सकते हैं।
- विशिष्ट पौधों, जानवरों, भू-भागों वाले कुछ क्षेत्र/क्षेत्रों को संरक्षित करने के लिये सरकार ने उन्हें राष्ट्रीय उद्यान, वन्यजीव अभयारण्य आदि के रूप में घोषित किया है।
- उपरोक्त के अलावा, शहरीकरण और अन्य विकास गतिविधियों के प्रभाव को कम करने के लिये ऐसे संरक्षित क्षेत्रों के निकटवर्ती क्षेत्रों को इको-सेंसिटिव ज़ोन घोषित किया गया है।
- राष्ट्रीय वन्यजीव कार्य-योजना (National Wildlife Action Plan- NWAP) 2017-2031 जैव विविधता वाले खंडों के पृथक्करण/विनाश को रोकने के लिये संरक्षित क्षेत्र नेटवर्क के बाहर के क्षेत्रों को सुरक्षित रखने प्रयास करती है।
- इको-सेंसिटिव ज़ोन (ESZ) घोषित करने का उद्देश्य संरक्षित क्षेत्र और उसके आसपास के क्षेत्रों की गतिविधियों को विनियमित और प्रबंधित करके संभावित जोखिम को कम करना है।
बन्नेरघट्टा नेशनल पार्क
- बंगलूरू, कर्नाटक के पास बन्नेरघट्टा राष्ट्रीय उद्यान की स्थापना 1970 में की गई थी और 1974 में इसे राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया था।
- 2002 में उद्यान का एक हिस्सा, जैविक रिज़र्व बन गया जिसे बन्नेरघट्टा जैविक उद्यान कहा जाता है।
- यह एक चिड़ियाघर, एक पालतू जानवरों का कार्नर, एक पशु बचाव केंद्र, एक तितली संलग्नक, एक मछलीघर, एक सांपघर और एक सफारी पार्क के साथ ही एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल भी है।
- कर्नाटक का चिड़ियाघर प्राधिकरण, कृषि विज्ञान विश्वविद्यालय, बंगलूरू और अशोक ट्रस्ट फॉर रिसर्च इन इकोलॉजी एंड एन्वायरमेंट (ATREE), बंगलूरू इसकी सहयोगी एजेंसियाँ हैं।
शासन व्यवस्था
युवा सहकार उद्यम सहयोग एवं नवाचार योजना (Yuva Sahakar-Cooperative Enterprise Support and Innovation Scheme)
चर्चा में क्यों?
हाल ही में कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा राष्ट्रीय सहकारी विकास निगम (एनसीडीसी) की 'युवा सहकार उद्यम सहयोग एवं नवाचार योजना' नामक एक युवा अनुकूल योजना का शुभारंभ किया गया।
प्रमुख बिंदु
- युवाओं की आवश्यकताओं एवं महत्त्वाकांक्षाओं को ध्यान में रखते हुए सहकारी व्यवसाय उपक्रमों की ओर ध्यान आकर्षित करने के उद्देश्य से एनसीडीसी द्वारा यह योजना तैयार की गई है।
- एनसीडीसी ने इस उद्देश्य की पूर्ति के लिये उदार सुविधाओं के साथ एक विशेष निधि समर्पित की है। नई योजना का शुभारंभ सहकारी समितियों को नए और अभिनव क्षेत्रों में नवाचार करने के लिये प्रोत्साहित करेगा।
- यह योजना एनसीडीसी द्वारा सृजित 1000 करोड़ रुपए के 'सहकारिता स्टार्ट-अप एवं नवाचार निधि' (सीएसआईएफ) से लिंक्ड होगी।
- यह पूर्वोत्तर क्षेत्रों, महत्त्वाकांक्षी ज़िलों तथा महिलाओं अथवा अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति व दिव्यांग सदस्यों की सहकारिता हेतु युवा अनुकूल पहलों में शामिल होगी।
- इन विशेष श्रेणियों के लिये वित्तपोषण परियोजना लागत का 80% तक होगा एवं अन्य के लिये यह 70% होगा।
- जिन प्रोजेक्ट की लागत 3 करोड़ रुपए तक है उनके प्रोत्साहन के लिये योजना में ब्याज दर प्रचलित टर्म लोन पर लागू ब्याज दर से 2% कम होगी, साथ ही मूलधन के भुगतान पर 2 साल का अधिस्थगन दिया जाएगा।
- योजना का लाभ लेने हेतु कम-से-कम एक वर्ष से संचालित सभी प्रकार की सहकारी समितियाँ पात्र होंगी।
- एनसीडीसी सहकारिता के क्षेत्र में अतिमहत्त्वपूर्ण वित्तीय संस्था है जिसने वर्ष 2022 तक देश के किसानों की आय दोगुनी करने के लिये मिशन सहकार-22 की शुरूआत की है।
राष्ट्रीय सहकारी विकास निगम (NCDC)
- राष्ट्रीय सहकारी विकास निगम (National Cooperative Development Corporation) की स्थापना वर्ष 1963 में संसद के एक अधिनियम द्वारा कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के अंतर्गत एक सांविधिक निगम के रुप में की गई थी।
- एनसीडीसी का उद्देश्य कृषि उत्पादन, खाद्य पदार्थों, औद्योगिक वस्तुओं, पशुधन और सहकारी सिद्धांतों पर उत्पादित कुछ अन्य अधिसूचित वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन, प्रसंस्करण, विपणन, भंडारण, निर्यात और आयात तथा इसके साथ संबंधित मामलों या आकस्मिक मामलों के लिये कार्यक्रमों की योजना बनाना और उनका संवर्द्धन करना है।
- एनसीडीसी सहकारी क्षेत्र हेतु शीर्ष वित्तीय तथा विकासात्मक संस्थान के रूप में कार्यरत एकमात्र सांविधिक संगठन है। यह कृषिएवं संबद्ध क्षेत्रों के आलावा विभिन्न क्षेत्रों में सहकारिता को सहयोग प्रदान करता है।
- वर्ष 2014-2018 (13 नवंबर तक) के दौरान एनसीडीसी द्वारा 63,702.61 करोड़ रुपए की वित्तीय सहायता निर्गत की गई है, जो वर्ष 2010-2014 के दौरान निर्गत 19,850.6 करोड़ रुपए से 220% अधिक है।
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
ईरान द्वारा न्यूक्लियर डील, 2015 का अनुपालन बरकरार : आईएईए (Iran Still in Compliance with 2015 Nuclear Deal : IAEA)
चर्चा में क्यों?
वियना की अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) द्वारा जारी एक रिपोर्ट के अनुसार ईरान अभी भी परमाणु समझौते की शर्तों के अनुसार ही अपना परमाणु कार्यक्रम चला रहा है और उसने यूरेनियम परमाणु भंडार की न्यून संवर्द्धन की सीमा को भी पार नहीं किया है। ईरान ने मुख्य शक्तियों के साथ हुई न्यूक्लियर डील, 2015 का अनुपालन करते हुए अपने परमाणु कार्यव्रम की सीमा, डील द्वारा अधिरोपित शर्तों की सीमा के अंदर ही बनाए रखी है।
महत्त्वपूर्ण बिंदु
- यूनाइटेड स्टेट्स (US) द्वारा तेहरान के विरुद्ध पुन: लगाए गए प्रतिबंधों के बावजूद, ईरान 2015 की न्यूक्लियर डील द्वारा स्थापित न्यूक्लियर प्रतिबंधों का पालन जारी रखे हुए है।
- ईरान के न्यून-संवर्द्धित यूरेनियम (Low-enriched uraniun) की सीमा अभी भी 149.4 किग्रा. है जो डील द्वारा तय 202.8 किग्रा की सीमा के अंदर ही है।
- ईरान का भारी-जल (Heavy Water) भंडार अभी भी अपरिवर्तित रहते हुए करीब 122.8 टन है। भारी जल एक कम संवेदनशील पदार्थ माना जाता है जिसे न्यूक्लियर रिएक्टर में मंदक (Moderator) के तौर पर प्रयोग किया जाता है। परंतु यह डील के तहत अभी भी प्रतिबंधित है।
- हालाँकि वर्तमान में ईरान ने उत्पादन जारी रखा है परंतु इसमें से 1.7 टन इसने विदेशों में भेजा है, जबकि 1.5 टन का प्रयोग मेडिकल कंपाउंड्स बनाने में किया है।
क्या है न्यूक्लीयर डील, 2015?
- 2015 में बराक ओबामा प्रशासन के दौरान अमेरिका, ब्रिटेन, रूस, चीन, फ्रांस और जर्मनी के साथ मिलकर ईरान ने परमाणु समझौता किया था।
- इस डील को ज्वाइंट कांप्रिहेंसिव प्लान ऑफ एक्शन (JCPOA) नाम दिया गया।
- इस डील के अनुसार, ईरान को संबंधित यूरेनियम के भंडार में कमी लाते हुए अपने परमाणु संयंत्रों को निगरानी के लिये खोलना था।
- इसके बदले ईरान पर आरोपित आर्थिक प्रतिबंधों में रियायत दी गई थी।
- कुछ समय पहले अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप इस समझौते से यह कहते हुए अलग हो गए कि ईरान चोरी-छिपे अपने परमाणु कार्यक्रम को अभी भी जारी रखे हुए है। साथ ही उन्होंने ईरान पर तेल एवं बैंकिंग संबंधी प्रतिबंध पुन: आरोपित कर दिये।
- हालाँकि इस डील के अन्य हस्ताक्षरकर्त्ता देश जैसे- जर्मनी, ब्रिटेन, फ्रांस, रूस और चीन अभी भी इस डील को जारी रखे हुए हैं।
- वहीं, ईरान अभी भी इस डील से जुड़ा हुआ है क्योंकि यह डील कई अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबंधों पर रोक लगाती है। लेकिन यह तभी होगा जब तीन यूरोपियन शक्तियाँ, रूस और चीन अपने व्यापार-लाभों को संरक्षित रखने के लिये प्रतिबद्ध होंगी।
- अमेरिका द्वारा प्रतिबंधों को पुन: बनाए रखने का मकसद ईरान के न्यूक्लियर प्रोग्राम को कड़ी सीमाओं के अंतर्गत लाना और इसके द्वारा विकसित किये जा रहे बैलिस्टिक मिसाइल को रोकना तथा मिडल-ईस्ट में होने वाले संघर्षों में प्रॉक्सी बलों को सहायता पहुँचाने से रोकना था।
प्रारंभिक परीक्षा
प्रीलिम्स फैक्ट्स : 15 नवंबर, 2018
जीएसएटी-29 उपग्रह
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने 14 नवंबर, 2018 को संचार उपग्रह जीएसएटी-29 (GSAT-29) का सफल प्रक्षेपण किया।
- इसरो ने इस उपग्रह को श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से अपने सबसे शक्तिशाली रॉकेट जीएसएलवी-एमके3-डी2 के ज़रिये लॉन्च किया।
- ISRO के अनुसार, इस संचार उपग्रह का उद्देश्य नई और महत्त्वपूर्ण प्रौद्योगिकियों के लिये टेस्ट बेड (परीक्षण के लिये उपकरणों से सुसज्जित एक जगह) के रूप में कार्य करना है।
- क्यू-बैंड और का-बैंड (Ku-band and Ka-band) पेलोड के माध्यम से देश के दूरदराज़ के क्षेत्रों, विशेष रूप से जम्मू-कश्मीर और उत्तर-पूर्व में लोगों की संचार आवश्यकताओं को पूरा किये जाने की उम्मीद है।
भारत अंतर्राष्ट्रीय व्यापार मेला 2018
14 नवंबर को नई दिल्ली के प्रगति मैदान में भारत अंतर्राष्ट्रीय व्यापार मेला (india International Trade Fair- ITTF) 2018 शुरू हुआ।
- भारत व्यापार संवर्द्धन संगठन (India Trade Promotion Organization- ITPO) द्वारा आयोजित यह महत्त्वपूर्ण व्यापार मेला 14 से 27 नवंबर, 2018 तक चलेगा।
- इस बार भारत अंतर्राष्ट्रीय व्यापार मेले का साझीदार देश अफगानिस्तान और फोकस देश नेपाल है। झारखण्ड इस मेले का फोकस राज्य है।
- राज्यों, सरकारी विभागों, भारतीय और अंतर्राष्ट्रीय कंपनियों के लगभग 800 प्रतिभागी इस व्यापार मेले में भाग ले रहे हैं। इनमें बड़ी संख्या में ग्रामीण दस्तकार, शिल्पकार और SMEs उद्यमी शामिल हैं।
- मेले में भाग लेने के लिये अफगानिस्तान, चीन, हॉन्गकॉन्ग, किर्गिज़स्तान, ईरान, म्याँमार, नेपाल, नीदरलैंड, दक्षिण अफ्रीका, दक्षिण कोरिया, थाईलैंड, तुर्की, ट्यूनीशिया, वियतनाम और संयुक्त अरब अमीरात ने पंजीकरण कराया है।
- इस अंतर्राष्ट्रीय व्यापार मेले में अल्पसंख्यक मंत्रालय द्वारा ‘हुनर हाट’ का का भी आयोजन किया जा रहा है। उल्लेखनीय है कि अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय द्वारा दस्तकारों, शिल्पकारों को मार्किट मुहैया कराने के मिशन के तहत देश के विभिन्न भागों में आयोजित 'हुनर हाट' की श्रृंखला के क्रम में यह 'हुनर हाट' आयोजित किया जा रहा है।
केंद्रीय और राज्य सूचना संगठनों का 26वाँ सम्मेलन
सांख्यिकी और कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय की ओर से हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में 15-16 नवंबर, 2018 को केंद्रीय और राज्य संगठनों का 26वाँ सम्मेलन आयोजित किया जा रहा है।
- इस वर्ष के सम्मेलन का मूल विषय है-'आधिकारिक आँकड़ों में गुणवत्ता आश्वासन'।
- यह सम्मेलन केंद्र और राज्य की सांख्यिकीय एजेंसियों के बीच समन्वय स्थापित करने के लिये एक प्रमुख राष्ट्रीय मंच है।
- सम्मेलन के दौरान केंद्रीय मंत्रालयों/विभागों की ओर से मूल विषय पर अनेक पेपर प्रस्तुत किये जाएंगे।
RCEP की सातवीं अंतर-सत्र मंत्रिस्तरीय बैठक
12-13 नवंबर, 2018 को सिंगापुर में RCEP (क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी) की सातवीं अंतर-सत्र मंत्रिस्तरीय बैठक का आयोजन किया गया।
- इस बैठक में भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग और नागरिक उड्डयन मंत्री सुरेश प्रभु ने किया।
- बैठक की अध्यक्षता सिंगापुर के व्यापार एवं उद्योग मंत्री चान चुन सिंग ने की।
- क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी (RCEP) एक मेगा या व्यापक क्षेत्रीय मुक्त व्यापार समझौता है जिसके लिये 16 देशों के बीच वार्ताएँ जारी हैं।
- इन 16 देशों में आसियान के 10 देश (ब्रुनेई, कंबोडिया, इंडोनेशिया, लाओस, मलेशिया, म्यांमार, फिलीपींस, सिंगापुर, थाईलैंड एवं वियतनाम) और आसियान FTA (मुक्त व्यापार समझौता) के छह साझेदार देश यथा- ऑस्ट्रेलिया, चीन, भारत, जापान, कोरिया और न्यूजीलैंड शामिल हैं।
- अब तक छह मंत्रिस्तरीय बैठकें, सात अंतर-सत्रात्मक मंत्रिस्तरीय बैठकें और तकनीकी स्तर पर व्यापार वार्ता समिति के 24 दौर आयोजित किये जा चुके हैं।
आंग सान सू की
- हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार संस्थान एमनेस्टी इंटरनेशनल ने रोहिंग्या अल्पसंख्यकों के मामलों पर म्याँमार की नेता आंग सान सू की की चुप्पी के चलते उनसे ‘एम्बेसडर ऑफ कनसाइंस अवार्ड’ वापिस लेने की घोषणा की है।
- आंग सान सू की को यह पुरस्कार वर्ष 2009 में दिया गया था। उल्लेखनीय है कि जब उन्हें यह पुरस्कार दिया गया उस दैरान वह अपने घर में नज़रबंद थीं।
- एमनेस्टी इंटरनेशनल से पहले कई अन्य संस्थान और देश भी उन्हें दिये गए पुरस्कार वापस लेने की घोषणा कर चुके हैं।
- कनाडा सरकार ने उन्हें ऑनोरेरी नागरिकता प्रदान की थी जिसे अब वापिस ले लिया गया है। इसके अलावा मार्च 2018 में यूएस हॉलोकास्ट ने भी उनसे ‘एली विसेल’ (Elie Wiesel) अवार्ड वापस ले लिया था।