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डेली न्यूज़

  • 14 Mar, 2020
  • 43 min read
भूगोल

हिमालयी क्षेत्र और भू-जल

प्रीलिम्स के लिये: 

भारतीय भू-चुंबकत्व संस्थान, भू-चुंबकत्व का अर्थ

मेन्स के लिये:

हिमालय की स्थिति परिवर्तन में भू-जल की भूमिका

चर्चा में क्यों?

भारतीय भू-चुंबकत्व संस्थान (Indian Institute of Geomagnetism-IIG) के शोधकर्त्ताओं ने भू-जल में मौसमी बदलावों के आधार पर हिमालय को घटते और अपनी स्थिति परिवर्तित करते हुए पाया है। 

प्रमुख बिंदु 

  • जर्नल ऑफ जियोफिजिकल रिसर्च में प्रकाशित इस नए अध्ययन से पता चलता है कि सामान्य कारणों के अलावा भू-जल में मौसमी बदलाव से भी इस प्रकार की कमी या स्थिति परिवर्तन देखने को मिलता है।
  • अध्ययन के अनुसार, जल एक लुब्रिकेटिंग एजेंट (Lubricating Agent) के रूप में कार्य करता है, और इसलिये जब शुष्क मौसम में बर्फ पिघलने पर पानी की मौजूदगी में इस क्षेत्र में फिसलन की दर कम हो जाती है।
  • शोधकर्त्ताओं ने ग्लोबल पोज़िशनिंग सिस्टम (GPS) और ग्रेविटी रिकवरी एंड क्लाइमेट एक्सपेरिमेंट (GRACE) डेटा का एक साथ उपयोग किया, जिसके कारण शोधकर्त्ताओं के लिये हाइड्रोलॉजिकल द्रव्यमान की विविधता को निर्धारित करना संभव हो पाया है।
  • अनुसंधानकर्त्ताओं के अनुसार, GPS और GRACE का संयुक्त डेटा हिमालय की उप-सतह में 12 प्रतिशत की कमी होने का संकेत देता है।

ग्लोबल पोज़िशनिंग सिस्टम (GPS)

ग्लोबल पोज़िशनिंग सिस्टम (GPS) जो कि उपग्रह आधारित नौवहन प्रणाली है, मुख्यत: तीन प्रकार की सेवाएँ प्रदान करती है- अवस्थिति, नेविगेशन एवं समय संबंधी सेवाएँ। ये सेवाएँ पृथ्वी की कक्षा में परिभ्रमण करते उपग्रहों की सहायता से प्राप्त की जाती हैं।

ग्रेविटी रिकवरी एंड क्लाइमेट एक्सपेरिमेंट (GRACE)

वर्ष 2002 में अमेरिका द्वारा लॉन्च किये गए ग्रेविटी रिकवरी एंड क्लाइमेट एक्सपेरिमेंट (GRACE) उपग्रह, विभिन्न महाद्वीपों पर पानी और बर्फ के भंडार में बदलाव की निगरानी करते हैं।

Grace

लाभ 

  • चूँकि हिमालय भारतीय उपमहाद्वीप में जलवायु को प्रभावित करने में बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है, इसलिये इस अध्ययन से यह समझने में मदद मिलेगी कि जल-विज्ञान किस प्रकार जलवायु को प्रभावित करता है। 
  • यह अध्ययन वैज्ञानिकों और नीति-निर्माताओं के लिये हिमालयी क्षेत्र की मौजूदा स्थिति से निपटने में मददगार साबित हो सकता है जहाँ जल की उपलब्धता के बावजूद शहरी क्षेत्र पानी की कमी से जूझ रहे हैं।
  • ध्यातव्य है कि अब तक किसी ने भी जल-विज्ञान संबंधी दृष्टिकोण से हिमालय का अध्ययन नहीं किया है। यह अध्ययन विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (DST) द्वारा वित्तपोषित है। 

भारतीय भू-चुंबकत्व संस्थान

(Indian Institute of Geomagnetism-IIG)

  • भारतीय भू-चुंबकत्व संस्थान भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा स्थापित एक स्वायत्त अनुसंधान संस्थान है।
  • भारतीय भू-चुंबकत्व संस्थान (IIG) की स्थापना वर्ष 1971 में एक स्वायत्त संस्थान के रूप में की गई थी और इसका मुख्यालय मुंबई (महाराष्ट्र) में स्थित है।
  • IIG का उद्देश्य भू-चुंबकत्व के क्षेत्र में गुणवत्तापूर्ण अनुसंधान करना और वैश्विक स्तर पर भारत को एक मानक ज्ञान संसाधन केंद्र के रूप में स्थापित करना है।
  • IIG जियोमैग्नेटिज़्म और संबद्ध क्षेत्रों जैसे- सॉलिड अर्थ जियोमैग्नेटिज़्म/जियोफिज़िक्स, मैग्नेटोस्फीयर, स्पेस तथा एटमॉस्फेरिक साइंसेज़ आदि में बुनियादी अनुसंधानों का आयोजन करता है।

स्रोत: पी.आई.बी.


भूगोल

खनिज कानून (संशोधन) विधेयक, 2020

प्रीलिम्स के लिये:

विधेयक संबंधी प्रावधान

मेन्स के लिये:

खान और खनिज (विकास और विनियम) अधिनियम, 1957 एवं कोयला खान (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 2015 में संशोधन से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

हाल ही में राज्यसभा ने खनिज कानून (संशोधन) विधेयक 2020 पारित किया है। 

प्रमुख बिंदु:

  • यह विधेयक खान और खनिज (विकास और विनियम) अधिनियम, 1957 [Mines and Minerals (Development and Regulation) Act, 1957] तथा कोयला खान (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 2015 [Coal Mines (Special Provisions) Act, 2015] में संशोधन का प्रावधान करता है।
  • उपभोग, बिक्री अथवा किसी अन्य उद्देश्य हेतु केंद्र सरकार द्वारा निर्दिष्ट कोयला खानों की नीलामी में व्यापक भागीदारी की अनुमति दी जा सकेगी।

विधेयक का उद्देश्य

  • संशोधित विधेयक में स्पष्ट प्रावधान है कि ऐसी कंपनियाँ जिनके पास भारत में कोयला खनन का अनुभव नहीं है और/अथवा उन्‍हें अन्‍य खनिज पदार्थों या अन्‍य देशों में खनन का अनुभव है, वे कोयला/लिग्नाइट ब्लॉकों की नीलामी में भाग ले सकते हैं।
  • इससे न केवल कोयला/लिग्नाइट ब्लॉकों की नीलामी में भागीदारी बढ़ेगी, बल्कि कोयला क्षेत्र में एफडीआई (FDI) नीति के कार्यान्वयन को सरल बनाया जा सकेगा।
  • जो कंपनियाँ “स्पेसीफाइड इंड-यूज़ (Specified end-use)”में शामिल नहीं हैं, वे अनुसूची II और III की कोयला खानों की नीलामी में भाग ले सकती हैं।
  • विधेयक में कोयला/लिग्नाइट ब्लॉकों के लिये लाइसेंस और खनन पट्टे (Prospecting Licence-Cum-Mining lease (PL-cum-ML) देने का प्रावधान है, इससे कोयला/लिग्नाइट ब्लॉकों की संख्या बढ़ेगी।

लाइसेंस संबंधी मुद्दे:

  • नए पट्टे देने की तारीख से दो साल की अवधि तक के लिये अन्‍य मंजू़रियों के साथ पर्यावरण और वन मंजू़री स्वतः खनिज ब्लॉकों के नए मालिकों को हस्तांतरित हो जाएगी। 
  • यह विधेयक नए पट्टा धारक के लिये बगैर किसी समस्या के खनन कार्य जारी रखना सुनिश्चित की अनुमति देगा। 
  • अवधि खत्म होने से पहले ही, वे दो साल की अतरिक्त अवधि हेतु नए लाइसेंस के लिये आवेदन कर सकते हैं।
  • यह सरकार को खनिज ब्लॉकों की नीलामी हेतु अग्रिम कार्रवाई करने में सक्षम बनाएगा ताकि मौजूदा पट्टे की अवधि समाप्त होने से पहले नए पट्टे धारक का फैसला किया जा सके ताकि देश में खनिजों का बाधारहित खनन हो सके।

विधेयक के लाभ:

  • इस संशोधन से भारतीय कोयला और खनन क्षेत्र में “कारोबार में सुगमता (Ease of Doing Business)” को बढ़ावा मिलेगा।
  • खनिज कानून (संशोधन) विधेयक, 2020 से देश में कोयला उत्पादन को बढ़ावा मिलेगा एवं आयात पर निर्भरता कम होगी।

कोयले के अंतिम-उपयोग से प्रतिबंध हटाना:

  • वर्तमान में नीलामी के माध्यम से अनुसूची II और अनुसूची III के तहत कोयला खानों का अधिग्रहण करने वाली कंपनियाँ केवल बिजली और इस्पात उत्पादन जैसे निर्दिष्ट के अंतिम उपयोगों के लिये कोयले का उपयोग कर सकती है। 
  • सफल बोलीदाताओं/आवंटियों को अपने किसी भी प्लांट अथवा सहायक कंपनी अथवा नियंत्रक कंपनी (Holding Company) में खनन किये गए कोयले का उपयोग करने का अधिकार होगा।

कोयला क्षेत्र का राष्ट्रीयकरण: 

  • भारत में कोयला क्षेत्र का राष्ट्रीयकरण वर्ष 1973 में हुआ था।
  • कोयला क्षेत्र के राष्ट्रीयकरण के कुछ समय बाद ही 1975 में कोल इंडिया लिमिटेड (Coal India Ltd.) की स्थापना एक होल्डिंग कंपनी के रूप में हुई थी।

खान और खनिज (विकास और विनियम) अधिनियम, 1957:

यह भारत में खनन क्षेत्र को नियंत्रित करता है और खनन कार्यों के लिये खनन लीज़ प्राप्त करने और जारी करने संबंधी नियमों का निर्धारण करता है।

कोयला खान (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 2015:

इस अधिनियम का उद्देश्य कोयला खनन कार्यों में निरंतरता सुनिश्चित करना और कोयला संसाधनों के इष्टतम उपयोग को बढ़ावा देना है, साथ ही प्रतिस्पर्द्धी बोली (Bidding) के आधार पर कोयला खानों के आवंटन में सरकार को सशक्त बनाना है।

स्रोत: पीआईबी


शासन व्यवस्था

आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955

प्रीलिम्स के लिये:

आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955

मेन्स के लिये:

COVID-19 (कोरोना वायरस) का मौजूदा प्रकोप और COVID-19 को रोकने के प्रबंधन हेतु लॉजिस्टिक संबंधी चिंताएँ

चर्चा में क्यों?

केंद्र सरकार ने आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 (Essential Commodities Act, 1955) में संशोधन करते हुए मास्क (2 प्लाई एवं 3 प्लाई सर्जिकल मास्क, एन-95 मास्क) और हैंड सैनिटाइज़र को दिनांक 30 जून, 2020 तक आवश्यक वस्तु के रूप में घोषित करने के लिये एक आदेश अधिसूचित किया है।

मुख्य बिंदु:

  • सरकार ने विधिक माप विज्ञान अधिनियम, 2009 (Legal Metrology Act, 2009)  के तहत एक एडवाइज़री भी जारी की है। 
  • आवश्यक वस्तु अधिनियम के तहत राज्य, विनिर्माताओं के साथ विचार-विमर्श कर उनसे इन वस्तुओं की उत्पादन क्षमता बढ़ाने और आपूर्ति श्रंखला को सुचारु बनाने के लिये कह सकते हैं।

क्या है समस्या:

  • विगत कुछ सप्ताहों के दौरान कोविड-19 (कोरोना वायरस) के प्रकोप के चलते मास्क (2 प्लाई एवं 3 प्लाई सर्जिकल मास्क, एन95 मास्क) और हैंड सैनिटाइज़र या तो बाज़ार में अधिकांश विक्रेताओं के पास उपलब्ध नहीं हैं अथवा बहुत अधिक कीमतों पर काफी मुश्किल से उपलब्ध हो रहे हैं।

अधिनियम में शामिल करने से लाभ:

  • इन दोनों वस्तुओं के संबंध में राज्य अपने शासकीय राजपत्र में अब केंद्रीय आदेश को अधिसूचित कर सकते हैं और इस संबंध में आवश्यक वस्तु अधिनियम के तहत अपने स्वयं के आदेश भी जारी कर सकते हैं साथ ही संबंधित राज्यों में व्यापत प्रकोप के आधार पर कार्रवाई कर सकते हैं।
  • आवश्यक वस्तु अधिनियम के तहत केंद्र सरकार की शक्तियाँ वर्ष 1972  और 1978 के आदेशों के माध्यम से राज्यों को पहले ही प्रत्यायोजित की जा चुकी हैं। अतः राज्य/संघ राज्य क्षेत्र आवश्यक वस्तु अधिनियम और चोरबाज़ारी निवारण एवं आवश्यक वस्तु प्रदाय अधिनियम के तहत उल्लंघनकर्त्ताओं के विरुद्ध कार्रवाई कर सकते हैं। 
  • विधिक माप विज्ञान अधिनियम के तहत राज्य न्यूनतम खुदरा मूल्य पर इन दोनों वस्तुओं की बिक्री सुनिश्चित कर सकते हैं।

क्या हैं दंडात्मक प्रावधान?

  • आवश्यक वस्तु अधिनियम के तहत किसी उल्लंघनकर्त्ता को 7 वर्ष के कारावास अथवा जुर्माना अथवा दोनों से दंडित किया जा सकता है तथा चोरबाज़ारी निवारण एवं आवश्यक वस्तु प्रदाय अधिनियम के तहत उसे अधिकतम 6 माह के लिये नज़रबंद किया जा सकता है।

निर्णय का संभावित प्रभाव:

  • यह निर्णय केंद्र सरकार और राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों को मास्क (2 प्लाई एवं 3 प्लाई सर्जिकल मास्क, एन95 मास्क) और हैंड सैनिटाइज़र के उत्पादन, गुणवत्ता, वितरण आदि को विनियमित करने और इन वस्तुओं की बिक्री एवं उपलब्धता को सहज बनाने तथा आदेश के उल्लंघनकर्त्ताओं एवं इनके अधिमूल्यन, कालाबाज़ारी आदि में शामिल व्यक्तियों के विरुद्ध कार्रवाई करने के लिये सशक्त बनाएगा। 
  • इससे आम जनता को दोनों वस्तुएँ उचित कीमतों पर उपलब्ध होंगी।
  • राज्यों को उपरोक्त दोनों वस्तुओं के संबंध में उपभोक्ताओं द्वारा शिकायतें दर्ज कराने के लिये राज्य उपभोक्ता हेल्पलाइन का प्रचार करने की सलाह भी दी गई है। 

आगे की राह:

  • कोरोनावायरस से बचाव की तैयारी करना न केवल सरकार का उत्तरदायित्व है बल्कि सभी संस्थानों, संगठनों, निजी और सार्वजनिक क्षेत्रों, यहाँ तक ​​कि सभी व्यक्तियों को आकस्मिक और अग्रिम तैयारी योजनाएँ बनाना चाहिये।
  • बड़े पैमाने पर व्यवहार परिवर्तन एक सफल प्रतिक्रिया की आधारशिला होगी। इसके लिये उचित जोखिम उपायों और सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यक्रमों के प्रति एक नवीन एकीकृत दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है।
  • सही जानकारी ही बचाव का बेहतर विकल्प है, इसलिये सरकार, सामाजिक संगठनों तथा लोगों को सही दिशा-निर्देशों का प्रसार करना चाहिये।

स्रोत- पीआईबी


शासन व्यवस्था

रेल विकास प्राधिकरण

प्रीलिम्स के लिये:

रेल विकास प्राधिकरण

मेन्स के लिये:

रेल विकास प्राधिकरण के कार्य

चर्चा में क्यों?

हाल ही में रेल, वाणिज्य और उद्योग मंत्री ने राज्यसभा में रेल विकास प्राधिकरण के संदर्भ में जानकारी दी।

मुख्य बिंदु:

  • रेल, वाणिज्य और उद्योग मंत्री द्वारा राज्यसभा में दी गई जानकारी के अनुसार, केंद्र सरकार ने अप्रैल 2017 में रेल विकास प्राधिकरण के गठन को मंज़ूरी प्रदान की थी।
  • रेल विकास प्राधिकरण केंद्र सरकार को निम्नलिखित के संबंध में निर्णय लेने के लिये सलाह प्रदान करेगा-
    • लागत के साथ-साथ सेवाओं का मूल्य निर्धारण।
    • गैर-किराया राजस्व बढ़ाने के उपाय।
    • सेवा गुणवत्ता और लागत अनुकूलन क्षमता सुनिश्चित करके उपभोक्ता हितों की सुरक्षा।
    • प्रतिस्पर्द्धा, दक्षता और अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देना।
    • बाज़ार विकास और रेल क्षेत्र में हितधारकों की भागीदारी को प्रोत्साहित करना तथा हितधारकों एवं ग्राहकों के बीच उचित सौदा समझौता सुनिश्चित करना।
    • निवेश के लिये सकारात्मक माहौल बनाना।
    • रेल क्षेत्र में संसाधनों के कुशल आवंटन को बढ़ावा देना।
    • अंतर्राष्ट्रीय  मानदंडों के खिलाफ सेवा मानकों की बेंचमार्किंग करना साथ ही उन्हें प्रदान की गई सेवाओं की गुणवत्ता, निरंतरता एवं विश्वसनीयता के संबंध में मानकों को निर्दिष्ट और लागू करना।
    • भविष्य में समर्पित फ्रेट कॉरिडोर और बुनियादी ढाँचे का निर्माण करना और सभी व्यक्तियों को गैर-भेदभावपूर्ण अवसर प्रदान करना।
    • वांछित दक्षता और प्रदर्शन मानकों को प्राप्त करने के लिये नई तकनीकों के संबंध में उपाय सुझाना।
    • किसी भी उद्देश्य को प्राप्त करने के लिये मानव संसाधन विकास के संबंध में उपाय सुझाना।

रेलवे द्वारा किये जा रहे अन्य प्रयास:

गैर किराया राजस्व आय बढ़ाने हेतु प्रयास:

गैर-किराया राजस्व आय बढ़ाने के लिये भारतीय रेलवे ने मोबाइल आधारित कमर्शियल पब्लिसिटी, आउट ऑफ होम एडवरटाइज़िंग, रेल डिस्प्ले नेटवर्क, अनसॉलिटेड प्रपोज़ल और मांग आधारित प्रस्ताव जारी किये हैं।

  • इसके अलावा गैर-किराया राजस्व आय बढ़ाने के लिये ज़ोनल रेलवे महाप्रबंधकों को पूर्ण अधिकार सौंपे गए हैं, जो आवश्यकता पड़ने पर मंडल रेल प्रबंधकों/अतिरिक्त रेलवे प्रबंधकों को उप-प्रतिनिधि के रूप में शक्तियाँ सौंप सकते हैं।
  • रेलवे के भूमि संसाधनों से गैर-किराया राजस्व जुटाने के लिये तत्काल परिचालन ज़रूरतों के लिये खाली रेलवे भूमि का वाणिज्यिक विकास, रेल भूमि विकास प्राधिकरण के माध्यम से किया जा रहा है। 
  • समय-समय पर गैर-किराया राजस्व आय के प्रदर्शन की समीक्षा भी की जाती है। 

भारतीय रेलवे की दक्षता और प्रदर्शन मानकों को बढ़ाने हेतु प्रयास:

  • भारतीय रेलवे की दक्षता और प्रदर्शन मानकों को बढ़ाने तथा अधिक जवाबदेही तय करने के लिये रेलवे बोर्ड एवं प्रत्येक क्षेत्रीय रेलवे/उत्पादन इकाइयों के बीच वित्तीय वर्ष की शुरुआत से ही समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये जा रहे हैं।
  • इन समझौता ज्ञापनों के तहत सभी क्षेत्रीय रेलवे/उत्पादन इकाइयाँ प्रमुख प्रदर्शन संकेतकों (Key Performance Indicators-KPIs) के लक्ष्य को प्राप्त करने का कार्य करते हैं।
  • ये KPIs अंतर-परिचालन, वित्तीय प्रदर्शन, बुनियादी ढाँचा निर्माण कार्य, क्षमता उपयोग, परिसंपत्ति के रखरखाव और विश्वसनीयता से संबंधित होते हैं। 
  • मासिक समीक्षा बैठकों के माध्यम से प्रदर्शन का मूल्यांकन और उसकी निगरानी नियमित रूप से की जाती है।
  • प्रदर्शन के संबंध में क्षेत्रीय रेलवे/उत्पादन इकाइयों द्वारा मुद्दों और बाधाओं का भी नियमित रूप से आकलन किया जाता है। जिनका प्रायः सामना किया जाता है। 

भावी आवश्यकता:

  • वर्तमान समय में रेलवे के लिये यह आवश्यक है कि वह माल-भाड़ा अथवा किराए की दरों में वृद्धि न करके नवीनतम कारोबारों के लिये इनके मूल्यों में कमी करे। इससे संगठन का निगमीकरण हो होगा तथा यह व्यावसयिक तरीके से कार्य करेगा। यदि भारत के पास उपयुक्त  कॉर्पोरेट योजना है तो निस्संदेह ऐसा किया जा सकता है। 

स्रोत- पीआईबी


शासन व्यवस्था

राष्ट्रीय क्रेच (शिशुगृह) योजना

प्रीलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय क्रेच (शिशुगृह) योजना

मेन्स के लिये:

राष्ट्रीय क्रेच (शिशुगृह) योजना से संबंधित मुद्दे 

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में लोकसभा में महिला और बाल विकास मंत्रालय (Ministry of Women and Child Development) द्वारा राष्ट्रीय क्रेच (शिशुगृह) योजना (National Creche Scheme) के तहत संचालित शिशुगृहों से संबंधित सूचना जारी की गई। 

राष्ट्रीय क्रेच (शिशुगृह) योजना के बारे में:

  • राष्ट्रीय क्रेच योजना जो कि एक केंद्र प्रायोजित योजना है, को 1 जनवरी, 2017 से राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों के माध्यम से कार्यान्वित किया जा रहा है।
  • इसे पूर्व में राजीव गांधी राष्ट्रीय क्रेच योजना के नाम से जाना जाता था। 
  • इसका उद्देश्य कामकाजी महिलाओं के बच्चों (6 माह से 6 वर्ष की आयु वर्ग) को दिन भर देखभाल की सुविधा प्रदान करना है। 

योजना की मुख्य विशेषताएँ:

  • बच्चों के लिये सोने की सुविधा सहित अन्य दैनिक सुविधाएँ।
  • 3 वर्ष से कम आयु के बच्चों के लिये प्रारंभिक प्रोत्साहन और 3 से 6 वर्ष की आयु के बच्चों के लिये प्री-स्कूल शिक्षा।
  • बच्चों के सर्वांगीण विकास की निगरानी।
  • स्वास्थ्य जाँच और टीकाकरण की सुविधा।

शिशुगृह के लिये दिशा-निर्देश: 

  • शिशुगृह एक महीने में 26 दिन एवं प्रतिदिन साढ़े सात घंटे के लिये खुला रहेगा।
  • शिशुगृह के मुख्य कर्मचारी की न्यूनतम योग्यता कक्षा 12वीं एवं सहायक कर्मचारी की न्यूनतम योग्यता कक्षा 10वीं तक होनी चाहिये।
  • एक शिशुगृह में बच्चों की संख्या और कर्मचारियों की आवश्यकताओं का विवरण निम्नानुसार है:
क्रम संख्या बच्चों की आयु नामांकित बच्चों की संख्या शिशुगृह में कर्मचारियों की संख्या शिशुगृह में  सहायक कर्मचारियों की संख्या
1. 6 माह से 3 वर्ष तक 10 01 01
2. +3 से 6 वर्ष तक 15 - -
  योग  25 01 01
  • शिशुगृह का निर्धारित शुल्क:
    • गरीबी रेखा से नीचे (Below Poverty Line-BPL) जीवन यापन कर रहे परिवार के लिये 20/- रुपए प्रति माह प्रति बच्चा।
    • 12000/- रुपए प्रति माह तक की आय (माता-पिता) वाले परिवार के लिये 100/- रुपए प्रति माह प्रति बच्चा।
    • 12000/- रुपए प्रति माह से ऊपर की आय (माता-पिता) वाले परिवार के लिये 200/- रुपए प्रति माह प्रति बच्चा।

भौतिक मूल ढाँचा:

  • शिशुगृह एक सुरक्षित स्थान पर स्थित एवं बच्चे के अनुकूल होना चाहिये।
  • निम्नलिखित कारणों के चलते शिशुगृह को बच्चों के घरों के नज़दीक या माताओं के कार्य स्थल के पास होना चाहिये:
    • ताकि माँ अपने बच्चे को स्तनपान कराने के लिये शिशुगृह में आसानी से आ सके।
    • आपातकाल की स्थिति में माता-पिता से संपर्क किया जा सके।
    • घर से बच्चे को लाना या भेजना आसान हो।
    • यदि कोई बच्चा लंबे समय तक अनुपस्थित रहता है, तो शिशुगृह का कर्मचारी बच्चे के बारे में पूछताछ करने के लिये जा सके।

सामाजिक सहभागिता: 

  • स्थानीय महिला मंडल, स्वयं सहायता समूह (Self Help Group-SHG), स्थानीय निकायों के सदस्य इत्यादि को शिशुगृह की गतिविधियों में सक्रिय रूप से भाग लेने हेतु प्रोत्साहित किया जा सकता हैं। 

अन्य संबंधित तथ्य:

  • 11 मार्च, 2020 तक राष्ट्रीय क्रेच (शिशुगृह) योजना के तहत देश भर में 6453 शिशुगृह संचालित हैं।
  • केरल सरकार द्वारा, राष्ट्रीय क्रेच (शिशुगृह) योजना के तहत 479 शिशुगृहों का संचालन किया जा रहा है।
  • नीति आयोग इस योजना का मूल्यांकन तीसरे पक्ष से कराती है।

स्रोत: पीआईबी 


भारतीय अर्थव्यवस्था

मुद्रा विनिमय और COVID-19

प्रीलिम्स के लिये:

मुद्रा विनिमय, COVID-19

मेन्स के लिये:

वैश्विक अर्थव्यवस्था पर COVID-19 का प्रभाव, मुद्रा विनिमय से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने विदेशी मुद्रा बाज़ार में तरलता प्रदान करने के उद्देश्य से 6 महीनों के लिये 2 बिलियन अमेरिकी डॉलर के विनिमय (Swap) का निर्णय लिया है।

प्रमुख बिंदु

  • विदित हो कि RBI का यह निर्णय ऐसे समय में आया है जब विदेशी निवेशकों ने बीते तीन सत्रों में 13,500 करोड़ रुपए बाज़ार से निकाल लिये हैं।
  • RBI के अनुसार, केंद्रीय बैंक भारतीय अर्थव्यवस्था पर COVID-19 महामारी के न्यून प्रभाव तथा वित्तीय बाज़ार और संस्थाओं के सामान्य कार्य संचालन को सुनिश्चित करने के लिये सभी आवश्यक उपाय करने हेतु तैयार है।
  • RBI एक खरीद/बिक्री विनिमय करेगा, जिसका अर्थ है कि सर्वप्रथम केंद्रीय बैंक बाज़ार में डॉलर बेचेगा और अंत में 6 महीने बाद उन्हें वापस खरीदेगा।

कारण 

  • RBI द्वारा इस संदर्भ में जारी अधिसूचना के अनुसार, दुनिया भर में COVID-19 संक्रमण के प्रसार के कारण वित्तीय बाज़ारों को गहन विक्रय दबाव का सामना करना पड़ रहा है, जो कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट के कारण और अधिक चुनौतीपूर्ण हो गया है।
  • बाज़ार के आँकड़ों के अनुसार, विदेशी निवेशकों ने इस महीने भारतीय पूंजी बाज़ारों से 21,000 करोड़ रुपए से अधिक की निकासी की है।
  • अतः कहा जा सकता है कि RBI ने यह निर्णय वित्तीय बाज़ार की मौजूदा स्थिति की समीक्षा करते हुए और बाज़ार में अमेरिकी डॉलर की स्थिति को ध्यान में रखते हुए लिया है।

लाभ

  • RBI के इस कदम से विदेशी मुद्रा बाज़ार में तरलता प्रदान करने में मदद मिलेगी। विदित हो कि COVID-19 के प्रसार के कारण भारत सहित विश्व भर के वित्तीय बाज़ार अशांति का सामना कर रहे हैं।

मुद्रा विनिमय 

  • मुद्रा विनिमय (Currency Swap) एक प्रकार का विदेशी विनिमय समझौता है जो दो पक्षों के बीच एक मुद्रा के बदले दूसरी मुद्रा प्राप्त करने हेतु एक निश्चित समय के लिये किया जाता है।

COVID-19 क्या है?

  • COVID-19 वायरस मौजूदा समय में भारत समेत दुनिया भर में स्वास्थ्य और जीवन के लिये गंभीर चुनौती बना है। अब संपूर्ण विश्व में इसका प्रभाव स्पष्ट तौर पर दिखने लगा है।
  • WHO के अनुसार, COVID-19 में CO का तात्पर्य कोरोना से है, जबकि VI विषाणु को, D बीमारी को तथा संख्या 19 वर्ष 2019 (बीमारी के पता चलने का वर्ष ) को चिह्नित करता है।
  • कोरोनावायरस (COVID -19) का प्रकोप तब सामने आया जब 31 दिसंबर, 2019 को चीन के हुबेई प्रांत के वुहान शहर में अज्ञात कारण से निमोनिया के मामलों में हुई अत्यधिक वृद्धि के कारण विश्व स्वास्थ्य संगठन को सूचित किया गया।
  • ध्यातव्य है कि इस खतरनाक वायरस के कारण चीन में अब तक हज़ारों लोगों की मृत्यु हो चुकी है और यह वायरस धीरे-धीरे संपूर्ण विश्व में फैल रहा है।

आगे की राह 

  • स्पष्ट है कि कोरोनावायरस (COVID-19) के कारण वैश्विक अर्थव्यवस्था पर काफी गंभीर प्रभाव पड़ा है। इस वायरस के कारण हवाई यात्रा, शेयर बाज़ार, वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं सहित लगभग सभी क्षेत्र प्रभावित हो रहे हैं।
  • हाल में किये गए एक अध्ययन के अनुसार, यह वायरस अमेरिकी अर्थव्यवस्था को बुरी तरह प्रभावित कर सकता है, जबकि इसके कारण चीनी अर्थव्यवस्था पहले से ही मुश्किल स्थिति में है। उक्त दो अर्थव्यस्थाएँ, जिन्हें वैश्विक आर्थिक इंजन के रूप में जाना जाता है, संपूर्ण वैश्विक अर्थव्यवस्था में सुस्ती तथा आगे जाकर मंदी का कारण बन सकती हैं।
  • इस संदर्भ में RBI का निर्णय काफी तर्कपूर्ण दिखाई देता है। आवश्यक है कि संपूर्ण वैश्विक समाज इस महामारी से निपटने के लिये एकजुट हो और साथ ही वैश्विक अर्थव्यवस्था पर इसके न्यून प्रभाव को सुनिश्चित किया जा सके।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


जैव विविधता और पर्यावरण

COVID-19: पारिस्थितिकी तंत्र के लिये खतरा

प्रीलिम्स के लिये:

COVID-19, ट्रिपल रिज़ाॅर्टमेंट

मेन्स के लिये:

जूनोटिक बीमारियों का पारिस्थितिकी तंत्र पर प्रभाव 

चर्चा में क्यों?

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, COVID-19 का सबसे संभावित वाहक चमगादड़ है तथा इस वायरस ने मध्यवर्ती मेज़बान, जो घरेलू या जंगली जानवर हो सकता है, के माध्यम से मनुष्य में प्रवेश किया है।

मुख्य बिंदु:

  • वैज्ञानिकों का मानना है विकासात्मक गतिविधियों में वृद्धि से वन्यजीव अधिवासों में लगातार कमी आ रही है तथा इसके कारण रोगजनकों का प्रसार तेज़ी से पशुधन और मनुष्यों में हो सकता है।
  • पिछले कुछ वर्षों में कई ज़ूनोटिक बीमारियाँ विश्व में सुर्खियाँ में रही तथा वे महामारी का कारण बनी हैं।  रिपोर्ट के अनुसार, पिछले दो दशकों में इन उभरती बीमारियों से हुई आर्थिक नुकसान की लागत 100 बिलियन डाॅलर से अधिक रही।

वन्य आवास में क्षति तथा संक्रामक रोग:

  • वैज्ञानिकों का मानना ​​है कि वन्यजीव आवासों की क्षति के कारण मनुष्यों में उभरते संक्रामक रोगों के प्रसार ( Emerging Infectious Diseases- EIDs) में वृद्धि हुई है। ये वन्यजीवों से मनुष्यों में फैलते हैं, जैसे-  इबोला, वेस्ट नाइल वायरस, सार्स, मारबर्ग वायरस आदि।
  • मनुष्यों में सीवियर एक्यूट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम (Severe Acute Respiratory Syndrome- SARS) का संचरण मुश्कबिलाव (Civet Cats) से तथा मिडिल ईस्ट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम (Middle East Respiratory Syndrome- MERS) का संचरण कूबड़ वाले ऊँटों (अरब के ऊँट) से हुआ।
  • वैज्ञानिकों ने वन्य जीवों के आवास में क्षति तथा संक्रामक रोगों के संचरण के मध्य संबंध पर सह विकास प्रभाव (The Coevolution Effect) की अवधारणा दी है।
  • इस अवधारणा के अनुसार, जंगल के छोटे विलगित भाग द्वीप के रूप में तथा रोगकारकों के होस्ट का कार्य करते हैं। इससे विभिन्न रोगकारकों की संख्या में वृद्धि होने तथा इनके आसपास की मानवीय आबादी तक पहुँचने की संभावना बढ़ जाती है। क्योंकि मनुष्य और प्रकृति दोनों जैवमंडल के ही भाग हैं तथा एक-दूसरे से परस्पर जुड़े हैं, साथ ही भोजन, दवा, पानी, स्वच्छ हवा आदि के लिये मनुष्य प्रकृति पर निर्भर है, ऐसे में ज़ूनोटिक रोगों के मनुष्य में संचरण की पूरी संभावना होती है।

Biosphere

वन्यजीवों की भूमिका:

वायरस अपनी आनुवंशिक प्रोफाइल को बदलने में सक्षम होते हैं तथा मनुष्यों में इनका संक्रमण दो प्राथमिक तरीकों से हो सकता है-

उत्परिवर्तन:

  • प्रतिकृति निर्माण प्रक्रिया के दौरान हुई त्रुटियों को उत्परिवर्तन कहा जाता है। RNA वायरस में यह गुण विशेष रूप से पाया जाता है। उत्परिवर्तन प्रक्रिया में अधिकांश वायरस सफल नहीं हो पाते है परंतु जो वायरस ऐसा करने में सफल हो जाते हैं वे एक नवीन रोग के जनक होते हैं।

ट्रिपल रिज़ाॅर्टमेंट (TRIPLE REASSORTMENT):

  • जब कोई स्तनपायी एक साथ दो (या अधिक) श्वसन-वायरस से संक्रमित होता है तो वायरस प्रतिकृति निर्माण के समय इन दोनों वायरसों के आनुवंशिक जीन एक साथ मिल जाते हैं, यथा- वर्ष 2009 में फैली H1N1 महामारी वायरस के पूर्ववर्ती वायरस सूअरों में विद्यमान था तथा इसमें मानव इन्फ्लूएंज़ा वायरस एवं एवियन इन्फ्लूएंज़ा के मध्य सूचनाओं के आदान-प्रदान होने से इस महामारी का जन्म हुआ था।


Triple-reassortment

मानव-पशु और पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य पर प्रभाव:

  • ज़ूनोटिक रोग मानव स्वास्थ्य, कृषि, अर्थव्यवस्था एवं पर्यावरण की अखंडता को प्रभावित करते हैं। पारिस्थितिक तंत्र की विविधता अधिक होने पर इस रोगकारकों के सभी प्रजातियों को संक्रमित करने की संभावना कम हो जाती है।

Human-amplification

COVID-19 एवं पारिस्थितिकी तंत्र:

  • COVID-19 एक ज़ूनोटिक रोग है अर्थात् इसका संचरण जानवरों से मनुष्यों में हो सकता है। 
  • चीन COVID-19 वायरस के प्रति अति संवेदनशील हैं क्योंकि ऐसे स्थान जहाँ मनुष्यों और जानवरों में अनियमित रक्त संबंध स्थापित होता है, वहाँ पर इस वायरस का अधिक प्रसार होता है।
  • दुनिया के पशुधन की लगभग 1.4 बिलियन (50%) आबादी के साथ चीन की पारिस्थितिकी को कोरोनावायरस जैसी बीमारियों का खतरा है जो चीन के साथ-साथ दुनिया के बाकी हिस्सों में भी खतरा पैदा कर सकती है।

विशेषज्ञों के अनुसार, चीन जंगली जानवरों एवं उनके अंगों की तस्करी का सबसे बड़ा बाज़ार है, ऐसे में वह जंगली जानवरों की तस्करी पर प्रतिबंध लगाने की मुहिम का नेतृत्व कर सकता है। अत: जानवरों से जुड़े उत्पादों के नियमन को वैश्विक स्तर पर लागू करने की दिशा में कार्य करना आवश्यक है।

स्रोत: UNEP


विविध

Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 14 मार्च, 2020

दिल्ली विधानसभा में NRC और NPR के विरुद्ध प्रस्ताव पारित

हाल ही में दिल्ली विधानसभा ने राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (National Register of Citizens - NRC) और राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (National Population Register- NPR) के विरुद्ध प्रस्ताव पारित कर दिया है। इस संदर्भ में आयोजित एक दिवसीय विशेष सत्र में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने केंद्र सरकार से NRC और NPR वापस लेने की अपील की। ध्यातव्य है कि इससे पूर्व बिहार विधानसभा में NRC के विरुद्ध प्रस्ताव पारित किया गया था। NRC वह रजिस्टर है जिसमें सभी भारतीय नागरिकों का विवरण शामिल है। इसे वर्ष 1951 की जनगणना के पश्चात् तैयार किया गया था। रजिस्टर में उस जनगणना के दौरान गणना किये गए सभी व्यक्तियों का विवरण शामिल किया गया था। वहीं NPR ‘देश के सामान्य निवासियों’ की एक सूची है। गृह मंत्रालय के अनुसार, ‘देश का सामान्य निवासी’ वह व्यक्ति है जो कम-से-कम पिछले छह महीनों से स्थानीय क्षेत्र में निवास कर रहा है या अगले छह महीनों के लिये किसी विशिष्ट स्थान पर रहने का इरादा रखता है।

ग्राहक भुगतान पोर्टल

हिल (इंडिया) लिमिटेड ने यूनियन बैंक ऑफ इंडिया के सहयोग से ‘ग्राहक भुगतान पोर्टल’ लॉन्‍च किया है। हिल (इंडिया) लिमिटेड के इस ‘कस्‍टमर पेमेंट पोर्टल’ का उद्देश्‍य अपने ग्राहकों से विभिन्‍न ऑनलाइन तरीकों के माध्यम से भुगतान प्राप्‍त करना है, ताकि बकाया धनराशि का त्‍वरित एवं सुगम संग्रह हो सके। इस पोर्टल से हिल (इंडिया) लिमिटेड के ग्राहकों को किसी भी डेबिट कार्ड, क्रेडिट कार्ड, नेट बैंकिंग, UPI अथवा ऑनलाइन वॉलेट से अपनी बकाया रकम का भुगतान त्‍वरित एवं सुविधाजनक तरीके से करने में मदद मिलेगी। हिल (इंडिया) लिमिटेड ‘पूर्व में हिंदुस्तान इंसेक्टिसाइड्स लिमिटेड (HIL)’, रसायन और पेट्रोरसायन विभाग, रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय, भारत सरकार का एक उद्यम है, इसकी स्थापना मार्च 1954 में भारत सरकार द्वारा शुरू किये गए राष्ट्रीय मलेरिया उन्मूलन कार्यक्रम को DDT नाम के आधुनिक कीटनाशक की आपूर्ति करने के उद्देश्य से की गई थी। 

हरित राजमार्ग परियोजना

केंद्र सरकार ने 4 राज्यों में 7,660 करोड़ रुपए लागत की 780 किलोमीटर लंबी हरित राष्ट्रीय राजमार्ग परियोजना को मंज़ूरी दे दी है। ये चार राज्य हैं-  हिमाचल प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और आंध्र प्रदेश। इस परियोजना के तहत सड़कों के आसपास पेड़-पौधे लगाए जाएंगे और पुनः उपयोग होने वाली सामग्री का सड़क निर्माण आदि में प्रयोग किया जाएगा। इस परियोजना में विश्व बैंक की तरफ से हरित राष्ट्रीय राजमार्ग गलियारा परियोजना (GNHPC) के तहत दी जाने वाली 3,500 करोड़ रुपए की सहायता राशि भी शामिल है। परियोजना में राष्‍ट्रीय राजमार्गों का सतत् विकास और रखरखाव, संस्‍थागत क्षमता में बढ़ोतरी, सड़क सुरक्षा और अनुसंधान एवं विकास शामिल हैं।

अमेरिका में COVID-19 राष्ट्रीय आपदा

अमेरिका में कोरोनावायरस (COVID-19) की स्थिति को राष्ट्रीय आपदा घोषित कर दिया गया है। साथ ही इस वैश्विक महामारी से निपटने के लिये फेडरल कोष से 50 बिलियन डॉलर जारी किये गए हैं। विदित हो कि इस संक्रमण से दुनिया भर में पाँच हज़ार से अधिक लोगों की मृत्यु हो चुकी है जिसमें 41 लोग अमेरिका के हैं। अनुमानतः अमेरिका में लगभग 2000 लोग इस वायरस से संक्रमित हैं। राष्‍ट्रपति ने सभी अस्‍पतालों को आपात योजना लागू करने का निर्देश दिया है। इस महामारी के कारण विश्‍व में आर्थिक मंदी की आशंका व्‍यक्‍त की जा रही है।


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