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डेली न्यूज़

  • 13 Sep, 2019
  • 53 min read
भारतीय राजनीति

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता

चर्चा में क्यों?

सर्वोच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश ने एक कार्यशाला में कहा है कि कार्यपालिका, न्यायपालिका और नौकरशाही की आलोचना को देशद्रोह नहीं कहा जा सकता है।

प्रमुख बिंदु:

  • प्रत्येक भारतीय को नागरिक के रूप में सरकार की आलोचना करने का अधिकार है और इस प्रकार की आलोचना को राजद्रोह के रूप में परिभाषित नहीं किया जा सकता है। आलोचना को राजद्रोह के रूप में परिभाषित करने की स्थिति में भारत का लोकतंत्र एक पुलिस राज्य के रूप में परिणत हो जाएगा।
  • इस प्रकार देशद्रोह (Sedition) और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (Freedom Of Expression) को स्पष्ट रूप से परिभाषित करना आवश्यक है, जिससे नागरिकों के मूलाधिकारों को संरक्षित किया जा सके।

देशद्रोह (Sedition): भारतीय दंड संहिता की धारा 124 (A) में देश की एकता और अखंडता को व्यापक हानि पहुँचाने के प्रयास को देशद्रोह के रूप में परिभाषित किया गया है। देशद्रोह के अंतर्गत निम्नलिखित गतिविधियाँ शामिल हैं-

  1. सरकार विरोधी गतिविधि और उसका समर्थन।
  2. देश के संविधान को नीचा दिखाने का प्रयास।
  3. कोई ऐसा प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष, लिखित या मौखिक कृत्य जिससे सामाजिक स्तर पर देश की व्यवस्था के प्रति असंतोष उत्पन्न हो।

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (Freedom Of Expression):

  • भारत के संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत लिखित और मौखिक रूप से अपना मत प्रकट करने हेतु अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का प्रावधान किया गया है।
  • किंतु अभियक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार निरपेक्ष नहीं है इस पर युक्तियुक्त निर्बंधन हैं।
  • भारत की एकता, अखंडता एवं संप्रभुता पर खतरे की स्थिति में, वैदेशिक संबंधों पर प्रतिकूल प्रभाव की स्थिति में, न्यायालय की अवमानना की स्थिति में इस अधिकार को बाधित किया जा सकता है।
  • भारत के सभी नागरिकों को विचार करने, भाषण देने और अपने व अन्य व्यक्तियों के विचारों के प्रचार की स्वतंत्रता प्राप्त है।
  • प्रेस/पत्रकारिता भी विचारों के प्रचार का एक साधन ही है इसलिये अनुच्छेद 19 में प्रेस की स्वतंत्रता भी सम्मिलित है।
  • संविधान में स्पष्ट रूप से नहीं लिखे गए अधिकार जैसे- विचार की स्वतंत्रता का अधिकार ( The Right Of Freedom Of Opinion), अंतरात्मा की स्वतंत्रता का अधिकार (Freedom Of Conscience) और असंतोष का अधिकार (Right To Dissent) को स्वस्थ्य और परिपक्व लोकतंत्र में महत्त्वपूर्ण स्थान मिलना चाहिए। इस प्रकार की व्यवस्थाओं के बाद ही लोकतंत्र में लोगों की सहभागिता बढ़ेगी।
  • प्रत्येक समाज के कुछ स्थापित नियम होते हैं। समय के साथ इन नियमों में परिवर्तन आवश्यक है। अगर समाज इन नियमों की जड़ता में बंधा रहता है तो इससे समाज का विकास रुक जाता है।
  • समाज में नए विचारों का जन्म तात्कालिक समाज के स्वीकृत मानदंडों से असहमति के आधार पर ही होता है। यदि प्रत्येक व्यक्ति पुराने नियमों और विचारों का ही अनुसरण करेगा तो समाज में नवाचारों का अभाव उत्पन्न हो जाएगा, उदाहरण के लिये नये विचारों और धार्मिक प्रथाओं का विकास तभी हुआ है जब पुरानी प्रथाओं से असहमति व्यक्त की गई।
  • समाज की प्रगति का आधार उस समाज में उपस्थिति नवाचार की प्रवृत्ति होती है। समाज में नवाचार और जिज्ञासा में ह्रास इसकी जड़ता को प्रतिबिंबित करता है। जिज्ञासा के अभाव में समाज का विकास रुक जाता है और वह तात्कालिक अन्य समाजों से पीछे रह जाता है।
  • समय के साथ न चलने की स्थिति एक दिन भयावह रूप ले लेती है और इस प्रकार का असंतोष विध्वंसक होता है जिससे समाज को व्यापक और दीर्घकालिक हानि उठानी पड़ती है।
  • भारत के बड़े क्षेत्रों में फैले सामाजिक असंतोष कहीं न कहीं इन राजनीतिक व्यवस्थाओं में उनके विचारों के प्रतिभाग का अभाव है।
  • भारत जैसे सामासिक संस्कृति वाले देश में सभी नागरिकों जैसे आस्तिक, नास्तिक और आध्यात्मिक को अभिव्यक्ति का अधिकार है। इनके विचारों को सुनना लोकतंत्र का परम कर्तव्य है, इनके विचारों में से समाज के लिये अप्रासंगिक विचारों को निकाल देना देश की शासन व्यवस्था का उतरदायित्व है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


शासन व्यवस्था

कृष्णा नदी जल विवाद

संदर्भ

कृष्णा नदी जल विवाद के संदर्भ में महाराष्ट्र और कर्नाटक के मुख्यमंत्रियों ने आंध्र प्रदेश के उस आवेदन का संयुक्त रूप से विरोध करने पर सहमति जताई है जिसमे कृष्णा जल विवाद न्यायाधिकरण के वर्ष 2010 के आदेश पर पुनः विचार करने की मांग की गई थी।

कृष्णा नदी जल विवाद

  • कृष्णा नदी महाराष्ट्र के महाबलेश्वर से निकलती है तथा महाराष्ट्र, कर्नाटक, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में बहती हुई बंगाल की खाड़ी में मिल जाती है।
  • अपनी सहायक नदियों के साथ, कृष्णा नदी एक विशाल बेसिन का निर्माण करती है, जिसमे चार राज्यों के कुल क्षेत्रफल का 33 प्रतिशत भाग शामिल है।
  • कृष्णा नदी जल विवाद मुख्यतः कृष्णा नदी के जल के बँटवारे से संबंधित है, जो कई दशकों से इसी प्रकार चल रहा है। इस विवाद की शुरुआत पूर्ववर्ती हैदराबाद एवं मैसूर राज्यों के साथ हुई थी तथा बाद में महाराष्ट्र, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश के बीच भी जारी रहा।

विवाद निपटान के प्रयास

  • कृष्णा नदी जल विवाद के समाधान हेतु वर्ष 1969 में कृष्णा जल विवाद न्यायाधिकरण (Krishna Water Disputes Tribunal-KWDT) की स्थापना की गई थी।
  • इस न्यायाधिकरण ने अपनी रिपोर्ट वर्ष 1973 में प्रस्तुत की, जिसे वर्ष 1976 में प्रकाशित किया गया। KWDT ने कृष्णा नदी के 2060 हजार मिलियन घन फीट (Thousand Million Cubic Feet-TMC) जल का तीनों राज्यों में विभाजन कर दिया था।
  • विभाजन के अनुसार, महाराष्ट्र के लिये 560 TMC, कर्नाटक के लिये 700 TMC और आंध्र प्रदेश के लिये 800 TMC निर्धारित किया गया।
  • उस समय यह भी निर्धारित किया गया था कि 31 मई, 2000 के बाद किसी भी समय KWDT के आदेश की समीक्षा की जा सकती है अथवा किसी सक्षम प्राधिकारी या न्यायाधिकरण द्वारा आदेश को संशोधित किया जा सकता है।
  • राज्यों के मध्य विवाद बढ़ने के बाद वर्ष 2004 में दूसरा कृष्णा जल विवाद न्यायाधिकरण स्थापित किया गया, जिसने वर्ष 2010 में पिछले 47 वर्षों से पानी के प्रवाह के आँकड़ों पर विचार करते हुए अपनी अंतिम रिपोर्ट प्रस्तुत की।
  • KWDT 2 द्वारा दिये गए अंतिम फैसले के अनुसार, महाराष्ट्र को 666 TMC, कर्नाटक को 911 TMC और आंध्र प्रदेश को 1001 TMC जल दिया गया।
  • KWDT 2 का यह अंतिम फैसला वर्ष 2050 तक मान्य होगा।

आंध्र प्रदेश चाहता है पुनर्विचार

  • वर्ष 2014 में तेलंगाना के निर्माण के पश्चात् आंध्र प्रदेश ने KWDT 2 द्वारा दिये गए फैसले और वर्ष 2013 में उसके (KWDT 2) द्वारा जारी एक अन्य रिपोर्ट को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी।
  • आंध्र प्रदेश की मांग है कि कृष्णा जल विवाद न्यायाधिकरण में तेलंगाना को एक अन्य पक्ष के रूप में शामिल किया जाए और कृष्णा नदी के जल को तीन के बजाय चार राज्यों में पुनः आवंटित किया जाए।
  • आंध्र प्रदेश द्वारा दिये गए आवेदन के अनुसार, न्यायाधिकरण के फैसले पर पुनर्विचार होना चाहिये और इस विवाद में तेलंगाना को एक पक्ष के रूप में मान्यता दी जानी चाहिये।

महाराष्ट्र और कर्नाटक का पक्ष

  • आंध्र प्रदेश के आवेदन पर महाराष्ट्र और कर्नाटक का कहना है कि चूँकि न्यायाधिकरण ने जिस समय इस संदर्भ में फैसला दिया था, उस समय तेलंगाना आंध्र प्रदेश का ही हिस्सा था, अतः पानी का आवंटन आंध्र प्रदेश के हिस्से से होना चाहिये जिसे न्यायाधिकरण ने मंजूरी दे दी थी साथ ही न्यायाधिकरण के फैसला पर पुनर्विचार नहीं होना चाहिये।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भारत-विश्व

ग्लोबल एंटीमाइक्रोबियल रेसिस्टेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट हब

चर्चा में क्यों?

12 सितंबर, 2019 को विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय के जैव प्रौद्योगिकी विभाग ने यह घोषणा की कि भारत ग्लोबल एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस (Antimicrobial Resistance-AMR) रिसर्च एंड डेवलपमेंट (Research and Development-R&D) हब में एक नए सदस्य के रूप में शामिल हो गया है।

AMRR&D हब

  • G-20 नेताओं द्वारा वर्ष 2017 में किये गए आह्वान के परिणामस्वरूप विश्व स्वास्थ्य सभा (World Health Assembly) के 71वें सत्र से इतर मई, 2018 में इस केंद्र की शुरूआत की गई।
  • ग्लोबल AMRR&D हब का परिचालन बर्लिन स्थित सचिवालय से किया जा रहा है।
  • वर्तमान में इसे जर्मन संघीय शिक्षा और अनुसंधान मंत्रालय (German Federal Ministry of Education and Research) और संघीय स्वास्थ्य मंत्रालय (Federal Ministry of Health) से प्राप्त अनुदान के माध्यम से वित्तपोषित किया जा रहा है।
  • इस वर्ष से भारत इसका सदस्य होगा।

विश्व स्वास्थ्य सभा

World Health Assembly

  • विश्व स्वास्थ्य सभा WHO की निर्णय लेने वाली संस्था है।
  • इसमें WHO के सभी सदस्य देशों के प्रतिनिधिमंडल शामिल होते हैं और कार्यकारी बोर्ड द्वारा तैयार किये गए एक विशिष्ट स्वास्थ्य एजेंडे पर ध्यान केंद्रित करते हैं।
  • विश्व स्वास्थ्य सभा के मुख्य कार्यों में संगठन की नीतियों का निर्धारण करना, महानिदेशक की नियुक्ति करना, वित्तीय नीतियों की निगरानी करना और प्रस्तावित कार्यक्रम के बजट की समीक्षा एवं अनुमोदन करना शामिल है।
  • प्रतिवर्ष स्विट्ज़रलैंड के जिनेवा में स्वास्थ्य सभा का आयोजन किया जाता है।

लाभ:

  • ग्लोबल AMRR&D हब की भागीदारी से भारत सभी भागीदारों देशों की मौजूदा क्षमताओं, संसाधनों और सामूहिक रूप से अनुसंधान एवं विकास गतिविधियों पर ध्यान केंद्रित करते हुए लाभान्वित होगा तथा दवा प्रतिरोधी संक्रमणों से निपटने में स्वयं को सक्षम बनाने की दिशा में कार्य करेगा।
  • इस हब की सहायता से AMRR&D से संबंधित चुनौतियों का सामना करने और 16 देशों, यूरोपीय आयोग, 2 परोपकारी प्रतिष्ठानों एवं 4 अंतर्राष्ट्रीय संगठनों (पर्यवेक्षकों के रूप में) में परस्पर सहयोग तथा समन्वय लाने के लिये वैश्विक भागीदारी का विस्तार हुआ है।

नोट: AMR, दवा के प्रभाव का प्रतिरोध करने के लिये माइक्रोब की क्षमता को प्रदर्शित करता है। इससे माइक्रोब का सफलतापूर्वक इलाज किया जा सकता है।

  • वर्तमान समय में एंटीमाइक्रोबियल प्रतिरोध का उद्भव और प्रसार समस्त विश्व के लिये एक बड़ी समस्या बनता जा रहा है। एंटीमाइक्रोबियल प्रतिरोध के महत्त्वपूर्ण और परस्पर आश्रित मानव, पशु एवं पर्यावरणीय आयामों को देखते हुए भारत एक स्वास्थ्य पहुँच के माध्यम से एंटीमाइक्रोबियल प्रतिरोध के मुद्दों का पता लगाने पर बल दे रहा है। स्पष्ट रूप से इसके लिये सभी हितधारकों की दीर्घकालिक प्रतिबद्धता और सहयोग अपेक्षित है।

एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस क्या है?

AMR का अर्थ है: सूक्ष्म जीवों जैसे- बैक्टीरिया, वायरस, कवक और परजीवी आदि का एंटीमाइक्रोबियल दवाओं (जैसे एंटीबायोटिक) के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर लेना। इन सूक्ष्म जीवों को सुपर बग (Super Bug) कहते हैं। मल्टीड्रग रेजिस्टेंट बैक्टीरिया इसी का एक भाग है।

AMR

एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस के दुष्परिणाम

  • सामान्य बीमारियों का उपचार कठिन हो जाना:
    • दुनिया भर में एंटीमाइक्रोबियल प्रतिरोध तेज़ी से बढ़ रहा है। इसके कारण आम संक्रामक बीमारियों का इलाज करना भी असंभव हो जाता है।
    • इसका परिणाम यह होता है कि लम्बे समय तक बीमारी बनी रहती है और यदि यह प्रतिरोध बहुत अधिक बढ़ गया तो बीमार व्यक्ति की मृत्यु भी हो सकती है।
  • चिकित्सा प्रक्रियाओं का जटिल हो जाना:
    • चिकित्सकीय प्रक्रियाएँ जैसे अंग प्रत्यारोपण, कैंसर के इलाज़ के लिये कीमोथेरेपी और अन्य प्रमुख शल्य चिकित्सा (Surgery) में एंटीबायोटिक दवाओं का इस्तेमाल होता है।
    • एंटीबायोटिक दवाएँ सर्जरी के दौरान होने वाले चीर-फाड़ के बाद संक्रमण बढ़ने से रोकने का कार्य करती हैं। यदि प्रतिरोध बढ़ता गया तो इस तरह की चिकित्सकीय प्रक्रियाएँ जटिल हो जाएंगी।
    • अंततः एक ऐसा भी समय आ सकता है जब सर्जरी करना ही असंभव हो जाएगा या फिर सर्जरी के कारण ही लोगों की मृत्यु हो जाएगी।
  • स्वास्थ्य देखभाल की लागत में वृद्धि:
    • एंटीमाइक्रोबियल प्रतिरोध के कारण रोगियों को अस्पतालों में लंबे समय तक भर्ती रहना पड़ता है। साथ ही उन्हें गहन देखभाल की भी ज़रूरत होती है।
    • इससे स्वास्थ्य सेवाओं पर दबाव तो बढ़ता ही है साथ में स्वास्थ्य देखभाल की लागत में भी व्यापक वृद्धि होती है।
    • जनसंख्या विस्फोट के कारण वर्तमान में सभी व्यक्तियों को उचित स्वास्थ्य सेवाएँ उपलब्ध कराना भी एक चुनौती बनी हुई है।
    • ऐसे में एंटीमाइक्रोबियल प्रतिरोध स्वास्थ्य सेवाओं को बद से बदतर की ओर ले जाएगा।
  • सतत् विकास लक्ष्यों को प्राप्त करना कठिन:
    • ट्रांसफॉर्मिंग आवर वर्ल्ड: द 2030 एजेंडा फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट' का संकल्प, जिसे सतत् विकास लक्ष्यों के नाम से भी जाना जाता है, के तहत कुल 17 लक्ष्यों का निर्धारण किया गया है।
    • सतत् विकास लक्ष्यों के लक्ष्य संख्या 3 में सभी उम्र के लोगों में स्वास्थ्य सुरक्षा और स्वस्थ जीवन को बढ़ावा देने की बात की गई है।
    • एंटीमाइक्रोबियल प्रतिरोध इस लक्ष्य की प्राप्ति में एक बड़ा अवरोध बनने जा रहा है और इसका प्रभाव सतत् विकास के सभी लक्ष्यों पर देखने को मिलेगा।

आगे की राह:

  • सर्वप्रथम लोगों को एंटीबायोटिक दवाओं के प्रति जागरूक करना आवश्यक है ताकि वे इनका अंधाधुंध प्रयोग न करें। सभी एंटी बायोटिक दवाओं की प्राप्ति के लिये डॉक्टर के परामर्श-पत्र को दिखाना अनिवार्य किया जाना चाहिये।
  • किसी भी प्रकार के AMR संक्रमण की स्थिति में रोगी को उपयुक्त आहार देना चाहिये तथा दवा की उचित मात्रा एवं उपयुक्त अवधि के माध्यम से चिकित्सा प्रबंधन किया जाना चाहिये।
  • इस प्रकार के संक्रमण की चिकित्सा के लिये एक बहुविषयक टीम का गठन किया जाना चाहिये जिसमें संक्रामक रोग चिकित्सक, क्लिनिकल फार्मासिस्ट, सूक्ष्म रोग विज्ञानी, संक्रमण नियंत्रक दल आदि शामिल हों।

स्रोत: PIB


भारतीय अर्थव्यवस्था

व्यापारियों और स्वरोज़गार वाले व्यक्तियों के लिये राष्ट्रीय पेंशन योजना

चर्चा में क्यों?

12 सितंबर, 2019 को रांची में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने केंद्रीय श्रम एवं रोज़गार मंत्रालय के तत्त्वावधान में व्यापारियों और स्वरोज़गार वाले व्यक्तियों के लिये राष्ट्रीय पेंशन योजना (National Pension Scheme for Traders and Self Employed Persons) की शुरुआत की।

National Pension Scheme

योजना हेतु नामांकन

  • इस राष्ट्रव्यापी शुरूआत से इस योजना के तहत भावी लाभार्थियों के लिये नामांकन की सुविधा देश भर में स्थित 3.50 लाख कॉमन सर्विस सेंटर (Common Service Center-CSCs) के माध्यम से उपलब्ध कराई गई है।
  • इसके अलावा लोग www.maandhan.in/vyapari पोर्टल पर जाकर भी स्वयं नामांकन कर सकते हैं।
  • नामांकन के समय लाभार्थी को अपना आधार कार्ड और बचत बैंक/जन-धन खाता पासबुक ले जाना आवश्यक है। लाभार्थी की आयु 18 से 40 वर्ष के बीच होनी चाहिये।
  • 40 लाख रुपए से अधिक वार्षिक व्यापार वाले व्यापारियों के लिये GSTIN (Goods and Services Tax Identification Number) की ज़रूरत है।
  • योजना के तहत लाभार्थियों के लिये नामांकन को नि:शुल्क रखा गया है। नामांकन स्व-प्रमाणन पर आधारित है।
  • वर्ष 2019-20 तक 25 लाख लाभार्थियों तथा वर्ष 2023-2024 तक 2 करोड़ लाभार्थियों को इस योजना में शामिल करने का लक्ष्य रखा गया है।

लाभार्थी

  • यह पेंशन योजना उन व्यापारियों (दुकानदारों/खुदरा व्यापारियों और स्वरोज़गार में लगे व्यक्तियों) के लिये शुरू की गई है जिनका वार्षिक कारोबार 1.5 करोड़ रुपए से अधिक का नहीं है।
  • यह 18 से 40 वर्ष की आयु के व्यापारियों के लिये एक स्वैच्छिक और अंशदायी पेंशन योजना है।
  • लाभार्थी को आयकर दाता नहीं होना चाहिये तथा उसे EPFO/ESIC/NPS(सरकार-पोषित) का सदस्य भी नहीं होना चाहिये।

लाभार्थी को प्राप्त होने वाले लाभ

  • इसमें लाभार्थी की आयु 60 वर्ष होने पर न्यूनतम 3,000 रुपए मासिक पेंशन देने का प्रावधान है।
  • इस योजना के तहत केंद्र सरकार का मासिक अंशदान में 50% योगदान होगा और शेष 50% अंशदान लाभार्थी द्वारा किया जाएगा।
  • मासिक योगदान को कम रखा गया है। उदाहरण के लिये, एक लाभार्थी को 29 वर्ष की आयु होने पर केवल 100 रुपए प्रति माह का छोटा सा योगदान करना आवश्यक है।
  • इस योजना से देश के लगभग 3 करोड़ व्यापारियों के लाभान्वित होने की उम्मीद है।

स्रोत: PIB


सामाजिक न्याय

आत्महत्या: हर 40 सेकंड में एक व्यक्ति की मौत

चर्चा में क्यों?

विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस 10 सितंबर को विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा प्रदत्त जानकारी के अनुसार, आत्महत्या पर WHO की पहली वैश्विक रिपोर्ट के प्रकाशन के बाद से पाँच वर्षों में राष्ट्रीय आत्महत्या के रोकथाम हेतु रणनीतियाँ तैयार करने वाले देशों की संख्या में वृद्धि हुई है।

वर्तमान स्थिति

  • आत्महत्या के रोकथाम हेतु रणनीतियाँ तैयार करने वाले देशों की संख्या में वृद्धि के बावजूद भी इस दिशा में अभी भी और अधिक प्रयास किये जाने की आवश्यकता है। वर्तमान में विश्व के मात्र 38 देशों में ऐसी रणनीतियाँ तैयार की गई है और अधिक देशों एवं सरकारों को इन रणनीतियों को स्थापित करने के लिये प्रतिबद्ध होने की आवश्यकता है।
  • इतने प्रयासों के बावजूद, प्रत्येक 40 सेकेंड में आत्महत्या के कारण एक व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है। प्रत्येक मृत्यु, मृतक के परिवार, दोस्तों और सहकर्मियों के लिये एक त्रासदी है।
  • यदि विश्व के सभी देश स्थायी रूप से राष्ट्रीय स्वास्थ्य और शिक्षा कार्यक्रमों में आत्महत्या रोकथाम रणनीतियों को शामिल करने का आह्वान करते है, तो इस दिशा में प्रभावी कार्यवाही किये जाने की संभावना है। जिसके परिणामस्वरूप इन आत्महत्याओं को रोका जा सकता हैं।

उच्च आय वाले देशों में आत्महत्या की उच्चतम दर; युवा लोगों में मृत्यु का दूसरा प्रमुख कारण

  • वर्ष 2016 के लिये वैश्विक आयु-मानकीकृत आत्महत्या दर 10.5 प्रति 1000 व्यक्ति थी। हालाँकि भिन्न-भिन्न देशों के बीच ये दरें भी भिन्न हैं। वैश्विक रूप से आत्महत्या की कुल घटनाओं में से 79% आत्महत्याएँ निम्न और मध्यम आय वाले देशों में हुईं। उच्च आय वाले देशों में आत्महत्या की उच्चतम दर 11.5 प्रति 100,000 थी।
  • सड़क दुर्घटनाओं के बाद 15-29 वर्ष की आयु के युवाओं की मृत्यु का दूसरा प्रमुख कारण आत्महत्या थी। इस आयु वर्ग में ‘आत्महत्या’ लड़कियों के बीच मृत्यु का दूसरा प्रमुख कारण (मातृ स्थितियों के बाद) और लड़कों में मृत्यु का तीसरा प्रमुख कारण (सड़क दुर्घटना और पारस्परिक हिंसा के बाद) रही।
  • आत्महत्या के सबसे आम तरीकों में फांसी लगाना, विष के रूप में कीटनाशक का उपयोग और गोली मारना शामिल थे।
  • आत्महत्या की घटनाओं को कम करने में निम्नलिखित प्रयासों के सफल परिणाम सामने आए हैं-
  1. आत्महत्या करने में सहायक साधनों तक पहुँच को बाधित करना
  2. उत्तरदायित्वपूर्ण रिपोर्टिंग के लिये मीडिया को शिक्षित करना
  3. युवाओं में जीवन कौशल विकसित करने के लिये विशेष कार्यक्रम शुरू करना ताकि उन्हें तनाव से निपटने में सक्षम बनाया जा सकें।

कीटनाशक विनियमन: प्रभावी रणनीति

  • आत्महत्या की संख्या को कम करने के लिये आत्म-विषाक्तता के लिये उपयोग किये जाने वाले कीटनाशकों तक पहुँच को सीमित किया जाना चाहिये। कई कीटनाशकों की उच्च विषाक्तता का सीधा सा अर्थ है कि इस प्रकार के आत्महत्या के प्रयासों में व्यक्ति के प्राणों की रक्षा करना कठिन होता है, विशेषकर उन स्थितियों में जहाँ किसी प्रकार की विषनाशक औषधि का मिलना बेहद मुश्किल है या जहाँ नज़दीक में कोई चिकित्सा सुविधा मौजूद नहीं है।
  • हाल ही जारी एक अध्ययन में WHO ने स्पष्ट किया है कि अत्यधिक खतरनाक कीटनाशकों के उपयोग को प्रतिबंधित करने वाले नियमों के अनुपालन से राष्ट्रीय आत्महत्या दर में कमी आ सकती है।
  • इसका सबसे अच्छा उदाहरण श्रीलंका में देखने को मिलता है, जहाँ कीटनाशकों पर लगातार प्रतिबंध लगाए जाने के कारण देश में आत्महत्या की घटनाओं में 70% गिरावट दर्ज की गई, वर्ष 1995 से 2015 के बीच अनुमानत: 93,000 लोगों की जान बचाई गई।
  • कोरिया गणराज्य में, जहाँ 2000 के दशक में आत्महत्या के लिये सबसे ज़्यादा कीटनाशक पैराक्वैट (Paraquat) का उपयोग किया गया, वहीं वर्ष 2011-2012 में इस पर प्रतिबंध लगाए जाने के बाद वर्ष 2011 और 2013 के बीच कीटनाशक की विषाक्तता से होने वाली आत्महत्याओं में उल्लेखनीय कमी आई।

डेटा की गुणवत्ता में सुधार की ज़रूरत है

  • समय पर पंजीकरण और राष्ट्रीय स्तर पर आत्महत्या की नियमित निगरानी प्रभावी राष्ट्रीय आत्महत्या रोकथाम रणनीतियों की नींव है।
  • हालाँकि 183 WHO सदस्य देशों में से केवल 80 के लिये वर्ष 2016 में जिन अनुमानों को प्रदर्शित किया गया, उनमें अच्छी गुणवत्ता वाले महत्त्वपूर्ण पंजीकरण डेटा भी शामिल थे। गौर करने वाली बात यह है कि अधिकांश निम्न और मध्यम आय वाले देशों ने इस प्रकार के डेटा का संकलन तैयार नहीं किया। बेहतर निगरानी से आत्महत्या रोकथाम की रणनीतियों का अधिक प्रभावी क्रियान्वयन सुनिश्चित किया जा सकता है, साथ ही वैश्विक लक्ष्यों को प्राप्त करने की दिशा में किये गए प्रयासों को प्रगति की अधिक सटीक रिपोर्टिंग तैयार करने में भी सहायता मिलेगी।

नोट:

10 सितंबर को WHO ने वैश्विक साझेदारों; वर्ल्ड फेडरेशन फॉर मेंटल हेल्थ (World Federation for Mental Health), द इंटरनेशनल एसोसिएशन फॉर सुसाइड प्रिवेंशन (International Association for Suicide Prevention) और यूनाइटेड फॉर ग्लोबल मेंटल हेल्थ (United for Global Mental Health) के साथ मिलकर 40 सेकंड का एक कार्रवाई अभियान शुरू किया है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

कैलिफोर्निया का असेंबली बिल 5 (AB5)

संदर्भ

कैलिफोर्निया (California) की ‘गिग इकॉनमी’ (Gig Economy) को झटका देते हुए राज्य के नीति निर्माताओं ने एक ऐतिहासिक विधेयक पारित किया है। कैलिफोर्निया के इस नए विधेयक को असेंबली बिल 5 (Assembly Bill 5-AB5) नाम दिया गया है।

कैलिफोर्निया का विधेयक

  • कैलिफोर्निया का यह विधेयक राज्य की सभी फर्मों के लिये यह अनिवार्य बनाता है कि वे अपने स्वतंत्र ठेकेदारों (Independent Contractors) को कर्मचारी के रूप में वर्गीकृत करें।
  • अनुमानतः यह विधेयक राज्य के 1 मिलियन लोगों को प्रभावित करेगा, जो आउटसोर्सिंग (Outsourcing) और फ्रेंचाइजिंग (Franchising) के कार्य में लंबे समय से लगे हुए हैं।
  • राज्य के बहुत से लोग वास्तविक कर्मचारी न होने के कारण न्यूनतम मज़दूरी और बेरोज़गारी बीमा जैसी बुनियादी सुरक्षा के अभाव में कार्य कर रहे हैं।
  • यह विधेयक कैलिफोर्निया में कार्य कर रही सभी एप (App) आधारित कंपनियों जैसे- उबर इत्यादि पर लागू होगा।

‘गिग इकॉनमी’ का आशय

  • लगातार डिजिटल हो रहे विश्व में रोज़गार की परिभाषा और कार्य का स्वरूप भी बदल रहा है। एक नई वैश्विक अर्थव्यवस्था उभर रही है, जिसको नाम दिया जा रहा है 'गिग इकॉनमी’। दरअसल, गिग इकॉनमी में फ्रीलान्स कार्य और एक निश्चित अवधि के लिये प्रोजेक्ट आधारित रोज़गार शामिल हैं।
  • गिग इकॉनमी में किसी व्यक्ति की सफलता उसकी विशिष्ट निपुणता पर निर्भर करती है। असाधारण प्रतिभा, गहरा अनुभव, विशेषज्ञ ज्ञान या प्रचलित कौशल प्राप्त श्रम-बल ही ‘गिग इकॉनमी’ में कार्य कर सकता है।
  • आज कोई व्यक्ति सरकारी नौकरी कर सकता है या किसी प्राइवेट कंपनी में कार्य कर सकता है या फिर किसी मल्टीनेशनल कंपनी में रोज़गार ढूँढ सकता है, लेकिन ‘गिग इकॉनमी’ एक ऐसी व्यवस्था है जहाँ कोई भी व्यक्ति अपनी इच्छा के अनुसार काम कर सकता है।
  • यह भी कहा जा सकता है कि गिग इकॉनमी में कंपनी द्वारा तय समय में प्रोजेक्ट पूरा करने के एवज़ में भुगतान किया जाता है, इसके अतिरिक्त किसी भी चीज़ से कंपनी का कोई मतलब नहीं होता।

‘गिग इकॉनमी’ के फायदे

  • कार्य में लचीलापन: पारंपरिक कर्मचारियों के विपरीत, गिग श्रमिकों को यह चुनाव करने की स्वतंत्रता होती है कि वे क्या कार्य करना चाहते हैं, किस प्रकार करना चाहते हैं, कब करना चाहते हैं एवं कहाँ करना चाहते हैं। घर से कार्य करने में सक्षम होने के कारण वे अपने कार्य और निजी जीवन में आवश्यक संतुलन भी स्थापित कर पाते हैं।
  • कार्य में विविधता: गिग श्रमिक प्रतिदिन कई प्रकार के कार्य करते हैं और कई प्रकार के लोगों के साथ कार्य करते हैं, जिससे उनके कार्य में विविधता बनी रहती है।
  • श्रम लागत में कमी: यदि सेवा प्रदाताओं के दृष्टिकोण से देखें तो ‘गिग इकॉनमी’ काफी मितव्ययी है, क्योंकि इसमें एक सेवा प्रदाता अपनी आवश्यकतानुसार, किसी भी समय गिग श्रमिक को नियुक्त कर सकता है और उसे मासिक वेतन देने की भी आवश्यकता नहीं होती।

‘गिग इकॉनमी’ के नुकसान

  • श्रमिकों के लिये बुनियादी सुविधाओं का अभाव: गिग श्रमिकों को सबसे बड़ा नुकसान यह होता है कि उन्हें पारंपरिक श्रमिकों के इतर किसी भी प्रकार की बुनियादी सुविधाएँ जैसे- न्यूनतम मज़दूरी और बेरोज़गारी बीमा आदि नहीं मिल पाती हैं।
  • रोज़गार की अस्थायी प्रकृति: चूँकि ‘गिग इकॉनमी’ में कार्य करने वाले सभी श्रमिक अस्थायी रूप से नियुक्त किये जाते हैं। अतः उनके समक्ष सदैव यह स्थिति बनी रहती है कि वे किसी भी समय आर्थिक संकट का सामना कर सकते हैं।
  • प्रशिक्षण और कौशल विकास के अवसरों की कमी: सभी कंपनियाँ अपनी उत्पादकता को बढ़ाने के लिये अपने कर्मचारियों को समय-समय पर उचित प्रशिक्षण और कौशल विकास के अवसर प्रदान करती हैं, परंतु चूँकि गिग श्रमिक कंपनियों के स्थायी कर्मचारी नहीं होते इसलिये उन्हें इस प्रकार का कोई भी अवसर प्राप्त नहीं होता।

भारत और गिग इकॉनमी

  • उल्लेखनीय है कि वर्ष 2017 में अमेरिका में जहाँ श्रम शक्ति का 31 प्रतिशत भाग गिग इकॉनमी के तहत कार्य कर रहा था वहीं भारत में यह आँकड़ा 75 प्रतिशत था, परंतु वर्तमान में भी दोनों देशों के आर्थिक परिदृश्यों में बहुत अधिक अंतर है।
  • अमेरिका में 31 प्रतिशत श्रम गिग इकॉनमी में इसलिये कार्य कर रहे थे, क्योंकि वे सक्षम थे जबकि भारत में बड़ी संख्या में लोग इस व्यवस्था का हिस्सा इसलिये थे क्योंकि उनके पास कोई एनी विकल्प नहीं था। यहाँ यह जानना भी महत्त्वपूर्ण है कि दैनिक मज़दूरी करने वालों को भी गिग इकॉनमी का ही हिस्सा माना जाता है।
  • भारत में 40 प्रतिशत लोग इतना ही कमा पाते हैं कि वे दो वक्त की रोटी खा सकें। बचत के नाम पर उनके पास कुछ भी नहीं है और वे लगातार गरीबी में जीवन व्यतीत करने को मजबूर हैं।
  • अर्थव्यवस्था के डिजिटलीकरण के कारण और भी लोग गिग इकॉनमी का हिस्सा बनने को मज़बूर हो गए हैं जिसके कारण उसके समक्ष अस्थायी रोज़गार का संकट और गहरा गया है।
  • ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के एक अध्ययन के मुताबिक अकेले अमेरिका में अगले दो दशकों में डेढ़ लाख रोज़गार खत्म हो जाएंगे। अमेरिका में तो मानव संसाधन इतना दक्ष है कि उसे गिग इकॉनमी का हिस्सा बनने में कोई समस्या नहीं आएगी, लेकिन भारत में यह स्थिति नहीं है।

स्रोत: द हिंदू


कृषि

बाज़ार हस्तक्षेप मूल्य योजना

चर्चा में क्यों?

जम्मू-कश्मीर में आतंकवादियों द्वारा उत्पन्न प्रतिरोध के कारण इस वर्ष सेब का निर्यात बुरी तरह प्रभावित हुआ है।

  • सरकार, राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन संघ (Agriculture Cooperative Marketing Federation of India- NAFED) की सहायता से बाज़ार हस्तक्षेप मूल्य योजना (Market Intervention Price Scheme- MISP) के तहत इस सीज़न में लगभग 12 लाख मीट्रिक टन सेब की खरीद करने की योजना बना रही है।

बाज़ार हस्तक्षेप मूल्य योजना

(Market Intervention Price Scheme- MISP)

  • MIP बाज़ार मूल्य में गिरावट की स्थिति में खराब होने वाले खाद्यान्नों और बागवानी वस्तुओं की खरीद के लिये राज्य सरकारों के अनुरोध पर लागू की जाने वाली एक मूल्य समर्थन प्रणाली है।
  • यह योजना तब कार्यान्वित की जाती है जब सामान्य वर्ष की तुलना में उत्पादन में कम-से-कम 10% वृद्धि होती है या पिछले सामान्य वर्ष की तुलना में 10% की कमी होती है।
  • MIP, खाद्यान्न जिंसों के लिये न्यूनतम समर्थन मूल्य आधारित खरीद तंत्र के समान ही कार्य करता है लेकिन यह एक अस्थायी तंत्र (Adhoc Mechanism) है।
  • इसका प्रयोग बागवानी/कृषि जिंसों के उत्पादों की कीमतों में आई कमी के दौरान विपरीत स्थिति से बचाने के लिये किया जाता है। इस प्रकार यह उत्पादन और कीमतों में आई गिरावट की स्थिति में किसानों को पारिश्रमिक मूल्य प्रदान करता है।
  • राज्य/केंद्रशासित प्रदेश की सरकार के विशेष अनुरोध पर MIP के प्रस्ताव को मंज़ूरी दी जाती है, यदि राज्य/केंद्रशासित प्रदेश की सरकार नुकसान का 50% (पूर्वोत्तर राज्यों के मामले में 25%) खर्च करने के लिये तैयार है।
  • इसके अलावा नुकसान की राशि की सीमा कुल सरकारी खरीद के 25% हिस्से तक सीमित है, जिसमें ऊपरी व्यय के अतिरिक्त खरीदे गए जिंसों की लागत भी शामिल है।

MIS का क्रियान्वयन:

  • कृषि और सहकारिता विभाग (Department of Agriculture & Cooperation) इस योजना को लागू कर रहा है।
  • इस योजना के तहत राज्यों को धन आवंटित नहीं किया जाता है।
  • MIP के दिशा-निर्देशों के अनुसार, पहले नुकसान का हिस्सा राज्य और केंद्रशासित प्रदेश की सरकारों को जारी किया जाता है, जिसके बाद उनसे प्राप्त प्रस्तावों के आधार पर MIP को मंज़ूरी प्रदान की जाती है।

खरीद (Procurement):

  • इस योजना के तहत, एक निश्चित बाज़ार हस्तक्षेप मूल्य पर पूर्व निर्धारित मात्रा में खरीद केंद्रीय एजेंसी नाफेड (NAFED) और राज्य सरकार द्वारा निर्दिष्ट एजेंसियों के माध्यम से की जाती है।

नाफेड (NAFED यानी नेशनल एग्रीकल्चरल कोआपरेटिव मार्केटिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया को वर्ष 1958 में कृषि उत्पादों के सहकारी विपणन के लिये स्थापित किया गया था। यह तिलहन तथा दलहन की न्यूनतम मूल्य पर खरीद हेतु मूल्य समर्थन योजना (PSS) के लिये केंद्रीय नोडल एजेंसी है।

  • इस योजना के संचालन का क्षेत्र (Area Of Operation) केवल संबंधित राज्य तक ही सीमित रहता है।
  • सेब, माल्टा, लहसुन, संतरा, गलगल (Galgal), अंगूर, मशरूम, लौंग, काली मिर्च, अनानास, अदरक, लाल-मिर्च और धनिया बीज (Coriander Seed) आदि वस्तुओं को MIP के तहत शामिल किया गया है।

स्रोत: द हिंदू


भारतीय अर्थव्यवस्था

भारत का दूसरा मल्‍टी-मॉडल टर्मिनल

चर्चा में क्यों?

हाल ही में प्रधानमंत्री ने गंगा नदी पर पर बने भारत के दूसरे मल्‍टी-मॉडल टर्मिनल (Multi-Modal Terminal) का उद्घाटन किया।

Multi Model terminal

प्रमुख बिंदु:

  • यह भारत का दूसरा और झारखंड का पहला मल्‍टी-मॉडल टर्मिनल है।
  • दूसरे मल्‍टी-मॉडल टर्मिनल का निर्माण विश्व बैंक द्वारा सहायता प्राप्त जल मार्ग विकास परियोजना (Jal Marg Vikas Project-JMVP) के तहत राष्ट्रीय जलमार्ग-1 (यानी गंगा नदी) पर किया जा रहा है।
  • उल्लेखनीय है कि भारत के पहले मल्‍टी-मॉडल टर्मिनल का निर्माण वाराणसी में गंगा नदी पर किया गया था।
  • दूसरे मल्‍टी-मॉडल टर्मिनल का निर्माण लगभग 290 करोड़ रुपए की लागत से हुआ है।
  • साहिबगंज स्थित मल्‍टी-मॉडल टर्मिनल झारखंड एवं बिहार के उद्योगों को वैश्विक बाज़ार के लिये खोलेगा, साथ ही जलमार्ग के ज़रिये भारत-नेपाल कार्गो कनेक्टिविटी को भी सुलभ बनाएगा।
  • इस टर्मिनल के ज़रिये कोयले के अलावा स्‍टोन चिप्‍स (Stone Chips), उर्वरकों, सीमेंट और चीनी की भी ढुलाई किये जाने की आशा है।
  • यह मल्‍टी-मॉडल टर्मिनल लगभग 600 लोगों के लिये प्रत्‍यक्ष रोज़गार और तकरीबन 3000 लोगों के लिये अप्रत्‍यक्ष रोज़गार सृजित करेगा।
  • इस टर्मिनल की क्षमता सालाना 30 लाख टन है। सार्वजनिक-निजी भागीदारी (Public Private Partnership-PPP) मोड के तहत दूसरे चरण में इसकी क्षमता को बढ़कर सालाना 54.8 लाख टन कर दिया जाएगा।

राष्ट्रीय जलमार्ग-1

(National Waterway-1)

  • इलाहाबाद से हल्दिया तक गंगा-भागीरथी-हुगली नदी प्रणाली को राष्ट्रीय जलमार्ग संख्या 1 घोषित किया गया है।
  • NW-1 उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल के औद्योगिक इलाकों और उनके प्रमुख शहरों से होकर गुजरता है।

स्रोत: पी.आई.बी.


विविध

Rapid Fire करेंट अफेयर्स (13 September)

  • सेंट विंसेंट और ग्रेनेडाइंस अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (आईएसए) में शामिल होने वाला 79वाँ देश बन गया। अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन सौर ऊर्जा संपन्न देशों का एक संधि आधारित अंतर-सरकारी संगठन (Treaty-Based International Intergovernmental Organization) है। इसकी शुरुआत भारत और फ्राँस ने 30 नवंबर, 2015 को पेरिस जलवायु सम्‍मेलन के दौरान की थी। इसका मुख्यालय गुरुग्राम (हरियाणा) में है। अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन के प्रमुख उद्देश्यों में 1000 गीगावाट से अधिक सौर ऊर्जा उत्पादन क्षमता का वैश्विक उपभोग और वर्ष 2030 तक सौर ऊर्जा में निवेश के लिये लगभग 1000 बिलियन डॉलर की राशि जुटाना शामिल है। सेंट विंसेंट और ग्रेनेडाइंस एक दक्षिणी कैरेबियाई देश है जिसमें एक मुख्य द्वीप सेंट विंसेंट तथा छोटे द्वीपों की एक श्रृंखला शामिल है। सेंट विंसेंट और ग्रेनेडाइंस में राजतंत्र की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि ब्रिटिश औपनिवेशिकता में है। सेंट विंसेंट और ग्रेनेडाइंस में संवैधानिक राजतंत्र है तथा वर्तमान सत्ता (राष्ट्रप्रमुख) फरवरी 1952 से महारानी एलिज़ाबेथ द्वितीय के पास हैं। अन्य राष्ट्रमंडल देशों के समान सेंट विंसेंट और ग्रेनेडाइंस की राजनीतिक व्यवस्था वेस्टमिंस्टर प्रणाली पर आधारित है, जिसमें राष्ट्रप्रमुख का पद नाममात्र होता है और वास्तविक प्रशासनिक शक्तियाँ शासन प्रमुख में निहित होती हैं।
  • रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) ने दूसरा स्वदेश विकसित अवाक्स यानी एयरबोर्न अर्ली वार्निंग एंड कंट्रोल एयरक्राफ्ट (प्रारंभिक चेतावनी व नियंत्रण विमान) 'नेत्र' भारतीय वायुसेना को सौंप दिया है। ‘नेत्र’ को विकसित करने का काम वर्ष 2007 में शुरू हुआ था तथा इसे तैयार करने में 2460 करोड़ रुपए की लागत आई थी। वर्ष 2017 में ‘नेत्र’ का पहला एयरक्राफ्ट वायुसेना को दिया गया था। पाँच फ्लाइट कंट्रोल की क्षमता रखने वाला ‘नेत्र’ पाँच घंटे तक उड़ान भर सकता है तथा हवा में रिफ्यूल करने पर यह नौ घंटे तक उड़ान भर सकता है। इसके साथ ही यह रडार के सिग्नल को भी पकड़ने में सक्षम है। ज्ञातव्य है कि वर्ष 1958 में स्थापित DRDO रक्षा मंत्रालय के रक्षा अनुसंधान और विकास विभाग के अधीन काम करता है। DRDO रक्षा प्रणालियों के डिज़ाइन एवं विकास के लिये समर्पित है तथा तीनों रक्षा सेवाओं की आवश्यकताओं के अनुसार विश्व स्तर की हथियार प्रणालियों और उपकरणों के उत्पादन में आत्मनिर्भर होने की दिशा में काम करता है। DRDO सैन्य प्रौद्योगिकी के जिन विभिन्न क्षेत्रों में काम कर रहा है, उनमें वैमानिकी, शस्त्र, युद्धक वाहनों, इलेक्ट्रॉनिक्स, इंस्ट्रूमेंटेशन इंजीनियरिंग प्रणालियाँ, मिसाइल, सामग्री, नौसेना प्रणालियाँ, उन्नत कंप्यूटिंग, सिमुलेशन आदि शामिल हैं।
  • वैश्विक यात्रा और पर्यटन प्रतिस्पर्द्धात्‍मकता सूचकांक में भारत को 34वाँ स्‍थान मिला है, जबकि गत वर्ष भारत इस सूचकांक में 40वें पायदान पर था। सूचकांक के उपखंडों में भारत को बेहतर वातावरण के लिये 33वाँ, बुनियादी और बंदरगाह अवसंरचना के लिये 28वाँ, अंतर्राष्ट्रीय स्‍वीकार्यता के लिये 51वाँ, प्राकृतिक सौंदर्य के लिये 14वाँ तथा सांस्‍कृतिक संसाधनों के लिये 8वाँ स्‍थान मिला। ‘Travel & Tourism Competitiveness Index Report 2019’ में इस बार कुल 140 देश शामिल हुए थे। भारत की रैंकिंग में सुधार की वज़ह प्राकृतिक और सांस्‍कृतिक संसाधन हैं, जिसमें समृद्ध होने के चलते ही रैंकिंग में सुधार हुआ है। इसके अलावा कीमतों तथा खर्चों के मामले में भी भारत अन्‍य देशों के लिये काफी प्रतिस्पर्द्धी सिद्ध हुआ है। रिपोर्ट के अनुसार, चीन, मेक्सिको, मलेशिया, ब्राज़ील, थाईलैंड और भारत की अर्थव्‍यवस्‍था उच्‍च आय वाली नहीं है, लेकिन सांस्‍कृतिक और प्राकृतिक संसाधनों के ज़रिये ये देश शीर्ष 35 देशों में अपना स्‍थान बनाने में कामयाब हुए हैं। सूचकांक में स्‍पेन एक बार फिर से टॉप पर है।
  • भारत के पड़ोसी देश श्रीलंका में 'मेक इन इंडिया' के तहत बनाई गई लक्ज़री ट्रेन पुलथिसी इंटरसिटीएक्सप्रेस (Pulathisi Intercity Express) का संचालन कोलंबो फोर्ट रेलवे स्टेशन से पोलोन्नारुवा (Polonnaruwa) के बीच शुरू हो गया है। इस ट्रेन सेट का निर्माण चेन्नई स्थित इंटीग्रल कोच फैक्ट्री में किया गया है। यह ट्रेन सेट श्रीलंका को इंडियन लाइन ऑफ क्रेडिट के तहत दिया गया गया है। इसमें वे सभी सुविधाएँ मौजूद हैं, जो भारत की अत्याधुनिक ट्रेन वंदे भारत में हैं। गौरतलब है कि श्रीलंका ने भारत से छह DEMU ट्रेन सेट की मांग की है। इसके अलावा भारत सरकार लाइन ऑफ क्रेडिट के तहत बांग्लादेश, म्यांमार, अंगोला, सूडान, सेनेगल, माली को भी इस तरह की सुविधा प्रदान करेगी।
  • दिल्ली के फिरोज़ शाह कोटला स्टेडियम (का नाम बदलकर अब अरुण जेटली स्टेडियम कर दिया गया है। पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली के निधन के बाद दिल्ली एवं ज़िला क्रिकेट संघ (DDCA) ने स्टेडियम का नाम बदलने का फैसला किया था। अरुण जेटली DDCA के अध्यक्ष भी रहे। इसके साथ ही स्टेडियम के एक स्टैंड का नाम भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान विराट कोहली के नाम पर रखा गया। फिरोज़ शाह कोटला स्टेडियम का नाम 14वीं शताब्दी में दिल्ली सल्तनत के शासक रहे फिरोज़ शाह तुगलक के नाम पर रखा गया था। लगभग 41 हज़ार दर्शक क्षमता वाला फ़िरोज़ शाह कोटला स्टेडियम वर्ष 1883 में बना तथा यह कोलकाता के ईडन गार्डेंस के बाद भारत का दूसरा सबसे पुराना अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम है।
  • छह बार की विश्व चैंपियन और लंदन ओलंपिक की कांस्य पदक विजेता एम.सी. मैरी कॉम तथा 10 बॉक्सरों को टोक्यो ओलंपिक खेलों की तैयारियों के लिये टारगेट ओलंपिक पोडियम स्कीम (TOPS-टॉप्स) में शामिल किया गया है। इनके अलावा 22 वर्षीय महिला शूटर 10 मीटर एयर पिस्टल निशानेबाज यशस्विनी सिंह देशवाल को भी शामिल किया गया है। खेल मंत्रालय ने ‘टॉप्स’ के तहत वर्ष 2020 के टोक्यो ओलंपिक खेलों के लिये खिलाड़ियों की तैयारी के लिये 100 करोड़ रुपए का प्रावधान रखा है। विदित हो कि खेल मंत्रालय ने ‘टॉप्स’ को सितंबर 2014 में शुरू किया था और इसका लक्ष्य ओलंपिक के संभावित पदक विजेताओं को तैयारी के लिये वित्तीय सहायता मुहैया कराना है। ‘टॉप्स’ के लिये अलग से टॉप्स सचिवालय का भी गठन किया गया है।

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