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डेली न्यूज़

  • 14 Sep, 2019
  • 33 min read
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

समुद्री संचार सेवा

चर्चा में क्यों?

राष्ट्रीय रेडियो और इलेक्ट्रॉनिक्स कंपनी (National Radio & Electronics Company- Nelco) ने 13 सितंबर 2019 को मुंबई में समुद्री संचार सेवा (maritime communication service) का शुभारंभ किया।

प्रमुख बिंदु:

  • वर्तमान युग प्रौद्योगिकी और संचार का युग है। भारत में संचार प्रौद्योगिकी के प्रयोग के माध्यम से वित्तीय समावेशन, डिजिटल इंडिया और ई-गवर्नेंस जैसे कार्यक्रमों का क्रियान्वयन किया जा रहा है।
  • NELCO पहली भारतीय कंपनी है जो समुद्री क्षेत्र में गुणवत्तापूर्ण ब्रॉडबैंड सेवाएँ प्रदान करेगी।
  • समुद्री संचार सेवा के तहत उपग्रह प्रौद्योगिकी (Satellite Technology) का उपयोग करते हुए क्रूज़ लाइनरों (Cruise Liners) और समुद्री जहाज़ों को वॉयस, डेटा तथा वीडियो सेवाओं तक पहुँच स्थापित करने हेतु उच्च गुणवत्तायुक्त इंटरनेट सेवाएँ प्रदान की जाएंगी। इसके अतिरिक्त समुद्री जहाज़ों को आवश्यक अन्य डिजिटल सेवाएँ भी प्रदान की जाएंगी।
  • NELCO, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (Indian Space Research Organization) के साथ वैश्विक भागीदारी के माध्यम से ऊर्जा, कार्गो तथा क्रूज़ जहाज़ों की परिचालन क्षमता को और मज़बूत करेगी।
  • इसी सेवा की तरह भारत सरकार के संचार, इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने दिसंबर, 2018 में इन-फ़्लाइट एंड मैरीटाइम कम्युनिकेशंस (In-Flight And Maritime Communications- IFMC) सेवा की शुरुआत की थी।
  • IFMC के तहत भारत के हवाई और समुद्री क्षेत्रों से गुज़रने वाले जहाज़ों को इंटरनेट सेवाएंँ प्रदान की जाती हैं।

स्रोत: PIB


जैव विविधता और पर्यावरण

दिल्ली के वायु प्रदूषण में कमी

चर्चा में क्यों?

मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा है कि दिल्ली में विगत चार वर्षों में प्रदूषण, मुख्यतः PM2.5 की सघनता के स्तर में 25 प्रतिशत की गिरावट आई है।

  • लगभग 5 साल पहले वर्ष 2014 में विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organisation-WHO) द्वारा वायु गुणवता के संबंध में एक वैश्विक अध्ययन किया गया और इसमें दिल्ली को दुनिया का सबसे प्रदूषित शहर घोषित किया गया था।
  • तब से शहर में प्रदूषण को रोकने के लिये केंद्र सरकार, राज्य सरकारों व कई नागरिक संस्थानों द्वारा उल्लेखनीय कदम उठाए गए हैं।

दिल्ली में वायु प्रदूषण संबंधी आँकड़े

  • दिल्ली सरकार ने दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति के माध्यम से वायु गुणवत्ता की निगरानी का कार्य वर्ष 2010 में शुरू किया था।
  • इसकी शुरुआत चार स्टेशनों - आर. के. पुरम, पंजाबी बाग, आनंद विहार और मंदिर मार्ग से हुई थी। बीते वर्ष स्टेशनों की संख्या बढ़ाकर 26 कर दी गई थी।
  • दिल्ली में प्रदूषण की सबसे भयावह स्थिति वर्ष 2012 में अक्तूबर और नवंबर के मध्य देखने को मिली, जब पंजाब और हरियाणा के किसानों ने पराली को काफी बड़ी मात्रा में जलाना शुरू कर दिया था। आँकड़ों के अनुसार, उस समय दिल्ली में प्रदूषण कणों की मात्रा विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा निर्धारित सीमा से 30 प्रतिशत अधिक थी।

पर्टिकुलेट मैटर

(Particulate Matter-PM)

  • संयुक्त राज्य अमेरिका की पर्यावरण संरक्षण संस्था (Environmental Protection Agency-EPA) के अनुसार, पर्टिकुलेट मैटर हवा में ठोस कणों और तरल बूँदों का मिश्रण होता है। इसमें से कुछ कणों को नग्न आँखों से देखा जा सकता है, जबकि कुछ को देखने के लिये हमें माइक्रोस्कोप (Microscope) की आवश्यकता पड़ती है।
  • उल्लेखनीय है कि दिल्ली की हवा में मुख्यतः PM2.5 एवं PM10 पाए जाते हैं।
    • PM2.5 - 2.5 माइक्रोमीटर या इससे छोटे व्यास वाले कण।
    • PM10 - 10 माइक्रोमीटर या इससे छोटे व्यास वाले कण।

दिल्ली में पर्टिकुलेट मैटर-2.5 (PM2.5)

  • दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति के वर्ष 2012 से 2018 तक के आँकड़े दर्शाते हैं कि इस अवधि में वर्ष 2018 में दिल्ली में PM2.5 की सघनता का औसत स्तर सबसे कम था।
  • जहाँ वर्ष 2012 में PM2.5 की सघनता का वार्षिक औसत 160 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर था, वहीं वर्ष 2018 में यह 20 प्रतिशत घटकर 128 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर पर पहुँच गया।
  • आँकड़ों के अनुसार नवंबर, दिसंबर और जनवरी वर्ष 2012 से वर्ष 2018 तक प्रत्येक वर्ष सबसे अधिक प्रदूषित रहने वाले महीने थे।
  • नवंबर ही वह महीना है जिसमें पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के किसानों द्वारा सर्वाधिक पराली जलाई जाती है।

PM10 संबंधी आँकड़े

  • वर्ष 2012 से 2018 के बीच PM10 की औसत सघनता में भी 21 प्रतिशत की कमी आई। इस अवधि में PM10 का औसत स्तर 351 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर से कम होकर 277 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर हो गया।
  • सर्दियों के मौसम में PM10 प्रदूषण का सबसे प्रमुख कारक बन जाता है, क्योंकि इस मौसम में खुले में आग जलाना एक महत्त्वपूर्ण दैनिक गतिविधि बन जाती है।

प्रदूषण स्तर में गिरावट के मुख्य कारण

  • वर्ष 2014 से वर्ष 2017 के बीच दिल्ली सरकार, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड तथा पर्यावरण प्रदूषण (रोकथाम और नियंत्रण) प्राधिकरण ने कई अभियान चलाए, आदेश जारी किये और ऑड-ईवन नियम को लागू करने सहित वायु प्रदूषण पर अंकुश लगाने के लिये NGT द्वारा पारित आदेशों को लागू किया।
  • एक अन्य बड़ा कदम वर्ष 2017 में भी उठाया गया, जब केंद्र सरकार ने ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान (Graded Response Action Plan-GRAP) जारी किया। इसमें दिल्ली और NCR के अंतर्गत प्रदूषण से निपटने के लिये संबंधित राज्य सरकारों को रोडमैप जारी किया गया। GRAP के अनुसार, यदि दिल्ली-NCR की हवा 48 घंटों से अधिक समय के लिये खतरनाक स्तर से अधिक रहती है तो कठोर कदम जैसे- ट्रकों के प्रवेश को रोकना, निर्माण कार्य को रोकना इत्यादि कदम उठाए जाएंगे।
  • अन्य उल्लेखनीय कदम
    • दिल्ली में दो थर्मल पॉवर प्लांट्स को बंद कर दिया गया है।
    • दिल्ली से गुज़रते हुए अन्य राज्यों को जाने वाले वाहनों के लिये ईस्टर्न पेरीफेरल एक्सप्रेस-वे की शुरुआत।
    • BS VI ईंधन की शुरुआत।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

केंद्रीय उपकरण पहचान रजिस्टर (CEIR)

चर्चा में क्यों?

हाल ही में महाराष्ट्र सरकार ने चोरी हुए मोबाइल्स फोन को ट्रैक करने के लिये एक पायलट प्रोजेक्ट लॉन्च किया है।

प्रमुख बिंदु:

  • यह प्रोजेक्ट महाराष्ट्र के मोबाइल ग्राहकों को उनके चोरी हुए मोबाइल फोन की रिपोर्ट दर्ज कराने की सुविधा प्रदान करता है।
  • इसके अतिरिक्त यह चोरी हुए मोबाइल फोन को अवरुद्ध करने की सुविधा भी देता है जिससे चोरी हुए मोबाइल फोन के पुन: उपयोग की संभावना को रोका जा सके।
  • यदि कोई भी व्यक्ति चोरी हुए मोबाइल के उपयोग की कोशिश करता है, तो टेलीकॉम सर्विस प्रोवाइडर (Telecom Service Provider- TSP) उक्त मोबाइल्स के नए उपयोगकर्त्ता की पहचान करने में सक्षम होगा।
  • इसके अलावा TSP मोबाइल की ट्रैसेबिलिटी में पुलिस को सहायता प्रदान करेंगे। इसके साथ ही इस प्रोजेक्ट के माध्यम से डुप्लिकेट IMEI (International Mobile Equipment Identity) के प्रयोग को भी रोका जा सकेगा।

अंतर्राष्ट्रीय मोबाइल उपकरण पहचान नंबर

(International Mobile Equipment Identity- IMEI):

  • अंतर्राष्ट्रीय मोबाइल उपकरण पहचान नंबर (International Mobile Equipment Identity- IMEI) को मोबाइल फोन डिवाइस की विशिष्ट पहचान माना जाता है। इसे मोबाइल पर * # 06 # डाॅयल करके ज्ञात किया जा सकता है।
  • IMEI प्रत्येक फोन या मोबाइल ब्रॉडबैंड डिवाइस में विशिष्ट 15 अंकों का कोड होता है जो डिवाइस के मॉडल, संस्करण एवं अन्य जानकारियों की सटीक पहचान करता है।
  • मोबाइल फोन में सिम कार्ड की संरचना के साथ ही IMEI नंबर को प्रोग्राम किया जाता है। सामान्यतः 2 सिम स्लॉट वाले मोबाइल में दो IMEI नंबर होते हैं।
  • किसी भी फोन की पहचान उसके IMEI नंबर के आधार पर की जाती है वर्तमान में चोरी हुए मोबाइल में क्लोनिंग करके दूसरा IMEI नंबर प्रोग्राम कर दिया जाता है, परिणामस्वरूप एक ही IMEI नंबर के साथ कई मोबाइल फोन डिवाइस को प्रोग्राम कर दिया जाता है।
  • इस प्रकार मोबाइल सुरक्षा और मोबाल्स फ़ोन की रिप्रोग्रामिंग सहित अन्य चिंताओं को दूर करने के लिये भारत सरकार के दूरसंचार विभाग (Department of Telecommunications- DoT) द्वारा केंद्रीय उपकरण पहचान रजिस्टर (Central Equipment Identity Register- CEIR) नामक एक डेटाबेस स्थापित किया गया है।

केंद्रीय उपकरण पहचान रजिस्टर

(Central Equipment Identity Register- CEIR):

  • दूरसंचार विभाग (Department of Telecommunications- DoT) के आदेश के अनुसार, भारत में प्रत्येक मोबाइल नेटवर्क प्रदाता के पास उपकरण पहचान रजिस्टर (Equipment Identity Register- EIR) या उसके नेटवर्क से जुड़े मोबाइल फोन का एक डेटाबेस (Database) होता है।
  • सभी उपकरण पहचान रजिस्टर (Equipment Identity Register- EIR), केंद्रीय उपकरण पहचान रजिस्टर के साथ समस्त जानकारियाँ साझा करते हैं। केंद्रीय उपकरण पहचान रजिस्टर भारत में सभी नेटवर्कों से जुड़े समस्त मोबाइल्स फोन की सूचनाओं का भंडारण केंद्र है।
  • केंद्रीय उपकरण पहचान रजिस्टर में मोबाइल उपकरण का अंतर्राष्ट्रीय मोबाइल उपकरण पहचान नंबर (International Mobile Equipment Identity- IMEI) जो कि विशिष्ट 15 अंकों का कोड है, संलग्न किया जाता है। यह डिवाइस के मॉडल, संस्करण एवं अन्य जानकारियों की सटीक पहचान करता है।
  • इस तरह के केंद्रीकृत डेटाबेस की उपलब्धता पर मोबाइल चोरी या अवैध मोबाइल फोन की पहचान करने तथा उन्हें ब्लॉक करने में मदद मिलती है।
  • वर्तमान में चोरी हुए मोबाइल फोन के IMEI को मोबाइल सेवा प्रदाता द्वारा अपने EIR के आधार पर ब्लैकलिस्टेड कर दिया जाता है।

स्रोत: pib


सामाजिक न्याय

भारत में जेल सुधार और इससे संबंधित चुनौतियाँ

चर्चा में क्यों?

पुलिस अनुसंधान और विकास ब्यूरो (Bureau of Police Research and Development-BPRD) द्वारा 12 एवं 13 सितंबर, 2019 को ‘जेलों में आपराधिक गतिविधियाँ और कट्टरता : कैदियों एवं जेल कर्मचारियों की असुरक्षा और उनका संरक्षण’ विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया गया।

प्रमुख बिंदु:

  • इस अवसर पर जेल सुधार के क्षेत्र में विभिन्‍न चुनौतियों पर चर्चा की गई और इसके साथ ही जेल प्रणालियों एवं संबंधित मानव संसाधन को बेहतर बनाने के लिये एक नीति बनाने की आवश्‍यकता पर बल दिया गया।
    • उल्लेखनीय है कि जेलों में सुरक्षा सुनिश्चित करने, कैदियों के रहन-सहन का स्‍तर बेहतर करने और जेलों को एक सुधार केंद्र में तब्‍दील करने की ज़रूरत है।

भारत में जेल सुधार की आवश्यकता:

  • राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (National Crime Records Bureau-NCRB) के आँकड़े बताते हैं कि वर्ष 2015 में भारतीय जेलों में क्षमता से 14 गुना अधिक कैदी बंद थे। वर्ष 2015 के बाद भी इन आँकड़ों में लगातार बढ़ोतरी देखने को मिली है, परंतु चिंतनीय स्थिति यह है कि इस अवधि में जेलों की संख्या में कुछ खास वृद्धि नहीं हुई है।
  • उपरोक्त आँकड़ों से यह स्पष्ट हो जाता है कि जेलों में कैदियों की स्थिति कितनी खराब है। जेल सांख्यिकी 2015 के अनुसार, जेल की खराब स्थिति के कारण वर्ष 2015 में कुल 1,584 लोगों की मृत्यु हो गई थी।
  • जानकारों के अनुसार, जेलों की खराब स्थिति और उसमें आवश्यकता से अधिक कैदी होने का मुख्य कारण न्यायालयों में लंबित मामलों की एक बड़ी संख्या है। वर्ष 2017 में सरकार ने सूचित किया था कि भारतीय न्यायालयों में लंबित मामलों की संख्या बढ़कर 2 करोड़ 60 लाख से अधिक हो गई है।
  • इसकी एक अन्य वजह न्यायिक प्रक्रिया का महँगा हो जाना भी है, आज देश में कई कैदी सिर्फ इसलिये जेल में रहते हैं, क्योंकि उनके पास ज़मानत के लिये पैसे नहीं हैं। एक अध्ययन के मुताबिक, देश की जेलों में लगभग 70 फीसदी कैदी ऐसे हैं जिन पर अभी तक जुर्म साबित भी नहीं हो पाया है।
  • साथ ही जेलों में कैदियों की अधिक संख्या होने के कारण उन्हें आवश्यक पौष्टिक आहार तथा स्वच्छ वातावरण भी नहीं मिल पाता है।
  • जेल सुधार के संदर्भ में कई समाज सेवकों ने यह प्रश्न उठाया है कि भारतीय राजनेता इस ओर मात्र इसलिये ध्यान नहीं देते क्योंकि जेलों में बंद कैदी उनकी वोट बैंक सीमा में नहीं आते।

जेल सुधार की चुनौतियाँ :

  • जेलों में ज़रूरत से ज़्यादा कैदियों को रखा जाना।
  • विचाराधीन कैदियों की अधिक संख्‍या।
  • जेलों में अपर्याप्‍त बुनियादी ढाँचागत सुविधाएँ।
  • जेलों में आपराधिक गतिविधियाँ एवं कट्टरता।
  • महिला कैदियों एवं उनके बच्‍चों की सुरक्षा।
  • समुचित जेल प्रशासन के लिये धन एवं स्‍टाफ की कमी।

जेल सुधार हेतु प्रयास

  • जेल आधुनिकीकरण योजना: जेल आधुनिकीकरण योजना की शुरुआत वर्ष 2002-03 में जेलों, कैदियों और जेलकर्मियों की स्थिति में सुधार लाने के उद्देश्य से शुरू की गई थी। इस योजना में नई जेलों का निर्माण, मौजूदा जेलों की मरम्मत और नवीनीकरण, स्वच्छता और जल आपूर्ति में सुधार आदि शामिल थे।
  • ई-जेल परियोजना: ई-जेल परियोजना का उद्देश्य डिजिटलीकरण के माध्यम से जेल प्रबंधन की दक्षता को बढ़ाना है। ई-जेल परियोजना जेल प्रबंधन में कैदी सूचना प्रबंधन प्रणाली (Prisoner Information Management system-PIMS) को जोड़ती है जो कैदियों की जानकारी को रिकॉर्ड करने और प्रबंधित करने तथा विभिन्न प्रकार की रिपोर्ट बनाने के लिये सहायक है।
  • मॉडल जेल मैनुअल, 2016: यह मैनुअल जेल कैदियों के लिये उपलब्ध कानूनी सेवाओं (मुफ्त सेवाओं सहित) के बारे में विस्तृत जानकारी प्रदान करता है।
  • राष्ट्रीय विधि सेवा प्राधिकरण (National Legal Services Authority-NALSA): NALSA ने विचाराधीन कैदियों को मुफ्त कानूनी सेवाओं सहित कई अन्य सेवाएँ देने के लिये एक वेब आधारित एप्लीकेशन की शुरुआत की थी। इस एप्लीकेशन का उद्देश्य कानूनी सेवा प्रणाली को अधिक पारदर्शी और उपयोगी बनाना था।
  • जेल सुधारों और सुधारात्मक प्रशासन पर राष्ट्रीय नीति मसौदा: इस मसौदे के मुख्य बिंदु निम्नलिखित हैं:
    • जेलों को संविधान की समवर्ती सूची में शामिल करना।
    • जेलों से संबंधित मामलों पर एक समान और व्यापक कानून का निर्माण।
    • प्रत्येक राज्य में जेल और सुधार सेवाओं संबंधी एक विभाग का निर्माण।
    • सभी राज्य प्रत्येक जेल और संबंधित संस्थान में रहने की स्थिति में सुधार करेंगे।

आगे की राह

  • जेल संबंधी सुधारों को निम्नलिखित दो समस्याओं से निपटने के लिये तैयार किया जाना चाहिये:
    • जेल प्रशासन में संसाधनों की कमी।
    • यह मानसिकता कि जो जेल में रहते हैं वे सुविधाओं के लायक नहीं हैं।
  • कैदियों की अधिक संख्या, जेल में क्रूरता और कट्टरता, स्वच्छता की कमी तथा जेल में रहन-सहन के अस्वीकार्य मानकों पर गंभीरता से विचार किया जाना चाहिये।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय अर्थव्यवस्था

मंथली ऑयल मार्केट रिपोर्ट: ओपेक

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ओपेक (Organization of the Petroleum Exporting Countries- OPEC) द्वारा जारी की गई ‘मंथली ऑयल मार्केट रिपोर्ट’ (Monthly Oil Market Report) में कहा गया है कि आर्थिक वृद्धि की गति धीमी होने के बावजूद भी वर्ष 2019 और 2020 के दौरान विश्व के अन्य देशों की तुलना में भारत में कच्चे तेल की मांग अधिक तेज़ी से बढ़ेगी।

प्रमुख बिंदु

  • रिपोर्ट के अनुसार, भारत में कच्चे तेल की मांग में वर्ष 2018 की तुलना में वर्ष 2019 में 3.21% की वृद्धि हुई है। वर्ष 2020 में इस मांग में 3.36% की वृद्धि का अनुमान व्यक्त किया गया है।
  • उल्लेखनीय है कि वर्ष 2019 में विश्व बाज़ार में तेल की मांग 1.02 मिलियन बैरल प्रतिदिन (Million Barrels Per Day- mb/d) बढ़ने की उम्मीद है जो पिछले अनुमान की तुलना में 0.08 mb/d कम है।
  • चीन में तेल की मांग में वर्ष 2019 में 2.73% तथा वर्ष 2020 में 2.37% की वृद्धि का अनुमान है।
  • रिपोर्ट के अनुसार, वैश्विक बाज़ार में तेल का अधिशेष रहेगा।

India import India export

तेल की मांग के संदर्भ में

  • भारत के ऑटोमोबाइल क्षेत्र में आई वर्तमान गिरावट के बावजूद गैस की मांग में जून 2018 की तुलना में लगभग 11% की वृद्धि हुई।
  • उल्लेखनीय है कि ऑटोमोबाइल की बिक्री, पेट्रोलियम उत्पाद की खपत और घरेलू हवाई यातायात इत्यादि संकेतक भारत में तेल की घरेलू खपत में कमी का संकेत करते हैं।

मंथली ऑयल मार्केट रिपोर्ट

  • ओपेक द्वारा जारी की जाने वाली ‘मंथली ऑयल मार्केट रिपोर्ट’ (Monthly Oil Market Report- MOMR) विश्व तेल बाज़ार को प्रभावित करने वाले प्रमुख मुद्दों को शामिल करती है और आने वाले वर्ष के लिये कच्चे तेल बाज़ार की विकासात्मक गतिविधियों हेतु एक दृष्टिकोण प्रदान करती है।
  • यह रिपोर्ट विश्व में तेल की मांग, आपूर्ति के साथ-साथ तेल बाज़ार संतुलन तथा तेल बाज़ार के रुझानों को प्रभावित करने वाले प्रमुख घटनाक्रमों का विस्तृत विश्लेषण करती है।

ओपेक (Organization of the Petroleum Exporting Countries-OPEC)

  • ओपेक 14 तेल निर्यातक विकासशील राष्ट्रों का एक स्थायी अंतर-सरकारी संगठन है जिसका गठन 10-14 सितंबर, 1960 को आयोजित बगदाद सम्मेलन में ईरान, इराक, कुवैत, सऊदी अरब और वेनेज़ुएला ने किया था।
  • यह संगठन अपने सदस्य देशों की पेट्रोलियम नीतियों का समन्वय और एकीकरण करता है।
  • OPEC के अस्तित्व में आने के बाद शुरुआती पाँच वर्षों तक इसका मुख्यालय जिनेवा, स्विट्ज़रलैंड में था। 1 सितंबर, 1965 को इसका मुख्यालय ऑस्ट्रिया के वियना में स्थानांतरित कर दिया गया।
  • वर्तमान में इसके कुल 14 देश सदस्य है- ईरान, इराक, कुवैत, इंडोनेशिया, लीबिया, संयुक्त अरब अमीरात, अल्जीरिया, नाइजीरिया, इक्वाडोर, गैबॉन, अलजीरिया अंगोला, इक्वेटोरियल गिनी, वेनेज़ुएला और कांगो।

स्रोत: इकॉनोमिक टाइम्स


विविध

Rapid Fire करेंट अफेयर्स (14 September)

  • 14 सितंबर का दिन देशभर में हिंदी दिवस के तौर पर मनाया जाता है। 14 सितंबर, 1949 को हिंदी को राजभाषा का दर्जा दिया गया। हालाँकि हिंदी और अंग्रेज़ी दोनों को आज़ादी के बाद भारत की भाषा चुना गया और संविधान सभा ने देवनागरी लिपि वाली हिंदी के साथ ही अंग्रेज़ी को भी आधिकारिक भाषा के रूप में स्वीकार किया, लेकिन वर्ष 1949 में 14 सितंबर के दिन संविधान सभा ने हिंदी को ही भारत की राजभाषा घोषित किया। इस निर्णय के बाद हिंदी को हर क्षेत्र में प्रसारित करने के लिये राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा के आग्रह पर वर्ष 1953 से पूरे भारत में 14 सितंबर को हर साल हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाने लगा। पहला हिंदी दिवस 14 सितंबर 1953 को मनाया गया। हिंदी विश्व में सबसे अधिक बोली जाने वाली पाँच भाषाओं में से एक है। विदित हो कि हर साल 10 जनवरी को विश्व हिंदी दिवस मनाया जाता है।
  • भारत और 10 सदस्यीय दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों का संगठन आसियान मुक्त व्यापार समझौते की समीक्षा करने पर सहमत हो गए हैं। इस समझौते पर वर्ष 2009 में हस्ताक्षर किये गए थे। समीक्षा का उद्देश्य समझौते को कारोबारियों के अधिक अनुकूल तथा आर्थिक रिश्तों को और मज़बूत बनाना है। दोनों पक्षों ने इसके लिये संयुक्त समिति गठित करने का भी फैसला किया है। आसियान के आर्थिक मामलों के मंत्रियों तथा भारत के वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने हाल ही में बैंकॉक में हुई बैठक के दौरान इस पर सहमति जताई। दोनों पक्षों की यह बैठक 16वें एईएम-भारत (आसियान-भारत आर्थिक मंत्री) विचार-विमर्श के लिये हुई। दोनों पक्षों ने आसियान-भारत वस्तु व्यापार समझौते को और अनुकूल, सरल तथा कंपनियों के लिये सुविधाजनक बनाने पर ज़ोर दिया। समीक्षा के ब्योरे पर काम करने की ज़िम्मेदारी अधिकारियों को दी और उनसे अगली मंत्रिस्तरीय बैठक में रिपोर्ट देने को कहा। दोनों पक्षों ने मुक्त व्यापार समझौते के जरिये द्विपक्षीय व्यापार और बढ़ाने तथा वित्तीय प्रौद्योगिकी, संपर्क, स्टार्टअप और नवप्रवर्तन जैसे क्षेत्रों में सहयोग को लेकर आसियान-भारत व्यापार परिषद की सिफारिशों पर गौर किया। भारत-आसियान के बीच वस्तु व्यापार समझौता जनवरी 2010 में अमल में आया। आसियान के 10 सदस्य देश- ब्रुनेई, कम्बोडिया, इंडोनेशिया, मलेशिया, म्यांमार, सिंगापुर, थाईलैंड, फिलिपींस, लाओस और वियतनाम हैं। दोनों पक्षों के बीच द्विपक्षीय व्यापार वर्ष 2018 में बढ़कर 80.8 अरब डॉलर पहुँच गया जो वर्ष 2017 में 73.6 अरब डॉलर था।
  • राष्‍ट्रपति रामनाथ कोविंद तीन देशों- आइसलैंड, स्विट्ज़रलैंड और स्‍लोवेनिया की यात्रा के दूसरे चरण में स्विट्ज़रलैंड पहुँचे। उन्होंने स्विट्ज़रलैंड में वहाँ के राष्‍ट्रपति और संघीय परिषद के सदस्‍यों से मुलाकात की। इन उच्चस्तरीय बैठकों में कश्‍मीर पर भारत के रुख और स्विट्ज़रलैंड में बैंक खातों की जानकारी के स्वत: आदान-प्रदान के बारे में चर्चा हुई। इसके अलावा वित्‍त, जैव प्रौद्योगिकी, विज्ञान, पर्यटन और रेलवे के क्षेत्रों में व्‍यापक सहयोग पर भी चचा हुई। रामनाथ कोविंद ने स्विट्ज़रलैंड की राजधानी बर्न में भारतीय समुदाय को संबोधित किया। विदित हो कि स्विट्ज़रलैंड दुनिया के सबसे प्राचीनतम लोकतांत्रिक व्‍यवस्‍थाओं में से एक है, जहाँ 2000 से ज़्यादा कम्‍यून लोकतांत्रिक तरीके से काम कर रहे हैं। वर्तमान में स्विट्ज़रलैंड की 250 से ज्‍यादा कंपनियाँ भारत में काम कर रही हैं तथा भारत की बड़ी प्रौद्योगिकी कंपनियाँ ज्यूरिख, बेसल और बर्न में मौजूद हैं। भारत की 80 से अधिक वैज्ञानिक संस्‍थाएँ और 300 अनुसंधानकर्त्ताओं की टीम संयुक्‍त कार्यक्रम के तहत एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। रामनाथ कोविंद और स्विस राष्ट्रपति उली मौरर की उपस्थिति में भारत और स्विट्ज़रलैंड के बीच तीन समझौते भी हुए। पहला समझौता विज्ञान और नवोन्मेष के क्षेत्र में तथा दूसरा जलवायु परिवर्तन पर और तीसरा समझौता लुसान विश्वविद्यालय में हिंदी विभाग की अध्‍यक्षता के नवीनीकरण पर हुआ।
  • पुलिस अनुसंधान और विकास ब्यूरो (BPR&D) ने 12-13 सितंबर को ‘जेलों में आपराधिक गतिविधियाँ और कट्टरता : कैदियों एवं जेल कर्मचारियों की असुरक्षा और उनका संरक्षण’ विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया। इस सम्मेलन में सुधारक सेवाओं के क्षेत्र में विभिन्‍न चुनौतियों का उल्‍लेख किया गया और इसके साथ ही जेल प्रणालियों एवं संबंधित मानव संसाधन को बेहतर बनाने के लिये एक सचेत नीति बनाने की आवश्‍यकता पर बल दिया गया। गौरतलब है कि आज़ादी के बाद से ही देश में जेल प्रशासन विभिन्‍न मंचों पर गहन विचार-विमर्श का विषय रहा है। यहाँ तक कि देश का सर्वोच्च न्‍यायालय भी समय-समय पर जेलों की स्थितियों पर अपनी चिंता जताता रहा है। अत: जेलों में सुरक्षा सुनिश्चित करने, कैदियों के रहन-सहन का स्‍तर बेहतर करने और जेलों को सुधार केंद्र में तब्‍दील करने की ज़रूरत है। सम्मेलन में कहा गया कि कि जेल की व्यवस्‍था ऐसी होनी चाहिये जिससे कि कारावास प्रक्रिया के दौरान ज़्यादा कष्ट न हो। कैदियों के व्‍यवहार में सुधार लाने और फिर इसके बाद उनका पुनर्वास करने करना भी बेहद ज़रूरी है। जेल सुधारों से जु़ड़ी विभिन्‍न चुनौतियों में जेलों में ज़रूरत से ज़्यादा कैदियों को रखना, विचाराधीन कैदियों की अधिक संख्‍या, जेलों में अपर्याप्‍त बुनियादी ढाँचागत सुविधाएँ, जेलों में आपराधिक गतिविधियाँ एवं कट्टरता, महिला कैदियों एवं उनके बच्‍चों की सुरक्षा, समुचित जेल प्रशासन के लिये धन एवं स्‍टाफ की कमी इत्‍यादि प्रमुख हैं। इसके लिये सरकार ने फास्‍ट-ट्रैक कोर्ट और लोक अदालतों का गठन किया है, जिससे विचाराधीन कैदियों से जुड़े लंबित मामलों में कमी आएगी और इसके परिणामस्‍वरूप जेल प्रणाली पर कम बोझ पड़ेगा। केंद्र सरकार ने 1800 करोड़ रुपए की लागत से ‘जेल आधुनिकीकरण योजना’ शुरू की है, जिसका उद्देश्‍य 199 नई जेलें, 1572 अतिरिक्‍त बैरक एवं जेल कर्मियों के लिये 8568 आवासीय परिसर बनाना है।

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