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डेली न्यूज़

  • 12 Jul, 2021
  • 46 min read
आंतरिक सुरक्षा

नगा शांति वार्ता

प्रिलिम्स के लिये

नगा समुदाय, शिलॉन्ग समझौता, उत्तर-पूर्व की भौगोलिक अवस्थिति

मेन्स के लिये

नगा विद्रोह: पृष्ठभूमि और संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

हाल ही में नगालैंड सरकार ने सभी नगा राजनीतिक समूहों और चरमपंथी समूहों से क्षेत्र में एकता, सुलह और शांति स्थापित करने में सहयोग की अपील की है। 

  • केंद्र सरकार और नगा चरमपंथी समूहों के दो वर्गों के बीच शांति प्रक्रिया बीते लगभग 23 वर्ष से अधिक समय से लंबित है।

नगा

  • नगा पहाड़ी नृजातीय समुदाय हैं जिनकी आबादी लगभग 2.5 मिलियन (नगालैंड में 1.8 मिलियन, मणिपुर में 0.6 मिलियन और अरुणाचल में 0.1 मिलियन) है और वे भारतीय राज्य असम एवं बर्मा (म्याँमार) के मध्य सुदूर एवं पहाड़ी क्षेत्र में निवास करते हैं।
  • बर्मा (म्याँमार) में भी नगा समूह मौजूद हैं।
  • नगा एक जनजाति नहीं है, बल्कि एक जातीय समुदाय है, जिसमें कई जनजातियाँ शामिल हैं, जो नगालैंड और उसके पड़ोसी क्षेत्रों में निवास करती हैं।
  • नगा इंडो-मंगोलॉयड वंश से संबंध रखते हैं।
  • नगा समुदाय में कुल 19 जनजातियाँ शामिल हैं- एओस, अंगामिस, चांग्स, चकेसांग, कबूइस, कचारिस, खैन-मंगस, कोन्याक्स, कुकिस, लोथस (लोथास), माओस, मिकीर्स, फोम्स, रेंगमास, संग्तामास, सेमस, टैंकहुल्स, यामचुमगर और ज़ीलियांग।

Naga-Struggle

प्रमुख बिंदु

नगा विद्रोह की पृष्ठभूमि:

  • नगा हिल्स वर्ष 1881 में ब्रिटिश भारत का हिस्सा बना।
  • बिखरी हुई नगा जनजातियों को एक साथ लाने के प्रयास के परिणामस्वरूप वर्ष 1918 में ‘नगा क्लब’ का गठन किया गया।
    • इस क्लब ने समग्र समुदाय के बीच एक प्रकार की ‘नगा राष्ट्रवादी’ भावना को जन्म दिया।
  • इस क्लब को वर्ष 1946 में ‘नगा नेशनल काउंसिल’ (NNC) में रूपांतरित कर दिया गया।
  • अंगामी ज़ापू फिज़ो के नेतृत्व में ‘नगा नेशनल काउंसिल’ ने 14 अगस्त, 1947 को नगालैंड को एक स्वतंत्र राज्य घोषित किया और मई 1951 में एक "जनमत संग्रह" कराया, जिसमें दावा किया गया कि 99.9% नगाओं ने ‘संप्रभु नगालैंड’ का समर्थन किया है।
  • नगालैंड ने दिसंबर 1963 में राज्य का दर्जा हासिल किया। नगालैंड का गठन असम के नगा हिल्स ज़िले और तत्कालीन ‘नॉर्थ ईस्ट फ्रंटियर एजेंसी’ (NEFA) प्रांत (अब अरुणाचल प्रदेश) के हिस्सों को मिलाकर किया गया था।
  • वर्ष 1975 में शिलॉन्ग समझौते के तहत ‘नगा नेशनल काउंसिल’ (NNC) और ‘नगा संघीय सरकार’ (NFG) के कुछ गुट हथियार छोड़ने पर सहमत हुए।
  • थिंजलेंग मुइवा (जो उस समय चीन में थे) की अगुवाई में लगभग 140 सदस्यों के एक गुट ने शिलॉन्ग समझौते को मानने से इनकार कर दिया। इस गुट ने वर्ष 1980 में ‘नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड’ (NSCN) का गठन किया। 
  • वर्ष 1988 में एक हिंसक झड़प के बाद ‘नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड’ (NSCN) का विभाजन NSCN (IM) और NSCN (K) में हो गया।
  • एक ओर समय के साथ ‘नगा नेशनल काउंसिल’ कमज़ोर पड़ने लगी तथा वर्ष 1991 में लंदन में फिज़ो की मृत्यु हो गई, वहीं NSCN (IM) की ताकत और बढ़ने लगी एवं उसे इस क्षेत्र में ‘सभी विद्रोहियों की जननी’ के रूप में देखा जाने लगा।

नगा समूहों की मांग:

  • नगा समूहों की प्रमुख मांग एक वृहत नगालैंड अर्थात् नगालिम (संप्रभु राज्य का दर्जा) रही है, यानी पूर्वोत्तर में सभी नगा-आबादी क्षेत्रों को एक प्रशासनिक केंद्र के अंतर्गत लाने के लिये सीमाओं का पुनर्निर्धारण किया जाना है।
    • इसमें अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर तथा म्याँमार के भी विभिन्न क्षेत्र शामिल हैं।
  • इसमें एक पृथक नगा येजाबो (संविधान) तथा एक पृथक झंडे की मांग भी शामिल है । 

Nagaland

शांति पहल:

  • शिलॉन्ग समझौता (1975): शिलॉन्ग में एक शांति समझौते पर हस्ताक्षर किये गए जिसमें NNC गुट ने हथियार छोड़ने पर सहमति जताई।
    • हालाँकि कई नेताओं ने समझौते को स्वीकार करने से इनकार कर दिया, जिसके कारण NNC का विभाजन हो गया।
  • संघर्ष विराम समझौता (1997): NSCN-IM ने भारतीय सशस्त्र बलों पर हमलों को रोकने के लिये सरकार के साथ संघर्ष विराम समझौते पर हस्ताक्षर किये। इसके परिणामस्वरूप सरकार ने सभी उग्रवाद विरोधी गतिविधियों/अभियानों को रोक दिया।
  • फ्रेमवर्क समझौता (2015): इस समझौते में भारत सरकार ने नगाओं के अनोखे  इतिहास, संस्कृति और स्थिति तथा उनकी भावनाओं एवं आकांक्षाओं को मान्यता दी।
  • हाल ही में राज्य सरकार ने नगालैंड के स्थानीय निवासियों का एक रजिस्टर (RIIN) बनाने का निर्णय लिया है लेकिन बाद में विभिन्न गुटों के दबाव के कारण निर्णय को रोक दिया गया।

मुद्दे:

  • 2015 के समझौते ने कथित तौर पर शांति प्रक्रिया को समावेशी बना दिया, लेकिन इसने केंद्र सरकार द्वारा आदिवासी और भू-राजनीतिक आधार पर नगाओं का विभाजन कर उनके शोषण किये जाने का संदेह उत्पन्न किया।
  • 'ग्रेटर नगालिम' (Greater Nagalim) के क्षेत्रीय एकीकरण की मांग के मद्देनज़र मणिपुर, असम और अरुणाचल प्रदेश के निकटवर्ती नगा-आबादी क्षेत्रों के एकीकरण का मुद्दा विभिन्न प्रभावित राज्यों में हिंसक संघर्ष को बढ़ावा देगा।
  • नगालैंड में शांति प्रक्रिया के मार्ग में एक और बड़ी बाधा यह है कि यहाँ एक से अधिक संगठनों का अस्तित्व है, जिनमें से प्रत्येक नगाओं का प्रतिनिधि होने का दावा करता है।

आगे की राह 

  • केंद्र को दीर्घकालीन शांतिवार्ता वाले पहलुओं के लिये विद्रोहियों के सभी गुटों और समूहों के साथ बातचीत करनी चाहिये। इसके अलावा उनकी सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और क्षेत्रीय सीमा को ध्यान में रखा जाना चाहिये।
  • किसी भी व्यवस्थित प्रक्रिया को अपनाते समय उनके सामाजिक-राजनीतिक सद्भाव, आर्थिक समृद्धि और राज्यों के सभी जनजातियों तथा नागरिकों के जीवन एवं संपत्ति की सुरक्षा होनी चाहिये।
  • इस मुद्दे से निपटने का एक अन्य मार्ग जनजातीय समूहों में शक्तियों का अधिकतम विकेंद्रीकरण और शीर्ष स्तर पर न्यूनतम केंद्रीयकरण हो सकता है। इससे शासन को जनोन्मुख बनाने और वृहद् विकास परियोजनाओं को शुरू करने की दिशा में आसानी होगी।
  • इन राज्यों में नगा आबादी वाले क्षेत्रों को अधिक स्वायत्तता प्रदान की जा सकती है और इन क्षेत्रों के लिये उनकी संस्कृति एवं विकास हेतु अलग से बजट आवंटन भी किया जा सकता है।
  • इसके अलावा केंद्र को यह ध्यान रखना चाहिये कि विश्व भर में अधिकांश सशस्त्र विद्रोह या तो संपूर्ण जीत या व्यापक हार में समाप्त नहीं होते हैं, बल्कि 'समझौता' जैसे  एक ग्रे ज़ोन में समाप्त होते हैं।

स्रोत  : द हिंदू


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम

प्रिलिम्स के लिये:

जल जीवन मिशन, जापानी इंसेफेलाइटिस- एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम

मेन्स के लिये:

जल जीवन मिशन का महत्त्व

चर्चा में क्यों?

जल जीवन मिशन (JJM) ने पाँच JE-AES (जापानी इंसेफेलाइटिस-एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम) प्रभावित राज्यों में 97 लाख से अधिक घरों में नल के पानी की आपूर्ति की है। 

  • प्राथमिकता वाले पाँच राज्य असम, बिहार, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल हैं।
  • JJM ने वर्ष 2024 तक कार्यात्मक घरेलू नल कनेक्शन (FHTC) के माध्यम से प्रत्येक ग्रामीण परिवार को प्रति व्यक्ति प्रतिदिन 55 लीटर पानी की आपूर्ति की परिकल्पना की है। जल शक्ति मंत्रालय योजना के कार्यान्वयन के लिये नोडल मंत्रालय है।

प्रमुख बिंदु:

  • एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम (AES):
    • AES मच्छरों द्वारा प्रेषित  इंसेफेलाइटिस का एक गंभीर मामला है और तेज़ बुखार एवं मस्तिष्क में  सूजन इसकी विशेषता है।
      • विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने वर्ष 2006 में AES शब्द को बीमारियों के एक समूह को दर्शाने के लिये किया जो एक-दूसरे के समान प्रतीत होते हैं लेकिन उनके प्रकोप के अराजक वातावरण में अंतर करना मुश्किल होता है।
    • कमज़ोर आबादी: यह रोग सबसे अधिक बच्चों और युवा वयस्कों को प्रभावित करता है और इसके कारण रुग्णता और मृत्यु दर काफी अधिक हो सकती है।
    • कारक एजेंट: AES मामलों में वायरस मुख्य प्रेरक एजेंट हैं, हालाँकि पिछले कुछ दशकों में बैक्टीरिया, कवक, परजीवी, स्पाइरोकेट्स, रसायन, विषाक्त पदार्थों और गैर-संक्रामक एजेंटों जैसे अन्य स्रोतों की भी सूचना मिली है।
      • जापानी  इंसेफेलाइटिस वायरस (JEV) भारत में AES का प्रमुख कारण है (5%से 35% तक)।
      • हर्पीज सिंप्लेक्स वायरस, निपाह वायरस, ज़ीका वायरस, इन्फ्लुएंज़ा ए वायरस, वेस्ट नाइल वायरस, चांदीपुरा वायरस, कण्ठमाला, खसरा, डेंगू, स्क्रब टाइफस, एसपी निमोनिया भी AES के लिये प्रेरक एजेंट के रूप में पाए जाते हैं।
    • लक्षण: भ्रम की स्थिति, भटकाव, कोमा में जाना या बात करने में असमर्थता, तेज़ बुखार, उल्टी, जी मिचलाना और बेहोशी।
    • निदान: भारत में राष्ट्रीय वेक्टर जनित रोग नियंत्रण कार्यक्रम ( National Vector Borne Disease Control Programme- NVBDCP) ने जापानी इंसेफेलाइटिस (Japanese Encephalitis- JEV) के साथ AES का पता लगाने पर ध्यान केंद्रित  करने सहित प्रहरी साइटों के माध्यम से देशव्यापी निगरानी केंद्र स्थापित किये हैं।
      • प्रहरी निगरानी नेटवर्क में AES/LE का निदान IgM एंटीबॉडी कैप्चर एलिसा (IgM Antibody Capture ELISA) द्वारा किया जाता है और वायरस का पृथक्करण (Virus Isolation) राष्ट्रीय संदर्भ प्रयोगशाला में किया जाता है।
  • भारत में AES की स्थिति:
    • NVBDCP के अनुसार, वर्ष 2018 में 17 राज्यों में 632 मौतों के साथ AES के 10,485 मामलों का निदान किया गया था।
    • भारत में AES के मामलों में 6% मृत्यु दर दर्ज की गई है, लेकिन बच्चों में मृत्यु दर बढ़कर 25% हो गई है।
    • बिहार, असम, झारखंड, उत्तर प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, तमिलनाडु, कर्नाटक और त्रिपुरा सबसे ज़्यादा प्रभावित हैं।
  • सरकारी पहल: रुग्णता और मृत्यु दर को कम करने हेतु भारत सरकार ने संबंधित मंत्रालयों के अभिसरण के साथ एक बहु-आयामी रणनीति विकसित की है।
    • स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय: जापानी इंसेफेलाइटिस टीकाकरण को मज़बूत और विस्तारित करना, सार्वजनिक स्वास्थ्य गतिविधियों को मज़बूत करना, JEV/ AEV मामलों का बेहतर नैदानिक प्रबंधन आदि।
    • सुरक्षित जल आपूर्ति के प्रावधान हेतु जल शक्ति मंत्रालय (Ministry of Jal Shakti)।
    •  महिला एवं बाल विकास हेतु कमज़ोर बच्चों को उच्च गुणवत्ता वाला पोषण प्रदान करना।
    • सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के तहत विकलांगता प्रबंधन एवं पुनर्वास हेतु ज़िला विकलांगता पुनर्वास केंद्र स्थापित करना।
    • मलिन बस्तियों और कस्बों में सुरक्षित पानी की आपूर्ति सुनिश्चित करने हेतु आवास और शहरी मामलों का मंत्रालय। 
    • विकलांग बच्चों को शिक्षा हेतु शिक्षा मंत्रालय विशेष सुविधाएंँ उपलब्ध कराएगा।

स्रोत: पी.आई.बी.


भूगोल

विश्व जनसंख्या दिवस

प्रिलिम्स के लिये:

विश्व जनसंख्या दिवस

मेन्स के लिये:

उत्तर प्रदेश की नई जनसंख्या नीति, जनसंख्या से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

हाल ही में उत्तर प्रदेश ने विश्व जनसंख्या दिवस (World Population Day 11th July) के अवसर पर अपनी नई जनसंख्या नीति 2021-30 का अनावरण किया।

प्रमुख बिंदु:

परिचय:

  • वर्ष 1989 में संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) ने सिफारिश की कि 11 जुलाई को अंतर्राष्ट्रीय समुदाय द्वारा विश्व जनसंख्या दिवस के रूप में मनाया जाए, जिसका उद्देश्य जनसंख्या के मुद्दों की तात्कालिकता और महत्त्व पर ध्यान केंद्रित करना है।
  • UNDP जनहित और जागरूकता से प्रेरित था जिसे 11 जुलाई, 1987  को "पाँच अरब दिवस" ​​(जब विश्व की आबादी 5 अरब तक पहुँच गई थी) द्वारा सृजित किया गया था।
  • इस आशय का एक प्रस्ताव पारित किया गया था और इस दिन को पहली बार 11 जुलाई, 1990 को चिह्नित किया गया था।
  • संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (UNFPA) की स्थापना वर्ष 1969 में की गई थी, उसी वर्ष संयुक्त राष्ट्र महासभा ने घोषणा की कि "माता-पिता को स्वतंत्र रूप से और ज़िम्मेदारी के साथ अपने बच्चों की संख्या एवं उनके बीच अंतर निर्धारित करने का विशेष अधिकार है।
  • वर्ष 2021 के लिये थीम: राइट्स एंड चॉइसेस आर द आंसर: चाहे बेबी बूम हो या बस्ट, प्रजनन दर में बदलाव का समाधान सभी लोगों के प्रजनन स्वास्थ्य और अधिकारों को प्राथमिकता देना है।

उत्तर प्रदेश की नई जनसंख्या नीति:

  • इस नीति में पाँच प्रमुख लक्ष्य यथा- जनसंख्या नियंत्रण; मातृ मृत्यु दर और बीमारियों को समाप्त करना; इलाज योग्य शिशु मृत्यु दर को समाप्त करना तथा उनके पोषण स्तर में सुधार सुनिश्चित करना; युवाओं के बीच यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य संबंधी जानकारी व सुविधाओं में सुधार और बड़ों की देखभाल करना प्रस्तावित है।
  • उत्तर प्रदेश सरकार के विधि आयोग ने जनसंख्या नियंत्रण विधेयक भी तैयार किया है, जिसके अंतर्गत दो बच्चों के नियम को लागू किया जाएगा।
  • इस मसौदे के अनुसार, जनसंख्या नियंत्रण नीति का उल्लंघन करने पर चुनाव लड़ने पर रोक लगाने जैसे दंड के साथ नौकरी में पदोन्नति, सब्सिडी आदि को रोक दिया जाएगा।

Future-Planning

जनसंख्या रुझान और मुद्दे

विश्व जनसंख्या:

  • विश्व जनसंख्या के विषय में:
    • विश्व की जनसंख्या लगभग 7.7 बिलियन है और इसके वर्ष 2030 में लगभग 8.5 बिलियन, वर्ष 2050 में 9.7 बिलियन तथा वर्ष 2100 में 10.9 बिलियन तक बढ़ने की संभावना है।
  • वृद्धि का कारण:
    • यह नाटकीय वृद्धि बड़े पैमाने पर प्रजनन आयु तक जीवित रहने वाले लोगों की बढ़ती संख्या और साथ ही प्रजनन दर में बड़े बदलाव, शहरीकरण में वृद्धि तेज़ी से हो रहे प्रवासन से प्रेरित है।
      •  आने वाली पीढ़ियों के लिये इन प्रवृत्तियों के दूरगामी प्रभाव होंगे।
  • प्रभावित क्षेत्र:
    • ये आर्थिक विकास, रोज़गार, आय वितरण, गरीबी और सामाजिक सुरक्षा को प्रभावित करते हैं।
    • ये स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा, आवास, स्वच्छता, पानी, भोजन और ऊर्जा तक सार्वभौमिक पहुँच सुनिश्चित करने के प्रयासों को भी प्रभावित करते हैं।

भारत में जनसंख्या संबंधी मुद्दे:

  • वृहद् आकार:
  • तीव्र विकास :
    • जन्म और मृत्यु दर में इस बेमेल अंतर के परिणामस्वरूप पिछले कुछ दशकों में जनसंख्या में तेज़ी से वृद्धि हुई है।
      • हालाँकि भारत की कुल प्रजनन दर (TFR) में गिरावट दर्ज की गई। नवीनतम सरकारी आँकड़ों के अनुसार, वर्तमान में कुल प्रजनन दर  2.2 प्रति महिला है, जो 2.1 की प्रतिस्थापन दर के करीब है।
      • TFR प्रजनन अवधि के दौरान (15-49 वर्ष) एक महिला द्वारा पैदा किये  वाले बच्चों की औसत संख्या को इंगित करती है।
  • शिक्षा और जनसंख्या वृद्धि:
    •  जनसंख्या विस्फोट में गरीबी और अशिक्षा का व्यापक योगदान है।
      • हालिया आँकड़ों के अनुसार, देश में कुल साक्षरता दर लगभग 77.7% है। 
      • अखिल भारतीय स्तर पर पुरुष साक्षरता दर महिलाओं की अपेक्षा अधिक है यहाँ 84.7% पुरुषों के मुकाबले 70.3% महिलाएँ ही साक्षर हैं।
    • ग्रामीण क्षेत्रों में बच्चों को संपत्ति के रूप में माना जाता है, जो बुढ़ापे में माता-पिता की देखभाल करेंगे, साथ ही अधिक बच्चों का अर्थ है, अधिक कमाई करने वाले हाथ।
    • महिलाओं की शिक्षा के स्तर का सीधा प्रभाव प्रजनन क्षमता पर पड़ता है, क्योंकि यह स्पष्ट है कि निरक्षर महिलाओं की प्रजनन दर साक्षर महिलाओं की तुलना में अधिक होती है।
    • शिक्षा का अभाव महिलाओं को गर्भ निरोधकों के उपयोग तथा अधिक बच्चों को  जन्म देने से पड़ने वाले प्रभावों की जानकारी में बाधक है।
  • बेरोज़गारी:
    • भारत की उच्च युवा बेरोज़गारी भारत के जनसांख्यिकीय लाभांश को जनसांख्यिकीय आपदा में बदल रही है।
    • इस युवा क्षमता को अक्सर 'जनसांख्यिकीय लाभांश' के रूप में जाना जाता है, जिसका अर्थ है कि यदि देश में उपलब्ध युवा गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और कौशल प्रशिक्षण से लैस है तो उन्हें न केवल उपयुक्त रोज़गार मिलेगा बल्कि वे देश के आर्थिक विकास में भी प्रभावी योगदान दे सकते हैं।

आगे की राह

  • जनसंख्या वृद्धि में स्थिरता सुनिश्चित करने के लिये परिवार नियोजन एक प्रभावी उपकरण है। सभी स्तरों पर सरकार- संघ, राज्य एवं स्थानीय समाजों को जागरूकता को बढ़ावा देने, महिलाओं के यौन और प्रजनन अधिकारों की वकालत करने तथा गर्भनिरोधक के उपयोग को प्रोत्साहित करने की ज़िम्मेदारी लेनी चाहिये।
  • समाज और देश के अधिकतम आर्थिक लाभ के लिये जनसंख्या वृद्धि का उपयोग कैसे किया जाए इस पर अच्छी तरह से शोध कर योजना बनाने और उसके कार्यान्वयन की आवश्यकता है।
  • स्वास्थ्य के क्षेत्र में बेहतर भविष्य के लिये गरीबी, लैंगिक समानता, आर्थिक विकास से संबंधित सतत् विकास लक्ष्यों (SDG) की प्राप्ति महत्त्वपूर्ण है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


जैव विविधता और पर्यावरण

लेमरू हाथी रिज़र्व

प्रिलिम्स के लिये

 लेमरू हाथी रिज़र्व , वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम 1972, भारत में हाथियों की संरक्षण स्थिति

मेन्स के लिये 

लेमरू हाथी रिज़र्व की अवस्थिति तथा इसका महत्त्व, रिज़र्व क्षेत्र की वजह से पड़ने वाले प्रभाव

चर्चा में क्यों?   

हाल ही में छत्तीसगढ़ सरकार ने लेमरू हाथी रिज़र्व क्षेत्र को 1,995 वर्ग किमी. से घटाकर 450 वर्ग किमी. तक रखने का प्रस्ताव दिया है।

  •  वर्ष 2007 में केंद्र सरकार ने 450 वर्ग किमी. वन्य क्षेत्र में लेमरू हाथी रिज़र्व के निर्माण की अनुमति दी तथा वर्ष 2019 में राज्य सरकार ने इस क्षेत्र को 1,995 वर्ग किमी. तक विस्तारित करने का फैसला किया।

प्रमुख बिंदु 

परिचय :

  • यह रिज़र्व छत्तीसगढ़ के कोरबा ज़िले में स्थित है।
  • रिज़र्व का लक्ष्य हाथियों को स्थायी आवास प्रदान करने के साथ-साथ  मानव-वन्यजीव संघर्ष को रोकना तथा संपत्ति के विनाश को कम करना है।
  • इससे पूर्व  अक्तूबर 2020 में राज्य सरकार ने वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 (WLPA) की धारा 36A के अंतर्गत रिज़र्व (संरक्षित क्षेत्र/ रिज़र्व) को अधिसूचित किया था।
    • धारा 36A में एक विशेष प्रावधान है जो संघ सरकार को संरक्षित क्षेत्र/ रिज़र्व के रूप में अधिसूचित की जाने वाली भूमि के केंद्र से संबंधित क्षेत्रों के मामले में अधिसूचना की प्रक्रिया में एक अधिकार देती है।
    • हाथी रिज़र्व WLPA के तहत स्वीकृत ​नहीं हैं।

रिज़र्व  क्षेत्र को कम करने का कारण:

  • रिज़र्व के अंतर्गत प्रस्तावित क्षेत्र हसदेव अरण्य जंगलों का हिस्सा है, साथ ही यह एक  अधिक विविधतापूर्ण बायोज़ोन है जो कोयले के भंडार में भी समृद्ध है।
  • इस क्षेत्र के 22 कोयला खदानों/ब्लॉकों में से 7 को पहले ही आवंटित किया जा चुका है, जबकि तीन में उत्खनन कार्य जारी है तथा अन्य चार में उत्खनन  की प्रक्रिया की दिशा में कार्यरत हैं।
  • आरक्षित क्षेत्र को विस्तारित करने में सबसे बड़ी चुनौती यह थी कि कई कोयला खदानें अनुपयोगी हो जाएंगी।

रिज़र्व का महत्त्व:

  • अकेले उत्तरी छत्तीसगढ़ 240 से अधिक हाथियों का आवास स्थल है। पिछले 20 वर्षों में राज्य में 150 से अधिक हाथियों की मौत हुई है, जिसमें 16 हाथियों की मृत्यु जून से अक्तूबर 2020 के मध्य हुई है।
  • छत्तीसगढ़ राज्य में पाए जाने वाले हाथी अपेक्षाकृत नए हैं। हाथियों ने वर्ष 1990 में अविभाजित मध्य प्रदेश में विचरण शुरू किया।
  • जबकि मध्य प्रदेश में झारखंड से आने वाले जानवरों के विचरण पर अंकुश लगाने की नीति थी। छत्तीसगढ़ के गठन के बाद औपचारिक नीति के अभाव के चलते हाथियों को राज्य के उत्तर और मध्य भागों में एक गलियारे के रूप में उपयोग करने को अनुमति प्रदान की गई।
  • चूँकि ये जानवर अपेक्षाकृत नए थे, इसलिये मानव-पशु संघर्ष तब शुरू हुआ जब हाथी भोजन की तलाश में बसे हुए क्षेत्रों में भटकने लगे।

छत्तीसगढ़ में अन्य संरक्षित क्षेत्र:

National-Park-Sanctuaries

हाथी:

  • हाथी कीस्टोन प्रजाति (keystone species) है।
  • एशियाई हाथी की तीन उप-प्रजातियाँ हैं- भारतीय, सुमात्रन और श्रीलंकाई।
  • महाद्वीप पर शेष बचे हाथियों की तुलना में भारतीय हाथियों की संख्या और रेंज व्यापक है।

भारतीय हाथियों की संरक्षण स्थिति:

हाथियों के संरक्षण के लिये भारत की पहल:

  • गज यात्रा (Gaj Yatra): यह हाथियों की रक्षा के लिये शुरू किया गया एक राष्ट्रव्यापी अभियान है जिसकी शुरुआत वर्ष 2017 में विश्व हाथी दिवस  (World Elephant Day) के अवसर पर की गई थी।
  • प्रोजेक्ट एलीफेंट (Project Elephant): यह एक केंद्र प्रायोजित योजना है जिसे वर्ष 1992 में शुरू किया गया था।
  • सीड्स बम या बॉल (Seed Bombs): हाल ही में ओडिशा के अथागढ़ वन प्रभाग ने मानव-हाथी संघर्ष को रोकने के लिये जंगली हाथियों हेतु खाद्य भंडार को समृद्ध करने हेतु विभिन्न आरक्षित वन क्षेत्रों के अंदर बीज गेंदों (या बम) का प्रयोग शुरू कर दिया है।

जानवरों के प्रवासी मार्ग का अधिकार:

  • हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने नीलगिरि हाथी कॉरिडोर (Nilgiris Elephant Corridor) पर मद्रास उच्च न्यायालय के वर्ष 2011 के एक आदेश को बरकरार रखा जो हाथियों से संबंधित 'राइट ऑफ पैसेज' (Right of Passage) और क्षेत्र में होटल/रिसॉर्ट्स को बंद करने की पुष्टि करता है।

हाथियों के संरक्षण हेतु अंतर्राष्ट्रीय पहल:

  • हाथियों की अवैध हत्या की निगरानी (Monitoring of Illegal Killing of Elephants- MIKE) हेतु कार्यक्रम: यह CITES के पक्षकारों के सम्मेलन (Conference Of Parties- COP) द्वारा अज्ञापित है। इसकी शुरुआत दक्षिण एशिया में (वर्ष 2003) निम्नलिखित उद्देश्यों के साथ की गई थी:
    • हाथियों के अवैध शिकार के स्तर और प्रवृत्ति को मापना।
    • इन प्रवृत्तियों में समय के साथ हुए परिवर्तन का निर्धारण करना।
    • इन परिवर्तनों या इनसे जुड़े कारकों को निर्धारित करना और विशेष रूप से इस बात का आकलन करना कि CITES के COP द्वारा लिये गए किसी भी निर्णय का इन प्रवृत्तियों पर क्या प्रभाव पड़ा है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


जैव विविधता और पर्यावरण

नदियों के किनारे बसे शहरों के लिये संरक्षण योजनाएँ

प्रिलिम्स के लिये

स्वच्छ गंगा राष्ट्रीय मिशन, राष्ट्रीय गंगा परिषद, नमामि गंगे कार्यक्रम

मेन्स के लिये

नदियों के किनारे बसे शहरों के लिये संरक्षण योजनाएँ

चर्चा में क्यों?

‘स्वच्छ गंगा राष्ट्रीय मिशन’ (NMCG) के एक नीति दस्तावेज़ में प्रस्ताव दिया गया है कि नदी तट पर स्थित शहरों को अपना मास्टर प्लान तैयार करते समय नदी संरक्षण योजनाओं को शामिल करना चाहिये।

  • यह प्रस्ताव वर्तमान में उन शहरों के लिये है जो गंगा नदी की मुख्य धारा पर मौजूद हैं, इसमें मुख्यतः पाँच राज्यों- उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल के शहर शामिल हैं।
  • ‘स्वच्छ गंगा राष्ट्रीय मिशन’ राष्ट्रीय गंगा परिषद का कार्यान्वयन विंग है (इसने ‘राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण’ को प्रतिस्थापित किया था)। यह अपने राज्य समकक्ष संगठनों के साथ ‘नमामि गंगे कार्यक्रम’ को लागू करता है।

Ganga-River-Map

प्रमुख बिंदु

नीतिगत दस्तावेज़ का प्रस्ताव

  • इस दस्तावेज़ में नदी-संवेदनशील योजनाओं की आवश्यकता पर ज़ोर दिया गया है, जो कि व्यावहारिक होनी चाहिये (जैसा कि राष्ट्रीय जल नीति में परिकल्पित है)।
  • अतिक्रमण को हटाने के लिये एक उचित पुनर्वास रणनीति के साथ वैकल्पिक आजीविका विकल्पों पर ज़ोर देते हुए व्यवस्थित पुनर्वास योजना विकसित की जानी चाहिये।
  • सहानुभूतिपूर्ण और मानवीय समाधान विकसित करने हेतु नीति-निर्माताओं को हितधारकों (अतिक्रमणकर्त्ता और भूमि मालिकों) को शामिल करने का हरसंभव प्रयास करना चाहिये।
  • योजना को भूमि के स्वामित्व संबंधी पहलुओं पर भी स्पष्टता प्रदान करनी चाहिये। योजना के क्रियान्वयन के दौरान कानूनी जटिलताओं से बचने के लिये इन क्षेत्रों में भूमि के स्वामित्व का पता लगाना महत्त्वपूर्ण है।
  • नदी और नदी संसाधनों के संरक्षण के प्रमुख पहलुओं के रूप में नदी के आसपास के क्षेत्र में हरित बफर ज़ोन के निर्माण, कंक्रीट संरचनाओं को हटाना और ग्रीन अवसंरचना’ को नियोजित करना शामिल किया जा सकता है।

महत्त्व

  • नदी प्रबंधन के लिये अत्याधुनिक तकनीकों के उपयोग को सुविधाजनक बनाने हेतु मास्टर प्लान के तहत तकनीकी पारिस्थितिक तंत्र विकसित किया जा सकता है।
    • इनमें पानी की गुणवत्ता की सैटेलाइट-आधारित निगरानी; नदी के किनारे जैव विविधता मानचित्रण के लिये ‘कृत्रिम बुद्धिमत्ता’ का उपयोग; नदी-स्वास्थ्य निगरानी के लिये ‘बिग डेटा’ का उपयोग; बाढ़ के मैदानों की मैपिंग हेतु ‘मानव रहित विमान’ (UAV) आदि शामिल हो सकते हैं।
  • आने वाले वर्षों में प्रौद्योगिकियों की प्रकृति और प्रकार के अधिक परिष्कृत और प्रभावी होने की उम्मीद है। इस प्रकार शहर इन्हें पूर्णतः अपनाने के लिये तैयार होंगे। 

राष्ट्रीय जल नीति, 2012 की मुख्य विशेषताएँ:

  • एकीकृत जल संसाधन प्रबंधन: इसने एक एकीकृत जल संसाधन प्रबंधन दृष्टिकोण की अवधारणा को निर्धारित किया जिसने जल संसाधनों की योजना, विकास और प्रबंधन के लिये नदी बेसिन/उप-बेसिन को एक इकाई के रूप में लिया।
    • एकीकृत जल संसाधन प्रबंधन (IWRM) एक ऐसी प्रक्रिया है जो महत्त्वपूर्ण पारिस्थितिक तंत्र की स्थिरता से समझौता किये बिना एक समान तरीके से अधिकतम आर्थिक और सामाजिक कल्याण के लिये जल, भूमि तथा संबंधित संसाधनों के समन्वित विकास एवं प्रबंधन को बढ़ावा देती है।
  • न्यूनतम जल प्रवाह: पारिस्थितिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये नदी के एक हिस्से के न्यूनतम प्रवाह को बनाए रखना।
    • वर्ष 2018 में इस तरह के दृष्टिकोण ने सरकार को पूरे वर्ष गंगा में न्यूनतम जल स्तर बनाए रखने की आवश्यकता का नेतृत्व किया।
    • नागरिकों को आवश्यक स्वास्थ्य और स्वच्छता बनाए रखने के लिये न्यूनतम मात्रा में पीने योग्य पानी उपलब्ध कराने पर भी ज़ोर दिया गया।
  • अंतर बेसिन स्थानांतरण: बुनियादी मानवीय ज़रूरतों को पूरा करने और समानता तथा सामाजिक न्याय प्राप्त करने के लिये पर्यावरणीय, आर्थिक एवं सामाजिक प्रभावों का मूल्यांकन करने के बाद प्रत्येक अंतर बेसिन स्थानांतरण मामले पर विचार करने की आवश्यकता है।
  • अन्य कारणों जैसे- हिमालय में स्प्रिंग सेट (spring set) का कम होना, पानी की सब्सिडी का बजट और पुनर्गठन, सिंचाई आदि में पानी के उपयोग को प्राथमिकता देने की मांग की।

स्रोत: द हिंदू


भारतीय राजनीति

अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का चुनाव

प्रिलिम्स के लिये:

अध्यक्ष और उपाध्यक्ष से संबंधित विभिन्न संवैधानिक प्रावधान

मेन्स के लिये:

विधानसभा एवं लोकसभा अध्यक्ष की भूमिका और शक्तियाँ

चर्चा में क्यों?

महाराष्ट्र में विधानसभा अध्यक्ष (स्पीकर) का पद फरवरी, 2021 से खाली है, जबकि लोकसभा और कई राज्य विधानसभाओं में उपाध्यक्ष (डिप्टी स्पीकर) नहीं है।

  • संविधान में प्रावधान है कि अध्यक्ष का पद कभी भी खाली नहीं होना चाहिये।

प्रमुख बिंदु:

अध्यक्ष का चुनाव:

  • योग्यताएँ: 
    • भारतीय संविधान के अनुसार, अध्यक्ष को सदन का सदस्य होना आवश्यक है।
    • हालाँकि अध्यक्ष चुने जाने के लिये कोई विशिष्ट योग्यता निर्धारित नहीं की गई है, संविधान और देश के कानूनों की समझ को अध्यक्ष पद धारक हेतु एक प्रमुख गुण माना जाता है।
    • आमतौर पर सत्ताधारी दल के सदस्य को अध्यक्ष चुना जाता है। यह प्रक्रिया उन वर्षों में विकसित हुई है जहाँ सत्तारूढ़ दल सदन में अन्य दलों और समूहों के नेताओं के साथ अनौपचारिक परामर्श के बाद अपने उम्मीदवार को नामित करता है।
    • यह परंपरा सुनिश्चित करती है कि एक बार निर्वाचित होने के बाद अध्यक्ष को सदन के सभी वर्गों का सम्मान प्राप्त हो।
  • मतदान: अध्यक्ष (उपसभापति के साथ) को लोकसभा सदस्यों में से सदन में उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों के साधारण बहुमत से चुना जाता है।
    • एक बार उम्मीदवार पर निर्णय हो जाने के बाद उसके नाम का प्रस्ताव आमतौर पर प्रधानमंत्री या संसदीय कार्य मंत्री द्वारा किया जाता है।
  • अध्यक्ष का कार्यकाल: अध्यक्ष अपने चुनाव की तिथि से अगली लोकसभा की पहली बैठक (5 वर्ष के लिये) के ठीक पहले तक पद धारण करता है।
    • एक बार निर्वाचित अध्यक्ष फिर से चुनाव के लिये पात्र है।
    • जब भी लोकसभा भंग होती है, अध्यक्ष अपना पद खाली नहीं करता है और नव-निर्वाचित लोकसभा की बैठक तक अपने पद पर बना रहता है।
  • अध्यक्ष की भूमिका और शक्तियाँ:
    • व्याख्या: वह भारत के संविधान के प्रावधानों, लोकसभा की प्रक्रिया एवं कार्य संचालन के नियमों और सदन के भीतर संसदीय मिसालों का अंतिम व्याख्याकार है।
    • दोनों सदनों की संयुक्त बैठक: वह संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक की अध्यक्षता करता है।
      • किसी विधेयक पर दोनों सदनों के बीच गतिरोध को दूर करने के लिये राष्ट्रपति द्वारा ऐसी बैठक बुलाई जाती है।
    • बैठक का स्थगन: वह सदन को स्थगित कर सकता है या सदन की कुल संख्या का दसवाँ हिस्सा (जिसे गणपूर्ति कहा जाता है) की अनुपस्थिति में बैठक को स्थगित कर सकता है।
    • निर्णायक मत: स्पीकर पहली बार में वोट नहीं देता लेकिन बराबरी की स्थिति में; जब किसी प्रश्न पर सदन समान रूप से विभाजित हो जाता है, तो अध्यक्ष को मत देने का अधिकार होता है।
      • ऐसे वोट को निर्णायक मत कहा जाता है और इसका उद्देश्य गतिरोध का समाधान करना है।
    • धन विधेयक: वह निर्णय लेता है कि कोई विधेयक धन विधेयक है या नहीं और इस प्रश्न पर उसका निर्णय अंतिम होता है।
    • निरर्ह सदस्य: दसवीं अनुसूची के प्रावधानों के तहत दल-बदल के आधार पर उत्पन्न होने वाले लोकसभा के किसी सदस्य की अयोग्यता के प्रश्नों का निर्णय स्पीकर ही करता है।
      • भारतीय संविधान के 52वें संशोधन में यह शक्ति स्पीकर में निहित है।
      • वर्ष 1992 में सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि इस संबंध में अध्यक्ष का निर्णय न्यायिक समीक्षा के अधीन है।
    • भारतीय संसदीय समूह की अध्यक्षता: वह भारतीय संसदीय समूह (IPG) के पदेन अध्यक्ष के रूप में कार्य करता है जो भारत की संसद और दुनिया की विभिन्न संसदों के बीच एक कड़ी है।
      • वह देश में विधायी निकायों के पीठासीन अधिकारियों के सम्मेलन के पदेन अध्यक्ष के रूप में भी कार्य करता है।
    • समितियों का गठन: सभा की समितियाँ अध्यक्ष द्वारा गठित की जाती हैं और अध्यक्ष के समग्र निर्देशन में कार्य करती हैं।
      • सभी संसदीय समितियों के अध्यक्ष इसके द्वारा ही मनोनीत किये जाते हैं।
      • इसकी अध्यक्षता में कार्य सलाहकार समिति (Business Advisory Committee), सामान्य प्रयोजन समिति (General Purposes Committee) और नियम समिति (Rules Committee) जैसी समितियाँ सीधे काम करती हैं।
    • अध्यक्ष के विशेषाधिकार: अध्यक्ष सदन, उसकी समितियों और सदस्यों के अधिकारों तथा विशेषाधिकारों का संरक्षक होता है।
  • स्पीकर को पद से हटाना: निम्नलिखित शर्तों के अंतर्गत स्पीकर को कार्यकाल से पहले अपने पद को खाली करना पड़ सकता है: 
    • यदि वह लोकसभा का सदस्य नहीं रहता है।
    • यदि वह उपाध्यक्ष को पत्र लिखकर इस्तीफा दे देता है।
    • यदि उसे लोकसभा के सभी सदस्यों के बहुमत से पारित प्रस्ताव द्वारा हटा दिया जाता है।
      • ऐसा प्रस्ताव अध्यक्ष को 14 दिन की अग्रिम सूचना देने के बाद ही पेश किया जा सकता है।
      • जब अध्यक्ष को हटाने का प्रस्ताव सदन के विचाराधीन हो, तो वह बैठक में उपस्थित हो सकता है लेकिन अध्यक्षता नहीं कर सकता।

लोकसभा का उपाध्यक्ष:

  • निर्वाचन:
    • लोकसभा अध्यक्ष का चुनाव होने के ठीक बाद उपाध्यक्ष (Deputy Speaker) का चुनाव भी लोकसभा द्वारा अपने सदस्यों में से किया जाता है।
    • उपाध्यक्ष के चुनाव की तिथि अध्यक्ष द्वारा (अध्यक्ष के चुनाव की तिथि राष्ट्रपति द्वारा) निर्धारित की जाती है।
  • कार्यकाल की अवधि और पदमुक्ति:
    • अध्यक्ष की तरह ही उपाध्यक्ष भी आमतौर पर लोकसभा के कार्यकाल (5 वर्ष) तक अपने पद पर बना रहता है।
    • उपाध्यक्ष निम्नलिखित तीन मामलों में अपना पद पहले खाली कर सकता है:
      • यदि वह लोकसभा का सदस्य नहीं रहता है।
      • यदि वह अध्यक्ष को पत्र लिखकर इस्तीफा दे देता है।
      • यदि उसे लोकसभा के सभी तत्कालीन सदस्यों के बहुमत से पारित प्रस्ताव द्वारा हटा दिया जाता है।
        • ऐसा प्रस्ताव उपाध्यक्ष को 14 दिन की अग्रिम सूचना देने के बाद ही पेश किया जा सकता है।
  • ज़िम्मेदारियाँ और शक्तियाँ:
    • उपाध्यक्ष, अध्यक्ष का पद रिक्त होने पर उसके कर्तव्यों का पालन करता है।
      • सदन की बैठक से अध्यक्ष के अनुपस्थित रहने की स्थिति में उपाध्यक्ष उसके रूप में कार्य करता है।
      • यदि अध्यक्ष ऐसी बैठक से अनुपस्थित रहता है तो वह संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक की भी अध्यक्षता करता है।
    • उपाध्यक्ष के पास एक विशेष विशेषाधिकार होता है अर्थात् जब भी उसे संसदीय समिति के सदस्य के रूप में नियुक्त किया जाता है तो वह स्वतः ही उसका अध्यक्ष बन जाता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


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