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डेली न्यूज़

  • 11 Dec, 2018
  • 54 min read
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

भारतीय वैज्ञानिकों ने विकसित की सौर चक्र की भविष्यवाणी की विधि

चर्चा में क्यों?


हाल ही में नेचर कम्युनिकेशंस में प्रकाशित एक शोधपत्र के अनुसार, IISER कोलकाता के शोधकर्त्ताओं की एक टीम ने पिछले 100 वर्षों से प्राप्त आँकड़ों का उपयोग करके अगले सौर चक्र (लगभग 2020 से 2031 तक) की गतिविधि की तीव्रता की भविष्यवाणी की है।

प्रमुख बिंदु

  • खगोलविदों ने लगभग 400 वर्षों तक सूर्य की सतह पर सौर कलंक (Sunspots) का अध्ययन किया है। वर्ष 1755 में अवलोकन शुरू होने के बाद से हम वर्तमान में 24वें सौर कलंक चक्र में हैं।
  • ज्ञातव्य है कि सौर कलंक चक्रीय प्रतिरूप का पालन करते हैं, पहले इनकी संख्या में वृद्धि होती है और लगभग 11 वर्षों में ये गायब हो जाते हैं, इसे सौर कलंक चक्र या सौर्यिक गतिविधि चक्र के रूप में जाना जाता है।
  • अन्य गणनाओं के विपरीत शोधकर्त्ता पाते हैं कि अगले चक्र के दौरान सौर्यिक गतिविधि कम नहीं होगी, बल्कि यह वर्तमान चक्र के समान होगी, या शायद पहले से भी मज़बूत हो। वे उम्मीद करते हैं कि यह चक्र 2024 के आस-पास चरम पर होगा।
    शोधकर्त्ता चुंबकीय क्षेत्र विकास क्रम मॉडल और अवलोकन संबंधी आँकड़ों का उपयोग कर सूर्य के व्यवहार का अनुकरण करते हैं। वे सौर गतिविधि का अनुकरण करते हैं और एक चक्र से प्राप्त आँकड़े का उपयोग करते हुए लगभग दस वर्ष पूर्व के अगले चक्र में सूर्य के व्यवहार की भविष्यवाणी करते हैं।
  • वर्ष 1913 से लेकर अब तक दर्ज आँकड़ों के साथ अपने अनुकरण की तुलना करने पर उन्हें ज़्यादातर मामलों में महत्त्वपूर्ण समानता दिखती है। उसी विधि का उपयोग करते हुए शोधकर्त्ता भविष्य में लगभग दस वर्षों के अगले चक्र की सौर गतिविधि की भविष्यवाणी करते हैं।
  • इस शोधपत्र के लेखक दिव्येंदु नंदी के अनुसार, "हमारे काम से पता चला है कि हम अगले सौर कलंक चक्र (यानी अगले 10 वर्षों) से परे भविष्यवाणी नहीं कर सकते हैं क्योंकि सूर्य की गतिशील 'स्मृति' (यानी, सूर्य की पिछली स्थितियों के समय की अवधि, जो कि भविष्य की स्थितियों को प्रभावित करती है) केवल एक सौर्य चक्र तक सीमित है और इससे परे नहीं है।
  • इस शोधपत्र का लेखन डॉ नंदी जो कि सेंटर फॉर एक्सलेंस इन स्पेस साइंसेज इंडिया (Centre for Excellence in Space Sciences India) और डिपार्टमेंट ऑफ़ फिज़िकल साइंस (Department of Physical Sciences) IISER, कोलकाता से जुड़े हैं, ने शोध छात्र प्रंतिका भौमिक के साथ मिलकर किया।
  • विशेषज्ञों के अनुसार, "इस प्रकार का कार्य सूर्य की दीर्घकालिक भिन्नताओं और हमारे जलवायु पर इसके प्रभाव को समझने के लिये बहुत महत्त्वपूर्ण होगा जो आदित्य मिशन के उद्देश्यों में से एक है। यह पूर्वानुमान आदित्य मिशन की वैज्ञानिक परिचालन योजना के लिये भी उपयोगी होगा।"
  • सौर कलंक को समझने का एक महत्त्वपूर्ण कारण यह है कि वे अंतरिक्ष के मौसम को प्रभावित करते हैं। यह सूर्य के आस-पास के क्षेत्र में विकिरण, कण प्रवाह और चुंबकीय प्रवाह के प्रभाव को संदर्भित करता है।
  • चरम घटनाओं के दौरान, अंतरिक्ष का मौसम इलेक्ट्रॉनिक्स संचालित उपग्रह नियंत्रण, संचार प्रणाली, ध्रुवीय मार्गों पर हवाई यातायात और यहाँ तक कि बिजली ग्रिड को भी प्रभावित कर सकता है। अन्य दिलचस्प कारण यह भी है कि यह माना जाता है कि सौर कलंक पृथ्वी की जलवायु से संबंधित हैं।
  • इस क्षेत्र में बहुत से शोध इस बात का अनुमान लगाने पर केंद्रित हैं कि अगला सौर कलंक चक्र किस प्रकार आकार लेगा- क्या सूर्य बेहद सक्रिय होगा और कई सौर धब्बे उत्पन्न करेगा या नहीं।
  • भविष्यवाणी की गई है कि अगला चक्र (चक्र 25) कम सौर कलंक की गतिविधि दिखाएगा। यहाँ तक अनुमान लगाया गया है कि सूर्य लंबे समय तक कम गतिविधि की अवधि की ओर बढ़ रहा है - सौर भौतिक विज्ञानी इसका वर्णन 'मौंडर लाइक मिनिमम' के रूप में करते हैं।
  • मौंडर मिनिमम वर्ष 1645 से 1715 तक की अवधि को संदर्भित करता है जहाँ पर्यवेक्षकों ने न्यूनतम सौर कलंक गतिविधि की सूचना दी, यहाँ 28 वर्षों की अवधि में सौर कलंक की संख्या लगभग 1,000 गुना कम हो गई।
  • इस दौरान और कम गतिविधि की ऐसी अन्य अवधि के दौरान यूरोप और उत्तरी अमेरिका के कुछ हिस्सों में औसत से कम तापमान का अनुभव हुआ। जबकि मौंडर मिनिमम और पृथ्वी पर जलवायु के बीच संबंध अभी भी बहस का मुद्दा है, यह सौर कलंक के अध्ययन का एक और कारण प्रदान करता है।
  • शोधकर्त्ताओं ने लिखा, "सौर कलंक चक्र-25 सौर गतिविधि की पर्याप्त रूप से कमज़ोर प्रवृत्ति को उलट सकता है, जिसके अनुसार, आसन्न मौंडर की तरह और अधिक तथा ठंडे वैश्विक जलवायु की अटकलें लगाई गई हैं।"

स्रोत : द हिंदू


भारतीय अर्थव्यवस्था

विदेशों से धन प्राप्ति के मामले में भारत फिर टॉप पर

चर्चा में क्यों?

  • विश्व बैंक की ‘माइग्रेशन एंड रेमिटेंस’ (Migration & Remittance) रिपोर्ट
  • इस हालिया रिपोर्ट के मुताबिक, धन प्रेषण (Remittance) के मामले में भारतीय सबसे आगे

क्या है इस रिपोर्ट में? (What is in the Report?)

World Bank Group.


विश्व बैंक ने इस रिपोर्ट में अनुमान लगाया है कि विकासशील देशों को आधिकारिक रूप से भेजा गया धन 2018 में 10.8 प्रतिशत बढ़कर 528 अरब डॉलर के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया। पिछले साल इसमें 7.8 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई थी।दुनियाभर के देशों में भेजा जाने वाला धन इस दौरान 10.3 प्रतिशत बढ़कर 689 अरब डॉलर होने की उम्मीद है।

भारत रहा फिर सबसे आगे

  • इस रिपोर्ट में बताया गया है कि विदेश से पैसा भेजने के मामले में भारतीयों ने एक बार फिर बाज़ी मारी है…यानी इस क्रम को उन्होंने 2018 में भी बरकरार रखा है।
  • पिछले तीन वर्षों में विदेश से भारत को भेजे गए धन में खासी बढ़ोतरी हुई है।
  • 2016 में यह 62.7 अरब डॉलर था और 2017 में बढ़कर 65.3 अरब डॉलर हो गया।
  • ‘माइग्रेशन एंड रेमिटेंस’ रिपोर्ट के अनुसार, प्रवासी भारतीयों ने 2018 में 80 अरब डॉलर देश में भेजे।
  • 2017 में भारत की कुल GDP में रेमिटेंस का हिस्सा 2.7 प्रतिशत था
  • इसके बाद चीन का नंबर है, जिसके नागरिकों ने 67 अरब डॉलर भेजे।
  • इसके बाद 34 अरब डॉलर के साथ फिलिपींस तथा मेक्सिको और 26 अरब डॉलर के साथ मिस्र का स्थान रहा।

क्या है धन-प्रेषण? ( What is Remittance?)


जब कोई प्रवासी अपने मूल देश में बैंक, डाकघर या ऑनलाइन ट्रांसफर के ज़रिये पैसा भेजता है तो उसे Remittance (रेमिटेंस) कहते हैं भारत में रेमिटेंस के मामले में खाड़ी देशों में बसे भारतीयों का योगदान अधिक रहता है। इसके अलावा अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया और कनाडा जैसे विकसित देशों में काम करने वाले NRIs द्वारा भारत में अपने परिवारों को भेजा गया पैसा भी रेमिटेंस की श्रेणी में आता है।

भारत के पड़ोसी देशों- बांग्लादेश और पाकिस्तान में उनके प्रवासी नागरिकों द्वारा भेजे जाने वाले धन में क्रमश: 17.9 और 6.2 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई।

  • विकसित देशों; खासकर अमेरिका में आर्थिक परिस्थितियों में मजबूती और तेल की कीमतों में वृद्धि का संयुक्त अरब अमीरात जैसे देशों से निकासी पर सकारात्मक प्रभाव से धन प्रेषण में वृद्धि हुई। संयुक्त अरब अमीरात से निकासी में 2018 की पहली छमाही में 13 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई।

अर्थव्यवस्था के लिये लाभकारी (Good for Economy)


विभिन्न देशों के लिये विदेशी मुद्रा अर्जित करने का बेहद अहम ज़रिया होता है रेमिटेंस, खासकर भारत जैसे विकासोन्मुख देशों की अर्थव्यवस्था में इसका महत्त्वपूर्ण योगदान माना जाता है इसके अलावा छोटे और विकासशील देशों की अर्थव्यवस्था को रफ्तार देने में रेमिटेंस की भूमिका किसी से छिपी नहीं है। वहीं, कई ऐसे देश हैं जिनकी GDP में रेमिटेंस का हिस्सा अन्य क्षेत्रों से होने वाली आय से अधिक होता है

GDP

प्रवासी भारतीय भेजते हैं धन (Remittances by Indians Settled Abroad)


देश की अर्थव्यवस्था में बहुमूल्य विदेशी मुद्रा का योगदान प्रवासी भारतीय (NRIs) बरसों से करते रहे हैं। आज भारत दुनिया की सबसे तेज़ी से आगे बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था है और यही कारण है कि अनुकूल आर्थिक परिस्थितियों की वज़ह से प्रवासी भारतीय अपने देश को रेमिटेंस भेजने के मामले में अन्य देशों के प्रवासियों से कहीं आगे हैं।

इन प्रवासी भारतीयों के महत्त्व को देखते हुए भारत सरकार ने 2004 में प्रवासी भारतीय मामलों के मंत्रालय का गठन किया। इसके अलावा भारत सरकार प्रत्येक वर्ष प्रवासी भारतीय दिवस का आयोजन भी करती है। पहला प्रवासी भारतीय दिवस 2003 में आयोजित किया गया था इसके अलावा प्रतिवर्ष प्रवासी भारतीय सम्मान पुरस्कार भी दिये जाते हैं। इसी तरह इस वर्ष के प्रारंभ में नई दिल्ली में प्रथम प्रवासी भारतीय संसद का आयोजन भी किया गया था।


स्रोत: बिज़नेस टुडे तथा PIB


भारतीय अर्थव्यवस्था

नई कृषि नीति में भारतीय चाय की उपेक्षा

चर्चा में क्यों?


चाय उद्योग पिछले कुछ वर्षों से बढ़ती कीमतों के कारण दबाव का सामना कर रहा है। देश में चाय उत्पादन में तेज़ी से वृद्धि के साथ-साथ इसके उपभोग में भी वद्धि हुई है, अतः इसका असर कीमतों पर पड़ा है। अतः यह क्षेत्र नई कृषि निर्यात नीति में कुछ राहत पाने की उम्मीद कर रहा है।

महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • मुख्य रूप से बढ़ती मज़दूरी के कारण चाय बागान क्षेत्र की निश्चित लागत में लगभग 45 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, जबकि पिछले तीन वर्षों में मूल्य प्राप्ति/अर्जन में केवल 17 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
  • चाय का निर्यात पिछले कुछ वर्षो में भी स्थिर रहा है। भारत ने वर्ष 2017 में 240 मिलियन किलोग्राम (mkg) चाय का निर्यात किया।
  • भारत से वस्तु निर्यात योजना (Merchandise Exports From India Scheme) के तहत निर्यात को बढ़ावा देने के लिये भारतीय चाय संघ (ITA) मौजूदा 5 प्रतिशत की दर को बढ़ाकर लगभग 10 प्रतिशत की उच्च दर करने की मांग कर रहा है।

इंडियन टी एसोसिएशन (ITA)


1881 में स्थापित इंडियन टी एसोसिएशन (ITA) भारत में चाय उत्पादकों का प्रमुख और सबसे पुराना एसोसिएशन है।

ITA, प्लांटेशन एसोसिएशन की सलाहकार समिति (CCPA) के सचिवालय के रूप में कार्य करता है जो भारत में चाय उत्पादक संघों की शीर्ष निकाय है।

  • केंद्रीय मंत्रिमंडल ने हाल ही में नई कृषि निर्यात नीति को मंज़ूरी दी, जिसका लक्ष्य बुनियादी ढाँचे को बढ़ावा देना और विभिन्न वस्तुओं पर निर्यात प्रतिबंधों को हटाकर 2022 तक कृषि निर्यात को दोगुना करना है।
  • उपर्युक्त नीति उच्च मूल्य और मूल्य वर्द्धित कृषि निर्यात को बढ़ावा देकर देश से निर्यात किये जाने वाले मदों और गंतव्यों तक इनकी उपलब्धता सुनिश्चित करने की मांग करती है ताकि चीन, अमेरिका, ईरान और इराक में लक्षित बाज़ारों तक अपने निर्यात को बढ़ा सके।
  • ऑर्गेनिक चाय, ग्रीन टी और परंपरागत रूप से प्रचलित चाय की आमतौर पर 'मूल्य वृद्धि' की जानी चाहिये।
  • परंपरागत रूप से प्रचलित चाय के उत्पादन की लागत, CTC की तुलना से लगभग प्रति ₹ 20 किलो अधिक है।
  • इस उद्योग से संबंधित अध्ययन के मुताबिक, उत्पादक पूंजीगत व्यय, राजस्व की अनुमानित हानि और मूल्य प्राप्ति की अनिश्चितता के कारण CTC को परंपरागत रूप में प्रचलित चाय से परिवर्तित करने के इच्छुक नहीं हैं।


स्रोत: बिज़नेस लाइन (द हिंदू )


भारतीय अर्थव्यवस्था

शेयर स्वैप

चर्चा में क्यों?


हाल ही में हिंदुस्तान यूनिलीवर लिमिटेड (HUL) ने ग्लैक्सो स्मिथ क्लाइन कंज्यूमर (GSK Consumer) के साथ विलय की घोषणा की। इस सौदे को शेयर स्वैप (share swap) माना गया। इसके माध्यम से GSK कंज्यूमर के शेयरधारक एक निर्धारित तिथि तक HUL के 4.39 शेयरों से अपने प्रत्येक शेयर का आदान-प्रदान करने के योग्य होंगे।

शेयर स्वैप (share swap) क्या है?

  • जब कोई कंपनी लक्षित कंपनी के शेयरधारकों को अपने शेयर जारी करके अधिग्रहण के लिये उनका भुगतान करती है, तो इसे शेयर स्वैप के रूप में जाना जाता है। सरल शब्दों में कहें तो विलय या अधिग्रहण के सौदों द्वारा किसी कंपनी को खरीदने के लिये जब शेयरों को 'करेंसी' की तरह इस्तेमाल किया जाता है तो इसे शेयर स्वैप कहते हैं।
  • शेयर स्वैप में नकदी में भुगतान की आवश्यकता नहीं होती है। अगर शेयर स्वैप डील यानी शेयरों की अदला-बदली के ज़रिये एक कंपनी दूसरी कंपनी को खरीदना चाहती है तो पहली कंपनी दूसरी कंपनी के शेयरधारकों को अपने कुछ शेयर देती है और ये शेयर दूसरी कंपनी के प्रत्येक शेयर के बदले में दिये जाते हैं।
  • सौदा होने के बाद दूसरी कंपनी के शेयरों का कोर्इ मतलब नहीं रह जाता है, यानी इनका अस्तित्व समाप्त हो जाता है।
  • लक्षित कंपनी में मौजूदा होल्डिंग्स के बदले शेयरों की संख्या जिसे स्वैप अनुपात कहा जाता है, को राजस्व और मुनाफे के साथ-साथ बाज़ार मूल्य जैसे मापकों देखने के बाद लक्षित कंपनी का मूल्यांकन किया जाता है।

शेयर स्वैप के लाभ

  • चूँकि लक्षित कंपनी के शेयरधारक मर्ज की गई इकाई के शेयरधारक भी होंगे, विलय से पूर्व अपेक्षित तालमेल का जोखिम और लाभ दोनों पक्षों द्वारा साझा किया जाएगा।
  • नकदी सौदे में यदि अधिग्रहणकर्त्ता ने प्रीमियम का भुगतान किया है और यह कोई भौतिक सहयोग नहीं है, तो ऐसे में केवल अधिग्रहण करने वाली कंपनी के शेयरधारकों की संख्या में गिरावट आती है।
  • शेयर स्वैप में उधार लेने की लागत को बचाने हेतु अधिग्रहणकर्त्ता के लिये कोई नकद निकासी शामिल नहीं है लेकिन समृद्ध कंपनियाँ व्यवसाय में या अन्य खरीद के लिये निवेश के लिये अपनी नकदी का उपयोग कर सकती हैं।
  • वहीं दूसरी ओर नए शेयर जारी करने से प्रमोटर होल्डिंग में कमी के साथ अधिग्रहणकर्त्ता/कंपनी के शेयरधारकों की कमाई में कमी आ सकती है। हालाँकि, अगर अगले कुछ वर्षों में विलय की संभावना हो तो अधिग्रहण करने वाली कंपनी कम करों के अधिरोपण का लाभ उठा सकती।
  • यह लाभ तब और बढ़ जाता है जब अधिग्रहण मूल्य अधिग्रहीत कंपनी की परिसंपत्तियों और देनदारियों के मूल्य से अधिक हो।

स्रोत : बिज़नेस लाइन ( द हिंदू)


जैव विविधता और पर्यावरण

बायो-प्लास्टिक और पर्यावरण

चर्चा में क्यों


हाल ही में यूनिवर्सिटी ऑफ बॉन द्वारा किये गए एक अध्ययन में यह बात खुलकर सामने आई है कि बायो-प्लास्टिक के उपयोग का सकारात्मक प्रभाव उम्मीद से कम ही रह सकता है। अध्ययन में यह भी पाया गया है कि एकल-उपयोग प्लास्टिक की जगह बायोप्लास्टिक को व्यवहार में लाने में पर्याप्त समय लगेगा।

क्या है बायोप्लास्टिक?

  • बायोप्लास्टिक मक्का, गेहूँ या गन्ने के पौधों या पेट्रोलियम की बजाय अन्य जैविक सामग्रियों से बने प्लास्टिक को संदर्भित करता है। बायो-प्लास्टिक बायोडिग्रेडेबल और कंपोस्टेबल प्लास्टिक सामग्री है।
  • इसे मकई और गन्ना के पौधों से सुगर निकालकर तथा उसे पॉलिलैक्टिक एसिड (PLA) में परिवर्तित करके प्राप्त किया जा सकता है। इसे सूक्ष्मजीवों के पॉलीहाइड्रोक्सीएल्केनोएट्स (PHA) से भी बनाया जा सकता है।
  • PLA प्लास्टिक का आमतौर पर खाद्य पदार्थों की पैकेजिंग में उपयोग किया जाता है, जबकि PHA का अक्सर चिकित्सा उपकरणों जैसे-टाँके और कार्डियोवैस्कुलर पैच (ह्रदय संबंधी सर्जरी) में प्रयोग किया जाता है।

यह एकल-उपयोग प्लास्टिक से बेहतर कैसे?

  • बायो-प्लास्टिक या पौधे पर आधारित प्लास्टिक को पेट्रोलियम आधारित प्लास्टिक के विकल्प स्वरूप जलवायु के अनुकूल रूप में प्रचारित किया जाता है।
  • प्लास्टिक आमतौर पर पेट्रोलियम से बने होते हैं। जीवाश्म ईंधन की कमी और जलवायु परिवर्तन जैसी समस्याओं पर उनका प्रभाव पड़ता है।
  • अनुमान है कि 2050 तक प्लास्टिक वैश्विक CO2 उत्सर्जन के 15% उत्सर्जन के लिये ज़िम्मेदार होगा।
  • पेट्रोलियम आधारित प्लास्टिक में कार्बन का हिस्सा ग्लोबल वार्मिंग में योगदान देता है। दूसरी तरफ, बायो-प्लास्टिक्स जलवायु के अनुकूल हैं। अर्थात् ऐसा माना जाता है कि बायो-प्लास्टिक कार्बन उत्सर्जन में भागीदार नहीं होता है।

बायो-प्लास्टिक के प्रभाव

  • क्रॉपलैंड का विस्तार: बायोप्लास्टिक के उपयोग में वृद्धि वैश्विक स्तर पर कृषि उपयोग हेतु भूमि के विस्तार को बढ़ावा दे सकती है, जो ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को और बढ़ाएगा।
  • वनों की कटाई: बड़ी मात्रा में बायो-प्लास्टिक का उत्पादन विश्व स्तर पर भूमि उपयोग को बदल सकता है। इससे वन क्षेत्रों की भूमि कृषि योग्य भूमि में बदल सकती है। वन मक्के या गन्ने के मुकाबले अधिक कार्बन डाइऑक्साइड अवशोषित करते हैं।
    खाद्यान्न की कमी: मकई जैसे खाद्यान्नों का उपयोग भोजन की बजाय प्लास्टिक के उत्पादन के लिये करना खाद्यान्न की कमी का कारण बन सकता है।
  • औद्योगिक खाद की आवश्यकता: बायोप्लास्टिक को तोड़ने हेतु इसे उच्च तापमान तक गर्म करने की आवश्यकता होती है। तीव्र ऊष्मा के बिना बायो-प्लास्टिक से लैंडफिल या कंपोस्ट का क्षरण संभव नहीं होगा। यदि इसे समुद्री वातावरण में निस्सारित करते हैं तो यह पेट्रोलियम आधारित प्लास्टिक के समान ही नुकसानदेह होगा।

स्रोत- इंडियन एक्सप्रेस


जैव विविधता और पर्यावरण

यमुना नदी में प्रदूषण पर निगरानी समिति की रिपोर्ट

चर्चा में क्यों?


यमुना नदी की सफाई की देखरेख के लिये नियुक्त एक निगरानी समिति की रिपोर्ट के अनुसार, यमुना नदी का एक छोटा सा हिस्सा ही इस नदी के अधिकांश प्रदूषण लिये ज़िम्मेदार है।

प्रमुख बिंदु

  • उत्तराखंड के यमुनोत्री से प्रयाग तक यमुना नदी की कुल लंबाई 1370 किमी. है। दिल्ली में यह नदी केवल 54 किमी. के क्षेत्र (पल्ला से बदरपुर के बीच) से होकर गुज़रती है।
  • निगरानी समिति की रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली के वजीराबाद से ओखला तक यमुना नदी का 22 किमी. का हिस्सा (नदी की कुल लंबाई का 2% से भी कम) सबसे ज़्यादा प्रदूषित है और नदी के कुल प्रदूषण में लगभग 76 प्रतिशत योगदान इस क्षेत्र का है।
  • वजीराबाद से ओखला के बीच ऐसे कई स्थान हैं जहाँ नदी 9 माह तक सूखी रहती है।
  • जब तक नदी में न्यूनतम प्रवाह सुनिश्चित नहीं किया जाता तब तक इस नदी का पुनरुद्धार संभव नहीं है।
  • समिति ने पल्ला और वजीराबाद में यमुना के पानी की गुणवत्ता के परीक्षण के लिये ऑनलाइन प्रणाली की व्यवस्था करने हेतु DPCC (Delhi Pollution Control Committee) और CPCB (Central Pollution Control Board) के साथ मिलकर संयुक्त रूप से एक तंत्र स्थापित करने की सिफारिश की है।

प्रदूषण का कारण

  • नदी के इस क्षेत्र में प्रदूषण का प्रमुख कारण नदी में गैर-शोधित औद्योगिक और घरेलू अपशिष्टों का निपटान है।
  • समिति की रिपोर्ट के अनुसार, राज्य में दूषित जल उपचार संयंत्रों (CETP) के उपयोग की क्षमता भी कम है। दिल्ली में 28 औद्योगिक क्लस्टर हैं और इनमें से 17 क्लस्टर 13 CETP से जुड़े हुए हैं। शेष 11 क्लस्टर किसी भी CETP से नहीं जुड़े हैं।
  • प्रदूषण का एक और कारण नदी में औद्योगिक और घरेलू अपशिष्टों का प्रत्यक्ष एवं अनियमित निपटान है क्योंकि घरेलू तथा औद्योगिक अपशिष्टों के आपस में मिल जाने के बाद उनका शोधन संभव नहीं हो पाता है।

समिति के बारे में

  • राष्ट्रीय हरित अधिकरण (National Green Tribunal- NGT) ने सेवानिवृत्त विशेषज्ञ सदस्य बी.एस सजवान और दिल्ली की पूर्व मुख्य सचिव शैलजा चंद्रा की सदस्यता वाली निगरानी समिति का गठन किया था और 31 दिसंबर, 2018 तक नदी की सफाई पर एक कार्ययोजना व विस्तृत रिपोर्ट जमा करने का निर्देश दिया था।

राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण

  • पर्यावरण से संबंधित किसी भी कानूनी अधिकार के प्रवर्तन तथा व्यक्तियों एवं संपत्ति के नुकसान के लिये सहायता और क्षतिपूर्ति देने या उससे संबंधित या उससे जुड़े मामलों सहित, पर्यावरण संरक्षण एवं वनों तथा अन्य प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण से संबंधित मामलों के प्रभावी और शीघ्रगामी निपटारे के लिये राष्ट्रीय हरित अधिकरण अधिनियम 2010 के अंतर्गत 18 अक्तूबर, 2010 को राष्ट्रीय हरित अधिकरण की स्थापना की गई।
  • यह एक विशिष्ट निकाय है जो बहु-अनुशासनात्मक समस्याओं वाले पर्यावरणीय विवादों के निपटान के लिये आवश्यक विशेषज्ञता द्वारा सुसज्जित है।
  • यह अधिकरण सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 के अंतर्गत निर्धारित प्रक्रिया द्वारा बाध्य नहीं है, लेकिन इसे नैसर्गिक न्याय के सिद्धांतों द्वारा निर्देशित किया जाता है।

स्रोत : इंडियन एक्सप्रेस


शासन व्यवस्था

केंद्र द्वारा अलग धर्म के रूप में लिंगायत को मान्यता देने से इनकार

चर्चा में क्यों?


केंद्र सरकार ने हाल ही में कर्नाटक उच्च न्यायालय को बताया कि उसने पहले ही राज्य सरकार को सूचित किया था कि लिंगायत/वीरशैव समुदाय को अल्पसंख्यक धर्म की स्थिति प्रदान करने हेतु राज्य की सिफारिशों को मानना संभव नहीं है।

प्रमुख बिंदु

  • केंद्र सरकार के अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय (MMA) ने अदालत के समक्ष 13 नवंबर, 2018 को राज्य सरकार को भेजे गए पत्र की एक प्रति प्रस्तुत की, जिसमें MMA ने अपनी पूर्ववत स्थिति को दोहराया कि लिंगायत/वीरशैव समुदाय को ‘हिंदुओं के एक धार्मिक संप्रदाय’ के रूप में मान्यता दी जाती है।
  • लिंगायतों/वीरशैवों को अल्पसंख्यक धर्म की स्थिति प्रदान करने के लिये राज्य सरकार और कर्नाटक राज्य अल्पसंख्यक आयोग (KSMC) द्वारा किये गए कार्यों पर पूछताछ संबंधी याचिकाओं की सुनवाई के दौरान यह पत्र अदालत में जमा किया गया था।
  • MMA ने गृह मंत्रालय (MHA) और राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग (NCM) से परामर्श के बाद राज्य को लिखा, "लिंगायत और वीरशैवों द्वारा अलग स्थिति की मांग पर पहले भी विचार किया गया है और यह देखा गया था कि 1871 की जनगणना (भारत में पहली आधिकारिक जनगणना) के बाद से लिंगायत को हमेशा हिंदू धर्म के अंतर्गत वर्गीकृत किया गया है तथा लिंगायत को हिंदू धर्म के धार्मिक संप्रदाय के रूप में माना जाता है ।"
  • MHA और NCM द्वारा व्यक्त दृष्टिकोण को उद्धृत करते हुए MMA ने कहा, "अगर लिंगायत/वीरशैव को हिंदू के अलावा अलग संहिता प्रदान करके एक अलग धर्म के रूप में माना जाए, तो निर्धारित धर्म का दावा करने वाले अनुसूचित जाति (SC) के सभी सदस्य अनुसूचित जाति के रूप में प्राप्त अपने सभी लाभों के साथ अनुसूचित जाति के रूप में अपनी स्थिति खो देंगे।"
  • MHA ने 24 अगस्त, 2018 के अपने पत्र में MMA को सूचित किया था कि "भारत के रजिस्ट्रार जनरल (RGI) के परामर्श से अलग धर्म के रूप में लिंगायत और वीरशैवों की मान्यता पर विस्तार से विचार किया गया है। यह देखा गया है कि RGI द्वारा आयोजित जनगणना में वीरशैव-लिंगायत को लगातार हिंदुओं के एक संप्रदाय के रूप में वर्गीकृत किया गया है।"
  • MMA ने अपने पत्र में कहा, "MHA और NCM के विचारों को ध्यान में रखते हुए मंत्रालय के लिये कर्नाटक सरकार के अनुरोध को मानना संभव नहीं है।"
  • 23 मार्च, 2018 को कर्नाटक राज्य सरकार ने राष्ट्रीय अल्पसंख्यक अधिनियम, 1992 की धारा 2(c) के तहत बासवन्ना के दर्शन और शिक्षाओं का पालन करने वाले लिंगायतों तथा वीरशैवों को एक धार्मिक अल्पसंख्यक के रूप मान्यता प्रदान करने के लिये केंद्र से सिफारिश की थी।
  • यह सिफारिश अलग अल्पसंख्यक धर्म के रूप में इस समुदाय को मान्यता प्रदान करने की मांग हेतु राज्य सरकार द्वारा किये गए अनुरोध पर KSMC द्वारा गठित विशेषज्ञों के सात सदस्यीय पैनल द्वारा की गई थी।
  • कर्नाटक उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश दिनेश माहेश्वरी और न्यायमूर्ति एस सुजाता की खंडपीठ, जिसके सामने ये याचिकाएँ सुनवाई के लिये आईं, ने सभी याचिकाओं का निपटान कर दिया क्योंकि केंद्र सरकार द्वारा राज्य की सिफारिश को मानने से इनकार कर देने के बाद राज्य सरकार के कार्यों के खिलाफ उठाए गए प्रश्नों को आगे बढ़ाने के लिये अब कोई औचित्य नहीं रहा।
  • उच्च न्यायालय ने 5 जनवरी, 2018 को पारित अपने अंतरिम आदेश में यह स्पष्ट कर दिया था कि अल्पसंख्यक धर्म की स्थिति प्रदान करने पर राज्य की कार्यवाही अदालत के अंतिम निर्णय के अधीन थी। चूँकि याचिकाकर्त्ताओं ने दावा किया था कि राज्य या KSMC के पास KSMC अधिनियम, 1994 के तहत किसी भी समुदाय को अल्पसंख्यक धर्म की स्थिति का अध्ययन या उसकी अनुशंसा करने की कोई शक्ति नहीं है।

कौन हैं लिंगायत?

  • बारहवीं सदी में कर्नाटक में ‘बासवन्ना’ के नेतृत्व में एक धार्मिक आंदोलन चला जिसमें बासवन्ना के अनुयायी लिंगायत कहलाए। इन्होंने जन्म के आधार पर नहीं बल्कि कर्म के आधार पर वर्गीकरण की पैरवी की।
  • लिंगायत, मृतकों को जलाने की बजाय दफनाते हैं तथा श्राद्ध नियमों का पालन नहीं करते, न तो ब्राह्मणवादी जाति व्यवस्था को मानते हैं और न ही पुनर्जन्म को। इन्होंने मूर्ति पूजा का भी विरोध किया।
  • माना जाता है कि वीरशैव तथा लिंगायत एक ही है किंतु लिंगायतों का तर्क है कि वीरशैव का अस्तित्व लिंगायतों से पहले का है तथा वीरशैव मूर्तिपूजक है। वीरशैव वैदिक अनुष्ठानों का पालन करते हैं, जबकि लिंगायत ऐसा नहीं करते।
  • कर्नाटक में लगभग 18 प्रतिशत आबादी लिंगायतों की है। ये लंबे समय से हिंदू धर्म से पृथक् धर्म का दर्जा चाहते हैं। अगर इन्हें धार्मिक रूप से अल्पसंख्यक का दर्जा दिया जाता है तो इन्हें भी आर्थिक और सामाजिक रूप से पिछड़े लोगों के आधार पर आरक्षण का फायदा मिलेगा।

स्रोत : द हिंदू


भारतीय अर्थव्यवस्था

रूफटॉप सोलर पैनल से ऊर्जा उत्पादन में वृद्धि

चर्चा में क्यों?


एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में 30 सितंबर तक 1,538 मेगावाट के रूफटॉप सोलर पैनल रिकॉर्ड स्तर पर लगाए गए, जिससे इस श्रेणी में कुल ऊर्जा उत्पादन क्षमता 3,399 मेगावाट हो गई है।

महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • वर्ष 2022 तक रूफटॉप सौर क्षमता 15.3 GW तक पहुँचने की उम्मीद है और यह सरकार के 40 GW के लक्ष्य का लगभग 38 प्रतिशत है।
  • इस रिपोर्ट के मुताबिक, वाणिज्यिक और औद्योगिक अधिष्ठान क्षेत्र 70 फीसदी हिस्सेदारी के साथ बाज़ार पर हावी है, जबकि आवासीय क्षेत्र में केवल 9 प्रतिशत के मामूली अंतराल के साथ गिरावट आई है।
  • अध्ययन में यह भी बताया गया है कि कुल पाँच राज्य - महाराष्ट्र (473 मेगावाट), तमिलनाडु (312 मेगावाट), कर्नाटक (272 मेगावाट), राजस्थान (270 मेगावाट) और उत्तर प्रदेश (223 मेगावाट) बाज़ार में कुल 54 प्रतिशत की हिस्सेदारी रखते हैं।
  • पूंजीगत व्यय (CAPEX) बाज़ार (जहाँ संपूर्ण छत, छत मालिकों के स्वामित्व में है) में केवल 18 प्रतिशत हिस्सेदारी (जो पिछले वर्ष 21 प्रतिशत थी) के साथ 10 प्रमुख कंपनियाँ कार्यरत हैं।
  • इन दस कंपनियों में से स्थान एवं उनकी हिस्सेदारी के अनुसार शीर्ष तीन कंपनियाँ क्रमशः टाटा पावर (4.4 प्रतिशत), महिंद्रा (2 फीसदी) और सनस्योर (2 फीसदी) हैं।

नवीकरणीय क्षमता हेतु लक्ष्य

  • भारत सरकार ने वर्ष 2022 के अंत तक 175 GW नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता का लक्ष्य रखा है।
  • इसमें पवन ऊर्जा से 60 GW, सौर ऊर्जा से 100 GW, बायोमास पावर से 10 GW और छोटे जलविद्युत से 5 GW ऊर्जा उत्पादन का लक्ष्य शामिल है।

स्रोत : बिज़नेस लाइन (द हिंदू)


सामाजिक न्याय

राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली

चर्चा में क्यों?


राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली (National Pension Scheme- NPS) को व्यवस्थित करने तथा इसे और अधिक आकर्षक बनाने के लिये केंद्रीय मंत्रिमंडल ने NPS के तहत कवर किये गए 18 लाख केंद्रीय सरकारी कर्मचारियों को लाभ पहुँचाने हेतु इस योजना में बदलावों को मंज़ूरी दे दी है।

मंत्रिमंडल द्वारा स्वीकृत बदलाव-

  • केंद्र सरकार द्वारा NPS टियर-। के दायरे में आने वाले अपने कर्मचारियों के लिये अपना अनिवार्य अंशदान मौजूदा 10 प्रतिशत से बढ़ाकर 14 प्रतिशत कर दिया गया है।
  • केंद्र सरकार के कर्मचारियों को पेंशन फंडों और निवेश के स्‍वरूप के चयन की आज़ादी दी गई है।
  • वर्ष 2004-2012 के दौरान NPS में अंशदान न करने या इसमें विलंब होने पर क्षतिपूर्ति की जाएगी।
  • NPS से बाहर निकलने पर मिलने वाली एकमुश्‍त निकासी राशि पर कर छूट सीमा बढ़ाकर 60 प्रतिशत कर दी गई है। इसके साथ ही समूची निकासी राशि अब आयकर से मुक्‍त हो जाएगी। (मौजूदा समय में वार्षिक तौर पर खरीद के लिये इस्‍तेमाल की गई कुल संचित राशि का 40 प्रतिशत कर मुक्‍त है। सेवानिवृत्ति के समय NPS के सदस्‍य द्वारा निकाली जाने वाली संचित राशि के 60 प्रतिशत में से 40 प्रतिशत कर मुक्‍त है, जबकि शेष 20 प्रतिशत राशि कर योग्‍य है।)
  • NPS टियर-।। के तहत सरकारी कर्मचारियों द्वारा किये जाने वाला अंशदान अब आयकर की दृष्टि से 1.50 लाख रुपए तक की छूट के लिये धारा 80 सी के अंतर्गत कवर होगा। यह अन्‍य योजनाओं जैसे कि सामान्‍य भविष्‍य निधि, अंशकारी भविष्‍य निधि, कर्मचारी भविष्‍य निधि और सार्वजनिक भविष्‍य निधि के समतुल्य है, बशर्तें कि इसमें तीन वर्षों की लॉक-इन अवधि हो।

प्रभाव

  • NPS के दायरे में आने वाले केंद्र सरकार के सभी कर्मचारियों की अंतिम संचित राशि में वृद्धि होगी।
  • कर्मचारियों पर कोई अतिरिक्‍त बोझ पड़े बगैर ही सेवानिवृत्ति के बाद उन्‍हें मिलने वाली पेंशन राशि बढ़ जाएगी।
  • जीवन प्रत्‍याशा बढ़ने की स्थिति में वृद्धावस्‍था सुरक्षा बढ़ जाएगी।
  • NPS को और ज़्यादा आकर्षक बनाने से सरकार को सर्वोत्‍तम प्रतिभाओं को आकर्षि‍त करने एवं उन्‍हें सेवा में बनाए रखने में आसानी होगी।

पृष्ठभूमि

  • 7वें वेतन आयोग ने वर्ष 2015 में अपने विचार-विमर्श के दौरान NPS से जुड़ी विशिष्‍ट चिंताओं पर गौर किया और सिफारिशें पेश कीं।
  • तदनुसार, सरकार द्वारा वर्ष 2016 में सचिवों की एक समिति गठित की गई जिसे NPS के कार्यान्‍वयन को युक्तिसंगत अथवा सरल बनाने के लिये विभिन्‍न उपाय सुझाने की ज़िम्‍मेदारी सौंपी गई।

राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली

  • केंद्र सरकार ने 01 जनवरी, 2004 से राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली (NPS) शुरू की थी (सशस्त्र बलों को छोड़कर)।
  • देश में NPS को लागू करने और विनियमित करने की ज़िम्मेदारी पेंशन फंड नियामक और विकास प्राधिकरण (Pension Fund Regulatory and Development Authority) की है।
  • PFRDA द्वारा स्थापित नेशनल पेंशन सिस्टम ट्रस्ट (National Pension System Trust- NPST) NPS के तहत सभी संपत्तियों का पंजीकृत मालिक है।
  • NPS की संरचना द्विस्तरीय है-

टियर- 1 खाता: यह सेवानिवृत्ति की बचत के लिये बनाया गया खाता है जिसका आहरण नहीं किया जा सकता है।
टियर-2 खाता: यह एक स्‍वैच्छिक बचत सुविधा है। अभिदाता अपनी इच्‍छानुसार इस खाते से अपनी बचत को आहरित करने के लिये स्‍वतंत्र है। इस खाते पर कोई कर लाभ उपलब्‍ध नहीं हैं।

  • NPS 1 मई, 2009 से स्‍वैच्छिक आधार पर असंगठित क्षेत्र के कामगारों सहित देश के सभी नागरिकों को प्रदान की गई है।
  • देश का कोई भी व्यक्ति (निवासी और अनिवासी दोनों) NPS में शामिल हो सकता है, बशर्ते NPS के लिये आवेदन करते समय उसकी आयु 18 से 65 वर्ष के बीच हो।
  • लेकिन OCI (Overseas Citizens of India) तथा PIO (Person of Indian Origin) कार्ड धारक और हिंदू अविभाजित परिवार (Hindu Undivided Family- HUFs) NPS खाता खोलने के लिये योग्य नहीं हैं।

पेंशन निधि विनियामक और विकास प्राधिकरण

  • इस अधिनियम को 19 सितंबर, 2013 में अधिसूचित और 1 फरवरी, 2014 से लागू किया गया।
  • राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली (NPS) जिसके अभिदाताओं में केंद्र सरकार/राज्य सरकारों निजी संस्थानों/संगठनों और असंगठित क्षेत्र के कर्मचारी शामिल हैं, का नियमन PFRDA द्वारा किया जाता है।
  • भारत में वृद्धावस्था आय सुरक्षा से सबंधित योजनाओं के अध्ययन के लिये भारत सरकार ने वर्ष 1999 में OASIS ( वृद्धावस्था सामजिक और आय सुरक्षा) नामक राष्ट्रीय परियोजना को मंज़ूरी दी थी।
  • भारत सरकार द्वारा अंशदान पेंशन प्रणाली को 22 दिसंबर, 2003 में अधिसूचित किया गया जो 1 जनवरी, 2004 से लागू हुई और जिसे अब राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली के नाम से जाना जाता है।
  • 1 मई, 2009 से NPS का विस्तार स्वैच्छिक आधार पर देश के सभी नागरिकों के लिये किया गया जिसमें स्वरोज़गार, पेशेवरों और असंगठित क्षेत्रों में काम करने वाले कर्मचारियों को भी शामिल किया गया है।

स्रोत : पी.आई.बी


प्रारंभिक परीक्षा

प्रीलिम्स फैक्ट्स : 11 दिसंबर, 2018

अग्नि-5 मिसाइल का सफल परीक्षण

Agni-V Missile

10 दिसंबर, 2018 को सतह से सतह पर लंबी दूरी तक मार करने वाली और परमाणु हथियार ले जाने में सक्षम अग्नि-5 मिसाइल का सफल परीक्षण किया गया।

  • इस मिसाइल को ओडिशा तट के समीप डॉ. अब्‍दुल कलाम द्वीप से मोबाइल लॉन्चर के ज़रिये प्रक्षेपित किया गया।
  • अग्नि -5 एक त्रि-स्तरीय (Three stages) मिसाइल है। इसकी लंबाई लगभग 17 मीटर और व्यास 2 मीटर है। यह मिसाइल 1.5 टन परमाणु हथियारों को ले जाने में सक्षम है।
  • अग्नि-5 मिसाइल का यह सातवाँ सफल प्रक्षेपण था। पिछला प्रक्षेपण 3 जून, 2018 को किया गया था।
  • अग्नि मिसाइल श्रृंखला की दूसरी अन्य मिसाइलों के विपरीत, अग्नि-5 नेविगेशन, गाइडेंस, वारहैड और इंजन के संदर्भ में नई प्रौद्योगिकियों के साथ सबसे उन्नत मिसाइल है।
  • इस मिसाइल को इस प्रकार से डिज़ाइन किया गया है कि यह लक्ष्य को सटीकता से भेद सके। यह मिसाइल उसके अंदर लगे कंप्यूटर द्वारा निर्देशित होगी।
  • अग्नि-5 वैज्ञानिकों के अथक प्रयास से निर्मित स्वदेशी मिसाइल है।

कैगा परमाणु ऊर्जा संयंत्र (Kaiga Nuclear Power Plant)


10 दिसंबर, 2018 को कर्नाटक स्थित कैगा परमाणु संयंत्र ने 941 दिनों के लिये सबसे लंबे समय तक निर्बाध संचालन कर विश्व रिकॉर्ड कायम किया। उल्लेखनीय है कि कैगा जेनरेटिंग स्टेशन (KGS-1) ने ब्रिटेन के रिकॉर्ड को तोड़कर इतिहास रचा है।

  • इससे पहले यह रिकॉर्ड ब्रिटेन के हेषाम-2 यूनिट-8 (Heysham-2 Unit-8) के नाम था जिसने दुनिया के सभी परमाणु ऊर्जा रिएक्टरों के बीच सबसे लंबे समय तक निर्बाध संचालन (940 दिन) का रिकॉर्ड स्थापित किया था।
  • उल्लेखनीय है कि KGS-1 प्रेसराइज्ड हैवी वाटर रिएक्टर (Pressurised Heavy Water Reactor- PHWR) है, जबकि हेषाम -2 यूनिट -8 एक एडवांस्ड गैस कूल्ड रिएक्टर (Advanced Gas Cooled Reactor- AGR) है।
  • इस साल 25 अक्तूबर को KGS-1 ने कनाडा के ओंटारियो (Ontario) स्थित पिकरिंग -7 (Pickering-7) के रिकॉर्ड को तोड़ दिया था जिसने 7 अक्तूबर, 1994 को सभी PWRS के बीच सबसे लंबे समय (894 दिनों और कुछ घंटों) तक निर्बाध संचालन का रिकॉर्ड बनाया था। पिकरिंग-7 द्वारा स्थापित रिकॉर्ड को 24 साल बाद तोड़ा गया था।
  • जून में KGS-1 ने 766 दिनों तक निरंतर संचालन का राष्ट्रीय रिकॉर्ड स्थापित किया था।

पृष्ठभूमि

  • कर्नाटक के बंदरगाह शहर करवार से 56 किमी. दूर स्थित कैगा में KGS -1, 13 मई, 2016 से लगातार बिजली उत्पादन कर रहा है।
  • यह घरेलू ईंधन (यूरेनियम) द्वारा संचालित स्वदेश निर्मित PHWR है।
  • इसने 16 नवंबर, 2000 को वाणिज्यिक परिचालन शुरू किया और अब तक 500 करोड़ यूनिट ऊर्जा का उत्पादन कर चुका है।

Nuclear Power Plants


यूनिसेफ का स्थापना दिवस (Foundation Day of UNICEF)


11 दिसंबर को यूनिसेफ का स्थापना दिवस मनाया जाता है।

  • यूनीसेफ की स्थापना 11 दिसंबर, 1946 को द्वितीय विश्वयुद्ध में नष्ट हुए राष्ट्रों के बच्चों को पोषण एवं स्वास्थ्य सेवाएँ उपलब्ध कराने के उद्देश्य से की गई थी।
  • इसका मुख्यालय न्यूयॉर्क (अमेरिका) में है।
  • यूनिसेफ 190 देशों और क्षेत्रों में बच्चों के जीवन को बचाने, उनके अधिकारों की रक्षा करने बचपन से किशोरावस्था तक अपनी क्षमता को परिपूर्ण करने में उनकी मदद करने के लिये काम करता है।
  • यूनिसेफ सभी बच्चों की रक्षा करने हेतु सेवाओं तक पहुँच सुनिश्चित करने और नीतियों को बढ़ावा देने के लिये दुनिया भर के भागीदारों के साथ काम करता है।

विविध

Rapid Fire 11 December

  • 11 दिसंबर: यूनिसेफ स्थापना दिवस; इसी दिन 1946 में हुई थी United Nations International Children’s Emergency Fund (UNICEF) की स्थापना; द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान बेघर और अनाथ हुए यूरोपीय बच्चों की सहायता के लिये हुई थी स्थापना; बच्चों को शिक्षा, पोषण व स्वास्थ्य संबंधी सहायता देना है इसका लक्ष्य; न्यूयॉर्क में है इसका मुख्यालय; 190 से अधिक देशों में काम करने वाले यूनिसेफ को 1965 में नोबेल शांति पुरस्कार और 1989 में इंदिरा गांधी शांति पुरस्कार से नवाज़ा जा चुका है
  • लंबे समय से रिज़र्व बैंक और केंद्र सरकार के बीच चल रही तनातनी के बाद बैंक के गवर्नर उर्जित पटेल ने दिया इस्तीफा; रिज़र्व बैंक और केंद्र सरकार के बीच पिछले दिनों केंद्रीय बैंक की स्वायत्तता के मसले पर बन गई थी टकराव की स्थिति;भारत सरकार द्वारा 3.60 लाख करोड़ रुपए की मांग रिज़र्व बैंक से करने की थी खबर, जिसका बैंक  ने किया था विरोध ; सितंबर 2016 में तीन साल के लिये रघुराम राजन की जगह बैंक के 24वें गवर्नर बने थे उर्जित पटेल
  • मनीलांड्रिंग और नौ हजार करोड़ रुपए के बैंकिंग फर्ज़ीवाड़े में फँसने के बाद विदेश भागे कारोबारी विजय माल्या को भारत लाया जाएगा; लंदन के वेस्टमिंस्टर कोर्ट में चीफ मजिस्ट्रेट के कोर्ट ने विजय माल्या के प्रत्यर्पण पर सुनवाई करते हुए दिया यह आदेश दिया; अब यह फैसला UK के गृह विभाग के पास जाएगा और गृह सचिव इस पर अपना आदेश देंगे; दोनों पक्षों को इस फैसले के खिलाफ UK के हाई कोर्ट में अपील दायर करने का होगा अधिकार
  • सुप्रीम कोर्ट ने रेप पीड़िताओं से होने वाले सामाजिक भेदभाव पर जताई चिंता; राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के सभी ज़िलों में रेप पीड़िताओं के पुनर्वास के लिये वन स्टॉप सेंटर बनाने का दिया निर्देश; जाँच एजेंसियों, पुलिस या मीडिया के द्वारा किसी भी हालत में रेप पीड़िताओं की पहचान नहीं की जानी चाहिये सार्वजनिक
  • कर्नाटक के उत्तरी कन्नड़ ज़िले में स्थित कैगा परमाणु बिजलीघर ने निरंतर परिचालन में रहकर बनाया विश्व रिकॉर्ड; भारतीय परमाणु ऊर्जा निगम की कैगा परमाणु बिजलीघर में विकसित 220 मेगावाट क्षमता की इकाई-1 ने निरंतर 940 दिनों से ज़्यादा परिचालन किया; इससे पहले UK के हेशेमम-2 की इकाई-8 ने 2016 में 940 दिनों तक निरंतर परिचालन का रिकॉर्ड बनाया था
  • फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (FATF) का 38वाँ सदस्य बना इज़राइल; 2016 से पर्यवेक्षक देश के तौर पर इसमें शामिल था इज़राइल; मनीलांड्रिंग और टेरर फंडिंग को रोकने का काम करता है FATF; पूर्ण सदस्य देशों को टेरर फंडिंग और मनीलांड्रिंग से जुड़े अंतर्राष्ट्रीय मामलों में निर्णय लेने और नियम बनाने की प्रक्रिया में शामिल होने का मिलता है अधिकार; पेरिस में है FATF का मुख्यालय
  • सार्क चार्टर दिवस पर इस्लामाबाद में हुई सार्क चैम्बर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज़ की बैठक का भारत ने बहिष्कार किया; पाक अधिकृत कश्मीर के मंत्री के बैठक में शामिल होने पर भारतीय राजनयिक ने बैठक छोड़कर दर्ज़ कराया अपना विरोध
  • पोलैंड के काटोवाइस में चल रहे CoP 24 (संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन) में IPCC की हालिया रिपोर्ट जारी नहीं हो सकी; अमेरिका, रूस, सऊदी अरब और कुवैत ने रिपोर्ट को जारी होने से रोका; 193 अन्य देशों को हुई निराशा
  • वैज्ञानिकों को मिले ग्रीनलैंड की बर्फ के तेज़ी से पिघलने के संकेत; यूरोपीय स्पेस एजेंसी ने 25 वर्षों के सेटेलाइट डाटा का विश्लेषण कर निकाला यह निष्कर्ष; मानवीय और प्राकृतिक गतिविधियाँ हैं इसके लिये ज़िम्मेदार; ग्लोबल वार्मिंग और बढ़ता जलवायु प्रदूषण इसका प्रमुख कारण; ग्रीनलैंड पर बर्फ बने रहना जलवायु प्रणाली के लिये बेहद महत्त्वपूर्ण
  • रूस में सेंट पीटर्सबर्ग यूनिवर्सिटी के शोधकर्त्ताओं ने की नई डायनासोर प्रजाति की पहचान; इसे दिया गया है वोल्गाटाइटन नाम; डायनासोर के सौरोपोड्स का एक हिस्सा था वोल्गाटाइटन; 13 करोड़ वर्ष पहले इस धरती पर मौज़ूद था पूँछ और लंबी गर्दन वाला यह डायनासोर; अब तक डायनासोर की 12 प्रजातियों की खोज हो चुकी है रूस में
  • हिग्स-बोसोन कण की खोज करने वाली मशीन लार्ज हेड्रोन कोलाइडर को कुछ सुधार कार्य करने के लिये दो साल के किया गया बंद; इस मशीन का संचालन करने वाली सर्न लैब ने 2012 में ईश्वरीय कण यानी हिग्स-बोसोन की खोज की थी और वैज्ञानिक तब से लगातार इस पर शोध कर रहे हैं; इससे भौतिकी के क्षेत्र में नए सिद्धांतों की राह खुल सकती है

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