भारतीय अर्थव्यवस्था
कृषि निर्यात नीति 2018
संदर्भ
हाल ही केंद्रीय मंत्रिमंडल ने कृषि निर्यात नीति को मंज़ूरी दे दी। गौरतलब है कि यह मंज़ूरी किसानों की आय दोगुनी करने के उद्देश्य से दी गई है। यह नीति कृषि निर्यात के सभी पहलुओं पर ध्यान केंद्रित करेगी जिसमें आधारभूत संरचना का आधुनिकीकरण, उत्पादों का मानकीकरण, नियमों को सुव्यवस्थित करना, कृषि संकट को बढ़ावा देने वाले फैसलों को कम करना और अनुसंधान तथा विकास गतिविधियों पर ध्यान केंद्रित करना भी शामिल है।
महत्त्वपूर्ण बिंदु
- कृषि निर्यात नीति, 2018 का उद्देश्य वर्ष 2022 तक कृषि निर्यात को 60 अरब अमेरिकी डॉलर से भी अधिक करना है।
- ध्यातव्य हो कि यह फैसला 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने के सरकार के उद्देश्यों के तहत लिया गया है।
- कृषि निर्यात नीति से चाय, कॉफी और चावल जैसे कृषि उत्पादों के निर्यात को बढ़ावा मिलने के साथ-साथ यह वैश्विक कृषि व्यापार में देश की हिस्सेदारी को बढ़ाएगी।
- इस नीति के तहत जैविक उत्पादों पर सभी प्रकार के निर्यात प्रतिबंधों को भी हटाने की कोशिश की जाएगी। एक अधिकारी के मुताबिक, इस नीति के कार्यान्वयन के लिये अनुमानित वित्त 1,400 करोड़ रुपए से अधिक का होगा।
कृषि निर्यात नीति के अवयव
- कृषि निर्यात नीति में की गईं सिफारिशों को दो श्रेणियों में व्यवस्थित किया गया है।
-
सामरिक (Strategic)
सामरिक श्रेणी में तहत निम्नलिखित उपाय शामिल होंगे-
♦ नीतिगत उपाय
♦ अवसंरचना एवं रसद समर्थन
♦ निर्यात को बढ़ावा देने के लिये समग्र दृष्टिकोण
♦ कृषि निर्यात में राज्य सरकारों की बड़ी भागीदारी
♦ मूल्य वर्द्धित निर्यात को बढ़ावा देना
♦ ‘ब्रांड इंडिया’ का विपणन और प्रचार
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परिचालन (Operational)
परिचालन के तहत निम्नलिखित कार्य शामिल होंगे-
♦ उत्पादन और प्रसंस्करण में निजी निवेश को आकर्षित करना
♦ मज़बूत नियमों की स्थापना
♦ अनुसंधान एवं विकास
♦ विविध
स्रोत- इंडियन एक्सप्रेस, पीआईबी
कृषि
शाहपुरकंडी डैम (राष्ट्रीय परियोजना)
चर्चा में क्यों?
प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने पंजाब में रावी नदी पर शाहपुरकंडी डैम (Shahpurkandi Dam) परियोजना को मंज़ूरी दे दी है।
- इस परियोजना के लिये वित्तीय वर्ष 2018-19 से 2022-23 तक पाँच वर्षों की अवधि के दौरान 485.38 करोड़ रुपए (सिंचाई घटक के लिये) की केंद्रीय सहायता उपलब्ध कराई जाएगी।
- इस परियोजना के कार्यान्वयन से रावी नदी के जल की मात्रा में कमी लाने में सहायता मिलेगी जो वर्तमान में माधोपुर हेडवर्क्स से होते हुए पाकिस्तान चली जाती है।
परियोजना के बारे में
- शाहपुरकंडी डैम परियोजना के लिये प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना-त्वरित सिंचाई लाभ कार्यक्रम (PMKSY-AIBP) की वर्तमान 99 परियोजनाओं के समान नाबार्ड (NABARD) के माध्यम से केंद्रीय सहायता प्रदान की जाएगी।
- इस परियोजना के कार्यान्वयन की निगरानी हेतु केंद्रीय जल आयोग की वर्तमान निगरानी व्यवस्था के अतिरिक्त केंद्रीय जल आयोग के सदस्य की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया जाएगा। इस समिति में पंजाब और जम्मू-कश्मीर के चीफ इंजीनियर और संबंधित अधिकारियों को शामिल किया जाएगा।
- यह परियोजना जून 2022 तक पूरी हो जाएगी।
परियोजना से लाभ
- रावी नदी के पानी की कुछ मात्रा वर्तमान में माधोपुर हेडवर्क्स से होकर पकिस्तान चली जाती है, जबकि पंजाब और जम्मू-कश्मीर दोनों राज्यों में जल की आवश्यकता है। इस परियोजना के लागू होने से पानी की बर्बादी को कम करने में मदद मिलेगी।
- इस परियोजना के पूरा होने से पंजाब राज्य में अतरिक्त 5000 हेक्टेअर और जम्मू-कश्मीर में 32,173 हेक्टेअर भूमि को सिंचाई की सुविधा प्राप्त होगी।
- इसके अलावा इस परियोजना से पंजाब ऊपरी बारी दोआब नहर (Uppar Bari Doab Canal- UBDC) प्रणाली के अंतर्गत 1.18 लाख हेक्टेअर में सिंचाई सुविधा को सुव्यवस्थित करने में मदद मिलेगी। परियोजना के पूरा होने पर पंजाब 206 मेगावाट जलविद्युत उत्पादन में सक्षम होगा।
- परियोजना के कार्यान्वयन से अकुशल श्रमिकों के लिये 6.2 लाख कार्यदिवसों, अर्द्धकुशल श्रमिकों के लिये 6.2 लाख कार्यदिवसों तथा कुशल श्रमिकों के लिये 1.67 लाख कार्यदिवसों के रोज़गार का सृजन होगा।
परियोजना की लागत
- जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्रालय (Ministry of Water Resources, River Development & Ganga Rejuvenation- MoWR, RD & GR) की परामर्शदात्री समिति ने 24 अगस्त, 2019 को इस राष्ट्रीय परियोजना के लिये 2285.81 करोड़ रुपए की संशोधित लागत निर्धारित की थी।
- 31 अक्तूबर, 2018 को MoWR, RD & GR के परामर्शदात्री समिति की 138वीं बैठक में दूसरे पुनरीक्षित लागत अनुमान के रूप में 2715.70 करोड़ रुपए की राशि को स्वीकृति दी गई।
- इस परियोजना के लिये 26.04 करोड़ रुपए की केंद्रीय सहायता वित्तीय वर्ष 2009-10 से 2010-11 के दौरान जारी की गई थी।
- शाहपुरकंडी डैम परियोजना के कार्य घटकों की शेष लागत 1973.53 करोड़ रुपए (सिंचाई घटक: 564.63 करोड़ रुपए, ऊर्जा घटक:1408.90 करोड़ रुपए) है। इसमें 485.38 करोड़ रुपए की राशि केंद्रीय सहायता के रूप में उपलब्ध कराई जाएगी।
पृष्ठभूमि :
- सिंधु नदी के जल बँटवारे के लिये 1960 में भारत और पाकिस्तान ने सिंधु जल संधि पर हस्ताक्षर किये थे। इस संधि के तहत भारत को 3 पूर्वी नदियों- रावी, ब्यास और सतलज के जल के उपयोग का पूर्ण अधिकार प्राप्त हुआ था। लेकिन वर्तमान में रावी नदी के जल की कुछ मात्रा माधोपुर हेडवर्क्स होकर पाकिस्तान में चली जाती है।
- इस परियोजना के लागू होने से पानी की बर्बादी रोकने में मदद मिलेगी।
- पंजाब और जम्मू-कश्मीर के बीच 1979 में एक द्विपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर हुए थे। समझौते के तहत पंजाब सरकार द्वारा रंजीत सागर डैम (थीन डैम) और शाहपुरकंडी डैम का निर्माण किया जाना था। रंजीत सागर डैम का निर्माण कार्य अगस्त 2000 में पूरा हो गया था।
- शाहपुरकंडी डैम परियोजना रावी नदी पर रंजीत सागर डैम से 11 किमी. अनुप्रवाह (downstream or d/s) तथा माधोपुर हेडवर्क्स से 8 किमी. प्रतिप्रवाह (upstream or u/s) पर स्थित है।
- योजना आयोग ने नवंबर 2001 में इस परियोजना को प्रारंभिक स्तर पर मंज़ूरी दी थी और इसे त्वरित सिंचाई लाभ कार्यक्रम (Accelerated Irrigation Benefit Programme- AIBP) के अंतर्गत शामिल किया गया था ताकि सिंचाई घटक के अंतर्गत इस परियोजना के लिये धन उपलब्ध कराया जा सके।
- हालाँकि पंजाब सरकार द्वारा ऊर्जा घटक के अंतर्गत राशि उपलब्ध न कराने और जम्मू-कश्मीर के साथ कई मुद्दों पर मतभेद होने के कारण इस परियोजना में कोई प्रगति नहीं हो सकी।
- इस संबंध में द्विपक्षीय स्तर पर कई बैठकें आयोजित की गईं तथा भारत सरकार के स्तर पर भी कई बैठकों का आयोजन हुआ। अंतत: MoWR, RD & GR के तत्त्वावधान में पंजाब और जम्मू-कश्मीर ने 8 सितंबर, 2018 को नई दिल्ली में एक समझौते पर सहमति व्यक्त की थी।
स्रोत : पी.आई.बी
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
मंत्रिमंडल द्वारा बहुविषयक साइबर-फिज़िकल प्रणालियों के राष्ट्रीय मिशन को मंज़ूरी
चर्चा में क्यों?
हाल ही में प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में मंत्रिमंडल द्वारा बहुविषयक साइबर-फिज़िकल प्रणालियों के राष्ट्रीय मिशन (NM-ICPS) को मंज़ूरी दे दी गई। इसे पाँच सालों के लिये 3600 करोड़ रुपए की कुल लागत के साथ विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा लागू किया जाएगा।
प्रमुख बिंदु
- NM-ICPS एक समग्र मिशन है जो CPS में प्रौद्योगिकी विकास, विनियोग विकास, मानव संसाधन विकास, कौशल विकास, उद्यमशीलता और स्टार्ट-अप विकास तथा संबंधित प्रौद्योगिकियों के मुद्दों को हल करेगा।
- मिशन का लक्ष्य 15 प्रौद्योगिकी नवाचार केंद्र (Technology Innovation Hubs-TIH), 6 विनियोग नवाचार केंद्र (Application Innovation Hubs-AIH) और 4 प्रौद्योगिकी आधारित नव-अनुसंधान केंद्र (Technology Translation Research Parks-TTRP) बनाना है।
- ये नवाचार केंद्र (Innovation Hubs) और TTRP देश के प्रतिष्ठित अकादमिक, अनुसंधान एवं विकास तथा अन्य संगठनों में समाधान विकास के संबंध में अकादमिक संस्थानों, उद्योग, केंद्रीय मंत्रालयों और राज्य सरकारों को आपस में जोड़ेंगे।
- अकादमिक संस्थानों, उद्योग और सरकार के एक उपयुक्त समूह को शामिल करने के लिये रणनीतिक पहल के संबंध में प्रस्ताव को अपनाया गया है।
- मिशन के कार्यान्वयन, निगरानी और उसके मार्गदर्शन के लिये मिशन प्रशासनिक बोर्ड तथा अंतर-मंत्रालयी समन्वय समिति, वैज्ञानिक सलाहकार समिति और अन्य उप-समितियों के रूप में मज़बूत संचालन तथा निगरानी प्रणाली तैयार होगी।
- इन नवाचार केंद्रों और TTRP के चार प्रमुख क्षेत्र हैं जिनके साथ मिशन के कार्यान्वयन का कार्य आगे बढ़ेगा। ये चार क्षेत्र हैं- i) प्रौद्योगिकी विकास ii) मानव संसाधन विकास एवं कौशल विकास iii) नवाचार, उद्यमिता एवं स्टार्ट-अप इको प्रणाली विकास iv) अंतर्राष्ट्रीय सहयोग।
मिशन का उद्देश्य
- इस मिशन के तहत समाज की बढ़ती प्रौद्योगिकी ज़रूरतों को पूरा किया जाएगा और यह अगली पीढ़ी की प्रौद्योगिकियों के लिये अग्रणी देशों के अंतर्राष्ट्रीय रूझानों तथा रोडमैप का जायजा लेगा।
- इस मिशन के तहत देश में साइबर-फिज़िकल प्रणालियों (CPS) और संबंधित प्रौद्योगिकियों की पहुँच सुगम हो जाएगी। भारतीय परिस्थितियों के मद्देनज़र राष्ट्रीय/क्षेत्रीय मुद्दों को हल करने के लिये CPS प्रौद्योगिकियों को अपनाया जाएगा।
- CPS में अगली पीढ़ी की कुशल श्रमशक्ति का सृजन होगा। प्रौद्योगिकी आधारित नव-अनुसंधान में तेज़ी लाई जाएगी। इस मिशन से CPS में उद्यमिता और स्टार्ट-अप इको प्रणाली के विकास में तेज़ी आएगी।
- CPS के माध्यम से प्रौद्योगिकी विकास तथा विज्ञान, प्रौद्योगिकी और इंजीनियरिंग विषयों में उच्च शिक्षा में उन्नत अनुसंधान को तेज़ी प्रदान की जाएगी। इस मिशन के ज़रिये भारत को अन्य उन्नत देशों के समकक्ष लाने का प्रयास किया जाएगा तथा भारत द्वारा कई प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष लाभों को प्राप्त किया जाएगा।
मिशन के संभावित लाभ
- मिशन समाज के लाभ के लिये CPS प्रौद्यगिकियों के कारगर इस्तेमाल करने के संबंध में केंद्रीय मंत्रालयों/विभागों, राज्य सरकारों और उद्योगों को अपनी परियोजनाएँ और योजनाएँ चलाने में मदद करेगा।
- CPS प्रौद्योगिकियों से राष्ट्र की वैज्ञानिक, अभियांत्रिकी और प्रौद्योगिकी नवाचार क्षमताओं को नई धार मिलेगी। इसके अलावा वे सरकार के अन्य मिशनों को समर्थन देंगी, औद्योगिक तथा आर्थिक प्रतिस्पर्द्धा का माहौल पैदा करेंगी और एक वास्तविक रणनीतिक संसाधन के रूप में विकसित होंगी।
- प्रस्तावित मिशन, विकास का माध्यम बनेगा, जिससे स्वास्थ्य, शिक्षा, ऊर्जा, पर्यावरण, कृषि, रणनीति आधारित सुरक्षा और औद्योगिक क्षेत्रों में राष्ट्रीय पहलों को लाभ होगा। इसके अलावा इंडस्ट्री 4.0, स्मार्ट सिटी, सतत् विकास लक्ष्य इत्यादि को भी लाभ होगा।
- CPS आने वाली प्रौद्योगिकियों की एक समग्र प्रणाली है, जो विकास की दौड़ में अन्य देशों के साथ मिलकर चलने को प्राथमिकता देती है। सीपीएस से समस्त कौशल आवश्यकताओं में आमूल परिवर्तन होगा। उद्योग/समाज की ज़रूरतों को ध्यान में रखते हुए उन्नत कौशल और कुशल श्रमशक्ति के सृजन के द्वारा यह मिशन रोज़गार के अवसरों में इजाफा करेगा।
- नवाचार, उद्यमिता और स्टार्ट-अप इको प्रणाली प्रस्तावित NM-ICPS का अभिन्न हिस्सा है, जिसके मद्देनज़र स्टार्ट-अप से भी CPS तथा संबंधित क्षेत्रों में प्रौद्योगिकी आधारित रोज़गार अवसर पैदा होंगे। इस तरह अल्पकालिक अवधि में लगभग 40,000 रोज़गार और दीर्घकालिक अवधि में लगभग दो लाख रोज़गार सृजित होंगे।
मिशन की आवश्यकता क्यों?
- CPS और इससे संबंधित प्रौद्योगिकियाँ, जैसे- आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI), इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT), मशीन लर्निंग (ML), डीप लर्निंग (DP), बिग डेटा एनालिटिक्स, रोबोटिक्स, क्वांटम कंप्यूटिंग, क्वांटम कम्युनिकेशन, क्वांटम एन्क्रिप्शन (क्वांटम की डिस्ट्रीब्यूशन), डेटा साइंस और भविष्यवाणी विश्लेषिकी, भौतिक आधारभूत संरचना और अन्य बुनियादी ढाँचे के लिये साइबर सुरक्षा, व्यापक रूप से सभी क्षेत्रों में मानव प्रयास के लगभग हर क्षेत्र में एक परिवर्तनीय भूमिका निभा रही है।
- सरकार और उद्योग के लिये यह आवश्यक हो गया है कि वे प्रतिस्पर्द्धी बने रहने, सामाजिक विकास करने, रोजगार सृजन, आर्थिक विकास में तेजी लाने और जीवन की गुणवत्ता में सुधार करने तथा पर्यावरण को कायम रखने के लिये इन उभरती हुई प्रौद्योगिकियों को अपनाने के लिये तैयार रहें।
स्रोत : पीआईबी
विविध
महासागरीय सतह का मानचित्रण
संदर्भ
महासागरीय मानचित्रण कार्य में लगे विशेषज्ञों के लिये यह आलोचना की ही बात है कि हम अपनी महासागरीय सतहों के बारे में कम जबकि चंद्रमा और मंगल के बारे में ज़्यादा जानते हैं। किसी भी जगह के देख-रेख या उस क्षेत्र में कोई भी कार्य करने में मानचित्र की भूमिका महत्त्वपूर्ण होती है।
महत्त्वपूर्ण बिंदु
- समुद्री दुनिया, उसकी गहराई, उसकी पर्वत श्रृंखलाएँ, पृथ्वी की सीमाएँ सब कुछ बहुत व्यापक स्तर पर हैं तथा पूरी दुनिया अब भी इनके बारे में अनभिज्ञ है।
- इस अनभिज्ञता को दूर करने के लिये संयुक्त राष्ट्र समर्थित ‘सीबेड 2030' नामक प्रोजेक्ट निरंतर प्रयास करता रहा है।
- इस योजना के तहत 2030 तक पूरे महासागरीय सतह के मानचित्रण के लक्ष्य को पूरा करने के लिये सीबेड 2030 दुनिया के देशों तथा कंपनियों से आँकड़े जुटा रहा है। यह मानचित्रण सबके लिये नि:शुल्क उपलब्ध रहेगा।
- इस पहल का समर्थन करने वाली कई परोपकारी संस्थाओं का मानना है कि इस कार्य को पूरा करने के लिये आपसी सहयोग तथा समन्वय की बहुत आवश्यकता होगी।
- वर्ष 2017 में शुरू की गई इस योजना की अनुमानित लागत 3 बिलियन डॉलर है।
- इस योजना में निप्पन फाउंडेशन और GEBCO तथा विशेषज्ञों के गैर-लाभकारी एसोसिएशन का संश्रय शामिल है।
- यदि यह योजना सफल हो जाती है तो हमें निम्नलिखित परिणाम देखने को मिल सकते हैं-
♦ महासागरों का बेहतर ज्ञान
♦ विविधता
♦ जलवायु की बेहतर समझ
♦ आने वाली आपदाओं की पूर्व चेतावनी
♦ महासागरों का बेहतर संरक्षण तथा
♦ समुद्री संसाधनों का उपयोग
- ‘सीबेड 2030’ अनुमानतः वर्ष 2030 तक पूरे महासागरीय सतह का मानचित्रण करने में सफल हो जाएगा।
अन्य सहायक प्रयास
- ऊर्जा क्षेत्र की बड़ी कंपनी शेल (Shell Ocean Discovery XPRIZE) द्वारा चलाई जा रही एक प्रतियोगिता में उस टीम को 7 मिलियन डॉलर की राशि दी जाएगी जो महासागरीय खोजबीन करने हेतु तीव्र, स्वायत्त तथा अच्छे रेज्योलूशन वाली तकनीक विकसित करने में सफल हो जाएगी।
- सीबेड 2030 की एक टीम इस प्रतियोगिता के आखिरी चरण में पहुँचने में सफल हो गई है। इस टीम द्वारा डिज़ाईन किया गया रिमोट-नियंत्रित रोबोट महासागरों की चरम गहराई तक जाकर मानचित्रण करने में सक्षम होगा।
स्रोत- बिजनेस लाइन
भारतीय अर्थव्यवस्था
फ्रेट विलेज़
चर्चा में क्यों?
जहाज़रानी मंत्रालय (Shipping Ministry) ने गंगा नदी पर अंतर्देशीय जलमार्ग टर्मिनल के समीप वाराणसी में 156 करोड़ रुपए की लागत से एक फ्रेट विलेज़ (Freight Village) विकसित करने के प्रस्ताव को मंज़ूरी दी है।
प्रमुख बिंदु
- वाराणसी फ्रेट विलेज़ का विकास भारतीय अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण के द्वारा किया जाएगा।
- यह एक कार्गो हब के रूप में काम करेगा और माल एकत्रित करने एवं उसके मूल्यवर्द्धन का भी एक केंद्र होगा। यह वाराणसी में एक पेशेवर लॉजिस्टिक्स उद्योग के विकास को भी प्रोत्साहित करेगा।
- फ्रेट विलेज़ की भूमि का मालिक IWAI (Inland Waterways Authority of India) होगा लेकिन इसका कुछ हिस्सा लॉजिस्टिक्स कंपनियों और जलमार्ग से संबंधित विनिर्माण एवं व्यापारिक कंपनियों को बाज़ार स्थितियों के अनुसार तय मूल्यों एवं निर्धारित शर्तों पर पट्टे पर दिया जाएगा ताकि वे अपना कारोबार स्थापित कर सकें।
- यह फ्रेट विलेज़ कंटेनर, बल्क एवं ब्रेक-बल्क कार्गो, तरल थोक और बैग वाले कार्गो सहित विविध कार्गो प्रोफाइल को अपनी सेवाएँ मुहैया करा सकता है।
क्या होता है फ्रेट विलेज़?
- फ्रेट विलेज़ एक ऐसा निर्दिष्ट क्षेत्र है जहाँ परिवहन के विभिन्न साधन, माल वितरण और अन्य लॉजिस्टिक्स सुविधाएँ सिंक्रनाइज तरीके से बड़े पैमाने पर उपलब्ध होती हैं।
- फ्रेट विलेज़ का मुख्य कार्य परिवहन के विभिन्न साधनों का प्रबंधन एवं उनकी उपयोगिता सुनिश्चित करना, उनमें तालमेल बिठाना और मौजूदा परिवहन साधनों में भीड़भाड़ को कम करना है।
- फ्रेट विलेज़ बुनियादी तौर पर एक कार्गो एग्रीगेटर होता है जो शिपर/कार्गो मालिक को विभिन्न लॉजिस्टिक विकल्प यानी रेल-सड़क, रेल-जलमार्ग, सड़क-जलमार्ग आदि प्रदान करता है।
- यह पसंदीदा लॉजिस्टिक विकल्प कम इष्टतम/ सबसे कम लॉजिस्टिक लागत पर आधारित होता है जो शिपर/कार्गो मालिक से वसूला जा सकता है।
- माल ढुलाई संबंधी विभिन्न गतिविधियाँ एक ही छत के नीचे उपलब्ध होने और उनमें समन्वय से कारोबारी सुगमता सुनिश्चित होती है। साथ ही इससे माल की ढुलाई के लिये ट्रक क्षमता का बेहतर उपयोग संभव हो पाता है और कारोबारी गतिविधियों एवं आर्थिक दक्षता में सुधार हो सकता है।
वाराणसी ही क्यों?
- विश्व बैंक (World Bank) के एक पूर्व-व्यवहार्यता अध्ययन में पाया गया कि वाराणसी, फ्रेट विलेज़ के लिये एक उपयुक्त जगह है।
- यह शहर सामरिक दृष्टि से भी उपयुक्त जगह पर स्थित है और यह ईस्टर्न ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर की लॉजिस्टिक्स श्रृंखला का मध्य बिंदु है जहाँ से राष्ट्रीय जलमार्ग-1, ईस्टर्न डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर (ईडीएफसी), राष्ट्रीय राजमार्ग-7 और राष्ट्रीय राजमार्ग-2 गुज़रते हैं।
- जल मार्ग विकास परियोजना के तहत बन रहे मल्टी मोडल टर्मिलन के चालू होने पर वाराणसी के अंतर्देशीय जलमार्ग पर यातायात में वृद्धि होने की उम्मीद है।
स्रोत : पी.आई.बी
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
विभिन्न देशों के साथ केंद्र सरकार ने दी कई समझौतों को मंज़ूरी
केंद्र सरकार ने वैश्विक जगत में अपनी मज़बूत उपस्थिति दर्ज़ कराने और द्विपक्षीय संबंधों को मज़बूत बनाने के लिये कई देशों के साथ सहयोग समझौतों को मंज़ूरी दी है।
संक्षिप्त में इनका विवरण निम्नानुसार है:
1. बाह्य अंतरिक्ष के शांतिपूर्ण इस्तेमाल के लिये भारत-ताजिकिस्तान समझौता : यह समझौता पृथ्वी के दूरसंवेदी, सेटेलाइट संचार, सेटेलाइट आधारित नैविगेशन, अंतरिक्ष विज्ञान तथा ग्रहों की खोज, अंतरिक्ष विज्ञान और अंतरिक्ष प्रणालियों तथा ग्राउंड सिस्टम, अंतरिक्ष टेक्नोलॉजी ऐप्लीकेशन सहित अंतरिक्ष विज्ञान टेक्नोलॉजी तथा एप्लीकेशनों में सहयोग की संभावनाओं में सहायक होगा। इस समझौते से एक संयुक्त कार्यसमूह बनेगा जो इसे लागू करने की समय-सीमा और उपायों सहित एक कार्य योजना तैयार करेगा। कार्यसमूह में डीओएस/ इसरो तथा ताजिकिस्तान की लैंड मैनेजमेंट तथा जियोडेसी स्टेट कमेटी के सदस्य होंगे। (ऐसे ही समझौते भारत ने उज़्बेकिस्तान, मोरक्को, अल्जीरिया आदि देशों के साथ भी किये हैं)
2. भूगर्भ, खनन एवं खनिज संसाधनों के क्षेत्र में भारत-ज़िम्बाब्वे समझौता: इस समझौते से भारत और ज़िम्बाब्वे के बीच चयनित क्षेत्रों में सहयोग के लिये संस्थागत प्रणाली उपलब्ध होगी। संसाधनों, कानूनों और नीतियों पर आधारित जानकारी का आदान-प्रदान करना, विकास से जुड़ी रणनीतियों पर विचारों के आदान-प्रदान के लिये विचार गोष्ठियाँ आयोजित करना, दोनों पक्षों के बीच प्रौद्योगियों के हस्तांतरण को बढ़ावा देना, खनन क्षेत्र में मूल्य संवर्द्धन को बढ़ावा देना और निवेश के अवसर तैयार करना इस समझौते के उद्देश्य हैं।
3. स्वास्थ्य देखभाल और आरोग्य के लिये भारत-जापान समझौता: इस समझौते से पारंपरिक औषधि प्रणाली के क्षेत्र में दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय सहयोग को बढ़ावा मिलेगा। शोध, प्रशिक्षण, सम्मेलन, बैठक तथा विशेषज्ञों की नियुक्ति पर आने वाला खर्च आयुष मंत्रालय के बजट से पूरा किया जाएगा।
4. डाक क्षेत्र में सहयोग के लिये भारत-जापान सहयोग-समझौता: इस समझौते से भारत और जापान के बीच डाक सेवाओं में सुधार होगा और डाक क्षेत्र में सहयोग बढ़ेगा। डाक नीति के संबंध में दोनों पक्ष अपने अनुभवों के आधार पर सूचनाएँ साझा करेंगे।
5. पर्यावरण सहयोग के क्षेत्र में भारत-जापान के बीच सहयोग: इस सहयोग ज्ञापन से दोनों देश के उपयुक्त कानूनों और कानूनी प्रावधानों को ध्यान में रखते हुए समानता, पारस्परिकता और आपसी लाभ के आधार पर प्राकृतिक संसाधनों के प्रबंधन और पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में सहयोग बढ़ाएंगे। इसके तहत दोनों देशों के बीच सूचना और प्रौद्योगिकी का आदान-प्रदान करना भी शामिल है।
6. ऊर्जा सक्षमता और ऊर्जा संरक्षण के लिये भारत-फ्रांस समझौता: यह विज्ञान और प्रौद्योगिकी समझौता है, जिसमें केवल तकनीकी सहायता हेतु ज्ञान का आदान-प्रदान और सहयोग शामिल है। यह समझौता ज्ञापन ऊर्जा सक्षमता बढ़ाने तथा मांग प्रबंधन से संबंधित नीतियों, कार्यक्रमों और टेक्नोलॉजी पर सूचना के आदान-प्रदान को बढ़ावा देगा। इस समझौते से ऊर्जा सक्षमता के बारे में जागरूकता पैदा होगी। इससे कार्बन उत्सर्जनों तथा वैश्विक उत्सर्जन की निगरानी के लिये डेटा के संग्रहण, उपयोग तथा विश्लेषण के लिये तंत्र विकसित होंगे।
7. मानव अंतरिक्ष उड़ान कार्यक्रम के तहत संयुक्त गतिविधियों पर भारत-रूस समझौता: इस समझौते से भारत और रूस के बीच सहयोग मज़बूत होगा और रेडियेशन शील्डिंग, लाइफ स्पोर्ट सिस्टम, क्रू मॉड्यूल, मीटिंग पॉइंट तथा डॉकिंग प्रणाली, अंतरिक्ष कक्ष, अंतरिक्ष यात्रियों के लिये प्रशिक्षण जैसे मानव अंतरिक्ष उड़ान कार्यक्रम के लिये टेक्नोलॉजी तथा अग्रिम प्रणालियाँ विकसित करने के काम को गति मिलेगी।
8.पृथ्वी विज्ञान में वैज्ञानिक तथा तकनीकी सहयोग पर भारत-अमेरिका समझौता: इसके तहत दोनों देशों के संगठनों के पास उपलब्ध विशेषज्ञता साझा करने में मदद मिलेगी और पृथ्वी विज्ञान के क्षेत्र में अत्याधुनिक टेक्नोलॉजी अपनाई जा सकेगी। सहयोग के विशेष क्षेत्रों में ईको प्रणालियाँ, जलवायु अस्थिरता तथा भूमि उपयोग परिवर्तनों, ऊर्जा, खनिज संपदा, पर्यावरण, प्राकृतिक संकटों, जोखिम तथा मूल्यांकन दृढ़ता, जल संसाधन, इन्फोर्मेटिक्स तथा डेटा एकीकरण के क्षेत्र शामिल हैं।
9.संयुक्त डाक टिकट जारी करने पर भारत-आर्मेनिया समझौता: इसके तहत संचार मंत्रालय का डाक विभाग और आर्मेनिया का राष्ट्रीय डाक संचालक (‘HayPost CJSC) पारस्परिक रूप से नृत्य विषय पर संयुक्त डाक टिकट जारी करने पर सहमत हुए। स्मृति डाक टिकटों में भारत के मणिपुरी नृत्य तथा आर्मेनिया के हौब एरेक नृत्य दिखाए गए हैं।
स्रोत : पी.आई.बी
प्रारंभिक परीक्षा
प्रीलिम्स फैक्ट्स : 07 दिसंबर, 2018
युवाओं के लिये राष्ट्रीय चुनौती (NATIONAL CHALLENGE for Youth)
हाल ही में छात्रों और युवाओं को समुदायों की समस्याओं के समाधान के लिये संकटमोचक बनने हेतु एक मंच के तौर पर ‘भारत के लिये संकल्प- प्रौद्योगिकी का उपयोग कर रचनात्मक समाधान’ (Ideate for India- Creative Solutions using Technology) नामक कार्यक्रम की शुरुआत की गई।
- यह चुनौती इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी के राष्ट्रीय ई-गवर्नेंस विभाग एवं इंटेल इंडिया की साझेदारी और मानव संसाधन विकास मंत्रालय के स्कूल शिक्षा और साक्षरता विभाग (Department of School Education and Literacy (DoSE&L) के सहयोग से शुरू की गई है।
- यह राष्ट्रीय चुनौती पूरे देश में कक्षा 6-12वीं तक के छात्रों के लिये है जिसका उद्देश्य अगले 3 महीनों में कम-से-कम एक मिलियन युवाओं तक पहुँचना है।
- इस चुनौती के तहत छात्रों को ऑनलाइन वीडियो के माध्यम से समस्याओं की पहचान कर उनके समाधान हेतु 90 सेकंड का वीडियो साझा करना होगा।
- इन विशेषज्ञों द्वारा शीर्ष 50 छात्रों का चयन कर उनके आदर्श प्रदर्शन के लिये उन्हें टेक क्रिएशन चैंपियंस घोषित किया जाएगा।
- इसमें स्वास्थ्य देखभाल सेवाएँ, शिक्षा सेवाएँ, डिजिटल सेवाएँ, पर्यावरण, महिला सुरक्षा, यातायात, आधारभूत संरचना, कृषि, सामाजिक कल्याण, अक्षमता और पर्यटन जैसे 11 विशेष क्षेत्र शामिल हैं जिन पर छात्र अपने विचार साझा कर सकते हैं।
हैंड-इन-हैंड (Hand-in-Hand)
भारत और चीन की सेना के बीच 10-23 दिसंबर, 2018 तक चीन के चेंगदू क्षेत्र में वार्षिक संयुक्त सेना अभ्यास 'हैंड-इन-हैंड' का आयोजन किया जाएगा। उल्लेखनीय है कि डोकलाम विवाद के बाद उत्पन्न तनाव के कारण गत वर्ष इस अभ्यास को रद्द कर दिया गया था।
- दोनों देशों के लगभग 175 सैन्यकर्मी इस अभ्यास में भाग लेंगे।
- इस अभ्यास में भारत का प्रतिनिधित्व उत्तरी कमान के 11 सिख लाइट रेजिमेंट के सैनिकों द्वारा किया जाएगा।
- यह अभ्यास तीन चरणों में आयोजित किया जाएगा।
- इस युद्धाभ्यास का उद्देश्य दोनों देशों की सेनाओं के बीच निकटतापूर्ण संबंध को बढ़ावा देना और मानवीय सहायता और आपदा राहत संचालन के अलावा, अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद को समझना तथा उसका सामना करने के लिये संयुक्त रणनीति तैयार करना है।
विविध
Rapid Fire करेंट अफेयर्स (07 December)
- 7 दिसंबर: भारतीय सशस्त्र सेना झंडा दिवस; इस दिन सशस्त्र सेनाओं के लिये धनराशि का संग्रह किया जाता है। यह धन लोगों को झंडे का स्टीकर देकर इकट्ठा किया जाता है। इस धन का इस्तेमाल विभिन्न युद्धों में शहीद हुए सैनिकों के परिवारों या हताहत हुए सैनिकों के कल्याण व पुनर्वास में खर्च किया जाता है
- केंद्र सरकार ने जलियांवाला बाग राष्ट्रीय स्मारक अधिनियम, 1951 में संशोधन को दी मंज़ूरी; समुचित संशोधन करना है इस निर्णय का लक्ष्य; इसके बाद ट्रस्ट के रूप में काम कर सकेगा जलियांवाला बाग राष्ट्रीय स्मारक
- आर्थिक मामलों की कैबिनेट कमिटी ने पावर फाइनेंस कॉर्पोरेशन में REC के विलय को मंज़ूरी दे दी; सरकार REC में अपनी 52.63 फीसदी हिस्सेदारी पावर फाइनेंस कॉर्पोरेशन को बेचेगी; REC को ग्रामीण विद्युतीकरण निगम यानी Rural Electrification Corporation के नाम से जाना जाता है
- केंद्र सरकार ने ESI अस्पतालों में उन लोगों को भी इलाज मुहैया कराने का फैसला किया है, जो इसके दायरे में नहीं आते; इन अस्पतालों की पूरी क्षमता का इस्तेमाल करने के लिये लिया गया यह फैसला; सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं के लिये तय दरों का 25 फीसदी देकर करा सकेंगे इलाज; पायलट परियोजना के तहत सालभर तक दवाएँ मूल कीमत पर दी जाएंगी
- महाराष्ट्र ने राज्य में ग्रामीण बदलाव और एग्री-बिज़नेस को बढ़ावा देने के लिये शुरू की SMART पहल; State of Maharashtra Agribusiness and Rural Transformation है इसका पूरा नाम, लगभग एक-चौथाई राज्य को कवर किया जाएगा इस पहल के तहत, विश्व बैंक भी सहायता करेगा SMART पहल में
- ओडिशा सरकार ने PEETHA नाम की एक योजना शुरू की है, इसका पूरा नाम Peoples Empowerment- Enabling Transparency and Accountability है; यह योजना Technology, Transparency and Team Work model यानी 3T पहल का एक हिस्सा है; इसके तहत सरकार द्वारा हर महीने ग्राम पंचायत स्तर पर शिविर आयोजित किये जाएंगे
- पूसा, दिल्ली के भारतीय कृषि अनुसंधान परिसर में बनाया जाएगा ‘पूसा किसान हाट’; इसमें बनाए जाने वाले 60 स्टाल्स में किसान अपने उन्नत उत्पाद बेच सकेंगे; युवाओं को कृषि शिक्षा की ओर आकर्षित करने के लिये और विद्यार्थियों की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए एक अंतर्राष्ट्रीय हॉस्टल बनाने की भी योजना है
- हाल ही में पूर्वोत्तर क्षेत्र के लिये नीति फोरम की बैठक का गुवाहाटी में हुआ आयोजन; पूर्वोत्तर क्षेत्र के विकास की समीक्षा के लिये फरवरी 2018 में किया गया था ‘पूर्वोत्तर क्षेत्र नीति फोरम’ का गठन; पूर्वोत्तर क्षेत्र के तीव्र, समावेशी और सतत विकास के रास्ते में आने वाली बाधाओं की पहचान करना और इन्हें दूर करने के लिये अनुशंसाएं प्रदान करना है नीति फोरम का लक्ष्य
- बिहार के रोहतास ज़िले में कैमूर की पहाड़ियों पर महापाषाण काल के लगभग 10 मेगालिथ मिले; भारत में मेगालिथ संस्कृति का उदय दक्षिण भारत में हुआ माना जाता है; पत्थर के बड़े स्तंभ को मेगालिथ कहा जाता है, जिनके ज़रिये मृत व्यक्तियों की याद को संजोया जाता था
- अंतर्राष्ट्रीय रेटिंग एजेंसी फिच ने अगले दो वित्त वर्षों के लिये भारत की आर्थिक विकास दर का अनुमान घटा दिया है; चालू वित्त वर्ष के दौरान भारत की आर्थिक विकास दर 7.2 फीसदी रहने का अनुमान जताया गया है; हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक ने चालू वित्त वर्ष के लिये विकास दर 7.5 फीसदी रहने का अनुमान जताया था
- अमेरिका के साथ चल रहे ट्रेड वॉर को समाप्त करने के लिये चीन सहमति के सभी उपायों को तुरंत लागू करने पर सहमत हो गया है; दोनों पक्षों के बीच कृषि उत्पाद, ऊर्जा; ऑटोमोबाइल तथा कुछ अन्य क्षेत्रों पर रजामंदी हुई है, जिन पर दोनों पक्ष तत्काल अमल करेंगे; WTO ने भी ट्रेड वॉर को किसी भी देश के हित में नहीं बताया है
- क्रोएशिया की फुटबॉल टीम के कप्तान लुका मोड्रिक को फ्राँस फुटबाल द्वारा बैलन डी'ओर पुरस्कार दिया गया; पहली बार महिला वर्ग में भी नॉर्वे की स्ट्राइकर एडा हेडेरबर्ग को बैलन डी' ओर पुरस्कार दिया गया
- भारत के सर्वश्रेष्ठ ओपनिंग बैट्समैन माने जाने वाले गौतम गंभीर ने क्रिकेट के सभी फॉर्मेटों को अलविदा कह दिया; उन्होंने 58 टेस्ट मैचों में 41.96 की औसत से 4154 रन बनाए, जिसमें नौ शतकीय पारियाँ शामिल हैं; गौतम गंभीर ने 147 एकदिवसीय मैचों में 39.68 की औसत और 11 शतकीय पारियों की मदद से 5238 रन बनाए; T-20 में 27.41 की औसत से उन्होंने 37 मैचों में 7 अर्धशतकों की मदद से 932 रन बनाए