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डेली न्यूज़

  • 03 Mar, 2021
  • 55 min read
शासन व्यवस्था

NHRC द्वारा हीराकुंड विस्थापन मामले में नोटिस

चर्चा में क्यों?

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) ने ओडिशा और छत्तीसगढ़ के मुख्य सचिवों को छह दशक पहले महानदी पर निर्मित हीराकुंड बाँध के कारण विस्थापित लोगों की पीड़ा को कम करने के लिये की गई कार्रवाई के संबंध में नोटिस जारी किया है।

  • हीराकुंड बाँध के निर्माण के कारण लगभग 111 गाँव डूब गए और लगभग 22,000 परिवार इससे प्रभावित हुए, जबकि लगभग 19,000 परिवार विस्थापित हो गए थे।

प्रमुख बिंदु:

  • हीराकुंड बाँध परियोजना:

    • स्थापना:
      • इस परियोजना की कल्पना महानदी में विनाशकारी बाढ़ की पुनरावृत्ति देखने के बाद एम. विश्वेश्वरैया द्वारा वर्ष 1937 में की गई। इसकी पहली हाइड्रो पॉवर परियोजना को वर्ष 1956 में अधिकृत किया गया।
    • अवस्थिति:
      • यह बाँध ओडिशा राज्य के संबलपुर शहर से लगभग 15 किलोमीटर की दूरी पर महानदी पर बनाया गया है।
    • उद्देश्य:
      • सिंचाई: इस परियोजना के माध्यम से संबलपुर, बरगढ़, बोलनगीर और सुबरनपुर ज़िलों में 1,55,635 हेक्टेयर खरीफ और 1,08,385 हेक्टेयर रबी फसलों के लिये सिंचाई की सुविधा उपलब्ध कराई गई है।
      • पॉवर हाउस के माध्यम से छोड़े गए पानी से महानदी के डेल्टा में 4,36,000 हेक्टेयर क्षेत्र की सिंचाई की जाती है।
    • विद्युत निर्माण: इस बाँध से 22 किलोमीटर नीचे दाहिने किनारे पर स्थित बुरला और चिपलिमा में दो पॉवर हाउसों की बिजली उत्पादन की स्थापित क्षमता 347.5 मेगावाट है।
    • बाढ़ नियंत्रण: यह परियोजना कटक और पुरी ज़िलों में 9500 वर्ग किलोमीटर डेल्टा क्षेत्र सहित महानदी बेसिन को बाढ़ से सुरक्षा प्रदान करती है।
  • महानदी नदी:

    • महानदी नदी प्रणाली गोदावरी और कृष्णा के बाद प्रायद्वीपीय भारत की तीसरी सबसे बड़ी और ओडिशा राज्य की सबसे बड़ी नदी है।
    • नदी का जलग्रहण क्षेत्र छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, ओडिशा, झारखंड और महाराष्ट्र तक फैला हुआ है।
    • इसका बेसिन उत्तर में मध्य भारत की पहाड़ियों, दक्षिण और पूर्व में पूर्वी घाट तथा पश्चिम में मैकाल रेंज से घिरा है।
    • स्रोत:
      • यह छत्तीसगढ़ राज्य में अमरकंटक के दक्षिण में सिहावा के पास बस्तर पहाड़ियों से निकलती है।
      •  
        • महानदी की सहायक नदियाँ:
          • शिवनाथ नदी
          • हसदेव नदी
          • बोराई नदी
          • मांड नदी
          • इब नदी
          • जोंक नदी
          • तेल नदी
        • महानदी विवाद: केंद्र सरकार ने वर्ष 2018 में महानदी जल विवाद न्यायाधिकरण का गठन किया।

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग:

  • यह मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम (PHRA), 1993 के तहत 12 अक्तूबर, 1993 को स्थापित एक वैधानिक निकाय है। इसे मानवाधिकार संरक्षण (संशोधन) अधिनियम, 2006 और मानवाधिकार (संशोधन) अधिनियम, 2019 द्वारा संशोधित किया गया।
  • PHRA अधिनियम राज्य स्तर पर एक राज्य मानवाधिकार आयोग के गठन का भी प्रावधान करता है।अंतर्राष्ट्रीय दायित्व: ‘संयुक्त राष्ट्र पेरिस सिद्धांतों ’ द्वारा अंतर्राष्ट्रीय मानदंड स्थापित किये गए हैं जो यह तय करते हैं कि किस राष्ट्रीय मानवाधिकार संस्थान को ‘राष्ट्रीय मानवाधिकार संस्थानों के वैश्विक गठबंधन’ (GANHRI) द्वारा मान्यता प्राप्त हो सकती है। भारत में PHRA अधिनियम, 1993 को पारित करके पेरिस सिद्धांतों (1993) को लागू किया गया।
  • मानवाधिकारों का रक्षक: NHRC का निर्माण मानवाधिकारों के संवर्द्धन और संरक्षण के लिये किया गया है।
  • PHRA की धारा 2 (1) (d) मानवाधिकारों को जीवन से संबंधित अधिकारों, स्वतंत्रता, समानता और संविधान द्वारा गारंटीकृत व्यक्ति की गरिमा या अंतर्राष्ट्रीय वाचाओं में सन्निहित तथा भारत में न्यायालयों द्वारा लागू किये जाने के रूप में परिभाषित करती है।
  • संघटन: NHRC एक बहु-सदस्यीय निकाय है जिसमें एक अध्यक्ष और चार सदस्य होते हैं। कोई व्यक्ति जो भारत का मुख्य न्यायाधीश या सर्वोच्च न्यायालय का न्यायाधीश रहा हो, इसका अध्यक्ष होता है।
  • नियुक्ति: जिसके अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा गठित छः सदस्यीय समिति की सिफारिशों पर की जाती है, जिसमें प्रधानमंत्री, लोकसभा अध्यक्ष, राज्यसभा उपसभापति , संसद के दोनों सदनों में विपक्ष के नेता और केंद्रीय गृह मंत्री शामिल होते हैं। ।
  • कार्यकाल: इसके अध्यक्ष और सदस्यों का कार्यकाल तीन वर्ष की अवधि या 70 वर्ष की आयु प्राप्त करने तक (जो भी पहले हो) होता है।
  • राष्ट्रपति कुछ परिस्थितियों में अध्यक्ष या किसी भी सदस्य को पद से हटा सकता है।
  • कार्य:
    • सिविल कोर्ट की शक्तियाँ:
      • इसके पास सिविल कोर्ट की सभी शक्तियाँ होती हैं और इसकी कार्यवाही का स्वरूप न्यायिक होता है।
      • इसे मानवाधिकारों के उल्लंघन की शिकायतों की जाँच के उद्देश्य से केंद्र सरकार या राज्य सरकार के किसी अधिकारी या जाँच एजेंसी की सेवाओं का उपयोग करने का अधिकार है।
      • यह किसी घटना के एक वर्ष के भीतर उससे संबंधित मामलों को देख सकता है, अर्थात् आयोग को किसी भी ऐसे मामले में पूछताछ का अधिकार नहीं है, जिसमें उस तिथि से एक वर्ष की समाप्ति के बाद मानवाधिकारों का उल्लंघन करने का आरोप लगाया गया हो।
    • सिफारिश करने की शक्ति:
      • आयोग के कार्य मुख्य रूप से सिफारिशी प्रकृति के होते हैं। इसके पास मानवाधिकारों के उल्लंघन करने वालों को दंडित करने की कोई शक्ति नहीं है, न ही यह पीड़ित को मौद्रिक राहत सहित कोई राहत दे सकता है।
      • इसकी सिफारिशें संबंधित सरकार या प्राधिकरण के लिये बाध्यकारी नहीं हैं। लेकिन एक महीने के भीतर इसकी सिफारिशों पर की गई कार्रवाई के बारे में सूचित किया जाना चाहिये।
      • सशस्त्र बलों के सदस्यों द्वारा मानवाधिकारों के उल्लंघन के मामले में इसकी भूमिका, शक्तियाँ और अधिकार क्षेत्र सीमित है।
      • निजी क्षेत्र द्वारा मानवाधिकारों का उल्लंघन किये जाने पर इसे कार्रवाई करने का अधिकार नहीं है।

स्रोत- द हिंदू


शासन व्यवस्था

राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा अभियान की समीक्षा

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय शिक्षा मंत्री ने राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा अभियान (Rashtriya Uchchatar Shiksha Abhiyan- RUSA) पर आयोजित समीक्षा बैठक की अध्यक्षता की।

प्रमुख बिंदु

  • राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा अभियान के विषय में:

    • लक्ष्य: इसका लक्ष्य पूरे देश में उच्च शिक्षा संस्थानों को रणनीतिक वित्तपोषण प्रदान करना है।
      • इस अभियान के तहत राज्यों के विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में समानता, सभी की पहुँच और उत्कृष्टता बढ़ाने के लिये आर्थिक सहायता प्रदान की जाती है।
    • वित्तपोषण: RUSA को अक्तूबर 2013 में शुरू किया गया था, यह एक केंद्र प्रायोजित योजना है।
      • केंद्र सरकार वर्ष 2016-17 से RUSA पर हर साल औसतन 1,500 करोड़ रुपए खर्च करती है।
    • उद्देश्य:
      • राज्य संस्थानों की समग्र गुणवत्ता में निर्धारित मानदंडों और मानकों के अनुरूप सुधार करना।
      • एक अनिवार्य गुणवत्ता आश्वासन ढाँचे के रूप में मान्यता (योग्यता का प्रमाणन) को अपनाना।
      • राज्य विश्वविद्यालयों में स्वायत्तता को बढ़ावा देना और संस्थानों के शासन में सुधार करना।
      • संबद्धता, शैक्षणिक और परीक्षा प्रणाली में सुधार सुनिश्चित करना।
      • सभी उच्च शिक्षण संस्थानों में गुणवत्ता युक्त संकायों की उपलब्धता और रोज़गार के सभी स्तरों पर क्षमता निर्माण सुनिश्चित करना।
      • उच्च शिक्षा प्रणाली में अनुसंधान के लिये एक सक्षम वातावरण बनाना।
      • अनछुए और अछूते क्षेत्रों में संस्थानों की स्थापना कर उच्च शिक्षा की पहुँच में क्षेत्रीय असंतुलन को समाप्त करना।
      • उच्च शिक्षा के क्षेत्र में वंचितों को पर्याप्त अवसर प्रदान करके इस क्षेत्र में होने वाले पक्षपात को समाप्त किया जा सकेगा।
    • निगरानी: केंद्रीय मंत्रालय द्वारा राज्य सरकारों और केंद्रशासित प्रदेशों के माध्यम से धन प्रदान किया जाता है, जो इस योजना की शैक्षणिक, प्रशासनिक तथा वित्तीय प्रगति की निगरानी में केंद्रीय परियोजना मूल्यांकन बोर्ड (Central Project Appraisal Board) की सहायता करते हैं।
  • बैठक की मुख्य विशेषताएँ:

    • सकल नामांकन अनुपात: GER को वर्ष 2035 तक 50% तक बढ़ाने के लिये अतिरिक्त 3.5 करोड़ छात्रों को शिक्षित करने की योजना तैयार करने की आवश्यकता है।
      • सकल नामांकन अनुपात:
        • भारत में उच्च शिक्षा हेतु कुल पात्र आबादी (18-23 वर्ष आयु वर्ग) और उच्च शिक्षा में कराए गए कुल सकल नामांकन के अनुपात को सकल नामांकन अनुपात (Gross Enrolment Ratio) कहा जाता है।
        • उच्च शिक्षा पर अखिल भारतीय सर्वेक्षण (All India Survey on Higher Education) के अनुसार, उच्च शिक्षा में GER वर्ष 2017-18 में 25.8% से बढ़कर वर्ष 2018-19 में 26.3% हो गया है, जबकि निरपेक्ष रूप से नामांकन 3.66 करोड़ से बढ़कर 3.74 करोड़ हो गया है।
    • स्थानीय कौशल पर ध्यान: स्थानीय परिस्थितियों के अनुरूप रोज़गारपरक कौशल वाले कुल 7 करोड़ छात्रों को कॉलेजों और विश्वविद्यालयों से पास होना चाहिये। शिक्षा से स्थानीय रोज़गार पैदा होने चाहिये।
    • निगरानी: विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (University Grants Commission), RUSA योजना के अंतर्गत धन प्राप्त करने वाले संस्थानों द्वारा किये गए कार्यों की प्रगति की निगरानी करेगा।

स्रोत: पी.आई.बी.


जैव विविधता और पर्यावरण

PSLV की 53वीं उड़ान

चर्चा में क्यों?

हाल ही में इसरो द्वारा PSLV-C51 का सफलतापूर्वक प्रक्षेपण किया गया। यह इसरो के प्रक्षेपण यान की 53वीं उड़ान थी और साथ ही इसरो की वाणिज्यिक शाखा, ‘न्यू स्पेस इंडिया लिमिटेड’ (NSIL) का पहला समर्पित मिशन था।

  • इस उड़ान में श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र (SHAR) से इसरो द्वारा भारत के 5, अमेरिका के 13, ब्राज़ील का ऑप्टिकल पृथ्वी अवलोकन उपग्रह अमेज़ोनिया-1 (Amazonia-1) और 18 सह-यात्री उपग्रहों (Co-Passenger Satellites) को सफलतापूर्वक लॉन्च किया किया गया।
    • SHAR, श्रीहरिकोटा भारत का स्पेसपोर्ट (Spaceport) है जो भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रमों को लॉन्च करने हेतु अवसंरचनात्मक आधार प्रदान करता है।

प्रमुख बिंदु:

  • ब्राज़ील का उपग्रह अमेज़ोनिया-1:

    • अमेज़ोनिया-1 के बारे में:
      • 637 किलोग्राम वज़नी अमेज़ोनिया-1, ब्राज़ील के नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर स्‍पेस रिसर्च का पृथ्‍वी पर्यवेक्षण उपग्रह (Earth Observation Satellite) है। इस उपग्रह को सूर्य तुल्यकालिक ध्रुवीय कक्षा (Sun-Synchronous Polar Orbit) में 758 किमी. की ऊँचाई पर निर्धारित कक्षा में स्थापित किया गया है।
    • उद्देश्य:
      • अमेज़न क्षेत्र में निर्वनीकरण की निगरानी तथा ब्राज़ीलियाई क्षेत्र में विविध‍तापूर्ण कृषि का विश्‍लेषण करने के लिये प्रयोक्‍ताओं को सुदूर संवेदी आँकड़े प्रदान कर विद्यमान संरचना को और अधिक सुदृढ़ करना।
  • 5 भारतीय उपग्रह:

    • UNITYsat:
      • UNITYsat रेडियो प्रसारण सेवाएँ प्रदान करने के लिये लॉन्च किया गया तीन उपग्रहों का एक संयोजन है।
      • UNITYsat को जेप्पियार इंस्टीट्यूट आफ टेक्नोलॉजी, श्रीपेरम्बदूर (JITsat), जी एच रायसोनी कालेज आफ इंजीनियरिंग, नागपुर (GHRCEsat) और श्री शक्ति इंटीट्टयूट आफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी, कोयम्बटूर (Sri Shakthi Sat) द्वारा संयुक्त रूप से तैयार किया गया है।
    • SDSAT:
      • सतीश धवन उपग्रह (SDSAT) एक नैनो उपग्रह है जिसका उद्देश्य विकिरण के स्तरों/अंतरिक्ष मौसम का अध्ययन करना एवं लंबी दूरी की संचार तकनीकों का प्रदर्शन करना है।
      • इसे चेन्नई स्थित स्पेस किड्ज़ (शिक्षा के क्षेत्र में छात्रों हेतु नवोन्मेषी अवधारणाएँ तैयार करने के लिये समर्पित एक संगठन) द्वारा निर्मित गया है।
      • आत्मनिर्भर भारत और निजी कंपनियों के लिये अंतरिक्ष की राह खोलने वाले निर्णय के मामले में एकजुटता दिखाने और इस निर्णय के प्रति आभार व्यक्त करने के लिये SDSAT के शीर्ष पैनल पर भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तस्वीर उकेरी गई है।
      • इनके साथ ही एक SD कार्ड में भगवद्गीता को भी भेजा गया है, जो एकात्मकता को मानवता का सर्वोच्च रूप और सर्वोच्च सम्मान बताती है।
    • सिंधु नेत्र (Sindhu Netra):
      • इसे बंगलूरू स्थित PES विश्वविद्यालय के छात्रों द्वारा विकसित किया गया जिसके लिये रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) द्वारा 2.2 करोड़ रुपए का अनुबंध किया गया था।
      • यह उपग्रह इमेजिंग के माध्यम से संदिग्ध जहाज़ों की पहचान करने में मदद करेगा।
  • अमेरिका के उपग्रह:

    • PSLV-C51 द्वारा प्रमोचित उपग्रहों में से 13 उपग्रह अमेरिका के हैं, जिसमें एक प्रौद्योगिकी प्रदर्शन उपग्रह (SAI-1 नैनो कनेक्ट 2) तथा शेष दोतरफा संचार और डेटा प्रसारण (SpaceBEEs) से संबंधित हैं।
  • महत्त्व:

    • भारत-ब्राज़ील संबंधों को गति:
      • 2000 के दशक की शुरुआत से भारत और ब्राज़ील ने सरकारों के स्तर पर (वर्ष 2004) और अंतरिक्ष एजेंसियों के स्तर पर (वर्ष 2002 में ISRO और ब्राज़ीलियाई अंतरिक्ष एजेंसी AEB के मध्य) बाह्य अंतरिक्ष के अन्वेषण तथा शांतिपूर्ण उपयोग हेतु सहयोगात्मक समझौतों पर हस्ताक्षर किये हैं।
      • हाल ही में लॉन्च किया गया नया उपग्रह (अमेज़ोनिया-1) विभिन्न व्यापारिक और सरकारी अवसरों का मार्ग प्रशस्त करेगा। ब्राज़ील द्वारा अपने प्रक्षेपण वाहन कार्यक्रम के लिये सामग्री और प्रणालियों की खरीद में भारत से समर्थन का अनुरोध भी किया गया है।
    • नए अंतरिक्ष सुधारों का कार्यान्वयन:
      • PSLV-C51 द्वारा प्रमोचित पाँच भारतीय उपग्रहों का निर्माण भारत सरकार द्वारा घोषित नए अंतरिक्ष सुधारों के तहत किया गया था।
      • स्वीकृत सुधारों से अंतरिक्ष गतिविधियों की पूरी शृंखला में निजी क्षेत्र की भागीदारी को बढ़ावा मिलेगा।
      • सहयात्री उपग्रहों में से 4 के प्रमोचन के लिये इन-स्पेस (IN-SPACe) द्वारा हस्ताक्षर किये गए थे 14 उपग्रहों के वाणिज्यिक प्रमोचन के लिये NSIL के माध्यम से हस्ताक्षर किये गए थे।
    • IN-SPACe: यह अंतरिक्ष विभाग (DOS) के तहत एक स्वतंत्र नोडल एजेंसी है जो भारतीय अंतरिक्ष अवसंरचना का उपयोग करने हेतु निजी क्षेत्र की कंपनियों को समान अवसर उपलब्ध कराएगी।
    • NSIL: यह भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) की वाणिज्यिक शाखा है, जिसकी प्राथमिक ज़िम्मेदारी भारतीय उद्योगों को उच्च प्रौद्योगिकी की अंतरिक्ष गतिविधियों में सक्षम बनाना है। यह अंतरिक्ष संबंधी भारतीय उत्पादों और सेवाओं के प्रचार एवं व्यावसायिक उपयोग हेतु भी ज़िम्मेदार है।
    • अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के अनुप्रयोग:
      • इस तरह की परियोजनाएँ विभिन्न क्षेत्रों में अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के अनुप्रयोगों के विस्तार को प्रदर्शित करती हैं, जो ‘पर्यावरण और मानवीय जीवन को सहजता’ प्रदान करती हैं।

ध्रुवीय उपग्रह प्रमोचन वाहन:

  • भारत का ‘ध्रुवीय उपग्रह प्रमोचन वाहन’ (PSLV) तीसरी पीढ़ी का प्रमोचन वाहन है।
  • यह एक चार-चरणीय प्रमोचन वाहन है जिसके प्रथम और तीसरे चरण में ठोस रॉकेट मोटर्स तथा दूसरे एवं चौथे चरण में तरल रॉकेट इंजन का उपयोग किया जाता है।
  • यह तरल चरणों से युक्त प्रथम भारतीय प्रमोचन वाहन है।

क्षमता:

  • प्रारंभ में PSLV की वहन क्षमता 850 किलोग्राम थी, लेकिन बाद में इसे बढ़ाकर 1.9 टन कर दिया गया।

उपलब्धियाँ:

  • PSLV ने जियोस्टेशनरी ट्रांसफर ऑर्बिट (GTO), चंद्रमा, मंगल सहित अंतरिक्ष में लगभग सभी कक्षाओं में पेलोड ले जाने में मदद की है और शीघ्र ही इसकी सहायता से सूर्य के लिये भी एक मिशन शुरूकिया जाएगा।
  • वर्ष 1994-2019 के मध्य PSLV द्वारा 20 देशों के 70 से अधिक अंतर्राष्ट्रीय ग्राहकों हेतु 50 भारतीय उपग्रह और 222 विदेशी उपग्रह लॉन्च किये गए हैं।
  • इस पेलोड के सफल प्रक्षेपणों में चंद्रयान -1, मार्स ऑर्बिटर मिशन और स्पेस रिकवरी मिशन आदि शामिल हैं।
  • PSLV की अब तक दो उड़ानें विफल रही हैं जिसमें वर्ष 1993 में PSLV D1 की पहली उड़ान और वर्ष 2017 में PSLV C-39 की उड़ान शामिल हैं।


स्रोत: द हिंदू


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत-अमेरिका द्विपक्षीय व्यापार

चर्चा में क्यों:

संयुक्त राज्य व्यापार प्रतिनिधि (USTR) की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार, 'मेक इन इंडिया' अभियान के माध्यम से आयात प्रतिस्थापन पर भारत का हालिया ज़ोर भारत-अमेरिका द्विपक्षीय व्यापार संबंधों के सामने कई चुनौतियों में से एक है।

प्रमुख बिंदु:

  • भारत और अमेरिका के बीच द्विपक्षीय व्यापार:

    • वर्ष 2019-20 में अमेरिका और भारत के बीच द्विपक्षीय व्यापार 88.75 बिलियन अमेरिकी डॉलर का था।
    • संयुक्त राज्य अमेरिका उन देशों में से एक है जिनके साथ भारत व्यापार अधिशेष की स्थिति में है।
    • अमेरिका के साथ भारत का व्यापार अधिशेष वर्ष 2018-19 के 16.86 बिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर वर्ष 2019-20 में 17.42 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया।
    • सेवाओं के आयात के मामले में भारत, संयुक्त राज्य अमेरिका के लिये छठा सबसे बड़ा आपूर्तिकर्त्ता था।
    • भारत का वृहद् बाज़ार, आर्थिक विकास और विकास की दिशा में प्रोन्नति आदि स्थितियाँ इसे संयुक्त राज्य अमेरिका के निर्यातकों के लिये एक आवश्यक बाज़ार के रूप में प्रस्तुत करती हैं।
  • व्यापार से संबंधित मुद्दे:

    • टैरिफ: दोनों देश टैरिफ और गैर-टैरिफ बाधाओं के साथ ही विदेशी कंपनियों को हानि पहुँचाने वाली कई प्रथाओं और नियमों के साथ बाज़ार को नियंत्रित करते हैं।
    • सामान्‍य प्राथमिकता प्रणाली (Generalized System of Preferences- GSP): अमेरिका ने जून 2019 से GSP कार्यक्रम के तहत भारतीय निर्यातकों को मिलने वाले शुल्क मुक्त लाभ को वापस लेने का फैसला किया।
    • सेवाएँ: भारत के लिये एक प्रमुख समस्या अमेरिका की अस्थायी वीज़ा नीतियाँ हैं, जो संयुक्त राज्य अमेरिका में काम करने वाले भारतीय नागरिकों को प्रभावित करती हैं।
      • भारत दोनों देशों में कार्य करने वाले श्रमिकों के सामाजिक सुरक्षा संरक्षण के समन्वय के लिये एक "समग्रीकरण समझौते" की तलाश में है।
    • कृषि: भारत में ‘सैनिटरी और फाइटोसैनेटरी’ (SPS) बाधाएँ संयुक्त राज्य अमेरिका के कृषि निर्यात को सीमित करती हैं।
      • प्रत्येक पक्ष दूसरे के कृषि समर्थन कार्यक्रमों को बाज़ार विकृति के रूप में भी देखता है।
    • बौद्धिक संपदा: नवाचार को प्रोत्साहित करने और अन्य नीतिगत लक्ष्यों, जैसे-दवाओं तक पहुँच स्थापित करना आदि नियमों को संतुलित करने के लिये दोनों देशों के बौद्धिक संपदा संरक्षण नियम अलग-अलग हैं।
    • भारत वर्ष 2020 में पेटेंट, विभिन्न प्रतिबंध दरों और व्यापार संरक्षण की चिंताओं के आधार पर अमेरिका की ‘स्पेशल 301’ रिपोर्ट में ‘प्रायोरिटी वॉच लिस्ट’ पर बना हुआ है।
    • अनिवार्य स्थानीयकरण: संयुक्त राज्य अमेरिका भारत पर इसकी अनिवार्य स्थानीयकरण प्रथाओं को लेकर दवाब बनाता रहता है।
      • देश में डेटा भंडारण, घरेलू सामग्री (जैसे भारत के सौर क्षेत्र की रक्षा करने वाले कानून) और कुछ क्षेत्रों में घरेलू परीक्षण की आवश्यकताओं को बढ़ावा देने वाली विभिन्न विनिर्माण और रोज़गार आधारित पहलें।
      • इलेक्ट्रॉनिक भुगतान सेवा आपूर्तिकर्त्ताओं जैसे- मास्टर कार्ड, वीज़ा आदि के लिये भारत की नई डेटा स्थानीयकरण आवश्यकताएँ।
    • निवेश: निवेश बाधाओं के बारे में अमेरिका की चिंताएँ अभी भी बनी हुई हैं, ऐसे में नए ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म जैसे- अमेज़ॅन और वॉलमार्ट के स्वामित्व वाले फ्लिपकार्ट के व्यवसाय पर नए भारतीय प्रतिबंध बढाए गए हैं।
    • रक्षा व्यापार: अमेरिका भारत की रक्षा ऑफसेट नीति और रक्षा क्षेत्र में उच्च प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) में अधिक सुधारों का आग्रह करता है।

सामान्‍य प्राथमिकता प्रणाली (GSP):

  • सामान्‍य प्राथमिकता प्रणाली अमेरिका का एक व्यापार कार्यक्रम है जिसे 129 लाभार्थी देशों और क्षेत्रों के 4,800 उत्पादों के लिये प्राथमिकता आधारित शुल्क मुक्त प्रविष्टि प्रदान कर विकासशील दुनिया में आर्थिक विकास को बढ़ावा देने हेतु बनाया गया है।
  • 1 जनवरी, 1976 को वर्ष 1974 के व्यापार अधिनियम के तहत GSP की स्थापना की गई थी।

आगे की राह:

  • दोनों देशों में विशेष रूप से चीन विरोधी भावना बढ़ने के कारण द्विपक्षीय व्यापार को बढ़ावा मिलने की बहुत अधिक संभावना है।
  • इस प्रकार वार्ताओं को विभिन्न गैर-टैरिफ बाधाओं और बाज़ार पहुँच संबंधी सुधारों पर केंद्रित करना चाहिये।

स्रोत- द हिंदू


भारतीय अर्थव्यवस्था

राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम में संशोधन: नीति आयोग

चर्चा में क्यों?

नीति आयोग ने एक चर्चा पत्र (Discussion Paper) के माध्यम से राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA), 2013 के तहत ग्रामीण एवं शहरी कवरेज को क्रमशः 60 प्रतिशत और 40 प्रतिशत तक कम करने की सिफारिश की है।

  • इसमें नवीनतम जनसंख्या आँकड़ों के अनुरूप लाभार्थियों के संशोधन का भी प्रस्ताव किया गया है, जो कि वर्तमान में वर्ष 2011 की जनगणना पर आधारित है।

राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA), 2013

  • अधिसूचित: 10 सितंबर, 2013
  • उद्देश्य: इसका उद्देश्य एक गरिमापूर्ण जीवन जीने के लिये लोगों को वहनीय मूल्‍यों पर अच्‍छी गुणवत्तापूर्ण खाद्यान्‍न की पर्याप्‍त मात्रा उपलब्‍ध कराते हुए उन्‍हें खाद्य और पोषण सुरक्षा प्रदान करना है।
  • कवरेज: लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (TPDS) के तहत रियायती दर पर खाद्यान्न प्राप्त करने के लिये ग्रामीण आबादी का 75 प्रतिशत और शहरी आबादी का 50 प्रतिशत।
    • राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA) समग्र तौर पर देश की कुल आबादी के 67 प्रतिशत हिस्से को कवर करता है।
  • पात्रता
    • राज्य सरकार के दिशा-निर्देशों के अनुसार, लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (TPDS) के तहत आने वाले प्राथमिकता वाले घर।
    • अंत्योदय अन्न योजना के तहत कवर किये गए घर।
  • प्रावधान
    • प्रतिमाह प्रति व्यक्ति 5 किलोग्राम खाद्यान्न, जिसमें चावल 3 रुपए किलो, गेंहूँ 2 रुपए किलो और मोटा अनाज 1 रुपए किलो।
    • हालाँकि अंत्योदय अन्न योजना के तहत मौजूदा प्रतिमाह प्रति परिवार 35 किलोग्राम खाद्यान्न प्रदान करना जारी रहेगा।
    • गर्भवती महिलाओं और स्‍तनपान कराने वाली माताओं को गर्भावस्‍था के दौरान तथा बच्चे के जन्‍म के 6 माह बाद भोजन के अलावा कम-से-कम 6000 रुपए का मातृत्‍व लाभ प्रदान किये जाने का प्रावधानहै।
    • 14 वर्ष तक के बच्चों के लिये भोजन।
    • खाद्यान्न या भोजन की आपूर्ति नहीं होने की स्थिति में लाभार्थियों को खाद्य सुरक्षा भत्ता।
    • ज़िला और राज्य स्तर पर शिकायत निवारण तंत्र स्थापित करना।


प्रमुख बिंदु

  • वर्तमान लाभार्थियों की संख्या:

    • अंत्योदय अन्न योजना के तहत फरवरी 2021 तक लगभग 2.37 करोड़ परिवार या 9.01 करोड़ व्यक्ति शामिल थे।
    • वहीं लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (TPDS) के तहत आने वाले प्राथमिकता वाले घरों में कुल 70.35 करोड़ व्यक्ति शामिल थे।
  • नीति आयोग की सिफारिशों का महत्त्व

    • नीति आयोग के अनुमान के मुताबिक, यदि ग्रामीण-शहरी कवरेज अनुपात में कोई परिवर्तन नहीं किया जाता है तो नवीनतम जनसंख्या संबंधी आँकड़ों के आधार पर मौजूदा लाभार्थियों की कुल संख्या 81.35 करोड़ से बढ़कर 89.52 करोड़ (8.17 करोड़ की वृद्धि) हो जाएगी।
      • इसके परिणामस्वरूप 14,800 करोड़ रुपए की अतिरिक्त सब्सिडी की आवश्यकता होगी।
    • यदि कवरेज अनुपात को नीति आयोग द्वारा की गई सिफारिश के अनुसार संशोधित किया जाता है तो केंद्र सरकार को 47,229 करोड़ रुपए की बचत हो सकती है।
    • बचत की इस राशि का उपयोग अन्य महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों जैसे-स्वास्थ्य और शिक्षा में किया जा सकता है।
  • चुनौतियाँ
    • कोरोना वायरस महामारी के दौरान कवरेज अनुपात में कमी करना समाज के गरीब वर्ग पर दोहरा बोझ (बेरोज़गारी और खाद्य असुरक्षा) डालेगा।
    • कई राज्यों द्वारा इस कदम का विरोध किया जा सकता है।
  • अन्य सिफारिशें

    • शांता कुमार की अध्यक्षता में गठित उच्च स्तरीय समिति ने कवरेज अनुपात को जनसंख्या के 67 प्रतिशत से घटाकर 40 प्रतिशत तक करने की सिफारिश की थी।
      • समिति के मुताबिक, जनसंख्या का 67 प्रतिशत कवरेज काफी अधिक है और इसे लगभग 40 प्रतिशत तक सीमित किया जाना चाहिये, जिसके तहत आसानी से BPL परिवारों को कवर किया जा सकेगा।
    • आर्थिक सर्वेक्षण 2020-21 में केंद्रीय पूल से जारी खाद्यान्नों के केंद्रीय निर्गम मूल्य (CIP) में संशोधन की सिफारिश की गई थी, जो बीते कई वर्षों से अपरिवर्तित है।

केंद्रीय निर्गम मूल्य (CIP)

  • राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA) के तहत रियायती दरों पर लाभार्थियों को खाद्यान्न उपलब्ध कराया जाता है।
  • केंद्र सरकार किसानों से न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर अनाज खरीदती है और इसे केंद्रीय निर्गम मूल्य (CIP) पर राज्यों को बेचती है।
  • केंद्र सरकार द्वारा समय-समय पर केंद्रीय निर्गम मूल्य (CIP) का निर्धारण किया जाता है, किंतु यह न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) से अधिक नहीं होता है।


स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


कृषि

10,000 FPOs का गठन एवं संवर्द्धन

चर्चा में क्यों?

हाल ही में कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा केंद्रीय क्षेत्रक योजना '10,000 किसान उत्पादक संगठनों (एफपीओ) के गठन एवं संवर्द्धन' (Formation & Promotion of 10,000 Farmer Producer Organizations- FPOs) की प्रथम वर्षगाँठ मनाई गई।

प्रमुख बिंदु:

  • शुरुआत:

    • इसकी शुरुआत फरवरी 2020 में उत्तर प्रदेश के चित्रकूट में 6865 करोड़ रुपए के बजटीय प्रावधान के साथ की गई थी ।
  • FPOs के गठन एवं संवर्द्धन के बारे में:

    • वर्ष 2020-21 में FPOs के गठन हेतु 2200 से अधिक FPOs उत्पादन क्लस्टरों का आवंटन किया गया है।
    • कार्यान्वयन एजेंसियाँ (Implementing Agencies- IAs) प्रत्येक FPO को 5 वर्ष की अवधि हेतु संगठित करने, रजिस्टर करने और पेशेवर हैंडहोल्डिंग समर्थन (Professional Handholding
    • Support) प्रदान करने के उद्देश्य से क्लस्टर-आधारित व्यावसायिक संगठनों Cluster-Based Business Organizations- CBBOs) से जोड़ रही हैं।
      • CBBOs, FPO से संबंधित सभी मुद्दों पर जानकारी प्राप्त करने के लिये एक मंच प्रदान करेगा।
  • वित्तीय सहायता:

    • 3 वर्ष की अवधि हेतु प्रति FPO के लिये 18.00 लाख रुपए का आवंटन।
    • FPO के प्रत्येक किसान सदस्य को 2 हज़ार रुपए (अधिकतम 15 लाख रुपए प्रति एफपीओ) का इक्विटी अनुदान प्रदान किया जाएगा।
    • FPO को संस्थागत ऋण सुलभता सुनिश्चित करने के लिये पात्र ऋण देने वाली संस्था से प्रति एफपीओ 2 करोड़ रुपए तक की ऋण गारंटी सुविधा का प्रावधान किया गया है।
  • महत्त्व:

    • किसान की आय में वृद्धि:
      • यह किसानों के खेतों या फार्म गेट से ही उपज की बिक्री को बढ़ावा देगा जिससे किसानों की आय में वृद्धि होगी।
      • इससे आपूर्ति शृंखला छोटी होने के परिणामस्वरूप विपणन लागत में कमी आएगी जिससे किसानों को बेहतर आय प्राप्त होगी।
    • रोज़गार सृजन:
      • यह ग्रामीण युवाओं को रोज़गार के अधिक अवसर प्रदान करेगा तथा फार्म गेट के निकट विपणन और मूल्य संवर्द्धन हेतु बुनियादी ढांँचे में अधिक निवेश को प्रोत्साहित करेगा।
    • कृषि को व्यवहार्य बनाना:
      • यह भूमि को संगठित कर खेती को अधिक व्यवहार्य बनाएगा।
  • किसानों के लिये अन्य पहलें:

किसान उत्पादक संगठन:

  • निर्माता संगठन (PO) एक कानूनी संस्था है जिसका गठन प्राथमिक उत्पादकों द्वारा किया जाता है, इनमें किसान, दूध उत्पादक, मछुआरे, बुनकर, ग्रामीण कारीगर, शिल्पकार शामिल होते हैं।
    • PO किसी भी उत्पाद के उत्पादकों के संगठन का एक सामान्य नाम है जैसे- कृषि, गैर-कृषि उत्पाद, कारीगर उत्पाद आदि।
  • PO एक उत्पादन कंपनी, सहकारी समिति या कोई अन्य कानूनी फर्म हो सकती है जो सदस्यों के मध्य लाभ/लाभ के बँटवारे का प्रावधान करता है।
    • कुछ रूपों में निर्माता कंपनियाँ, प्राथमिक उत्पादकों के संस्थान PO के सदस्य बन सकते हैं।
  • 'किसान उत्पादक संगठनों (Farmer Producer Organizations- FPOs) में विशेष रूप से छोटे और सीमांत किसान उत्पादक शामिल होते हैं, ताकि कृषि की कई चुनौतियों का प्रभावी रूप सेसमाधान करने हेतु एक प्रभावी गठबंधन तैयार किया जा सके जैसे- निवेश, प्रौद्योगिकी, आदानों/निविष्टियांँ और बाज़ारों तक बेहतर पहुंँच। FPO, PO का एक प्रकार है जिसके सदस्य किसान होते हैं।
  • सामान्यतः संस्थानों/संसाधन एजेंसियों (RAs) को बढ़ावा देकर FPOs को गतिशीलता प्रदान की जा सकती है।
  • FPOs को बढ़ावा देने के उद्देश्य से संसाधन एजेंसियाँ (Resource Agencies) सरकारों तथा राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (NABARD) जैसी एजेंसियों से मिलने वाली सहायता का लाभ उठातीहैं।

स्रोत: पी.आई.बी


जैव विविधता और पर्यावरण

राइट-टू-रिपेयर: यूरोपीय संघ

चर्चा में क्यों?

यूरोपीय संघ (EU) में रेफ्रिजरेटर, वॉशिंग मशीन, हेयर ड्रायर या टेलीविज़न आदि बेचने वाली कंपनियों को यह सुनिश्चित करना होगा कि आगामी 10 वर्ष तक इन उपकरणों की मरम्मत की जा सके।

  • ‘राइट-टू-रिपेयर’ के नाम से जाना जा रहा यह अधिकार मार्च 2021 से 27 राष्ट्रों में लागू हुआ है।

प्रमुख बिंदु

  • परिचय

    • ‘राइट-टू-रिपेयर’ एक ऐसे अधिकार अथवा कानून को संदर्भित करता है, जिसका उद्देश्य उपभोक्ताओं को अपने स्वयं के उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की मरम्मत करने और उन्हें संशोधित करने की अनुमति देता है, जहाँ अन्यथा ऐसे उपकरणों के निर्माता उपभोक्ताओं को केवल उनके द्वारा प्रस्तुत सेवाओं का उपयोग करने की अनुमति देते हैं।
    • ‘राइट-टू-रिपेयर’ का विचार मूल रूप से अमेरिका से उत्पन्न हुआ था, जहाँ ‘मोटर व्हीकल ओनर्स राइट टू रिपेयर एक्ट, 2012’ किसी भी व्यक्ति को वाहनों की मरम्मत करने में सक्षम बनाने के लिये वाहन निर्माताओं को सभी आवश्यक दस्तावेज़ और जानकारी प्रदान करना अनिवार्य बनाता है।
  • नए नियम

    • यूरोपीय संघ के नए नियमों के तहत निर्माताओं को यह सुनिश्चित करना होगा कि कम-से-कम एक दशक तक किसी भी उपकरण के पार्ट्स उपलब्ध रहें, हालाँकि कुछ पार्ट्स केवल विशिष्ट पेशेवर कंपनियों को ही प्रदान किये जाएंगे, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि उनका प्रयोग सही तरीके से हो।
    • अब से नए उपकरणों को मरम्मत के लिये आवश्यक सूचनाओं और दस्तावेज़ों के साथ ही निर्मित किया जाएगा, साथ ही उन्हें इस लिहाज से डिज़ाइन किया जाएगा कि उनकी मरम्मत करना संभव न हो और उन्हें आसानी से पारंपरिक साधनों का उपयोग करते हुए नष्ट किया जा सके, जिससे उपकरणों की रीसाइक्लिंग में सुधार होगा।
  • यूरोप में ई-कचरा

    • ग्लोबल ई-वेस्ट मॉनीटर 2020 के अनुसार, यूरोपीय लोग प्रतिवर्ष प्रति व्यक्ति 16 किलोग्राम से अधिक ई-कचरे का उत्पादन करते हैं।
      • एशिया और अफ्रीका में यह क्रमशः 5.6 और 2.5 किलोग्राम है, जो कि सबसे कम है।
      • ग्लोबल ई-वेस्ट मॉनीटर: यह यूनाइटेड नेशन यूनिवर्सिटी (UNU), इंटरनेशनल टेलीकम्युनिकेशन यूनियन (ITU) और इंटरनेशनल सॉलिड वेस्ट एसोसिएशन (ISWA) द्वारा संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम के सहयोग गठित ग्लोबल ई-वेस्ट स्टैटिस्टिक्स पार्टनरशिप (GESP) के तहत एक गठबंधन है।
    • इस ई-कचरे का लगभग आधा हिस्सा टूटे हुए घरेलू उपकरणों के कारण उत्पन्न होता है, और यूरोपीय संघ में इसमें से लगभग 40 प्रतिशत को ही रीसाईकल किया जाता है, जिसके कारण काफी अधिक मात्रा में खतरनाक ई-कचरा रीसाईकल होने से छूट जाता है।
  • महत्त्व

    • यह ई-कचरे की विशाल मात्रा को कम करने में मदद करेगा, जो कि महाद्वीप पर प्रत्येक वर्ष बढ़ता जा रहा है।
    • यह उपभोक्ताओं को पैसा बचाने में मदद करेगा।
    • यह उपकरणों के जीवनकाल, रखरखाव, पुन: उपयोग, उन्नयन, पुनर्चक्रण और अपशिष्ट प्रबंधन में सुधार कर चक्रीय अर्थव्यवस्था के उद्देश्यों में योगदान देगा।
    • यह दो विनिर्माण चुनौतियों से निपटने में मदद करेगा:
      • नियोजित मूल्यह्रास के प्रति उचित ध्यान न दिया जाना।
      • निर्माता कंपनियों द्वारा मरम्मत एवं रखरखाव नेटवर्क को नियंत्रित करना।
  • आधुनिक उपकरणों के साथ मरम्मत संबंधी समस्या

    • विशेष उपकरणों की आवश्यकता
      • आधुनिक उपकरणों को प्रायः इस प्रकार डिज़ाइन किया जाता है कि उन्हें खोलने अथवा मरम्मत करने के लिये विशिष्ट उपकरणों की आवश्यकता होती है और ऐसे उपकरण न होने पर इनकी मरम्मत नहीं की जा सकती है।
    • स्पेयर पार्ट्स की कमी
      • स्पेयर पार्ट्स की कमी भी एक बड़ी समस्या है। कभी-कभी किसी बड़ी मशीन के एक छोटे से टुकड़े को खोजना काफी चुनौतीपूर्ण हो जाता है।
  • विनिर्माताओं से संबंधित चिंताएँ

    • निर्माताओं ने ‘राइट-टू-रिपेयर’ का विरोध किया है, क्योंकि इससे नए उत्पादों को अधिक मात्रा में बेचने की उनकी क्षमता प्रभावित होगी और वे उत्पाद निर्माता के बजाय सेवा प्रदाता बनने के लिये मजबूर हो जाएंगे।
    • निर्माताओं का यह भी मत है कि उपभोक्ता को उच्च-प्रौद्योगिकी उत्पादों की मरम्मत करने की अनुमति देना एक जोखिमपूर्ण कार्य है, उदाहरण के लिये प्रायः कारों में लिथियम- आयन बैटरी का प्रयोग किया जाता है।

भारत में ई-कचरा

  • आधिकारिक आँकड़े
    • केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) के अनुसार, भारत में वर्ष 2019-20 में 10 लाख टन से अधिक ई-कचरा उत्पन्न हुआ था। वर्ष 2017-18 के मुकाबले वर्ष 2019-20 में ई-कचरे में 7 लाख टन की बढ़ोतरी हुई थी।
  • भारत द्वारा किये गए प्रयास
    • ई-कचरा प्रबंधन नियम, 2016:
      • इसका उद्देश्य ई-कचरे से उपयोगी सामग्री को अलग करना और/या उसे पुन: उपयोग के लिये सक्षम बनाना है, ताकि निपटान के लिये खतरनाक किस्म के कचरे को कम किया जा सके और बिजली तथा इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का उचित प्रबंधन सुनिश्चित किया जा सके।
    • ई-कचरा क्लिनिक:
      • यह ई-कचरे के पृथक्करण, प्रसंस्करण और निपटान से संबंधित है।

ई-वेस्ट:

  • ई-वेस्ट इलेक्ट्रॉनिक-अपशिष्ट का संक्षिप्त रूप है और इस शब्द का उपयोग पुराने, समाप्त या खारिज इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के संदर्भ में किया जाता है। इसमें उनके घटक, उपभोग्य वस्तुएँ, उनके भाग
  • और स्पेयर शामिल हैं।
  • इसे दो व्यापक श्रेणियों के तहत 21 प्रकारों में वर्गीकृत किया गया है:
    • सूचना प्रौद्योगिकी और संचार उपकरण।
    • उपभोक्ता विद्युत और इलेक्ट्रॉनिक्स।
  • ई-कचरे में उनके घटक, उपभोग्य वस्तुएँ और पुर्जे आदि शामिल होते हैं।

आगे की राह

इस तरह के नियम भारत जैसे देश में विशेष तौर पर महत्त्वपूर्ण हो सकते हैं, जहाँ सेवा प्रदाताओं पर प्रायः सही ढंग से कार्य न करने का आरोप लगाया जाता है और अधिकृत कार्यशालाएँ कुछ ही क्षेत्रों में मौजूद हैं। यदि भारत में इस तरह के कानून को अपनाया जाता है तो देश में मरम्मत और रखरखाव सेवाओं की गुणवत्ता में काफी सुधार किया जा सकता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


जैव विविधता और पर्यावरण

अरावली पहाड़ियों में पुनः उत्खनन शुरू करने की अपील

चर्चा में क्यों?

हाल ही में हरियाणा सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) से अपील की है कि उसे कोविड-19 महामारी से कमज़ोर हो चुकी अपनी अर्थव्यवस्था को पुनः सुदृढ़ करने के लिये अरावली हिल्स (Aravalli Hill) में उत्खनन करने की अनुमति दी जाए।

प्रमुख बिंदु

  • अरावली रेंज के विषय में:
    • अवस्थिति:
      • इस रेंज का विस्तार गुजरात के हिम्मतनगर से शुरू होकर हरियाणा, राजस्थान, और दिल्ली (लगभग 720 किमी.) तक है।
    • बनावट:
      • अरावली रेंज लाखों साल पुरानी है, जिसका निर्माण भारतीय उपमहाद्वीपीय प्लेट के यूरेशियन प्लेट की मुख्य भूमि से टकराने के कारण हुआ।
    • आयु:
      • कार्बन डेटिंग से पता चला है कि इस रेंज की तांबे और अन्य धातुओं की खानें कम-से-कम 5वीं शताब्दी ईसा पूर्व की हैं।
    • विशेषताएँ:
      • अरावली रेंज विश्व के सबसे पुराने वलित पर्वतों में से एक है, जो अब एक अवशिष्ट पर्वत के रूप में है, इसकी ऊँचाई 300 मीटर से 900 मीटर के बीच है।
      • अरावली रेंज की सबसे ऊँची चोटी माउंट आबू पर स्थित गुरु शिखर (1,722 मीटर) है।
      • यह मुख्य रूप से वलित पर्वत है, जिसका निर्माण दो प्लेटों के अभिसरण के कारण हुआ है।
    • विस्तार:
      • अरावली रेंज को दो मुख्य श्रेणियों में विभाजित किया जाता है- सांभर सिरोही रेंज और सांभर खेतड़ी रेंज, यहाँ अरावली रेंज का विस्तार लगभग 560 किमी. है।
      • दिल्ली से लेकर हरिद्वार तक फैले अरावली का अदृश्य भाग गंगा और सिंधु नदियों के जल के बीच एक विभाजन बनाता है।
  • इनका महत्त्व:
    • मरुस्थलीकरण को रोकने में:
      • अरावली पूर्व के उपजाऊ मैदान और पश्चिम के रेतीले मरुस्थल के बीच एक अवरोध के रूप में स्थित है।
      • ऐतिहासिक रूप से यह कहा जाता है कि अरावली रेंज ने थार मरुस्थल को गंगा के मैदान की ओर फैलने से रोक कर रखा है।
    • जैव विविधता से समृद्ध:
      • इस रेंज में 300 स्थानीय पौधों की प्रजातियाँ, 120 पक्षियों की प्रजातियाँ और सियार तथा नेवले जैसे कई विशेष जानवरों का आवास है।
    • पर्यावरण पर प्रभाव:
      • अरावली रेंज का उत्तर-पश्चिम भारत और इसके आस-पास के क्षेत्रों की जलवायु पर विशेष प्रभाव है।
      • यह रेंज मानसून के दौरान बादलों को शिमला और नैनीताल की ओर मोड़ने में सहायता करता है, जिससे उप-हिमालयी नदियों को जल प्राप्त होता है और इस जल से उत्तर भारत के मैदानी क्षेत्रों को पानी की प्राप्ति होती है।
      • यह रेंज सर्दी के महीनों में उपजाऊ जलोढ़ नदी घाटियों को मध्य एशिया से आने वाली ठंडी हवाओं से बचाती है।
    • भूजल का पुनर्भरण:
      • अरावली रेंज अपने आसपास के क्षेत्रों के लिये भूजल पुनर्भरण के रूप में भी कार्य करती है जो वर्षा जल को सोखकर भूजल स्तर को पुनर्जीवित करती है।
    • प्रदूषण पर नियंत्रण:
      • यह रेंज राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCR) की प्रदूषित हवा के लिये "फेफड़े" का काम करती है।
      • हरियाणा में भारत के कुल वन आवरण का लगभग 3.59% (वन स्थिति रिपोर्ट, 2017) वन आवरण है, जो भारत में किसी अन्य राज्य की तुलना में सबसे कम है। हरियाणा के इस वन आवरण में अरावली रेंज का प्रमुख योगदान है।
  • संकट:
    • अरावली रेंज पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र है, लेकिन इसे वर्षों से उत्खनन और पर्यावरण क्षरण का खामियाजा भुगतना पड़ रहा है।
    • सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त सेंट्रल एम्पावर्ड कमेटी (Central Empowered Committee) की वर्ष 2018 की रिपोर्ट से पता चलता है कि वर्ष 1967-68 के बाद से राजस्थान में अवैध खनन के कारण अरावली रेंज का 25% हिस्सा नष्ट हो गया है।
    • उत्खनन के परिणामस्वरूप जलस्तर में ह्रास और वनों का विनाश हुआ है। अरावली रेंज की बनास, लूनी, साहिबी और सखी जैसी कई नदियाँ अब लुप्त हो चुकी हैं।
  • उठाए गए कदम:
    • सर्वोच्च न्यायालय के वर्ष 2002 के आदेश के अनुसार, जब तक स्पष्ट रूप से केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय द्वारा अनुमति नहीं दी जाती, अरावली क्षेत्र में उत्खनन पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। हालाँकि इस क्षेत्र में अवैध उत्खनन अब भी जारी है।
    • पोरबंदर से पानीपत तक ग्रीन वॉल (Green Wall) की योजना बनाई जा रही है, जिसका उद्देश्य अरावली रेंज के साथ-साथ बढ़ते भूमि क्षरण और थार रेगिस्तान के पूर्वी विस्तार को रोकना है।
    • पारिस्थितिकीविदों द्वारा अरावली के संरक्षण में शामिल एक नागरिक कार्रवाई समूह “आई एम गुरुग्राम” (I Am Gurgaon) के स्वयंसेवकों और इस क्षेत्र के निवासियों को अरावली की पारिस्थितिकी को बनाए रखने में मदद की गई थी। इस क्षेत्र के पर्यावरण में आ रही गिरावट को रोकने के लिये समाज संचालित यह मॉडल अधिक प्रभावी हो सकता है।

स्रोत: द हिंदू


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