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डेली न्यूज़

  • 01 Jul, 2020
  • 55 min read
सामाजिक न्याय

स्टेट ऑफ द वर्ल्ड पॉपुलेशन, 2020 रिपोर्ट

प्रीलिम्स के लिये: 

स्टेट ऑफ द वर्ल्ड पॉपुलेशन, 2020 रिपोर्ट के मुख्य बिंदु 

मेन्स के लिये: 

स्टेट ऑफ द वर्ल्ड पॉपुलेशन, 2020 रिपोर्ट के अनुसार महिला मृत्यु दर के प्रमुख कारण 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ‘यूनाइटेड नेशन्स पॉपुलेशन फंड’ (The United Nations Population Fund- UNFPA) द्वारा विश्व स्तर पर महिलाओं की घटती संख्या के  संदर्भ में ‘स्टेट ऑफ  वर्ल्ड पॉपुलेशन , 2020 (State of the World Population 2020) रिपोर्ट जारी की गई है। 

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प्रमुख बिंदु:

  • रिपोर्ट के अनुसार, हर वर्ष विश्व में 142 मिलियन (14.2 करोड़) लड़कियों की मृत्यु हो रही है।
  • रिपोर्ट से प्राप्त आँकड़ों के अनुसार, महिलाओं की मृत्यु की संख्या पिछले 50 वर्षों में दोगुनी से अधिक हो गई है वर्ष 1970 में यह संख्या 61 मिलियन ( 6.10 करोड़ ) थी जो वर्ष 2020 में बढ़कर 14.26 करोड़ पर पहुँच गई है।
  • इस रिपोर्ट में पक्षपातपूर्ण लिंग चयन के साथ-साथ जन्म के समय लिंग अनुपात असंतुलन का अध्ययन करके महिलाओं की मृत्यु के कारणों की जाँच की गई है।
  • रिपोर्ट के अनुसार, अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान में 5 वर्ष से कम उम्र की लड़कियों की मृत्यु दर 3 % से कम है।
  • पाँच वर्ष की अवधि (वर्ष 2013-17) के औसत के अनुसार, हर वर्ष वैश्विक स्तर पर जन्म के समय 1.2 मिलियन महिलाओं की मृत्यु हुई है, वहीं  भारत में हर वर्ष जन्म के समय लगभग 4,60,000 लड़कियों की मृत्यु हुई है।
  • रिपोर्ट के अनुसार, भारत में वर्ष 2020 तक मृत महिलाओं की संख्या 45.8 मिलियन हो गई है वही चीन में यह आँकड़ा 72.3 मिलियन है।
  • रिपोर्ट के अनुसार, विश्व में लिंग परीक्षण के कारण कुल मृत लड़कियों की संख्या लगभग दो-तिहाई है तथा जन्म के बाद की महिला मृत्यु दर लगभग एक-तिहाई है।
  • लैंगिकआधारित भेदभाव के कारण अर्थात जन्म से पूर्व लिंग चयन के कारण विश्व में हर वर्ष लगभग 12-15 लाख लड़कियों की मृत्यु हो जाती है जिनमें से 90%- 95% भारत और चीन में होती हैं।

भारत की स्थिति:

  • भारत में लिंग चयन के कारण 46 मिलियन (4.6 करोड़)लड़कियों की हर वर्ष मृत्यु हो रही है। 
  • इस रिपोर्ट में वर्ष 2014 के एक अध्ययन को आधार बनाते हुए बताया गया कि भारत में प्रति 1,000 महिला पर 13.5 प्रति महिला की मृत्यु प्रसवपूर्व लिंग चयन के कारण हुई है। 
  • रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 5 वर्ष से कम उम्र की लड़कियों में मृत्यु दर का अनुपात 9 लड़कियों  पर 1 है  जो सर्वाधिक  है। 

कमी के कारण:

  • रिपोर्ट के अनुसार, बल विवाह, लोगों में पुत्र प्राप्ति की तीव्र इच्छा तथा लिंग चयन के कारण इस तरह के परिणाम देखने को मिल रहे है। 
  • हाल ही के एक विश्लेषण द्वारा पता चला है कि COVID-19 महामारी के कारण छह महीने तक यदि सेवाएँ और कार्यक्रम को बंद किया जाता है तो 13 मिलियन लड़कियों को शादी के लिये मज़बूर किया जा सकता है। 
  • संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में कहा गया है कि हर वर्ष विश्व में लाखों लड़कियों को अपने समुदायों की उन प्रथाओं के अधीन किया जाता है जो उन्हें शारीरिक एवं भावनात्मक रूप से नुकसान पहुँचाती हैं।

स्रोत: द हिंदू


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

विवादित क्षेत्र: गलवान घाटी

प्रीलिम्स के लिये

गलवान घाटी, वास्तविक नियंत्रण रेखा

मेन्स के लिये

क्षेत्रीय सीमा विवादों का अंतर्राष्ट्रीय भू-राजनीति पर प्रभाव

चर्चा में क्यों?

हाल ही में गलवान घाटी (Galwan Valley) भारत और चीन के सैनिकों के बीच हिंसक झड़प हो गई, जिसमें दोनों पक्षों को भारी जान-माल के नुकसान का सामना करना पड़ा। ध्यातव्य है कि गलवान घाटी वर्ष 1962 से ही दोनों देशों के बीच तनाव का एक विषय बना हुआ है। 

प्रमुख बिंदु

  • चीन के विदेश मंत्रालय ने अपने एक बयान में दावा किया है कि संपूर्ण गलवान घाटी ‘वास्तविक नियंत्रण रेखा’ (Line of Actual Control-LAC) के चीनी पक्ष पर स्थित है और इसलिये यह चीन का हिस्सा है।
  • वहीं भारत ने चीन के इस दावे को ‘अतिरंजित और असमर्थनीय’ बताया है।

कहाँ है गलवान घाटी?

  • गलवान घाटी सामान्यतः उस भूमि को संदर्भित करती है, जो गलवान नदी (Galwan River) के पास मौजूद पहाड़ियों के बीच स्थित है।
  •  गलवान नदी का स्रोत चीन की ओर अक्साई चीन में मौजूद है और आगे चल कर यह भारत की श्योक नदी (Shyok River) से मिलती है।
  • ध्यातव्य है कि यह घाटी पश्चिम में लद्दाख और पूर्व में अक्साई चीन के बीच स्थित है, जिसके कारण यह रणनीतिक रूप से काफी महत्त्वपूर्ण है।
  • इसका पूर्वी हिस्सा चीन के झिंजियांग तिब्बत मार्ग (Xinjiang Tibet Road) से काफी नज़दीक है, जिसे G219 राजमार्ग (G219 Highway) कहा जाता है।

Galwan

वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC)

  • वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) एक प्रकार की सीमांकन रेखा है, जो भारतीय-नियंत्रित क्षेत्र और चीनी-नियंत्रित क्षेत्र को एक दूसरे से अलग करती है।
  • जहाँ एक ओर भारत मानता है कि वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) की लंबाई लगभग 3,440  किलोमीटर है, वहीं चीन इस रेखा को तकरीबन 2,000 किलोमीटर लंबा मानता है।

चीन का दावा

  • ध्यातव्य है कि वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) गलवान घाटी और श्योक नदियों के संगम के पूर्व में स्थित है, जिस पर भारत और चीन दोनों हाल के वर्षों में पेट्रोलिंग (Patrolling) कर रहे हैं।
  • 15 जून 2020 को हुई हिंसक झड़प के बाद चीन ने दावा किया है कि संपूर्ण गलवान घाटी चीन के नियंत्रण क्षेत्र में आती है। 
  • गौरतलब है कि बीते महीनों से चीन गालवान घाटी और श्योक नदी के संगम तथा वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) के बीच के क्षेत्र में भारत की सड़क निर्माण गतिविधियों पर आपत्ति जता रहा है। भारत ने चीन के दावे को सिरे से खारिज़ कर दिया है। 
    • चीन के लगभग सभी मानचित्रों में संपूर्ण गलवान घाटी को चीन के नियंत्रण वाले क्षेत्र का हिस्सा दिखा जाता है।

मानचित्र के आधार पर क्षेत्र का निर्धारण

  • विशेषज्ञ मानते हैं कि दोनों देशों के मानचित्र के आधार पर इस विवाद को सुलझाना काफी जटिल कार्य है, जानकारों के अनुसार 1956 का मानचित्र दोनों देशों के बीच सीमा का एकदम सही निर्धारण करता है।
  • ध्यातव्य है कि वर्ष 1956 का मानचित्र संपूर्ण गलवान घाटी को भारत के एक हिस्से के रूप में प्रदर्शित करता है, हालाँकि जून 1960 में चीन ने गलवान घाटी पर अपनी संप्रभुता का दावा करते हुए एक नया मानचित्र प्रस्तुत प्रस्तुत किया, जिसमें गलवान घाटी को चीन के हिस्से के रूप में दिखाया गया था।
  • इसके पश्चात् नवंबर 1962 में भी एक नया मानचित्र जिसमें संपूर्ण गलवान घाटी पर दावा प्रस्तुत किया गया, किंतु इसके बाद चीन की सरकार द्वारा जारी किये गए नक्शों में गलवान नदी के पश्चिमी सिरे को चीन के हिस्से के रूप में नहीं दिखाया गया।

स्रोत: द हिंदू


शासन व्यवस्था

नमामि गंगे परियोजना

प्रीलिम्स के लिये:

विश्व बैंक, नमामि गंगे परियोजना

मेन्स के लिये:

विश्व बैंक द्वारा परियोजना के लिये जारी फंड का विभिन्न परियोजनाओं में अनुप्रयोग  

चर्चा में क्यों?

  • हाल ही में विश्व बैंक  द्वारा 300 करोड़ रुपए (400 बिलियम डॉलर) की ‘नमामि गंगे परियोजना’ (Namami Gange Project) को 45 अरब रुपए के फंड/ऋण को मंज़ूरी दी गई है।

प्रमुख बिंदु:

  • 45 अरब रुपए का यह ऋण विश्व बैंक द्वारा पाँच वर्ष की अवधि के लिये मंज़ूर किया गया है।
  • नमामि गंगे/नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा (National Mission for Clean Ganga- NMCG) के राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन परियोजना के पहले चरण जो कि दिसंबर 2021 तक है, के लिये विश्व बैंक से 4,535 करोड़ रूपए ($ 600 मिलियन) पहले ही प्राप्त हो चुके हैं। 
  • अब तक मिशन के तहत विश्व बैंक द्वारा 25,000 करोड़ रुपए की 313 परियोजनाओं को मंज़ूरी दी गई है।

ऋण/ फंड का उपयोग:  

  • विश्व बैंक से प्राप्त इस ऋण का उपयोग नदी बेसिन में प्रदूषण को समाप्त करने एवं अवसंरचना परियोजनाओं के विकास और सुधार के लिये किया जाएगा । 
  • 45 अरब रुपए के इस ऋण में 11.34 अरब रुपए  का उपयोग मेरठ, आगरा तथा  साहारनपुर में गंगा की सहायक नदियों पर तीन नए हाइब्रिड एन्युटी प्रोजेक्ट (Hybrid Annuity Projects) बनाने में किया जाएगा।
  • 1,209 करोड़ रुपए ($ 160 मिलियन) बक्सर, मुंगेर, बेगूसराय में चल रही DBOT (डिजाइन, बिल्ड, ऑपरेट और ट्रांसफर) परियोजनाओं के लिये मंज़ूर किये गए हैं।

नमामि गंगे परियोजना:

  • यह केंद्र सरकार की योजना है जिसे वर्ष 2014 में शुरू किया गया था।
  • सरकार द्वारा इस परियोजना की शुरुआत गंगा नदी के प्रदूषण को कम करने तथा गंगा नदी को पुनर्जीवित करने के उद्देश्य से की गई थी। 
  • इस योजना का क्रियान्वयन केंद्रीय जल संसाधन,नदी विकास और गंगा कायाकल्प मंत्रालय द्वारा किया जा रहा है।  

 स्रोत: द हिंदू


शासन व्यवस्था

ऑनलाइन शिक्षा: चुनौती और संभावनाएँ

प्रीलिम्स के लिये

ऑनलाइन शिक्षा हेतु सरकार के विभिन्न प्रयास, COVID-19

मेन्स के लिये

महामारी के दौरान ऑनलाइन शिक्षा का महत्त्व, ऑनलाइन शिक्षा के मार्ग में चुनौतियाँ एवं उनका समाधान

चर्चा में क्यों?

ऑनलाइन शिक्षा (Online Education) में मौजूद सामाजिक असमानता को कम करने के लिये केंद्र सरकार दीर्घकालिक उपाय अपनाने पर विचार कर रही है, जिसमें आगामी पाँच वर्षों में देश भर के 40 प्रतिशत कॉलेजों और विश्वविद्यालयों के छात्रों को लैपटॉप या टैबलेट वितरित करना भी शामिल है।

प्रमुख बिंदु

  • COVID-19 महामारी के कारण देश भर में ऑनलाइन शिक्षा का महत्त्व काफी बढ़ गया है, किंतु सामाजिक असमानता और डिजिटल डिवाइड (Digital Divide) ऑनलाइन शिक्षा के समक्ष अभी भी बड़ी चुनौती बने हुए हैं।
  • मानव संसाधन विकास मंत्रालय (Ministry of Human Resource Development- MHRD) के अंतर्गत स्कूल शिक्षा और साक्षरता विभाग (Department of School Education and Literacy) के अनुमानानुसार, महामारी के कारण बंद हुए स्कूलों को फिर से खोलने के लिये स्वच्छता और क्वारंटाइन उपायों हेतु प्रति स्कूल 1 लाख रुपए तक खर्च करने की आवश्यकता होगी।
  • लगभग 3.1 लाख सरकारी स्कूलों, जिनके पास सूचना व संचार तकनीक (ICT) सुविधाएँ नहीं हैं, को ऐसी सुविधाओं से लैस करने के लिये केंद्र सरकार 55,840 करोड़ रुपए का बजट प्रस्तावित करेगी।
  • MHRD ने आगामी पाँच वर्षों में डिजिटल पाठ्यक्रम सामग्री और संसाधनों के विकास एवं अनुवाद पर 2,306 करोड़ रुपए खर्च करने का प्रस्ताव किया है।
  • केंद्र सरकार ने वर्ष 2026 तक देश भर के विभिन्न विश्वविद्यालयों में पढ़ने वाले लगभग 4.06 करोड़ छात्रों (देश की कुल छात्र संख्या का लगभग 40 प्रतिशत) को लैपटॉप और टैबलेट प्रदान करने की भी योजना बनाई है तथा इस कार्य के लिये कुल 60,900 करोड़ रुपए का बजट निर्धारित किया गया है। 
  • स्कूल शिक्षा और साक्षरता विभाग के अनुसार, केंद्र और राज्य उपकरण उपलब्ध कराने की लागत को फिलहाल 60:40 के अनुपात में साझा करेंगे।

ऑनलाइन शिक्षा और COVID-19

  • ध्यातव्य है कि देश में COVID-19 और इसके नियंत्रण हेतु लागू किये गए लॉकडाउन के कारण शिक्षा समेत विभिन्न क्षेत्रों की गतिविधियाँ गंभीर रूप से प्रभावित हुई हैं।
  • विशेषज्ञों के अनुसार, विश्व में COVID-19 के किसी प्रमाणिक उपचार के अभाव में इस बीमारी के प्रसार को रोकना ही सबसे बेहतर विकल्प होगा, ऐसे में हमें अपनी दैनिक गतिविधियों में इसी के अनुरूप परिवर्तन करने होंगे।
  • भारत में लॉकडाउन की शुरुआत से ही लगभग सभी शिक्षण संस्थाएँ शैक्षणिक कार्यों के लिये ऑनलाइन शिक्षा (Online Education) अथवा ई-लर्निंग को एक विकल्प के रूप में प्रयोग कर रही हैं, ऐसे में देश की आम जनता के बीच ऑनलाइन शिक्षा की लोकप्रियता में अत्यधिक वृद्धि हुई है। 
  • हालाँकि जहाँ एक ओर कई विशेषज्ञों ने मौजूदा महामारी के दौर में ऑनलाइन शिक्षा अथवा ई-लर्निंग को महत्त्व को स्वीकार किया है, वहीं कुछ आलोचकों का मत है कि ऑनलाइन शिक्षा, अध्ययन की पारंपरिक पद्धति का स्थान नहीं ले सकती है।

ई-लर्निंग अथवा ऑनलाइन शिक्षा 

  • ई-शिक्षा से तात्पर्य अपने स्थान पर ही इंटरनेट व अन्य संचार उपकरणों की सहायता से प्राप्त की जाने वाली शिक्षा से है। ई-शिक्षा के विभिन्न रूप हैं, जिसमें वेब आधारित लर्निंग, मोबाइल आधारित लर्निंग या कंप्यूटर आधारित लर्निंग और वर्चुअल क्लासरूम इत्यादि शामिल हैं।

ऑनलाइन शिक्षा की सीमाएँ और चुनौतियाँ

  • COVID-19 महामारी से पूर्व भारतीय के अधिकांश शिक्षण संस्थानों को ऑनलाइन शिक्षा का कोई विशेष अनुभव नहीं रहा है, ऐसे में शिक्षण संस्थानों के लिये अपनी व्यवस्था को ऑनलाइन शिक्षा के अनुरूप ढालना और छात्रों को अधिक-से-अधिक शिक्षण सामग्री ऑनलाइन उपलब्ध कराना एक बड़ी चुनौती होगी। 
  • वर्तमान समय में भी भारत में डिजिटल इन्फ्रास्ट्रक्चर की बहुत कमी है, देश में अब भी उन छात्रों की संख्या काफी सीमित है, जिनके पास लैपटॉप या टैबलेट कंप्यूटर जैसी सुविधाएँ उपलब्ध हैं। अतः ऐसे छात्रों के लिये ऑनलाइन कक्षाओं से जुड़ना एक बड़ी समस्या है।
  • शिक्षकों के लिये भी तकनीक एक बड़ी समस्या है, देश के अधिकांश शिक्षक तकनीकी रूप से इतने प्रशिक्षित नहीं है कि औसतन 30 बच्चों की एक ऑनलाइन कक्षा आयोजित कर सकें और उन्हें ऑनलाइन ही अध्ययन सामग्री उपलब्ध करा सकें।
  • इंटरनेट पर कई विशेष पाठ्यक्रमों या क्षेत्रीय भाषाओं से जुड़ी अध्ययन सामग्री की कमी होने से छात्रों को समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।
  • कई विषयों में छात्रों को व्यावहारिक शिक्षा (Practical Learning) की आवश्यकता होती है, अतः दूरस्थ माध्यम से ऐसे विषयों को सिखाना काफी मुश्किल होता है।

आगे की राह

  • शिक्षण क्षेत्र पर COVID-19 और लॉकडाउन के प्रभाव ने शिक्षण संस्थाओं को शिक्षण माध्यमों के नए विकल्पों पर विचार करने हेतु विवश कर दिया है।
  • भारत में ई-शिक्षा अपनी शैशवावस्था में है, आवश्यक है कि इसकी राह में मौजूद विभिन्न चुनौतियों को संबोधित कर ई-शिक्षा के रूप में एक नए शिक्षण विकल्प को बढ़ावा दिया जाए।
  • टेलीविज़न और रेडियो कार्यक्रमों के माध्यम से देश के दूरस्थ भागों में स्थित ग्रामीण क्षेत्रों में भी लॉकडाउन के दौरान शिक्षा की पहुँच सुनिश्चित की जा सकती है।

स्रोत: द हिंदू


शासन व्यवस्था

MyGov कोरोना हेल्पडेस्क को CogX- 2020 पुरस्कार

प्रीलिम्स के लिये:

CogX- 2020, MyGov कोरोना हेल्पडेस्क

मेन्स के लिये:

MyGov 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत सरकार के ‘MyGov कोरोना हेल्पडेस्क’ ने दो श्रेणियों में CogX-2020 पुरस्कार जीते हैं।

प्रमुख बिंदु:

  • ये पुरस्कार MyGov के तकनीकी भागीदार जिओ हैप्टिक टेक्नोलॉजी लिमिटेड (Jio Haptik Technologies Limited) द्वारा जीते गए हैं।
  • ‘MyGov कोरोना हेल्पडेस्क’ ने दो श्रेणियों; प्रथम COVID -19 के लिये सर्वश्रेष्ठ नवाचार की श्रेणी में तथा द्वितीय पीपुल्स च्वाइस COVID-19 (समग्र विजेता) की श्रेणी में ये पुरस्कार प्राप्त किये हैं।

CogX:

  • CogX कृत्रिम बुद्धिमता (ArtifiCial Intelligence) पर आयोजित किये जाने विश्व के प्रमुख आयोजनों में से एक है।
  • प्रतिवर्ष लंदन में आयोजित किये जाने इस समारोह में व्यापार, सरकार, उद्योग और अनुसंधान क्षेत्र से जुड़े 15,000 से अधिक प्रतिभागी हिस्सा लेते हैं।
  • CogX पुरस्कार, कृत्रिम बुद्धिमता में सर्वश्रेष्ठ नवाचारों तथा उभरती प्रौद्योगिकियों के क्षेत्र में दिया जाता है।

MyGov:

  • MyGov भारत सरकार द्वारा संचालित दुनिया का सबसे बड़ा नागरिक संबद्धता मंच है। 
  • यह सरकार और नागरिक के बीच दो-तरफा संचार की सुविधा देता है। 
  • यह सहभागी शासन का एक प्रमुख मंच है।

MyGov कोरोना हेल्पडेस्क:

  • सहभागी पार्टीज़:
    • कोरोना हेल्पडेस्क को COVID-19 महामारी के खिलाफ लड़ाई में MyGov, जिओहैप्टिक टेक्नोलॉजी लिमिटेड और WhatsApp के सहयोग से विकसित किया है।
    • यह कृत्रिम बुद्धिमता आधारित हेल्पडेस्क है जिसे 5 दिनों के रिकॉर्ड समय में विकसित किया है।
  • PPPP मॉडल पर आधारित:
    • MyGov कोरोना हेल्पडेस्क सार्वजनिक, निजी और सार्वजनिक भागीदारी (Public, Private and Public Partnership- PPPP) का आदर्श उदाहरण है।
    • MyGov द्वारा नागरिक केंद्रित सेवाएँ प्रदान की गईं हैं तथा बुनियादी सुविधाओं सहित तकनीकी समाधान जिओ हैप्टिक टेक्नोलॉजी लिमिटेड द्वारा निर्मित एवं विकसित और तैनात किये गए हैं। 
  • द्विमार्गी संवाद:
    • MyGov कोरोना हेल्पडेस्क' के चैटबोट (कृत्रिम बुद्धिमता पर आधारित मैसेजिंग एप) को 76 मिलियन से अधिक संदेश प्राप्त हुए हैं और 41 मिलियन से अधिक संदेशों पर कदम उठाया गया तथा यह COVID-19 महामारी के संबंध में नवीनतम सूचना प्रदान करके 28 मिलियन से अधिक भारतीयों को लगातार मदद कर रहा है।

निष्कर्ष:

  • MyGov नागरिकों और सरकार के बीच एक पुल के रूप में कार्य करता है। इस उद्देश्य के साथ विकसित 'MyGov कोरोना हेल्पडेस्क' ने COVID-19 महामारी के दौरान वास्तव में लोगों तक पहुँच बनाने तथा संबंद्धता स्थापित करने में मदद की है।

स्रोत: पीआईबी


भारतीय अर्थव्यवस्था

विद्युत (संशोधन) विधेयक 2020

प्रीलिम्स के लिये

विधेयक के प्रावधान

मेन्स के लिये

विद्युत (संशोधन) विधेयक 2020 की आवश्यकता व उसका महत्त्व

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में केंद्र सरकार ने विद्युत अधिनियम 2003 के विभिन्न प्रावधानों में संशोधन करने के लिये विद्युत (संशोधन) विधेयक, 2020 सदन में पेश किया है। 

प्रमुख बिंदु

  • विद्युत क्षेत्र में वाणिज्यिक और निवेश गतिविधियों को कमज़ोर करने वाले महत्त्वपूर्ण मुद्दों को संबोधित करने के लिये विद्युत (संशोधन) विधेयक, 2020 प्रस्तुत किया गया है।
  • विद्युत क्षेत्र की मौजूदा चुनौतियाँ संरचनात्मक मुद्दों को दूर करने में हुई लापरवाही से उत्पन्न हुई हैं।
  • इनमें विद्युत उत्पादन, पारेषण और वितरण उपयोगिताओं, बिजली आपूर्ति की पहुँच और गुणवत्ता, राजनीतिक हस्तक्षेप, निजी निवेश की कमी, अपर्याप्त सार्वजनिक अवसंरचना और उपभोक्ता भागीदारी की कमी तथा परिचालन और वित्तीय अक्षमताएँ शामिल हैं।

उद्देश्य

  • उपभोक्ता केंद्रित अवधारणा सुनिश्चित करना।
  • विद्युत क्षेत्र की स्थिरता में वृद्धि करना।
  • हरित ऊर्जा को प्रोत्साहन प्रदान करना।

मुख्य संशोधन 

  • राष्ट्रीय चयन समिति: अलग चयन समिति (अध्यक्ष और राज्य विद्युत नियामक आयोगों के सदस्यों की नियुक्ति के लिये) के बजाय एक राष्ट्रीय चयन समिति गठित करने का प्रस्ताव है।
    • हालाँकि केंद्र सरकार, प्रत्येक राज्य के लिये मौजूदा चयन समितियों को बनाए रखने पर विचार कर रही है लेकिन उन्हें स्थायी चयन समितियाँ में परिवर्तित करने की आवश्यकता है ताकि हर बार पद रिक्त होने पर उन्हें नए सिरे से गठित करने की आवश्यकता न हो।
  • प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण का प्रयोग: प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण राज्य सरकारों और वितरण कंपनियों दोनों के लिये लाभदायक होगा। 
    • यह राज्य सरकार के लिये लाभदायक होगा क्योंकि यह सुनिश्चित करेगा कि सब्सिडी उन लोगों तक पहुँच रही है जो वास्तव में पात्र हैं।
    • यह वितरण कंपनी को लाभार्थियों की संख्या के अनुसार, प्राप्त होने वाली सब्सिडी सुनिश्चित करके लाभान्वित करेगा। 
  • राष्ट्रीय अक्षय ऊर्जा नीति: भारत पेरिस जलवायु समझौते का हस्ताक्षरकर्ता है, इसलिये ऊर्जा के नवीकरणीय स्रोतों से बिजली उत्पादन के विकास और संवर्द्धन के लिये एक अलग नीति का प्रस्ताव करता है।
  • कॉस्ट रिफ्लेक्टिव टैरिफ: निर्धारित किये गए टैरिफ को अपनाने में विभिन्न राज्य आयोग लापरवाही करते हैं, जिससे लागत में वृद्धि हो जाती है।
    • इस समस्या को हल करने के लिये प्रस्तावित संशोधन ने निर्धारित टैरिफ को अपनाने के लिये 60 दिनों की अवधि निर्धारित कर दी है। 
  • विद्युत संविदा प्रवर्तन प्राधिकरण की स्थापना: इस प्राधिकरण की अध्यक्षता उच्च न्यायालय के एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश द्वारा की जाएगी जो अपनी शक्तियों को दीवानी न्यायालय की डिक्री की भाँति निष्पादित करेंगे। 
    • यह प्राधिकरण विद्युत उत्पादक कंपनी, वितरण लाइसेंसधारी या ट्रांसमिशन लाइसेंसधारी के बीच विद्युत की खरीद या बिक्री या प्रसारण से संबंधित अनुबंधों को क्रियान्वित करेगा।
    • केंद्रीय विद्युत नियामक आयोग (Central Electricity Regulatory Commission-CERC) और राज्य विद्युत नियामक आयोगों (State Electricity Regulatory Commissions-SERCs) के पास अपने आदेशों को निष्पादित करने का अधिकार नहीं है, जैसा कि किसी दीवानी न्यायालय के पास डिक्री जारी करने की शक्ति होती है। 

  • सीमा पार व्यापार विद्युत व्यापार: विधेयक में अन्य देशों के साथ विद्युत व्यापार को सुविधाजनक बनाने और विकसित करने के लिये कई प्रावधान जोड़े गए हैं।

  • वितरण उप-लाइसेंस: आपूर्ति की गुणवत्ता में सुधार करने के लिये राज्य विद्युत नियामक आयोग की अनुमति के साथ डिस्कॉम को अपने क्षेत्र के किसी विशेष हिस्से में विद्युत आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिये एक अन्य व्यक्ति को अधिकृत करने का अधिकार डिस्कॉम को एक विकल्प के रूप में प्रदान करने का प्रस्ताव है। 
  • अपीलीय न्यायाधिकरण को मज़बूत करना: मामलों के त्वरित निपटान की सुविधा के लिये अपीलीय न्यायाधिकरण की संख्या में वृद्धि करना प्रस्तावित है।
    • अपने आदेशों को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिये, इसे कंटेम्प्ट ऑफ कोर्ट एक्ट (Contempt of Courts Act) के प्रावधानों के तहत उच्च न्यायालय की शक्तियाँ देने का भी प्रस्ताव है।

आगे की राह

  • प्रस्तावित विधेयक केंद्र सरकार को विद्युत क्षेत्र में टैरिफ और नियमों को निर्धारित करने के लिये और अधिक शक्ति प्रदान करेगा। 
  • चूँकि विद्युत समवर्ती सूची का विषय है, इसलिये राज्यों को इस संशोधन के माध्यम से उनकी शक्तियों से वंचित नहीं करना चाहिये। 

स्रोत: PIB


कृषि

ICDS, PDS योजनाओं में मोटे अनाज का वितरण

प्रीलिम्स के लिये:

रागी, ज्वार, बाजरा का उत्पादन 

मेन्स के लिये:

मोटे अनाज का महत्त्व

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ओडिशा सरकार ने स्थानीय रूप से उत्पादित रागी को ‘एकीकृत बाल विकास सेवा’ (Integrated Child Development Services- ICDS) योजना तथा ‘सार्वजनिक वितरण प्रणाली’ (Public Distribution System-PDS) में शामिल करने का निर्णय लिया है। 

प्रमुख:

  • यह पहल उड़ीसा राज्य द्वारा वर्ष 2017 में प्रारंभ मिलेट मिशन (Millet Mission) का हिस्सा है।
  • मिलेट मिशन के तहत उड़ीसा सरकार द्वारा मोटे अनाज की खेती को प्रोत्साहित किया जा रहा है। 
  • ICSD तथा PDS योजना के तहत रागी का वितरण राज्य के कुछ ज़िलों में क्रमश: जुलाई तथा सितंबर माह से शुरू किया जाएगा। 

मोटे अनाज का महत्त्व:

सार्वजनिक वितरण प्रणाली में शामिल करना:

  • ICDS, PDS, मिड-डे मील और सरकार द्वारा संचालित छात्रावासों में सार्वजनिक खाद्य प्रणालियों के हिस्से के रूप में मोटे अनाज को शामिल किया जाएगा।

मोटे अनाज की खेती को प्रोत्साहन:

  • फसल प्रतिरूप में बदलाव के कारण मोटे अनाजों के स्थान पर अन्य फसलों का उत्पादन किया जा रहा है। अत: किसानों के बीच मोटे अनाज के उत्पादन को लोकप्रिय बनाने के लिये सरकार द्वारा अनेक प्रोत्साहन उपायों का सहारा लिया जा रहा है। 

पोषण सुरक्षा:

  • ‘राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण’ (National Family Health Survey- NFHS), 2015-16 के अनुसार, ओडिशा में लगभग 45% बच्चे कुपोषण से ग्रसित हैं तथा लगभग 41% महिलाओं का ‘बॉडी मास इंडेक्स’ (Body Mass Index- BMI) सामान्य से कम है।
  • मोटे अनाज प्रोटीन, वसा, खनिज तत्त्व, फाइबर, कार्बोहाइड्रेट, ऊर्जा कैलोरी, कैल्शियम, फास्फोरस, आयरन, कैरोटीन, फोलिक ऐसिड, जिंक तथा एमिनो एसिड आदि के बेहतर स्रोत माने जाते हैं। 
  • अत: बेहतर आहार विविधता तथा पोषण संबंधी समस्याओं का समाधान करने की दृष्टि से मोटे अनाज का बहुत महत्त्व है।

पारिस्थितिकी अनुकूल कृषि प्रणाली:

  • मोटे अनाजों की खेती करने के अनेक लाभ हैं, जैसे:
    • सूखा सहन करने की क्षमता;
    •  फसल पकने की कम अवधि;
    • जलवायु सुनम्य कृषि प्रणाली;
    • कृषि-पारिस्थितिकी (Agroecological) के अनुकूल;
    • कम रासायनिक तत्त्वों की मांग;
    • स्थानीय रूप से सतत् खाद्य प्रणाली।

रागी के लिये उड़ीसा सरकार द्वारा प्रोत्साहन:

  • उड़ीसा में रागी की जैविक खेती को प्रोत्साहित करने के लिये किसानों को जैव-आदानों को अपनाने के लिये प्रोत्साहित किया जा रहा है। किसानों को तीन वर्ष के लिये निम्नानुसार प्रोत्साहन राशि दी जा रही है। 
    • प्रथम वर्ष में 5,000 रुपए प्रति हेक्टेयर, 
    • दूसरे वर्ष में 3,000 रुपए प्रति हेक्टेयर 
    • तीसरे वर्ष में 1,500 रुपए की प्रोत्साहन राशि दी जा रही है।

उड़ीसा में रागी का उत्पादन:

  • वर्तमान में चार ज़िलों- कालाहांडी, कोरापुट, मलकानगिरी और रायगडा-  में अतिरिक्त रागी का उत्पादन होता है। इस अतिरिक्त रागी को राज्य के अन्य ज़िलों में आवश्यकता के अनुसार पुनर्वितरित किया जाएगा।  

निष्कर्ष:

  • सामान्यत: कृषि में हस्तक्षेप कार्यक्रम बाज़ार को ध्यान में रखकर लागू किये जाते हैं और घरेलू पोषण और खाद्य सुरक्षा की उपेक्षा की जाती है। परंतु उड़ीसा सरकार का यह कदम पोषण तथा खाद्य सुरक्षा को भी उतना ही महत्त्व देता है।

मोटा अनाज:

  • ज्वार, बाजरा और रागी भारत में उगाए जाने वाले मुख्य मोटे अनाज हैं। इनमें पोषक तत्त्वों की मात्रा अत्यधिक होती है। 
  • रागी:
    • रागी शुष्क प्रदेशों में उगाई जाने वाली प्रमुख फसल है। यह लाल, काली, बलुआ, दोमट और उथली काली मिट्टी में अच्छी तरह उगाई जाती है। 
    • रागी के प्रमुख उत्पादक राज्य कर्नाटक, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखण्ड, सिक्किम, झारखंड और अरुणाचल प्रदेश हैं। 
    • रागी में प्रचुर मात्रा में लोहा, कैल्शियम, तथा अन्य सूक्ष्म पोषक तत्त्व होते हैं।
    • यह कैल्शियम का सबसे बड़ा स्रोत है।
  • ज्वार:
    • क्षेत्रफल और उत्पादन की दृष्टि से ज्वार देश की तीसरी महत्त्वपूर्ण खाद्यान्न फसल है। यह फसल वर्षा पर निर्भर होती है। 
    • अधिकतर आर्द्र क्षेत्रों में उगाए जाने के कारण इसके लिये सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है। 
    • प्रमुख उत्पादक राज्य महाराष्ट्र, कर्नाटक, मध्य प्रदेश हैं।
    • ज्वार में प्रोलमिन (कैफिरिन) नामक प्रोटीन प्राप्त होता है जिसका भोजन के पाचन क्षमता की दृष्टि से महत्त्व है।
  • बाजरा:
    • यह बलुआ और उथली काली मिट्टी में उगाया जाता है। राजस्थान, उत्तर प्रदेश, गुजरात, इसके मुख्य उत्पादक राज्य हैं।
    • इसमें प्रोटीन का उच्च अनुपात (12-16%) के साथ ही लिपिड (4-6%) तथा फाइबर 11.5% पाया जाता है।

स्रोत: डाउन टू अर्थ


आंतरिक सुरक्षा

उत्तराखंड द्वारा भूमि हस्तांतरण को मंज़ूरी

प्रीलिम्स के लिये:

गंगोत्री राष्ट्रीय उद्यान, भारत-तिब्बत सीमा पुलिस

मेन्स के लिये:

सीमा क्षेत्र में आधारिक संरचना का विकास और भारत के हित

चर्चा में क्यों?

हाल ही में गंगोत्री राष्ट्रीय उद्यान (Gangotri National Park) में सड़कों के विकास के लिये उत्तराखंड राज्य वन्यजीव सलाहकार बोर्ड (Uttarakhand State Wildlife Advisory Board) ने वन भूमि के हस्तांतरण वाले प्रस्तावों को मंज़ूरी दी है।

प्रमुख बिंदु:

  • इन प्रस्तावों के तहत गंगोत्री नेशनल पार्क (Gangotri National Park) के तीन अलग-अलग स्थलों पर कुल 73.36 हेक्टेयर वन भूमि अलग-अलग सड़कों (कुल लंबाई 35.66 किमी.) के निर्माण के लिये हस्तांतरित की जाएगी।
  • उल्लेखनीय है कि गंगोत्री नेशनल पार्क एक संरक्षित क्षेत्र है और सड़कों के निर्माण के लिये हस्तांतरित की जाने वाली वन भूमि चीन के साथ सटी अंतर्राष्ट्रीय सीमा के पास है।
  • राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये ये मार्ग बहुत महत्त्वपूर्ण साबित होंगे क्योंकि ये चीन सीमा के पास भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (ITBP) के कर्मियों की आवाज़ाही को आसान बना देंगे।
  • अब इन सड़कों के लिये भूमि हस्तांतरण से संबंधित प्रस्ताव राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड (National Board for Wildlife) को भेजे जाएंगे। 

गंगोत्री नेशनल पार्क (Gangotri National Park):

  • इसे वर्ष 1989 में स्थापित किया गया था और यह उत्तराखंड के उत्तरकाशी ज़िले में भागीरथी नदी (Bhagirathi River) के ऊपरी जलग्रहण क्षेत्र स्थित है।
  • गंगोत्री ग्लेशियर पर गंगा नदी का उद्गम स्थल गौ-मुख इस पार्क के अंदर स्थित है।
  • इस पार्क के तहत आने वाला क्षेत्र गोविंद राष्ट्रीय उद्यान (Govind National Park) और केदारनाथ वन्यजीव अभयारण्य (Kedarnath Wildlife Sanctuary) के बीच एक जीवंत निरंतरता (Viable Continuity) बनाता है।
  • वनस्पति: यह पार्क घने शंकुधारी वनों से घिरा हुआ है जिनमें ज्यादातर समशीतोष्ण वन हैं। इस पार्क की सामान्य वनस्पतियों में चिरपाइन, देवदार, फर, स्प्रूस, ओक एवं रोडोडेंड्रॉन शामिल हैं।
  • जीव-जंतु: इस पार्क में विभिन्न दुर्लभ एवं लुप्तप्राय प्रजातियाँ जैसे- नीली भेड़, काले भालू, भूरे भालू, हिमालयन मोनल, हिमालयन स्नोकॉक, हिमालयन तहर, कस्तूरी मृग और हिम तेंदुए पाई जाती हैं। 

भारत-तिब्बत सीमा पुलिस

(Indo-Tibetan Border Police- ITBP):

  • केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों (Central Armed Police Force-CAPF) में से एक भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (Indo-Tibetan Border Police) को 24 अक्तूबर, 1962 को गठित किया गया था।
  • ITBP को लद्दाख के काराकोरम दर्रे से लेकर अरुणाचल प्रदेश में जाचेप ला (Jachep La) तक 3488 किलोमीटर की भारत-चीन सीमा पर ‘बॉर्डर गार्डिंग ड्यूटी’ के लिये तैनात किया गया है।
  • ITBP एक विशेष पर्वतीय बल (Mountain Force) है और इसके अधिकांश अधिकारी एवं कर्मचारी पेशेवर रूप से प्रशिक्षित पर्वतारोही एवं स्कीयर (Skiers) हैं।
  • प्राकृतिक आपदाओं के लिये प्राथमिक उत्तरदाता होने के नाते ITBP देश भर में कई बचाव एवं राहत अभियान चला रहा है।
  • इसका मुख्यालय नई दिल्ली में है।
  • नवंबर 2019 में भारत सरकार के गृह मंत्रालय ने असम राइफल्स (Assam Rifles) को ITBP के साथ विलय करने का प्रस्ताव दिया था। 

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


कृषि

प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना का विस्तार

प्रीलिम्स के लिये:

प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना

मेन्स के लिये:

प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना

चर्चा में क्यों?

हाल ही में राज्यों द्वारा 'प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना' (Pradhan Mantri Garib Kalyan Anna Yojana- PMGKAY) के विस्तार की मांग को देखते हुए योजना की अवधि को नवंबर, 2020 के अंत तक बढ़ा दिया गया है। 

प्रमुख बिंदु:

  • सरकार द्वारा योजना के विस्तार पर 90,000 करोड़ रुपए से अधिक का व्यय किया जाएगा।
  • सार्वजनिक वितरण प्रणाली’ का लाभ देश के सभी नागरिकों की प्राप्त हो सके इसके लिये ‘एक राष्ट्र, एक राशन कार्ड’ की व्यवस्था का विस्तार शीघ्र ही पूरे देश में किया जाएगा।
  • 1 जून, 2020 तक ‘एक राष्ट्र, एक राशन कार्ड’ योजना को 20 राज्यों/संघ शासित क्षेत्रों में लागू किया जा चुका है। 31 मार्च, 2021 तक सभी शेष राज्य भी इस योजना से जुड़ जाएंगे।  

प्रधान मंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (PMGKAY): 

  • PMGKAY, COVID-19 महामारी के खिलाफ लड़ाई में ‘प्रधानमंत्री गरीब कल्याण पैकेज’ (Pradhan Mantri Garib Kalyan Package-PMGKP) का एक हिस्सा है।
  • योजना के तहत 80 करोड़ राशन कार्डधारकों को कवर किया गया है। 
  • योजना की घोषणा तीन महीने (अप्रैल, मई और जून) के लिये की गई थी।
  • योजना के तहत प्रत्येक व्यक्ति को ‘राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम’ (National Food Security Act- NFSA) के तहत प्रदान किये 5 किलो अनुदानित अनाज (गेहूं या चावल) के अलावा 5 किलोग्राम मुक्त खाद्यान्न प्रदान किया जाएगा।
  • क्षेत्रीय प्राथमिकताओं के अनुसार, लाभार्थियों को मुफ्त में 1 किलो दाल भी प्रदान की गई है।

योजना का प्रदर्शन:

  • केंद्रीय खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय (Union Ministry of Food and Public Distribution) के अनुसार, योजना के तहत कुल 116.02 लाख मीट्रिक टन (LMT) खाद्यान्न का वितरण किया गया है।

माह 

वितरण लक्ष्य की प्राप्ति (प्रतिशत में)

लाभार्थियों की संख्या 

अप्रैल 

93%

74.05 करोड़ 

मई

91% 

72.99 करोड़

जून 

71%

56.81 करोड़

खाद्य स्टॉक की उपलब्धता:

  • केंद्र सरकार के अनुसार, ‘भारतीय खाद्य निगम’ (Food Corporation of India- FCI) के पास पर्याप्त मात्रा में खाद्यान्न का भंडार है। FCI के पास 266.29 LMT चावल और 550.31 LMT गेहूं का स्टॉक उपलब्ध है (जून 2020)।
  • जबकि प्रत्येक महीने, राशन कार्डधारकों को वितरण के लिये केवल 55 LMT खाद्यान्न की आवश्यकता होती है। 

समस्या के बिंदु:

  • पर्याप्त खाद्यान स्टॉक होने के बावजूद अप्रैल, 2020 में PMGKAY के तहत लगभग 200 मिलियन लाभार्थियों को अतिरिक्त खाद्यान्न और दालों के वितरण का लाभ नहीं मिला।
  • अप्रैल, 2020 में सरकार द्वारा अल्कोहल-आधारित हैंड सैनिटाइज़र बनाने के लिये अधिशेष चावल को इथेनॉल में बदलने की अनुमति दी गई थी। 
  • मानसून की शुरुआत के साथ, खाद्यान्नों के खराब होने का खतरा है।

आगे की राह:

  • PMGKAY के तहत किये जाने वाले खाद्यान्न वितरण को तब तक जारी रखना चाहिये जब तक कि COVID-19 महामारी का प्रभाव कम न हो जाए।
  •  ‘एक राष्ट्र, एक राशन कार्ड’ योजना के संबंध में व्यापक जागरूकता अभियान चलाए जाने की आवश्यकता है ताकि सभी प्रवासित श्रमिक योजना का लाभ उठा सके। 

स्रोत: द हिंदू


विविध

Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 01 जुलाई, 2020

‘एक्सीलेरेट विज्ञान’ योजना

देश में वैज्ञानिक शोध की गति को तीव्र करने और विज्ञान के क्षेत्र में कार्य करने हेतु मानव संसाधन का निर्माण करने के उद्देश्य से विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (DST) के सांविधिक निकाय विज्ञान एवं इंजीनियरी अनुसंधान बोर्ड (Science and Engineering Research Board -SERB) द्वारा ‘एक्सीलेरेट विज्ञान’ योजना (Accelerate Vigyan Scheme) की शुरुआत की गई है। यह योजना विज्ञान के क्षेत्र में कैरियर बनाने के इच्छुक छात्रों को रिसर्च इंटर्नशिप, क्षमता निर्माण कार्यक्रमों और कार्यशालाओं से संबंधित एक मंच प्रदान करने के उद्देश्य से शुरू की गई है। उल्लेखनीय है कि एक अंतर-मंत्रालयी (Inter-Ministerial) योजना के रूप में ‘एक्सीलेरेट विज्ञान’ योजना की शुरुआत यह मानते हुए की गई है कि अनुसंधान की गुणवत्ता उससे जुड़े प्रशिक्षित अनुसंधानकर्त्ताओं के विकास पर आधारित होती है। यह योजना अनुसंधान की संभावनाओं, परामर्श, प्रशिक्षण और व्यावहारिक कार्य प्रशिक्षण की पहचान करने की कार्यविधि को सुदृढ़ बनाने के लिये राष्ट्रीय स्तर पर कार्य करेगी। इस योजना के तीन व्यापक लक्ष्यों में वैज्ञानिक कार्यक्रमों का एकत्रीकरण, संसाधनों/सुविधाओं से दूर अनुसंधान प्रशिक्षुओं के लिये स्तरीय कार्यशालाओं की शुरुआत और अवसरों का सृजन करना शामिल है। गौरतलब है कि विज्ञान एवं  इंजीनियरी अनुसंधान बोर्ड जल्द ही इस कार्यक्रम से संबंधित एक एप भी शुरू करेगा। इस योजना के अंतर्गत विभिन्न विषयों पर केंद्रित उच्च स्तरीय कार्यशालाओं का आयोजन किया जाएगा, जिससे आगामी पाँच वर्षों में करीब 25 हजार पोस्ट ग्रेजुएट (Postgraduate) एवं पीएचडी (PhD) छात्रों को आगे बढ़ने का अवसर मिल सकेगा। 

राष्ट्रीय चिकित्सक दिवस

भारत में प्रत्येक वर्ष 01 जुलाई को राष्ट्रीय चिकित्सक दिवस (National Doctor's Day) मनाया जाता है, इस दिवस के आयोजन का मुख्य उद्देश्य समाज के प्रति चिकित्सकों के योगदान और उनकी प्रतिबद्धता के लिये उनका आभार व्यक्त करना है। ध्यातव्य है कि भारतीय समाज में चिकित्सकों को भगवान के समान दर्ज़ा दिया जाता है। भारत में राष्ट्रीय चिकित्सक दिवस के आयोजन की शुरुआत सर्वप्रथम वर्ष 1991 में हुई थी, तभी से प्रत्येक वर्ष 01 जुलाई को राष्ट्रीय चिकित्सक दिवस मनाया जाता है। इस दिवस का आयोजन पश्चिम बंगाल के दूसरे मुख्यमंत्री और चिकित्सक डॉ. बिधानचंद्र रॉय के सम्मान में किया जाता है। डॉ. बिधानचंद्र रॉय का जन्म 01 जुलाई, 1882 को हुआ था और संयोगवश उनकी मृत्यु भी 01 जुलाई 1962 को ही हुई थी। डॉ. बिधानचंद्र रॉय एक प्रख्यात भारतीय चिकित्सक, शिक्षाविद, स्वतंत्रता सेनानी और राजनीतिज्ञ थे, जिन्होंने वर्ष 1948 से वर्ष 1962 में अपनी मृत्यु तक पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री के रूप में अपनी सेवाएँ दीं। मौजूदा महामारी के दौर में विश्व भर में चिकित्सकों का महत्त्व और अधिक बढ़ गया है, सभी चिकित्सक प्रथम पंक्ति में खड़े होकर कोरोना वायरस (COVID-19) के खिलाफ जंग लड़ रहे हैं। 

नेशनल चार्टर्ड एकाउंटेंट्स दिवस

भारत में प्रतिवर्ष 01 जुलाई को नेशनल चार्टर्ड एकाउंटेंट्स दिवस (National Chartered Accountants Day) के रूप में मनाया जाता है। इस दिवस के आयोजन का प्रमुख उद्देश्य एक पारदर्शी अर्थव्यवस्था सुनिश्चित करने में चार्टर्ड एकाउंटेंट्स (CA) की भूमिका को रेखांकित करना है। इस दिवस का आयोजन इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टड अकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया (Institute of Chartered Accountants of India-ICAI) की स्थापना के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। ICAI भारत का राष्ट्रीय पेशेवर लेखा निकाय है और विश्व का दूसरा सबसे बड़ा लेखा संगठन (Accounting Organization) है। इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टड अकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया (ICAI) की स्थापना 01 जुलाई, 1949 को संसद में पारित एक अधिनियम के माध्यम से की गई थी। ध्यातव्य है कि ICAI भारत में वित्तीय ऑडिट (Financial Audit) और लेखा (Accounting) पेशे के लिये एकमात्र लाइसेंसिंग और नियामक निकाय है। एक पेशे के रूप में चार्टर्ड एकाउंटेंट्स (CA) के इतिहास को ब्रिटिश काल से खोजा जा सकता है। ब्रिटिश सरकार ने सर्वप्रथम वर्ष 1913 में कंपनी अधिनियम पारित किया था, इसमें उन पुस्तकों की एक निर्धारित सूची थी, जिन्हें अधिनियम के तहत पंजीकृत प्रत्येक कंपनी को बनाए रखना अनिवार्य था। इसके अलावा, अधिनियम में एक ऑडिटर की नियुक्ति का भी प्रावधान किया गया था, जिसके पास सभी पुस्तकों के निरीक्षण की शक्तियाँ थीं। 

प्लाज़्मा बैंक

हाल ही में दिल्ली सरकार ने कोरोना वायरस (COVID-19) से संक्रमित लोगों की सहायता के लिये एक प्लाज़्मा बैंक (Plasma Bank) स्थापित करने की घोषणा की है। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के अनुसार, दिल्ली में स्थापित होने वाला यह प्लाज़्मा बैंक देश भर में अपनी तरह का पहला बैंक होगा। साथ ही मुख्यमंत्री ने COVID-19 से ठीक हो चुके मरीज़ों से प्लाज़्मा दान देने की भी अपील की है। इस संबंध में प्लाज़्मा दानकर्त्ताओं के लिये एक विशेष हेल्पलाइन भी जारी की जाएगी। दिल्ली का यह प्लाज़्मा बैंक भी ब्लड बैंक (Blood Bank) की तरह ही कार्य करेगा और यहाँ COVID-19 संक्रमण से उबर चुके मरीज़ अपने प्लाज़्मा दान कर सकेंगे, वहीं वायरस से संक्रमित लोग यहाँ से प्लाज़्मा प्राप्त कर सकेंगे। दिल्ली, प्लाज्मा थेरेपी के साथ परीक्षण करने के लिये ICMR से मंज़ूरी प्राप्त करने वाले कुछ विशिष्ट राज्यों में से एक है। गौरतलब है कि इस इस पद्धति के अंतर्गत स्वस्थ हो चुके COVID-19 के रोगियों के शरीर से प्लाज़्मा को प्राप्त किया जाता है तथा रोगी के शरीर में इन्हें प्रविष्ट कराकर उसका उपचार किया जाता है। परीक्षण में पाया गया है कि यह उपचार गंभीर रोगियों पर उतना प्रभाव नहीं है, हालाँकि कम लक्षण वाले रोगियों पर इसकी प्रतिक्रिया काफी सकारात्मक रही है।


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