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दृष्टि आईएएस ब्लॉग

हाथियों का संरक्षण क्यों आवश्यक है

वर्ष 2016 में रिलीज हुई एक अंग्रेजी फिल्म "द जंगल बुक" के एक दृश्य में मोगली तथा उसका दोस्त काला तेंदुआ बघीरा, हाथियों के झुंड को आता देखते हैं। मोगली उन्हें देखकर झाड़ियों में सिर झुकाकर छिपने का प्रयास करता हैं। तब बघीरा उस से कहता है "ये हाथी हैं……इन्हें झुककर प्रणाम करो। ये जंगल के कर्ता-धर्ता हैं…….जहाँ हाथी गये, वहीं जंगल बने।" फिर वे दोनों ही हाथियों के उस झुंड के आगे नतमस्तक होते हैं। हाथियों का वह झुंड उन्हें देखते हुए खामोशी से अपनी राह चला जाता है।

कहने को यह बच्चों में बेहद लोकप्रिय एक फिल्म का दृश्य मात्र है, जिसे सम्भवतः बच्चों के मनोरंजन के लिये रखा गया होगा। लेकिन वन्य-जीव पारितंत्र (Forest Ecosystem) में यदि हाथियों की भूमिका को देखा जाए, तो बघीरा का कथन कहीं से भी अतिशयोक्ति नहीं है।

पारिस्थितिकीय महत्व के साथ-साथ विश्व की तमाम संस्कृतियों, पौराणिक दंत कथाओं में हाथी को विशेष महत्व दिया गया है व प्रायः सभी स्थानों पर इसे बल, बुद्धि, सौभाग्य व श्रेष्ठता तथा समृद्धि और वैभव का प्रतीक माना गया है। हिन्दू संस्कृति में भगवान गणेश (जिनका धड़ मनुष्य का व शीश हाथी का है) को बुद्धि का देवता और विघ्न संहारक माना गया है और किसी भी मांगलिक कार्य आदि के पूर्व सर्वप्रथम उन्हीं की आराधना की जाती है। दीपावली पर्व पर गणेश-लक्ष्मी की पूजा का ही विधान है –

"गजाननं भूतगणादि सेवितं
कपित्थ जम्बूफलसार भक्षितम्
उमासुतं शोक विनाशकारणं
नमामि विघ्नेश्वर पादपङ्कजम् ॥"

अर्थात, "जिनका मुख्य गज के समान है, भूत-गण आदि जिनकी सेवा करते हैं, जिन्हें कैथ व जामुन के फल अति प्रिय हैं, जो स्वयं देवी पार्वती के पुत्र हैं और जो प्रत्येक शोक का विनाश करने वाले हैं, जिनके पाँव कमल के सदृश हैं, उन विघ्नहर्ता भगवान गणेश की मैं वंदना करता हूँ।"

प्राचीन हिन्दू खगोलशास्त्र में 8 हाथियों को ब्रह्मांड के 8 क्षेत्रों का रक्षक बताया गया है। वर्षा के देवता इंद्र का वाहन भी समुद्र मंथन से प्राप्त दिव्य, श्वेत वर्णीय हाथी 'ऐरावत' माना गया है। हड़प्पा से खुदाई में प्राप्त कई मोहरों पर स्पष्टतः हाथी की आकृति अंकित है। केरल प्रांत की संस्कृति में हाथियों के बिना कोई अनुष्ठान सम्पन्न नहीं होता। यही नहीं, जापानी बौद्ध पंथ में हिन्दू भगवान गणेश से हू-ब-हू मिलते-जुलते देवता 'कंगितेन' का उल्लेख मिलता है जिसे समृद्धि व सौभाग्य का देवता माना जाता है। बौद्ध धर्म में सफेद हाथी का सम्बन्ध भगवान बुद्ध की माता महामाया को गर्भावस्था में प्रायः आने वाले स्वप्न से स्थापित किया जाता है। स्वप्न में आने वाले श्वेत हाथी की व्याख्या ही राज-ज्योतिषियों ने इस प्रकार की थी कि आने वाला बच्चा संसार का सर्वाधिक बुद्धिमान व ज्ञानी पुरुष, अर्थात्‌ 'बुद्ध' होगा। अफ्रीकी दंतकथाओं में जंगली हाथी को अति बुद्धिमान व निष्पक्ष, प्रधान न्यायाधीश बताया गया है जिसके सामने जंगल के समस्त विवाद और समस्याएं लाई जाती हैं और वह उन्हें सर्वमान्य, निष्पक्ष रूप से हल कर देता है जिससे जंगलों में शांति बनी रहती है। घाना की असांति जनजाति जंगली हाथियों को पूर्वजन्म में अपने कबीले का अधिपति व न्यायाधीश मानती है जिन्होंने हाथी के रूप में दोबारा जन्म लिया है।

हाथियों के पर्यावरणीय और सांस्कृतिक महत्व के कारण ही विश्व भर में 12th अगस्त का दिन "विश्व हाथी दिवस" के रूप में मनाया जाता है।

भूमि पर विशालतम जानवर हाथी है, और मूल रूप से इसकी तीन प्रजातियाँ पायी जाती हैं - अफ्रीकी जंगली हाथी (मुख्य संकेंद्रण पश्चिमी अफ्रीका), अफ्रीकी सवाना हाथी (मुख्य संकेंद्रण दक्षिण-मध्य अफ्रीकी सवाना क्षेत्र) और एशियाई हाथी (दक्षिणी व दक्षिण-पूर्वी एशिया)। दुर्भाग्य से ये सभी प्रजातियाँ संकट के दायरे में हैं। International Union for Conservation of Nature (IUCN) ने अपनी रेड लिस्ट श्रेणी (Red List Category) में अफ्रीकी सवाना हाथी और एशियाई हाथी की प्रजाति को 'संकटापन्न (Endangered)' और अफ्रीकी जंगली हाथी को 'अत्यधिक संकटापन्न (Critically endangered)' प्राणियों के वर्ग में शामिल किया है अर्थात ये सभी प्रजातियाँ विलुप्त होने के कगार पर हैं। एक समय था जब अफ्रीका से लेकर दक्षिण-पूर्वी एशिया तक लगभग हर स्थान पर हाथी पाये जाते थे किंतु पिछले करीब 100 वर्षों में इनकी संख्या में अविश्वसनीय कमी आयी है, और कई स्थानों से तो ये पूर्णतः समाप्त हो गये हैं। अतः वर्तमान में इनका निवास स्थान कुछ गिने चुने स्थानों तक ही सीमित रह गया है, और वहाँ भी ये सुरक्षित नहीं हैं। अफ्रीकी हाथी जहाँ मुख्यतः हाथीदाँत (Ivory tusk) के अवैध व्यापार और तस्करी के कारण मारे जा रहे हैं वहीं एशियाई हाथियों की समाप्ति का प्रमुख कारण हाथीदाँत, प्राकृतिक आवास विनाश (Natural habitat destruction) व लगातार बढ़ता मानव-पशु टकराव (Human-animal conflict) है।

वर्ल्ड वाइल्ड लाइफ फंड (WWF) के अनुसार करीब 100 वर्ष पूर्व तक सिर्फ अफ्रीका में ही 1 करोड़ से ज्यादा हाथी थे। 1979-80 तक अफ्रीका में इनकी संख्या 20 लाख तक रह गई थी। अगले दस वर्षों में, 1990 तक मात्र 6 लाख हाथी अफ्रीका में बचे थे। 1977 से 1990 की छोटी अवधि में ही पूर्वी अफ्रीका क्षेत्र के लगभग 75% हाथी समाप्त कर दिये गये थे। 1987 के बाद अफ्रीका में इनका अवैध शिकार बेतहाशा बढ़ गया और 1987 से अब तक अफ्रीका सवाना हाथियों की संख्या में 80% व अफ्रीकी जंगली हाथियों की संख्या में करीब 45% की गिरावट आयी है। सिर्फ 2002 से 2011 के मध्य ही अफ्रीकी हाथी 62% तक कम हो गये तथा उनके प्राकृतिक आवासीय क्षेत्रों में 30% की कमी आई। 2016 तक पूरे अफ्रीका में हाथियों की कुल संख्या 4 लाख से कुछ ही अधिक थी। हाल के वर्षों में अफ्रीका में करीब 15000 हाथी प्रति वर्ष हाथीदाँत के लिये मारे जा रहे हैं।

एशियाई हाथियों की स्थिति भी अधिक बेहतर नहीं है। 1980 से अब तक इनके प्राकृतिक निवास क्षेत्र में 50% से अधिक की कमी आई है। 1980 तक एशिया में करीब 93 लाख हाथी थे, जो अब सिर्फ 45 हज़ार से 50 हज़ार तक सीमित रह गये हैं। इनमें से भी लगभग 60% भारत व नेपाल में हैं, शेष श्रीलंका, थाइलैंड, म्यांमार आदि देशों में थोड़ी-थोड़ी संख्या में हैं। इंडोनेशिया के सुमात्रा में ये अपना प्राकृतिक आवासीय क्षेत्र 70% तक खो चुके हैं और IUCN ने वहाँ इन्हें 'अत्यधिक संकटापन्न (Critically endangered)' श्रेणी में शामिल किया है। वर्तमान में भारत में हाथियों की कुल तादाद लगभग 27 हज़ार से 30 हज़ार के बीच है।

हाथियों का पारिस्थितिकीय महत्व –

वन्य-जीव पारितंत्र में हाथियों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। पारिस्थितिकी (Ecology) में इन्हें "की-स्टोन प्रजाति या अंब्रेला प्रजाति (Keystone species or Umbrella species)" का दर्जा दिया जाता है, अर्थात अपने पारितंत्र में ये वह प्रजाति हैं जो संख्या में बहुत कम होने के बाद भी पारितंत्र की सेहत पर अति निर्णायक प्रभाव डालती हैं तथा पारितंत्र के बहुत से प्राणियों का अस्तित्व इन्हीं पर निर्भर करता है। इसी कारण इन्हें "फ्लैगशिप प्रजाति (Flagship species)" भी कहा जाता है, जिनका संरक्षण करना अत्यावश्यक है। इसे इस प्रकार से समझा जा सकता है –

1) परागण क्रिया (pollination) में भूमिका व वन क्षेत्र में वृद्धि – हाथी वन में भ्रमण करते समय अपने अति विशाल आकार के कारण वृक्षों, लताओं, पत्तियों आदि से घर्षण क्रिया करते हुये चलते हैं जिसके कारण विभिन्न प्रकार के छोटे-बड़े पौधों के बीज व परागकण उनके शरीर से चिपक जाते हैं। हाथी किसी अन्य स्थान पर जब जाते हैं तब ये बीज व परागकण वहाँ पर छिटक जाते हैं जिससे नये पौधों का विकास होता है।

एक औसत वयस्क हाथी एक दिन में लगभग 50 -60 वर्ग कि.मी. की यात्रा कर लेता है। इसी कारण ये बीजों और परागकणों को काफी दूर तक फैला देते हैं जिससे वन क्षेत्र बढ़ता है।

2) जंगल के छोटे जंतुओं का पोषण - हाथी अपने ऊँचे कद के कारण बड़े वृक्षों से अपना आहार ग्रहण करते है, व इस प्रक्रिया में बहुत सारी पत्तियाँ, नर्म टहनियां, फल-फूल आदि पदार्थ जमीन पर गिरा देते हैं। यही पदार्थ जंगल में छोटे प्राणियों के लिये (जो पेड़ों पर चढ़ने में असमर्थ होते हैं), भोजन का कार्य करते हैं।

3) हाथियों का मल त्याग - सूक्ष्म जीवों हेतु वरदान – एक औसत रूप से स्वस्थ, वयस्क हाथी दिन का लगभग 80% समय खाने-पीने में बिताता है। हाथी प्रतिदिन लगभग 200-300 किलोग्राम खाद्य पदार्थ, व 60-100 लीटर जल ग्रहण करता है। इस प्रक्रिया में वह काफी अधिक ठोस व तरल अपशिष्ट भी उत्सर्जित करता है (करीब 100 किग्रा ठोस अपशिष्ट व 40-50 लीटर तरल अपशिष्ट प्रति दिन)। हाथियों का ठोस अपशिष्ट वन के सूक्ष्म जीवों के लिये वरदान की तरह होता है। हाथी अपने भोजन का लगभग 40% ही पचाता है, शेष 60% सामग्री बिना पचे ही बाहर आ जाती है, जिसमें ढेर सारे फल-फूल, घास, पत्तियाँ, बीज आदि शामिल रहते हैं। यही सामग्री जंगल के असंख्य सूक्ष्म जीवों के लिये मुख्य भोजन बन जाती है।

इतना ही नहीं, बल्कि हाथी का मल, कई सूक्ष्म जीवों के लिये प्राकृतिक आवास का भी कार्य करता है तथा सिर्फ हाथी के मल से ही उन जीवों के लिये एक भरा-पूरा पारितंत्र विकसित हो जाता है।

वन में परागण क्रिया का एक काफी बड़ा भाग भी हाथियों के ठोस अपशिष्ट के जरिये ही पूरा होता है।

4) हाथियों का मल त्याग - वनों की उर्वरता में वृद्धि – हाथियों द्वारा बड़ी मात्रा में ठोस व तरल अपशिष्ट का उत्सर्जन वनीय मृदा की उर्वरता में बढ़ोत्तरी करता है।

5) वन में रास्तों का निर्माण व सूर्य के प्रकाश की व्यवस्था - जंगल में हाथी विशालतम प्राणी होते हैं। अपने भोजन ग्रहण करने व भ्रमण करने की प्रक्रिया में वे कई बड़े व लम्बे वृक्षों को भी गिरा देते हैं। इस से छोटे प्राणी अपना भोजन तो पाते ही हैं, साथ ही सूर्य का प्रकाश भी जंगल की जमीन तक आता है। इस कारण छोटे पौधों, लताओं, बेलों आदि को फलने-फूलने का भरपूर अवसर मिल जाता है।

हाथी जंगल की घास, झाड़ियों आदि को कुचलते हुए चलते हैं जिसके कारण जंगलों में वे अन्य जीवों के लिये रास्तों का भी निर्माण करते हैं।

6) हाथियों द्वारा जल स्त्रोत का निर्माण (Water holes digging) - हाथी वन क्षेत्र में अपनी अति संवेदनशील सूंड़ व दाँत की मदद से जमीन में खुदायी करते हुये पेयजल के स्रोत (Water holes) निर्मित कर लेते हैं। यह जल-स्त्रोत जंगली के बाकी सभी प्राणियों के लिये जीवन रेखा का कार्य करते है। विशेष तौर पर ग्रीष्म ऋतु में तो इनका महत्व अत्यधिक बढ़ जाता है।

7) सवाना पारितंत्र की विशिष्टता बनाए रखना - विश्व में अफ्रीका के सवाना पारितंत्र की अपनी एक अलग विशेष पहचान और महत्व है। वहाँ घास और बड़े वृक्षों का एक विशिष्ट समागम परिलक्षित होता है और पूरे क्षेत्र में एक पार्क जैसी दृश्यभूमि निर्मित होती है। विश्व के किसी अन्य भाग में इस प्रकार का पर्यावरण द्रष्टव्य नहीं होता है। हाथियों की इस पारितंत्र को बनाये रखने में महत्वपूर्ण भूमिका है जो अधिक बड़े, पुराने व लम्बे वृक्षों को भोजन व भ्रमण आदि क्रियाओं में गिराते रहते हैं। ऐसा न होने की स्थिति में वृक्षों की अधिकता हो जायेगी और इस पारितंत्र की विशिष्टता खतरे में आ जायेगी।

8) कैप्चर व जलवायु परिवर्तन का सामना करने में हाथियों की भूमिका - अब यह बात वैज्ञानिकों द्वारा स्पष्ट रूप से कही जा रही है कि हाथियों के कारण कार्बन कैप्चर बढ़ाया जा सकता हैऔर वैश्विक तापन से निपटने में मदद मिल सकती है। हाथी वन्य क्षेत्र में भ्रमण के दौरान झाड़ियों, घास-फूस व छोटे पौधों को कुचलते हुये चलते हैं। इस कारण जो वृक्ष उनसे बच जाते हैं वे तेजी से बढ़ते हैं और इस प्रक्रिया में काफी मात्रा में कार्बन कैप्चर करते हैं। हाथियों द्वारा दूरस्थ स्थान तक परागण करने और इस प्रकार वन क्षेत्रफल में वृद्धि के कारण भी प्रदूषण कम करने और कार्बन कैप्चर बढ़ाने में मदद मिलती है।

वाशिंगटन स्थित Animal Welfare Institute तथा IMF के एक संयुक्त अध्ययन में यह बात सामने आयी है, कि IMF द्वारा विकसित एक गणितीय मॉडल के अनुसार एक हाथी अपने जीवन काल में 1.76 मिलियन डॉलर मूल्य के बराबर कार्बन कैप्चर करने में मदद करता है। यदि अफ्रीका के 1 लाख हाथी और उनकी आगामी संततियों को भी गिना जाए तो ये सभी मिलकर अपने जीवनकाल में कुल 176 अरब डॉलर मूल्य का कार्बन कैप्चर कर सकेंगे। यदि हाथीदाँत के अवैध व्यापार के लिये की जाने वाली इनकी हत्याओं पर प्रभावी ढंग से रोक लग जाये तो यह राशि और भी अधिक होगी। अभी इनकी संख्या में 1.9% प्रतिवर्ष की दर से वृद्धि हो रही है। अवैध शिकार की अनुपस्थिति में यह दर 3.6% प्रतिवर्ष होगी और फिर ये हाथी 375 अरब डॉलर मूल्य के बराबर कार्बन कैप्चर कर सकेंगे।

उपरोक्त विशेषताओं के कारण ही हाथियों को "पारितंत्र का इंजीनियर (Ecosystems Engineer or Environmental Engineers)" कहा जाता है।

अपने पारिस्थितिकीय व सांस्कृतिक महत्व के अतिरिक्त हाथी कई प्रकार के आर्थिक लाभ भी प्रदान करते हैं। जैसे -

  • हाथियों के मल से प्राप्त प्राकृतिक सैल्यूलोज और लुगदी से बायोडीग्रेडेबल काग़ज़ निर्मित होता है। इनसे काग़ज़ तैयार करके पेड़ों को बचाया जा सकता है.
  • अपने विशेष फ्लेवर के लिये प्रसिद्ध "ब्लैक आइवरी कॉफी (Black Ivory Coffee)" हाथी के मल से प्राप्त होती है।
  • हाथी का मल विशेषत: नाक से जुड़े रोगों, साइनस आदि के इलाज में मददगार सिद्ध हुआ है, जिसके कारण दवाओं में भी इसका प्रयोग होता है।
  • हाथी का ठोस अपशिष्ट एक प्रभावी मच्छर प्रतिरोधक (Mosquito repellent) है. वन क्षेत्र में रहने वाले जनजातीय लोग इसका प्रयोग अपने दैनिक जीवन में करते हैं।
  • अफ्रीका व एशिया के पर्यटन उद्योग में हाथियों की भूमिका किसी परिचय की मोहताज नहीं है।

किंतु हाथियों से सम्बन्धित इन तमाम सकारात्मक पक्षों के बाद भी इनकी संख्या में आशातीत गिरावट आयी है। यह गिरावट इतनी तेजी से, और इतने बड़े पैमाने पर आयी है कि विवश होकर विश्व के कई देशों को, जिसमें भारत भी शामिल है, विशेष रूप से हाथियों के लिये संरक्षण कार्यक्रम चलाना पड़ रहा है। इसके निम्न कारण हैं –

1 . हाथी दाँत का फलता-फूलता अवैध व्यापार - हाथी की सुन्दरता में चार चाँद लगाने वाले उसके दाँत (Ivory tusks) ही हाथियों की लगातार घटती जा रही संख्या का सर्वाधिक अहम कारण हैं। हाथीदाँत की, तथा इससे बने आभूषण, सजावटी सामानों आदि की अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में बहुत अधिक कीमतें हैं जिसके कारण इनकी तस्करी (smuggling) का कारोबार बेतहाशा तीव्र गति से जारी है। हाथी के दाँतों की नसें उसके मस्तिष्क से जुड़ी होती है अतः बिना हाथी को मारे उसके दाँत निकाले नहीं जा सकते। इन्हीं के कारण एशिया व अफ्रीका के जंगलों में हाथियों का अवैध शिकार (Poaching) आम बात हो गई है।

1990 में हाथीदाँत का व्यापार करीब 1 अरब डॉलर प्रतिवर्ष का था जिसके चलते करीब 75000 अफ्रीकी हाथी प्रतिवर्ष मारे जा रहे थे। 1990 से हाथीदाँत के अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार पर सख्ती से रोक लगायी गयी लेकिन आज, लगभग 35 वर्ष बाद भी 15000 अफ्रीकी हाथी प्रतिवर्ष मारे ही जा रहे हैं, अर्थात्‌ प्रतिदिन लगभग 40 हाथियों की हत्या। इन हाथियों की 80% आबादी मात्र पिछले सौ सालों में समाप्त की गई है। 2010 के बाद हाथियों के अवैध शिकार में फिर तेजी आई जो मुख्यतः चीन, व अन्य पूर्वी देशों में नव धनाढ्य वर्ग द्वारा हाथीदाँत को प्रतिष्ठा का चिन्ह समझने और बड़ी मात्रा में उस से निर्मित सजावटी सामान खरीदने के कारण आयी।

भारत में भी स्थिति कोई बहुत अलग नहीं रही है। यहाँ भी पिछले 5 वर्षों में करीब 45 हाथियों को हाथीदाँत के लिये मारा गया है। कर्नाटक राज्य के कुख्यात तस्कर वीरप्पन ने अकेले 1962 से 2002 के बीच 2000 से भी अधिक हाथियों का अवैध शिकार किया तथा करीब 20 करोड़ रुपये के हाथीदाँत की तस्करी की थी।

2. प्राकृतिक आवास विनाश (habitat destruction) व क्षरण (fragmentation) - भारत व एशिया के अन्य देशों में यह समस्या कहीं अधिक गम्भीर है। इनमें देशों की आबादी पिछले लगभग 40 वर्षों में बहुत तेजी से बढ़ी जिसके कारण रिहाइशी क्षेत्रों और कृषि कार्यों के लिये भूमि की माँग बेतहाशा बढ़ी है। इन कारणों से इन देशों में बड़े पैमाने पर जंगलों की कटाई की गयी। इस प्रकार हाथियों के प्राकृतिक आवास में काफी कमी आई है। भारत में हाथी अपने प्राकृतिक आवास क्षेत्र का लगभग 86% खो चुके हैं। चीन में यह 94% तक है। इंडोनेशिया, सुमात्रा के क्षेत्रों में इनके प्राकृतिक आवासीय क्षेत्रों में 70% तक की कमी हुई है।

द्रुत गति से होने वाले आधारभूत संरचना विकास (सड़क, रेलमार्ग, फ्लाईओवर आदि) से भी हाथियों के प्राकृतिक आवासीय क्षेत्रों का विनाश और क्षरण काफी अधिक हुआ है। देश में जंगलों में हाथियों की उन्मुक्त आवाजाही तथा इनका मानव से टकराव रोकने के लिये लगभग 110 हाथी गलियारे (Elephant corridors – दो बड़े जंगली क्षेत्रों को जोड़ने वाला संकीर्ण जंगली मार्ग) बनाये गये हैं। करीब 80% गलियारे हाथियों द्वारा नियमित रूप से इस्तेमाल भी किये जाते हैं। किन्तु वर्तमान में लगभग 66% गलियारे ऐसे हैं जिनसे होकर राजमार्ग निकलते हैं। करीब 22% गलियारों से होकर रेलवे लाइनें गुज़रती हैं।

3. मानव-पशु टकराव (Human-animal conflict) - यह हाथियों के प्राकृतिक आवास विनाश और क्षरण का दुष्परिणाम है। हाथी एक अति विशालकाय पशु है जिसे रहने के लिये काफी बड़ा क्षेत्रफल और वन क्षेत्र चाहिये। जब वनीय विनाश अधिक हो और सड़कों, रेलमार्ग आदि से उनका लगातार विभाजन और क्षरण हो, तो ऐसी स्थिति में हाथी या तो भोजन, पेयजल की तलाश में, या फिर रास्ता भटक कर मानव बस्तियों, कृषि क्षेत्रों, सड़क राजमार्गों या रेलमार्ग पर आ जाते हैं। इन सभी स्थितियों में हाथियों की जान को सर्वाधिक खतरा होता है।

फसल बचाने के लिये प्राय: सुरक्षा उपाय के तौर पर किसान खेतों को बिजली के तारों से घेर देते हैं। इनमें तारों की चपेट में आकर कई बार हाथियों की जान चली जाती है। वर्ष 2020 में केरल में एक हाथी को उसके मुँह में पटाखे भरकर मार दिया गया था जिसकी व्यापक निंदा हुई थी। उसका कारण यही था कि हाथियों के कारण उस क्षेत्र में फसलों को अधिक नुकसान हो रहा था।

सड़क राजमार्गों पर प्रायः ये भटके हुए हाथी सड़क दुर्घटनाओं का कारण बनते हैं। विशेष रूप से दक्षिण भारत में उनके कारण होने वाली सड़क दुर्घटनाएं आम हैं।

रेलमार्ग पर आने के कारण ये तेज रफ्तार गाड़ियों के रास्ते में आकर जान गंवाते हैं।

4. हाथियों की तस्करी (Elephant trafficking) - नेपाल, भूटान, थाईलैंड और म्यांमार में यह समस्या अधिक है। इन देशों की सीमा चीन से लगती है। चीन में हाथियों के माँस की अधिक माँग रहती है और हाथियों के विभिन्न अंगों का प्रयोग दवा आदि बनाने में भी होता है। इसके कारण सीमावर्ती देशों से चीन में हाथी अवैध रूप से ले जाये जाते हैं।

अफ्रीका में भी माँस के लिये कैमरून, कांगो, केंद्रीय अफ्रीका गणराज्य आदि देशों में हाथियों को मारा जाता है। वहाँ वस्तुतः यह हाथीदाँत के अवैध व्यापार के साथ आने वाला सह-उत्पाद ही है।

हाथी संरक्षण के प्रयास -

हाथियों की महत्ता और इनकी तेजी से घटती तादाद के कारण राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी काफी प्रयास किये गये हैं, जैसे -

  • संस्था WWF द्वारा इस दिशा में भरसक प्रयास किया गया है। विश्व भर की सरकारों पर दबाव बनाया गया और उन्हें हाथियों के संरक्षण पर कानून बनाने को विवश किया गया। 2017 में इसी कारण चीन में हाथीदाँत के व्यापार को गैर-कानूनी घोषित किया गया व उस पर प्रतिबंध लगाया गया।
  • हाथियों की सभी प्रजातियों को IUCN द्वारा 'संकटापन्न (Endangered)' अथवा 'अत्यधिक संकटापन्न (Critically endangered)' श्रेणी में रखा गया है। इसके अतिरिक्त हाथियों को CITES (संकटापन्न वन्य जीवों का अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार पर अभिसमय - Convention on International Trade of Endangered species of Wild Fauna and Flora) की सूची में भी अनुसूची-I में शामिल किया गया है, यानि ये लुप्त होने के कगार पर हैं।
  • भारत में वन्य जीव संरक्षण अधिनियम-1972 में स्पष्टतः हाथी के शिकार पर रोक लगाई गयी है। 1992 से ही भारत सरकार ने "प्रोजेक्ट एलिफैंट" चलाया हुआ है जिसके अंतर्गत देश में अब तक 15 राज्यों में कुल 33 डेडिकेटेड एलिफैंट रिज़र्व स्थापित किये गये हैं जिनका कुल क्षेत्रफल लगभग 80 हज़ार वर्ग कि.मी. है।

लेकिन जैसा कि हम आँकड़ों से समझ सकते हैं, इन प्रयासों का कोई बहुत अधिक सार्थक परिणाम नहीं आ सका है। हाथियों का अंधाधुंध शिकार अभी भी बदस्तूर जारी है, साथ ही मनुष्यों की कैद में रहने वाले हाथियों (Elephants in human captivity), और उन पर होने वाले अमानवीय अत्याचार को लेकर भी कुछ ठोस कदम उठाये नहीं जा सके हैं। हाथियों का मनुष्यों से टकराव के मामले भी बढ़ रहे हैं। इनके पीछे प्रमुख कारण इस प्रकार हैं -

  • लगातार बढ़ती आबादी, कृषि क्षेत्र का बढ़ता रकबा और रिहाइशी इलाकों का बढ़ता क्षेत्र, साथ ही साथ अवैज्ञानिक तरीके से क्रियान्वित की जा रही आधारभूत संरचना विकास की गतिविधियाँ।
  • सरकारी इच्छा-शक्ति की कमी और सरकारी तंत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार जिसके कारण वन्य-जीव संरक्षण का सही अनुपालन नहीं होता।
  • इसे हाल के ही घटनाक्रम से समझ सकते हैं कि 2022 में संसद ने वन्य-जीव संरक्षण अधिनियम-1972 में संशोधन किया है जिसके तहत पिछले 50 वर्षों में पहली बार भारत में हाथियों के व्यापार की अनुमति दी गई है। निश्चित तौर पर यह हाथियों के संरक्षण के प्रयास को एक बड़ा धक्का है।
  • संरक्षण प्रयासों में बिना स्थानीय समुदायों को विश्वास में लिये, बिना उनकी जरूरतों और समस्याओं को समझे, सिर्फ कानून बनाकर और डंडे के जोर पर उन्हें ऊपर से थोपने की सरकारी प्रवृत्ति।

यहाँ हाल में ही ऑस्कर पुरस्कार विजेता भारतीय लघु डॉक्यूमेंट्री फिल्म "दि एलिफैंट व्हिस्परर्स ( The Elephant Whisperers)" का उल्लेख करना जरूरी है जहाँ तमिलनाडु के जंगली क्षेत्र में रहने वाले बेहद गरीब जनजातीय वृद्ध दंपत्ति द्वारा एक हाथी के घायल व अनाथ बच्चे को गोद ले लिया जाता है और वे लोग प्रेमपूर्वक उसका पालन-पोषण करते हैं। मानव-पशु टकराव के इस दौर में मानव-पशु प्रेम व सह-अस्तित्व का यह उदाहरण बताता है कि ज़मीनी हकीकत से रू-ब-रू होना कितना जरूरी है और उसके बाद कोई भी कार्य कितना सरल हो जाता है।

  हर्ष कुमार त्रिपाठी  

हर्ष कुमार त्रिपाठी ने पूर्वांचल विश्वविद्यालय से बी. टेक. की उपाधि प्राप्त की है तथा DU के दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनोमिक्स से भूगोल विषय में परास्नातक किया है। वर्तमान में वे शिक्षा निदेशालय, दिल्ली सरकार के अधीन Govt. Boys. Sr. Sec. School, New Ashok Nagar में भूगोल विषय के प्रवक्ता के पद पर कार्यरत हैं।

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