इंदौर शाखा: IAS और MPPSC फाउंडेशन बैच-शुरुआत क्रमशः 6 मई और 13 मई   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

दृष्टि आईएएस ब्लॉग

पैकिसेटस से ब्लू ह्वेल : विकास की यात्रा

दोस्तो, कहते हैं न कि छोटे मन से कोई बड़ा नहीं होता। दुनिया में बड़ा बनने के लिये, कुछ बड़ा पाने के लिये अपने मन को, बड़ा बनाना पड़ता है। और ऐसा तभी होगा जब हम बड़े दृष्टिकोण अपनाएँ। कोई दौड़ की प्रतियोगिता हो और हम सोचें कि अपने प्रतिद्वंद्वी की टाँग खींचकर आगे निकल जाएंगे तो ऐसा हो तो सकता है पर उस एक टाँग खिंचाई में दूसरे सारे हमसे आगे निकल जाएंगे। इसलिये यह एक छोटा और नकारात्मक तरीका हुआ। पर वहीं अगर हम जीत का सकारात्मक तौर अपनाएँ, तो वो हमेशा एक बड़ी सोच से ही मिल सकती है। अब प्रश्न उठता है कि बड़ी सोच किस तरह काम करती है? क्या बड़ी लकीर खींच कर विजय पाने का कोई उदाहरण है? तो मैं वन्य-जीव कहानीकार होने के नाते एक किस्सा सुनाता हूँ जो एवल्यूशन के इतिहास में सचमुच घटित हुई है। इसलिये आप इसे सच्ची घटना भी मान सकते हैं। यह कहानी ह्वेल की है, ब्लू ह्वेल की।

वैसे प्रकृति का हर जीव एक शिक्षक है। उससे एक सीख ली जा सकती है। साँप से चीज़ों का अधिकतम उपयोग (किसी चीज़ को पूर्णत: निगल जाता है, कोई अवशेष नहीं छोड़ता) और जितनी जगह मिले उसमें एडजस्ट होना सीखा जा सकता है, तो बाज़ से कौए जैसे हर जगह चोंच लगाने वाले लोगों को नज़रंदाज़ करने का। शेर से साहस की सीख मिलती है तो हिरण से हमेशा चौकन्ना रहने का। मकड़े से तो ब्रह्मज्ञान प्राप्त होता है जो ब्रह्मा की तरह दुनिया रूपी जाल बुनता भी है और फिर खुद में ही समाहित भी कर लेता है। सभी जीवों से कुछ-न-कुछ प्रेरणा मिलती है किन्तु उनमें भी ब्लू ह्वेल का स्थान सबसे अलग है।

ब्लू ह्वेल को देखकर सबसे पहले पटल पर दृश्य उभरता है उस पैकिसेटस (Pakicetus) का जो बकरी के आकार का एक जानवर होता था और कभी भारतीय उपमहाद्वीप के पश्चिमी छोर पर टेथिस सागर के किनारे घूमा करता था। हाँ, यह कहानी उस युग की है जब 5 करोड़ वर्ष पहले डायनासोरों का अंत हो चुका था और ममेलियनों में विकास की होड़ ताज़ी शुरू हुई थी। तब उनके बीच आपस में ही मारने और बचने के षड्यंत्र शुरू हो गए थे। ममेलियनों ने इसी तर्ज़ पर अपना विकास प्रारम्भ किया। यह धरती पर समुद्र से निकलकर आए डायनासोरों से इतर जीवों के पनपने का अच्छा मौका था। पर ममेलियन्स ने एक-दूसरे को पकड़ो और खा डालो की नीति अपनाई। यह प्रचलन सरीसृपों में पहले से था और उसी का ममेलियन्स ने अनुकरण कर लिया। उत्तरजीविता के द्वंद्व में सफल होने के लिये एक-दूसरे को ही विलोपित करने का चलन निकल पड़ा। सब एक-दूसरे को गटक कर बने रहना चाहते थे। ‘पैकिसेटस’ भी ताज़ा-ताज़ा  पानी से निकलकर उभयचर जीव बना था पर उसकी सोच की बनावट अलग किस्म की थी। पैकिसेटस इस मार-धाड़ से अलग ही रहा। बकरी जैसे दिखनेवाले इस छोटे-से जीव का नज़रिया सबसे जुदा था।

पैकिसेटस ने एक नया ही तरीका ईजाद किया। जीत पाने का एक ऐसा नज़रिया जिसमें किसी को हराया नहीं जाता, बल्कि ऊँचाई का वह स्तर प्राप्त कर लिया जाता है जिसके बाद आपके प्रतिद्वंद्वी आपके सामने खुद रेस से बाहर हो जाते हैं। जब पैकिसेटस को उत्तरजीविता के प्रतिद्वंद्वी शिकारियों द्वारा सताया जाने लगा तो उसने उनके साथ उलझने में विश्वास नहीं किया। उसने खुद को बड़ा करना शुरू किया। उसे तो इवॉल्व होना था न कि इन्वॉल्व। उसे बढ़ना था, लड़ना नहीं। अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिये उसने बड़ा अनूठा रास्ता चुना था। खुद को इतना बड़ा कर लो कि चुनौतियाँ छोटी पड़ जाएँ। हर बार उसने ऐसा ही किया। सामने जो भी परभक्षक आया, उससे ज़्यादा बड़ा रूप वह अख्तियार कर लेता। और सच में अपनी जीवटता और अनोखी नीति के बल पर वो इतना बड़ा होता गया कि हर बार उसके शत्रु उसके सामने बौने पड़ जाते, इतने बौने कि कोई थ्रेट ही न रह जाता।

वही छोटा-सा बकरीनुमा जीव, पैकिसेटस आज धरती का सबसे बड़ा जीव है, ब्लू ह्वेल उसी का नाम है। ह्वेल कोई खतरनाक जीव नहीं, न ही उसके पास कोई अस्त्र-शस्त्र है। उसकी विशालता ही उसका सबकुछ है। यह इतना विशाल होता है कि समुद्र का सबसे खतरनाक शिकारी ओरका भी इससे नहीं उलझता। इसकी विराटता के इर्द-गिर्द अन्य कोई प्राणी नहीं। लगभग 100 फीट लंबा यह जीव इतना विशाल होता है कि आज तक धरती पर इतना बड़ा जीव पैदा नहीं हुआ। जितने भी विशाल डायनासोर धरती के इतिहास में मिले, यह उनसे भी बड़ा है। कभी 25 किलोग्राम भार का रहा जीव कितना वज़न पा गया। एक लाख अस्सी हज़ार किलोग्राम वज़नी ह्वेल हाथी से 40 गुना और एक आम वज़न के इंसान से 2600 गुना भारी होता है। यह समुद्र का राजा है। आज भी विशाल महासागर में ब्लू ह्वेल का कोई शत्रु नहीं है,न उसका कोई शिकारी है। उसके लिये कहीं न कोई रोक-टोक है, न सीमा है। वह जिधर चाहे बेरोक-टोक घूमता है। ब्लू ह्वेल के घूमने का दायरा सबसे बड़ा है। इसलिये तो समुद्र ने उसे अपने नीले रंग से नवाज़ा है। वो धरती पर उत्पन्न  अब तक की सबसे बड़ी ऐंद्रिक रचना है। हम उस काल में जी रहे हैं जब धरती का सबसे विशाल, न सिर्फ जिस्म बल्कि हृदय वाला प्राणी अस्तित्वमान है। लेकिन विशाल ब्लू ह्वेल की आँखें आश्चर्यजनक रूप से छोटी होती हैं और आज भी ह्वेल की आँखों में देखने पर वह छोटी बकरी के आकार का टेथिस सागर के तलछट पर घूमने वाला जीव पैकिसेटस झाँकता महसूस होता है। वह अनोखा जीव जिसने अपनी अनोखी रणनीति से अपने भविष्य का भाग्य पलट दिया।

विशाल होने के बावजूद ह्वेल ने अपनी सदाशयता नहीं छोड़ी है। आज भी इसका भोजन छोटे आकार के वे जीव हैं जिन्हें पैकिसेटस खाता था और आज भी यह उतना ही अहिंसक है जितना पैकिसेटस था। और यही गारंटी है इसके विशाल बने रहने की। अन्य जीवों के उलट इसका आकार आज भी बढ़ रहा है। इस तरह एक जीव के विकास ने दुनिया को दिखाया है कि किसी भी स्पर्धा में जीत की रणनीति अपने प्रतिद्वंद्वी को पछाड़ने की नहीं, सबसे आगे निकल जाने की होनी चाहिये। यही सकारात्मक रणनीति है। यही बड़ी जीत की रणनीति है। आप सभी को अपने क्षेत्र में ब्लू-ह्वेल सी सफलता मिले। शुभकामनाओं सहित।

[सुनील कुमार ‘सिंक्रेटिक’]

(सुनील कुमार लोकप्रिय पुस्तक ‘बनकिस्सा’ के लेखक हैं)

-->
close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2