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रॉबर्ट टोर रसेल का कनॉट प्लेस

अगर किसी से पूछा जाए कि राजधानी दिल्ली में सबसे आकर्षक जगह कौन-सी है,तो ज़्यादातर लोगों का उत्तर होगा कनॉट प्लेस। दिल्ली की कितनी ही पीढ़ियों ने यहाँ आकर सुकून के अनगिनत पल गुज़ारे हैं। यह शॉपिंग सेंटर भी है और यहाँ पर हैं सैकड़ों दफ्तर । रोज़ लाखों लोग कनॉट प्लेस पहुँचते हैं।

पर क्या कभी आपने सोचा कि इस आइकॉनिक स्थान का डिज़ाइन किसने तैयार किया था? शायद नहीं! कोई बात नहीं! हम आपको बताते हैं कि इसका डिज़ाइन बनाया था रॉबर्ट टोर रसेल (1888-1970) ने।

1912 में नई दिल्ली के देश की राजधानी बनने के बाद इधर गोरों ने एक उम्दा बाज़ार बनाने के संबंध में सोचा। उसी के चलते कनॉट प्लेस सामने आया। इसका निर्माण कार्य 1929 के आसपास शुरू किया गया और 1933 में यह बनकर तैयार हो गया। पहले नई दिल्ली के मुख्य वास्तुकार एडविन लुटियंस ने कनॉट प्लेस का डिज़ाइन तैयार करने की ज़िम्मेदारी अपने सहयोगी डब्ल्यू.एच.निकोल्स को सौंपी थी लेकिन उन्हें किन्हीं कारणों से वापस इंग्लैंड जाना पड़ा। तब यह दायित्व टोर के कंधों पर आया। तब तक टोर तीन मूर्ति (पहले फ्लैग स्टाफ हाऊस) का डिज़ाइन तैयार करके आर्किटेक्ट के रूप में अपनी पहचान बना चुके थे। इधर 1947 से पहले भारत में ब्रिटिश सेनाओं के प्रमुख रहते थे।

अब वापस कनॉट प्लेस की ओर लौटते हैं। जिधर अब कनॉट प्लेस है, वह सारा क्षेत्र कीकर के घने पेड़ों से अटा पड़ा था। इधर जंगली सूअर और हिरण घूमते थे। आज जो कनॉट प्लेस उन्नत शहर के प्रतीक के रूप में स्थापित हो गया है, वहाँ पर लगभग सौ साल पहले तक गाँव थे। यहाँ माधोगंज,जयसिंगपुरा और राजा का बाज़ार नाम के गाँव थे। सन 1920 के बाद इन गाँवों के वाशिंदों को हटाकर ही आगे चलकर कनॉट प्लेस बना। हाँ, दिल्ली वाले प्राचीन हनुमान मंदिर में दिन के समय पूजा-अर्चना के लिये अवश्य जाते थे।

टोर ने कनॉट प्लेस का डिज़ाइन तैयार करते वक्त सुनिश्चित किया कि इधर के दुकानदार अपनी दुकानों के ऊपर ही रहें। इसलिये उन्होंने फर्स्ट फ्लोर में फ्लैटों के लिये स्पेस रखा। संभवत: यह देश का पहला डबल स्टोरी शॉपिंग सेंटर है। टोर के सामने एक प्रस्ताव यह भी आया कि नई दिल्ली रेलवे स्टेशन उधर बना दिया जाए जहाँ पर सेंट्रल पार्क है। पर वे नहीं माने। यह बात दीगर है कि दिल्ली मेट्रो के दौर में सेंट्रल पार्क के नीचे बड़ा मेट्रो स्टेशन खुला । टोर की सलाह पर बाद में पहाड़गंज में नई दिल्ली रेलवे स्टेशन बना। वे मानते थे कि किसी भी बाज़ार के बीचोंबीच पार्क होना ज़रूरी है, जिधर शॉपिंग के बाद लोग कुछ लम्हे आराम से बिता सकें। टोर ने कनॉट प्लेस को इनर सर्किल, मिडिल सर्किल और आउटर सर्किल में बाँटा। और इसमें आने वालों के लिये नौ रास्ते दिये गए, यानी राजधानी की 9 सड़कों क्रमश: मिन्टो रोड, बाराखंभा रोड, कस्तूरबा गांधी मार्ग, जनपथ, संसद मार्ग, बाबा खड़क सिंह मार्ग, शहीद भगत सिंह मार्ग, पंचकुइयाँ रोड और चेम्सफोर्ड रोड से होते हुए आप इसके अंदर पहुँच सकते हैं। कनॉट प्लेस का डिज़ाइन ग्रिगेरियन स्टाइल का है। इसमें डिज़ाइन सिमेट्रिकल (एक-सा)रखा जाता है।आप नोटिस कर सकते हैं कि पूरे कनॉट प्लेस का डिज़ाइन एक समान है। यह पूरी तरह से सफेद है। अपनी भव्यता और उम्दा डिज़ाइन के चलते कनॉट प्लेस के सामने अब भी कोई शॉपिंग सेंटर खड़ा नहीं होता। गोलाकार स्तंभों पर खड़ा कनॉट प्लेस अपूर्व और अद्वितीय है। इधर शो-रूमों के आगे घूमने वालों के लिये टोर पर्याप्त स्पेस देते हैं।

दरअसल टोर 1920 के आसपास नई दिल्ली आए थे। तब नई दिल्ली में तमाम सरकारी इमारतें बन रही थीं या उनकी योजना बन रही थी। उन्हें एडविन लुटियंस ने अपनी टीम में जगह दी। टोर जीनियस थे। वे दिन-रात काम करते थे। उन्होंने ही सफदरजंग एयरपोर्ट, गोल डाकखाना, लोधी रोड के सरकारी फ्लैट का भी डिज़ाइन तैयार किया था। यह बात बहुत कम लोगों को मालूम है कि टोर ने ही 1,3,5,7 रेस कोर्स रोड (अब लोक कल्याण मार्ग) के बंगलों के भी डिज़ाइन तैयार किये थे। राजीव गांधी ने 1984 में प्रधानमंत्री बनने के बाद इन सब बंगलों को एक-एक करके प्रधानमंत्री निवास के रूप में तब्दील कर लिया था। तब से ये देश के प्रधानमंत्री का स्थायी निवास हो गए हैं। टोर ने कुछ प्राइवेट भवनों के भी डिज़ाइन तैयार किये थे। इनमें पटौदी स्थित पटौदी हाऊस भी है। आजकल सैफ अली खान-करीना कपूर बीच-बीच में इसमें रहने के लिये आते रहते हैं। टोर ने जनपथ पर स्थित वेस्टर्न कोर्ट और इस्टर्न कोर्ट जैसी इमारतों का भी डिज़ाइन बनाया था। अपने निर्माण के दशकों गुजर जाने के बाद भी उनकी इमारतों को देखकर यह नहीं लगता कि ये पुरानी हो गई हैं। टोर भारत को बहुत प्रेम करते थे। वे छुट्टी वाले दिन दिल्ली के ग्रामीण इलाकों में घूमने चले जाते थे। लोगों से मिलते। उनका रहन-सहन देखते। टोर की डिज़ाइन की इमारतें अब भी समकालीन लगती हैं।

आप शॉपिंग करने या घूमने के लिये कनॉट प्लेस बार-बार आते-जाते ही होंगे। पर आपको इधर ‘आई’, ‘ओ’ और ‘जे’ ब्लॉक क्यों नहीं मिलते? कहाँ गए ये तीन ब्लॉक? कहाँ गुम कर दिये टोर ने ये ब्लॉक? क्या कभी आपने सोचा ? दरअसल कनॉट प्लेस में शुरू में 12 ब्लॉक का निर्माण ही हुआ था। अंदर के वृत यानी सर्किल में छह ब्लॉक ‘ए’ से ‘एफ’ तक बनाए गए तथा बाहरी वृत में ‘जी’ से ‘एन’ ब्लॉक बने। इनमें ‘आई’, ‘ओ’ और ‘जे’ ब्लॉक नहीं रखे गए। ये ब्लॉक क्यों नहीं बने? हमारे पास इस गुत्थी को सुलझाने का कोई अधिकारिक साक्ष्य उपलब्ध नहीं। इस सवाल का जवाब किसी किताब में भी नहीं मिलता। ज़ाहिर है,कोई बात तो होगी कि ये तीन ब्लॉक नहीं बने। एक बार कनॉट प्लेस में 1933 तक 12 ब्लॉक बन कर तैयार हो गए तो फिर ‘पी’ ब्लॉक, जहाँ पर कभी बेहद लोकप्रिय मद्रास होटल होता था, सिंधिया हाउस, जनपथ, जहाँ पर एयर इंडिया का दफ्तर होता था या भीमजी झावेरी का शो-रूम है, और रीगल बिल्डिंग का निर्माण हुआ। नई दिल्ली नगर पालिका के पूर्व निदेशक मदन थपलियाल कहते हैं कि एक बार कनॉट प्लेस के सारे हिस्से बनकर तैयार हुए तो 1935 में नई दिल्ली ट्रेडर्स एसोसिएशन बना। यह कनॉट प्लेस के दुकानदारों और दफ्तरों को चलाने वालों का संगठन है। कनॉट प्लेस के पी’ ब्लॉक का ज़िक्र आएगा तो अखबारों के उस हॉकर की अवश्य बात होगी जिसने आगे चलकर देश के अति महत्त्वपूर्ण अखबारों-पत्रिकाओं और किताबों का शो- रूम सेंट्रल न्यूज एजेंसी (सीएनए) खोला। इसी ब्लॉक में कुछ साल पहले तक दिल्ली वालों का एक बेहद पसंदीदा मद्रास होटल भी हुआ करता था। दिल्ली को शायद सबसे पहले साउथ इंडियन व्यंजनों का ज़ायका यहाँ पर ही मिला था। 1960 के बाद कनॉट प्लेस में जनपथ बाज़ार, शंकर मार्केट,मनोहन सिंह प्लेस, पालिका बाज़ार वगैरह बने। जनपथ बाज़ार को कनॉट प्लेस की जान कहा जा सकता है। इनका रॉबर्ट  टोर रसेल से कोई लेना-देना नहीं है। अफसोस कि जिस शिल्पी ने दिल्ली को लाजवाब इमारतें दीं उनके नाम पर यहाँ एक गली तक का नाम नहीं है।

[विवेक शुक्ला]

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं तथा ‘Gandhi’s Delhi’ पुस्तक के लेखक हैं।)

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