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वैक्सीन: क्या, क्यों और कैसे?

हम में से अधिकांश के लिये चिकित्सालय के भीतर की पहली स्मृति उस समय की होती है, जब हमें बालपन में किसी गंभीर बीमारी से बचने के लिये टीका (Vaccine) लगवाने ले जाया जाता था। यदि यह टीका न लगे तो हम एकाधिक लाइलाज बीमारियों के प्रति सुभेद्य हो जाते हैं। अभी भी अनेक ख़तरनाक बीमारियों से बचने का एकमात्र और सर्वश्रेष्ठ इलाज बचपन में लगवाया गया टीका ही है। इंसान‌ ही नहीं, पशुओं व मवेशियों के लिये भी टीके उतने ही महत्त्वपूर्ण हैं। यदि हम‌ अपने आसपास ग़ौर से देखें तो पाएंगे कि घरेलू पशुओं व मवेशियों को नियमित अंतराल पर टीके लगवाए जाते हैं, जिससे कि वे स्वयं भी बीमारियों से बचें व अपने आसपास के मानवों को भी संक्रमित न करें।

इस‌ प्रकार से सभी के लिये टीके की महत्ता किसी से छिपी नहीं है। हालाँकि 2020 में जब दुनिया को एकाएक कोरोना वायरस के रूप में एक अनजान‌ महामारी ने घेर लिया तब इसका इलाज खोजने की जद्दोजहद में संसार के समक्ष वैक्सीन की महत्ता पुनः रेखांकित हुई। जब यह महामारी अपने चरम पर थी तब विश्वभर में सभी के लिये सबसे बड़ी प्राथमिकता इसके लिये वैक्सीन का निर्माण करना बन गया। इसके लिये किया गया अथक परिश्रम रंग भी लाया और भारत व USA सहित कुछ प्रमुख देशों की फार्मास्यूटिकल कंपनियों ने वैक्सीन बना ली और दुनिया ने राहत की साँस ली।

हालाँकि कोरोना के प्रभाव की सबसे भयावह अवधि बीत जाने व देश-दुनिया के अधिकांश लोगों द्वारा कोविड वैक्सीन ले लिये जाने के पश्चात् वैक्सीन से संबंधित कुछ समस्याओं की ख़बरें आना शुरू हुई हैं। इसी क्रम में पिछले कुछ समय से कोविड वैक्सीन मुहैया कराने वाली विश्वविख्यात फार्मा कंपनी एस्ट्राज़ेनेका चर्चा में है। दरअसल हाल ही में एस्ट्राज़ेनेका ने दुनियाभर से अपनी कोविड-19 वैक्सीन की खरीद-बिक्री पर रोक लगाने का फैसला किया है। इसमें भारत में बनाई गई कोविशील्ड वैक्सीन भी शामिल है। यूके हाईकोर्ट के समक्ष एस्ट्राज़ेनेका ने पहली बार स्वीकार किया है कि उनकी कोविड-19 वैक्सीन से विरलतम मामलों में दुष्प्रभाव हो सकते हैं। एस्ट्राज़ेनेका ने माना है कि उनकी कोविड-19 वैक्सीन से थ्रोम्बोसाइटोपेनिया सिंड्रोम (TTS) जैसे साइड इफेक्ट्स हो सकते हैं। इस संदर्भ में वैक्सीन का इतिहास, इसके बनने की प्रक्रिया व प्रयोजन समझना बेहद महत्त्वपूर्ण हो जाता है।

दरअसल किसी संक्रामक बीमारी के विरुद्ध प्रतिरोधक क्षमता विकसित करने के लिये जो दवा इंजेक्शन, ड्रॉप्स या किसी अन्य रूप में दी जाती है, उसे ‘टीका’ (vaccine) कहते हैं और इसे देने की प्रक्रिया टीकाकरण (Vaccination) कहलाती है। टीकाकरण बीमारी से बचने का एक सरल, कम लागत वाला, सुरक्षित और प्रभावी तरीका है। टीके मानव शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को एंटीबॉडी बनाने के लिये प्रशिक्षित करते हैं, यह प्रक्रिया ठीक वैसे ही काम‌ करती है जैसे बीमारी के संपर्क में आने के वक्त होता है।

वैक्सीन संक्रमणों के प्रति प्रतिरोध पैदा कर शरीर की प्राकृतिक सुरक्षा करती है। ज़्यादातर वैक्सीन इंजेक्शन के रूप में दी जाती हैं क्योंकि इनमें मौजूद दवा आँतों द्वारा आसानी से अवशोषित कर ली जाती है,और कुछ वैक्सीन्स आहारनली के माध्यम से भी दी जाती हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मुताबिक सभी आयु वर्गों में हर साल 20 से 30 लाख मौतें टीकाकरण के दम पर रोकी जा रही है।

चेचक दुनिया की पहली बीमारी थी जिसके टीके की खोज हुई। 1796 में इंग्लैंड के ग्लॉस्टरशायार में एक डॉक्टर एडवर्ड जेनर ने एक परीक्षण किया, जिसमे उन्होंने पाया कि जिसको काउपॉक्स (एक वायरस जो मवेशियों से इंसान तक फैलता है) हुआ होगा वह चेचक से प्रतिरक्षित रहेगा , इसके परीक्षण के लिये उन्होंने सारा नेलम्स नाम की एक दूधवाली से कॉउपॉक्स के वैसीकल्स लिये जिससे उन्होंने जेम्स फिप्स नामक आठ साल के लड़के को संक्रमित किया, और दो महीने बाद उन्होंने उसे चेचक का टीका लगाया और उसे चेचक नहीं हुआ। यह प्रक्रिया वेरियोलेशन या इनोक्युलेशन कहलाती है , यह टीका लगाने की वह विधि थी, जिसका उपयोग सबसे पहले किसी रोगी या हाल ही में वेरियोलेटेड व्यक्ति से ली गई सामग्री के साथ चेचक के खिलाफ व्यक्तियों को प्रतिरक्षित करने के लिये किया जाता था, इस उम्मीद में कि हल्का, लेकिन सुरक्षात्मक, संक्रमण होगा। इस सफल प्रयोग के बाद 1801 तक लगभग 100,000 से अधिक लोगों को चेचक के विरुद्ध टीका लगाया गया था। इसके बाद गाय के लिये इस्तेमाल होने वाले लैटिन शब्द ‘वैक्सा’ से ही टीके को अंग्रेजी नाम वैक्सीन दिया गया। भारत में पहली स्मॉलपॉक्स वैक्सीन 1802 में वर्तमान मुंबई में 3 साल की बच्ची ऐना डस्टहॉल को लगाई गई थी। चेचक के टीके से गंभीर रोगों के प्रतिरोध की जो यात्रा शुरू हुई थी वह दुनियाभर में अब तक 25 सुरक्षित और प्रभावी टीकों के विकास तक पहुँच चुकी है।

इसी बिंदु पर यह समझना भी महत्त्वपूर्ण है कि वास्तव में वैक्सीन बनती कैसे है? तो सबसे पहले शरीर की एंटीबॉडी विकसित करने में मदद करने के लिये प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को उत्तेजित करने में सक्षम पदार्थ एंटीजन की पहचान करने के लिये प्रयोगशाला परीक्षण किया जाता है। इसके पश्चात् प्री ‘क्लिनिकल ट्रायल’ का चरण होता है। इस स्तर पर कोशिकाओं, ऊतकों और जानवरों पर विभिन्न प्रयोग किये जाते हैं। यह टीके की प्रभावकारिता, टीका कैसे लगाया जाए, रोगी की प्रभावी खुराक और यह प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया (Immunogenicity) में कितना प्रभावी ढंग से योगदान देता है, यह तय करता है। किसी टीके को क्लीनिकल चरण में आगे बढ़ने की मंजूरी मिलने के बाद, यह मानव परीक्षण के लिये सुरक्षित होता है। उसके बाद टीके की प्रभावकारिता, दुष्प्रभाव , खुराक और प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया का आकलन किया जाता है। इस चरण को ‘नैदानिक विकास’ कहा जाता है। सभी परीक्षणों को सफलतापूर्वक संपन्न करने के बाद वैक्सीन को प्राधिकारी द्वारा अनुमोदित किया जाता है। एक बार जब टीका जनता के लिये उपलब्ध हो जाता है, तो टीका निर्माता किसी भी प्रतिकूल घटना से बचने के लिये टीके की प्रभावकारिता की निगरानी करना जारी रखता है। यह सुनिश्चित करने के लिये कि टीका जनता के लिये स्वस्थ है।

उपर्युक्त प्रक्रिया के बाद वैक्सीन का पेटेंट कराया जाता है। पेटेंट एक अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था है , इसके तहत अगर कोई कंपनी सबसे पहले कोई यूनिक प्रोडक्ट बनाती है और वो चाहती है कि इस प्रोडक्ट की तकनीक किसी और के पास न हो और कोई उसकी नक़ल न कर सके तो वह विश्व व्यापार संगठन (WTO) में इसके पेटेंट के लिये आवेदन करती है। यदि WTO की जाँच में यह साबित हो जाता कि यह प्रोडक्ट पहले नहीं बना है और इसकी तकनीक यूनिक है तो संबंधित कम्पनी को उस प्रोडक्ट के पेटेंट का अधिकार दे दिया जाता है।

वैक्सीन का इतिहास व उसकी निर्माण प्रक्रिया जान लेने के पश्चात् हालिया विमर्श पर लौटना प्रासंगिक है, जो कि कोविड की वैक्सीन के चलते निरंतर चर्चा में बना हुआ है। ध्यातव्य है कि जब 2020 में कोरोना महामारी ने दुनिया को अपनी चपेट में ले लिया था तब विश्वभर में इसकी वैक्सीन की खोज हेतु वैज्ञानिकों व फार्मा कंपनियों ने अथक प्रयास किये। इन प्रयासों के प्रतिफल के रूप में अनेक वैक्सीन्स का विकास हुआ। इनमें कुल 40 ऐसी वैक्सीन्स हैं, जिन्हें विभिन्न राष्ट्रीय प्राधिकरणों द्वारा उपयोग की अनुमति मिली हुई है। इन 40 में से 10 वैक्सीन्स ऐसी हैं, जिन्हें WHO द्वारा मान्यता प्राप्त नियामक प्राधिकरणों द्वारा उपयोग की अनुमति मिली हुई है। इनमें Pfizer–BioNTech, Oxford-AstraZeneca, Sinopharm BIBP, Moderna, Janssen, CoronaVac, Covaxin, Novavax, Convidecia, व Sanofi–GSK शामिल हैं।

टीकाकरण बीमारियों को ख़त्म करता है। टीकाकरण न केवल आपको बल्कि दूसरों को भी सुरक्षित रखता है। यदि हम टीकाकरण जारी रखते हैं, तो संभावना है कि आज की कुछ बीमारियाँ भविष्य में दिखाई ही नहीं देंगी। टीकाकरण न केवल आपको एक निश्चित बीमारी से बचाता है बल्कि भविष्य को भी सुरक्षित करता है। हालाँकि यह भी महत्त्वपूर्ण है कि गंभीर बीमारियों से बचने के लिये बनने वाले टीके अपने आप में पूरी तरह सुरक्षित हों और किसी प्रकार की गंभीर चिकित्सीय जटिलताओं को जन्म न दें। यह बात टीकों के प्रति आम जनता का विश्वास निर्मित व मज़बूत करने के लिये अत्यंत महत्त्वपूर्ण है और जनता का विश्वास टीकों और टीकाकरण प्रक्रिया पर होने के बाद ही इस पूरी प्रक्रिया का उद्देश्य सिद्ध हो पाएगा।

  चार्वी दवे  

(लेखिका चार्वी दवे मूलत: राजस्थान की हैं। उन्होंने मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर से स्नातक और सिंबायोसिस पुणे से एचआर (मानव संसाधन) में परास्नातक की उपाधि प्राप्त की है। वर्तमान में वे स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। साहित्य में विशेष रुचि होने के चलते ये लेखन का कार्य करती रही हैं और लेखन में करियर बनाना चाहती हैं। संगीत में इनकी विशेष रुचि है।)

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