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कैसे दुनियाभर में अब ग्रीन छतें बदल रहीं इको सिस्टम

जब पूरी दुनिया में बात ग्रीन वर्ल्ड की हो रही हो, तेजी से खत्म होते प्राकृतिक संसाधनों को बचाने की हो रही हो तो ग्रीन हाउस की परिकल्पना भी बहुत तेजी से हकीकत में बदल रही है। यानि ऐसे घर जो हरे भरे हों, जहां छतों पर हरियाली लहलहाए। जहां छतों से रंग बिरंगे फूल मुस्कराएं। हरे-भरे लान में मुलायम सी घास हो, कुछ छोटे बड़े पेड़ पौधे हों। ऐसी छतें हमारे देश में भले ही न हों लेकिन अमेरिका और यूरोप में हकीकत बनती जा रही हैं। ये ऐसी छतें होती हैं, जिन्हें ग्रीन टॉप या ग्रीन रूफ कहा जाता है। आमतौर पर हम-आप जो घर बनाते हैं वहां छतें लंबी चौड़ी तो हो सकती हैं, लेकिन होती वीरान हैं, खाली-खाली होती हैं, उनका ज्यादा उपयोग नहीं होता। लेकिन आने वाले समय में अपने देश में भी शायद ऐसा नहीं होगा, छतों पर हरी भरी दुनिया का नया संसार दिखेगा। छतें केवल छतें नहीं होंगी। बल्कि बागीचा होंगी, खेत होंगी, फार्महाउस होंगी, जिन पर आप चाहें तो खूब सब्जी पैदा करिये। इन्हीं छतों से बिजली पैदा की जायेगी। इनसे घरों का तापमान कंट्रोल किया जा सकेगा। कुछ मायनों में एसी का काम करेंगी। इन्हीं के जरिए वाटरहार्वेस्टिंग का भी काम होगा।

दुनियाभर में कम होती जमीनों और पर्यावरण के प्रति जागरुकता ने छतों को वो महत्व प्रदान कर ही दिया है, जो बहुत पहले हो जाना चाहिए था। ऐसा लगता है कि ईसा पूर्व हमारे पूर्वज जरूर ऐसा कुछ करते रहे होंगे, जिसका नतीजा बेबीलोन के हैंगिंग गार्डन थे। मौजूदा दौर में भी जब छतों को नये तरीके से देखा जा रहा है और इनके महत्व को पहचाना जा रहा है, तो लगता है कि इसके मूल में आइडिया कहीं न कहीं हजारों साल पुराने ये हैंगिंग गार्डन यानि झूलते बागीचे रहे होंगे। शायद यहीं वो विरासत है, जिसने पर्यावरणविदों को वीरान और उजाड़ पड़ी रहने वाली छतों को एक नये अंदाज में बदल डालने की प्रेरणा दी। जब हम ग्रीन रूफ यानि हरी भरी छतों की बात करे रहे हैं, तो कोई अनोखी बात नहीं कर रहे। यूरोप और अमेरिका में अब कोई नया घर बनवाता है तो घर पर ग्रीन रूफ का प्रावधान रखना नहीं भूलता। वैसे हकीकत ये भी है कि ये हरी भरी छतें होती इतनी फायदेमंद हैं कि नये ट्रेंड में बदल चुकी हैं। वहां के औद्योगिक शहर बदलने लगे हैं। बड़े बड़े कारखानों की आड़ी तिरछी और सपाट छतों पर एक नई ग्रीन दुनिया जन्म ले रही है।

शिकागो सिटी को लोग दुनिया के सबसे बड़े औद्योगिक शहर के रूप में जानते हैं। दुनिया का सबसे बेहतर स्टील यहां तैयार होता है। स्ट्रक्चर के मामले में ये सबसे समृद्ध शहरों में जाना जाता है। इस शहर में पिछले कुछ दिनों में एक खास बदलाव आया है। यहां की ज्यादातर बिल्डिंग्स में छतों पर खूबसूरत लान बनने लगे हैं, जो पर्यावरण संतुलन में खास भूमिका निभा रहे हैं। कुछ साल पहले जब शहर की छतों में इस तरह के बदलाव का बीड़ा उठाया तो लोगों को विश्वास नहीं था कि उनका ये आइडिया शहर को इतना बदल देगा कि वो दुनियाभर के लिए उदाहरण बन सकेगा। अब शिकागो शहर को लोग उत्तरी अमेरिका का हरी छतों वाला शहर कहने लगे हैं। यहां की ऊंची अट्टालिकाओं पर ऊपर बने पार्क लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचते हैं। हरी छतें यहां भवनों के तापमान भी सफलतापूर्वक नियंत्रित करती हैं।

इन हरी यानि ग्रीन छतों के बाद यूरोपीय देशों में ये बात खूब चल निकली है कि केवल ये जरूरी नहीं कि आदमी कैसी बिल्डिंग बनाता है, कितनी ऊंची बनाता है, बल्कि मायने ये रखता है कि बिल्डिंग के साथ वो छत कैसी बना रहा है और उसका कैसे इस्तेमाल करता है।

हाल के दशकों में आर्किटैक्ट्स, बिल्डर्स और सिटी प्लानर्स ने इस ओर भी ध्यान देना शुरू किया। वेंकूवर पब्लिक लाइब्रेरी की विशालकाय छत की ओर पहले कभी किसी का ध्यान ही नहीं गया। लेकिन 1985 में इसे एकदम बदल दिया गया। उसके बाद तो 20 हजार स्क्वायर फीट में फैली छत एकदम ही बदल गई। यहां का सन्नाटा जिंदगी के मधुर संगीत में बदल गया। इसी शहर में एक विश्व प्रसिद्ध होटल ऐसा भी है, जो अपने फल से लेकर सब्जियां तक सबसे ऊपर बनाये गये फार्म हाउस से उगाता है। इसमें सेब से लेकर हरी-भरी सब्जियां, हर्बल और शहद सबकी पैदावार की जाती है। इसके जरिए होटल हर साल सोलह हजार डालर से कहीं ज्यादा की बचत करने लगा है।

जापान के टोक्यो में सबसे प्रसिद्ध शराब ब्रांड हाकुत्सुरु ने भी कुछ ऐसा ही किया है। हाकुत्सुरु चावल से शराब बनाने के लिए जाने जाते हैं और ये शराब पूरे जापान में खासी पसंद की जाती है। कंपनी ने टोक्यो आफिस की विशालकाय छत के उपयोग का फैसला किया। और अब वो इसमें चावल की खेती करती है। जो चावल यहां उगाया जाता है। उसका उपयोग शराब बनाने में होता है।

लंदन को दुनियाभर में बहुत परंपरागत शहर माना जाता है। अंग्रेज एक खास तरह के आर्किटेक्चर को पसंद करते हैं और उनमें रहना पसंद करते हैं। एकदम सीधी ऊंचाई वाले दो से तीन मंजिल वाले घर। सपाट खिड़कियों और छत के ऊपर चिमनियों वाले। लेकिन अब इस शहर में छतें अलग अंदाज में बनने लगी हैं, जिन पर छोटे छोटे लान्स और ऊर्जा संचय का खास ख्याल रखा जाने लगा है।

दुनियाभर में प्रसिद्ध फोर्ड गाड़ियों का मुख्यालय है मिशिगन, जहां फोर्ड कंपनी का लंबा चौड़ा साम्राज्य फैला हुआ है। यहीं से वो दुनियाभर में अपने व्यापार को नियंत्रित करने का काम करते हैं। उनकी एक फैक्ट्री की 10.4 एकड़ की छत पर पहले धूप और ऊपर से गुजरने वाले विमानों का खासा असर पड़ता था। इससे निजात पाने के लिए उन्होंने इस लंबे क्षेत्र को हरे भरे पार्क में बदल डाला। अब ये पार्क न केवल धूप से उन्हें बचाता है बल्कि पास के एयरपोर्ट पर रनआफ के समय विमानों के शोरगुल और धुएं से फैक्ट्री की इस इमारत की रक्षा करता है।

शिकागो, स्टटगार्ट, सिंगापुर और टोक्यो जैसे शहरों की तस्वीर बदल रही है। बहुत तेजी से वहां ऊंची ऊंची बिल्डिंग की बालकनी और ऊपरी छतें ग्रीन होती जा रही हैं। अमेरिका और यूरोप में ये खासा कॉमन है। स्विटजरलैंड के बासेल शहर की तो खास विशेषता ही यही है कि यहां की हर छत ग्रीन छत है। अमेरिका के कुछ शहरों में तो बिल्डर्स को इस तरह के मकान बनाने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है, जो सही मायनों में ग्रीन हाउस कहलायें।

यूरोप के कई देशों जैसे जर्मनी, स्विट्जरलैंड और आस्ट्रिया में इस तरह की छतों को लाइव रूफ्स यानि सजीव छतें कहा जाता है। इनके लिए कानून बने हुए हैं। यानि घरों में ग्रीन रूफ्स बनाना जरूरी हो चला है।

यूरोप में ग्रीन रूफ लैब बन चुकी हैं। जो बताती हैं कि आप जिस इलाके में मकान बना रहे हैं वहां के लिए आपको अपनी छत का पार्क कैसे तैयार करना चाहिए। उसकी मिट्टी कैसी होनी चाहिए। कैसे पेड़ पौधे लगाइये। साथ ही ये भी इनसे आप किस तरह वाटर हार्वेस्टिंग से लेकर ऊर्जा पैदा कर सकते हैं। इन भवनों में ग्रीन छतें तैयार करने के लिए खास तरह की तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है।

कुछ पर्यावरणविद इसलिए इसे उपयोगी मानते हैं कि कम से कम इसी बहाने से तो शहरी लोग प्रकृति के फिर से करीब आने लगे हैं। यानि उनकी निगाह में ये प्रकृति का शहरीकरण है, जिससे भागमभाग वाली शहरी जीवनशैली में जिंदगी को आप प्रकृति के करीब महसूस करने लगते हैं।

छतों पर ग्रीन रूफ तैयार करने की प्रक्रिया में सबसे निचली लेयर हवायुक्त डेक की होती है। इसके ऊपर वाटरप्रुफ मेंबरेन की परत होती है, जिसके ऊपर खासतरह की स्टोरेज कपनुमा बैरियर मैट बिछाये जाते हैं, जो ऊपर से फैब्रिक फिल्टर से चिपके होते हैं। इतनी परतों को एक के ऊपर एक लगाने का मकसद ड्रेनेज सिस्टम तैयार करना होता है। जो पानी को फिल्टर करके सबसे नीचे के डैक्स तक लाता है और फिर इन्हें शुद्ध रूप में स्टोरेज टैंक्स में इकट्टा कर लिया जाता है। ये ड्रेनेज सिस्टम केवल पानी को फिल्टर करने और नीचे स्टोरेज टंकियों तक ही पहुंचाने का काम नहीं करता बल्कि छत और मिट्टी के बीच इंसुलेटर का काम भी करता है। इतना कुछ करने के बाद फिल्टर फैब्रिक पर मिट्टी की सतह बिछाकर उसपर घास और पौधे बो दिये जाते हैं। और इस तरह तैयार हो जाती है ग्रीन रूफ। रुट बैरियर मैट्स से लेकर मिट्टी के ऊपरी सतह तक की कुल ऊंचाई

तीन से पंद्रह इंच तक हो सकती है। बेशक इस तरह की छतों की लागत आम छतों से दोगुनी से तिगुनी तक होती है लेकिन लंबी अवधि में देखें तो ये न केवल खासी सस्ती साबित होती हैं बल्कि उपयोगी भी।

ये जीती जागती छतें हमें नेचुरल बॉयोलॉजिकल सिस्टम के बारे में भी बताती हैं। भीषण गर्मी में कंक्रीट के जंगल में तब्दील हो चुके शहरों के मकान किस तरह भट्टी में तब्दील हो जाते हैं, ये हममें से किसी से छिपा नहीं है, लेकिन मिट्टी और वनस्पितियों से युक्त ये छतें सीधी धूप को रोककर अवरोधक का काम करती हैं। इससे बिल्डिंग का तापमान कम हो जाता है। बिल्डिंग का कूलिंग कास्ट करीब बीस फीसदी तक कम हो जाता है। आमतौर पर जब बरसात का पानी खाली छतों पर गिरता है तो उसकी बर्बादी ही होती है। लेकिन सजीव छतें पानी को सोखती हैं, फिल्टर करती हैं और फिर इसे धीरे धीरे नीचे की निकालकर स्टोर कर देती हैं। इस प्रक्रिया से शहर के ड्रेनेज सिस्टम पर दबाव कम हो जाता है और उसकी जिंदगी बढ़ जाती है। साफ पानी भी मिलता है। लंदन में सडक़ों पर बरसात के पानी को रोकने के लिए ऐसी योजनाएं बनाई हुई हैं।

आमतौर पर इन छतों पर सोलर पैनल लगाने का रिवाज भी चल पड़ा है यानि इसका मतलब होता है कि खुद का काफी हद तक बिजली उत्पादन भी। अब आप खुद देख लीजिये कि ये छतें कितने काम की हैं। सब्जी भी उगाइये। पार्क का आनंद लीजिये। इको फ्रेंडली बनिये। प्रकृति के करीब रहिये। छत को अल्ट्रा वायलेट रेज से बचाइये। ऊर्जा की बचत करिये। और साथ साथ वाटर हार्वेस्टिंग भी।

भारत में ग्रीन रूफ्स या ग्रीन बिल्डिंग्स अभी दूर की कौड़ी लगती है। कुछ बड़े शहरों में इसकी पहल तो हो रही है लेकिन ये अभी न के बराबर है। लेकिन ये बात सही है कि अगर शहरी इलाके की नई बिल्डिंग्स ग्रीन बिल्डिंग्स के कांसेप्ट को लागू करें तो भारत 3400 मेगावाट बिजली बचा सकता है।

अभी सरकार का ध्यान भी इस ओर नहीं है। बिजली और बड़े महानगरों में पानी के संकट से जूझते इस देश को ग्रीन बिल्डिंग्स जैसी नीतियों की जरूरत है। इस तरह की नीतियों से जहां हम बिजली की बचत कर सकते हैं वहीं वाटर हार्वेस्टिंग जैसे तौरतरीकों से पानी का असरदार संचय भी कर सकते हैं।

क्यों चाहिए ग्रीन छतें और ग्रीन बिल्डिंग्स

- कार्बन उत्सर्जन के मामले में भारत शीर्ष देशों की सूची में शामिल है।- देश बड़े पैमाने पर बिजली संकट का सामना कर रहा है, जो समय आने के साथ और बढेगा।
- पानी के स्रोत भी अक्षय नहीं हैं। पानी के स्रोत सीमित हैं लेकिन जनसंख्या तेजी से कई गुना हो चुकी है। वर्ल्ड बैंक का आंकलन है कि अगले दो दशकों में भारत ने अगर पानी प्रबंधन के लिए गंभीर पहल नहीं की तो गहरा संकट पैदा हो सकता है।
- हमारे बड़े शहरों में वायु प्रदूषण भी एक बड़ी समस्या है।
- बड़े शहरों में जमीन खत्म हो चुकी है। पार्क गिने चुने हैं। लोगों को कंक्रीट के जंगल में ताजी हवा तक नसीब नहीं।
- बरसात के पानी व्यर्थ चला जाता है। हम इसका कोई उपयोग नहीं कर पाते।

क्या हैं दूसरे देशों में कानून

ब्रिटेन- ग्रीन बिल्डिंग नार्म यहां अनिवार्य है, लेकिन अभी ये केवल सरकारी इमारतों या जनता के पैसों पर बनने वाले भवनों पर है। लेकिन 2010 तक ये कानून सभी के लिए लागू हो जायेगा। अमेरिका-अमेरिका के कुछ राज्यों में ग्रीन बिल्डिंग्स का नार्म अनिवार्य है। कनाडा-ग्रीन बिल्डिंग का नार्म सबके लिए ज़रूरी।

  संजय श्रीवास्तव  

संजय श्रीवास्तव सीनियर जर्नलिस्ट हैं। इन्हें प्रिंट, टी.वी. और डिजिटल पत्रकारिता का 30 वर्षों से ज़्यादा का अनुभव है। ये कुल 4 किताबों का लेखन कर चुके हैं।

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