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भारतीय विरासत और संस्कृति

कोणार्क मंदिर

  • 03 Feb 2021
  • 10 min read

13वीं शताब्दी में निर्मित विश्व धरोहर स्मारक कोणार्क (ओडिशा) के सूर्य मंदिर के संबंध में एक नया विवाद उभरकर सामने आया है कि इसकी बाहरी सतह पर पत्थर की नक्काशी को पत्थर के साधारण ब्लॉकों से बदला जा रहा है जिससे मंदिर की विशिष्टता को अपूरणीय क्षति हो रही है।

  • आरोप लगाया गया है कि पुनर्स्थापना में उपयोग किये गए पत्थर मूल पत्थर के ब्लॉक की गुणवत्ता से मेल नहीं खाते हैं, जो कि अभी भी मंदिर के पास में उपलब्ध हैं।
  • भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण (ASI) ने विश्व धरोहर स्मारक की पत्थर की नक्काशी को बदलने के आरोपों से इनकार किया है।
  • यह मुद्दा सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण की आवश्यकता पर प्रकाश डालता है।

कोणार्क मंदिर

Sun-temple

  • कोणार्क सूर्य मंदिर पूर्वी ओडिशा के पवित्र शहर पुरी के पास स्थित है।
  • इसका निर्माण राजा नरसिंहदेव प्रथम द्वारा 13वीं शताब्दी ((1238-1264 ई) में किया गया था। यह गंग वंश के वैभव, स्थापत्य, मज़बूती और स्थिरता के साथ-साथ ऐतिहासिक परिवेश का प्रतिनिधित्व भी करता है।
  • मंदिर को एक विशाल रथ के आकार में बनाया गया है। यह सूर्य भगवान को समर्पित है। इस अर्थ में यह सीधे भौतिक रूप से ब्राह्मणवाद और तांत्रिक विश्वास प्रणालियों से जुड़ा हुआ है।
  • कोणार्क के मंदिर न केवल अपनी स्थापत्य की भव्यता के लिये बल्कि मूर्तिकला कार्य की गहनता और प्रवीणता के लिये भी जाना जाता है।
  • यह कलिंग वास्तुकला की उपलब्धि का सर्वोच्च बिंदु है जो अनुग्रह, खुशी और जीवन की लय को दर्शाता है।
  • इसे वर्ष 1984 में यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया था।
  • कोणार्क सूर्य मंदिर के दोनों ओर 12 पहियों की दो पंक्तियाँ हैं। कुछ लोगों का मत है कि 24 पहिये दिन के 24 घंटों के प्रतीक हैं, जबकि अन्य का कहना है कि 12-12 अश्वों की दो कतारें वर्ष के 12 माह की प्रतीक हैं।
  • सात घोड़ों को सप्ताह के सातों दिनों का प्रतीक माना जाता है।
  • समुद्री यात्रा करने वाले लोग एक समय में इसे 'ब्लैक पगोडा' कहते थे, क्योंकि ऐसा माना जाता था कि यह जहाज़ों को किनारे की ओर आकर्षित करता है और उनको नष्ट कर देता है।
  • कोणार्क ‘सूर्य पंथ’ के प्रसार के इतिहास की अमूल्य कड़ी है, जिसका उदय 8वीं शताब्दी के दौरान कश्मीर में हुआ, अंततः पूर्वी भारत के तटों पर पहुँच गया।

सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण का महत्त्व

  • सांस्कृतिक उद्योग आधुनिक अर्थव्यवस्थाओं के प्रमुख घटक हैं। सांस्कृतिक स्थलों, सेवाओं और कला रूपों की व्यापकता, पर्यटन को बढ़ावा देने, आजीविका को बनाए रखने और निवेश को आकर्षित करने के लिये सांस्कृतिक विरासतें महत्त्वपूर्ण स्थान रखती हैं।
  • संस्कृति के गैर-आर्थिक लाभों में इतिहास का संरक्षण, ज्ञान का सृजन और रचनात्मकता का पोषण शामिल है।
  • यूनेस्को द्वारा प्रदत्त विश्व धरोहर स्थल का दर्जा किसी भी स्मारक को अंतर्राष्ट्रीय पहचान और संभावित पर्यटन अवसर उपलब्ध कराता है।

भारत में धरोहर स्थलों की सुरक्षा में कमी का कारण:

  • सीमित बुनियादी ढाँचा, सीमित प्रशिक्षित जनशक्ति, विशेष रूप से प्रायोगिक और संख्यात्मक सुविधाओं की कमी ऐसे कारण हैं, जिसकी वजह से सरकारी एजेंसियों द्वारा इस क्षेत्र की संरचनात्मक सुरक्षा में आवश्यक अनुसंधान और विकास नहीं किया जा रहा है।
  • भारत में निजी क्षेत्र में विरासत संरक्षण के प्रयास काफी हद तक केवल सौंदर्य संबंधी पहलू को संबोधित करते हैं, आमतौर पर इन परियोजनाओं के संचालन में और संरचनात्मक सुरक्षा को ध्यान में नहीं रखा जाता है।
  • भारत में ऐसी औपचारिक प्रणाली का अभाव है, जो स्मारकों की मरम्मत या मज़बूतीकरण करने से पहले अवशिष्ट क्षमता के निदान और मात्रात्मक मूल्यांकन के लिये वैज्ञानिक उपकरणों के उपयोग की आवश्यकता की पहचान करती है।
  • आधुनिक समय की इंजीनियरिंग शिक्षा, निर्माण सामग्री और प्रथाओं के पारंपरिक ज्ञान के बीच अभिसरण का अभाव है; यह विरासत के संरक्षण में एक गंभीर बाधा है।
  • धरोहर संरचनाओं में आपदा के बाद मरम्मतकरण का कार्य प्रायः अवैज्ञानिक, तदर्थ माध्यम से अर्द्ध-या बिना इंजीनियरिंग वाली पृष्ठभूमि के कारीगरों द्वारा किया जाता है। इसके लिये भी एक व्यापक कार्यक्रम की आवश्यकता है।
  • भारत के पास विरासत धरोहरों का एक विशाल भंडार है, उनकी संरचनात्मक सुरक्षा पर ध्यान केंद्रित कर उन्हें एक औपचारिक मंच के माध्यम से संबोधित किये जाने की आवश्यकता है। लेकिन जनशक्ति की पर्याप्त गुणवत्ता और मात्रा का अभाव भारत में बड़ी संख्या में प्राकृतिक खतरों से विरासत संरचनाओं को संरक्षित करने में एक गंभीर अड़चन है।

मूर्त सांस्कृतिक विरासत की सुरक्षा चुनौतियाँ

  • धन की कमी: सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण के लिये वित्त महत्वपूर्ण चुनौती है। धरोहरों के संरक्षण और परिरक्षण पर सार्वजनिक प्राधिकरणों द्वारा ध्यान नहीं दिया जाता है।
  • प्रशिक्षित जनशक्ति की कमी: हालाँकि कुछ लोग सांस्कृतिक विरासतों के संरक्षण और इस व्यवसाय के बारे में जागरूक हैं। परंतु विरासत संरक्षण को कॅरियर के तौर पर मुख्यधारा में लाने के प्रयासों में संस्थागत स्तर पर कमी एक गंभीर चुनौती है।
  • संरक्षण की आवश्यकता के लिये जागरूकता और प्रचार की कमी: स्थानीय पर्यटकों के बीच नागरिक भावना की व्यापक कमी है जो ऐतिहासिक स्मारकों पर अपना नाम लिखकर उन्हें खराब करते हैं। 
  • अवैध अतिक्रमण: ऐतिहासिक स्मारकों के परिवेश में स्थानीय दुकानदारों, अन्य विक्रेताओं, स्थानीय निवासियों द्वारा कई प्रकार के अतिक्रमण किये जाते हैं।
  • पर्यावरण प्रदूषण: कई प्रकार के पर्यावरण प्रदूषण हैं जो विभिन्न ऐतिहासिक स्मारकों को नुकसान पहुँचा रहे हैं। जैसे- मथुरा में तेल रिफाइनरी द्वारा उत्सर्जित सल्फर डाइऑक्साइड आदि से ताजमहल बुरी तरह प्रभावित हुआ था।

आगे की राह

वर्ल्ड हैरिटेज कन्वेंशन के कार्यान्वयन हेतु परिचालन संबंधी दिशा-निर्देशों का सांस्कृतिक और प्राकृतिक विरासत के संरक्षण में शामिल संस्थाओं द्वारा कड़ाई से पालन किये जाने की आवश्यकता है।

वर्ल्ड हैरिटेज कन्वेंशन के कार्यान्वयन के लिये प्रचालनात्मक दिशा-निर्देश:

  • इसका उद्देश्य विश्व की सांस्कृतिक और प्राकृतिक धरोहरों के संरक्षण से संबंधित कन्वेंशन के कार्यान्वयन की सुविधा प्रदान करना है, जिसके लिये निम्न प्रक्रिया निर्धारित की गई है:
    • संकटग्रस्त विश्व विरासतों की सूची तैयार करना।
    • विश्व विरासत संपत्तियों की सुरक्षा और संरक्षण।
    • विश्व विरासत निधि के तहत अंतर्राष्ट्रीय सहायता प्रदान करना।
    • कन्वेंशन के पक्ष में राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय समर्थन जुटाना।
  • अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को संघर्षों के दौरान सांस्कृतिक विरासत की रक्षा से संबंधित मुद्दों को ध्यान में रखना चाहिये। जैसे- अफगानिस्तान और सीरिया जैसे संघर्ष क्षेत्रों में सांस्कृतिक विरासतों का विनाश।
  • फंडिंग संबंधी समस्याओं से पर्यटकों के बीच जागरूकता बढ़ाकर एवं कॉर्पोरेट सामाजिक ज़िम्मेदारी (सीएसआर) के माध्यम से निपटा जा सकता है।

भारतीय विरासत के समग्र संरक्षण के लिये विद्यालयों में शैक्षणिक बदलाव और कला, विज्ञान एवं दर्शन में प्राचीन भारतीय ज्ञान को फिर से परिभाषित करने के लिये उच्च शिक्षा में सुधार की आवश्यकता होगी, जो कि मुख्यधारा के मौलिक अनुसंधान और विकास पर आधारित हो। विरासत की आर्थिक व्यवहार्यता पारंपरिक कला और शिल्प के पुनरुद्धार पर निर्भर करती है, जिसे अमूर्त विरासत के रूप में लोकप्रिय माना जाता है।

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