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मध्य प्रदेश स्टेट पी.सी.एस.

  • 12 Aug 2022
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चयनित तीन ज़िलों में 623 हेक्टेयर क्षेत्र में हुआ बाँसरोपण

चर्चा में क्यों?

11 अगस्त, 2022 को मध्य प्रदेश के वन मंत्री डॉ. कुँवर विजय शाह ने बताया कि ‘एक ज़िला-एक उत्पाद’योजना में बाँस उत्पादन के लिये चयनित तीन ज़िलों- देवास, हरदा और रीवा में पिछले वर्ष 623 हेक्टेयर क्षेत्र में बाँस का रोपण कराया जा चुका है।

प्रमुख बिंदु

  • वन मंत्री ने बताया कि तीनों ज़िलों में कृषि क्षेत्र में 263 हेक्टेयर क्षेत्र तथा मनरेगा योजना में 360 हेक्टेयर कृषि क्षेत्र में बासरोपण का कार्य शामिल है।
  • इस वित्त वर्ष के लिये इन तीनों ज़िलों में 1100 हेक्टेयर कृषि क्षेत्र, वन क्षेत्र में मनरेगा योजना से 250 हेक्टेयर क्षेत्र और वन विभाग की योजनाओं में 750 हेक्टेयर क्षेत्र में बासरोपण का लक्ष्य दिया गया है।
  • वन मंत्री डॉ. शाह ने बताया कि ‘एक ज़िला-एक उत्पाद’योजना में प्रदेश के 6 ज़िले वुडन क्लस्टर में चयनित किये गए हैं। इसमें बैतूल ज़िले में सागौन, अलीराजपुर एवं उमरिया ज़िले में महुआ और देवास, हरदा तथा रीवा ज़िले को बाँस उत्पादन के लिये शामिल किया गया है।
  • बाँस के लिये चयनित इन तीन ज़िलों के लिये पाँचवर्षीय रोडमेप तैयार कर उपलब्ध बाँस संसाधनों के मुताबिक लक्ष्य निर्धारित किये गए हैं।
  • बैतूल ज़िले को सागौन उत्पादन के लिये चयनित किया गया है। ज़िले में वुडन क्लस्टर के लिये भूमि चयन प्रक्रिया में है। वुडन क्लस्टर के लिये 71 निवेश कलाओं द्वारा तकरीबन 87 करोड़ रुपए निवेश कर इकाइयाँ चयनित की जाएंगी। इन इकाइयों से 1600 व्यक्तियों को प्रत्यक्ष रोज़गार मिलेगा।
  • इसी तरह अलीराजपुर और उमरिया ज़िले में महुआ उत्पाद के लिये हितग्राहियों का चयन प्रक्रिया में है। इन दोनों ज़िलों में वनोपज के उत्पादन के लिये बाह्य स्थलीय वृक्षारोपण कराया जाएगा।

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जनजातीय क्षेत्रों में सिकल सेल एनीमिया के रोगियों को होम्योपैथी दवाओं से मिला उपचार

चर्चा में क्यों?

11 अगस्त, 2022 को मध्य प्रदेश के आयुष विभाग द्वारा बताया गया कि अभी तक शासकीय होम्योपैथी चिकित्सा महाविद्यालय एवं अस्पताल द्वारा सिकल सेल एनीमिया की पहचान के लिये घर-घर जाकर स्क्रिनिंग टेस्ट किया गया, जिसमें करीब 23 हज़ार से अधिक जनजातीय व्यक्तियों का परीक्षण किया गया।

प्रमुख बिंदु

  • परीक्षण के बाद 2138 जनजातीय व्यक्ति सिकल सेल रोग से पॉजिटिव पाए गए। इन रोगियों का दोबारा परीक्षण कराए जाने पर 1656 व्यक्तियों में बीमारी की पुष्टि हुई। प्रभावित व्यक्तियों को रिसर्च टीम द्वारा होम्यापैथी दवाएँ दी गईं।
  • नियमित दवा देने के बाद प्रभावित व्यक्तियों को फायदा मिला है। इस बीमारी में प्रभावित व्यक्तियों में रक्त की कमी और दर्द की समस्या बनी रहती थी। दवा लेने से रोगियों को इससे छुटकारा मिला है। इन रोगियों को समय-समय पर खून चढ़ाए जाने की आवश्यकता होती थी, इससे भी उन्हें छुटकारा मिला है। इसके साथ ही इनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ी है।
  • उल्लेखनीय है कि सरकारी होम्योपैथी मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल को 3 वर्ष पूर्व भारत सरकार की ओर से 3.75 करोड़ रुपए का एक खास प्रोजेक्ट मिला था, जिसके तहत मध्य प्रदेश की जनजातियों में इस बीमारी से ग्रसित लोगों को पहचानकर उनका इलाज किया जा रहा है।
  • भारत सरकार के जनजातीय विभाग द्वारा मध्य प्रदेश के आयुष विभाग के सहयोग से प्रदेश के चार ज़िलों- डिंडोरी, मंडला, छिंदवाड़ा और शहडोल में रहने वाली विशेष पिछड़ी जनजाति बैगा और भारिया में सिकल सेल के उपचार के लिये विशेष परियोजना चलाई जा रही है।
  • इस परियोजना में जिन रोगियों को होम्योपैथी की दवाइयाँ दी जा रही हैं, रिसर्च टीम द्वारा उनकी वर्तमान जीवन-शैली का नियमित अध्ययन भी किया जा रहा है। होम्योपैथी चिकित्सा महाविद्यालय के इस प्रोजेक्ट में विश्व स्वास्थ्य संगठन, एम्स, आईसीएमआर, भारतीय विज्ञान संस्थान और मौलाना आज़ाद राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान भोपाल की रिसर्च कार्य में मदद ली जा रही है।
  • सिकल सेल एनीमिया, एक ऐसी आनुवंशिक बीमारी है, जिसमें खून की कोशिकाओं का आकार गोल की बजाय चाँद (या हँसिए) के आकार का हो जाता है और शरीर में रक्त व ऑक्सीजन की कमी होने लगती है। यह बीमारी आमतौर पर जनजातियों में होती है और इसका इलाज एलोपैथी में नहीं है, लेकिन होम्योपैथी में ऐसी दवाएँ हैं, जिनसे शरीर में नया खून बनने लगे।
  • ज्ञातव्य है कि मध्य प्रदेश में तीन विशेष पिछड़ी जनजाति, यथा-भारिया, बैगा एवं सहरिया निवासरत् हैं। राज्य शासन द्वारा 11 विशेष पिछड़ी जनजाति विकास अभिकरणों का गठन किया गया है, जो मंडला, बैहर (बालाघाट), डिंडोरी, पुष्पराजगढ़ (अनूपपुर), शहडोल, उमरिया, ग्वालियर (दतिया ज़िला सहित), श्योपुर (भिंड, मुरैना ज़िला सहित), शिवपुरी, गुना (अशोकनगर ज़िला सहित) तथा तामिया (छिंदवाड़ा) में स्थित है। इन अभिकरणों में चिह्नांकित किये गए 2314 ग्रामों में विशेष पिछड़ी जनजाति के 5.51 लाख व्यक्ति निवास करते हैं।

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