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राजस्थान स्टेट पी.सी.एस.

  • 02 Jul 2025
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जयपुर में वर्षा जल संचयन

चर्चा में क्यों?

राजस्थान के जयपुर ज़िले के कूकस क्षेत्र में 15 करोड़ लीटर जल संरक्षण क्षमता विकसित किये जाने के पश्चात वर्षा जल संचयन और सिंचाई परियोजना का उद्घाटन किया गया।

नोट: राजस्थान का 80% क्षेत्र भूजल की कमी से जूझ रहा है; 50% पेयजल और 60% सिंचाई तेज़ी से घटते जलभृतों (aquifers) पर निर्भर है। 

  • अत्यधिक निष्कर्षण के कारण लवणता, फ्लोराइड और नाइट्रेट संदूषण बढ़ जाता है, जिससे कई क्षेत्रों में गंभीर स्वास्थ्य जोखिम उत्पन्न हो रहें हैं।

मुख्य बिंदु

  • छोटे किसानों के लिये प्रत्यक्ष लाभ:
    • इस परियोजना से 6,000 से अधिक ग्रामीणों, मुख्यतः छोटे किसानों तथा पशुपालकों को सीधा लाभ प्राप्त होगा।
      • इसके परिणामस्वरूप प्रतिवर्ष 5 करोड़ रुपए तक कृषि आय में वृद्धि तथा 10,000 से अधिक ग्रामीण परिवारों के लिये दीर्घकालिक पेयजल सुरक्षा सुनिश्चित होने की संभावना है।
    • ये तालाब प्रत्येक खेत से प्रत्यक्ष वर्षा जल संग्रहण के लिये विकसित किये गए हैं और अनेक तालाब वर्तमान मानसून के दौरान भरने भी लगे हैं।
      • मानसून की समाप्ति तक इस क्षेत्र के तालाब वर्षा आधारित खेतों के लिये स्थायी जल स्रोत बनने की उम्मीद है।
    • इससे न केवल तेज़ी से घटते भूजल स्रोतों पर निर्भरता कम होगी, बल्कि यह टिकाऊ कृषि को भी सशक्त रूप से बढ़ावा देगा।
  • रणनीतिक साझेदारी:
    • इस परियोजना को एटॉमिक पावर एवोल्यूशन अवेयरनेस फाउंडेशन तथा हीरो मोटोकॉर्प की कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (CSR) शाखा ‘Hero We Care’ के बीच सहयोग से संचालित किया जा रहा है।
    • यह परियोजना कूकस क्षेत्र में क्रियान्वित हो रही है, जहाँ कछेरावाला नदी सूख चुकी है और 200 से अधिक कुएँ व हैंडपंप अनुपयोगी हो चुके हैं।
    • इस क्षेत्र में भूमिगत जल स्तर घटकर 1,000 फीट तक पहुँच चुका है, जिससे सतही जल संरक्षण अत्यंत आवश्यक हो गया है।
  • जल संरक्षण से संबंधित भारत की पहलें:

जल संचयन प्रणाली

  • जल संचयन प्रणाली एक ऐसी प्रौद्योगिकी या संरचना है, जिसे वर्षा जल, सतही अपवाह अथवा अन्य जल स्रोतों को कृषि, घरेलू उपयोग तथा भूजल पुनर्भरण जैसे विभिन्न उद्देश्यों के लिये संगृहीत, भंडारित एवं प्रयुक्त करने हेतु विकसित की जाती है।
  • यह एक स्थायी जल प्रबंधन पद्धति है, जिसका उद्देश्य जल संरक्षण को बढ़ावा देना तथा जल की कमी की समस्या को दूर करना है।

प्रकार:

  • वर्षा जल संचयन (RWH): छत संग्रहण एवं भूमिगत भंडारण जैसी विधियों के माध्यम से वर्षा जल को एकत्र कर संगृहीत किया जाता है।
  • भूजल पुनर्भरण प्रणालियाँ: पुनर्भरण कुओं जैसी तकनीकों के माध्यम से वर्षा जल को ज़मीन में रिसाकर भूजल स्तर को बनाए रखने तथा सुधारने में सहायक होती हैं।
  • सतही जल संचयन: तालाबों एवं जलाशयों के माध्यम से भूमि या खुले खेतों से वर्षा जल एकत्र कर सिंचाई तथा अन्य उपयोगों में प्रयुक्त किया जाता है।
  • शहरी जल संचयन: शहरों में छतों तथा सतहों से वर्षा जल को संगृहीत किया जाता है ताकि नगरपालिका जल प्रणालियों पर दबाव कम हो तथा तूफानी जल का प्रबंधन किया जा सके।


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