मध्य प्रदेश
देश का पहला स्ट्रैटोस्फेरिक एयरशिप
- 06 May 2025
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चर्चा में क्यों?
हाल ही में रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) ने मध्य प्रदेश के श्योपुर में स्थित परीक्षण स्थल से स्ट्रैटोस्फेरिक एयरशिप प्लेटफॉर्म की पहली उड़ान का सफल परीक्षण किया।
मुख्य बिंदु
- एयरशिप के बारे में:
- आगरा स्थित एरियल डिलीवरी रिसर्च एंड डेवलपमेंट एस्टेब्लिशमेंट (ADRDE) द्वारा विकसित यह एयरशिप प्लेटफॉर्म लगभग 17 किमी. की ऊँचाई पर स्ट्रैटोस्फियर में तैनात किया जा सकता है।
- यह लंबे समय तक एक ही स्थान पर स्थिर रह सकता है और रियल टाइम डाटा भेजने की क्षमता रखता है।
- स्ट्रेटोस्फियर पृथ्वी के वायुमंडल की एक परत है जो ट्रॉपोस्फियर के ऊपर और मेसोस्फियर के नीचे स्थित होती है, इसकी ऊँचाई लगभग 10 से 50 किमी तक होती है।
- यह पृथ्वी पर मौसम के परिवर्तनों से अलग एक स्थिर वातावरण प्रदान करता है, जिससे उपग्रहों और अन्य उच्च-ऊँचाई वाले उपकरणों के लिये उपयुक्त क्षेत्र बनती है।
- संरचना:
- यह एयरशिप हल्की और अत्यधिक संवेदनशील तकनीकों से लैस है, जिससे इसे उच्च-ऊँचाई पर संचालन की क्षमता प्राप्त है।
- इसमें ISR (इंटेलिजेंस, सर्विलांस और रिकॉन) कार्यों के लिये अत्याधुनिक पेलोड और सेंसर सिस्टम लगे हैं।
- मिशन के बाद सिस्टम को सुरक्षित रूप से रिकवर किया जा सकता है, जिससे लंबी अवधि तक संचालन संभव होता है।
- रणनीतिक उपयोग:
- यह एयरशिप रडार की पकड़ से बाहर रहकर सुरक्षा बलों की निगरानी क्षमता को मज़बूत करता है।
- कश्मीर और अरुणाचल प्रदेश जैसे दुर्गम एवं संवेदनशील क्षेत्रों में सैन्य ऑपरेशनों के लिये यह प्लेटफॉर्म बेहद उपयोगी साबित हो सकता है।
- यह तकनीक पारंपरिक निगरानी प्रणालियों की तुलना में कहीं अधिक कुशल और स्थायी है।
- यह व्यापक क्षेत्र को कवर करते हुए दुश्मन की गतिविधियों की सटीक जानकारी दे सकता है।
ADRDE:
- यह रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) की एक अनुसंधान एवं विकास प्रयोगशाला है।
- यह पैराट्रूपर पैराशूट सिस्टम, एयरक्रू पैराशूट सिस्टम, गोला बारूद पैराशूट सिस्टम, ब्रेक पैराशूट, रिकवरी पैराशूट सिस्टम, एरियल डिलीवरी पैराशूट सिस्टम, हैवी ड्रॉप सिस्टम, इन्फ्लेटेबल सिस्टम, एयरशिप टेक्नोलॉजी और एयरक्राफ्ट अरेस्टर बैरियर सिस्टम के विकास में शामिल है।
- वर्तमान में यह आयुध वितरण पैराशूट, बैलून बैराज व निगरानी प्रणाली, हवाई पोत और संबंधित अनुप्रयोगों एवं अंतरिक्ष पैराशूट जैसी परियोजनाओं में शामिल है।
DRDO
- परिचय:
- DRDO रक्षा मंत्रालय की अनुसंधान एवं विकास शाखा है जिसका उद्देश्य भारत को अत्याधुनिक रक्षा प्रौद्योगिकियों में सशक्त बनाना है।
- आत्मनिर्भरता की दिशा में प्रयास तथा अग्नि और पृथ्वी मिसाइल शृंखला, हल्के लड़ाकू विमान तेजस, मल्टी बैरल रॉकेट लांचर, पिनाका, वायु रक्षा प्रणाली आकाश, रडारों की एक विस्तृत शृंखला और इलेक्ट्रॉनिक युद्ध प्रणाली आदि जैसी सामरिक प्रणालियों एवं प्लेटफॉर्मों के सफल स्वदेशी विकास एवं उत्पादन से भारत की सैन्य शक्ति में वृद्धि हुई है।
- गठन:
- इसका गठन वर्ष 1958 में भारतीय सेना के तकनीकी विकास प्रतिष्ठान (TDEs) और तकनीकी विकास एवं उत्पादन निदेशालय (DTDP) तथा रक्षा विज्ञान संगठन (DSO) के एकीकरण से हुआ था।
- DRDO, 50 से अधिक प्रयोगशालाओं का एक नेटवर्क है जो विभिन्न विषयों जैसे वैमानिकी, आयुध, इलेक्ट्रॉनिक्स, लड़ाकू वाहन, इंजीनियरिंग प्रणाली आदि को कवर करते हुए रक्षा प्रौद्योगिकियों के विकास में गहनता के साथ संलग्न है।