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मध्य प्रदेश

मध्य प्रदेश में 10वीं शताब्दी की मूर्तियाँ मिलीं

  • 09 Oct 2025
  • 29 min read

चर्चा में क्यों?

पुरातत्त्वविदों को मध्य प्रदेश के दमोह ज़िले के डोनी गाँव में 10वी–11वीं शताब्दी की 15 दुर्लभ मूर्तियाँ प्राप्त हुई हैं, जो कलचुरी काल की समृद्ध मंदिर वास्तुकला को प्रदर्शित करती हैं।

  • इन मूर्तियों ने विशेषज्ञों को आश्चर्यचकित कर दिया है और ये मध्य भारत में मध्ययुगीन मंदिर वास्तुकला के इतिहास को पुनर्परिभाषित कर सकती हैं।

मुख्य बिंदु

  • खोज के बारे में: 

 

  • राज्य पुरातत्त्व विभाग (उत्तरी क्षेत्र) ग्वालियर के उप-निदेशक पी.सी. महोबिया के नेतृत्व में एक दल अप्रैल 2025 से इस स्थल का उत्खनन कर रहा है।
  • लाल बलुआ पत्थर से निर्मित ये मूर्तियाँ विविध देवी-देवताओं का प्रतिनिधित्व करती हैं, जिनमें अर्द्धनारीश्वर और नरसिंह जैसी दुर्लभ मूर्तियाँ भी सम्मिलित हैं।
  • इन कलाकृतियों की खोज ने इतिहासकारों और विद्वानों का ध्यान आकर्षित किया है, जो मध्य प्रदेश की सांस्कृतिक विरासत में एक महत्त्वपूर्ण योगदान है। 
  • कलाकृतियाँ: 
    • नरसिंह मूर्ति: अर्द्ध-मानव, अर्द्ध-सिंह रूप में मिली यह मूर्ति ऊपर से सुरक्षित है, जबकि इसका निचला भाग क्षतिग्रस्त है।
    • अर्द्धनारीश्वर मूर्ति: शिव और पार्वती का अद्वितीय संयुक्त रूप, जिसमें नंदी पार्वती को उठाए हुए हैं, जो अत्यंत दुर्लभ चित्रण है।
    • अन्य मूर्तियाँ: ब्रह्मा, वायु, नायिका तथा पार्वती की मूर्तियाँ भी उत्खनन में प्राप्त हुई हैं, जो अत्यधिक सूक्ष्मता और कलात्मकता के साथ निर्मित हैं।
  • महत्त्व
    • ये मूर्तियाँ कलचुरी काल की मंदिर वास्तुकला तथा धार्मिक प्रतीकवाद की उत्कृष्ट झलक प्रस्तुत करती हैं तथा मध्यकालीन हिंदू मूर्तिकला की समझ को और गहराई प्रदान करती हैं।
    • विशेष रूप से अर्द्धनारीश्वर की वह अद्वितीय प्रतिमा, जिसमें नंदी को पार्वती को वहन करते हुए दर्शाया गया है, पारंपरिक मूर्तिशिल्प प्रतिमानों को चुनौती देती है और शैक्षणिक अध्ययन के नये आयाम खोलती है।
    • लाल बलुआ पत्थर से निर्मित इन मूर्तियों का सांस्कृतिक एवं संभावित आर्थिक मूल्य अत्यंत उच्च माना जा रहा है।

कलचुरी राजवंश

  • उत्पत्ति: 
    • कलचुरियों को हैहय (Haihayas) के नाम से भी जाना जाता है। माना जाता है कि इनकी उत्पत्ति क्षत्रिय जनजाति से हुई थी। 
    • इनका उल्लेख ब्राह्मण महाकाव्यों और पुराणों में मिलता है। प्रारंभिक कलचुरी, या महिष्मती के शासक, वर्तमान गुजरात, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र के क्षेत्रों पर शासन करते थे।
  • प्रारंभिक शासक: 
    • उल्लेखनीय प्रारंभिक शासकों में कृष्णराज, शंकरगण और बुद्धराज (550-620 ई.) शामिल हैं। अपने प्रारंभिक उत्थान के बावजूद, कलचुरियों ने वातापी के चालुक्यों तथा वल्लभी के मैत्रकों जैसे शक्तिशाली पड़ोसी राज्यों के विरुद्ध संघर्ष किया, जिसके परिणामस्वरूप उनका पतन हुआ। 
  • वैवाहिक संबंध: 
    • अपनी स्थिति सुदृढ़ करने के लिये, कलचुरियों ने पूर्वी और पश्चिमी चालुक्यों के साथ वैवाहिक संबंध बनाए। सैन्य पराजय के बाद भी, इन गठबंधनों ने उनके राजनीतिक अस्तित्व को बचाए रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
  • चेदि के कलचुरी: 
    • चेदि के कलचुरी, जिनकी राजधानी त्रिपुरी (अब जबलपुर) थी, 9वीं शताब्दी में प्रमुख शक्ति के रूप में उभरे। 
    • इस शाखा के प्रथम प्रभावशाली शासक कोक्कलदेव प्रथम थे, जिन्होंने प्रतिहार सम्राट भोज प्रथम और राष्ट्रकूट नरेश कृष्ण द्वितीय को पराजित किया। इसके परिणामस्वरूप कलचुरियों के राष्ट्रकूटों के साथ वैवाहिक संबंध स्थापित हुए।
  • धर्म को शाही संरक्षण: 
    • कलचुरी शासक, विशेष रूप से युवराज प्रथम, ब्राह्मण धर्म के प्रबल संरक्षक थे और उन्होंने शैव संप्रदाय को विशेष संरक्षण प्रदान किया।
    • उन्होंने धार्मिक प्रतिष्ठानों के लिये अनेक भूमि अनुदान दिये और युवराज प्रथम ने दुर्वासा जैसे शैव संतों का समर्थन किया, जिन्होंने गोलकि मठ की स्थापना की।
    • कलचुरियों ने शैव, शाक्त, जैन और बौद्ध धर्म सहित विविध धार्मिक परंपराओंको संरक्षण दिया।
    • कलचुरियों के समय में योगिनी पंथ प्रचलित था, जिसकी झलक खजुराहो, भेराघाट और शहडोल के मंदिरों में देखी जा सकती है।

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