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पीआरएस कैप्सूल्स


विविध

अक्तूबर 2023

  • 22 Dec 2023
  • 47 min read

PRS के प्रमुख हाइलाइट्स: 

  • वित्त
    • RBI परिपत्र
    • सेबी ने बड़े कॉरपोरेट्स द्वारा ऋण जारी करने हेतु संशोधित रूपरेखा
    • आउटसोर्स वित्तीय सेवाओं के जोखिम न्यूनीकरण पर मसौदा दिशा-निर्देश
  • कानून एवं न्याय
    • समलैंगिक विवाह की याचिका पर सर्वोच्च न्यायालय का फैसला
  • स्वास्थ्य
    • सरोगेसी हेतु दाता युग्मक के उपयोग की अनुमति
  • ऊर्जा
    • अक्षय ऊर्जा खपत दायित्व अधिसूचित
    • हरित हाइड्रोजन हेतुअनुसंधान एवं विकास रोडमैप जारी
  • पर्यावरण
    • बैटरी अपशिष्ट प्रबंधन विनियमों को बढ़ाने के नियम
    • ग्रीन क्रेडिट देने के नियम अधिसूचित
    • प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन विनियम 
    • लौह अयस्क ग्रेड और अन्य खनिजों के गलत वर्गीकरण 
  • सूचना प्रौद्योगिकी
    • कार्य समूहों की रिपोर्ट
  • शिक्षा
    • समतामूलक एवं समग्र शिक्षा हेतु दिशा-निर्देश
    • स्कूलों में आत्महत्या की रोकथाम हेतु मसौदा दिशा-निर्देश
  • वाणिज्य
    • राष्ट्रीय हल्दी बोर्ड
  • नागरिक उड्डयन
    • विमान नियमों में संशोधन

  वित्त  

RBI परिपत्र

भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने सीमा पार पेमेंट एग्रीगेटर्स (PA-CB) के विनियमन पर एक परिपत्र जारी किया है। ये संस्थाएँ अनुमत वस्तुओं और सेवाओं के आयात तथा निर्यात के लिये ऑनलाइन सीमा पार लेनदेन की सुविधा प्रदान करती हैं। नियम गैर-बैंक पेमेंट एग्रीगेटर्स पर लागू होंगे। 

प्रमुख विशेषताओं में निम्नलिखित शामिल हैं:

  • प्रयोज्यता और दायरा: 
    • गैर-बैंक एग्रीगेटर्स को 30 अप्रैल, 2024 तक ऑथराइजेशन के लिये RBI के पास आवेदन करना होगा।
    • एग्रीगेटर्स RBI से ऑथराइज़ेशन हासिल होने तक सेवाएँ देना जारी रख सकते हैं। हालाँकि उन्हें 31 जनवरी, 2024 तक पेमेंट एग्रीगेटर्स और पेमेंट गेटवे के विनियमन पर वर्ष 2020 के दिशा-निर्देशों का पालन करना होगा। 
    • अगर मौजूदा गैर-बैंक एग्रीगेटर्स ऑथराइजेशन के लिये आवेदन नहीं करते हैं या कुछ अन्य शर्तों को पूरा नहीं करते तो उन्हें 31 जुलाई, 2024 तक परिचालन बंद करना होगा।
  • एग्रीगेटर्स के लिये शर्तें: 
    • सर्कुलर में मौजूदा गैर-बैंक एग्रीगेटर्स को ऑथराइज़ेशन के लिये अपना आवेदन जमा करते समय न्यूनतम 15 करोड़ रुपए की शुद्ध संपत्ति की आवश्यकता होती है। 
    • 31 मार्च, 2026 तक उनकी न्यूनतम नेटवर्थ 25 करोड़ रुपए होनी चाहिये। नए एग्रीगेटर्स के पास परिचालन के तीसरे वित्तीय वर्ष तक 25 करोड़ रुपए की नेटवर्थ होनी चाहिये। 
    • PA-CB की तरफ से प्रोसेस किये गए आयात और निर्यात का लेनदेन खरीदी/बेची गई वस्तुओं या सेवाओं की प्रति यूनिट 25 लाख रुपए से अधिक नहीं हो सकते।

सेबी ने बड़े कॉरपोरेट्स द्वारा ऋण जारी करने हेतु संशोधित रूपरेखा

भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) ने हाल ही में बड़े कॉरपोरेट्स द्वारा ऋण जारी करने को नियंत्रित करने वाले ढाँचे में महत्त्वपूर्ण संशोधन किये हैं।

  • सेबी के ढाँचे में मुख्य परिवर्तन:
    • दहलीज़ समायोजन:
      • सेबी के नियमों के अनुसार, बड़े कॉरपोरेट्स को अब ऋण प्रतिभूतियों को जारी करके अपनी वृद्धिशील उधारी का 25% जुटाने की आवश्यकता है।
      • “बड़े कॉर्पोरेट्स” शब्द में अन्य मानदंडों के साथ-साथ कम-से-कम 100 करोड़ रुपए की बकाया दीर्घकालिक उधारी वाली सभी सूचीबद्ध संस्थाएँ (बैंकों को छोड़कर) शामिल हैं।
        • संशोधित रूपरेखा बड़े कॉरपोरेट्स के लिये सीमा को बढ़ाकर 1,000 करोड़ रुपए कर देती है।
  • दीर्घकालिक उधार से बहिष्करण:
    • बकाया दीर्घकालिक उधार की गणना में बाहरी वाणिज्यिक उधार और मूल इकाई तथा उसकी सहायक कंपनियों के बीच उधार को शामिल नहीं किया गया है।
    • बकाया दीर्घकालिक उधार के बहिष्करण में केंद्र सरकार के निर्देशों के आधार पर प्राप्त अनुदान या जमा, ब्याज पूंजीकरण से उत्पन्न उधार और विलय तथा अधिग्रहण उद्देश्यों के लिये उधार भी शामिल हैं।
  • कार्यान्वयन समयरेखा:
    • संशोधित रूपरेखा इकाई द्वारा अपनाए गए वित्तीय वर्ष के आधार पर 1 अप्रैल, 2024 या 1 जनवरी, 2024 से प्रभावी होने के लिये निर्धारित है।

आउटसोर्स वित्तीय सेवाओं के जोखिम न्यूनीकरण पर मसौदा दिशा-निर्देश

भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने भारतीय रिज़र्व बैंक (वित्तीय सेवाओं की आउटसोर्सिंग में जोखिम प्रबंधन और आचार संहिता) दिशा-निर्देश, 2023 का मसौदा टिप्पणियों के लिये जारी किया है। 

  • निर्देशों की प्रयोज्यता:
    • मसौदा निर्देश वाणिज्यिक बैंकों, गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों और क्रेडिट सूचना कंपनियों सहित विनियमित संस्थाओं पर लागू करने के लिये डिज़ाइन किये गए हैं।
    • विशेष रूप से इन दिशा-निर्देशों का उद्देश्य विनियमित संस्थाओं द्वारा आउटसोर्स की गई गतिविधियों से जुड़े जोखिमों को संबोधित करना है, ऐसी गतिविधियाँ जो उनके व्यावसायिक संचालन को महत्त्वपूर्ण रूप से प्रभावित कर सकती हैं।
  • प्रयोज्यता मानदंड:
    • निर्देश कंटेंट आउटसोर्सिंग व्यवस्था पर ध्यान केंद्रित करते हैं जहाँ कुछ गतिविधियाँ तीसरे पक्ष को सौंपी जाती हैं। यदि ऐसी व्यवस्थाएँ बाधित होती हैं, तो व्यवसाय संचालन, प्रतिष्ठा, कानूनों के अनुपालन और उपभोक्ता कल्याण पर प्रभाव पड़ सकता है।
  • आउटसोर्स गतिविधियाँ:
    • अनुमत आउटसोर्स गतिविधियों में आवेदन प्रसंस्करण (उदाहरणतः ऋण या क्रेडिट कार्ड के लिये), मध्य और बैक-ऑफिस संचालन (उदाहरणतः इलेक्ट्रॉनिक फंड ट्रांसफर, हिरासत संचालन, ऑर्डर प्रोसेसिंग) और नकदी प्रबंधन शामिल हैं।
    • दूसरी ओर मुख्य प्रबंधन कार्य जैसे नीति निर्माण, ऋण के लिये मंज़ूरी, निवेश पोर्टफोलियो का प्रबंधन, अनुपालन कार्य और आंतरिक ऑडिट को आउटसोर्स नहीं किया जा सकता है।
  • आउटसोर्स गतिविधियों का विनियमन: मसौदा निर्देशों में संस्थाओं को आउटसोर्सिंग से पहले RBI से मंज़ूरी लेने की आवश्यकता नहीं है।
    • हालाँकि आउटसोर्स की गई गतिविधियों की जाँच उचित पर्यवेक्षी प्राधिकारी (RBI, नाबार्ड या NHB) द्वारा की जाएगी। 
    • संस्थाओं को उन्हें प्रदान की गई सेवाओं और तीसरे पक्षों पर उनकी निर्भरता की एक सूची बनानी होगी।
  • उन्हें यह भी सुनिश्चित करना होगा कि— 
    • सेवा प्रदाता इकाई की गतिविधियों में हस्तक्षेप या बाधा नहीं डालता है— 
      • सेवा प्रदाता इकाई के निदेशक या प्रमुख प्रबंधकीय कर्मियों के स्वामित्व या नियंत्रण में नहीं है।
      • आउटसोर्सिंग व्यवस्थाएँ उपभोक्ताओं के अधिकारों को प्रभावित नहीं करतीं।
      • आउटसोर्सिंग व्यवस्था में की जाने वाली गतिविधियों के लिये विनियमित संस्थाएँ ज़िम्मेदार होंगी।

  कानून एवं न्याय  

समलैंगिक विवाह की याचिका पर सर्वोच्च न्यायालय का फैसला

  • न्यायालय के समक्ष संदर्भ और प्रश्न:
    • सर्वोच्च न्यायालय के विचार-विमर्श का केंद्र बिंदु समलैंगिक जोड़ों के लिये विवाह का अधिकार था।
  • महत्त्वपूर्ण सवाल:
    • क्या वर्ष 1954 का विशेष विवाह अधिनियम समलैंगिक जोड़ों के बीच विवाह को मान्यता देने की उपेक्षा करके समानता और स्वतंत्रता के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है?
  • निर्णय:
    • न्यायालय ने सर्वसम्मत फैसले में फैसला सुनाया कि शादी करने का कोई मौलिक अधिकार नहीं है और 1954 के अधिनियम से समलैंगिक विवाह का अनुमान नहीं लगाया जा सकता है।
  • संसद की बुनियादी भावना का महत्त्व:
    • 1954 के अधिनियम के तहत विभिन्न धर्मों के विषमलैंगिक जोड़ों को विवाह करने का विकल्प प्रदान करना।
    • विवाह एक समवर्ती विषय होने के कारण, न्यायालय ने कहा कि समलैंगिक विवाह को मान्यता देने वाले कानून बनाना संसद और राज्य विधानमंडलों के दायरे में आता है।
    • 3:2 बहुमत के फैसले में, पीठ ने फैसला सुनाया कि समलैंगिक व्यक्ति नागरिक संघों में प्रवेश नहीं कर सकते और बच्चों को गोद नहीं ले सकते।
    • मौजूदा कानूनी ढाँचे के तहत विषमलैंगिक संबंधों में ट्रांसजेंडर लोगों के विवाह के अधिकार पर सर्वसम्मति से सहमति।
    • कार्रवाई का आह्वान: समलैंगिक व्यक्तियों के अधिकारों और अधिकारों का आकलन करने के लिये कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता में एक उच्चाधिकार प्राप्त समिति की स्थापना।
    • परिभाषा स्पष्टीकरण: “क्वीर” गैर-विषमलैंगिक व्यक्तियों के लिये एक व्यापक शब्द है।

  स्वास्थ्य  

सरोगेसी हेतु दाता युग्मक के उपयोग की अनुमति 

एक महत्त्वपूर्ण आदेश में, सर्वोच्च न्यायालय ने सरोगेसी (विनियमन) संशोधन नियम, 2023 द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों को पलटते हुए, सरोगेसी में दाता युग्मकों के उपयोग को मंज़ूरी दे दी है।

  • सरोगेसी (विनियमन) संशोधन नियम, 2023 को पढ़ना
    • न्यायालय के फैसले में सरोगेसी (विनियमन) संशोधन नियम, 2023 को पढ़ना शामिल था, जो पहले इच्छुक जोड़ों के लिये दाता युग्मकों के उपयोग पर रोक लगाता था।
    • शब्द “इच्छुक दंपत्ति” उन लोगों को संदर्भित करता है जो ऐसी चिकित्सीय स्थितियों का सामना कर रहे हैं जिनके लिये सरोगेसी के उपयोग की आवश्यकता होती है।
  • सरोगेसी में दाता युग्मकों को समझना
    • युग्मक, प्रजनन कोशिकाएँ, सरोगेसी में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
    • नर युग्मक, जिन्हें शुक्राणु के रूप में जाना जाता है और मादा युग्मक, जो अंडे या अंडाणु हैं, सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकियों में मूलभूत घटक हैं।
  • भारतीय विनियमों में सरोगेसी की परिभाषा
    • भारत में सरोगेसी को सरोगेसी (विनियमन) अधिनियम, 2021 और सरोगेसी (विनियमन) नियम, 2022 द्वारा विनियमित किया जाता है।
    • अधिनियम सरोगेसी को उस प्रथा के रूप में परिभाषित करता है जहाँ एक महिला इच्छुक जोड़े या महिला के लिये बच्चे को जन्म देती है, जो जन्म के बाद बच्चे को सौंपने हेतु सहमत होती है।
  • सरोगेसी प्रतिबंधों पर न्यायालय का दृष्टिकोण
    • न्यायालय ने इस बात पर ज़ोर दिया कि सरोगेसी पर प्रतिबंध चिकित्सा शर्तों के कारण आवश्यक परिस्थितियों में सरोगेसी का लाभ उठाने के महिला के अधिकार का खंडन नहीं करना चाहिये।
    • अधिनियम सरोगेसी के माध्यम से पैदा हुए बच्चे और इच्छुक जोड़े के बीच आनुवंशिक संबंध को अनिवार्य बनाता है।
      • विशेष रूप से, न्यायालय ने माना कि पिता के साथ आनुवंशिक संबंध उन मामलों में पर्याप्त है जहाँ सरोगेसी के लिये चिकित्सकीय रूप से दाता अंडे के उपयोग की आवश्यकता होती है।

  ऊर्जा  

अक्षय ऊर्जा खपत दायित्व अधिसूचित

  • ऊर्जा मंत्रालय ने वर्ष 2024-2030 अवधि के लिये न्यूनतम अक्षय ऊर्जा खपत दायित्व को अधिसूचित किया है। अधिसूचना ऊर्जा संरक्षण अधिनियम, 2001 के तहत जारी की गई है।
    • यह अधिनियम केंद्र सरकार को यह अधिकार देता है कि वह कुछ उपभोक्ताओं को गैर-जीवाश्म स्रोतों से न्यूनतम मात्रा में ऊर्जा का उपयोग करने का आदेश दे। दायित्व को प्रत्यक्ष रूप से या नवीकरणीय ऊर्जा प्रमाण-पत्र (अपने लक्ष्य को पार करने वालों को जारी) की खरीद के माध्यम से पूरा करना होगा।

अधिसूचना की मुख्य विशेषताओं में निम्न शामिल हैं:

  • प्रयोज्यता: 
    • यह दायित्व निम्नलिखित पर लागू होगा:
      • बिजली वितरण लाइसेंसधारियों।
      • अधिनियम के तहत अन्य नामित उपभोक्ताओं के बीच ओपन एक्सेस वाले उपभोक्ता और कैप्टिव यूज़र्स। 
    • नामित उपभोक्ताओं में खनन परिवहन और वाणिज्यिक भवन जैसे उद्योग शामिल हैं। ओपन एक्सेस उपभोक्ता वे होते हैं जो सीधे उत्पादक से बिजली खरीदते हैं। 
    • कैप्टिव यूज़र ऐसी संस्थाएँ होती हैं जो अपने खुद के उपभोग के लिये बिजली उत्पन्न करती हैं।
  • 1 अप्रैल, 2024 से विद्युत अधिनियम, 2003 के तहत वितरण लाइसेंसधारियों के लिये अक्षय खरीद दायित्व (RPO) समाप्त हो जाएगा। उल्लेखनीय है कि RPO में ऊर्जा भंडारण प्रणालियों का उपयोग करने का दायित्व भी शामिल है।
  • ओपन एक्सेस उपभोक्ताओं और कैप्टिव यूज़र्स के लिये उपभोग दायित्व वितरण लाइसेंसधारियों के अलावा अन्य स्रोतों से खपत की सीमा तक लागू होगा। इसके अलावा स्रोत-विशिष्ट लक्ष्य उन पर लागू नहीं होंगे।

हरित हाइड्रोजन हेतुअनुसंधान एवं विकास रोडमैप जारी

नवीन और अक्षय ऊर्जा मंत्रालय ने भारत में हरित हाइड्रोजन इकोसिस्टम के लिये एक अनुसंधान तथा विकास रोडमैप जारी किया है। यह रोडमैप राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन के तहत प्रस्तावित किया गया है। यह मिशन हरित हाइड्रोजन और इसके व्युत्पन्न उत्पादों जैसे हरित अमोनिया तथा हरित मेथनॉल को बढ़ावा देने के लिये स्थापित किया गया है। 

  • अनुसंधान एवं विकास रोडमैप के फोकस क्षेत्र:
    • रोडमैप रणनीतिक रूप से हरित हाइड्रोजन उत्पादन, भंडारण, परिवहन, अंतिम-उपयोग अनुप्रयोगों और सुरक्षा उपायों सहित प्रमुख डोमेन में अनुसंधान एवं विकास परियोजनाओं की रूपरेखा तैयार करता है।
    • व्यापक उद्देश्य हरित हाइड्रोजन की दक्षता, विश्वसनीयता और लागत-प्रभावशीलता को बढ़ाने के लिये सामग्री, प्रौद्योगिकियों तथा बुनियादी ढाँचे में प्रगति करना है।
    • प्रत्येक फोकस क्षेत्र के भीतर, रोडमैप का लक्ष्य सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों के बीच एक सहयोगी वातावरण को बढ़ावा देकर नवाचारों को उत्प्रेरित करना है।
  • सार्वजनिक-निजी भागीदारी ढाँचा:
    • रोडमैप अनुसंधान एवं विकास के लिये एक मज़बूत सार्वजनिक-निजी भागीदारी का प्रस्ताव करता है, एक समर्पित निधि के निर्माण और उद्यम पूंजी को आकर्षित करने पर ज़ोर देता है। यह एक स्थायी और अच्छी तरह से वित्तपोषित अनुसंधान वातावरण के लक्ष्य के साथ क्षेत्र में सफलताओं को बढ़ावा देने हेतु हरित हाइड्रोजन के लिये उत्कृष्टता केंद्र स्थापित करने का भी सुझाव देता है।
  • एक सहयोगात्मक नेटवर्क का निर्माण:
    • अंतर्संबंध के महत्त्व को पहचानते हुए, रोडमैप एक ऐसे नेटवर्क के गठन का प्रस्ताव करता है जो उद्योग, शिक्षा और सरकार को जोड़ता है।
    • इस त्रिपक्षीय सहयोग का उद्देश्य उभरती प्रौद्योगिकियों के हस्तांतरण और व्यावसायीकरण को सुव्यवस्थित करना है, यह सुनिश्चित करना है कि अनुसंधान एवं विकास परियोजनाओं के माध्यम से विकसित किये गए नवाचारों को बाज़ार में व्यावहारिक अनुप्रयोग मिलें।

  पर्यावरण  

बैटरी अपशिष्ट प्रबंधन विनियमों को बढ़ाने के नियम

पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने बैटरी अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2022 में संशोधनों को अधिसूचित किया है। नियमों को पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 के तहत तैयार किया गया है।  

  • विस्तारित निर्माता उत्तरदायित्व (EPR) कार्यान्वयन: 
    • संशोधित नियमों ने बैटरी उत्पादकों के लिये विस्तारित निर्माता उत्तरदायित्व (EPR) की अवधारणा पेश की है। यह बैटरियों के पर्यावरण की दृष्टि से सुदृढ़ प्रबंधन सुनिश्चित करने के उद्देश्य से एक महत्त्वपूर्ण कदम है।   
  • उत्पादकों के कार्य: 
    • वर्ष 2022 के नियमों के तहत, निर्माता बाज़ार में पेश की गई बैटरियों की पुनर्चक्रण या नवीनीकरण के लिये ज़िम्मेदार हैं। संशोधनों में उन बैटरियों को भी शामिल किया गया है जिनका उपयोग उत्पादक खुद करते हैं। उदाहरण के लिये, वर्ष 2026-2027 के लिये अनिवार्य अपशिष्ट बैटरी संग्रह का लक्ष्य और वज़न के लिहाज़ से संग्रह के लक्ष्य की 100% पुनर्चक्रण या नवीनीकरण, वर्ष 2021-22 में बाज़ार में पेश की गई बैटरी की मात्रा का कम-से-कम 70% होना चाहिये।
  • EPR प्रमाणन प्रक्रिया: 
    • संशोधनों के अनुसार, CPCB यह सुनिश्चित करेगा कि प्रत्येक EPR प्रमाण-पत्र प्रक्रिया या नवीनीकरण की गई अपशिष्ट बैटरियों के वज़न के आधार पर जारी किया जाए। 
    • यह EPR प्रमाण-पत्र के लिये उच्चतम और न्यूनतम कीमतें भी निर्धारित करेगा। 
    • EPR प्रमाण-पत्र प्राप्त करने से जुड़ी लागत व्यवसाय के आकार और प्रकृति पर निर्भर करती है। CPCB दिशा-निर्देशों का पालन करते हुए, बाध्य संस्थाओं के बीच व्यापार के लिये EPR प्रमाण-पत्र के लिये इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म स्थापित किये जा सकते हैं।
    •  अगर CPCB दो सप्ताह के भीतर उनके आवेदन को अस्वीकार नहीं करता है, तो निर्माता स्वचालित रूप से अपशिष्ट बैटरी के निर्माता के रूप में पंजीकृत हो जाते हैं। 
    • इसके अलावा CPCB एक वार्षिक रिपोर्ट तैयार करेगा, जिसमें EPR लक्ष्य, पुनर्चक्रण और पर्यावरणीय क्षतिपूर्ति उपयोग शामिल होगा। 
    • CPCB एक ऑनलाइन पोर्टल के माध्यम से राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों के साथ प्रासंगिक उत्पादक जानकारी भी साझा करेगा।

ग्रीन क्रेडिट देने के नियम अधिसूचित:

  • पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने ग्रीन क्रेडिट नियम, 2023 को अधिसूचित किया। नियम पर्यावरण की सुरक्षा या संरक्षण से संबंधित पहल को प्रोत्साहित करने के लिये एक बाज़ार तंत्र बनाने का प्रयास करते हैं। 
  • ग्रीन क्रेडिट निर्दिष्ट क्षेत्रों में स्वैच्छिक कार्रवाई के लिये प्रदान किये जाएंगे, जिनमें निम्नलिखित शामिल हैं:
    • वृक्षारोपण
    • अपशिष्ट प्रबंधन
    • टिकाऊ भवन और इंफ्रास्ट्रक्चर
    • वायु प्रदूषण को कम करना। 

ऐसे क्रेडिट का बाद में व्यापार किया जा सकता है। नियमों की मुख्य विशेषताओं में निम्नलिखित शामिल हैं— 

  • कार्यप्रणाली: 
    • ग्रीन क्रेडिट जारी करने के लिये प्रत्येक गतिविधि के लिये सीमाएँ और बेंचमार्क विकसित किये जाएंगे।
    • हरित ऋण का मूल्य इन गतिविधियों के पर्यावरणीय प्रभाव को मापने वाले कारकों पर आधारित होगा। ऐसे कारकों में संसाधन आवश्यकताएँ, पैमाना और दायरा शामिल हैं।
  • संचालन समिति:
    • एक संचालन समिति स्थापित की जाएगी जो कार्यक्रम के संचालन के लिये ज़िम्मेदार होगी। इसमें कुछ मंत्रालयों के सदस्य, डोमेन विशेषज्ञ, उद्योग संघ और अन्य हितधारक शामिल होंगे।
  • कार्यान्वयन एजेंसी: 
    • भारतीय वानिकी अनुसंधान और शिक्षा परिषद कार्यक्रम को लागू करेगी। यह पुरस्कार और ग्रीन क्रेडिट के व्यापार के लिये दिशा-निर्देश, प्रक्रियाएँ तथा कार्य पद्धतियाँ विकसित करेगा। 
    • यह एक ग्रीन क्रेडिट रजिस्ट्री बनाएगा जिसमें ग्रीन क्रेडिट जारी करने, हस्तांतरण और अधिग्रहण से संबंधित सभी जानकारी होगी।
    • यह ग्रीन क्रेडिट देने के लिये सत्यापन हेतु संस्थाओं को मान्यता प्राप्त ग्रीन क्रेडिट वैरिफायर्स के रूप में भी मान्यता देगा।

प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन विनियम: 

  • पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट नियम, 2016 में संशोधन का ड्राफ्ट जारी किया है। नियमों को पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 के तहत तैयार किया गया है। 
  • नियम प्लास्टिक के उत्पादकों और निर्माताओं के लिये ज़िम्मेदारियाँ निर्दिष्ट करते हैं, जैसे— 
    • प्रयुक्त बहुस्तरीय प्लास्टिक का संग्रह।
    • उत्पादन से पहले केंद्रीय/राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से वैध पंजीकरण प्राप्त करना। 
    • मसौदा नियम विस्तारित उत्पादक ज़िम्मेदारी (EPR), पूर्व-उपभोक्ता प्लास्टिक वेस्ट के मैनेजमेंट और कंपोस्टेबल तथा बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक के उपयोग जैसे रेगुलेटरी उपायों को अपडेट करने एवं बढ़ाने का प्रयास करते हैं।
    • कच्चे माल के रूप में उपयोग किये जाने वाले प्लास्टिक को बेचने/प्रदान करने/व्यवस्थित करने के लिये निर्माताओं को केंद्रीकृत ऑनलाइन पोर्टल पर पंजीकरण करना होगा। 

ड्राफ्ट नियमों की मुख्य विशेषताओं में निम्नलिखित शामिल हैं— 

  • EPR बाध्यताएँ: 
    • मसौदा नियम सूक्ष्म और लघु उद्यमों को शामिल करते हुए प्लास्टिक कच्चे माल के निर्माताओं तथा आयातकों के लिये EPR दायित्वों का विस्तार करते हैं।
    • ठोस अपशिष्ट के साथ प्लास्टिक कचरे के मिश्रण को रोकने के लिये, बाध्य संस्थाएँ जमा वापसी प्रणाली जैसी योजनाएँ स्थापित कर सकती हैं, जिससे उपभोक्ताओं को अपने प्लास्टिक कचरे को वापस करने के लिये वापसी योग्य जमा राशि प्राप्त करने की अनुमति मिलती है।
  • कंपोस्टेबल और बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक का प्रबंधन: मसौदा नियमों में कंपोस्टेबल और बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक के लिये नियामक उपाय प्रस्तावित हैं। इन प्लास्टिक निर्माताओं को निम्नलिखित की मात्रा की जानकारी देनी होगी।
    • बाज़ार में पेश किये गए अपशिष्ट।
    • उपभोक्ता से पहले उत्पन्न होने वाला कचरा। 
  • भारतीय मानक ब्यूरो इन प्लास्टिकों के लिये अलग रंग/चिह्न निर्धारित करेगा। 
  • प्रत्येक वस्तु पर बायोडिग्रेड होने के लिये आवश्यक समय और स्थान का लेबल होना चाहिये।
  • स्थानीय प्रशासन की भूमिका:
    • ज़िला स्तर पर प्रत्येक स्थानीय निकाय और पंचायती राज संस्थान कई कर्त्तव्य निभाएंगे जिनमें निम्नलिखित शामिल हैं— 
      • प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट इंफ्रास्ट्रक्चर का आकलन करना
      • उत्पन्न होने वाले प्लास्टिक कचरे का अनुमान लगाना
      • उपनियम बनाना और लागू करना।

लौह अयस्क ग्रेड और अन्य खनिजों के गलत वर्गीकरण: 

‘लौह अयस्क और अन्य खनिजों के ग्रेड के गलत वर्गीकरण’ के मुद्दे की जाँच करने के लिये खान मंत्रालय द्वारा गठित समिति ने 4 अक्तूबर, 2023 को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। खनिज ग्रेड की गलत रिपोर्टिंग, उत्पादन के आँकड़ों की गलत प्रस्तुति और खनिजों के अवैध परिवहन से राज्य के राजस्व पर असर पड़ता है। समिति के मुख्य सुझावों में निम्नलिखित शामिल हैं:

  • खनिज नमूने और विश्लेषण की प्रणाली: 
    • समिति ने कहा कि भारत के लौह-अयस्क उत्पादन में कुछ राज्यों (ओडिशा, छत्तीसगढ़, झारखंड और कर्नाटक) का लगभग 96% हिस्सा है। ये राज्य प्रमुख लौह अयस्क उत्पादक राज्य हैं। 
    • समिति ने कहा कि खनिज नमूनों और विश्लेषण में निम्नलिखित शामिल होना चाहिये—
      • न्यूनतम मानवीय हस्तक्षेप के लिये एक IT-सक्षम प्रणाली।
      • बड़ी और छोटी खदानों के लिये उपयुक्त तकनीक।
      • एक ऐसी प्रणाली जो नमूना लेने में लगने वाले समय को कम करती है। 
      • समिति ने सुझाव दिया कि राज्य सरकारें निम्नलिखित को विकसित करें– 
  • निष्पक्ष सैंपलिंग के लिये एक IT-आधारित ग्रेड सूचना प्रणाली।
    • ऑन द स्पॉट और ऑटोमेटेड सैंपलिंग।
    • सैंपलिंग प्रक्रिया की अनिवार्य वीडियोग्राफी।  
  • खनिजों का परिवहन:
    •  समिति ने खनन कार्यों में रेडियो फ्रीक्वेंसी आइडेंटिफिकेशन (RFID) टैग से लैस GPS-एनेबल्ड वाहनों का सुझाव दिया। ये RFID टैग विशिष्ट पहचान प्रदान करते हैं और वाहन संख्या, समय तथा टन भार जैसी रिकॉर्ड जानकारी प्रदान करते हैं।
    • इस जानकारी को सरकारी वेटब्रिज और संयंत्र स्थलों सहित विभिन्न बिंदुओं पर ऑनलाइन जाँचा जा सकता है। इसके अलावा, उसने विभिन्न खनन स्थलों पर CCTV प्रणाली का उपयोग करने का सुझाव दिया।
    • जियो-फेंसिंग को खदान की सीमाओं, अनलोडिंग प्वाइंट्स, आंतरिक परिवहन मार्गों और अन्य महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में लागू करने का सुझाव दिया गया है। इससे किसी भी असामान्य गतिविधि का पता लगाया जा सकता है।
  • लेखांकन के लिये ब्लॉकचेन: 
    • समिति ने कहा कि खनन उद्योग को खनिज निकासी से लेकर उपयोग तक मैनुअल प्रक्रियाओं के मामले में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
    • उसने कहा कि ब्लॉकचेन तकनीक खनिजों की मूल्य और आपूर्ति शृंखला पर नज़र रखने के लिये एक पारदर्शी तथा सुरक्षित डेटाबेस प्रदान करके इन समस्याओं को हल कर सकती है।
    • समिति ने खनन क्षेत्र में ब्लॉकचेन तकनीक को अपनाने का सुझाव दिया जिसकी शुरुआत सोने, ताँबे और जस्ता जैसे उच्च मूल्य वाले खनिजों हेतु एक पायलट परियोजना से की जाएगी।

  सूचना प्रौद्योगिकी  

कार्य समूहों की रिपोर्ट:

इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने भारत के लिये कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) के विभिन्न पहलुओं पर सुझाव देने हेतु सात कार्य समूहों की स्थापना की थी।

इनमें सरकारी डेटा मैनेजमेंट, स्टार्टअप्स इकोसिस्टम विकास, उत्कृष्टता केंद्र, कौशल विकास, कम्प्यूटेशनल इंफ्रास्ट्रक्चर और एआई के लिये चिपसेट शामिल हैं। मंत्रालय ने इन कार्य समूहों के सुझावों पर एक रिपोर्ट जारी की। 

प्रमुख टिप्पणियों और सुझावों में निम्नलिखित शामिल हैं— 

  • सरकारी डेटा प्रबंधन: 
    • वर्ष 2022 में मंत्रालय द्वारा जारी मसौदा राष्ट्रीय डेटा गवर्नेंस नीति में निम्नलिखित की स्थापना का प्रस्ताव दिया गया था— 
      • AI के लिये सार्वजनिक डेटासेट को सुलभ बनाने हेतु इंडिया डेटासेट प्लेटफॉर्म।
      • नेशनल डेटा मैनेजमेंट ऑफिस, जोकि सरकार द्वारा डेटा कलेक्शन, प्रोसेसिंग और प्रबंधन की गवर्निंग करने वाली एजेंसी होगी।
      • दो कार्य समूहों ने इन पहलों को क्रियान्वित करने के लिये विवरण तैयार किया है। 
  • मुख्य सुझावों में निम्नलिखित शामिल हैं— 
    • NDMO को एक कार्यकारी एजेंसी के रूप में स्थापित करना।
    • NDMO के कार्यों में विभिन्न सरकारी संस्थाओं द्वारा डेटा के प्रबंधन के लिये विकासशील प्रक्रियाओं, मानकों और दिशा-निर्देशों को शामिल करना।
    • प्लेटफॉर्म पर डेटासेट देने के लिये गैर-सरकारी संस्थाओं को प्रोत्साहित करना।
  • आधारभूत संरचना: 
    • कंप्यूटेशनल बुनियादी ढाँचे पर कार्य समूह ने भारत में पाँच स्थानों पर सर्वोत्तम श्रेणी के बुनियादी ढाँचे की स्थापना करने का सुझाव दिया। 
      • उसने यह सुझाव भी दिया कि बुनियादी ढाँचे को एक सेवा के रूप में पेश किया जाना चाहिये और पारदर्शी मूल्य निर्धारण मॉडल लागू किया जाना चाहिये। 
      • इसके अलावा AI—आधारित इंफ्रास्ट्रक्चर में निजी क्षेत्र के निवेश को कर छूट, सब्सिडी और सार्वजनिक-निजी भागीदारी जैसे प्रोत्साहनों के माध्यम से प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
  • कौशल विकास: 
    • दक्षता पर कार्य समूह ने माध्यमिक विद्यालय स्तर से AI—संबंधित शिक्षा प्रदान करने का सुझाव दिया। 
    • उसने कहा कि प्रौद्योगिकी के विकास के मद्देनज़र पाठ्यक्रम को तेज़ी से अपडेट किये जाने की ज़रूरत है। उसने एक केंद्रीय करिकुलम रेपोजिटरी बनाने का सुझाव दिया जिसमें से एक मॉडल पाठ्यक्रम का चयन किया जा सकता है। 
    • यह भी पाया गया है कि फैकल्टी की गुणवत्ता भी ज़रूरी है, इसलिये उनके लिये प्रशिक्षण और कौशल उन्नयन कार्यक्रम शुरू किये जाने चाहिये। 
    • फैकल्टी के लिये उद्योग के साथ इंटर्नशिप करने के लिये एक मैकेनिज्म विकसित किया जाना चाहिये।

  शिक्षा  

समतामूलक एवं समग्र शिक्षा हेतु दिशा-निर्देश:

शिक्षा मंत्रालय ने हाल ही में ‘समान और समावेशी शिक्षा के लिये दिशा-निर्देश तथा कार्यान्वयन ढाँचे’ का अनावरण किया है, जो वर्ष 2020 की राष्ट्रीय शिक्षा नीति (National Education Policy- NEP) के अनुरूप एक महत्त्वपूर्ण पहल है।

  • NEP के तहत न्यायसंगत और समावेशी शिक्षा प्राप्त करना:
    • प्रारंभिक बचपन देखभाल और शिक्षा तक सार्वभौमिक पहुँच (ECCE):
      • आँगनवाडियों, प्री-स्कूलों और ग्रेड एक तथा दो पर ज़ोर देना।
      • विकलांग बच्चों की शीघ्र पहचान और हस्तक्षेप।
      • स्थानीय भाषाओं और खेल-आधारित गतिविधियों के माध्यम से मूलभूत साक्षरता तथा संख्यात्मकता।
      • विशेषकर आदिवासी क्षेत्रों में स्कूली शिक्षा के वैकल्पिक रूपों में ECCE कार्यक्रमों की शुरुआत।
      • प्रामाणित ECCE पाठ्यक्रमों के माध्यम से शिक्षक और आँगनवाड़ी कार्यकर्त्ता प्रशिक्षण।
    • बच्चों के स्वास्थ्य और पोषण में सुधार:
      • स्कूली शिक्षा प्रणाली में समुदाय की भागीदारी।
      • मुक्त और दूरस्थ शिक्षा कार्यक्रमों के माध्यम से स्कूल छोड़ने की दर में कमी लाना।
    • घर-आधारित शिक्षा के लिये दिशा-निर्देश:
      • ज़िला स्तर पर घर-आधारित शिक्षा चुनने वाले छात्रों का रिकॉर्ड बनाना।
      • एक शिक्षक द्वारा घर-आधारित शिक्षा के छात्रों का ऑडिट।
      • विकलांग बच्चों के लिये घरेलू शिक्षण स्थानों को बुनियादी ढाँचे से सुसज्जित करना।
  • समावेशी स्कूलों के लिये दिशानिर्देश:
    • लचीला और सामाजिक रूप से अनुकूल पाठ्यक्रम।
    • शिक्षण में मौखिक, श्रवण और स्पर्श संबंधी सहायता का उपयोग।
    • भाषण चिकित्सक और मनोवैज्ञानिकों तक पहुँच।
    • ज़िलों, ब्लॉकों, स्कूल समूहों और स्कूलों में समतापूर्ण तथा समावेशी शिक्षा प्रकोष्ठों की स्थापना।
    • वित्तीय संसाधनों और निगरानी गतिविधियों के साथ स्कूलों को समर्थन देने के लिये ज़िम्मेदार सेल।

स्कूलों में आत्महत्या की रोकथाम हेतु मसौदा दिशा-निर्देश:

  • स्कूली शिक्षा एवं साक्षरता विभाग ने स्कूलों में आत्महत्या की रोकथाम के लिये दिशा-निर्देश जारी किये हैं। दिशा-निर्देशों में आत्महत्या से जुड़े जोखिम कारकों को रेखांकित किया गया है और स्कूलों हेतु एक कार्य योजना प्रदान की गई है, जैसे—  
    • सकारात्मक वातावरण को बढ़ावा देना।
    • आत्महत्या की रोकथाम के लिये क्षमता का निर्माण करना।
    • जोखिम की आशंका वाले विद्यार्थियों की मदद करना।

प्रमुख सुझावों में निम्नलिखित शामिल हैं— 

  • स्कूल वेलनेस टीम: 
    • आत्महत्या के जोखिम की आशंका वाले विद्यार्थियों की पहचान कर, उनकी मदद करने के लिये दिशा-निर्देश प्रत्येक स्कूल में एक स्कूल वेलनेस टीम (School Wellness Team- SWT) बनाने की सलाह देते हैं। ऐसे विद्यार्थियों की पहचान चेतावनी के संकेतों के आधार पर की जाती है, जिनमें सामाजिक मेलजोल से दूरी बनाना, खुद को नुकसान पहुँचाने की बात करना शामिल है। 
    • अगर किसी विद्यार्थी की पहचान जोखिम में होने के तौर पर की जाती है तो SWT तत्काल कार्रवाई करेगा जिसमें विद्यार्थी से सावधानी से संपर्क करना और खुद को नुकसान पहुँचाने से रोकना शामिल है।
    • SWT मानसिक कल्याण के बारे में जागरूकता प्रदान करने वाली गतिविधियों का भी आयोजन करेगा। इसकी अध्यक्षता स्कूल प्रिंसिपल करेंगे और इसमें निम्नलिखित शामिल होंगे—  
      • स्कूल काउंसलर।
      • हर स्कूल स्तर का एक शिक्षक (मध्य और माध्यमिक सहित)।
      • अभिभावकों का एक प्रतिनिधि।
      • एक स्कूल मेडिकल स्टाफ।
  • क्षमता निर्माण:
    • दिशा-निर्देश आत्महत्या को रोकने हेतु शिक्षकों, विद्यार्थियों और अभिभावकों जैसे हितधारकों की क्षमता निर्माण के लिये कदम उठाने की सलाह देते हैं। इनमें पूरे शैक्षणिक वर्ष में ओरिएंटेशन कार्यक्रम आयोजित करना शामिल है जो निम्नलिखित में मदद करते हैं— 
      • आत्महत्या से जुड़े जोखिम कारकों को पहचानना और विद्यार्थियों में चेतावनी के संकेतों की पहचान करना।
      • मानसिक स्वास्थ्य के लिये संसाधनों का प्रभावी ढंग से उपयोग करना, जैसे काउंसिलिंग हेल्पलाइन।
      • तनावपूर्ण अनुभवों, जैसे— परीक्षाओं में विद्यार्थियों की सहायता करना।
      • माता-पिता और स्कूली शिक्षकों के लिये ऐसे क्षमता निर्माण अभ्यास स्कूल के काउंसिलर्स या चिह्नित सामाजिक कार्यकर्त्ताओं द्वारा आयोजित किये जाएंगे।
  • जोखिम वाले विद्यार्थियों हेतु तत्काल प्रतिक्रिया: 
    • दिशा-निर्देश उन प्रतिक्रियाओं को चित्रित करते हैं जिन्हें आत्म-हनन के चेतावनी संकेत प्रदर्शित करने वाले विद्यार्थियों की ओर निर्देशित किया जा सकता है। इन प्रतिक्रियाओं में निम्नलिखित शामिल हैं— 
      • सावधानी से विद्यार्थी के पास जाना।
      • उनसे धीरे से बात करना।
      • उनकी बात ध्यान से सुनना।
      • उन्हें शिक्षक या काउंसिलर से बात करने का सुझाव देना।
      • SWT के सदस्यों को परिस्थिति के बारे में सूचित करना।
  • मूल्यांकन: 
    • इन दिशा-निर्देशों को लागू करने के अनुभव का समय-समय पर SWT और शिक्षकों और अभिभावकों जैसे विभिन्न हितधारकों द्वारा विश्लेषण किया जाएगा। इस समीक्षा से प्राप्त अंतर्दृष्टि का उपयोग इन दिशा-निर्देशों को लागू करने की मौजूदा योजना को बेहतर बनाने के लिये किया जाएगा।

  वाणिज्य  

राष्ट्रीय हल्दी बोर्ड:

  • वाणिज्य विभाग ने एक राष्ट्रीय हल्दी बोर्ड का गठन किया है। भारत विश्व में हल्दी का सबसे बड़ा उत्पादक, उपभोक्ता और निर्यातक है। बोर्ड के उद्देश्यों में निम्नलिखित शामिल हैं— 
    • हल्दी में नए उत्पाद विकास और मूल्यवर्धन को बढ़ावा देना।
    • संभावित अंतरराष्ट्रीय बाज़ारों में बाज़ार अनुसंधान की सुविधा प्रदान करना।
    • हल्दी उत्पादों के निर्यात के लिये इंफ्रास्ट्रक्चर और लॉजिस्टिक्स के निर्माण तथा सुधार की सुविधा प्रदान करना।
    • गुणवत्ता अनुपालन और सुरक्षा मानकों को बढ़ावा देना।
    • हल्दी के लाभों पर अध्ययन, नैदानिक ​​​​परीक्षण और अनुसंधान को प्रोत्साहित करना।
  • 18 सदस्यीय बोर्ड में निम्नलिखित शामिल हैं— 
    • केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त एक अध्यक्ष।
    • वाणिज्य, कृषि, आयुष और फार्मास्यूटिकल्स मंत्रालयों/विभागों का प्रतिनिधित्व करने वाले चार सदस्य।
    • बारी-बारी से हल्दी उत्पादक राज्यों का प्रतिनिधित्व करने वाले तीन सदस्य।
    • हल्दी उत्पादकों का प्रतिनिधित्व करने वाले तीन सदस्य (केंद्र सरकार द्वारा नामित) और (v) मसाला बोर्ड के सचिव। 
  • अध्यक्ष एवं सदस्यों का कार्यकाल नियुक्ति तिथि से अधिकतम तीन वर्ष का होगा। बोर्ड एक वर्ष में कम-से-कम दो बैठकें आयोजित करेगा।

  नागरिक उड्डयन  

विमान नियमों में संशोधन:

नागरिक उड्डयन मंत्रालय ने विमान नियम, 1937 में संशोधनों को अधिसूचित किया है। वर्ष 1937 के नियमों को विमान एक्ट, 1934 के तहत अधिसूचित किया गया है। 

  • नियम पायलटों, हवाई यातायात नियंत्रकों और विमान रखरखाव इंजीनियरों सहित विभिन्न विमानन कर्मियों को लाइसेंस देने का प्रावधान करते हैं।
  • प्रमुख संशोधनों में निम्नलिखित शामिल हैं— 
    • लाइसेंस की वैधता का विस्तार: एयरलाइन परिवहन पायलटों और वाणिज्यिक पायलटों के लिये विमान संचालन के लाइसेंस की वैधता पाँच वर्ष से बढ़ाकर 10 वर्ष कर दी गई है। 
    • परिचालन के लिये विदेशी लाइसेंसों की मान्यता रद्द कर दी गई है।
  • फॉल्स लाइट्स को डिस्प्ले करना: 
    • वर्ष 1937 के नियम किसी भी हवाई अड्डे के पाँच किलोमीटर के दायरे में किसी भी लाइट के डिस्प्ले पर रोक लगाते हैं जिसे गलती से वैमानिक ग्राउंड लाइट या बीकन समझ लिया जा सकता है। 
    • संशोधित नियम उस दायरे को बढ़ाते हैं जहाँ ऐसी लाइट्स प्रतिबंधित है। इसे पाँच किलोमीटर से बढ़ाकर लगभग नौ किलोमीटर (पाँच समुद्री मील) कर दिया गया है। 
    • नोटिस दिये जाने के बाद ऐसी लाइटों को बुझाने की अवधि सात दिन से घटाकर 24 घंटे कर दी गई है। 
    • यह यह भी निर्दिष्ट करता है कि ऐसी लाइट में लालटेन लाइट, विश काइट्स और लेज़र रोशनी शामिल होंगी।  
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