नोएडा शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 9 दिसंबर से शुरू:   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    भारतीय जाति व्यवस्था में हाल के रुझानों और परिवर्तन के लिये ज़िम्मेदार कारकों पर चर्चा कीजिये। (250 शब्द)

    18 Apr, 2022 सामान्य अध्ययन पेपर 1 भारतीय समाज

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • महत्त्वपूर्ण विशेषताओं सहित भारतीय जाति प्रणाली का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
    • भारतीय जाति व्यवस्था में विभिन्न परिवर्तनों पर चर्चा कीजिये।
    • इसके अलावा जाति व्यवस्था में वर्तमान पद्धति के पीछे के कारणों पर चर्चा कीजिये।

    भारत में जाति व्यवस्था सामाजिक स्तरीकरण प्रणाली, सामाजिक प्रतिबंध तथा सकारात्मक कार्रवाई का एक आधार है। ऐतिहासिक रूप से भारत में जाति व्यवस्था ने समुदायों को हजारों विलुप्त वंशानुगत समूहों में विभाजित किया, जिन्हें जाति कहा जाता है।

    भारतीय जाति व्यवस्था की विशेषताएँ:

    • जाति अंतर्जात (प्राक्रतिक) है: भारत में जाति व्यवस्था पूर्णत: सख्त एवं गतिहीन है। यह जाति है जो जीवन में किसी व्यक्ति की स्थिति को निर्धारित करती है।
    • जाति अंतर्विवाही है: प्रत्येक व्यक्ति को अपनी जाति के भीतर और उपसमूह के भीतर विवाह करना होगा, यदि उस जाति में ऐसी कोई उपवर्ग हो।
    • वर्गीकृत सामाजिक संरचना: समाज की जाति संरचना वर्ग या अधीनता की प्रणाली है जो श्रेष्ठ वर्ग और निम्न वर्ग के संबंधों द्वारा एक साथ दर्शायी जाती है जिसमें शीर्ष पर ब्राह्मण हैं और सबसे निम्न पद पर शूद्र हैं।

    भारतीय जाति व्यवस्था में वर्तमान पद्धति:

    • जाति की संगठनात्मक शक्ति में वृद्धि: भारत में साक्षरता दर में वृद्धि के साथ सदस्यों की जाति-चेतना को उनके हितों की रक्षा में वृद्धि किया है। उदाहरण के लिये, जाट सभा जैसे जाति संघों का गठन।
    • जाति की राजनीतिक भूमिका: जाति हमारी राजनीति का एक अविभाज्य पहलू बन गई है क्योंकि चुनाव जाति के आधार पर अधिक लड़े जाते हैं।
    • जाति व्यवस्था की कठोरता में गिरावट: यह अंतर-जातीय विवाह में वृद्धि को दर्शाता है।
    • जाति-आधारित आरक्षण की मांग: पाटीदार समुदाय और कापू समुदाय द्वारा आरक्षण की मांगों में हाल ही में वृद्धि इसके कुछ उदाहरण हैं।
    • अनुसूचित जातियों तथा अन्य पिछड़े वर्गों के लिये संरक्षण: अनुसूचित जातियों और जनजातियों के हितों की रक्षा के लिये प्रदान किये गए संवैधानिक संरक्षोपायों ने जाति को जीवन का एक नया रूप प्रदान किया है। इन प्रावधानों ने वर्ग में से कुछ जाति को आरक्षण के लाभों को स्थायी रूप से पुन: प्राप्त करने के लिये निहित स्वार्थ को जन्म दिया है।
    • संस्कृतिकरण और पश्चिमीकरण: पहला पद एक प्रक्रिया को संदर्भित करता है जिसमें निम्न जातियाँ कुछ प्रमुख उच्च जातियों के मूल्यों, प्रथाओं और अन्य जीवन-शैलियों की नकल करती हैं। वही दूसरा पद एक ऐसी प्रक्रिया को दर्शाता है जिसमें उच्च-जाति के लोग अपनी जीवन-शैली को पश्चिमी लोगों के अनुरूप ढालते हैं।
    • जातियों की प्रतिस्पर्धात्मक भूमिका: सदियों से चली आ रही जातियों की परस्पर निर्भरता आज नहीं पाई जाती है। वर्तमान में प्रत्येक जाति दूसरे को संदेह, अवमानना एवं ईर्ष्या की दृष्टि से देखती है और उसे एक चुनौती देने वाले, एक प्रतियोगी के रूप में पाती है।

    जाति व्यवस्था में वर्तमान पद्धति के कारण

    • समान विधायी प्रणाली: ब्रिटिश और स्वतंत्र भारत द्वारा शुरू की गई समान विधायी प्रणाली ने न केवल सभी को समानता का आश्वासन दिया है, बल्कि अस्पृश्यता के प्रचलन को भी गैर-कानूनी घोषित कर दिया है।
    • आधुनिक शिक्षा का प्रभाव: आधुनिक धर्मनिरपेक्ष शिक्षा ने लोगों में जागरूकता पैदा करके कुछ उच्च जातियों के बौद्धिक एकाधिकार को बढ़ावा दिया और जाति व्यवस्था को प्रभावित किया है।
    • औद्योगिकीकरण, शहरीकरण और पश्चिमीकरण: इनके परिणामस्वरूप नवीन आर्थिक अवसर पैदा होते हैं जिन्होंने सख्त जाति व्यवस्था को क्षीण किया है।

    इस प्रकार, भारतीय जाति व्यवस्था में हालिया बदलाव, जाति-निष्ठा, जाति-पहचान, जाति-देशभक्ति और जाति-मानसिकता में बढ़ती प्रवृत्ति का उल्लेख करता है। विभिन्न नीतिगत उपायों तथा जागरूकता कार्यक्रमों के माध्यम से भारत के सभी लोगों के बीच धार्मिक, भाषायी तथा क्षेत्रीय या जातियों की विविधताओं के बीच सामंजस्य एवं समान भाईचारे की भावना को बढ़ावा देने का प्रयास किया जाना चाहिये।

    To get PDF version, Please click on "Print PDF" button.

    Print
close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2