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02 Jul 2025
सामान्य अध्ययन पेपर 2
राजव्यवस्था
दिवस 15: "संयुक्त राज्य अमेरिका का संविधान शक्तियों के सख्त पृथक्करण का प्रावधान करता है, जबकि भारत की व्यवस्था नियंत्रण और संतुलन के साथ-साथ शक्ति के संयोजन पर आधारित है।" दोनों व्यवस्थाओं के उपयुक्त उदाहरणों सहित विवेचना कीजिये।(150 शब्द)
उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत की संक्षेप में व्याख्या करके शुरुआत कीजिये।
- भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका के बीच इसकी संवैधानिक संरचना और संस्थागत मॉडल की तुलना एवं अंतर बताइए।
- दोनों प्रणालियों से उपयुक्त उदाहरणों के साथ चर्चा कीजिये।
- उपयुक्त निष्कर्ष प्रस्तुत कीजिये।
परिचय :
शक्तियों के पृथक्करण का सिद्धांत, जिसे मोंटेस्क्यू ने प्रतिपादित किया, शासन सत्ता को विधायिका, कार्यपालिका तथा न्यायपालिका के बीच विभाजित करने की वकालत करता है, ताकि सत्ता का केंद्रीकरण न हो। जहाँ संयुक्त राज्य अमेरिका इन शक्तियों का कठोर पृथक्करण लागू करता है, वहीं भारत एक मिश्रित प्रणाली का अनुसरण करता है, जो उसकी संसदीय संरचना और संवैधानिक भावना के अनुरूप पारस्परिक निर्भरता तथा अवरोध एवं संतुलन की विशेषता से युक्त है।
मुख्य भाग:
संवैधानिक संरचना और संस्थागत भूमिकाएँ:
विशेषता
संयुक्त राज्य अमेरिका (कठोर पृथक्करण)
भारत (संयुक्त ढाँचे में अवरोध एवं संतुलन)
कार्यपालिका-विधायिका संबंध
राष्ट्रपति काॅन्ग्रेस से स्वतंत्र है; वह काॅन्ग्रेस का सदस्य नहीं है और उसे आसानी से हटाया नहीं जा सकता।
प्रधानमंत्री तथा मंत्रिपरिषद संसद का हिस्सा होते हैं और उसके प्रति उत्तरदायी होते हैं।
न्यायिक भूमिका
न्यायपालिका पूर्णतः स्वतंत्र है; ऐतिहासिक मामला: मार्बरी बनाम मैडिसन (1803)
न्यायपालिका स्वतंत्र है लेकिन नियुक्तियों में कार्यपालिका का हस्तक्षेप शामिल होता है।
विधायी निरीक्षण
न्यूनतम प्रत्यक्ष नियंत्रण; राष्ट्रपति की वीटो शक्ति काॅन्ग्रेस पर नियंत्रण रखती है।
संसद अविश्वास प्रस्ताव, प्रश्नकाल और बजट नियंत्रण के माध्यम से नियंत्रण रखती है।
कार्यपालिका को हटाना
राष्ट्रपति को केवल "गंभीर अपराधों और कदाचार" के आधार पर ही महाभियोग द्वारा हटाया जा सकता है।
प्रधानमंत्री को अविश्वास प्रस्ताव के माध्यम से साधारण बहुमत से हटाया जा सकता है।
न्यायिक नियुक्तियाँ
राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत, सीनेट द्वारा अनुमोदित
कार्यकारी औपचारिक अनुमोदन के साथ कॉलेजियम प्रणाली
वीटो और अध्यादेश शक्तियाँ
राष्ट्रपति के पास मज़बूत वीटो शक्ति होती है।
राष्ट्रपति मंत्रिमंडल की सलाह पर कार्य करते हैं; अध्यादेश न्यायिक समीक्षा के अधीन होते हैं (डी.सी. वाधवा मामला)
दोनों प्रणालियों के उदाहरण
- संयुक्त राज्य अमेरिका (कठोर पृथक्करण):
- राष्ट्रपति (कार्यपालिका) काॅन्ग्रेस (विधानमंडल) का सदस्य नहीं हो सकता।
- राष्ट्रपति का कार्यकाल चार वर्ष का होता है और वह विधायी विश्वास पर निर्भर नहीं होता।
- राष्ट्रपति काॅन्ग्रेस के विधेयकों पर वीटो लगा सकते हैं, जिसे केवल दो-तिहाई बहुमत से ही रद्द किया जा सकता है।
- न्यायपालिका कार्य और कार्यकाल दोनों में कार्यपालिका और विधायिका से पूर्णतः स्वतंत्र है।
- भारत (संयुक्त ढाँचे में अवरोध एवं संतुलन):
- अनुच्छेद 75(3): मंत्रिपरिषद सामूहिक रूप से लोकसभा के प्रति उत्तरदायी होती है, जो कार्यपालिका पर विधायी नियंत्रण सुनिश्चित करती है।
- न्यायिक समीक्षा:
- इंदिरा गांधी बनाम राज नारायण (1975): निर्वाचन संबंधी विवादों पर न्यायिक अधिकार का दावा किया गया।
- मिनर्वा मिल्स बनाम भारत संघ (1980): इस बात पर पुनः ज़ोर दिया गया कि संसद संविधान के मूल ढाँचे में परिवर्तन नहीं कर सकती।
- अनुच्छेद 123: राष्ट्रपति की अध्यादेश निर्गत करने की शक्ति न्यायिक जाँच के अधीन है (डी.सी. वाधवा बनाम बिहार राज्य, 1987)।
निष्कर्ष:
जहाँ अमेरिकी मॉडल प्रत्येक अंग की पूर्ण स्वायत्तता सुनिश्चित करता है, वहीं भारत का संविधान अंगों के बीच समन्वित अंतःक्रिया का प्रावधान करता है, जो कठोर पृथक्करण के बिना संतुलन बनाए रखता है। जैसा कि भारतीय संविधान विशेषज्ञ एम. पी. जैन ने उपयुक्त रूप से कहा है:
"भारत में शक्तियों के पृथक्करण का सिद्धांत उसकी कठोरतम रूप में लागू नहीं होता। यहाँ शक्तियों के पृथक्करण के स्थान पर कार्यों का पृथक्करण विद्यमान है, जिसमें दुरुपयोग से बचाव हेतु आवश्यक नियंत्रण और संतुलन सुनिश्चित किये गये हैं।"
भारत का लचीला मॉडल दक्षता, जवाबदेही और संवैधानिक लचीलेपन को बढ़ावा देता है, जो इसके विविध और विकासशील लोकतांत्रिक परिदृश्य के अनुकूल है।