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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

द बिग पिक्चर: कार्बन बॉर्डर टैक्स

  • 29 Jul 2021
  • 14 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में  इटली में होने पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन पर जी-20 मंत्रिस्तरीय बैठक में भारत सहित विकासशील देशों से यूरोपीय संघ (European Union- EU) के हालिया प्रस्ताव "कार्बन बॉर्डर टैक्स" (Carbon Border Tax) पर अपनी चिंताओं को उठाने की उम्मीद की जा रही है।

फिर भी कानूनी रूप से कर योजना वर्ष 2026 से लागू हो सकती है।

प्रमुख बिंदु 

  • कार्बन कर लगाना: यह उपाय यूरोपीय उद्योगों को विदेशों में प्रतिस्पर्धा से बचाने के लिये डिज़ाइन किया गया है जो समान कार्बन कर के अधीन नहीं हैं।
    • वर्ष 2023-25 के एक संक्रमणकालीन चरण में आयातक अपने उत्सर्जन की निगरानी और रिपोर्ट करेंगे।
  • संयुक्त राज्य अमेरिका से इसी तरह का प्रस्ताव: संयुक्त राज्य अमेरिका में डेमोक्रेट ने 3.5 ट्रिलियन डॉलर की बजट योजना के हिस्से के रूप में पर्याप्त जलवायु नीतियों की कमी वाले देशों से आयात पर कर का अपना संस्करण प्रस्तावित किया है।
    • हालाँकि यह प्रस्ताव यूरोपीय संघ की योजना से बहुत कम विस्तृत है।
  • यूरोपीय संघ की पिछली नीति: एक दशक पहले यूरोपीय अधिकारी विदेशी एयरलाइनों को उनके द्वारा उत्पादित कार्बन प्रदूषण के लिये यूरोप में उड़ान भरने और उतरने हेतु जुर्माना लगाना चाहते थे।
    • लेकिन संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन के दबाव के बाद यूरोपीय संघ ने इस विचार को रद्द कर दिया।
  • यूरोपीय संघ की उत्सर्जन व्यापार प्रणाली: 27 यूरोपीय संघ के सदस्य देशों में 'उत्सर्जन व्यापार प्रणाली' (Emissions Trading System) के रूप में ग्रीनहाउस गैस (Greenhouse Gas) उत्सर्जन को नियंत्रित करने के लिये बहुत सख्त कानून हैं।
    • जो उद्योग अपने उत्सर्जन को सीमित करने में विफल रहते हैं, वे उन लोगों से 'अनुज्ञा पत्र' खरीद सकते हैं जिन्होंने अपने उत्सर्जन में कटौती की है।
  • कार्बन मूल्य निर्धारण उपकरण: विश्व बैंक के अनुसार, लगभग 64 कार्बन मूल्य निर्धारण उपकरण जैसे- उत्सर्जन व्यापार योजनाएँ या कर पूरे विश्व में उपयोग में हैं।
    • हालाँकि इनका वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में केवल 21% हिस्सा है।

यूरोपीय संघ और कार्बन सीमा कर

  • कार्बन एक्सटेंसिव गुड्स को हतोत्साहित करना: इस टैक्स के पीछे का विचार यूरोपीय संघ के बाहर की कंपनियों को हतोत्साहित करना है जो यूरोपीय संघ को चार कार्बन एक्सटेंसिव वस्तुओं-स्टील, सीमेंट, उर्वरक और एल्युमीनियम का निर्यात कर रहे हैं।
  • डिजिटल प्रमाणपत्र: इस प्रस्ताव के तहत आयातकों को अपने आयातित सामान में कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन के टन भार का प्रतिनिधित्व करने वाले डिजिटल प्रमाणपत्र खरीदने की आवश्यकता होगी।

कार्बन टैक्स लगाने के पीछे कारण:

  • यूरोपीय संघ और जलवायु परिवर्तन शमन: यूरोपीय संघ ने वर्ष 1990 के स्तर की तुलना में वर्ष 2030 तक अपने कार्बन उत्सर्जन में कम-से-कम 55% की कटौती करने की घोषणा की है। अब तक इन स्तरों में 24% की गिरावट आई है।
    • हालाँकि यूरोपीय संघ के CO2 उत्सर्जन में 20% योगदान करने वाले आयात से उत्सर्जन बढ़ रहा है।
    • इस तरह का कार्बन टैक्स अन्य देशों को GHGs उत्सर्जन को कम करने और यूरोपीय संघ के कार्बन फुटप्रिंट को कम करने के लिये प्रोत्साहित करेगा।
  • कार्बन रिसाव: यूरोपीय संघ की उत्सर्जन व्यापार प्रणाली कुछ व्यवसायों के लिये क्षेत्र के भीतर परिचालन को महँगा बनाती है।
    • यूरोपीय संघ के अधिकारियों को डर है कि ये व्यवसाय उन देशों में स्थानांतरित हो सकते हैं, जिनके पास अधिक छूट है या कोई उत्सर्जन सीमा नहीं है।
      • यह संक्रमणशील स्थिति में है और पूरी तरह से सफल है।
  • कुछ देशों को लाभ: जिन देशों ने पहले ही अपने यहाँ कार्बन ट्रेडिंग सिस्टम शुरू कर दिया है, वे इस पहल से लाभान्वित होंगे।
    • इन निर्यातक देशों के ये उद्योग उस कर की राशि के बराबर छूट का दावा कर सकते हैं जो उन्होंने पहले ही चुका दी है।
  • सबसे बुरी तरह प्रभावित देश: रूस, ब्रिटेन, यूक्रेन, तुर्की और चीन सबसे ज़्यादा प्रभावित होने वाले देश होंगे जो सामूहिक रूप से यूरोपीय संघ को बड़ी मात्रा में उर्वरक, लोहा, इस्पात और एल्युमीनियम निर्यात करते हैं।
    • संयुक्त राज्य अमेरिका यूरोप को काफी कम स्टील और एल्युमीनियम बेचता है, लेकिन इसका असर भी देखा जा सकता है।

नए कर संबंधी समस्याएँ

  • ‘बेसिक’ (BASIC) देशों की प्रतिक्रिया: ‘BASIC’ देशों (ब्राज़ील, दक्षिण अफ्रीका, भारत और चीन) के समूह ने एक संयुक्त बयान में यूरोपीय संघ के प्रस्ताव का विरोध करते हुए कहा कि यह ‘भेदभावपूर्ण’ एवं समानता तथा 'समान परंतु विभेदित उत्तरदायित्वों और संबंधित क्षमताओं' (CBDR-RC) के सिद्धांत के विरुद्ध है।
    • ये सिद्धांत स्वीकार करते हैं कि विकसित देश जलवायु परिवर्तन का मुकाबला करने हेतु विकासशील और संवेदनशील देशों को वित्तीय एवं तकनीकी सहायता प्रदान करने हेतु उत्तरदायी हैं।
  • भारत पर प्रभाव: यूरोपीय संघ भारत का तीसरा सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है। यूरोपीय संघ, भारत निर्मित वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि कर भारतीय वस्तुओं को खरीदारों के लिये कम आकर्षक बना देगा जो मांग को कम कर सकता है।
    • यह कर बड़ी ग्रीनहाउस गैस फुटप्रिंट वाली कंपनियों के लिये निकट भविष्य में गंभीर चुनौतियाँ उत्पन्न करेगा।
  • ‘रियो घोषणा’ के साथ असंगत: पर्यावरण के लिये दुनिया भर में एक समान मानक स्थापित करने की यूरोपीय संघ की धारणा ‘रियो घोषणा’ के अनुच्छेद-12 में निहित वैश्विक सहमति के विरुद्ध है, जिसके मुताबिक, विकसित देशों के लिये लागू मानकों को विकासशील देशों पर लागू नहीं किया जा सकता है।
  • जलवायु परिवर्तन व्यवस्था में बदलाव: इस नई प्रणाली के तहत आयातित वस्तुओं की ग्रीनहाउस सामग्री को भी आयात करने वाले देशों की ग्रीनहाउस गैस सूची में समायोजित करना होगा, जिसका अर्थ है कि माल की गणना ग्रीनहाउस गैस उत्पादन के आधार पर नहीं बल्कि खपत के आधार पर की जाएगी।
    • इसके कारण संपूर्ण जलवायु परिवर्तन व्यवस्था में बदलाव करना होगा।
  • संरक्षणवादी नीति: नीति को संरक्षणवाद का एक प्रच्छन्न रूप भी माना जा सकता है।
    • संरक्षणवाद (Protectionism) उन सरकारी नीतियों को संदर्भित करता है जो घरेलू उद्योगों की सहायता के लिये अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को प्रतिबंधित करती हैं।
      • ऐसी नीतियाँ आमतौर पर घरेलू अर्थव्यवस्था के भीतर आर्थिक गतिविधियों में सुधार लाने के लक्ष्य के साथ लागू की जाती हैं।

आगे की राह: 

  • भारत-यूरोपीय संघ संबंधों को बनाए रखना: भारत को यह भी नहीं भूलना चाहिये कि यूरोपीय संघ इसका दूसरा सबसे बड़ा खरीदार है और वर्तमान में व्यापार और सेवा दोनों ही मामलों में यूरोपीय संघ के साथ भारत अधिशेष की स्थिति में है।
    • यूरोपीय संघ एक ऐसा बाज़ार है जिसे भारत को पोषित और संरक्षित करने की आवश्यकता है।
    • भारत को यूरोपीय संघ से द्विपक्षीय वार्ता करनी चाहिये ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि यूरोपीय संघ के साथ उसके निर्यात को या तो एक मुक्त व्यापार समझौते (Free Trade Agreement) के माध्यम से या अन्य माध्यमों से संरक्षित किया जाए  और यदि समायोजन एवं मानक जिन्हें भारत को पूरा करने की आवश्यकता है, को पूरा करने हेतु उसे तत्पर रहना चाहिये।
  • वर्तमान संदर्भ में: भारत यूरोपीय संघ को सीमेंट या उर्वरक का निर्यात नहीं करता है और स्टील एवं एल्युमीनियम का निर्यात भी, अन्य देशों की तुलना में इनका अपेक्षाकृत काफी कम निर्यात भारत द्वारा किया जाता है।
    • यूरोपीय संघ की इस नीति का लक्ष्य भारत नहीं है बल्कि उसका लक्ष्य रूस, चीन और तुर्की हैं जो कार्बन के बड़े उत्सर्जक देश हैं और यूरोपीय संघ को स्टील एवं एल्युमीनियम के प्रमुख निर्यातक हैं।
    • इस मुद्दे पर आगे रहने का भारत के पास कोई कारण नहीं है। इसे सीधे यूरोपीय संघ से बात करनी चाहिये और  द्विपक्षीय रूप से इस मुद्दे को हल करना चाहिये।
  • विरोध और  तैयारी: चीन ने हमेशा 'विरोध करते समय तैयारी करते रहें' की नीति का पालन किया है।
    • चीन कार्बन बॉर्डर टैक्स का विरोध करने की बात कर रहा है। लेकिन साथ ही चीन ने पहले ही यह दावा करते हुए अपनी कार्बन ट्रेडिंग प्रणाली शुरू कर दी है कि वह सबसे बड़ा है।
    • यदि भविष्य में यूरोपीय संघ यह कर लगाता है और भारत अपनी कार्बन व्यापार प्रणाली स्थापित नहीं करता है तो इससे बुरी तरह प्रभावित होगा।
      • वर्ष 2026 में भी यदि भारत पर टैक्स लगाया जाता है, तो वह निश्चित रूप से उस समय भी सबसे अच्छे परिणामों के साथ-साथ सबसे बुरे परिणामों के लिये  भी तैयार नहीं होगा।
  • भारत की जलवायु न्यूनीकरण नीतियों को फिर से आकार देना: भारत में भले ही कार्बन व्यापार प्रणाली न हो, लेकिन यदि कार्बन समकक्षों को परिवर्तित किया जाता है तो इसके ऊर्जा कर की मात्रा में बहुत अधिक बढ़ोतरी होगी।
    • भारत के पास पहले से ही देश में जलवायु परिवर्तन को कम करने के उपाय मौजूद हैं, बस उनमें कुछ परिवर्तनों की आवश्यकता है। भारत को चाहिये कि वह इन उपायों को इस तरीके से तैयार करे जो भारत के महत्त्वपूर्ण बाज़ारों के अनुकूल हों।
  • सामूहिक अनुनयन: BASIC समूह में शामिल देश और अन्य महत्त्वपूर्ण विकासशील देश इस तरह की नीति को लागू करने के बजाय जलवायु परिवर्तन शमन के विकल्प खोजने के लिये वैश्विक बैठकों में सामूहिक अनुनयन की नीति का पालन करेंगे।

निष्कर्ष

  • सीमा पर आयातित सामानों पर शुल्क लगाने हेतु कार्बन बॉर्डर टैक्स जैसी प्रणाली स्वच्छ प्रौद्योगिकियों को अपनाने के लिये प्रेरित कर सकती है।
    • लेकिन अगर यह कार्य नई प्रौद्योगिकियों और पर्याप्त वित्तीय सहायता के बिना किया जाए, तो यह विकासशील देशों के लिये नुकसानदेह हो जाएगा।
  • जहाँ तक भारत का संबंध है, उसे इस कर के लागू होने के साथ संभावित लाभों और नुकसानों का आकलन करना चाहिये तथा एक द्विपक्षीय दृष्टिकोण के साथ यूरोपीय संघ से बातचीत करनी चाहिये।
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