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भारतीय अर्थव्यवस्था

सीमित देयता भागीदारी (संशोधन) विधेयक, 2021

  • 05 Aug 2021
  • 12 min read

चर्चा में क्यों? 

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने हाल ही में सीमित देयता भागीदारी (एलएलपी) अधिनियम, 2008 (Limited Liability Partnership Act, 2008) में सीमित देयता भागीदारी (संशोधन) विधेयक, 2021 के जरिये संशोधन को मंज़ूरी दी है।

प्रमुख बिंदु

  • इस विधेयक का उद्देश्य ईज़ ऑफ डूइंग बिजनेस को सुगम बनाना और देश भर में स्टार्टअप्स को प्रोत्साहित करना है। 
  • यह कंपनी अधिनियम, 2013 के तहत आने वाली बड़ी कंपनियों की तुलना में सीमित देयता भागीदारी (एलएलपी) वाली कंपनियों के लिये समान अवसर प्रदान करेगा।
  • इससे पूर्व में एलएलपी के तहत ना तो सरलीकृत विनियमन और ना ही अभ्यास में आसानी का लाभ प्राप्त था।
  • कंपनी अधिनियम, 2013 भी संशोधन के माध्यम से वर्तमान मे विभिन्न अपराधों को गैर आपराधिक बना रही है।  

सीमित देयता भागीदारी (एलएलपी) के बारे में:

  • एक सीमित देयता भागीदारी (एलएलपी) एक साझेदारी फर्म और एक कंपनी का एक संकर मॉडल है, जिसमें कुछ या सभी भागीदारों (अधिकार क्षेत्र के आधार पर) की सीमित देनदारियाँ हैं।
  • एलएलपी में प्रत्येक पार्टनर दूसरे पार्टनर के दुराचार या लापरवाही के प्रति उत्तरदायी नहीं होता है।
  • एलएलपी में भागीदार केवल पूंजी में उनके द्वारा पूर्व में सहमत योगदान की सीमा तक ही उत्तरदायी होते हैं।
  • वे अन्य भागीदारों के किसी भी अनधिकृत कार्यों के लिये उत्तरदायी नहीं हैं।

एलएलपी और पारंपरिक साझेदारी फर्मों के बीच अंतर:

  • दायित्व: एक साझेदारी फर्म में सभी साझेदार किसी भी भागीदार द्वारा की गई किसी भी कार्रवाई के लिये उत्तरदायी होते हैं और उनकी देयताएँ असीमित होती है।
    • हालाँकि एक एलएलपी में किसी भी भागीदार की देयता सीमा उसके द्वारा निवेश की गई पूंजी की मात्रा से निर्धारित होती है।
  • कानूनी समर्थन: एलएलपी और साझेदारी फर्म विभिन्न अधिनियमों द्वारा शासित होते हैं।
    • एलएलपी सीमित देयता भागीदारी अधिनियम, 2008 और कंपनी अधिनियम द्वारा शासित है जबकि साझेदारी भारतीय भागीदारी अधिनियम, 1932 द्वारा शासित है।
  • इकाई (Entity): एलएलपी एक अलग कानूनी इकाई होती है और वह अपनी संपत्ति की पूरी उत्तरदायी होती है (भागीदारों की देयता सीमित होती है) जबकि साझेदारी फर्म अलग कानूनी इकाई नहीं होती हैं।
  • स्थायी उत्तराधिकार: एलएलपी एक स्थायी उत्तराधिकार का निरीक्षण करता है जबकि एक पारंपरिक साझेदारी फर्म नहीं करता है।
    • संभावित साझेदारों में परिवर्तनों से प्रभावित हुए बिना एक एलएलपी अपने व्यवसाय को जारी रख सकता है।
    • यह अनुबंध करने और अपने नाम पर संपत्ति रखने में सक्षम है।
    • एक मानक साझेदारी अपने भागीदारों को फर्म के रूप में संदर्भित करती है उनके भागीदारों को स्वतंत्र रूप से नहीं।
  • भागीदारों की संख्या: एलएलपी और साझेदारी फर्म दोनों में न्यूनतम सदस्यों की आवश्यक संख्या दो है।
    • हालाँकि पारंपरिक साझेदारी फर्म के लिये भागीदारों की अधिकतम संख्या 20 है।
    • एलएलपी के मामले में ऐसी कोई सीमा नहीं है।
  • विदेशी नागरिकों की भागीदारी: विदेशी नागरिक एलएलपी में भागीदार बन सकते हैं। जबकि साझेदारी फर्मों के मामले में विदेशी नागरिक भागीदार नहीं बन सकते।
  • भागीदार के रूप में अवयस्क: अवयस्क को एलएलपी के लाभों में शामिल नहीं किया जा सकता है।
    • हालाँकि एक पारंपरिक साझेदारी फर्म में नाबालिगों को मौजूदा भागीदारों की पूर्व सहमति से साझेदारी का लाभ लेने के लिये भर्ती किया जा सकता है।
  • जोखिम लेने की क्षमता: एक साझेदारी फर्म में पेशेवर विशेषज्ञता होती है लेकिन भागीदारों पर उच्च देनदारियों के कारण जोखिम लेने की क्षमता अक्सर कम हो जाती है।
    • एलएलपी इसके लिये एक वैकल्पिक समाधान प्रदान करता है क्योंकि यह पेशेवर विशेषज्ञता के लाभों और भागीदारों की जोखिम लेने की क्षमता को जोड़ती है और उन्हें व्यवहार्य विकल्प प्रदान करती है।

विधेयक की मुख्य विशेषताएँ:

  • अपराधों का गैर-अपराधीकरण: वर्तमान में 24 दंडात्मक प्रावधान, 21 शमनीय अपराध और 3 गैर-शमनीय अपराध हैं।
    • विधेयक इन अपराधों में से 12 को अपराध से मुक्त करने का प्रयास करता है।
    • जिन अपराधों से निपटने के लिये अन्य कानून अधिक उपयुक्त हैं, उन्हें एलएलपी अधिनियम से हटा दिया जाना प्रस्तावित है।
    • विधेयक अधिनियम की कुछ धाराओं में संशोधन करता है ताकि अपराधों को नागरिक द्वारा हुए चूक में परिवर्तित किया जा सके और दंड की प्रकृति को जुर्माना से मौद्रिक दंड में परिवर्तित किया जा सके क्योंकि जुर्माना आपराधिकता को दर्शाता है।
  • इन-हाउस मैकेनिज़्म: ऐसे अपराध जो मामूली/कम गंभीर मुद्दों से संबंधित हैं, जिनमें मुख्य रूप से उद्देश्य निर्धारण शामिल हैं, को अपराध के रूप में मानने के बजाय इन-हाउस एडजुडिकेशन मैकेनिज़्म (आईएएम) ढाँचे में स्थानांतरित करने का प्रस्ताव है।
    • कॉर्पोरेट मामलों का मंत्रालय (MCA) MCA21 पोर्टल के नए संस्करण के हिस्से के रूप में एक ई-निर्णय मंच स्थापित करने की दिशा में भी काम कर रहा है।
  • छोटे एलएलपी का परिचय: विधेयक में उद्यमियों को प्रोत्साहित करने के लिये छोटे एलएलपी के एक वर्ग के निर्माण का प्रस्ताव है।
    • ये एलएलपी कम अनुपालन , कम शुल्क/अतिरिक्त शुल्क, और सिविल डिफॉल्ट्स में छोटे दंड के अधीन होंगे।
    • कम अनुपालन अनिगमित सूक्ष्म और लघु साझेदारियों को एलएलपी के संगठित ढाँचे में बदलने और इसके लाभों को प्राप्त करने के लिये प्रोत्साहित करेगा।
    • "छोटी सीमित देयता भागीदारी" कंपनी अधिनियम, 2013 के तहत "छोटी कंपनी" की अवधारणा के अनुरूप है।
  • योगदान की सीमा और कारोबार का आकार: एलएलपी के भागीदारों के लिये योगदान सीमा 25 लाख से लगभग रु. 5 करोड़ और कारोबार का आकार 40 लाख से 50 करोड़ तक रुपये से बढ़ा दिया गया है। ।
  • गैर-परिवर्तनीय डिबेंचर: संशोधन एलएलपी को सेबी या आरबीआई द्वारा विनियमित निवेशकों से पूरी तरह से सुरक्षित गैर-परिवर्तनीय डिबेंचर जारी करने की अनुमति देता है।
    • यह एलएलपी के पूंजी और वित्तपोषण कार्यों को बढ़ाने की सुविधा प्रदान करेगा।
  • लेखा और लेखा परीक्षा मानक: एलएलपी के लिये लेखा मानकों और लेखा परीक्षा मानकों को विधेयक में धारा 34ए में प्रस्तावित किया गया है।
    • यह प्रक्रियाओं में मानकीकरण लाने के लिये किया जाता है क्योंकि एलएलपी उस तरह की मानक लेखा प्रणाली का आनंद नहीं ले रहे थे जो उनकी समकक्ष कंपनियां कंपनी अधिनियम, 2013 के प्रावधानों के तहत आनंद ले रही हैं।

आगे की राह

  • एंजेल निवेशकों की एलएलपी तक पहुँच बढ़ाना: एक एंजेल निवेशक ऐसा व्यक्ति होता है जो एक छोटी स्टार्टअप कंपनी में निवेश करने के लिये सहमत होता है,  जिसकी पूंजी तक बहुत कम पहुँच होती है।
    • एलएलपी को एंजेल निवेशक के लिये पात्र होने के लिये कुछ मानदंडों को पूरा करना होगा। भले ही इसका साझेदार अपनी व्यक्तिगत क्षमता में 'एंजेल इनवेस्टर्स' के लिये अर्हता प्राप्त करते हों, एलएलपी इसके लिये पात्र नहीं हो सकता है।
    • एलएलपी को मानदंडों में ढील देकर एंजेल निवेशकों तक पहुँच को सक्षम करने से बड़ी संख्या में उद्यमियों को अपना व्यवसाय करने का लाभ मिलेगा।
  • भारत में एलएलपी के पंजीकरण को बढ़ावा देना: वर्तमान में कोई भी दो एनआरआई भारत में एलएलपी नहीं बना सकते हैं; भागीदारों में से एक को भारतीय निवासी होना चाहिए।
  • इसके अलावा, एलएलपी में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) केवल सरकारी मार्ग के माध्यम से हो सकता है। इसलिये इसमें बहुत अधिक समय है।
  • अपराध को गैर-अपराधिक करने के अलावा यह भी महत्त्वपूर्ण है कि भारत में एलएलपी को पंजीकृत करने और स्थापित करने के मानदंड उद्यमियों के अनुकूल हों और वे भारत को अपने स्टार्टअप स्थापित करने के लिये एक अनुकूल स्थान पाते हों।
  • कर्मचारी स्टॉक स्वामित्व योजना (ESOP): यह एक कर्मचारी लाभ योजना है जो कर्मचारियों को कंपनी में स्वामित्व का हित देती है।
    • एक एलएलपी ईएसओपी जारी करने की अनुमति नहीं देता है जो आजकल कंपनी के प्रमुख कर्मचारियों को बनाए रखने के लिये सबसे अच्छे उपकरण के रूप में उपयोग किया जाता है।

निष्कर्ष

सीमित देयता भागीदारी व्यवसाय का सबसे लचीला रूप है और भागीदारों को एक अधिक सुरक्षित व्यावसायिक वातावरण प्रदान करता है। विधेयक के माध्यम से प्रस्तावित नवीनतम संशोधन बहुत सारे छोटे और बड़े उद्यमों को कवरेज प्रदान करेंगे और एक कंपनी के साथ-साथ पारंपरिक साझेदारी फर्मों को भी लाभ प्रदान करेंगे।

हालाँकि नए व्यवसायों को अधिक अवसर प्रदान करने के लिये एंजेल निवेशकों तक पहुँच को आसान बनाने और ईएसओपी जारी करने के संदर्भ में मानदंडों में अधिक आसानी की आवश्यकता है।

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