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द बिग पिक्चर/इनसाइट: ग्रामीण विद्युतीकरण का शत-प्रतिशत लक्ष्य हासिल

  • 03 May 2018
  • 21 min read

संदर्भ एवं पृष्ठभूमि
15 अगस्त, 2015 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 1000 दिनों में देश के 18,452 उन गाँवों को रौशन करने का महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य रखा था जो आज़ादी के सात दशक बाद भी अँधेरे में ज़िंदगी जीने को मजबूर थे।  निर्धारित समय सीमा से 12 दिन पहले ही  28 अप्रैल को यह लक्ष्य हासिल कर लिया गया। मणिपुर में सेनापति ज़िले का लिसांग (केवल 19 घर, आबादी केवल 65) देश का आखिरी गाँव था, जो बिजली से रौशन हुआ। उपरोक्त अविद्युतीकृत गाँवों में से अधिकांश दूर-दराज़ या दुर्गम स्थानों पर थे, जिस वजह से इनके विद्युतीकरण में कठिनाइयाँ आईं, लेकिन अंततः सभी गाँवों में नेशनल ग्रिड या ऑफ ग्रिड से बिजली पहुँचा दी गई। 

विवादित परिभाषा का मुद्दा 
विद्युतीकृत गाँव की परिभाषा विवादित बन गई है, जिसके तहत 10% विद्युतीकृत परिवारों वाले गाँव को विद्युतीकृत गाँव माना जाता है। यह परिभाषा लगभग 20 वर्षों से चली आ रही है और इस सरकार ने भी इसमें परिवर्तन करना उचित नहीं समझा। लेकिन इसका अर्थ घरेलू विद्युतीकरण के अंतर्गत केवल 10% परिवारों को विद्युतीकृत करने तक सीमित कतई नहीं है।

अक्तूबर1997 में स्थापित इस परिभाषा के अनुसार एक गाँव की पहचान विद्युतीकृत गाँव के रूप में तब की जाती है, जब...  

  • निवास योग्य स्थान पर बुनियादी ढाँचे के प्रावधान, जैसे-वितरण ट्रांसफॉर्मर और आस-पास के इलाकों में लाइनों की सुविधा।
  • सार्वजनिक स्थानों, जैसे-स्कूलों, पंचायत कार्यालय, स्वास्थ्य केंद्रों, औषधालयों और सामुदायिक केंद्रों में बिजली की उपलब्धता।
  • गाँव के परिवारों की कुल संख्या में से कम से कम 10% के पास विद्युत कनेक्शन हो।

वस्तुस्थिति क्या है?

  • राज्यों से प्राप्त रिपोर्टों के आधार पर वर्तमान में ग्रामीण क्षेत्रों में घरेलू विद्युतीकरण स्तर 82% प्रतिशत से अधिक है (47% से लेकर 100% तक)। 
  • देश के विभिन्न राज्यों व क्षेत्रों में विद्युतीकरण स्तर का यह अंतर प्राथमिक रूप से आकार, भौगोलिक विषमता, अवस्थिति, संसाधन आदि कारकों पर आधारित है और इन कारणों में राज्यों द्वारा ग्रामीण विद्युतीकरण के लिये किये गए प्रयास भी शामिल हैं। 
  • ऐसे में यदि परिभाषा ही कारण होती तो घरेलू विद्युतीकरण के इस स्तर को प्राप्त नहीं किया जा सकता था।

सरकार ने इस विरोधाभास को दरकिनार कर 31 दिसंबर, 2018 तक सार्वभौमिक घरेलू विद्युतीकरण के लक्ष्य की प्राप्ति के लिये प्रधानमंत्री सहज बिजली हर घर योजना-सौभाग्य योजना की शुरुआत की है। 

क्या है सौभाग्य योजना?
16,320 करोड़ रुपए की लागत वाली योजना 'सौभाग्य' का उद्देश्य अंतिम छोर तक कनेक्टिविटी सुनिश्चित  करते हुए सभी घरों में बिजली पहुँचाना और  ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों के सभी शेष गैर-विद्युतीकृत घरों में बिजली कनेक्शन सुलभ कराना है, ताकि देश में सभी घरों में बिजली पहुँचाने का लक्ष्य हासिल किया जा सके।

योजना से क्या अपेक्षित है?

  • रौशनी के लिये केरोसिन का प्रयोग न करने से पर्यावरण में सुधार
    ♦ शैक्षणिक गतिविधियों में प्रगति
    ♦ उत्तम स्वास्थ्य सेवाएँ
    ♦ रेडियो, टेलीविजन और मोबाइल द्वारा बेहतर संपर्कता
    ♦ आर्थिक गतिविधियों और रोज़गार में वृद्धि
    ♦ विशेष रूप से महिलाओं सहित सभी के जीवनस्तर में सुधार
  • इस योजना के तहत केंद्र सरकार से 60% अनुदान राज्यों को मिलेगा, जबकि राज्य अपने कोष से 10% धन खर्च करेंगे और शेष 30% राशि बैंकों से बतौर ऋण के रूप में प्राप्त करना होगा।
  • विशेष राज्यों के लिये योजना का 85% अनुदान केंद्र सरकार देगी, जबकि राज्यों को अपने पास से केवल 5% धन लगाना होगा और शेष 10% बैंकों से कर्ज़ लेना होगा।
  • ऐसे लगभग सभी साढ़े तीन करोड़ निर्धन परिवारों को बिजली कनेक्शन प्रदान किया जाएगा, जिनके पास अभी कनेक्शन नहीं है।
  • इस योजना का लाभ गाँव के साथ-साथ शहर के लोगों को भी मिलेगा।
  • ये मुफ्त बिजली कनेक्शन गरीब परिवारों को प्रदानकिये जाएंगे।
  • केंद्र सरकार द्वारा बैटरी सहित 200 से 300 वाट क्षमता का सोलर पावर पैक दिया जाएगा, जिसमें हर घर के लिये 5 एलईडी बल्ब, एक पंखा भी शामिल है।
  • बिजली के इन उपकरणों की देख-रेख 5 सालों तक सरकार अपने खर्च पर करवाएगी।
  • बिजली कनेक्शन के लिये 2011 की सामाजिक, आर्थिक और जातीय जनगणना को आधार माना जाएगा। जो लोग इस जनगणना में शामिल नहीं हैं, उन्हें 500 रुपए में कनेक्शन दिया जाएगा और इसे 10 किश्तों में वसूला जाएगा।
  • सभी घरों को बिजली पहुँचाने के लिये प्री-पेड मॉडल अपनाया जाएगा।

(टीम दृष्टि इनपुट)

राष्ट्रीय विद्युत नीति में ग्रामीण विद्युतीकरण 
राष्ट्रीय विद्युत नीति में सभी ग्रामीण क्षेत्रों को चौबीसों घंटे गुणवत्तापूर्ण बिजली की आपूर्ति का लक्ष्य रखा गया है। ग्रामीण विद्युतीकरण की परिभाषा को इस सोच के साथ कठोर बना दिया गया है कि किसी भी गाँव को विद्युतीकृत गाँव घोषित करने से पहले वहां पर्याप्त विद्युत अवसंरचना की उपलब्धता सुनिश्चित हो। इस परिभाषा के तहत किसी भी गाँव को तभी विद्युतीकृत घोषित किया जाएगा जब वहाँ रिहायशी और दलित बस्ती दोनों क्षेत्रों में वितरण ट्रांसफार्मर और ट्रांसमिशन लाइनों की उपलब्धता, स्कूलों, पंचायत कार्यालयों और सामुदायिक केंद्रों में बिजली की सुविधा, और गाँव के कम-से-कम 10% परिवारों में बिजली की आपूर्ति जैसी मूलभूत व्यवस्था हो जाए।

  • इसके साथ इस तथ्य की अनदेखी भी नहीं की जा सकती कि आज भी देश की बहुत बड़ी आबादी गाँव तक बिजली पहुँच जाने के बावजूद अपने लिए बिजली का इंतज़ार ही कर रही है।
  • बिजली वाले और गैर-बिजली वाले गाँवों में खेती-किसानी यानी उत्पादकता की स्थिति से लेकर पढ़ाई-लिखाई और जीवन स्तर, विशेषकर महिलाओं और बच्चों के मामले में यह असर आँकड़ों में देखा जा सकता है। 
  • एक और वास्तविकता यह है कि गाँवों को अपनी ज़रूरत के अनुसार बिजली नहीं मिल पाती। 
  • यह भी देखना होगा कि उस बहुत बड़ी आबादी तक बिजली कैसे पहुंचेगी, जिसके पास अपना घर ही नहीं है।

ग्रामीण विद्युतीकरण  से जुड़े प्रमुख मुद्दे

  • बुनियादी ढाँचे और गाँव के कुछ सार्वजनिक केंद्रों के विद्युतीकरण के अलावा, गाँव के कुल परिवारों की संख्या में से केवल 10% परिवारों के पास विद्युत कनेक्शन होने के आधार पर एक गाँव को विद्युतीकृत माना जाता है, भले ही 90% परिवारों के पास बिजली कनेक्शन न हो। 
  • हालाँकि, भारत ने अब पूर्ण विद्युतीकरण का लक्ष्य हासिल कर लिया है, लेकिन भारत के ग्रामीण परिवारों (अनुमानित 31 मिलियन) का लगभग पाँचवां हिस्सा अभी भी बिजली की सुविधा से वंचित है।
  • केवल उत्तर प्रदेश राज्य में अंधेरे में रहने वालों की संख्या 13 मिलियन से अधिक है।
  • इसके अलावा, आधिकारिक आँकड़ों में कई गाँवों को विद्युतीकृत माना जाता है, किंतु वहाँ शिकायतें दर्ज की गई हैं कि गाँवों की अनदेखी के कारण ट्रांसमिशन तारों जैसे प्रमुख घटक की चोरी की घटनाएँ भी बढ़ गई हैं। 
  • सरकार का कहना है कि ग्रामीण विद्युतीकरण की 20 साल पुरानी परिभाषा में परिवर्तन की कोई आवश्यकता नहीं है क्योंकिसौभाग्य योजना के माध्यम से पूर्ण विद्युतीकरण और हर घर तक बिजली की उपलब्धता सुनिश्चित करने का प्रयास किया जा रहा है।
  • जनगणना वाले कुल 19,679 गाँवों का विद्युतीकरण होना था, लेकिन राज्य सरकारों ने रिपोर्ट दी है कि 1305 गाँवों में कोई नहीं रहता।
  • शेष 18,374 गाँवों का विद्युतीकरण किये जाने के बाद 100 प्रतिशत ग्रामीण विद्युतीकरण का लक्ष्य हासिल किया जा चुका है। 
  • देश के लगभग 18 करोड़ (17,99,41,456) घरों में से 17%  (3,13,65,992) तक बिजली पहुँचनी बाकी है।

कैसे हासिल हुआ लक्ष्य?
ग्रामीण विद्युतीकरण के इस लक्ष्य को हासिल करने में विद्युत मंत्रालय ने पाँच स्तरों पर निगरानी करने और स्थानीय समस्याओं को दूर करने की कार्यनीति बनाई थी।

  1. प्रति सप्ताह केंद्रीय विद्युत सचिव अंतर-मंत्रालयी निगरानी समिति के तहत प्रगति की समीक्षा करते थे।
  2. विद्युत सचिव हर महीने राज्यों के बिजली मंत्रियों व सचिवों के साथ अलग से एक बार फिर समीक्षा करते थे। 
  3. इसके बाद राज्य स्तर पर प्रमुख सचिव की अगुवाई में एक समिति बनाई गई थी जो राज्यों में आने वाली कठिनाइयों को दूर करने का काम करती थी। इस समिति का काम भूमि अधिग्रहण, वन विभाग, रेलवे व गृह मंत्रालय से संबंधित मंजूरी लेने का था। 
  4. इसके बाद जिला स्तरीय एक अलग समिति थी जो ज़िला स्तर पर काम की निगरानी करती थी। ज़िला स्तरीय समिति का अध्यक्ष ज़िले के सबसे वरिष्ठ सांसद को बनाया गया था। 
  5. इसके अलावा ग्रामीण विद्युतीकरण निगम लिमिटेड के स्तर पर पूरी योजना की अलग से निगरानी की जा रही थी, क्योंकि इसे लागू करने का ज़िम्मा इसी के पास है।

आर्थिक विकास के लिये ज़रूरी है बिजली
आर्थिक विकास के लिये बिजली का होना बेहद ज़रूरी है। औद्योगीकरण एवं भारत के शहरी विकास में बिजली की महती भूमिका है। लेकिन देश में प्रति व्यक्ति बिजली की खपत वर्तमान में केवल लगभग 1200 किलोवाट प्रति वर्ष है, जबकि वैश्विक स्तर पर वार्षिक विद्युत खपत प्रति व्यक्ति 2500 किलोवाट है। देश में भविष्य की बढ़ती बिजली खपत को देखते हुए अनुमान लगाया गया है कि प्रति व्यक्ति बिजली की खपत तेज़ी से बढ़ेगी और अगले 5 से 7 वर्षों में तिगुनी हो जाएगी। 

उपरोक्त चिंताजनक आँकड़े इसलिये सामने आए, क्योंकि कोयला आधारित बिजली उत्पादन क्षेत्र अपनी कुल क्षमता का 60% तक का ही उपयोग कर पा रहा है। यह क्षेत्र भारत की ऊर्जा ज़रूरतों का लगभग 60-70 प्रतिशत पूरा करता है और मौजूदा बिजली क्षमता का बेहतर उपयोग और नई क्षमताओं के विकास द्वारा हम इस क्षेत्र में तरक्की कर सकते हैं।

स्मार्ट मीटरिंग से बढ़ेगी खपत 

  • देश में इस समय अतिरिक्त बिजली है और सभी को 24 घंटे बिजली प्रदान करने की स्थिति है, बशर्ते उपभोक्ता खर्च की गई बिजली के लिये भुगतान करें। 
  • ऐसा देखा जा रहा है कि कुछ राज्य उपभोक्ताओं को प्रभावी तरीके से बिल नहीं दे पा रहे हैं और वसूली में उन्हें अनुमानत: लगभग 50% का घाटा हो रहा है। 
  • जहाँ उपभोक्ताओं को सही तरीके से बिल दिये जा रहे हैं, वहाँ वसूली 95% है।
  • इसे देखते हुए वितरण कंपनियों का घाटा कम करने और उन्हें व्यवहार्य बनाने के लिये सरकार का प्रस्ताव मीटर रीडिंग में श्रम बल समाप्त करने का है। 
  • प्रत्येक राज्य में भविष्य में छोटे उपभोक्ताओं के लिये प्री-पेड मीटर और बड़े उपभोक्ताओं के लिये स्मार्ट मीटर लगाना अनिवार्य करने से भ्रष्टाचार को रोका जा सकेगा और बिलों के भुगतान का पालन करने में वृद्धि होगी।
  • प्री-पेड मीटरों के सफल कार्यान्वयन का एक उदाहरण मणिपुर है, जिसने अपने सभी शहरी इलाकों में प्री-पेड मीटर लगाकर अपना वितरण घाटा 50% से अधिक कम किया है।

निकट भविष्य में नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में तेज़ी से होने वाले परिवर्तनों  के साथ चलने के लिये हरित ऊर्जा गलियारा, बैटरी भंडारण प्रौद्योगिकी, ग्रिड सुधार व इलेक्ट्रिक वाहन कार्यक्रम में निवेश करने की आवश्यकता है। देश में 2022 तक 175 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा और 2030 तक नवीकरणीय ऊर्जा से 40 प्रतिशत स्थापित बिजली क्षमता हासिल करने का लक्ष्य रखा गया है।

बिजली देश के आर्थिक विकास का सबसे महत्त्वपूर्ण हिस्सा है और इसके बिना विकास नहीं हो सकता। विकसित देश बनने के लिये बिजली सुधार सर्वोच्च प्राथमिकता है। सभी को सस्ती और गुणवत्तापूर्ण बिजली प्रदान किये बिना औद्योगीकरण और नौकरियों का सृजन संभव नहीं है।

(टीम दृष्टि इनपुट)

कई बार री-लॉन्च हुई यह योजना 
देश के हर गाँव को बिजली से जोड़ने के बारे में पहली बार वर्ष 1970 में बात की गई थी। तब कुटीर ज्योति योजना के नाम से देश के हर गाँव में बिजली पहुँचाने का काम शुरू किया गया। उसके बाद इस योजना का नाम प्रधानमंत्री ग्रामोदय योजना रखा गया। बाद में इसे राजग सरकार ने त्वरित ग्रामीण विद्युतीकरण योजना नाम से री-लॉन्च किया। साथ ही हर गाँव में 10% घरों तक बिजली पहुँचने पर ही उस गाँव को बिजली से जुड़ा मानने की परिभाषा भी तय की गई। इसके बाद यूपीए सरकार ने एक बार फिर योजना में फेरबदल किया और इसका नाम राजीव गांधी ग्रामीण विद्युतीकरण योजना रख दिया। मौजूदा केंद्र सरकार ने अप्रैल 2015 में इसका नाम बदलकर दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना रखकर इसे री-लॉन्च किया।

विद्युत मंत्रालय के बारे में

  • विद्युत मंत्रालय ने दिनांक 2 जुलाई, 1992 से स्वतंत्र रूप से कार्य करना शुरू किया। इससे पूर्व इसे ऊर्जा स्रोत मंत्रालय के नाम से जाना जाता था। 
  • वि़द्युत, भारत के संविधान की सातवीं अनुसूची की सूची-III में प्रविष्टि 38 पर दिया गया समवर्ती सूची का विषय है। 
  • विद्युत मंत्रालय प्रमुख रूप से देश में विद्युत ऊर्जा के विकास के लिये उत्तरदायी है। यह परिदृश्य आयोजना, नीति निर्धारण, निवेश निर्णय हेतु परियोजनाओं की कार्रवाई, विद्युत परियोजनाओं के कार्यान्वयन की निगरानी, प्रशिक्षण एवं जनशक्ति विकास और तापीय, जलविद्युत उत्पादन, पारेषण एवं वितरण के संबंध में प्रशासन एवं कानून बनाने से संबंधित कार्य करता है। 
  • यह मंत्रालय विद्युत अधिनियम, 2003, ऊर्जा संरक्षण अधिनियम, 2001 के प्रशासन और सरकार के नीति उद्देश्यों के अनुरूप, समय-समय पर यथा आवश्यक इन अधिनियमों में संशोधन करने हेतु उत्तरदायी है।

निष्कर्ष: ग्रामीण विद्युतीकरण को ग्रामीण क्षेत्रों के विकास के लिये बहुत ही महत्त्वपूर्ण कार्यक्रम समझा जाता है। अब यह एक सर्वस्वीकृत तथ्य है कि बिजली मानव की मूलभूत आवश्यकताओं में एक है और हर परिवार को बिजली मिलनी चाहिये। ग्रामीण भारत में बिजली की आपूर्ति व्यापक आर्थिक एवं मानवीय विकास के लिये बहुत ज़रूरी है। इसका श्रेय किसी एक सरकार को नहीं जाता, क्योंकि पिछली सभी सरकारों ने धीरे-धीरे करके इस लक्ष्य को संभव बनाया है। अब सबसे बड़ी चुनौती छूटे हुए गाँवों में बिजली पहुँचाने के अलावा घर-घर बिजली पहुँचाने की है। सरकार ने अंतिम गाँव में बिजली पहुँचाने का दावा किया है, लेकिन अंतिम घर तक बिजली पहुँचने के लिये अभी लंबा इंतजार करना होगा। वैसे भी गाँव में बिजली पहुँचने का मतलब, गाँव तक बिजली पहुँचना है, जबकि असली काम उसके बाद शुरू होता है। गाँवों के सवा तीन करोड़ से ज़्यादा घरों से अभी रौशनी दूर है, जबकि सरकारी नक्शे पर ये सभी बिजली से जगमगा रहे हैं। बाज़ार की शब्दावली में कहें तो गाँव तक बिजली पहुँच जाने के बाद भी घरों से कनेक्शन न जुड़ने का सीधा मतलब यही है कि दुकान खड़ी करके वहाँ सामान तो पहुँचा दिया है, लेकिन सामान का बिकना किसी की चिंता में शामिल नहीं है। यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि भारत के जिन गाँवों में 50-60 साल पहले बिजली पहुँच चुकी है, वहाँ आज भी रोज़ 8-10 घंटे बिजली आ जाए तो लोग इसे अपना सौभाग्य मानते हैं। खुश होने का असली मौका तो तब आएगा, जब गाँवों में बिजली पहुँचने के बाद बंटेगी और बिकेगी भी...और 24 घंटे मिलेगी भी। 

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