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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

BRI: चीन का ऋण जाल

  • 19 Oct 2021
  • 12 min read

चर्चा में क्यों?

चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) ने निम्न और मध्यम आय वाले देशों (LMIC) को 385 बिलियन अमेरिकी डालर से अधिक का ऋण देकर उन्हें ऋणग्रस्त बना दिया है।

प्रमुख बिंदु:

  • ऋणी देश: चीन अंतर्राष्ट्रीय विकास वित्त बाज़ार में एक प्रमुख स्थिति स्थापित करने के उद्देश्य से सहायता के नाम पर ऋण प्रदान कर रहा है।
    • चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) राष्ट्रों को भारी कर्ज में डुबो रही है।
  • BRI संबंधी हालिया अध्ययन: एडडाटा (AidData-एक अंतरराष्ट्रीय विकास अनुसंधान प्रयोगशाला) के एक हालिया अध्ययन से पता चला है कि 42 देशों को चीन द्वारा दिया गया कर्ज उनके सकल घरेलू उत्पाद का 10% से अधिक है।
  • इन ऋणों को विश्व बैंक के देनदार रिपोर्टिंग सिस्टम (Debtors Reporting System- DRS) को कम मात्रा में रिपोर्ट किया जाता है, क्योंकि कई मामलों में LMIC में केंद्र सरकार के संस्थान पुनर्भुगतान के लिये ज़िम्मेदार प्राथमिक उधारकर्त्ता नहीं होते हैं।
  • चीन के BRI इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट पोर्टफोलियो की 35% परियोजनाओं को बड़ी कार्यान्वयन समस्याओं, भ्रष्टाचार, घोटालों, श्रम उल्लंघनों, पर्यावरणीय खतरों और सार्वजनिक विरोध का सामना करना पड़ रहा है।

BRI और भारत:

BRI के बारे में:

  • रेलवे, बंदरगाह, राजमार्ग और अन्य बुनियादी ढाँचे जैसी BRI परियोजनाओं में सहयोग के लिये 100 से अधिक देशों ने चीन के साथ समझौतों पर हस्ताक्षर किये हैं।
  • इसकी घोषणा वर्ष 2013 में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के नेतृत्व वाले शासन द्वारा की गई थी। इसमें पाँच प्रकार की गतिविधियाँ शामिल थीं:
    1. नीति समन्वय
    2. व्यापार संवर्द्धन
    3. भौतिक संपर्क
    4. रॅन्मिन्बी (चीनी मुद्रा) का अंतर्राष्ट्रीयकरण
    5. लोगों से लोगों का संपर्क।

BRI के तहत मार्ग:

  • न्यू सिल्क रोड इकोनॉमिक बेल्ट: इसमें चीन के उत्तर में व्यापार और निवेश केंद्र शामिल हैं; जिसमें म्याँमार एवं भारत के माध्यम से यूंरेशिया तक पहुँच बनाना है।
  • मैरीटाइम सिल्क रोड (MSR): यह दक्षिण चीन सागर से शुरू होकर भारत-चीन, दक्षिण-पूर्व एशिया की ओर जाती है और फिर हिंद महासागर के आसपास अफ्रीका एवं यूरोप तक पहुँचती है।

BRI से जुड़े मुद्दे:

  • परियोजनाओं पर चीनी एकाधिकार: BRI के तहत ज़्यादातर निवेश राज्य के स्वामित्व वाले उद्यमों और चीन के बैंकों द्वारा किया जाता है।
    • अधिकांश अनुबंध (93%) चीन में राज्य के स्वामित्व वाले उद्यमों को प्राप्त हैं।
    • मेज़बान देशों या अन्य कंपनियों की शायद ही कोई भूमिका हो।
  • अत्यधिक भ्रष्टाचार और कम प्रतिस्पर्द्धा: उधार देने और बुनियादी ढाँचे के निर्माण में चीनी एकाधिकार ने भ्रष्टाचार को और बढ़ा दिया है।
    • निजी क्षेत्र की भागीदारी न होने के कारण इस कार्यक्रम में कोई प्रतिस्पर्द्धी नहीं है।
  • पारदर्शिता और पर्यावरण संबंधी चिंताओं की कमी: ऋण जाल कूटनीति, पारदर्शिता की कमी और अनुचित ऋण शर्तों ने इस योजना को बेहद अलोकप्रिय बना दिया है।
    • कम-से-कम 236 BRI परियोजनाएँ कर्ज संबंधी समस्याओं का सामना कर रही हैं।
    • स्टील और सीमेंट की डंपिंग भी पर्यावरण संबंधी चिंताओं को बढ़ा रही है।
  • BRI विफलता की ओर: चीन ने अपनी अधिकांश कनेक्टिविटी परियोजनाओं को उन देशों को बेच दिया जो बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं में अपने आर्थिक मॉडल की सफलता के लिये चीन की ओर देख रहे थे और उसी मार्ग को अपनाना चाहते थे, भले ही यह देशों के लिये व्यवहार्य न हो।
    • इसके अलावा चीन ने देशों के साथ अपनी क्षमता से अधिक का दावा कर लिया था और अब वह सहायता कार्यक्रम को बनाए रखने में सक्षम नहीं है।
    • उन परियोजनाओं का भविष्य अनिश्चित है जो शुरू तो हुई लेकिन पूर्ण नहीं हुई।
    • परियोजना पोर्टफोलियो का 35% से अधिक हिस्सा कार्यान्वयन चरण में ही अटका हुआ है।
  • ऋण प्राप्तकर्त्ता देशों की प्रतिक्रिया: चीन अब अफ्रीका, एशिया, लैटिन अमेरिका और मध्य एवं पूर्वी यूरोप के देशों में BRI के प्रति बढ़ते विरोध का सामना कर रहा है।
    • कुछ देशों में नीति निर्माताओं ने हाई-प्रोफाइल BRI परियोजनाओं को रद्द कर दिया है और कई अन्य देशों ने इस पर दोबारा विचार करने का फैसला किया है कि क्या BRI भागीदारी के लाभ इसके जोखिमों से अधिक हैं।

BRI के प्रति वैश्विक प्रतिक्रियाएँ:

  • B3W पहल: G7 देशों ने चीन के BRI का मुकाबला करने के लिये 47वें G7 शिखर सम्मेलन में 'बिल्ड बैक बेटर वर्ल्ड (B3W) पहल' का प्रस्ताव रखा।
    • इसका उद्देश्य विकासशील और कम आय वाले देशों में बुनियादी ढाँचे के निवेश घाटे की समस्या को दूर करना है, जिस पर वर्तमान में चीन का कब्ज़ा है।
  • ब्लू डॉट नेटवर्क (BDN): यह अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया द्वारा गठित एक बहु-हितधारक पहल है, जो वैश्विक बुनियादी ढाँचे के विकास के लिये उच्च गुणवत्ता, विश्वसनीय मानकों को बढ़ावा देने हेतु सरकारों, निजी क्षेत्र और नागरिक समाज को एक साथ लाने के उद्देश्य से बनाई गई है।
    • BDN की घोषणा औपचारिक रूप से नवंबर 2019 में बैंकॉक, थाईलैंड में इंडो-पैसिफिक बिज़नेस फोरम में की गई थी।
  • ग्लोबल गेटवे: BRI के साथ प्रतिस्पर्द्धा के लिये यूरोपीय संघ ने हाल ही में ग्लोबल गेटवे नामक एक नई बुनियादी ढाँचा विकास योजना शुरू की है।

भारत के लिये चिंता:

  • भारत के रणनीतिक हितों में बाधा: चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) और बलूचिस्तान से होकर गुज़रता है, दोनों ही क्षेत्र लंबे समय से चल रहे विद्रोह के केंद्र हैं जहाँ भारत को आतंकवाद एवं सुरक्षा जोखिमों का सामना करना पड़ता है।
    • CPEC दक्षिण एशियाई क्षेत्र में भारत के रणनीतिक हितों को बाधित करेगा और कश्मीर विवाद मामले में पाकिस्तान को वैधता प्रदान करने में सहायक हो सकता है।
    • साथ ही CPEC को अफगानिस्तान तक विस्तारित करने का प्रयास अफगानिस्तान के आर्थिक, सुरक्षा और रणनीतिक साझेदार के रूप में भारत की स्थिति को कमज़ोर कर सकता है।
  • उपमहाद्वीप में चीन का सामरिक उदय: चीन द्वारा चीन-म्याँमार आर्थिक गलियारे (CMEC) और CPEC के साथ-साथ 'चीन-नेपाल आर्थिक गलियारा' (CNEC) भी विकसित किया जा रहा है जो तिब्बत को नेपाल से जोड़ेगा।
    • परियोजना का समापन बिंदु गंगा के मैदान की सीमाएँ होंगी।
    • इस प्रकार हे तीन गलियारे भारतीय उपमहाद्वीप में चीन के आर्थिक और रणनीतिक उदय को दर्शाते हैं।

आगे की राह:

  • सहभागिता का विकल्प: अधिक उन्नत देशों द्वारा वैकल्पिक परियोजनाएँ शुरू की जानी चाहिये जो मेज़बान या सहायता प्राप्तकर्त्ता देशों के हितों को ध्यान में रखते हुए सहभागी प्रकृति की हों।
    • मेज़बान देश के साथ साझेदारी के बिना परियोजना की सफलता सुनिश्चित नहीं हो सकती।
  • वैकल्पिक वित्तपोषण स्रोत: इन कनेक्टिविटी परियोजनाओं के वित्तपोषण के वैकल्पिक स्रोतों को ध्यान में रखा जाना चाहिये। इसके लिये बड़े देशों को आगे आना होगा।
    • साथ ही ऐसे मामलों में सहायता प्रदान करने के लिये और अधिक पेशेवर वित्तीय संस्थानों को आमंत्रित किया जाएगा।
  • भारत की भूमिका: भारत को अपने पड़ोसियों को वैकल्पिक कनेक्टिविटी व्यवस्था प्रदान करने के लिये इस क्षेत्र में अपने भागीदारों के साथ काम करना होगा।
    • विदेश नीति का प्रभाव बढ़ाने के लिये कनेक्टिविटी को एक उपकरण के रूप में देखा जा रहा है।
    • भारत परस्पर जुड़ाव के लिये आगे बढ़ते हुए दक्षिण एशिया और हिंद महासागर में चीन के साथ भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्द्धा हेतु एक नया रंगमंच प्रदान करेगा।
    • वैकल्पिक कनेक्टिविटी भारत को अपनी क्षेत्रीय प्रधानता को फिर से स्थापित करने का अवसर प्रदान करती है।
  • समान विचारधारा वाले देशों के साथ सहयोग: दक्षिण एशिया और वृहद् हिंद महासागर में अकेले कार्य करने की भारत की क्षमता सीमित है।
    • इसे अपने बुनियादी ढाँचे के निर्माण और उन्नयन के लिये आवश्यकता पड़ने पर जापान जैसे भागीदारों से मदद लेनी चाहिये तथा चीनी नेतृत्व वाले कनेक्टिविटी कॉरिडोर एवं बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं का विकल्प तैयार करना चाहिये।
    • ऑस्ट्रेलिया, फ्राँस, जर्मनी, यूके और यूएस जैसे देशों के पास तकनीकी विशेषज्ञता है और कुछ हद तक इस मामले में उनकी पहले से ही उपस्थिति है।
    • भारत को इन देशों द्वारा प्रस्तुत प्रस्ताव के लाभों की पहचान करनी चाहिये और साझा हित के क्षेत्रों में सहयोग करने तथा अपने रणनीतिक संपर्क लक्ष्यों को आगे बढ़ाने के लिये उनका लाभ उठाना चाहिये।

निष्कर्ष:

चीन ने आगे बढ़ने और अपने हितों की रक्षा करने के लिये निवेश का एक नेटवर्क स्थापित किया है जिसके कारण कई निम्न और मध्यम आय वाले देश अत्यधिक कर्ज़ में हैं।

इससे निपटने के तरीके तो हैं लेकिन कोई भी एक देश अकेले BRI का विकल्प नहीं प्रदान कर सकता है, इस संबंध में आगे का रास्ता खोजने के लिये बड़ी और मज़बूत अर्थव्यवस्थाएँ एक साथ आ सकती हैं।

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