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संसद टीवी संवाद


भारतीय अर्थव्यवस्था

अनौपचारिक अर्थव्यवस्था: चुनौतियाँ एवं संभावनाएँ

  • 22 Nov 2021
  • 20 min read

चर्चा में क्यों?

अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) के अनुसार विश्व की लगभग 60 प्रतिशत आबादी अनौपचारिक क्षेत्र (informal sector) से संबद्ध है। 

  • यद्यपि यह मुख्य रूप से उभरती और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में अधिक प्रचलित है, यह उन्नत अर्थव्यवस्थाओं का भी एक महत्त्वपूर्ण अंग है।
  • भारत जैसे विकासशील देशों में विशेष रूप से जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा अनौपचारिक अर्थव्यवस्था पर निर्भर करता है।

प्रमुख बिंदु

  • अनौपचारिक अर्थव्यवस्था के बारे में: 
    • अनौपचारिक अर्थव्यवस्था उन उद्यमों का प्रतिनिधित्व करती है जो पंजीकृत नहीं हैं, जहाँ नियोक्ता कर्मचारियों को सामाजिक सुरक्षा प्रदान नहीं करते हैं।  
    • इसे आर्थिक इकाइयों की एक श्रेणी के रूप में जाना जाता है जो मुख्य रूप से व्यक्तियों के निजी स्वामित्व एवं संचालन में होते हैं और एक या एक से अधिक कर्मचारियों को नियमित रूप से नियोजित रखते हैं।
    • इसमें किसान, खेतिहर मज़दूर, छोटे उद्यमों के मालिक एवं उनमें कार्यरत लोग और स्वरोज़गार करने वाले लोग (जो किसी कामगार को नियोजित नहीं करते) शामिल हैं।
    • राष्ट्रीय लेखा सांख्यिकी (NAS) असंगठित क्षेत्र को असंगठित स्वामित्व या साझेदारी वाले उद्यमों के रूप में परिभाषित करती है, जिसमें सहकारी समितियों, ट्रस्ट, निजी एवं लिमिटेड कंपनियों द्वारा संचालित उद्यम शामिल हैं।
    • इस प्रकार, अनौपचारिक क्षेत्र को असंगठित क्षेत्र का एक उपसमूह माना जा सकता है।
  • आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण
    • आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण के अनुसार, भारत के 90 प्रतिशत से अधिक कामगार अनौपचारिक श्रमिक हैं। इनमें से ग्रामीण क्षेत्रों में कार्यरत श्रमिकों की संख्या शहरी क्षेत्र के श्रमिकों की तुलना में काफ़ी अधिक है। 
    • ऐसा मुख्य रूप से इसलिये है क्योंकि बड़ी संख्या में अनौपचारिक श्रमिक खेती या कृषि गतिविधियों से संलग्न हैं।
    • शहरी क्षेत्रों में वे मुख्य रूप से विनिर्माण, व्यापार, होटल एवं रेस्तरां, निर्माण, परिवहन, भंडारण एवं संचार और वित्त, व्यापार एवं अचल संपत्ति से संलग्न हैं।
  • औपचारिक और अनौपचारिक अर्थव्यवस्था के बीच अंतर: 
    • औपचारिक अर्थव्यवस्था:
      • नियोक्ता के साथ एक औपचारिक अनुबंध होता है।  
      • पूर्व-निर्धारित कार्य परिस्थितियाँ और कार्य उत्तरदायित्व।  
      • भत्तों और प्रोत्साहनों के साथ एक सुनिश्चित और उपयुक्त निश्चित वेतन प्राप्त करता है।  
      • कार्य समय की एक निश्चित अवधि होती है।
      • एक ही वातावरण में काम करने वाले लोगों के एक संगठित समूह का हिस्सा होता है और अपने अधिकारों के बारे में कानूनी एवं सामाजिक रूप से जागरूक होता है।  
      • स्वास्थ्य और जीवन जोखिम के संबंध में सामाजिक सुरक्षा के दायरे में होता है।  
  • अनौपचारिक अर्थव्यवस्था:
    • नियोक्ता के साथ कोई औपचारिक अनुबंध नहीं होता।  
    • कोई व्यवस्थित कार्य परिस्थिति नहीं होती।
    • अनियमित और असमान भुगतान किया जाता है। 
    • अपनी शिकायतों को व्यक्त करने के लिये कोई मंच नहीं होता।
    • निर्धारित कार्य घंटे नहीं होते  और मुख्यतः निर्वहन आय प्राप्त होती है।  
    • कामगार किसी भी प्रकार की सामाजिक सुरक्षा प्रणाली के दायरे में नहीं होते और वे स्वयं सामाजिक एवं आर्थिक रूप से अपनी सुरक्षा की आवश्यकता के संबंध में कम जानकारी रखते हैं।
  • अनौपचारिक कार्यबल की रक्षा करने की आवश्यकता:
    • बहुसंख्यक कार्यबल समूह: भारत के अनुमानित 450 मिलियन (प्रति वर्ष 5-10 मिलियन की वृद्धि के साथ) अनौपचारिक श्रमिक इसके कुल कार्यबल के 90% का निर्माण करते हैं।
    • महामारी के कारण रोज़गार की हानि: ऑक्सफैम की नवीनतम वैश्विक रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2020 में अपनी नौकरी गँवाने वाले कुल 122 मिलियन लोगों में से 75% अनौपचारिक क्षेत्र से संबंधित थे।
      • कोविड-19 महामारी का अनुभव पुष्टि करता है कि सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने की महती आवश्यकता है। देश में लॉकडाउन की स्थिति में ठप पड़े कामकाज में अनौपचारिक क्षेत्र की कमजोरियाँ और भी प्रमुखता से उजागर हुई।
      • इसके अलावा, चालू वित्त वर्ष 2020-21 में अर्थव्यवस्था के 7.7% सिकुड़ने का अनुमान है। इसलिये, रोज़गार सृजन कर अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने की तत्काल आवश्यकता है।
  • श्रमिकों के लिये सुरक्षा:
    • प्रत्येक कामगार को तीन प्रकार की सुरक्षा मिलनी चाहिये:
      • मज़दूरी सुरक्षा: मज़दूरी (संशोधन) अधिनियम, 2017 के अनुसार, भारत में प्रत्येक श्रमिक को एक निर्धारित न्यूनतम मज़दूरी का भुगतान किया जाना है।  
      • रोज़गार सुरक्षा: वैश्विक अर्थव्यवस्था में कामगारों को रोज़गार की सुरक्षा प्रदान की जानी चाहिये, अर्थात रोज़गार पाना और छोड़ना उनके लिये आसान होना चाहिये।  
      • सामाजिक सुरक्षा: चिकित्सा आपात स्थिति में, मृत्यु के मामले में या वृद्धावस्था के मामले में, लोगों को अपनी देखभाल कर सकने में सक्षम होना चाहिये। 

चुनौतियाँ

  • श्रम संबंधी चुनौतियाँ: हालाँकि, कार्यबल की बड़ी संख्या ग्रामीण क्षेत्र में कार्यरत है, अनौपचारिक क्षेत्र में नियोजित शहरी कार्यबल एक बड़ी चुनौती है। 
    • दीर्घावधिक कार्य घंटे, कम वेतन और कठिन कार्य परिस्थिति।
    • निम्न रोज़गार सुरक्षा, नौकरी छोड़ने की उच्च दर और निम्न रोज़गार संतुष्टि।
    • अपर्याप्त सामाजिक सुरक्षा विनियमन।
    • अधिकारों का प्रयोग करने में कठिनाई।
    • बाल श्रम एवं बलात श्रम और विभिन्न कारकों के आधार पर भेदभाव।
    • असंरक्षित, कम वेतन वाली और कम महत्त्व प्राप्त नौकरियाँ।
  • उत्पादकता: अनौपचारिक क्षेत्र में मूल रूप से सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम (MSMEs) और घरेलू व्यवसाय शामिल हैं जो रिलायंस जैसी फर्मों के जितने बड़े नहीं हैं। वे पैमाने की अर्थव्यवस्थाओं का लाभ उठाने में असमर्थ हैं। 
  • कर राजस्व बढ़ाने में असमर्थता: चूँकि अनौपचारिक अर्थव्यवस्था के कार्यकलाप सीधे विनियमित नहीं होते हैं, वे आम तौर पर नियामक ढाँचे से अपनी आय और व्यय छुपाने के माध्यम से करों के भुगतान से बचने की प्रवृत्ति रखते हैं। यह सरकार के लिये एक चुनौती है क्योंकि अर्थव्यवस्था का एक बड़ा हिस्सा कर के दायरे से बाहर रह जाता है। 
  • नियंत्रण और निगरानी की कमी: अनौपचारिक क्षेत्र सरकार की निगरानी से बचा रहता है।
    • इसके अलावा, अर्थव्यवस्था की वास्तविक स्थिति का प्रतिनिधित्व करने वाले आधिकारिक आँकड़े उपलब्ध नहीं हैं, जिससे सरकार के लिये, विशेष रूप से अनौपचारिक क्षेत्र के लिये और सामान्य रूप से पूरी अर्थव्यवस्था के संबंध में, नीतियों का निर्माण करना कठिन हो जाता है।
  • निम्न मूल्यवर्द्धन: यद्यपि अनौपचारिक क्षेत्र भारतीय आबादी के 75% से अधिक को रोज़गार प्रदान करता है, लेकिन प्रति कर्मचारी मूल्यवर्द्धन अत्यंत कम है। इसका अर्थ यह है कि हमारे मानव संसाधन के एक बड़े हिस्से का पूर्ण उपयोग नहीं किया जा रहा है। 

सरकार द्वारा शुरू की गई कुछ पहल

  • आत्मनिर्भर भारत अभियान:
    • 20 लाख करोड़ रुपए मूल्य के आर्थिक प्रोत्साहन पैकेज के साथ आत्मनिर्भर भारत अभियान घरेलू उत्पादों द्वारा प्रतिस्थापन के साथ आयात पर निर्भरता में कमी लाने पर लक्षित है; इसके साथ ही सुरक्षा अनुपालन और गुणवत्ता में सुधार के साथ यह वैश्विक बाज़ार में हिस्सेदारी का भी लक्ष्य रखता है।
  • श्रम संहिता:
    • अनौपचारिक अर्थव्यवस्था के अनौपचारिक शहरी खंड, अर्थात गिग इकॉनमी (जहाँ श्रमिक वर्तमान में महामारी जैसी स्थिति में सर्वाधिक प्रभावित हुए हैं) की दशा-दिशा का ध्यान रखने के लिये संसद द्वारा नई श्रम संहिता पारित की गई है। 
  • ई-श्रम पोर्टल:
    • श्रम एवं रोज़गार मंत्रालय ने असंगठित कामगारों के राष्ट्रीय डेटाबेस (NDUW) के निर्माण के लिये e-SHRAM पोर्टल का विकास किया है, ताकि उनकी रोज़गार योग्यता को अधिकतम किया जा सके और उन तक सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के लाभों का विस्तार किया जा सके।  
    • यह प्रवासी श्रमिकों, निर्माण श्रमिकों, गिग एवं प्लेटफॉर्म श्रमिकों सहित असंगठित श्रमिकों का पहला राष्ट्रीय डेटाबेस है।
  • उद्यम पोर्टल:
    • यह MSME (उद्यम) के पंजीकरण के लिये एकमात्र सरकारी पोर्टल है।  
    • सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम मंत्रालय इस पोर्टल की देखरेख करता है।
    • यह पंजीकरण से संबंधित विवरण एवं चरण प्रदान करता है और किसी भी व्यक्ति के लिये पंजीकरण प्रक्रिया को आसान बनाता है।
    • यह निःशुल्क और कागज रहित पंजीकरण की सुविधा प्रदान करता है । 
  • प्रधानमंत्री श्रम योगी मान-धन:
    • PM-SYM श्रम एवं रोज़गार मंत्रालय द्वारा प्रशासित और भारतीय जीवन बीमा निगम एवं सामुदायिक सेवा केंद्रों (CSCs) के माध्यम से कार्यान्वित केंद्रीय क्षेत्रक योजना है।    
    • यह योजना देश के असंगठित क्षेत्र के लगभग 42 करोड़ श्रमिकों को लाभान्वित करने का लक्ष्य रखती है।  
  • श्रम सुधार:
    • संसद ने औद्योगिक संबंधों; व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य एवं कार्य परिस्थिति; और सामाजिक सुरक्षा पर तीन श्रम संहिताएँ पारित की हैं। इनके माध्यम से देश के पुरातन श्रम कानूनों को सरल बनाने और श्रमिकों के लाभों से समझौता किये बिना आर्थिक गतिविधियों को प्रोत्साहन देने का प्रस्ताव किया गया है।    
  • पीएम स्वनिधि:
    • आवास एवं शहरी कार्य मंत्रालय (Mohua) ने स्ट्रीट वेंडर्स को सस्ते ऋण उपलब्ध कराने के लिये प्रधानमंत्री स्ट्रीट वेंडर्स आत्मनिर्भर निधि- पीएम स्वनिधि (PM SVANidhi) की शुरुआत की है।    
    • इस योजना से विभिन्न क्षेत्रों में कार्यरत वेंडर्स, हॉकर्स, ठेले वाले और कपड़ा, परिधान, कारीगर उत्पाद, नाई की दुकान, लौंड्री सर्वस जैसी वस्तुओं और सेवाओं से संलग्न लोगों को लाभ होगा।  
  • दीनदयाल अंत्योदय योजना/राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन:
    • इस अभियान को वर्ष 2014 में शुरू किया था और इसे आवास एवं शहरी गरीबी उपशमन मंत्रालय द्वारा कार्यान्वित किया जा रहा है।     
    • इसका उद्देश्य कौशल विकास के माध्यम से स्थायी आजीविका के अवसरों को बढ़ाकर शहरी गरीबों का उत्थान करना है।
  • वन नेशन वन राशन कार्ड:
    • भारत सरकार ने ‘वन नेशन वन राशन कार्ड’ (ONORC) योजना की शुरुआत की है। ONORC किसी लाभार्थी को कहीं भी राशन कार्ड पंजीकृत होने से निरपेक्ष रखते हुए भारत में कहीं भी अपने भोजन के अधिकार का उपयोग करने की अनुमति देता है। 
  • मनरेगा: 
    • मनरेगा (MGNREGA) विश्व के सबसे बड़े कार्य गारंटी कार्यक्रमों में से एक है। 
      • योजना का प्राथमिक उद्देश्य किसी भी ग्रामीण परिवार के वयस्क सदस्यों को सार्वजनिक कार्य से संबंधित अकुशल शारीरिक कार्य के लिये प्रत्येक वित्तीय वर्ष में 100 दिनों के रोज़गार की गारंटी देना है।
      • पहले की रोज़गार गारंटी योजनाओं के विपरीत, अधिनियम का उद्देश्य अधिकार-आधारित ढाँचे के माध्यम से दीर्घकालिक गरीबी के कारणों को संबोधित करना है।

आगे का रास्ता

  • प्रवासी कार्यबल की देखरेख: मानव विकास संस्थान की रिपोर्ट के अनुसार, भेद्य या असंरक्षित प्रवासी श्रमिकों की कुल संख्या 115 मिलियन से 140 मिलियन तक है।  
    • इसलिये, मसौदा नियमों के लिये यह स्पष्ट रूप से बताना महत्त्वपूर्ण है कि प्रवासी अनौपचारिक कार्यबल के संबंध में उनकी प्रयोज्यता कैसे सामने आएगी।
  • MSME को सुदृढ़ करना: अनौपचारिक कार्यबल का लगभग 40% MSMEs के साथ कार्य-संलग्न है। इसलिये, स्वाभाविक है कि MSME को सुदृढ़ करने से आर्थिक पुनरुद्धार, रोज़गार सृजन और अर्थव्यवस्था के औपचारिकरण जैसे परिणाम प्राप्त होंगे।  
  • CSR व्यय के तहत स्किलिंग : बड़े कॉरपोरेट घरानों को CSR (कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व) व्यय के तहत असंगठित क्षेत्रों के लोगों को कार्य कुशल बनाने का उत्तरदायित्व ग्रहण करना चाहिये। 
    • जब तक मानव संसाधन कुशल और शिक्षित नहीं होगी, उन्हें औपचारिक क्षेत्र में समायोजित नहीं किया जा सकेगा और औपचारिकता के प्रयासों के परिणामस्वरूप बेरोज़गारी उत्पन्न होगी।
  • सरल नियामक ढाँचा: अनौपचारिक क्षेत्र का औपचारिक क्षेत्र में परिवर्तन तभी हो सकता है जब अनौपचारिक क्षेत्र को अत्याधिक नियमों के अनुपालन के बोझ से राहत दी जाये और उसे आधुनिक, डिजीटल औपचारिक प्रणाली के साथ समायोजित करने के लिये पर्याप्त समय दिया जाए। 
  • अदृश्य श्रम को मान्यता देना: घरेलू कामगारों के लिये एक राष्ट्रीय नीति जल्द-से-जल्द लाने की आवश्यकता है ताकि उनके अधिकारों को पहचाना जा सके और कार्य करने की बेहतर परिस्थितियों को बढ़ावा दिया जा सके। 
  • सामाजिक सुरक्षा: अटल पेंशन योजना, पीएम जीवन ज्योति योजना, राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना, आम आदमी बीमा योजना जैसी सामाजिक सुरक्षा योजनाओं में निवेश करने से श्रमिकों की स्थिति में सुधार करने में मदद मिल सकती है।  
    • आर्थिक सर्वेक्षण 2016-17 में सार्वभौमिक बुनियादी आय (Universal Basic Income) का उल्लेख इस दिशा में एक सकारात्मक कदम है।  
  • वित्तीय सहायता: लघु उद्योगों को अपने दम पर खड़ा करने में मदद करने के लिये वित्तीय सहायता देना उन्हें संगठित क्षेत्र में लाने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम होगा।  
    • मुद्रा ऋण और स्टार्ट-अप इंडिया जैसी योजनाएँ युवाओं को संगठित क्षेत्र में अपनी जगह बनाने में मदद कर रही हैं।

निष्कर्ष

  • अनौपचारिक अर्थव्यवस्था एक व्यापक परिघटना और जटिल अवधारणा है। औपचारिक और अनौपचारिक दोनों क्षेत्रों के व्यक्ति इस पर निर्भर हैं।
  • अनौपचारिक अर्थव्यवस्था के श्रमिकों के लिये एक सामाजिक सुरक्षा नेटवर्क का निर्माण करना सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिये।
  • एक आदर्श जीवन जीने की बुनियादी आवश्यकताएँ— यानी भोजन, वस्त्र, आवास, स्वच्छता और शिक्षा की पूर्ति की सक्षमता के आधार पर न्यूनतम मज़दूरी तय की जानी चाहिये।
  • सुरक्षा के तीन पहलुओं—रोज़गार की सुरक्षा, वेतन सुरक्षा और सामाजिक सुरक्षा पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है।
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