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भारत में नैतिक विरोध: सामाजिक अशांति पर नियंत्रण

  • 15 Feb 2024
  • 3 min read

देश में चल रहे विरोध प्रदर्शनों से नैतिकता, लोकतंत्र एवं अपनी शिकायतें व्यक्त करने के नागरिकों के अधिकारों के संबंध में देशव्यापी विमर्श शुरू हुआ है। इन विरोध प्रदर्शनों पर विमर्श के आलोक में उन नैतिक सिद्धांतों की महत्ता को बल मिला है जो असहमति एवं सामाजिक सक्रियता के प्रति हमारी प्रतिक्रिया का मार्गदर्शन कर सकें।

सबसे पहले, शांतिपूर्ण सभा एवं विरोध का अधिकार लोकतंत्र का एक बुनियादी पहलू है और इसे संरक्षित किया जाना चाहिये। नागरिकों को अपनी चिंताओं को व्यक्त करने, परिवर्तन की वकालत करने तथा शांतिपूर्ण तरीकों से निर्वाचित सरकार को जवाबदेह ठहराने का अधिकार है। असहमति को दबाने या चुप कराने का कोई भी प्रयास हमारे समाज की नींव बनाने वाले लोकतांत्रिक सिद्धांतों को कमज़ोर करता है।

साथ ही इस आलोक में प्रदर्शनकारियों को नैतिक रूप से आचरण करने, दूसरों के अधिकारों और सुरक्षा का सम्मान करने एवं हिंसा या संपत्ति को क्षति पहुँचाने से बचने की आवश्यकता है। अहिंसक विरोध न केवल सार्थक परिवर्तन लाने में अधिक प्रभावी है बल्कि करुणा, सहानुभूति एवं मानवीय गरिमा के सम्मान के नैतिक सिद्धांतों के अनुरूप भी है।

इसके अलावा, अधिकारियों को विरोध प्रदर्शनों की प्रतिक्रया में संयम बरतने के साथ मानवाधिकारों का सम्मान करना चाहिये। अत्यधिक बल का प्रयोग, मनमानी गिरफ्तारी या सेंसरशिप से नागरिकों के अधिकारों का उल्लंघन होने के साथ सरकार की वैधता कमज़ोर होती है। कानून प्रवर्तन एजेंसियों का कर्त्तव्य है कि वे प्रदर्शनकारियों सहित सभी व्यक्तियों की स्वतंत्र अभिव्यक्ति के अधिकार का सम्मान करते हुए उनकी सुरक्षा एवं अधिकारों की रक्षा करें।

सामाजिक अशांति की स्थिति में नैतिक विरोध एवं विमर्श को बढ़ावा देने के लिये व्यक्ति, समुदाय तथा सरकारें क्या कदम उठा सकती हैं?

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