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स्काई कैनवस: कृत्रिम उल्का बौछार

  • 03 Apr 2023
  • 4 min read

हाल ही में मिली जानकारी के अनुसार, जापानी कंपनी ALE वर्ष 2025 में उपग्रहों को लॉन्च करने की योजना बना रही है, जो स्काई कैनवस नामक कृत्रिम उल्का बौछार (Artificial Meteor Shower) को प्रेरित करेगा। 

स्काई कैनवस प्रोजेक्ट:  

  • स्काई कैनवस प्रोजेक्ट का उद्देश्य विश्व के लोगों को "विश्व का पहला मानव निर्मित उल्का बौछार को लाइव देखने का अवसर प्रदान करना" है।
  • ALE गैस टैंकों की एक दबाव-संचालित प्रणाली का उपयोग करने की योजना बना रही है जिसमें कृत्रिम उल्का बौछार को प्रेरित करने के लिये 8 किलोमीटर प्रति सेकंड की गति से कणों पर प्रहार किया जाएगा।
  • कक्षा में स्थिर हो जाने के बाद इन कणों को छोड़ा जाएगा और वे 60 से 80 किलोमीटर की ऊँचाई पर वायुमंडल में प्रवेश करने से पहले ग्रह के चारों ओर परिक्रमा करेंगे।
    • यह कंपनी जलवायु परिवर्तन की स्थिति को बेहतर ढंग से समझने में वैज्ञानिकों की मदद करने के लिये मीसोस्फीयर (वायुमंडल की तीसरी परत) से वायुमंडलीय डेटा एकत्र करने की भी योजना बना रही है।
      • उपग्रहों की निगरानी के मामले में मीसोस्फीयर की अवस्थिति बहुत नीचे है, जबकि वेदर बलून अथवा विमानों के लिये काफी ऊँची

प्राकृतिक उल्का वृष्टि:   

  • एक प्राकृतिक उल्का वृष्टि तब होती है जब पृथ्वी किसी धूमकेतु या क्षुद्रग्रह द्वारा पीछे छोड़े गए मलबे की धारा से गुज़रती है। 
    • जैसे-जैसे पृथ्वी सूर्य के चारों ओर अपनी कक्षा में यात्रा करती है, यह मलबे की इन धाराओं का सामना करती है, जो कि धूल और चट्टान के छोटे कणों से बनी होती हैं। 
  • जैसे-जैसे पृथ्वी इस मलबे से होकर गुज़रती है, कण उच्च गति, आमतौर पर लगभग 40 किलोमीटर प्रति सेकंड की गति से पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करते हैं।
    • कणों और वायुमंडल के बीच घर्षण उन्हें गर्म करने और वाष्पीकृत करने का कारण बनता है, जिससे प्रकाश की धाराओं का निर्माण होता है जिन्हें हम उल्का या "शूटिंग स्टार" के रूप में जानते हैं।
  • उल्का वृष्टि नाम आमतौर पर उस तारामंडल से लिया जाता है जहाँ से उल्काएँ विकीर्ण होती दिखाई देती हैं।
    • उदाहरण के लिये पर्सियड्स उल्का वृष्टि तारामंडल पर्सियड्स से उत्पन्न होती है। 
    • पृथ्वी पर पर्यवेक्षकों को दिखाई देने वाली उल्का वृष्टि की लगभग 30 घटनाएँ प्रत्येक वर्ष होती हैं और उनमें से कुछ सदियों से देखी गई हैं।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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