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सागर समृद्धि

  • 12 Jun 2023
  • 6 min read

हाल ही में पत्तन, पोत परिवहन और जलमार्ग मंत्रालय (Ministry of Ports, Shipping & Waterways- MoPSW) ने सरकार की 'वेस्ट टू वेल्थ' पहल में तेज़ी लाने हेतु ऑनलाइन निकर्षण/ड्रेजिंग निगरानी प्रणाली 'सागर समृद्धि' लॉन्च की है। 

ड्रेजिंग:  

  • ड्रेजिंग झीलों, नदियों, बंदरगाहों और अन्य जल निकायों के तल से तलछट और मलबे को हटाना है।
  • यह आवश्यक है क्योंकि समय के साथ तलछट का निर्माण होता है और यह गाद जलमार्ग पर नावों एवं जहाज़ों के सुरक्षित परिवहन में बाधा उत्पन्न करता है।
  • ड्रेजिंग का मुख्य उद्देश्य परिवहन चैनलों, लंगरगाहों और बर्थिंग क्षेत्रों की गहराई को बनाए रखना या बढ़ाना है ताकि वस्तुओं के साथ ये बड़े जहाज़ आसानी से परिवहन कर सकें। यह अर्थव्यवस्था हेतु महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि ये जहाज़ देश के आयात के महत्त्वपूर्ण हिस्से हेतु परिवहन को सुलभ बनाते हैं।

सागर समृद्धि:

  • परिचय: 
    • इस प्रणाली को MoPSW की तकनीकी शाखा, बंदरगाहों, जलमार्गों और तटों के लिये राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी केंद्र (NTCPWC) द्वारा विकसित किया गया है।
    • प्रणाली पुराने ड्राफ्ट एंड लोडिंग मॉनीटर (DLM) सिस्टम में सुधार करती है।
    • प्रणाली का उद्देश्य उत्पादकता, अनुबंध प्रबंधन को बढ़ाना है और ड्रेज्ड सामग्री के प्रभावी पुन: उपयोग को बढ़ावा देना है।
    • यह देश की तकनीकी क्षमताओं को मज़बूत करते हुए आत्मनिर्भर भारत और मेक इन इंडिया के विज़न के साथ संरेखित है।
  • क्षमता:  
    • वास्तविक समय निकर्षण प्रगति रिपोर्ट
    • दैनिक और मासिक प्रगति विज़ुलाइज़ेशन
    • ड्रेजर प्रदर्शन और डाउनटाइम निगरानी
    • लोडिंग, अनलोडिंग और निष्क्रिय समय के स्नैपशॉट के साथ आसान स्थान ट्रैक डेटा
  • महत्त्व: 
    • प्रौद्योगिकी के माध्यम से मानव त्रुटि को कम करके प्रणाली परियोजना कार्यान्वयन में सुधार करती है, ड्रेजिंग लागत कम करती है, पर्यावरणीय स्थिरता को बढ़ावा देती है और पारदर्शिता एवं दक्षता को बढ़ाती है।
      • प्रमुख बंदरगाहों और जलमार्गों पर वार्षिक रखरखाव ड्रेजिंग लगभग 100 मिलियन क्यूबिक मीटर है, जिसके लिये भारतीय बंदरगाह तथा अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण द्वारा प्रतिवर्ष लगभग 1000 करोड़ रुपए खर्च किये जाते हैं।
    • परिशिष्ट को लागू करने और 'सागर समृद्धि' प्रणाली का उपयोग करने से ड्रेजिंग लागत में काफी कमी आएगी, जिससे पारदर्शिता व दक्षता सुनिश्चित की जा सकेगी। 
    • यह प्रणाली बेहतर परियोजना नियोजन में सहायता करती है, परिचालन लागत को कम करती है और डीप ड्राफ्ट बंदरगाहों के विकास की सुविधा प्रदान करती है।

भारत में ड्रेजिंग से संबंधित अन्य दिशा-निर्देश: 

  • MoPSW ने वर्ष 2021 में 'प्रमुख बंदरगाहों के लिये ड्रेजिंग दिशा-निर्देश' जारी किये, जिसमें नियोजन और तैयारी, तकनीकी जाँच, ड्रेजिंग सामग्री प्रबंधन, ड्रेजिंग की लागत का अनुमान लगाने आदि की प्रक्रिया को रेखांकित किया गया, ताकि प्रमुख बंदरगाह अपनी ड्रेजिंग परियोजनाओं की योजना बना सकें तथा उन्हें समय पर पूरा कर सकें।
  • मार्च 2023 में मंत्रालय ने प्रमुख बंदरगाहों के लिये ड्रेजिंग दिशा-निर्देशों को अद्यतित किया, जिसमें बिडिंग दस्तावेज़ों में एक प्रावधान शामिल है, जो 'वेस्ट टू वेल्थ' की अवधारणा के माध्यम से ड्रेजिंग लागत को कम करने में मदद करता है।
    • यह ड्रेज्ड सामग्री के लिये कई लाभप्रद उपयोगों की सिफारिश करता है, जिसमें निर्माण परियोजनाएँ और समुद्र तट को बेहतर बनाने जैसे पर्यावरणीय संवर्द्धन कार्य शामिल हैं। 

राष्ट्रीय बंदरगाह, जलमार्ग एवं तट प्रौद्योगिकी केंद्र (NTCPWC): 

  • NTCPWC की स्थापना अप्रैल 2023 में IIT मद्रास में 77 करोड़ रुपए के कुल निवेश के साथ MoPSW के सागरमाला कार्यक्रम के तहत की गई थी। 
  • इस केंद्र का उद्देश्य देश में एक मज़बूत समुद्री उद्योग के निर्माण के अंतिम लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में समाधान सुनिश्चित करते हुए समुद्री क्षेत्र के लिये अनुसंधान एवं विकास को सक्षम बनाना है।
  • इस अत्याधुनिक केंद्र में बंदरगाह, तटीय और जलमार्ग क्षेत्र के सभी विषयों के लिये अनुसंधान तथा परामर्श प्रकृति की 2D एवं 3D जाँच की विश्व स्तरीय क्षमताएँ उपलब्ध हैं।

स्रोत: पी.आई.बी.

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