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समुद्री दुर्घटनाओं का विनियमन

  • 16 Jun 2025
  • 3 min read

स्रोत: द हिंदू

केरल के तट के पास हाल ही में हुई समुद्री दुर्घटनाएँ (व्यापारिक जहाज़ों में आग लगना और उनका डूबना) वैश्विक व्यापार में उत्तरदायित्व ढाँचे को लेकर गंभीर चिंताएँ उजागर करती हैं।

  • वैश्विक नौवहन मुख्यतः अंतर्राष्ट्रीय समुद्री संगठन (IMO) द्वारा प्रदूषण, सुरक्षा एवं दायित्व से संबंधित कन्वेंशनों के माध्यम से नियंत्रित किया जाता है, जिन्हें भारत सहित सदस्य देश घरेलू कानूनों में अपनाते हैं।
  • प्रमुख कन्वेंशनों में भारत की स्थिति: भारत ने अभी तक 2004 की बैलास्ट वॉटर कन्वेंशन तथा 2010 के हानिकारक और विषैले पदार्थ (HNS) कन्वेंशन जैसे महत्त्वपूर्ण कन्वेंशनों की पुष्टि नहीं की है, जिससे पर्यावरणीय क्षति के लिये क्षतिपूर्ति प्राप्त करने की इसकी क्षमता सीमित हो जाती है।
  • फ्लैग्स ऑफ कन्वीनियंस (FOC): जहाज़ प्रायः यूनान (Greece) और चीन जैसे देशों की कंपनियों के स्वामित्व में होते हैं, परन्तु उन्हें लाइबेरिया और मार्शल द्वीप जैसे देशों में आसान संचालन और कम निगरानी के लिये पंजीकृत किया जाता है, जिसे "फ्लैग्स ऑफ कन्वीनियंस (FOC)" कहा जाता है, हालाँकि ये जहाज़ IMO मानकों के अधीन ही होते हैं।
  • हानि एवं पर्यावरणीय क्षति के लिये दायित्व: कार्गो की हानि एवं पर्यावरणीय क्षति दोनों के लिये दायित्व जहाज़ के मालिक पर होता है, जिसे आमतौर पर प्रोटेक्शन एंड इंडेम्निटी (P&I) क्लब्स नामक बीमा समूहों के माध्यम से कवर किया जाता है, जो जोखिम को आपस में साझा करते हैं।
  • जहाज़ी मलबे को हटाने की ज़िम्मेदारी नैरोबी कन्वेंशन ऑन द रिमूवल ऑफ रेक्स, 2007 के तहत जहाज़ के मालिक पर होती है, जिसके भारत एक हस्ताक्षरकर्त्ता है।

और पढ़ें: भारत के समुद्री क्षेत्र में विकास

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