प्रारंभिक परीक्षा
न्यूरोडीजेनेरेटिव रोग
- 03 Jun 2025
- 9 min read
स्रोत: TH1, TH2
चर्चा में क्यों?
हाल ही में राष्ट्रीय जैविक विज्ञान केंद्र (NCBS-TIFR) द्वारा किये गए शोध और अन्य अध्ययनों से पता चलता है, कि न्यूरोडीजेनेरेटिव रोग, लक्षण प्रकट होने से बहुत पहले ही शुरू हो सकते हैं, जो रक्त वाहिकाओं की शिथिलता और मस्तिष्क में असामान्य प्रोटीन गतिविधि के कारण होते हैं ।
- यह नई समझ प्रत्यक्ष न्यूरॉन क्षति से ध्यान हटाकर प्रारंभिक संवहनी और आणविक परिवर्तनों की ओर ले जाती है, जिससे शीघ्र निदान और रोकथाम का मार्ग प्रशस्त होता है।
न्यूरोडीजेनेरेटिव रोग क्या हैं?
- परिचय:
- न्यूरोडीजेनेरेटिव रोग विकारों का एक समूह है जिसमें मस्तिष्क और तंत्रिका कोशिकाएँ (न्यूरॉन्स) समय के साथ धीरे-धीरे टूटने लगती हैं या मर जाती हैं।
- यह याददाश्त, गति, बोलने की क्षमता और शरीर के अन्य प्रमुख कार्यों में बाधा उत्पन्न कर सकता है।
- ये बीमारियाँ आमतौर पर समय के साथ बढ़ती जाती हैं और वर्तमान में इनका कोई पूर्ण इलाज नहीं है, हालाँकि उपचार से लक्षणों को नियंत्रित करने में मदद मिल सकती है।
- न्यूरोडीजेनेरेटिव रोग विकारों का एक समूह है जिसमें मस्तिष्क और तंत्रिका कोशिकाएँ (न्यूरॉन्स) समय के साथ धीरे-धीरे टूटने लगती हैं या मर जाती हैं।
- सामान्य उदाहरण:
- अल्ज़ाइमर रोग, जो स्मृति और सोच को प्रभावित करता है।
- पार्किंसंस रोग, जो गति और संतुलन को प्रभावित करता है।
- एमियोट्रोफिक लेटरल स्क्लेरोसिस (ALS), जो मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी में तंत्रिका कोशिकाओं (मोटर न्यूरॉन्स) को प्रभावित करता है, जो स्वैच्छिक मांसपेशी गति को नियंत्रित करते हैं।
- हंटिंगटन रोग,जिसके कारण मस्तिष्क में तंत्रिका कोशिकाएँ समय के साथ क्षय होने लगती हैं।
- गिलियन-बैरे सिंड्रोम, एक गंभीर स्वप्रतिरक्षी विकार है जो परिधीय तंत्रिका तंत्र को प्रभावित करता है।
न्यूरोडीजेनेरेटिव रोगों के प्रारंभिक कारणों के बारे में हालिया शोध क्या है?
परिचय:
- संवहनी (वैस्कुलर) डिसफंक्शन और ब्लड-ब्रेन बैरियर (BBB): BBB मस्तिष्क की रक्त वाहिकाओं की परत में पाए जाने वाले सघन रूप से जुड़े कोशिकाओं द्वारा निर्मित एक सुरक्षात्मक परत है, जो मस्तिष्क में प्रवेश करने वाले पदार्थों को नियंत्रित करती है। TDP-43 प्रोटीन की क्षति के कारण इस अवरोधक परत को हानि पहुँचता है, जिससे हानिकारक पदार्थों का रिसाव होने लगता है। यह रिसाव मस्तिष्क में सूजन और न्यूरॉन्स (तंत्रिका कोशिकाओं) की क्षति का कारण बनता है।
- चूहों पर किये गए अध्ययनों से पता चला है कि ये रक्तवाहिकीय परिवर्तन लक्षण प्रकट होने से पहले ही शुरू हो जाते हैं, जो संकेत देते हैं कि न्यूरोडिजेनेरेशन (तंत्रिका अपक्षय) की प्रारंभिक अवस्था में रक्त वाहिकाओं की क्षति एक प्रमुख कारण हो सकती है।
- इंट्रासेल्युलर झिल्ली संकेत तंत्र की विफलता (एसिट प्रोटीन डिसफंक्शन): न्यूरॉन्स (तंत्रिका कोशिकाएँ) झिल्ली संपर्क स्थलों पर निर्भर करते हैं, जो प्लाज़्मा झिल्ली और एंडोप्लाज्मिक रेटिकुलम (ER) के बीच स्थित होते हैं, ताकि वसा (lipids) तथा कैल्शियम जैसे आवश्यक अणुओं का आदान-प्रदान किया जा सके। ये अणु कोशिकीय संकेतों के लिये अत्यंत आवश्यक होते हैं।
- एसिट (Esyt) प्रोटीन इस प्रक्रिया को कैल्शियम से जुड़कर (binding calcium) नियंत्रित करता है। जब Esyt का कार्य बाधित हो जाता है, तो यह संकेत तंत्र (Signaling) टूट जाता है, जिससे न्यूरॉन के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है और संभावित रूप से अपघटन (degeneration) की प्रक्रिया आरंभ हो सकती है।
न्यूरोडीजेनेरेटिव रोगों में योगदान देने वाले प्रमुख कारक क्या हैं?
- आनुवंशिक कारक: कुछ विशिष्ट जीनों में उत्परिवर्तन (mutations) सामान्य तंत्रिका कोशिकाओं की कार्यप्रणाली और उसकी प्रक्रिया को बाधित कर देते हैं, जिससे अपघटन (degeneration) की संभावना बढ़ जाती है। ये उत्परिवर्तन वंशानुगत भी हो सकते हैं या स्वतः उत्पन्न भी हो सकते हैं।
- प्रोटीन विकृतियाँ: अल्ज़ाइमर रोग में एमाइलॉइड-बीटा या पार्किंसन रोग में अल्फा-साइन्यूक्लिन जैसे विकृत (misfolded) प्रोटीन एकत्र होकर कोशिकीय कार्यप्रणाली में हस्तक्षेप करते हैं, जिससे तंत्रिका में कोशिका विषाक्तता (neuronal toxicity) और क्रमिक क्षति उत्पन्न होती है।
- ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस: अत्यधिक मुक्त कण (free radicals) तंत्रिका कोशिका के DNA, प्रोटीन और झिल्ली को नुकसान पहुँचाते हैं। जब एंटीऑक्सीडेंट सुरक्षा प्रणाली इस दबाव को झेल नहीं पाती, तब न्यूरॉन की मृत्यु प्रक्रिया तेज़ हो जाती है।
- माइटोकॉन्ड्रियल डिसफंक्शन: क्षतिग्रस्त माइटोकॉन्ड्रिया अपर्याप्त ऊर्जा उत्पन्न करते हैं और हानिकारक उपउत्पाद (byproducts) उत्सर्जित करते हैं, जिससे न्यूरॉन का अस्तित्व प्रभावित होता है तथा अध:पतन को बढ़ावा मिलता है।
- दीर्घकालिक सूजन: मस्तिष्क में निरंतर सूजन प्रतिरक्षा कोशिकाओं को सक्रिय करती है, जो न्यूरॉन्स को नुकसान पहुँचा सकती हैं, जिससे रोग की प्रगति बढ़ जाती है।
- पर्यावरणीय कारक: कीटनाशकों, भारी धातुओं या संक्रमण जैसे विषैले तत्त्वों के संपर्क से कोशिकीय तनाव और क्षति उत्पन्न हो सकती है, जिससे तंत्रिका अपघटन (neurodegeneration) का खतरा बढ़ जाता है।
- उम्र बढ़ना: उम्र बढ़ने की स्वाभाविक प्रक्रिया से कोशिकीय मरम्मत और अपशिष्ट निवारण तंत्र कमज़ोर हो जाते हैं, जिससे न्यूरॉन समय के साथ क्षति और हानि के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाते हैं।
न्यूरोडीजेनेरेटिव रोग बनाम न्यूरोलॉजिकल विकार
- तंत्रिका संबंधी विकार एक व्यापक श्रेणी के विकार हैं जो तंत्रिका तंत्र — जैसे मस्तिष्क, मेरुरज्जु तथा परिधीय तंत्रिकाओं को प्रभावित करते हैं। ये विकार तीव्र या दीर्घकालिक हो सकते हैं।
- उदाहरण: स्ट्रोक, मिर्गी और मेनिन्जाइटिस।
- कई तंत्रिका संबंधी विकार समय रहते हस्तक्षेप करने पर उपचार योग्य या प्रतिवर्ती होते हैं। उदाहरण: स्ट्रोक (इस्केमिक स्ट्रोक) ।
- न्यूरोडीजेनेरेटिव रोग तंत्रिका संबंधी विकारों की एक उप-श्रेणी हैं, जिसकी विशेषता है न्यूरॉनों की संरचना या कार्य में क्रमिक और अपरिवर्तनीय हानि। यह हानि आमतौर पर असामान्य प्रोटीन संचय, आनुवंशिक कारकों या ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस के कारण होती है।
- ये रोग मुख्यतः लाइलाज होते हैं और इनका लक्षणात्मक प्रबंधन किया जाता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये:
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं ? (a) केवल 1 उत्तर: (d) |