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कांध जनजाति

  • 20 May 2025
  • 2 min read

स्रोत: द हिंदू

ओडिशा के कंधमाल ज़िले की कांध/कोंध जनजाति की महिलाओं में चेहरे पर टैटू गुदवाने की परंपरा धीरे-धीरे लुप्त होती जा रही है, जो एक ओर अतीत के आघात को और दूसरी ओर वर्तमान के सशक्तीकरण को दर्शाती है।

  • कांध महिलाओं के चेहरे पर गुदवाए जाने वाले टैटू, जो लगभग 10 वर्ष की उम्र से ज्यामितीय आकृतियों में बनाए जाते थे, सजावटी नहीं बल्कि एक प्रकार की सुरक्षा का माध्यम थे, जो ज़मींदारों, राजघरानों और ब्रिटिश उपनिवेशवादियों द्वारा यौन शोषण से बचाव के लिये बनाए जाते थे।
  • कांध जनजाति: वर्ष 2001 की जनगणना के अनुसार यह ओडिशा की सभी 62 जनजातियों में संख्यात्मक रूप से सबसे अधिक है, जो राज्य की जनजातीय आबादी का 17.13% है।
    • वे कुई या कुवी (द्रविड़ भाषाएँ) बोलते हैं और स्वयं को द्रविड़ मूल की कुई तथा कुवी भाषाओं में ‘कुई लोको’, ‘कुई एंजू’ या ‘कुईंगा’ कहते हैं।
    • इनमें एकल परिवार सामान्य हैं और संयुक्त परिवार बहुत कम पाए जाते हैं।
    • उनकी आबादी मुख्य रूप से दक्षिण और मध्य ओडिशा में विशेषकर कंधमाल, रायगढ़, कोरापुट और कालाहांडी ज़िलों में केंद्रित है।
    • कांध समुदायों में, कुटिया कांध और डोंगरिया कांध को विशेष रूप से कमज़ोर जनजातीय समूह (PVTG) के रूप में मान्यता प्राप्त है।
      • PVTG अनुसूचित जनजातियों का एक अधिक असुरक्षित उप-समूह है। भारत में 75 PVTG हैं, जिनमें सबसे अधिक ओडिशा (13) में हैं, उसके बाद आंध्र प्रदेश (12) में हैं।
    • डोंगरिया कांध नियमगिरि पहाड़ियों में खनन का विरोध करने के लिये जाने जाते हैं, जबकि कुटिया कांध अलग-अलग घरों में रहते हैं, जिनकी मंजिलें गाँव की सड़क के स्तर से लगभग 2 फीट नीचे हैं।

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