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सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पूर्वव्यापी पर्यावरण मंज़ूरी को रद्द किया जाना

  • 20 May 2025
  • 3 min read

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

भारत के सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने पूर्वव्यापी पर्यावरण स्वीकृतियों (EC) — अर्थात् उन परियोजनाओं को दी गई स्वीकृतियाँ जो पहले ही प्रारंभ हो चुकी थीं — को अवैध घोषित कर दिया है। साथ ही, न्यायालय ने पर्यावरण मंत्रालय की वर्ष 2017 की अधिसूचना तथा वर्ष 2021 के कार्यालय ज्ञापन (OM), जो परियोजनाओं को पिछली तिथि से मंज़ूरी देने की अनुमति प्रदान करते थे, को भी अमान्य करार कर दिया है।

  • सर्वोच्च न्यायालय ने उल्लेख किया कि पूर्व-मंज़ूरी के पश्चात स्वीकृति की अवधारणा संविधान के अनुच्छेद 21 (प्रदूषण-मुक्त पर्यावरण में जीवन के अधिकार) और अनुच्छेद 14 (कानून के समक्ष समता के अधिकार) के प्रतिकूल है, क्योंकि यह कार्यालय ज्ञापन (OM) उन सभी परियोजना प्रस्तावकों पर लागू होता है जो उल्लंघनों के परिणामों से “पूर्ण रूप से अवगत” थे।
    • हालाँकि, न्यायालय के निर्णय में वर्ष 2017 और 2021 की व्यवस्था के अंतर्गत पहले से प्रदान की गई पर्यावरण स्वीकृतियों (EC) को वैध माना गया है, जिससे पूर्व प्रभाव से उत्पन्न होने वाली बाधाओं से बचा जा सके।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने पूर्वव्यापी स्वीकृति व्यवस्था की आलोचना करते हुए अपने पूर्ववर्ती निर्णयों — कॉमन कॉज़ बनाम भारत संघ (2017) और अलेम्बिक फार्मास्युटिकल्स बनाम रोहित प्रजापति (2020) — का उल्लेख किया, तथा यह पुनः पुष्टि की कि पूर्वव्यापी स्वीकृतियाँ पर्यावरण कानून का उल्लंघन करती हैं। 
    • न्यायालय ने माना कि वर्ष 2021 का कार्यालय ज्ञापन (OM) व्यावहारिक रूप से परियोजनाओं को बिना पूर्व स्वीकृति के प्रारंभ करने को वैध बना देता है, जो न केवल पूर्व के न्यायिक निर्णयों का उल्लंघन है, बल्कि पर्यावरणीय न्यायशास्त्र के मौलिक सिद्धांतों के भी प्रतिकूल है।
    • सर्वोच्च न्यायालय ने उल्लेख किया कि पर्यावरण प्रभाव आकलन अधिसूचना, 2006 के तहत पूर्व स्वीकृति अनिवार्य है, ताकि किसी परियोजना के पर्यावरण, प्राकृतिक संसाधनों, मानव स्वास्थ्य तथा सामाजिक अवसंरचना पर पड़ने वाले प्रभावों का समुचित परीक्षण किया जा सके।
  • न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि विकास पर्यावरणीय क्षरण की कीमत पर नहीं हो सकता और संविधान के अनुच्छेद 51A(g) के तहत प्रकृति की रक्षा करने के नागरिक कर्तव्य की पुनः पुष्टि की।

और पढ़ें: कार्योत्तर पर्यावरणीय मंज़ूरी

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