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जनजातीय गौरव वर्ष पखवाड़ा और बिरसा मुंडा

  • 03 Nov 2025
  • 18 min read

स्रोत: पी.आई.बी

जनजातीय गौरव वर्ष पखवाड़ा (1–15 नवंबर 2025) भारत के जनजातीय नायकों, उनकी संस्कृति और योगदान का सम्मान करने वाला एक राष्ट्रीय उत्सव है, जिसका समापन 15 नवंबर को जनजातीय गौरव दिवस के रूप में होता है। यह दिवस भगवान बिरसा मुंडा की 150वीं जयंती के उपलक्ष्य में मनाया जाता है।

  • जनजातीय गौरव वर्ष (JJGV): जनजातीय गौरव वर्ष (15 नवंबर, 2024 – 15 नवंबर, 2025) जनजातीय कार्य मंत्रालय के नेतृत्व में मनाया जा रहा है। यह भगवान बिरसा मुंडा के 150 वर्ष पूरे होने का प्रतीक है तथा वार्षिक जनजातीय गौरव दिवस को जनजातीय गर्व, समावेशन और विकास के लिये पूरे वर्ष चलने वाले आंदोलन में परिवर्तित करता है।
  • भगवान बिरसा मुंडा: भगवान बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवंबर, 1875 को छोटानागपुर क्षेत्र (वर्तमान झारखंड) में हुआ था। वे मुंडा जनजाति के एक महान जननायक थे।
    • ब्रिटिश नीतियाँ, जैसे स्थायी बंदोबस्त अधिनियम 1793, ने पारंपरिक खुंटकट्टी भूमि प्रणाली (Khuntkatti land system) को नष्ट कर दिया, जिससे जनजातीय लोग बेगार, ऋणग्रस्तता और विस्थापन के शिकार हो गए।
    • बिरसा ने वर्ष 1886 में ईसाई धर्म अपना लिया था, लेकिन बाद में ब्रिटिश राज से इसके लिंक को देखते हुए उन्होंने इसे छोड़ दिया और कहा, “साहेब साहेब एक टोपी।”
    • उन्होंने बिरसाइत धर्म की स्थापना की, जिसमें जनजातीय परंपराओं को सुधारवादी विचारों के साथ जोड़ा गया। जनजातीय समाज में उन्हें ‘भगवान’ और ‘धरती का अब्बा’ (Dharti ka Abba) के रूप में पूजा गया।
    • वर्ष 1899 में, बिरसा ने उलगुलान (बड़ा हंगामा) का नेतृत्व किया, जो एक जनजातीय विद्रोह था, जिसका उद्देश्य ब्रिटिश शासन को समाप्त करना, बाहरी लोगों को निकालना और बिरसा राज स्थापित करना था।
      • उनका आंदोलन गुरिल्ला रणनीति पर आधारित था, उसने औपनिवेशिक कानूनों और करों को अस्वीकार किया तथा यह भारत के सबसे संगठित जनजातीय विद्रोहों में से एक बन गया।
      • वर्ष 1900 में बिरसा को गिरफ्तार किया गया और वे मात्र 25 वर्ष की आयु में शहीद हो गए। उनकी विरासत ने आगे चलकर छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम (1908) को प्रेरित किया, जिसने जनजातीय भूमि अधिकारों की रक्षा सुनिश्चित की।

और पढ़ें: जनजातीय गौरव दिवस

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