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शिव–विष्णु समन्वय दर्शाने वाला द्विमुखी दीपक

  • 27 Jun 2025
  • 3 min read

स्रोत: द हिंदू

कर्नाटक के उडुपी ज़िले स्थित पेरडूर अनंतपद्मनाभ मंदिर में 15वीं शताब्दी का एक दुर्लभ द्विमुखी दीपक खोजा गया है, जो शैव और वैष्णव परंपराओं के समन्वित मिश्रण को अत्यंत कलात्मक रूप से प्रदर्शित करता है।

प्रमुख बिंदु

  • द्वैध धार्मिक महत्त्व: यह दीपक अद्वितीय रूप से शिव (नटराज के रूप में) और विष्णु (अनंतपद्मनाभ के रूप में) की मूर्तियों का मिश्रण है, जो शैव और वैष्णव संप्रदायों के अनुष्ठानों को दर्शाता है।
  • ऐतिहासिक दान: अभिलेखित शिलालेखों से ज्ञात होता है कि यह दीपक 1456 ई. में दान किया गया था।

कथात्मक मूर्तिकला:

  • प्रथम मुख: इसमें शिव के प्रलय तांडव (विनाशकारी नृत्य) का चित्रण है, जिसमें पार्वती, गणपति, मृदंगवादक बृंगी और खड्गधारी रावण एक खड़ी स्त्री पर बैठे हैं, जिसे देवी मारी के रूप में पहचाना जाता है, जो विस्मया मुद्रा में हैं।
    • विस्मय मुद्रा एक एकहस्तीय मुद्रा है जो आश्चर्य की भावना व्यक्त करती है। इसमें हथेली शरीर की ओर होती है और उंगलियाँ फैली तथा खुली होती हैं।
  • द्वितीय मुख: इसमें ब्रह्मा, इन्द्र, अनंतपद्मनाभ, अग्नि और वरुण को शिव के प्रलयकारी तांडव को शांत करने के लिये विष्णु से प्रार्थना करते हुए दिखाया गया है, जो ब्रह्मांडीय सामंजस्य का प्रतीक है।
  • कलात्मक विवरण: प्रतिमाएँ समभंग मुद्रा (खड़े या बैठे हुए शरीर के अंगों का एक केंद्रीय रेखा पर समान वितरण) में दर्शाई गई हैं, और उनके सिर पर विशिष्ट शिरोभूषण (headgear) दिखाई देते हैं।
  • सांस्कृतिक निरंतरता: मंदिर के बाहरी प्राकार में खड्ग रावण–मारी पूजा की उपस्थिति मुख्यधारा हिंदू धर्म के साथ-साथ प्राचीन लोक-देवता परंपराओं के अस्तित्व को उजागर करती है।

Samabhanga_Pose

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