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बेल्जियम ने इकोसाइड को अपराध के रूप में मान्यता प्रदान की

  • 02 Mar 2024
  • 6 min read

स्रोत: डाउन टू अर्थ

चर्चा में क्यों? 

बेल्जियम की संघीय संसद ने 'पारिस्थितिकी संहार/इकोसाइड' को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय अपराध के रूप में मान्यता प्रदान की है, जिसके कारण यह यूरोपीय महाद्वीप का पहला देश बन गया है।

  • यह कानून निर्णय लेने वाली शक्तियों और निगमों में बैठे व्यक्तियों को लक्षित करता है, जिसका उद्देश्य व्यापक तेल रिसाव जैसे गंभीर पर्यावरणीय क्षरण को रोकना तथा दंडित करना है।

नोट: 

  • बेल्जियम एक संघीय और संवैधानिक राजतंत्र है जो दो मुख्य भाषाई तथा सांस्कृतिक क्षेत्रों में विभाजित है: फ्लेमिश (डच)-भाषी फ़्लैंडर्स एवं फ़्रेंच-भाषी वालोनिया।
  • बेल्जियम को 'यूरोप का कॉकपिट' कहा जाता है क्योंकि इतिहास में सबसे अधिक यूरोपीय संघर्ष यहीं पर हुए हैं।
  • इसकी राजधानी, ब्रुसेल्स में स्थित है। यह यूरोपीय संघ (EU) का सदस्य भी है।

इकोसाइड क्या है?

  • इकोसाइड को "गैरकानूनी या अनियंत्रित कृत्यों के रूप में परिभाषित किया गया है जो इस जानकारी के साथ किये गए हैं कि उन कृत्यों के कारण पर्यावरण को गंभीर और व्यापक या दीर्घकालिक क्षति होने की पर्याप्त संभावना है।"
    • यह परिभाषा स्टॉप इकोसाइड फाउंडेशन द्वारा गठित इकोसाइड की कानूनी व्याख्या करने वाले स्वतंत्र विशेषज्ञ पैनल द्वारा प्रदान की गई थी।
  • पारिस्थितिकी-संहार को पर्यावरणीय अपराध का एक रूप माना जाता है और यह प्रायः जैवविविधता, पारिस्थितिकी तंत्र तथा मानव कल्याण पर महत्त्वपूर्ण नकारात्मक प्रभावों से संबंधित है।
    • पारिस्थितिकी-संहार को एक अपराध के रूप में मान्यता प्रदान करने का उद्देश्य व्यक्तियों और निगमों को उनके कार्यों के लिये जवाबदेह बनाना तथा आगे के पर्यावरणीय क्षरण को रोकना है।
  • 12 देशों में पारिस्थितिकी-संहार एक अपराध है, और देश ऐसे कानूनों पर विचार कर रहे हैं, जो जान-बूझकर की गई पर्यावरणीय क्षति को अपराध की श्रेणी में रखते हैं, जो मनुष्यों, जानवरों तथा पौधों की प्रजातियों को नुकसान पहुँचाती है।

पारिस्थितिकी-संहार को अपराध घोषित करने पर भारत का रुख क्या है?

  • कानून के रूप में पारिस्थितिकी-संहार: कुछ भारतीय न्यायालय के निर्णयों में 'पारिस्थितिकी-संहार' शब्द का संदर्भ दिया गया है, इस अवधारणा को औपचारिक रूप से भारतीय कानून में शामिल नहीं किया गया है।
    •   चंद्र CFS और टर्मिनल ऑपरेटर्स प्रा. लिमिटेड बनाम सीमा शुल्क आयुक्त (2015) मामला: न्यायालय ने कहा कि कुछ वर्ग के लोग मूल्यवान लकड़ियों/शहतीर को काटकर पर्यावरण का संहार करना जारी रखे हुए हैं। 
    • टी.एन. गोदावर्मन तिरुमुलपाद बनाम भारत संघ व अन्य (1997) मामला: सर्वोच्च न्यायालय ने "मानवजनित पूर्वाग्रह" की ओर ध्यान आकर्षित किया और तर्क दिया कि "पर्यावरणीय न्याय केवल तभी प्राप्त किया जा सकता है जब हम मानवकेंद्रित सिद्धांत से हटकर पर्यावरण-केंद्रित सिद्धांत की ओर रुख करें।"
    • हालाँकि भारत ने अभी तक विशेष रूप से पारिस्थितिकी-संहार को लक्षित करने वाला कानून बनाने की दिशा में ठोस कदम नहीं उठाए हैं।
  • मौजूदा वैधानिक फ्रेमवर्क: भारत के पर्यावरणीय वैधानिक फ्रेमवर्क में पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम 1986, वन्य जीवन (संरक्षण) संशोधन अधिनियम, 2022 और प्रतिपूरक वनीकरण कोष अधिनियम, 2016 (CAMPA) जैसे क़ानून शामिल हैं।
    • इन कानूनों के बावजूद, पारिस्थितिकी-घातक गतिविधियों को सीधे नियंत्रित करने में एक अंतर बना हुआ है, जिससे पारिस्थितिकी-संहार को एक विशिष्ट दंड अपराध के रूप में शामिल करना आवश्यक हो गया है।

और पढ़ें: पारिस्थितिकी-संहार को अपराधीकृत करने पर वैश्विक दबाव

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2019)

  1. पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 भारत सरकार को सशक्त करता है कि
  2. वह पर्यावरणीय संरक्षण की प्रक्रिया में लोक सहभागिता की आवश्यकता का और इसे हासिल करने प्रक्रिया तथा रीति का विवरण दें।
  3. वह विभिन्न स्रोतों से पर्यावरणीय प्रदूषकों के उत्सर्जन या विसर्जन के मानक निर्धारित करें।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (b)

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