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खगोलीय महाचक्र

  • 20 Mar 2024
  • 9 min read

स्रोत: डाउन टू अर्थ

नेचर कम्युनिकेशंस जर्नल में प्रकाशित एक हालिया अध्ययन में खगोलीय महाचक्रों और पृथ्वी तथा मंगल की कक्षाओं, ग्लोबल वार्मिंग अथवा शीतलन के साथ गहरे महासागर (deep water) में कटाव के बीच संबंध के प्रमाण मिले हैं।

अध्ययन के मुख्य निष्कर्ष क्या हैं?

  • खगोलीय महाचक्र:
    • गहरे महासागर में भूवैज्ञानिक तलछटी साक्ष्यों से एक नए खोजे गए 2.4 मिलियन वर्ष के चक्र का पता चला है, जिसे "खगोलीय महाचक्र" के रूप में जाना जाता है, जो पृथ्वी और मंगल की कक्षाओं से जुड़ा हुआ है।
    • यह चक्र ग्लोबल वार्मिंग या शीतलन प्रवृत्तियों को प्रभावित करता है और गहरे महासागर तलछटी डेटा में क्षरण पैटर्न के माध्यम से इसका पता लगाया गया है।
  • मंगल की कक्षा और पृथ्वी की जलवायु के बीच संबंध:
    • सौर मंडल में ग्रहों के गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र एक-दूसरे के साथ हस्तक्षेप करते हैं, जिससे उनकी कक्षीय विलक्षणता (उनकी कक्षाएँ कितनी गोलाकार हैं) में परिवर्तन होता है।
      • पृथ्वी और मंगल की कक्षाओं के बीच परस्पर क्रिया के कारण पृथ्वी द्वारा प्राप्त सौर विकिरण की मात्रा में भिन्नता होती है, जिसके परिणामस्वरूप 2.4 मिलियन वर्षों में उष्मीय तथा शीतलन होने का चक्र होता है।
  • जलवायु एवं महासागरीय परिसंचरण पर प्रभाव:
    • अटलांटिक मेरिडियनल ओवरटर्निंग सर्कुलेशन के धीमा होने की स्थिति में, ऊष्म चरणों के दौरान भँवरों (जल की एक वृत्ताकार धारा) के कारण गहरे समुद्र में होने वाला परिसंचरण संभावित रूप से महासागर के निश्चलता को बाधित कर सकता है।
      • AMOC महासागरी धाराओं की एक बड़ी प्रणाली है जो उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों से गर्म जल को उत्तर की ओर उत्तरी अटलांटिक में ले जाती है।
    • गहरे महासागर के भँवर गहरे महासागर में ऑक्सीजन प्रदान करने के साथ विश्व के गर्म वातावरण से कार्बन डाइऑक्साइड को महासागर में खींचने में सहायता प्रदान कर सकते हैं।
      • तीव्र गहरे महासागर के भँवर, जिन्हें विशाल भँवर के रूप में वर्णित किया गया है, महासागरीय परिसंचरण गतिशीलता में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, ये 3,000 से 6,500 मीटर की गहराई पर स्थित होते हैं जहाँ सूर्य का प्रकाश प्रवेश नहीं करता है।
      • ये भँवर महासागरीय तल के क्षरण एवं बड़े तलछट संचय के निर्माण में योगदान करते हैं, जिन्हें कंटूराइट्स के रूप में जाना जाता है, जो उनकी संरचना में स्नोड्रिफ्ट के समान होती हैं।
  • भविष्य के अनुसंधान निर्देश:
    • अनुसंधान टीम की योजना पृथ्वी-मंगल संपर्क द्वारा संचालित अधिक डेटा शोकेसिंग चक्र को एकत्रित करने की है, जिससे लाखों वर्षों में पृथ्वी की जलवायु में उतार-चढ़ाव की गतिशीलता का पता लगाया जा सके।

खगोलीय चक्र क्या हैं?

  • खगोलीय चक्र पृथ्वी की कक्षा तथा सूर्य की ओर अभिविन्यास में आवधिक बदलाव को संदर्भित करते हैं जो लंबे समय तक हमारे ग्रह द्वारा प्राप्त सौर विकिरण की मात्रा को प्रभावित करते हैं।
    •  ये चक्र पृथ्वी, सूर्य और सौर मंडल के अन्य ग्रहों के बीच गुरुत्वाकर्षण बलों के कारण होते हैं।
  • इन चक्रों का सिद्धांत पहली बार 1920 के दशक में सर्बियाई वैज्ञानिक मिलुटिन मिलनकोविच द्वारा पृथ्वी पर हिमयुग के चक्रीय पैटर्न को समझाने के लिये दिया गया था, जिसे मिलनकोविच चक्र या मिलनकोविच दोलन भी कहा जाता है।
    • कुछ प्रमुख खगोलीय चक्रों में शामिल हैं:
      • विलक्षणता/उत्केंद्रता (Eccentricity) (100,000 वर्ष) - सूर्य के चारों ओर पृथ्वी की कक्षा का दीर्घवृत्ताकार में परिवर्तन।
      • तिर्यकता/तिरछापन (Obliquity) (41,000 वर्ष) - इसके कक्षीय तल के सापेक्ष पृथ्वी की धुरी के झुकाव में भिन्नता।
      • प्रक्रमण/अयन (Precession) (23,000 वर्ष) - समय के साथ पृथ्वी की धुरी का बदलता अभिविन्यास।

पृथ्वी की जलवायु पर अन्य खगोलीय प्रभाव क्या हैं?

  •  सनस्पॉट गतिविधि:
    • सनस्पॉट अर्थात् सौर-कलंक सूर्य की सतह का ऐसा क्षेत्र होता है जिसकी सतह आस-पास के हिस्सों की तुलना अपेक्षाकृत काली (DARK) होती है तथा तापमान कम होता है। इनका व्यास लगभग 50,000 किमी. होता है। ये काले और ठंडे धब्बे चक्रीय तरीके से बढ़ते और घटते हैं।
      • सौर धब्बों की संख्या और तीव्रता चक्रीय पैटर्न में आमतौर पर 11 वर्ष के सौर चक्र में बढ़ती और घटती है।
    • कुछ मौसम विज्ञानियों के अनुसार, उच्च सनस्पॉट गतिविधि और संख्याएँ इससे जुड़ी हैं:
      • पृथ्वी पर ठंडे और आर्द्र मौसम के पैटर्न तथा तूफान व बादलों का आवरण बढ़ गया।
      • इसके विपरीत, कम सनस्पॉट वाली अवधि विश्व स्तर पर गर्म और शुष्क स्थितियों से जुड़ी होती है।
    • हालाँकि सनस्पॉट गतिविधि और विशिष्ट मौसम पैटर्न के बीच ये सह-संबंध लगातार सांख्यिकीय रूप से महत्त्वपूर्ण साक्ष्य द्वारा समर्थित नहीं हैं।
  • गैलेक्टिक/मंदाकिनीय कॉस्मिक किरणें:
    • किये गए अध्ययनों के अनुसार मंदाकिनी से कॉस्मिक किरण प्रवाह के बढ़ने से पृथ्वी पर मेघों का निर्माण प्रभावित हो सकता है जिससे संभावित रूप से शीतलन प्रभाव हो सकता है।
      • हालाँकि इस प्रभाव की व्यापकता और इसमें शामिल प्रक्रिया के संबंध में वर्तमान में शोध किये जा रहे हैं
  • क्षुद्रग्रह/धूमकेतु प्रभाव:
    • हालाँकि पृथ्वी पर प्रमुख क्षुद्रग्रह अथवा धूमकेतु का प्रभाव अत्यंत दुर्लभ है किंतु ये वायुमंडल में भारी मात्रा में धूल और गैस निर्मुक्त कर सकते हैं जिससे अस्थायी रूप से शीतलन की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
    • ऐसा माना जाता है कि लगभग 66 मिलियन वर्ष पूर्व क्रेटेशियस-पैलियोजीन विलुप्ति (डायनासोर के विलुप्त होने के कारण) आंशिक रूप से क्षुद्रग्रह प्रभाव और संबंधित जलवायु परिवर्तनों के कारण हुई थी।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. अलग-अलग ऋतुओं में दिन-समय और रात्रि-समय के विस्तार में भिन्नता किस कारण से होती है? (2013)

(a) पृथ्वी का अपने अक्ष पर घूर्णन।
(b) पृथ्वी का, सूर्य के चारों ओर दीर्घवृत्तीय रीति से परिक्रमण।
(c) स्थान की अक्षांशीय स्थिति।
(d) पृथ्वी का नत अक्ष पर परिक्रमण।

उत्तर: (d)

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