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संत कबीर दास की 648वीं जयंती
- 13 Jun 2025
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स्रोत: पी.आई.बी.
चर्चा में क्यों?
11 जून, 2025 को प्रधानमंत्री ने संत कबीर दास को उनकी 648वीं जयंती, जिसे कबीरदास जयंती (कबीर प्रकट दिवस) के रूप में मनाया गया, के अवसर पर श्रद्धांजलि अर्पित की।
संत कबीरदास कौन थे और उनका योगदान क्या था?
- परिचय: संत कबीर दास (1440-1518) एक प्रतिष्ठित रहस्यवादी कवि, संत और समाज सुधारक थे, जिनका जन्म वाराणसी, उत्तर प्रदेश में हुआ था।
- कबीर अक्सर स्वयं को "जुलाहा" (बुनकर) और "कोरी" (निम्न जाति) के रूप में संदर्भित करते थे, जो हाशिये पर रह रहे लोगों के प्रति उनकी विनम्रता तथा एकजुटता को दर्शाता था।
- शिक्षाएँ एवं दर्शन: संत कबीर दास निर्गुण भक्ति परंपरा के एक प्रमुख प्रस्तावक हैं, जो एक निराकार, गुण-रहित ईश्वर (निर्गुण ब्रह्म) के प्रति भक्ति पर ज़ोर देते हैं।
- उन्होंने भक्ति संत रामानंद और सूफी गुरु शेख तकी से आध्यात्मिक मार्गदर्शन प्राप्त किया।
- रामानंद के साथ मिलकर उन्होंने स्थानीय भाषाओं में भक्ति उपासना को लोकप्रिय बनाया और आध्यात्मिकता को आम जनता के समीप पहुँचाया।
- उनकी शिक्षाओं ने धार्मिक रूढ़िवादिता, अंध कर्मकांडों और सामाजिक विभाजनों को चुनौती दी तथा ईश्वर तक पहुँचने के लिये एक सार्वभौमिक, समावेशी मार्ग का समर्थन किया।
- उन्होंने औपचारिक धर्म की अपेक्षा सत्य, करुणा, समानता और प्रत्यक्ष आध्यात्मिक अनुभव पर अधिक ज़ोर दिया।
- भक्ति आंदोलन में भूमिका: कबीर भक्ति आंदोलन (7 वीं -15 वीं शताब्दी) के एक प्रमुख व्यक्ति थे, जिन्होंने कर्मकांड और जातिवाद को खारिज करते हुए भक्ति, आंतरिक शुद्धता तथा सामाजिक समानता को बढ़ावा दिया।
- साहित्य: कबीर ने ब्रजभाषा, अवधी और संत भाषा में दोहे तथा भजन की रचना की, जो हिंदी साहित्य के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
- उनकी रचनाओं में सादगी, गहनता एवं सार्वभौमिक निवेदन की विशेषता होती है, जिनमें अक्सर "उलटबांसी" होती है, जो चिंतन को प्रेरित करने के लिये उलट अर्थ वाले विरोधाभासी छंद होते हैं।
- उनके प्रमुख संकलनों में कबीर बीजक (वाराणसी और पूर्वी उत्तर प्रदेश में कबीरपंथ द्वारा संरक्षित), कबीर परचाई, साखी ग्रंथ, अनुराग गाथा तथा कबीर ग्रंथावली (राजस्थान में दादूपंथ संप्रदाय से संबद्ध) शामिल हैं।
- उनके कई छंद गुरु ग्रंथ साहिब में शामिल हैं, जिसे गुरु अर्जन देव (5वें सिख गुरु) द्वारा संकलित किया गया था, जो सिख धर्म पर उनके प्रभाव को दर्शाते हैं।
- विरासत और अनुसरण: कबीर को हिंदू, मुस्लिम और सिख सभी मानते हैं तथा उनकी शिक्षाओं ने कबीर पंथ की नींव रखी, जो एक आध्यात्मिक संप्रदाय है जिसके अनुयायी कबीर पंथी के रूप में जाने जाते हैं।
- उनकी विरासत सांप्रदायिक सद्भाव, नैतिक अखंडता और आंतरिक आध्यात्मिक जागृति का प्रतिनिधित्व करती है।
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