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सामाजिक न्याय

अगले स्वास्थ्य संकट को रोकना

  • 06 Jun 2018
  • 10 min read

संदर्भ

मार्च 2018 में सरकार ने घोषणा की कि वह सालाना "पोषण की स्थिति" रिपोर्ट जारी करेगी, जिसमें भारत में स्टंटिंग तथा कुपोषण के स्तर की व्याख्या की जाएगी और इसमें राज्यों के पोषण स्तर में वृद्धि के लिये सर्वोत्तम कार्यप्रणालियों की सुविधा भी शामिल होगी।

पोषण संबंधी चुनौतियाँ

  • पोषण चुनौतियों से निपटने के लिये भारत को बहुत कुछ करना है क्योंकि भारत में 26 मिलियन बच्चे अपक्षय (wasting) (लम्बाई की तुलना में कम वज़न अनुपात) से पीड़ित हैं जो किसी अन्य देश की तुलना में अधिक है। 
  • हमारा देश मोटे बच्चों की संख्या के मामले में दूसरे स्थान पर आता है चीन में यह संख्या 15.3 मिलियन तथा भारत में 14.4 मिलियन है। 
  • पर्याप्त पोषण (आमतौर पर इसकी व्याख्या आहार कैलोरी के रूप में की जाती है) के आश्वासन के माध्यम से कुपोषण से निपटने के दौरान हमें यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि यह उचित पोषण (पोषक तत्त्वों का सही संतुलन) से संबंधित हो।
  • हमारी नीति प्रतिक्रिया को "खाद्य सुरक्षा" से "पोषण सुरक्षा" में स्थानांतरित करने की आवश्यकता है।

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 नई समस्या

  • भारत को अधिक वज़न और मोटापे से लड़ने के अपने प्रयासों को और ऊपर उठाना चाहिये जैसे कि फुफ्फुसीय यक्ष्मा (wasting) तथा स्टंटिंग के मामले में किया जा रहा है। 
  • 1980 और 2015 के बीच, मोटापे से ग्रस्त बच्चों की संख्या दोगुनी और वयस्कों की संख्या तीन गुनी हो गई थी;  इसके अलावा अनुमान है कि 2025 तक भारत में 2.6 मिलियन अतिरिक्त बच्चे मोटापे से ग्रस्त होंगे, यह एक ऐसी प्रवृत्ति है जिसे बिना किसी कार्रवाई के हराया नहीं जा सकता।

स्टंटिंग क्या है?

  • स्टंटिंग कुपोषण का एक भीषणतम रूप है, जिसकी चपेट में आने वाले बच्चों का उनकी उम्र के हिसाब से न तो वज़न बढ़ता है और न ही उनकी लंबाई बढ़ती है।
  • लगातार डायरिया जैसे रोंगों से संक्रमित रहने के कारण बच्चों को पर्याप्त मात्रा में पोषण नहीं मिल पाता है, जिसके कारण वे स्टंटिंग के शिकार हो जाते हैं। 
  • गौरतलब है कि भारत में स्टंटिंग से ग्रसित बच्चों की संख्या सर्वाधिक है।

स्टंटिंग के नकारात्मक प्रभावों को इंगित करती विभिन्न रिपोर्टें

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क्या है फुफ्फुसीय यक्ष्मा?
यह एक आम और कई मामलों में घातक संक्रामक बीमारी है जो माइक्रोबैक्टीरिया, आमतौर पर माइकोबैक्टीरियम तपेदिक के विभिन्न प्रकारों की वज़ह से होती है। यह तपेदिक का ही एक लघु रूप है, अगर टीबी का जीवाणु फेफड़ों को संक्रमित करता है तो वह फुफ्फुसीय यक्ष्मा कहलाता है।

मोटापा (obesity)
मोटापा (Obesity) वह स्थिति है, जब अत्यधिक शारीरिक वसा शरीर पर इस सीमा तक एकत्रित हो जाती है कि स्वास्थ्य पर हानिकारक प्रभाव डालने लगती है।

बढ़ते मोटापे के परिणाम
बढ़ता मोटापा हृदय रोग, मधुमेह और कुछ कैंसर (गैर-संक्रमणीय बीमारियों, या NCD के रूप में एकत्रित) जैसी पुरानी बीमारियों का उच्च जोखिम पैदा करके भारत स्वास्थ्य प्रणालियों पर दबाव डाल रहा है जो कि पहले से ही नाजुक स्थिति में है। 

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मोटापा एक गंभीर समस्या

  • शोध से पता चलता है कि कई अन्य देशों के निवासियों की तुलना में भारतीयों के शरीर में वसा का स्तर उच्च और बिना चर्बी वाली (lean) माँसपेशियों का स्तर निम्न होता है। 
  • कार्डियोवैस्कुलर बीमारियों और मधुमेह का खतरा अधिक वज़न और मोटापे को परिभाषित करने के लिये वैश्विक सीमाओं से भी निम्न स्तर पर है। सार्वजनिक स्वास्थ्य उपायों को तत्काल प्रारंभ करने की आवश्यकता है। 
  • समयपूर्व मृत्यु दर के उच्च बोझ के अलावा, ये कुछ ऐसे खतरे हैं जिनकी भारत अनदेखी कर सकता है क्योंकि यह एक सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज प्रणाली (universal health coverage system) की ओर महत्त्वाकांक्षा से देखता है जहाँ प्रत्येक व्यक्ति वित्तीय बोझ से मुक्त गुणवत्तायुक्त स्वास्थ्य सेवाओं को प्राप्त कर सकता है।
  • मोटापे में वृद्धि होना गंभीर चिंता का विषय है क्योंकि अत्यधिक वज़न वाला बचपन उसी प्रकार जीवनभर के लिये स्वास्थ्य समस्याओं को जन्म देता है जिस प्रकार बढ़ती उम्र के साथ सामान्य से कम वज़न। 

क्या हैं इसके कारण?

  • भारतीय बच्चों द्वारा अधिक जंक फूड खाना तथा बढ़ती हुई निष्क्रियता का संयोजन उन्हें और अधिक जोखिम में डाल देता है। 
  • शोध से पता चला है यदि तीन वर्ष की उम्र में बच्चों का कटि-विस्तार (waistline) अनुमान से अधिक हो तो  आठ  साल की उम्र तक इन बच्चों में फैटी लीवर रोग के प्रारंभिक संकेत दिखाई देने लगते हैं।

मोटापे की समस्या का निवारण 
सौभाग्य से यह वर्ष मोटापे की समस्या से निपटने का एक आदर्श अवसर है क्योंकि वैश्विक स्वास्थ्य के निर्णयकर्त्ता इस बात पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं कि कुपोषण को रोकने के प्रयासों को दृढ़ता से आगे बढ़ाने के साथ ही किस प्रकार "सर्वश्रेष्ठ खरीद" जैसे चीनी पर कर लगाने और स्वस्थ आहार पर जन मीडिया अभियान (मोटापे को कम करने के सिद्ध तरीके) चलाने के लिये राजनीतिक सहमति को हासिल किया जाए। 

उपयुक्त प्रतिक्रिया

  • नीतिगत प्रतिक्रियाओं में कृषि प्रणालियों को शामिल करना चाहिये जो फसल विविधता को बढ़ाने (आहार विविधता को सक्षम करने) के साथ-साथ नियामक और वित्तीय उपायों (स्वस्थ खाद्य पदार्थों को और अधिक सुलभ बनाने के साथ ही अस्वास्थ्यकर खाद्य पदार्थों की उपलब्धता, वहनीयता  और वृद्धि को कम करना) को बढ़ावा देते हैं। 
  • उदाहरण के लिये, दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा दिये गए निर्देश का अनुसरण करते  हुए भारत को स्कूलों में तथा स्कूलों के आस-पास जंक फूड की बिक्री पर प्रतिबंध लगा देना चाहिये। 
  • हाल ही में जारी किये गए लांसेट अध्ययन के नतीजों को भी पेश करना चाहिये।
  • नैदानिक समायोजनों में भी परामर्श और देखभाल की आवश्यकता है। 
  • "खराब जीवनशैली विकल्पों" के प्रबंधन के तरीकों के रूप में पदावनत किये जाने के बजाय मोटापा प्रबंधन, रोकथाम और उपचार को आवश्यक स्वास्थ्य सेवाओं के रूप में प्रदान किया जाना चाहिये। 

आगे की राह

  • भारत को मोटापा और कुपोषण दोनों को संयुक्त रूप से देखना चाहिये तथा सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज़ के अंतर्गत इनका सामूहिक समाधान निकाला जाना चाहिये। 
  • सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज का तात्पर्य यह है कि आवश्यक स्वास्थ्य देखभाल के लिये किसी को भी वित्तीय कठिनाई का सामना न करना पड़े। 
  • रोकथाम और प्रारंभिक देखभाल के ज़रिये मोटापे की समस्या से निपटने निपटने के साथ-साथ  NCDs से बचा जा सकता है।
  • सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज के वादे को पूरा करने के लिये भारत बेहतर स्थिति में होगा यदि यह उस चक्र को बाधित करता है जहाँ गरीबी NCD की ओर अग्रसित होती है। 
  • इस बात का मज़बूत साक्ष्य उपलब्ध है कि दिल की बीमारी और मधुमेह अत्यधिक स्वास्थ्य व्यय का उच्च भार लोगों पर डालते हैं, जिसके परिणामस्वरूप आजीविका का नुकसान होता है और वे गरीबी के अधीन हो जाते हैं। 
  • किसी भी प्रकार का बीमा या व्यक्तिगत बचत न होने की स्थिति में हृदय रोग निदान के लिये एक व्यक्ति को संपत्ति के साथ-साथ स्वास्थ्य से समझौता करना पड़ सकता है।

निष्कर्ष

  • स्वास्थ्य समर्थकों को कुपोषण तथा अतिपोषण दोनों को संयोजित कर 'संपूर्ण समाज' की समस्याओं के प्रति 'संपूर्ण सरकार' के दृष्टिकोण को बढ़ावा देने के लिये आर्थिक और सामाजिक तर्क स्थापित करने चाहिये। 
  • अब समय आ गया है कि इन स्वास्थ्य संकटों से आगे निकला जाए और इस प्रक्रिया में जीवन और धन को बचाया जाए।
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