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जैव विविधता और पर्यावरण

भारत में जीनोमिक्स क्रांति के अवसर एवं चुनौतियाँ

  • 05 Jan 2018
  • 13 min read

संदर्भ

  • ग्रेगर मेंडल ने सन् 1865 में वंशागति के सिद्धांतों का प्रतिपादन कर आनुवंशिकी की नीव रखी थी। इसके लगभग 90 वर्ष बाद 1953 में जेम्स वॉटसन, फ्राँसिस क्रिक, मॉरिस विल्किंस और रोज़लिंड फ्रैंकलिन ने आनुवंशिक पदार्थ डीएनए (Deoxyribonucleic acid-DNA) की संरचना को उजागर किया।
  • दरअसल, डीएनए में ही हमारी समस्त वंशानुगत जानकारी संगृहित रहती है और यह माता-पिता से बच्चों में पीढ़ियों तक संचरित होता जाता है। इसकी खोज ने जीनोमिक्स की नीव रखने का कार्य किया।

इस लेख में हम जीनोमिक्स, इससे संबंधित विभिन्न तकनीकी पहलुओं, मानव जीवन में इसके अनुप्रयोग तथा भारत में इसके विकास से संबंधित पक्षों का विश्लेषण करेंगे।

जीनोमिक्स क्या है?

  • किसी जीव के सभी जीनों के समूह को संयुक्त रूप से जीनोम कहते हैं। जीनोम एक जीव के डीएनए का पूरा सेट होता है, जिसमे सभी जीन शामिल होते हैं। 
  • जीनोमिक्स में पूरे जीनोम के कार्य और संरचना के विश्लेषण के लिये डीएनए अनुक्रमण (DNA Sequencing) और जैव सूचना विज्ञान (Bio-informatics) इस्तेमाल किया जाता है।
  • जीनोमिक्स जैविक अनुसंधान का एक महत्त्वपूर्ण अंग बन गया है, लेकिन अन्य क्षेत्रों जैसे- मेडिसिन, जैव प्रौद्योगिकी,  फोरेंसिक, सूचना प्रौद्योगिकी आदि में भी इसका महत्त्व बढ़ रहा है। 

क्या है जीनोम अनुक्रमण?

  • गौरतलब है कि डीएनए में जानकारी निम्नलिखित चार रासायनिक क्षारों से बने एक कोड के रूप में संगृहित होती है-
  1. एडेनिन (ए)
  2. गुआनिन (जी)
  3. साइटोसिन (सी)
  4. थाइमिना (टी)
  • मानव डीएनए में ऐसे लगभग 3 अरब क्षार अनुक्रम हैं और जीनोम अनुक्रमण (Genome Sequencing) में डीएनए में पाए जाने वाले इन क्षार समूहों के अनुक्रम को समझा जाता है।
  • विदित हो कि मानव जीनोम के अनुक्रमण का कार्य एक अंतर्राष्ट्रीय वैज्ञानिक अनुसंधान परियोजना ‘मानव जीनोम प्रोजेक्ट’ (Human Genome Project-READ) के तहत किया गया था।
  • वर्ष 2016 में इसके अगले चरण HGP- WRITE के तहत मानव जीनोम अनुक्रमण का एक लिखित ब्लू प्रिंट तैयार किया जाएगा।

जीनोमिक्स का मानव जीवन में अनुप्रयोग

  • व्यक्तिगत चिकित्सा (Personalized Medicine)

⇒ जीनोमिक सूचना पर आधारित चिकित्सा अब एक वास्तविकता बनती जा रही है। किसी रोगी के जीनोम सिक्वेंसिंग पर आधारित नैदानिक निर्णय से बेहतर और सटीक इलाज़ की संभावना बढ़ जाएगी।
⇒ रोगी और उनके ट्यूमर के जीनोमिक्स को जानते हुए चिकित्सक अब यह निर्णय लेने में सक्षम होंगे कि कोई दवा प्रभावी होगी अथवा नहीं।

  • मानव जाति के विकास का अध्ययन

⇒ जीनोमिक्स हाल ही के मानव विकास के अध्ययन के लिये एक नया टूल सिद्ध हो सकता है। हाल ही में शोधकर्त्ता निएंडरथल मानव की हड्डी के छोटे से टुकडे से प्राप्त डीएनए से जीनोम को अनुक्रमित करने में सफल हुए हैं।
⇒ इस अनुक्रम की मानव आबादी के विभिन्न डीएनए के साथ तुलना करने पर यह पाया गया है कि मानव और निएंडरथल के कम-से-कम 99.5% जीनोम एक-दूसरे के समान हैं।
⇒ इसके अलावा, अध्ययनों से यह भी पता पता चला कि कुछ मानव आबादी के जीनोम में निएंडरथल डीएनए का एक छोटा अंश है।

  • पर्यावरण के साथ क्रिया-प्रतिक्रिया का बेहतर विश्लेषण

⇒ जीनोमिक्स के द्वारा यह जाना जा सकता है कि मानव सहित अन्य जीव निरंतर बदलते पर्यावरण में आनुवंशिक स्तर पर किस प्रकार प्रतिक्रिया देते हैं।
⇒ पर्यावरणविदों और प्रकृतिविदों द्वारा संकलित व्यापक जीवन इतिहास को जीनोमिक विश्लेषण के साथ जोड़कर यह जाना जा सकता है कि आनुवांशिक स्तर पर विभिन्न जीव अलग-अलग वातावरण में कैसे अनुकूलित हुए और इस अनुकुलन का समान आनुवंशिक आधार है या नहीं?

  • स्वास्थ्य क्षेत्र में क्रांति

मलेरिया, डेंगू और चिकनगुनिया मच्छरों से होने वाले रोग हैं जो प्रोटोजोआ परजीवी (मलेरिया) या वायरस (डेंगू और चिकनगुनिया) के कारण होते हैं। इन घातक रोगों का मुकाबला करने में जीनोमिक्स सहायक हो सकती है।
टीके (Vaccines) विकसित करने में जीनोमिक्स क्रांतिकारी सिद्ध हो सकती है। टीके विकसित करने का पारंपरिक तरीका काफी महँगा और समय-साध्य (Time-Consuming)है। इसमें तेज़ी लाने के लिये वायरस को कृत्रिम रूप से बनाया जा सकता है और इनका टीकों के विकास में उपयोग किया जा सकता है।
जीवन प्रत्याशा बढाने के साथ ही यह अर्थव्यवस्था को भी लाभ पहुँचा सकता है क्योंकि टीके बनाने में भारत विश्व का अग्रणी देश है।

जेनेटिक इंजीनियरिंग

  • जेनेटिक इंजीनियरिंग में जीवित जीवों के जीनोम एडिट कर वांछित परिवर्तन किया जाता है। क्रिस्पर तकनीक एक प्रमुख जीनोम एडिटिंग तकनीक है जिसमें Cas9 एंजाइम द्वारा डीएनए के उस हिस्से को काट दिया जाता है, जो बीमारी से प्रभावित है।
  • अन्य तकनीकों के विपरीत इसमें प्रभावित जीन के स्रोत को ही हटा दिया जाता है, ताकि असाध्य बीमारियों का इलाज़ किया जा सके।

वैश्विक परिदृश्य

  • चीन में कदूरि बायोबैंक द्वारा वर्ष 2004-2008 से ही अपनी आबादी की आनुवंशिक सूचना पर कार्य किया जा रहा है। 
  • वेलकम ट्रस्ट सेंगर इंस्टीट्यूट (Wellcome Trust Sanger Institute) के अफ्रीकन जीनोम वेरिएशन प्रोजेक्ट के तहत उप-सहारा अफ्रीका के 10 से अधिक नृजातीय समूहों के 100 लोगों में लगभग 2.5 मिलियन अनुवांशिक विविधताओं पर शोध किया जा रहा है।
  • दक्षिण कोरिया ने 2015 में अपना जीनोमिक्स प्रोजेक्ट लॉन्च किया था।
  • सिंगापुर की जीनोमएशिया 100K पहल के तहत दक्षिण एशिया को शामिल करते हुए 100,000 एशियाई जीनोमो के अनुक्रमण की योजना है।

जीनोमिक्स से संबंधित चिंताएँ

  • समाज के एक वर्ग का मानना है कि नए जीनोम के संश्लेषण द्वारा नए जीवों की रचना की जा सकती है। यह ईश्वर द्वारा निर्मित व्यवस्था में हस्तक्षेप होगा। इस व्यवस्था का दुरुपयोग संभव है। उदाहरणस्वरूप आनुवंशिक रूप से संशोधित बांझ मच्छर पारिस्थितिक असंतुलन का कारण बन सकते हैं।
  • वहीं क्रिस्पर तकनीक में भ्रूण की अवस्था में ही आनुवंशिक परिवर्तन होने की वजह से इसका डिज़ाइनर बेबी की अवधारणा के आधार पर विरोध किया जा रहा है।
  • भारतीय पेटेंट अधिनियम, 1970 के अनुसार, किसी जीवित या अजीवित पदार्थ तथा पौधों और जानवरों (सूक्ष्मजीव के अलावा) में प्राकृतिक रूप से पाई जाने वाली वस्तु के बारे में किसी खोज या सिद्धांत को पेटेंट नहीं कराया जा सकता। इससे बौद्धिक संपदा संबंधी विवाद उत्पन्न हो सकते हैं।
  • एक मानव जीनोम में लगभग 3 गीगाबाइट डेटा होता है। 10 से 1000 व्यक्तियों के जीनोम अनुक्रमण पर सृजित होने वाली आँकड़ो की इस विशाल मात्रा की सुरक्षा और निजता बनाए रखना प्रमुख चुनौती है।

भारत में जीनोमिक्स क्रांति की प्रबल संभावनाएँ क्यों?

  • महत्त्वपूर्ण है भारत की विविधता

⇒ आनुवंशिक संसाधनों के मामलें में भारत की स्थिति अधिक विविधतापूर्ण है। यहाँ लगभग 5000 नृजातीय-भाषायी और धार्मिक समूह पाए जाते हैं।
⇒ इतना विस्तृत जेनेटिक पूल भारत में जीनोमिक्स के भविष्य के लिये सुखद संकेत है। 

  • महत्त्वपूर्ण है राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017

⇒ भारत में मधुमेह, कैंसर और हृदय-रोग जैसी गैर-संक्रामक बीमारियों से पीड़ित आबादी में वृद्धि देखने को मिल रही है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 भी इस समस्या को रेखांकित करती है।
⇒ भारत द्वारा प्रतिवर्ष दवाओं पर खर्च किये जाने वाले  $1 ट्रिलियन धन में से लगभग 40% राशि अप्रभावी हो जाती है जिससे हेल्थकेयर तंत्र पर बोझ बढ़ता है। इसका समाधान जीनोमिक्स मैपिंग द्वारा किया जा सकता है।

  • वैश्विक आनुवांशिक डेटाबेस में बेहतर उपस्थिति दर्ज कराने की संभावनाएँ 

⇒ जीनोम मैपिंग से पर्सनलाइज्ड मेडिसिन को एक बड़ी आबादी तक पहुँचाया जा सकता है। किंतु, विश्व की लगभग 20% आबादी का प्रतिनिधित्व करने वाले भारतीय उपमहाद्वीप का वैश्विक आनुवांशिक डेटाबेस में महज़ 0.2% का योगदान है।
⇒ नोम अनुक्रमण की लागत के तेज़ी से  $1,000  से सिर्फ $100 तक गिरने के साथ यह संभव है।

आगे की राह

  • वर्तमान में कुछ अस्पतालों द्वारा इलाज़ के लिये रोगियों की आनुवंशिक जानकारी का इस्तेमाल किया जा रहा है और जीनोम सिक्वेंसिंग में निजी क्षेत्र द्वारा कार्य किया जा रहा है किंतु यह पर्याप्त नहीं है।
  • जीनोमिक्स क्रांति का पूरी तरह से लाभ हासिल करने के लिये भारत को अपनी आबादी की आनुवांशिकी जानकारी को संग्रहित करने और इस जानकारी की व्याख्या करने में और अगली पीढ़ी की जीनोमिक्स पर शोध करने में सक्षम मानवशक्ति को प्रशिक्षित करने की आवश्यकता है।
  • सरकार द्वारा शैक्षिक संस्थानों, मौजूदा हेल्थ-केयर इंडस्ट्री, सूचना-प्रौद्योगिकी क्षेत्र की कंपनियों और नव जैव प्रौद्योगिकी के संयुक्त प्रयासों से एक भारतीय आनुवंशिक डाटा बैंक की स्थापना की आवश्यकता है ताकि निजी और सरकारी क्षेत्र दोनों शोध गतिविधियों को सुचारू रूप से संचालित कर सकें।
  • सरकार को आनुवंशिक आंकड़ो की सुरक्षा के लिये विनियामक और कानूनी प्रावधानों को अधिनियमित करने की आवश्यकता है ताकि इनके दुरुपयोग को रोका जा सके। उदाहरणस्वरूप भारत की आनुवंशिक जानकारी सिंगापुर की ‘एशियाजीनोम’ पहल में जा सकती है।
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