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जैव विविधता और पर्यावरण

ज़ीरो कार्बन उत्सर्जन की ओर

  • 13 Sep 2021
  • 11 min read

यह एडिटोरियल दिनांक 09/09/2021 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित ‘‘Green hydrogen, a new ally for a zero carbon future’’ लेख पर आधारित है। इसमें ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोतों की आवश्यकता और "ज़ीरो कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन" में ग्रीन हाइड्रोजन के महत्त्व के संबंध में चर्चा की गई है।

जीवाश्म ईंधन, जो प्रति वर्ष 830 मीट्रिक टन से अधिक कार्बन डाइऑक्साइड के उत्पादन के लिये ज़िम्मेदार हैं, के विकल्पों की तलाश वर्षों से चल रही है।

वैज्ञानिकों के नवीनतम अध्ययनों में जलवायु भेद्यता (विशेष रूप से एशियाई देशों के मामले में) के चिंताजनक पहलू की ओर ध्यान दिलाया गया है। ग्लासगो (ब्रिटेन) में आयोजित हो रहे आगामी 26वें संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज़ (COP26) में ग्रीनहाउस गैसों के प्रभाव को कम करने के लिये जलवायु अनुकूलन उपायों और समन्वित कार्य योजनाओं का फिर से परीक्षण किया जाएगा।

ज़ीरो CO2 उत्सर्जन के साथ भारत के उद्योगों को ऊर्जा प्रदान करने और घरों को बिजली पहुँचाने के लिये एक वैकल्पिक स्रोत की खोज के परिप्रेक्ष्य में ‘ग्रीन हाइड्रोजन’ (Green Hydrogen) एक आकर्षक विकल्प प्रकट होता है जिस पर भरोसा किया जा सकता है।

ग्रीन हाइड्रोजन

  • हाइड्रोजन और ग्रीन हाइड्रोजन: यह पृथ्वी पर सबसे प्रचुर मात्रा में उपलब्ध तत्त्व है जिसका ऊर्जा घनत्व डीजल का लगभग तीन गुना होता है, लेकिन यह अपने शुद्ध रूप में दुर्लभ है।
    • हाइड्रोजन को उसकी उत्पादन तकनीक के आधार पर विभिन्न रंगों से नामित किया गया है—जैसे ब्लैक हाइड्रोजन का उत्पादन जीवाश्म ईंधन के उपयोग से होता है, जबकि पिंक हाइड्रोजन का उत्पादन विद्युत् अपघटन अथवा इलेक्ट्रोलिसिस के माध्यम से होता है जिसमें परमाणु ऊर्जा स्रोतों से प्राप्त ऊर्जा का उपयोग किया जाता है।
    • ग्रीन हाइड्रोजन एक ज़ीरो-कार्बन ईंधन है जो विद्युत् अपघटन के माध्यम से उत्पादित किया जाता है, जहाँ जल को हाइड्रोजन और ऑक्सीजन में विभाजित करने के लिये नवीकरणीय ऊर्जा (पवन या सौर ऊर्जा) का उपयोग किया जाता है।
  • ग्रीन हाइड्रोजन की आवश्यकता: ग्रीन हाइड्रोजन जैसे प्राकृतिक संसाधनों के माध्यम से बिजली का उत्पादन 'नेट ज़ीरो' उत्सर्जन के लक्ष्य की प्राप्ति की दिशा में एक बड़ा कदम होगा।
    • अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (International Energy Agency- IEA) के अनुसार भारत, चीन, संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोपीय संघ के बाद विश्व का चौथा सबसे बड़ा ऊर्जा उपभोक्ता देश है और वर्ष 2030 तक यह यूरोपीय संघ को पीछे छोड़ तीसरा सबसे बड़ा ऊर्जा उपभोक्ता देश बन जाएगा।
      • इस उच्च स्तर के ऊर्जा उपभोग वाले देश के लिये, ऊर्जा के नवीकरणीय स्रोत की ओर संक्रमण/अवस्थानांतरण वर्तमान जलवायु भेद्यताओं को देखते हुए और भी महत्त्वपूर्ण हो जाता है।

ग्रीन हाइड्रोजन के अंगीकरण के लिये की गई पहलें:

  • भारतीय रेलवे ने हाल ही में एक मौजूदा डीजल इंजन के रेट्रोफिटिंग द्वारा हाइड्रोजन-ईंधन सेल प्रौद्योगिकी-आधारित ट्रेन चलाने के देश के पहले प्रयोग की घोषणा की है।
  • सऊदी अरब भी सौर और पवन ऊर्जा उत्पादन के लिये अपने निष्क्रिय लैंड बैंक्स (Idle-Land-Banks) का उपयोग कर अक्षय ऊर्जा के निर्माण की योजना को प्राथमिकता दे रहा है।
    • यह देश के उत्तरी-पश्चिमी भाग में एक बड़ी भूमि (लगभग बेल्जियम के आकार की) को दायरे में लेते हुए 5 बिलियन डॉलर की वृहत ग्रीन हाइड्रोजन निर्माण इकाई स्थापित करने की दिशा में कार्यरत है।
  • एशिया-प्रशांत उपमहाद्वीप में हाइड्रोजन नीति निर्माण के मामले में जापान और दक्षिण कोरिया सबसे आगे हैं।
  • जापान की ‘बेसिक हाइड्रोजन स्ट्रैटेजी’ ने वर्ष 2030 तक के लिये देश की कार्ययोजना निर्धारित कर रखी है, जिसमें एक अंतर्राष्ट्रीय आपूर्ति शृंखला स्थापित करना भी शामिल है।

संबद्ध समस्याएँ

  • महँगा स्रोत: ग्रीन हाइड्रोजन की उत्पादन लागत को एक प्रमुख बाधा माना गया है।
    • अंतर्राष्ट्रीय अक्षय ऊर्जा एजेंसी (International Renewable Energy Agency- IREA) के अनुसार, इस ‘हरित ऊर्जा स्रोत' की उत्पादन लागत वर्ष 2030 तक लगभग 1.5 डॉलर प्रति किलोग्राम के आसपास होगी (निरंतर धूप और विशाल अप्रयुक्त भूमि वाले देशों के लिये)।
  • वृहत निवेश की आवश्यकता: ईंधन के रूप में और उद्योगों में हाइड्रोजन का व्यावसायिक उपयोग कर सकने के लिये ऐसी प्रौद्योगिकी के अनुसंधान एवं विकास और हाइड्रोजन के उत्पादन, भंडारण, परिवहन और माँग निर्माण के लिये बुनियादी ढाँचे के निर्माण हेतु भारी निवेश की आवश्यकता होगी।
  • इलेक्ट्रोलाइज़र की उपलब्धता: इलेक्ट्रोलाइज़र (एक उपकरण जो बिजली का उपयोग कर जल को H2 और O2 में विभाजित करता है) की उपलब्धता में कमी ग्रीन हाइड्रोजन की अनुमानित आवश्यकता की पूर्ति की राह में बाधा बन सकती है।
    • हरित हाइड्रोजन की कुल उत्पादन लागत में इलेक्ट्रोलाइज़र की लागत सबसे अधिक हिस्सेदारी रखती है।
    • ऐसे इलेक्ट्रोलाइज़र्स की विनिर्माण क्षमता को 15,000-20,000 करोड़ रुपये के निवेश की आवश्यकता पड़ सकती है।

आगे की राह

  • विकेंद्रीकृत उत्पादन: इलेक्ट्रोलाइज़र तक अक्षय ऊर्जा की खुली पहुँच के माध्यम से विकेंद्रीकृत हाइड्रोजन उत्पादन को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
    • विकेंद्रीकृत हाइड्रोजन उत्पादन हेतु चौबीस घंटे अक्षय ऊर्जा आपूर्ति तक पहुँच सुनिश्चित करने के लिये तंत्र विकसित किया जाना चाहिये।
  • व्हीलिंग इलेक्ट्रिसिटी: ट्रकों द्वारा हाइड्रोजन के परिवहन की तुलना में यह अधिक व्यवहार्य विकल्प है।
    • उदाहरण के लिये, कच्छ के सौर संयंत्र से वडोदरा की रिफाइनरी तक बिजली की व्हीलिंग ट्रकों का उपयोग कर हाइड्रोजन की आपूर्ति की तुलना में परिवहन लागत को 60% तक कम कर सकती है।
  • हाइड्रोजन की ब्लेंडिंग: व्यवहार्यता अंतर के आधार पर तेल शोधन और उर्वरकों जैसे मौजूदा अनुप्रयोगों के लिये ‘ग्रे हाइड्रोजन’ के साथ ‘ग्रीन हाइड्रोजन’ के एक निश्चित प्रतिशत की ब्लेंडिंग करना।
    • तेल शोधन और उर्वरक जैसे हाइड्रोजन अनुप्रयोगों की नई ग्रीनफील्ड क्षमताओं को भविष्य की एक कट-ऑफ तिथि से केवल ग्रीन हाइड्रोजन का उपयोग करने के लिये अनिवार्य करना (दीर्घकालिक लॉक-इन से बचने के लिये)।
  • क्षेत्रीय सहयोग: भारत को तटीय भारत से ग्रीन हाइड्रोजन के निर्यात के लिये दक्षिण कोरिया, जापान और सिंगापुर जैसे देशों के साथ एक क्षेत्रीय गठबंधन का निर्माण करना चाहिये ताकि उन देशों को उनकी शुद्ध-ज़ीरो महत्त्वाकांक्षाओं की पूर्ति में सहायता मिल सके।

निष्कर्ष

ग्रीन हाइड्रोजन के माध्यम से बिजली उत्पादन 1.5 डिग्री सेल्सियस के नीचे बने रहने के लिये 'नेट-ज़ीरो' उत्सर्जन के लक्ष्य की प्राप्ति हेतु एक व्यवहार्य समाधान होगा। यह पारंपरिक जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता को कम करने की दिशा में भी एक बड़ा कदम होगा।

यह उपयुक्त समय है कि शेष विश्व के साथ कदम से कदम मिलाते हुए हम स्वच्छ ऊर्जा, अर्थव्यवस्था को कार्बन मुक्त करने और अगली पीढ़ियों के लिये पर्यावरण के अनुकूल एवं सुरक्षित ईंधन के रूप में 'ग्रीन हाइड्रोजन' को अपनाने की ओर आगे बढ़ें।

अभ्यास प्रश्न: ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोत के रूप में ग्रीन हाइड्रोजन ग्लोबल वार्मिंग और ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन की समस्या का चिरप्रतीक्षित समाधान हो सकता है। चर्चा कीजिये।

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