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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

प्राकृतिक अवसंरचना का महत्त्व

  • 20 May 2017
  • 10 min read

संदर्भ
उल्लेखनीय है कि प्राकृतिक आपदाओं से प्रतिवर्ष काफी नुकसान होता है परन्तु फिर भी प्राकृतिक आपदाओं से बचाव करने हेतु अपनाए जाने वाले उपायों को लेकर कई चिंताएँ बनी हुई हैं| यह प्रश्न विचारणीय है कि प्राकृतिक अवसंरचना का उपयोग करके पर्यावरण या मानव समाज का संरक्षण किया जा सकता है अथवा नहीं|

महत्वपूर्ण तथ्य 

  • वर्ष 1995 से 2015 के दौरान भारत में लगभग 805 मिलियन लोग 288 प्रकार की मौसम संबंधी आपदाओं से प्रभावित हुए थे| इस प्रकार के ज़ोखिम और नुकसान से बचाव करने के लिये आज प्राकृतिक अवसंरचनाओं पर बखूबी ध्यान दिया जा रहा है|
  • विभिन्न प्रकार की आपदाओं से संरक्षण करने के लिये अपनाए जाने वाले उपाय-

→ तूफानों से तटों का बचाव करने के लिये बनाए गए तटीय पारिस्थितिक तंत्र (जैसे- मैंग्रूव,प्रवाल भित्ति)|
→ जल की गुणवत्ता को बनाए रखने के लिये जल का पुनर्संग्रहण|
→ कार्बन को कम करने के लिये वनारोपण|
→ परागकणों के लिये कीटों के निवासों का नवीकरण अथवा संरक्षण|
→ दूषित मृदा और जल को प्रदूषण रहित बनाने के लिये फायटोरेमिडिऐसन 

  • प्राकृतिक अवसंरचना उपायों का उपयोग विभिन स्तरों पर किया जाता है| इन स्तरों में भवनों से लेकर ग्रामीण, शहरी, क्षेत्रीय, तटीय और समुद्री क्षेत्र शामिल है|
  • स्थानीय स्तर पर अपनाये जाने वाले वाले प्राकृतिक अवसंरचना के उपायों में पारगम्य पैदल पथ, वर्षा जल संचयन प्रणाली, वनस्पति लगाना तथा वर्षा जल का संग्रहण करने वाले बगीचे शामिल हैं जिनका उपयोग शहरों और औद्योगिक पार्कों में तूफानी जल वाहक प्रणाली (stormwater conveyance systems ) को संतुलित करने के लिये किया जाता है| वर्षा जल संग्रहण करने वाले वाले बगीचे वर्षा जल को अवशोषित कर लेते हैं और इस प्रकार ये सतही बाढ़ को रोकने में सहायता करते हैं व अपरदन से भी बचाव करते हैं|
  • प्राकृतिक अवसंरचना में आर्द्र-भूमियों को शामिल किया जाता है जिनका उपयोग औद्योगिक जल और अपशिष्ट जल के निपटान में किया जाता है जिससे ये परंपरागत अपशिष्ट जल निपटान अवसंरचना को प्रतिस्थापित कर सकते हैं| ओएस्टर भित्ति और समुद्री घास अपरदन में कमी करने तथा तटीय क्षेत्रों को तूफानों से बचाने में सहायक हैं| इसके अतिरिक्त ये समुद्र के दूषित पानी को भी छान सकते है तथा स्थानीय मछलीपालन को भी बढ़ावा दे सकते हैं|
  • प्राकृतिक अवसंरचना जल प्रदूषण को कम करने में सहायता करती है जिससे परंपरागत जल उपचार संयंत्रों की लागत कम हो जाती है अन्यथा इस जल को परंपरागत जल उपचार संयत्रों से गुजारना पड़ता है तथा इसकी लागत अधिक होती है|
  • कई शहरों में प्राकृतिक अवसंरचना के उपायों पर आधारित जल कोष बनाए गए हैं जिसमें जल के शुद्धिकरण की लागत को कम करके प्रतिवर्ष धन बचाया जाता है| प्राकृतिक अवसंरचना के उपायों के लिये आरम्भ में कम पूँजी की आवश्यकता होती है तथा इसकी मरम्मत की लागत भी कम होती है| इन उपायों के लिये प्रायः कुछ मानवीय संसाधनों की भी आवश्यकता होती ही|
  • जैसे ही प्राकृतिक अवसंरचना पर अधिक निवेश किया जाएगा तो इससे संबंधित कौशल की मांग में भी वृद्धि हो जाएगी जिससे रोज़गार के नए अवसरों का सृजन होगा| इसके अतिरिक्त, प्राकृतिक अवसंरचना नए प्राकृतिक संसाधनों पर आधारित उद्योगों(जैसे-वनिज्यी मच्छीपालन) में भी योगदान कर सकती है| 
  • प्राकृतिक अवसंरचना के उपायों के तौर पर व्यवसायों के संचालन के लिये सामाजिक लाइसेंस मुहैया कराया जा सकता है तथा लोगों के स्वास्थ्य की देखभाल की जा सकती है| उदाहरण के लिये, पार्क और पारगम्य पैदल पथ ध्वनि प्रदूषण को कम करते हैं| प्राकृतिक अवसंरचना में निवेश करने से भूमियों के सौन्दर्य में हुई बढ़ोतरी से संपत्ति मूल्यों में वृद्धि होगी|
  • इस समय भारत प्रगति की ओर अग्रसर हो रहा है| इसने सतत विक्स लक्ष्यों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता जाहिर की है तथा पेरिस जलवायु समझौते पर हस्ताक्षर किये हिन्| प्राकृतिक अवसंरचना का प्रतिचित्रण यह सुनिश्चित करने के लिये आवश्यक हो गया है कि उनकी मूल्य को विभिन्न क्षेत्रों में बनने वाली नीतियों और न्यायनिर्णयन में भी नजरअंदाज़ नहीं किया गया है| उदाहरण के लिये, एक जल ऊर्जा कंपनी की वन के जलाशय में निर्भरता हैं परन्तु यदि वनोंमूलन किया जाता है तो इस कंपनी को प्रतिवर्ष इसकी मरम्मत पर अधिक खर्च करना पड़ेगा जिससे कंपनी को नुकसान पहुँचेगा|
  • व्यवसायियों के पास यह अवसर है कि वे सतत विकास लक्ष्यों मुख्यतः एसडीजी 9(अनुकूल अवसंरचना), एसडीजी 13 ( जलवायु परिवर्तन) और एसडीजी 15(मृदा अपरदन में कमी) में योगदान करें| 
  • वैश्विक रूप से अवसंरचना पर प्रतिवर्ष ट्रिलियन डॉलर खर्च किये जाते हैं| इसका कुछ निवेश यदि प्राकृतिक अवसंरचना पर कर दिया जाए तो यह नया संचालक तथा विश्व स्तर पर पर्यावरणीय वित्त का प्राथमिक स्रोत बन सकता है| सभी देशों को यूरोप के हरित अवसंरचना रणनीति के समान ही राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय रणनीतियों को लागू तथा उनका विकास कर सकते हैं|
  • इसका निर्णय लेने वालों के पास कई साधन और सूचनाएँ होंगी जैसे-प्राकृतिक पूँजी प्रोटोकॉल, विश्व बैंक वेव्स कार्यक्रम और व्यवसायों के लिये डब्ल्यूबीसीएसडी प्राकृतिक अवसंरचना|
  • प्राकृतिक अवसंरचना के लिये कई देशों और नगरपालिकाओं में नियमाकीय दिशा-निर्देश बनाए गए हैं| कुछ शहरों में सरकार और कम्पनियां पारिस्थितिक सेवाओं के लिये भुगतान करती हैं ताकि वे महंगी जल उपचार सुविधाओं और प्रक्रियाओं के लिये भुगतान करने के बजाय स्वच्छ जल की आपूर्ति को ही सुरक्षित कर सकें|
  • इस प्रकार के कई तरीके अपनाये जा चुके हैं जबकि कई अभी शेष रह गए हैं| उपकरणों और भाषा का समांगीकरण तथा विभिन्न हितधारकों जैसे अकाउंटेंट, वैज्ञानिकों, सरकार, अर्थशास्त्रियों, गैर-सरकारी संगठनों और कारोबारियों के मध्य सहयोग भी आवश्यक है| ये सहयोग बहुआयामिन दृष्टिकोणों,कई प्रक्रियाओं और साधनों का सृजन करेंगे जो सभी क्षेत्रों में सतत विकास को बढ़ावा देंगे|
  • अब भारत को प्राकृतिक अवसंरचना निर्माण करना होगा क्योंकि भारत ने ऐसे प्राकृतिक विश्व को लेकर प्रतिबद्धता जाहिर की थी जो समाज को लाभान्वित करे| विकसित तथा विकासशील दोनों प्रकार के देशों में देशों और शहरों के मध्य सूचना सहयोग को मजबूत करने की भी आवश्यकता है|

क्या है प्राकृतिक अवसंरचना?
प्राकृतिक अवसंरचना योजनाबद्ध अथवा कम प्राकृतिक संरचना को कहा जाता है जिससे मानव को लाभ प्राप्त हो सकते हैं| यह अवसंरचना उस तरीके को भी प्रतिस्थापित कर सकती है जिससे परंपरागत रूप से अवसंरचना निर्माण किया जाता है| प्राकृतिक अथवा हरित अवसंरचना वन, कृषि भूमि, ज्वारनदमुख, तटीय भूमि अथवा आर्द्र भूमियां आदि हो सकती हैं|

निष्कर्ष
अंततः यह आवश्यक है कि सार्वजनिक संस्थानों और निजी कंपनियों में सहयोगी वातावरण का निर्माण तथा विकास करके ऐसी पहलों को सफल बनाया जाए क्योंकि समुदायों के साथ पृकृति को समन्वित करने के काल्पनिक तरीके प्राकृतिक अवसंरचना के निर्माण में सहायक होंगे|

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