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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

IMEC परियोजना के महत्त्व

  • 21 Sep 2023
  • 17 min read

यह एडिटोरियल 18/09/2023 को ‘हिंदुस्तान टाइम्स’ में प्रकाशित “IMEC promises a new model of globalisation” लेख पर आधारित है। इसमें भारत के लिये IMEC परियोजना के महत्त्व के बारे में चर्चा की गई है और विचार किया गया है कि यह किस प्रकार BRI का एक विकल्प प्रदान करता है तथा भारत इसकी सफलता में क्या भूमिका निभा सकता है।

प्रिलिम्स के लिये:

भारत-मध्य पूर्व-यूरोप कॉरिडोर (IMEC), G20, बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI), खाड़ी सहयोग परिषद (GCC), स्वेज़ नहर, अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन कॉरिडोर (INSTC), भारत-इज़रायल-यूएई- यूएस (I2U2) समूह

मेन्स के लिये:

IMEC और वैश्वीकरण, भारत के लिये IMEC का महत्त्व, IMEC बनाम BRI, IMEC को सफल बनाने में भारत की भूमिका।

प्रस्तावित भारत-मध्य पूर्व-यूरोप गलियारे (India-Middle East–Europe Corridor-IMEC) के रूप में अंतर-महाद्वीपीय अवसंरचना के निर्माण के लिये एक वैकल्पिक मॉडल लॉन्च करना नई दिल्ली में आयोजित G20 शिखर सम्मेलन, 2023 की प्रमुख उपलब्धियों में से एक रहा।

IMEC को वर्ष 2013 में चीन द्वारा बेल्ट एंड रोड पहल (Belt and Road Initiative- BRI) के अनावरण करने के बाद से विश्व की सबसे साहसिक भू-आर्थिक पहल मानना गलत नहीं होगा।

अपने पैमाने, दायरे और प्रभाव में IMEC एक ‘गेम-चेंजर’ सिद्ध हो सकता है क्योंकि यह वैश्वीकरण को कम चीन-केंद्रित बनाने के लिये संसाधनों को जुटाने और आपूर्ति शृंखलाओं, उत्पादन नेटवर्क एवं प्रभाव क्षेत्रों (zones of influence) के पुनर्निर्माण के लिये अत्यधिक सक्षम भागीदार देशों को एक साथ लाता है।

भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा (IMEC) क्या है?

  • परिचय:
    • IMEC परियोजना पर नई दिल्ली में G20 शिखर सम्मेलन के दौरान हस्ताक्षर किये गए और इसके भारत के लिये महत्त्वपूर्ण भू-राजनीतिक एवं आर्थिक निहितार्थ है।
    • इसके 8 हस्ताक्षरकर्ता देशों में शामिल हैं: भारत, संयुक्त राज्य अमेरिका, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, यूरोपीय संघ, इटली, फ्राँस और जर्मनी।
  • संघटक:
    • इसमें रेलमार्ग, शिप-टू-रेल नेटवर्क और सड़क परिवहन मार्ग शामिल होंगे जो दो गलियारों—पूर्वी (East corridor) और उत्तरी (North corridor) के बीच फैले होंगे। पूर्वी गलियारा भारत को अरब की खाड़ी से जोड़ेगा, जबकि उत्तरी गलियारा अरब की खाड़ी को यूरोप से जोड़ेगा।
    • IMEC रेल एवं शिपिंग विकल्पों के अलावा बिजली और ऊर्जा (गैस एवं हाइड्रोजन) पाइपलाइन कनेक्टिविटी का विकल्प भी प्रदान करेगा।

भारत के लिये IMEC का क्या महत्त्व है?

  • समग्र आर्थिक विकास: IMEC भारत के लिये द्रुत व्यापार, परिवहन और ढाँचागत विकास के लिये तथा रणनीतिक रूप से संरेखित देशों को साथ लाते हुए एक क्षेत्रीय संरचना के निर्माण के लिये एक साधन प्रस्तुत करता है।
    • IMEC के तहत भारत के इंजीनियरिंग वस्तुओं, ग्रीन हाइड्रोजन और ग्रीन अमोनिया के निर्यात को व्यापक रूप से लाभ पहुँच सकता है।
  • यूरोपीय संघ (EU) के साथ व्यापार को सुदृढ़ करना: IMEC सुदूर अवस्थित बंदरगाहों की लिंकिंग और जहाज़, अंडर-सी केबल, रेल एवं सड़क के माध्यम से विभिन्न देशों को जोड़ने के अपने मल्टीमॉडल डिज़ाइन के माध्यम से भारत और यूरोप के बीच आर्थिक आदान-प्रदान की समयावधि में 40% की कटौती कर सकता है।
    • चूँकि EU भारत का दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है, इसलिये यह समझौता EU के साथ भारत के व्यापार को बढ़ावा दे सकता है।
    • यदि खाड़ी सहयोग परिषद (Gulf Cooperation Council- GCC) और यूरोपीय संघ के साथ भारत का मुक्त व्यापार समझौता (FTA) संपन्न होता है, तो IMEC इन तीनों भागीदारों के आर्थिक भाग्य के लिये एक बड़ा संस्थागत उत्प्रेरक सिद्ध होगा।
  • मध्य-पूर्व में प्रभाव का विस्तार: मध्य-पूर्व में भारतीय प्रवासियों की बड़ी उपस्थिति के साथ यह परियोजना भारत के लिये व्यापक आर्थिक अवसर का वादा करती है, जहाँ मध्य-पूर्व न केवल भारत की ऊर्जा सुरक्षा में योगदान करता है बल्कि भारतीय वस्तुओं के लिये एक प्रमुख बाज़ार भी है।
    • यह परियोजना भारत की रणनीतिक स्थिति को सुदृढ़ कर सकती है, हिंद महासागर क्षेत्र में इसके प्रभाव को बढ़ा सकती और भूमध्यसागर एवं अटलांटिक क्षेत्रों में इसकी पहुँच का विस्तार कर सकती है।
  • व्यापार समय में कमी: यह परियोजना भारत, मध्य-पूर्व और यूरोप के बीच पारगमन समय में कमी के संदर्भ में विभिन्न रणनीतिक एवं आर्थिक लाभ प्रदान करेगी और इससे भी महत्त्वपूर्ण यह कि यह परियोजना पाकिस्तान एवं अफगानिस्तान के संकटग्रस्त व्यापार मार्गों को बायपास करते हुए सदियों पुराने ‘स्पाइस रूट’ (spice route) को पुनर्जीवित करने में भारत की मदद करेगी।
    • वर्तमान में भारत के लिये यूरोप तक माल पहुँचाने का एकमात्र मार्ग स्वेज़ नहर है।
  • BRI के प्रभाव को कम करना: एक अन्य मुख्य बिंदु यह है कि चीन—जो प्रायः केंद्रीय भूमिका में रहने की प्रवृत्ति रखता है, नियम एवं मानक निर्धारित करता है और जहाँ भी वह मौजूद है, वहाँ आर्थिक प्रवाह पर हावी रहता है (चाहे BRI के माध्यम से या RCEP के माध्यम से)—IMEC से बाहर रखा गया है।
    • हालाँकि कुछ IMEC सदस्य BRI के भी अंग हैं, IMEC की सफलता BRI के लगातार बढ़ते प्रभाव को कम कर सकती है।

IMEC चीन के BRI से कैसे अलग है?

  • IMEC की परिकल्पना में राष्ट्रों की संप्रभुता का सम्मान करना अंतर्निहित है; BRI (जिसमें चीन केंद्रीय भूमिका रखता है) के विपरीत IMEC सभी संबंधित पक्षों के परामर्श पर आधारित है।
  • BRI को चीन के हितों की पूर्ति करने के लिये डिज़ाइन किया गया है, जबकि IMEC क्षेत्र में सभी देशों के साझा लाभ के लिये है।
  • BRI का लक्ष्य केवल चीनी कंपनियों के लिये रोज़गार पैदा करना है, जबकि IMEC का लक्ष्य स्थानीय आबादी के लिये रोज़गार पैदा करना है।
  • जबकि BRI के अंतर्गत अत्यधिक उच्च दरों पर ऋण प्रदान किया जाता है, IMEC सर्वोत्तम अंतर्राष्ट्रीय ऋण अभ्यासों का पालन करने का प्रस्ताव करता है और इस प्रकार चीन की ‘ऋण जाल कूटनीति’ (debt trap diplomacy) का एक बेहतर विकल्प पेश करता है।

IMEC की सफलता के मार्ग की संभावित चुनौतियाँ :

  • कार्यान्वयन की चुनौतियाँ:
    • पहली और सबसे महत्त्वपूर्ण चुनौती है गलियारे/कॉरिडोर की स्थापना के लिये एक ठोस योजना का निर्माण करना। इस पैमाने की महत्त्वाकांक्षी परियोजना को पर्याप्त निवेश और अवसंरचना के त्वरित निर्माण में चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।
  • समन्वय की चुनौतियाँ:
    • विभिन्न देशों में रेलवे लाइनों, सड़कों और बंदरगाह संपर्क का नेटवर्क विकसित करने के लिये उच्च स्तरीय समन्वय एवं योजना-निर्माण की आवश्यकता होगी।
  • संलग्न देशों की अपनी भू-राजनीतिक चुनौतियाँ:
    • यह गलियारा जॉर्डन और इज़रायल से होकर गुज़रेगा, जो लंबे समय से भू-राजनीतिक चुनौतियों का सामना कर रहे हैं और उन्हें आर्थिक एवं कूटनीतिक चाल के बेहतर संतुलन की आवश्यकता होगी।
  • BRI के साथ प्रतिद्वंद्विता:
    • IMEC को निस्संदेह चीन के BRI के एक जवाब के रूप में देखा जा रहा है। दोनों के बीच प्रतिस्पर्द्धा का होना अपरिहार्य है, क्योंकि दोनों पहलों के उद्देश्य एकसमान हैं।

IMEC परियोजना को सुदृढ़ करने के लिये क्या उपाय किये जा सकते हैं?

  • अमेरिका के साथ राजनयिक संबंधों का लाभ उठाना:
    • अमेरिका भौगोलिक दृष्टि से IMEC के क्रियान्वयन क्षेत्र के दायरे से बाहर है, लेकिन कूटनीतिक रूप से वह IMEC का एक महत्त्वपूर्ण चालक है जो यूरोप, मध्य-पूर्व और दक्षिण एशिया में अपने विभिन्न औपचारिक सहयोगियों एवं रणनीतिक साझेदारों को एक साथ ला सकता है।
      • वर्तमान परिदृश्य में, अमेरिका द्वारा IMEC का संचालन मूल्यवान है क्योंकि इसी तरह जॉर्डन और इज़रायल जैसे बीच के पारगमन देशों को अन्य देशों के साथ एकीकृत किया जा सकता है।
      • भारत-इज़रायल-यूएई-यूएस (I2U2) समूह और सऊदी अरब से इज़रायल को औपचारिक मान्यता दिलाने का अमेरिका का रणनीतिक लक्ष्य भी किसी न किसी रूप में IMEC के विचार से संबद्ध है।
  • वैश्विक आउटरीच का विस्तार
  • इससे कैस्पियन सागर और भूमध्य सागर के बीच के विशाल भू-भाग में व्यापार को सुविधाजनक बनाने में मदद मिलेगी।
  • इससे भी महत्त्वपूर्ण यह है कि IMEC बिना किसी अतिरिक्त लागत के ऋण में डूबे अफ्रीका के लिये नए कनेक्टिविटी विकल्प प्रदान कर है और पहले से निर्मित परिसंपत्तियों का बेहतर उपयोग सुनिश्चित कर सकता है।
  • लैंड-ब्रिजिंग संबंधी आवश्यकताएँ:
  • क्षमता बढ़ाने के लिये क्रियान्वित बड़ी अवसंरचना परियोजनाएँ विकास के विभिन्न चरणों में हैं।
  • भूमि सेतुबंधन या लैंड-ब्रिजिंग (Land-Bridging) आवश्यकताओं पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है। खाड़ी और भूमध्यसागर क्षेत्र के सभी प्रमुख बंदरगाहों पर अनुपस्थित रेल लिंक, टर्मिनल और अंतर्देशीय कंटेनर डिपो (ICDs) का निर्माण किया जाना महत्त्वपूर्ण है।
  • कोई भी मेगा ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर केवल एंड-टू-एंड ट्रैफिक पर निर्भर रहकर व्यवहार्य सिद्ध नहीं हो सकता।
    • इसलिये, IMEC को फीडर रेल मार्गों को विकसित करने के माध्यम से आंतरिक इलाकों को जोड़ने पर भी विचार करना चाहिये, जिन्हें फिर मुख्य गलियारे से जोड़ा जा सकता है। इसका सभी हितधारकों पर गुणक प्रभाव पड़ेगा।
  • भारत की भूमिका:
    • एक क्षेत्रीय नेता के रूप में भारत के लिये यह एक ऐतिहासिक क्षण है जो अपने तकनीकी नेतृत्व और दूरदर्शी दृष्टिकोण के संयोजन के माध्यम से संपूर्ण क्षेत्रीय अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ा सकता है।
    • भारत को सार्वजनिक और निजी वित्तपोषण के मिश्रण का पक्षसमर्थन करना चाहिये क्योंकि कुछ परियोजनाएँ सार्वजनिक सब्सिडी या अनुदान के बिना वित्तीय रूप से व्यवहार्य नहीं भी हो सकती हैं। भारत अपने सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के माध्यम से GCC, जॉर्डन और इज़रायल की रेल परियोजनाओं का समर्थन कर सकता है।
    • भारत को अपने घरेलू उपभोग की आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिये मध्य-पूर्व से भारत तक एक समर्पित गैस पाइपलाइन बिछाने के प्रस्ताव पर भी विचार करना चाहिये।
    • इन सभी बातों के अलावा, भारत को अपने राष्ट्रीय हितों को ध्यान में रखते हुए उभरती भू-राजनीति के बीच तटस्थ लेकिन सतर्क बने रहना चाहिये, जबकि उसे INSTC, स्वेज़ नहर, ‘आर्कटिक रूट वाया व्लादिवोस्तोक’ (Arctic Route via Vladivostok) आदि अन्य परिवहन और ऊर्जा गलियारों के प्रति भी प्रतिबद्ध एवं संलग्न बने रहना चाहिये।

निष्कर्ष:

IMEC की मुख्य विशेषता यह है कि इसमें संस्थापक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर करने वाले सभी आठ पक्षों के लिये कुछ न कुछ आकर्षण मौज़ूद है। निस्संदेह, बहुपक्षीय सीमा-पार और महासागर-पार कनेक्टिविटी प्रयास के लिये राजनयिक समन्वय एवं सर्वसम्मति प्रबंधन की भी आवश्यकता है।

चीन के एकपक्षीय BRI की तुलना में IMEC के क्रियान्वयन की रफ़्तार कम हो सकती है क्योंकि यह अपेक्षाकृत एक बड़ा समूह है, लेकिन यह तथ्य कि भारत और उसके रणनीतिक साझेदार अब IMEC के माध्यम से भू-आर्थिक मानचित्र पर एक शक्ति के रूप में उपस्थित हुए हैं, एक सकारात्मक शुरुआत है।

अभ्यास प्रश्न: ‘‘भारत-मध्य पूर्व-यूरोप गलियारे (IMEC) में भारत, पश्चिम एशिया और यूरोप को विकास के सामूहिक पथ पर अभूतपूर्व पैमाने पर एकीकृत करने की अविश्वसनीय क्षमता है।’’ चर्चा कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न (PYQs):  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. कभी-कभी समाचारों में देखा जाने वाला बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव का उल्लेख किसके संदर्भ में किया जाता है? (2016)

(a) अफ्रीकी संघ
(b) ब्राज़ील
(c) यूरोपीय संघ
(d) चीन

उत्तर: (d)

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