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विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

AYUSH और आधुनिक चिकित्सा का एकीकरण

  • 12 Mar 2024
  • 21 min read

यह एडिटोरियल 11/03/2024 को ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित “A Dialogue Among Healers” लेख पर आधारित है। इसमें रोगी देखभाल की बेहतरी के लिये आधुनिक चिकित्सा और आयुष चिकित्सकों के बीच एकीकृत चिकित्सा की दिशा में सहयोग और आगे बढ़ने की आवश्यकता के बारे में चर्चा की गई है।

प्रिलिम्स के लिये:

AYUSH, विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO), वैश्विक पारंपरिक चिकित्सा शिखर सम्मेलन, आयुर्वेद, होम्योपैथी, कैंसर

मेन्स के लिये:

AYUSH से संबंधित पहल, पारंपरिक चिकित्सा का महत्त्व।

आधुनिक चिकित्सा से संलग्न चिकित्सकों से आग्रह किया जा रहा है कि वे पारंपरिक या वैकल्पिक चिकित्सा प्रणालियों (AYUSH) के साथ कार्य करने के लिये अधिक खुला रुख रखें और रोगियों के व्यापक हित में एकीकृत चिकित्सा की ओर आगे बढ़ें। यह विचार सैद्धांतिक रूप से तो आकर्षक है, लेकिन इससे संलग्न व्यावहारिक मुद्दों की पड़ताल करना उपयुक्त होगा। एकीकरण के स्तर के आधार पर, चिकित्सा की इन दो प्रणालियों के अस्तित्व के विभिन्न परिदृश्यों का पता लगाया जा सकता है।

हाल के समय में आयुष दवाओं और पूरकों (सप्लीमेंट्स) के उत्पादन में तेज़ वृद्धि देखी गई है। इस क्षेत्र का राजस्व वर्ष 2014 में 3 बिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर वर्ष 2020 में 18 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया। वर्ष 2023 में 24 बिलियन अमेरिकी डॉलर की अनुमानित वृद्धि ने इसके वित्तीय प्रभाव को प्रदर्शित किया है। इसके अलावा, आयुष-आधारित स्वास्थ्य एवं कल्याण केंद्रों को व्यापक प्रतिक्रिया मिल रही है जहाँ इसके 7,000 परिचालन केंद्रों में वर्ष 2022 तक 8.42 करोड़ मरीजों ने स्वास्थ्य सेवा प्राप्त की थी। मरीजों ने 2022 तक सेवाओं का लाभ उठाया। आधुनिक स्वास्थ्य देखभाल प्रणालियों में इसके एकीकरण में भी वृद्धि देखी जा रही है।

चिकित्सा की पारंपरिक प्रणालियों की सकारात्मक विशेषताओं में शामिल हैं:

  • विविधता और लचीलापन;
  • अभिगम्यता;
  • वहनीयता;
  • आम लोगों के एक बड़े वर्ग द्वारा व्यापक स्वीकृति;
  • बढ़ता आर्थिक मूल्य,
  • लोगों की स्वास्थ्य संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करने की व्यापक संभावनाएँ।

आधुनिक और आयुष चिकित्सा के विभिन्न संभावित हाइब्रिड मॉडल:

संभावित हाइब्रिड परिदृश्यों को मान्यता देते हुए उन्हें सरलता के लिये प्रतिस्पर्द्धी, सह-अस्तित्वकारी और सहकारी के रूप में संदर्भित किया जाएगा।

  • प्रतिस्पर्द्धी मॉडल (Competitive Model):
    • इस मॉडल में चिकित्सा की दोनों प्रणालियाँ प्रतिद्वंद्विता प्रदर्शित करती हैं। इसमें व्यक्तिगत चिकित्सा पेशेवर अपनी इच्छानुसार कार्य कर सकते हैं, लेकिन प्रणालियों के स्तर पर या पेशेवर संघ के स्तर पर एक-दूसरे के दोष बताना भी शामिल होगा।
    • व्यावसायिक संघ/परिषद एक-दूसरे के विरुद्ध खड़े होंगे और मुकदमेबाजी शुरू करेंगे। दोनों प्रणालियाँ अपनी सामर्थ्य और अन्य प्रणालियों की कमज़ोरियों को इंगित कर मरीजों को अपने तंत्र में लाने के लिये प्रतिस्पर्द्धा करेंगी।
      • ये प्रभावशीलता, उनके उत्पादों के दुष्प्रभावों और व्यावसायिकता जैसे बाहरी कारकों से संबंधित हो सकते हैं। संक्षेप में, इसमें ‘ऑल इज़ फेयर इन वार’ के तर्ज पर प्रतिस्पर्द्धा होगी।
  • सह-अस्तित्वकारी मॉडल (Co-existence Model):
    • इस मॉडल में दोनों प्रणालियाँ एक-दूसरे की वैधता को मान्यता देंगी और यह सुनिश्चित करने के लिये स्पष्ट सीमाओं का निर्धारण करेंगी कि वे दूसरों के डोमेन या दायरे का अतिक्रमण किये बिना सह-अस्तित्व में बने रहें।
    • अधिकांश आधुनिक चिकित्सक मरीजों को आयुष उपचार प्राप्त करने या न करने के संबंध में निर्णय की स्वतंत्रता देते हैं। वे मरीज़ों को दवाएँ जारी रखने या उन्हें बंद करने की ज़िम्मेदारी स्वयं लेने की सलाह दे सकते हैं। यदि आयुष उपचार प्रभावी हो तो आधुनिक दवा की खुराक अपने आप कम हो जाएगी।
      • आयुर्वेद और होम्योपैथी चिकित्सक आमतौर पर मरीजों को सलाह देते हैं कि उनकी प्रणाली क तहत अपनी चिकित्सा शुरू करने से पहले वे आधुनिक दवाओं का सेवन बंद कर दें। इस मॉडल में इन चिकित्सकों को एक प्रतिष्ठान में सह-अवस्थित किया जा सकता है, जहाँ प्रत्येक थेरेपी की एक अलग प्रणाली होगी। हालाँकि, यहाँ कोई पारस्परिक रेफरल प्रणाली नहीं होगी।
  • सहयोग मॉडल (Cooperation Model):
    • यह आदर्श एकीकृत चिकित्सा मॉडल है जहाँ दोनों धाराएँ एक-दूसरे की अच्छी चीज़ों को स्वीकार करती हैं और रोगी को सर्वोत्तम संभव देखभाल प्रदान करने के लिये एक टीम के रूप में संयुक्त रूप से कार्य करती हैं। इसमें आधुनिक चिकित्सा के निवारक एवं प्रोत्साहक घटक में सुधार करने की क्षमता है जो कि अत्यधिक दवा-केंद्रित है।

हाइब्रिड मॉडल को अपनाने की राह की विभिन्न चुनौतियाँ:

  • दोनों प्रणालियों के बीच विश्वास की कमी:
    • ऐसे कई मरीज़ों के उदाहरण सामने आए हैं जिन पर एक चिकित्सा का अच्छा या बुरा नियंत्रण रहा था और जब उन्होंने वैकल्पिक उपचार की ओर रुख किया तो उनकी बीमारी और बिगड़ गई या उनमें सुधार आया।
      • इनमें से अधिकांश वास्तविक साक्ष्य हैं और किसी भी दृष्टिकोण को सही ठहराने के लिये इन्हें उद्धृत किया जा सकता है। लेकिन आयुष समर्थकों द्वारा मधुमेह या कैंसर के प्रभावी इलाज के दावों के समर्थन में पर्याप्त साक्ष्य नहीं दे सकने से फिर संदेह की उत्पत्ति होती है।
  • मौजूदा तकनीकी चुनौतियाँ:
    • तकनीकी चुनौती यह है कि आयुष एक विषमरूप या विविध समूह है और इनमें से प्रत्येक चिकित्सा प्रणाली से अलग-अलग संबोधित होने और अलग-अलग निर्णय लेने की आवश्यकता होगी। विभिन्न स्वास्थ्य स्थितियों के प्रबंधन एवं रोकथाम के लिये योग (Yoga) की प्रभावशीलता पर उपलब्ध साक्ष्यों में वृद्धि के परिणामस्वरूप आधुनिक चिकित्सा पेशेवरों के बीच इसकी स्वीकार्यता बढ़ रही है।
      • आयुर्वेद/होम्योपैथी आदि प्रणालियों में नुस्खा (prescription) विवाद का विषय बना रहेगा। उदाहरण के लिये, इस बारे में आशंकाएँ हैं कि आयुर्वेद द्वारा प्रस्तावित दोष-आधारित प्रबंधन, उन मानक प्रबंधन प्रोटोकॉल के साथ प्रभावी ढंग से कार्य कर सकेगा या नहीं जिन्हें आधुनिक चिकित्सा में आगे बढ़ाया जा रहा है।

दोष-आधारित प्रबंधन:

  • दोष-आधारित प्रबंधन आयुर्वेद की पारंपरिक भारतीय चिकित्सा प्रणाली में निहित स्वास्थ्य देखभाल का एक समग्र दृष्टिकोण है। इसमें किसी व्यक्ति के अद्वितीय संघटन या प्रकृति की पहचान करना शामिल है, जो तीन मूलभूत ऊर्जाओं या दोषों- वात, पित्त और कफ के संतुलन से निर्धारित होता है।
  • इस मूल्यांकन के आधार पर, इन दोषों के संतुलन को बनाए रखने या पुनर्स्थापित करने, स्वास्थ्य को बढ़ावा देने और बीमारी को रोकने के लिये आहार, जीवनशैली एवं हर्बल उपचार के संबंध में वैयक्तिकृत सलाह दी जाती है।
  • परिचालन संबंधी चुनौतियाँ:
    • परिचालन संबंधी चुनौतियों के संदर्भ में, टीम-आधारित दृष्टिकोण की सफलता के लिये टीम के सदस्यों को अपनी सीमाएँ पता होनी चाहिये और उस क्षेत्र में दूसरों की सामर्थ्य को स्वीकार करना चाहिये। आधुनिक चिकित्सा के चिकित्सकों को आयुष धाराओं के बारे में कोई जानकारी नहीं है और वे इस संबंध में कोई सूचित निर्णय लेने में अक्षम सिद्ध हो सकते हैं।
      • उन्हें आयुष चिकित्सकों की बातों को महज उनके दावों के आधार पर स्वीकार करना होगा, जो विश्वास की कमी को देखते हुए कठिन है। मरीजों के पास स्वयं इन निर्णयों के लिये पर्याप्त जानकारी नहीं होती है और उन्हें स्वयं के भरोसे छोड़ना उचित नहीं होगा।
  • विनियमन में चुनौतियाँ:
    • इस एकीकरण का सबसे चुनौतीपूर्ण पहलू इसका विनियमन होगा। कई आधुनिक चिकित्सक आयुर्वेदिक दवाओं की क्रिया पद्धति को समझे बिना ही उसकी सलाह दे देते हैं। यह स्वीकार्य नहीं है और इसी तरह आयुष चिकित्सकों को भी आधुनिक चिकित्सा का अभ्यास नहीं करना चाहिये।
      • विभिन्न चिकित्सा प्रणालियों का यह एकीकरण उचित तो प्रतीत होता है, लेकिन वर्तमान में इसका कार्यान्वयन अधिक नहीं हो रहा। ये विषय संबंधित व्यावसायिक परिषदों के अधिकार क्षेत्र में आते हैं। दुर्भाग्य से ये परिषदें पेशेवर जवाबदेही प्राप्त करने में भरोसा जगाने में अभी तक विफल रही हैं।

दो चिकित्सा प्रणालियों के एकीकरण के सुझाव:

  • बेहतर साक्ष्य की उपलब्धता सुनिश्चित करना:
    • पहला कदम यह होगा कि आयुष उपचार के लिये बेहतर साक्ष्य प्राप्त किया जाए। केवल यही भरोसे की कमी को दूर कर सकता है। इसके अलावा, इस अवसर का उपयोग आयुष में विद्यमान अप्रभावी उपचारों की समाप्ति के लिये किया जाए। यदि साक्ष्य उपलब्ध हो तो ऐसे समग्र मानक उपचार दिशानिर्देश का निर्माण करना संभव हो सकता है जो दोनों धाराओं के सर्वोत्तम अभ्यासों का संयोग करे।
      • आधुनिक चिकित्सा पर लागू साक्ष्य बेंचमार्क आयुष उपचारों पर भी समान रूप से लागू होना चाहिये। यह इस बहस के प्रमुख दोषों में से एक रहा है। यदि बाहरी विचारों से प्रभावित हुए बिना साक्ष्यों को देखा जाए तो कुछ गंभीर स्वास्थ्य स्थितियों के लिये आम सहमति बनाई जा सकती है। एक बड़े विमर्श में प्रवेश के लिये यह उपयुक्त आरंभिक बिंदु हो सकता है।
  • आधुनिक चिकित्सकों को आयुष की शिक्षा देना और आयुष चिकित्सकों को आधुनिक चिकित्सा के बुनियादी ज्ञान से संपन्न करना:
    • आयुर्वेद पाठ्यक्रम में कुछ आधुनिक चिकित्सा अवधारणाओं की शिक्षा दी जाती है। प्रश्न है कि क्या एमबीबीएस छात्रों को भी सभी आयुष विषय पढ़ाए जाने चाहिये? आयुष शिक्षा के साथ ऐसा एमबीबीएस पाठ्यक्रम अत्यंत जटिल हो जाएगा और इसमें कुछ विषयों पर अधिक बल देने का कभी न समाप्त होने वाला दबाव बना रहेगा।
      • एमबीबीएस में आयुष विषयों को जोड़ने से स्थिति और खराब हो जाएगी। एक तरीका यह हो सकता है कि इन्हें वैकल्पिक विषय के रूप में पढ़ाया जाए और इन विषयों की परीक्षा नहीं ली जाए। हालाँकि, इसमें फिर इस बात की पूरी संभावना है कि उन्हें पढ़ा ही नहीं जाएगा और इन्हें शामिल करने का उद्देश्य पूरा नहीं हो पाएगा।
  • एक सक्षम नियामक ढाँचा अपनाना:
    • एक सक्षम नियामक ढाँचे की आवश्यकता है जो विभिन्न प्रणालियों के चिकित्सकों के बीच सहयोग, संचार एवं रेफरल के लिये नियम/दिशानिर्देश स्थापित करे और जवाबदेही की स्पष्ट अभिव्यक्ति के साथ रोगियों के लिये समन्वित एवं सुरक्षित देखभाल सुनिश्चित करे। इसे स्वीकार्य हस्तक्षेप और इसके निर्धारण के तौर-तरीकों को परिभाषित करने की आवश्यकता होगी।
      • अन्य नियामक मुद्दे बीमा भुगतान, मुआवजे और औषधीय उत्पादों एवं दवाओं की गुणवत्ता से संबंधित होंगे। यह भारत में पहले से ही उपलब्ध स्वास्थ्य प्रौद्योगिकी मूल्यांकन ढाँचे के भीतर स्थापित हो सकता है।
  • राष्ट्रीय आयुष मिशन (NAM) में आधुनिक चिकित्सा पद्धतियों को एकीकृत करने की आवश्यकता :
    • राष्ट्रीय आयुष मिशन को आधुनिक चिकित्सा पद्धतियों के साथ एकीकृत करने से कई तरीकों से स्वास्थ्य सेवा वितरण की संवृद्धि हो सकती है:
      • आयुष प्रणालियाँ शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक पहलुओं पर विचार करते हुए समग्र स्वास्थ्य पर ध्यान केंद्रित करती हैं, जो आधुनिक चिकित्सा के रोग-केंद्रित दृष्टिकोण को पूरकता  प्रदान कर सकती है।
      • आयुष जीवनशैली में सुधार, आहार परिवर्तन और प्राकृतिक उपचारों के माध्यम से निवारक स्वास्थ्य देखभाल पर बल देता है, जिससे आधुनिक स्वास्थ्य देखभाल प्रणालियों पर बोझ कम होता है।
      • प्रणालियों का एकीकरण रोगियों को उपचार के व्यापक विकल्प प्रदान करता है, जिससे व्यक्तिगत प्राथमिकताओं और स्वास्थ्य स्थितियों के आधार पर वैयक्तिकृत देखभाल की अनुमति मिलती है।

राष्ट्रीय आयुष मिशन:

  • आरंभ:
    • इसे राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों के माध्यम से कार्यान्वयन के लिये 12वीं योजना के दौरान स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के तहत आयुष विभाग द्वारा सितंबर 2014 में लॉन्च किया गया।
    • अब इसे आयुष मंत्रालय द्वारा कार्यान्वित किया जा रहा है।
  • परिचय:
    • योजना में भारतीयों के समग्र स्वास्थ्य को बढ़ावा देने के लिये आयुष क्षेत्र का विस्तार करना शामिल है।
    • यह मिशन देश में, विशेष रूप से पिछड़े और दूर-दराज के क्षेत्रों में, आयुष स्वास्थ्य सेवाएँ/शिक्षा प्रदान करने के लिये राज्य/केंद्रशासित प्रदेश सरकारों के प्रयासों का समर्थन करने के माध्यम से स्वास्थ्य सेवाओं में विद्यमान अंतराल को संबोधित करता है।
  • राष्ट्रीय आयुष मिशन के घटक:
    • अनिवार्य घटक (Obligatory Components):
      • आयुष सेवाएँ
      • आयुष शैक्षणिक संस्थान
      • ASU&H औषधियों (आयुर्वेद, सिद्ध और यूनानी एवं होम्योपैथी) का गुणवत्ता नियंत्रण
      • औषधीय पौधे
    • लचीले घटक (Flexible Component):
      • योग और प्राकृतिक चिकित्सा सहित आयुष कल्याण केंद्र 
      • टेली-मेडिसिन
      • सार्वजनिक निजी भागीदारी सहित आयुष में नवाचार
      • IEC (Information, Education and Communication) गतिविधियाँ 
      • स्वैच्छिक प्रमाणन योजना: परियोजना आधारित आदि
  • अपेक्षित परिणाम:
    • बढ़ी हुई स्वास्थ्य सुविधाओं और दवाओं एवं प्रशिक्षित जनशक्ति की बेहतर उपलब्धता के माध्यम से आयुष स्वास्थ्य सेवाओं तक बेहतर पहुँच।
    • सुसज्जित आयुष शिक्षण संस्थानों की संख्या में वृद्धि के माध्यम से आयुष शिक्षा में सुधार लाना।
    • स्वास्थ्य देखभाल की आयुष प्रणालियों का उपयोग कर लक्षित सार्वजनिक स्वास्थ्य कार्यक्रमों के माध्यम से संचारी/गैर-संचारी रोगों को कम करने पर ध्यान केंद्रित करना।

आयुष से संबंधित विभिन्न योजनाएँ:

निष्कर्ष:

पारंपरिक आयुष पद्धतियों के साथ आधुनिक चिकित्सा का एकीकरण स्वास्थ्य देखभाल वितरण को बढ़ाने की अपार संभावनाएँ रखता है। जबकि प्रतिस्पर्द्धी मॉडल प्रतिद्वंद्विता और एक दूसरे के तिरस्कार को जन्म दे सकता है, सह-अस्तित्वकारी मॉडल परस्पर मान्यता एवं स्पष्ट सीमाओं की अनुमति देता है। सहयोग मॉडल एक आदर्श दृष्टिकोण है जहाँ दोनों प्रणालियाँ एक साथ कार्य करती हैं, हालाँकि यह विश्वास की कमी, तकनीकी अनुकूलता, परिचालन समन्वय और नियामक मुद्दों जैसी चुनौतियाँ प्रस्तुत करता है। आयुष उपचारों के लिये साक्ष्य अंतराल को दूर करना, सहयोग के लिये नियामक ढाँचे को सुनिश्चित करना और साक्ष्य-आधारित अभ्यासों को बढ़ावा देना एक अधिक एकीकृत एवं प्रभावी स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली का मार्ग प्रशस्त कर सकता है।

अभ्यास प्रश्न: आधुनिक चिकित्सा के साथ आयुष एवं पारंपरिक चिकित्सा का एकीकरण, भारत में स्वास्थ्य सेवा वितरण और रोगी से संबंधित सकारात्मक परिणामों में किस प्रकार सुधार ला सकता है?

  यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न   

मेन्स:

प्रश्न. भारत सरकार दवा के पारंपरिक ज्ञान को दवा कंपनियों द्वारा पेटेंट कराने से कैसे बचा रही है? (2019)

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