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मानव विकास की राह

  • 16 Sep 2022
  • 13 min read

यह एडिटोरियल 14/09/2022 को ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित “The solution to India’s stunted improvement on the Human Development Index: Improving access to quality education” लेख पर आधारित है। इसमें भारत में विकास के विभिन्न आयामों में व्याप्त असमानताओं और मानव विकास रिपोर्ट 2021-22 के संबंध में चर्चा की गई है।

संदर्भ:

मानव विकास (human development) के मूल में मानवता का विचार निहित है। मानव विकास का दृष्टिकोण महज अर्थव्यवस्था की समृद्धि को अधिकतम करने के रूप में प्रचलित आर्थिक विकास की धारणा से परे जाता है। मानव विकास की अवधारणा स्वतंत्रता के विस्तार, क्षमताओं में वृद्धि, सभी के लिये समान अवसर प्रदान करने और एक सुदीर्घ, स्वस्थ एवं समृद्ध जीवन सुनिश्चित करने पर अधिक केंद्रित है।

वर्ष 2030 की ओर आगे बढ़ते हुए, आकलन है कि भारत की कुल आबादी 1.5 बिलियन तक पहुँच जाएगी और वह विश्व में सर्वाधिक आबादी वाला देश बन जाएगा। उल्लेखनीय है कि जबकि भारत ने अपनी अर्थव्यवस्था का कई गुना विस्तार कर लिया है, मानव विकास के मामले में उसने अधिक प्रगति नहीं की है। मानव विकास रिपोर्ट (Human Development Report- HDI) 2021-2022 ने भारत के लिये चिंताजनक स्थिति का संकेत दिया है। HDI की वैश्विक रैंकिंग में भारत की स्थिति में गिरावट आ रही है और वर्ष 2022 में 191 देशों के बीच वह 132वें स्थान पर रहा (वर्ष 2019 में 129 और वर्ष 2020 में 131 से और नीचे फिसलते हुए)।

मानव विकास रिपोर्ट:

  • अमर्त्य सेन और महबूब उल हक ने विकास के लिये मानव-केंद्रित दृष्टिकोण की अवधारणा प्रस्तुत की थी जिसके आधार पर वर्ष 1990 में संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (United Nations Development Programme-UNDP) द्वारा पहली मानव विकास रिपोर्ट प्रकाशित की गई थी।
  • मानव विकास रिपोर्ट में शामिल सूचकांक:
    • मानव विकास सूचकांक (HDI)
    • असमानता-समायोजित HDI
    • ग्रहीय दबाव-समायोजित HDI
    • लिंग विकास सूचकांक
    • लिंग असमानता सूचकांक
    • बहुआयामी गरीबी सूचकांक
  • मानव विकास सूचकांक के आयाम और संकेतक:

HDI

मानव विकास सूचकांक के आधार पर मूल्यांकन की खामियाँ

  • घटकों के बीच सामंजस्य: HDI परोक्ष रूप से यह मानता है कि इसके घटकों के बीच सामंजस्य की स्थिति है, जबकि ये माप या मूल्यांकन हमेशा एकसमान रूप से मूल्यवान नहीं भी हो सकते हैं। जीवन प्रत्याशा और प्रति व्यक्ति GNI के विभिन्न संयोजनों के माध्यम से विभिन्न देश एकसमान HDI स्तर दर्शा सकते हैं।
  • नवीनतम नीतियों को प्रतिबिंबित करने के मामले में धीमा: संयुक्त राष्ट्र ने स्वयं यह स्वीकार किया है कि मानव विकास सूचकांक मानव विकास की एक व्यापक माप नहीं है। HDI दीर्घकालिक परिवर्तनों (जैसे जीवन प्रत्याशा) को दर्शाता है और हाल के नीति परिवर्तनों तथा देश के नागरिकों के जीवन में आए सुधारों को प्रतिबिंबित करने के मामले में धीमा है।

मानव विकास के संबंध में भारत के समक्ष विद्यमान चुनौतियाँ

  • लैंगिक असमानता: लैंगिक रूढ़ियों की व्यापकता और महिलाओं की ऊर्ध्वमुखी गतिशीलता की कमी (पूर्वाग्रह बाधाओं के कारण) ने पारंपरिक रूप से महिलाओं को विकास से दूर बनाए रखा है। कोविड-19 महामारी ने भी लैंगिक असमानता की वृद्धि में योगदान किया है।
    • महिलाओं की आर्थिक भागीदारी और अवसर के संदर्भ में, आवधिक श्रमबल सर्वेक्षण 2020-21 की रिपोर्ट में कहा गया है कि भारतीय महिलाओं की श्रमबल भागीदारी दर पुरुषों की 57.75% की तुलना में मात्र 23.15% है।
    • विश्व आर्थिक मंच (WEF) की वैश्विक लिंग अंतराल रिपोर्ट 2022 में भारत को 146 देशों के बीच 135वें स्थान पर रखा गया है।
  • सकल नामांकन का निम्न स्तर: प्रत्येक वर्ष बड़ी संख्या में छात्र स्कूल छोड़ देते हैं जो फिर उनकी आर्थिक एवं सामाजिक भलाई में बाधा डालता है और एक गैर-नवोन्मेषी वातावरण का सृजन करता है।
    • राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (NSSO) की रिपोर्ट के अनुसार, विद्यालय छोड़ने का कारण केवल आर्थिक तंगी और घरेलू या आर्थिक गतिविधियों में बच्चों की संलग्नता से संबद्ध नहीं है, बल्कि शिक्षा में उनकी रुचि में लगातार आ रही कमी भी है।
      • शिक्षा के लिये ज़िला सूचना प्रणाली (District Information System for Education)के अनुसार छात्रों की शिक्षा के प्रति उदासीनता स्कूली स्तर पर शैक्षिक और व्यावसायिक परामर्श की कमी के कारण है।
  • प्रभावशील शिक्षा अवसंरचना का अभाव: शिक्षा की गुणवत्ता बहुत कुछ कक्षाओं, पेयजल एवं स्वच्छता सुविधाओं, डिजिटल लर्निंग सुविधाओं और खेल सुविधाओं जैसी अवसंरचनाओं पर निर्भर करती है।
    • लेकिन अपर्याप्त वित्तपोषण, क्षेत्रीय असमानताओं और सुदृढ़ नियामक तंत्र की कमी के कारण भारत पूरे देश में एकसमान रूप से गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने में पिछड़ा बना हुआ है।
  • अपर्याप्त स्वास्थ्य देखभाल सुविधा: यद्यपि स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली में सुधार हुआ है, लेकिन ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों के बीच और सार्वजनिक एवं निजी सेवा प्रदाताओं के बीच उल्लेखनीय गुणवत्ता अंतर पाया जाता है, जबकि स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में निवेश भी एकसमान नहीं है (क्योंकि स्वास्थ्य राज्य सूची का विषय है)।
    • भारत की निम्न और मध्यम आय आबादी को स्वास्थ्य पर आउट-ऑफ-पॉकेट (OOP) व्यय करना पड़ता है जो उनकी ऊर्ध्वगामी गतिशीलता को बाधित करता है और उन्हें गरीबी की ओर धकेलता है।
  • कुपोषण: गरीबी, असमानता, अपर्याप्त बाल देखभाल और खाद्य असुरक्षा के कारण भारत कुपोषण की समस्या का सामना कर रहा है, जो भारत के लिये सालाना लगभग 10 बिलियन डॉलर की लागत लाता है। यह मानव विकास में सुधार और बाल मृत्यु दर में और कमी लाने जैसे लक्ष्यों की गति को मंद करता है।
    • वैश्विक भुखमरी सूचकांक (Global Hunger Index- GHI), 2021 में भारत 116 देशों के बीच 101वें स्थान पर रहा।
  • सामाजिक सुरक्षा का अभाव: भारत की लगभग 88% श्रमशक्ति बिना अनुबंध के दिहाड़ी मज़दूरों, भूमिहीन खेत श्रमिकों और गिग वर्कर्स के रूप में कार्यरत है। इन अनौपचारिक श्रमिकों और उनके परिवारों में से अधिकांश की सामाजिक सुरक्षा तक पहुँच नहीं है।
    • ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में अनौपचारिक श्रमिक/कर्मी कोविड-19 महामारी के कारण वृहत रूप से प्रभावित हुए। उनके रोज़गार की मौसमी प्रकृति और औपचारिक कर्मी-नियोक्ता संबंधों की कमी के कारण यह स्थिति बनी।

मानव विकास से संबंधित सरकार की हाल की पहलें

आगे की राह

  • आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरणीय विकास के बीच गठजोड़: आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरणीय विकास का परस्पर गहरा संबंध है और वे भारत में बुनियादी जीवन स्थितियों को बेहतर बनाने में एक प्रमुख भूमिका निभाते हैं।
    • सामाजिक-आर्थिक और पर्यावरणीय समस्याओं को अब अलग-अलग रखकर संबोधित नहीं किया जा सकता। इसलिये, प्रकृति-आधारित समाधानों के माध्यम से गृह-केंद्रित योजना में आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरणीय पहलुओं को शामिल करना आवश्यक है।
  • पहुँच, सीमा और कारण आधारित नीतियाँ: अमर्त्य सेन ने बलपूर्वक कहा है कि विकास के उद्देश्य की प्राप्ति के लिये सरकार की नीतियों को 3R (रीच, रेंज और रीज़न) पर ध्यान देना होगा।
  • सामाजिक-आर्थिक समावेशन: समाज के हाशिए पर स्थित तबके को (जो वर्तमान में अपनी पसंद का विस्तार करने और एक सभ्य जीवन स्तर हासिल करने के लिये स्वतंत्र नहीं हैं) सुव्यवस्थित करने के लिये संकेंद्रित प्रयासों की आवश्यकता है।
    • अवसर की समता (भारतीय संविधान का अनुच्छेद 14) सुनिश्चित की जानी चाहिये। लैंगिक अंतराल की समाप्ति और भागीदारीपूर्ण लोकतंत्र की ओर अग्रसर होने से देश राष्ट्रीय विकास लक्ष्यों और सतत विकास लक्ष्यों की प्राप्ति के मार्ग पर आगे बढ़ सकेगा।
  • सामाजिक अवसंरचना में निवेश, बीमा और नवोन्मेष: एक सार्वभौमिक शिक्षा और स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली देश में कई मुद्दों को हल करने के लिये एक व्यापक छत्र प्रयास हो सकती है जो इसके जीवन स्तर को बनाए रखने एवं उसे बेहतर बनाने के साथ ही शहरीकरण, आवास की कमी, ऊर्जा, जल और आपदा प्रबंधन जैसी प्रमुख उभरती चुनौतियों से निपटने में मदद करेगी।

अभ्यास प्रश्न: ‘‘जबकि भारत ने अपनी अर्थव्यवस्था का कई गुना विस्तार कर लिया है, मानव विकास के मामले में उसने अधिक प्रगति नहीं की है।’’ समालोचनात्मक विश्लेषण कीजिये।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, पिछले वर्ष के प्रश्न (PYQ)

Q.1 ऑक्सफोर्ड पॉवर्टी एंड ह्यूमन डेवलपमेंट इनिशिएटिव द्वारा UNDP के साथ विकसित बहु-आयामी गरीबी सूचकांक निम्नलिखित में से किसे कवर करता है? (2012)

  1. घरेलू स्तर पर शिक्षा, स्वास्थ्य, संपत्ति और सेवाओं का अभाव
  2. राष्ट्रीय स्तर पर क्रय शक्ति समता
  3. राष्ट्रीय स्तरर बजट घाटे और सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर की सीमा

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(A) केवल 1
(B) केवल 2 और 3
(C) केवल 1 और 3
(D) 1, 2 और 3

उत्तर: (A)

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