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भारत की वायु गुणवत्ता शासकीय व्यवस्था का सुदृढ़ीकरण

  • 22 Dec 2025
  • 197 min read

यह एडिटोरियल 20/12/2025 को द इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित “India’s pollution crisis is also about inclusion” शीर्षक वाले लेख पर आधारित है। लेख में इस तथ्य को दर्शाया गया है कि वायु प्रदूषण किस प्रकार गरीबों और उपेक्षित वर्गों को असमान रूप से प्रभावित करता है। इसके अतिरिक्त, यह भी रेखांकित करता है कि प्रदूषण से संबद्ध नीतियों ने संस्थागत उत्तरदायित्व को व्यक्तिगत नवाचार पर स्थानांतरित कर दिया है।

प्रिलिम्स के लिये: वायु प्रदूषण, राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (NCAP), ग्रेडेड रिस्पॉन्स एक्शन प्लान (GRAP), वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI), औद्योगिक उत्सर्जन, वाहन उत्सर्जन

मेन्स के लिये: वायु प्रदूषण के कारण, विनियमन में प्रमुख मुद्दे, वायु प्रदूषण में सुधार के उपाय।

नीतिगत हस्तक्षेपों के बावजूद, भारत में वायु प्रदूषण एक गंभीर जन स्वास्थ्य और शासन संबंधी चुनौती बना हुआ है, जहाँ कई शहरों में PM2.5 का स्तर WHO द्वारा निर्धारित सीमा से 5-8 गुना अधिक है। NCR में हाल ही में सर्दियों के दौरान वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) 400 से ऊपर पहुँच जाने के कारण GRAP-IV के उपाय लागू किये गए, जिससे स्कूल, परिवहन और आर्थिक गतिविधियाँ बाधित हुईं। राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (NCAP) के तहत वर्ष 2019 से कणिका पदार्थ प्रदूषण में लगभग 25% की कमी आई है, लेकिन वाहनों, निर्माण कार्य की धूल और पराली दहन से प्रदूषण में कभी-कभी वृद्धि देखी जाती है। इसके बावजूद कड़े प्रवर्तन वास्तविक काल की निगरानी और क्षेत्रीय स्तर पर समन्वय के प्रयास यह दर्शाते हैं कि भारत की वायु गुणवत्ता नीति धीरे-धीरे तात्कालिक संकट प्रबंधन से आगे बढ़कर संरचनात्मक वायु गुणवत्ता प्रशासन की दिशा में अग्रसर हो रही है।

भारत में वायु प्रदूषण के प्रबंधन और नियंत्रण के लिये वर्तमान में कौन से कदम उठाए जा रहे हैं?

  • राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (NCAP): NCAP (वर्ष 2019 में शुरू किया गया) को सुदृढ़ किया गया है और NCAP शहरों के लिये वर्ष 2026 तक PM स्तरों में कुल मिलाकर लगभग 40% की कमी लाने के उद्देश्य से इसे संशोधित किया गया है, जिसे विशिष्ट हस्तक्षेपों के लिये नगर निगम/राज्य एजेंसियों को केंद्रीय वित्त पोषण द्वारा समर्थित किया गया है।
    • इसके अलावा 130 से अधिक शहरों को शहरवार वार्षिक कमी के लक्ष्य (प्रति वर्ष 3-15%) और कार्यों का समर्थन करने के लिये केंद्रीय अनुदान दिये गए हैं।
    • स्वतंत्र निगरानी और सरकारी विज्ञप्तियों से संकेत मिलता है कि वर्ष 2019-2024 की अवधि में राष्ट्रीय स्तर पर कणिका पदार्थ (PM) के स्तर में लगभग 25-27% की कमी आई है और NCAP शहरों में भी इसी तरह के सुधार देखने को मिले हैं।
  • ग्रेडेड रिस्पॉन्स एक्शन प्लान (GRAP): ग्रेडेड रिस्पॉन्स एक्शन प्लान (GRAP) दिल्ली-NCR क्षेत्र में गंभीर वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिये एक चरणबद्ध आपातकालीन कार्यढाँचा है। यह वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) स्तरों से जुड़े पूर्वनिर्धारित उपायों को अनिवार्य बनाता है, जिससे वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (CAQM) की देखरेख में निर्माण, परिवहन एवं उद्योग जैसे प्रदूषण स्रोतों पर समयबद्ध और स्वचालित प्रतिबंध लगाए जा सकें।
    • पहले के विपरीत, GRAP अब प्रदूषण के चरम पर पहुँचने की प्रतीक्षा करने के बजाय, वायु गुणवत्ता मॉडलिंग और पूर्वानुमानों का उपयोग करके पहले से ही स्वचालित रूप से कार्रवाई शुरू कर देता है।
      • इससे निर्माण कार्य रोकना, विषम-सम यातायात नियम लागू करना, स्कूल बंद करना और डीज़ल जनरेटरों पर प्रतिबंध लगाना जैसे एहतियाती कदम उठाने की अनुमति मिलती है।
      • उदाहरण के लिये, दिसंबर वर्ष 2025 में CAQM ने दिल्ली का AQI 430–440 के पार पहुँचने पर, ‘एक्सट्रीम सीवियर’ स्तर पर पहुँचने से पूर्व ही, चरण-IV उपाय सक्रिय किये ताकि स्थिति और न बिगड़े।
  • निगरानी, ​​डेटा और पूर्वानुमान: भारत ने विस्तारित रीयल-टाइम निगरानी और पूर्वानुमान के माध्यम से वायु प्रदूषण नियंत्रण को सुदृढ़ किया है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) ने CAAQMS/NAQI नेटवर्क का विस्तार किया है, जिससे राष्ट्रीय डैशबोर्ड के माध्यम से लाइव AQI डेटा उपलब्ध कराया जा रहा है। यह डेटा अधिकारियों को समय पर GRAP कार्रवाई शुरू करने में सहायता करता है।
    • CPCB द्वारा भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) और अनुसंधान संस्थानों के सहयोग से विकसित बेहतर वायु गुणवत्ता पूर्वानुमान एवं मॉडलिंग, प्रारंभिक चेतावनी व गतिशील GRAP सक्रियण को सक्षम बनाती है। 
    • इसके अलावा, कम लागत वाले सेंसर और नागरिकों द्वारा संचालित निगरानी अब आधिकारिक स्टेशनों के पूरक हैं, जिससे स्थानीय कवरेज एवं जन जागरूकता में सुधार हो रहा है।
  • परिवहन और वाहन उत्सर्जन: शहरों ने सख्त PUC प्रवर्तन और ‘नो-PUC, नो-फ्यूल’ नियम के माध्यम से वाहन प्रदूषण पर नियंत्रण कड़ा कर दिया है, विशेषकर दिल्ली में। 
    • रीयल-टाइम जाँच के परिणामस्वरूप अनुपालन में तीव्र वृद्धि हुई; PUC जारी करने में मात्र एक दिन में लगभग 46% की बढ़ोतरी हुई। इसके साथ ही, पुराने वाहनों के प्रयोग को चरणबद्ध तरीके से समाप्त किया जा रहा है, जुलाई 2025 से 10 वर्ष से अधिक पुराने डीज़ल वाहनों एवं 15 वर्ष से अधिक पुराने पेट्रोल वाहनों को ईंधन की आपूर्ति प्रतिबंधित कर दी जाएगी, साथ ही सड़क उत्सर्जन को कम करने के लिये निरीक्षण को और सख्त किया जाएगा।
  • इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा, चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर और नगरपालिका योजनाएँ: शहरी निकाय चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर का विस्तार करके और पार्किंग नीतियों में सुधार करके इलेक्ट्रिक मोबिलिटी में संक्रमण को गति दे रहे हैं।
    • उदाहरण के लिये, दिल्ली नगर निगम (MCD) ने यातायात जाम और निष्क्रिय उत्सर्जन को कम करने के उद्देश्य से इलेक्ट्रिक वाहन चार्जिंग स्टेशनों की संख्या लगभग 422 से बढ़ाकर लगभग 994 करने की योजना बनाई है।
    • इस स्थानीय पहल को केंद्र और राज्य स्तर पर मिलने वाले प्रोत्साहनों का समर्थन प्राप्त है, जो इलेक्ट्रिक वाहनों के अंगीकरण एवं सार्वजनिक परिवहन के विद्युतीकरण को सब्सिडी प्रदान करते हैं, जिससे स्वच्छ शहरी गतिशीलता को मज़बूती मिलती है।
  • औद्योगिक एवं विद्युत क्षेत्र नियंत्रण: अद्यतन सहमति एवं उत्सर्जन दिशानिर्देशों (2025) के माध्यम से औद्योगिक प्रदूषण नियंत्रण को कड़ा किया गया है, जिसमें अनुपालन में सुधार के लिये सख्त समयसीमा, स्पष्ट प्रक्रियाएँ और राज्य स्तरीय समितियों द्वारा कड़ी निगरानी शामिल है। 
    • विद्युत क्षेत्र में, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) और पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) कोयला आधारित संयंत्रों के लिये सख्त उत्सर्जन मानदंडों को लागू कर रहे हैं, जिनमें ESP उन्नयन और SOx/NOx नियंत्रण शामिल हैं। राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (NCAP) के तहत समर्थित इन उपायों का उद्देश्य शहरी स्तर पर औद्योगिक और विद्युत क्षेत्र के उत्सर्जन को कम करना है।
    • उदाहरण के लिये, परफॉर्मेंस अचीव एंड ट्रेड (PAT) योजना उद्योगों को ऊर्जा कुशल प्रौद्योगिकियों का उपयोग करने के लिये प्रोत्साहित करती है।
  • कृषि/फसल अवशेष दहन के समाधान: पराली दहन पर अंकुश लगाने के लिये, सरकारें राज्य कार्य योजनाओं के तहत वित्तीय प्रोत्साहन एवं खरीद सहायता के साथ-साथ हैप्पी सीडर और स्ट्रॉ मल्चर जैसी मशीनों के लिये सब्सिडी के माध्यम से इन-सीटू अवशेष प्रबंधन को बढ़ावा दे रही हैं।
    • उपग्रह आधारित निगरानी से दहन के हॉटस्पॉट का शीघ्र पता लगाना संभव हो जाता है, जिससे आग लगने के चरम महीनों (अक्तूबर-नवंबर) के दौरान लक्षित प्रवर्तन, दंड और समय पर प्रोत्साहन देना संभव हो पाता है।
      • इसके परिणामस्वरूप, पंजाब और हरियाणा में इस मौसम में पराली दहन की घटनाएँ वर्ष 2024 की तुलना में 50% कम हो गई हैं।
    • GRAP चेतावनियों के साथ-साथ सत्र 2024-25 में अधिक सक्रिय रूप से उपयोग किये जाने वाले इन संयुक्त उपायों का उद्देश्य किसानों को व्यवहार्य विकल्प प्रदान करते हुए खुले में दहन को कम करना है।
  • धूल और अपशिष्ट से होने वाले वायु प्रदूषण को कम करने के उपाय: शहरी निकाय यांत्रिक सड़क सफाई, ढके हुए निर्माण स्थल, ट्रकों के लिये व्हील-वॉश सुविधाएँ और नियमित मलबा हटाने जैसे उपायों को सख्ती से लागू कर रहे हैं।
    • उदाहरण के लिये, दिल्ली नगर निगम (MCD) ने अपनी वार्षिक योजनाओं में सफाईकर्मियों और निर्माण-धूल नियंत्रण के लिये धनराशि आवंटित की है।
      • धूल प्रदूषण से निपटने के लिये, विशेष रूप से वायु प्रदूषण के 13 चिन्हित हॉटस्पॉट पर, पूरे शहर में 1,000 वाटर स्प्रिंकलर और 140 एंटी-स्मॉग गन तैनात किये गए हैं।
    • साथ ही, ओखला, भलस्वा और गाज़ीपुर जैसे प्रमुख लैंडफिल स्थलों (जो सर्दियों के स्मॉग में प्रमुख योगदानकर्त्ता हैं) के स्थिरीकरण एवं पुनर्विकास के माध्यम से अपशिष्ट दहन से होने वाले प्रदूषण को कम करने पर ध्यान दिया जा रहा है।
  • सार्वजनिक स्वास्थ्य और सामाजिक उपाय: वायु प्रदूषण से निपटने के उपायों में अब सार्वजनिक स्वास्थ्य संरक्षण पर अधिक ज़ोर दिया जा रहा है, विशेष रूप से बच्चों, बुजुर्गों और रोगियों के लिये। 
    • GRAP के तहत, अधिकारी स्वास्थ्य संबंधी सलाह जारी करते हैं, स्कूलों को बंद करने या इनडोर गतिविधियों की अनुमति देते हैं और उच्च AQI की स्थिति में अस्पतालों को सतर्क करते हैं; कुछ शहरों ने स्कूलों और अस्पतालों में एयर प्यूरीफायर भी लगाए हैं, जैसे कि दिल्ली की ‘ब्रीद स्मार्ट’ कक्षा पहल। 
    • साथ ही, स्वच्छ वायु को दीर्घकालिक स्वास्थ्य लाभों से जोड़ने तथा नीतिगत निर्णयों का मार्गदर्शन करने के लिये राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (NCAP) के तहत PM2.5 के संपर्क और इसके स्वास्थ्य प्रभावों पर शोध का तेज़ी से उपयोग किया जा रहा है।
  • घरेलू ईंधन और घरेलू उत्सर्जन: भारत में भोजन पकाने के स्वच्छ ईंधन को बढ़ावा देकर घरेलू प्रदूषण को कम करने के लिये लगातार प्रयास किया जा रहा है, प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना के तहत LPG की उपलब्धता का विस्तार किया जा रहा है तथा विशेष रूप से कमज़ोर परिवारों के बीच बायोमास और कोयले पर निर्भरता कम की जा रही है।
    • NCAP के अंतर्गत शहर की कार्य योजनाओं में उन घरेलू उत्सर्जन स्रोतों को भी शामिल किया गया है, जहाँ वे महत्त्वपूर्ण बने हुए हैं। 
    • इसके अतिरिक्त, उच्च वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) वाले समय में सरकारी स्कूलों की कक्षाओं में एयर प्यूरिफायर लगाने जैसे लक्षित इनडोर वायु गुणवत्ता उपायों का उद्देश्य गंभीर प्रदूषण की घटनाओं के दौरान बच्चों के स्वास्थ्य की रक्षा करना है। 
  • प्रौद्योगिकी, नवोन्मेष और निजी क्षेत्र की भागीदारी: भारत उन्नत पूर्वानुमान, कम लागत वाले सेंसर और उपग्रह विश्लेषण जैसी वायु गुणवत्ता प्रौद्योगिकियों का लाभ उठा रहा है, जिसमें निजी कंपनियों एवं गैर-सरकारी संगठनों का मज़बूत समर्थन प्राप्त है। 
    • ये प्लेटफॉर्म अति स्थानीय प्रदूषण मानचित्र प्रदान करते हैं, जिससे शहरों को हस्तक्षेपों को अधिक सटीक रूप से लक्षित करने में सहायता मिलती है।   
    • उदाहरण के लिये, प्रोजेक्ट SAMEER (पर्यावरणीय जोखिमों के शमन के लिये विज्ञान और प्रौद्योगिकी गठबंधन) दिल्ली के वायु प्रदूषण की निगरानी तथा उसे कम करने के लिये इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT) आधारित सेंसर जैसी तकनीकों का उपयोग करता है, जिसमें शिक्षा जगत (भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान दिल्ली), उद्योग एवं सरकार को वास्तविक काल, डेटा-संचालित समाधानों व जन जागरूकता पहलों के लिये एक साथ लाया जाता है।
  • वित्तपोषण और संस्थागत समन्वय: समर्पित निधि और बेहतर समन्वय के माध्यम से वायु प्रदूषण नियंत्रण को सुदृढ़ किया जा रहा है। 
    • शहरों को पंद्रहवें वित्त आयोग और राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (NCAP) के तहत निगरानी, ​​धूल नियंत्रण, सार्वजनिक परिवहन एवं हरित आवरण जैसी परियोजनाओं के लिये लक्षित अनुदान प्राप्त होते हैं। 
    • संस्थागत स्तर पर, वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (CAQM), केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB), राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों और नगर निकायों के बीच समन्वय में सुधार हुआ है, जिसमें जवाबदेही एवं समय पर कार्रवाई सुनिश्चित करने के लिये गतिशील GRAP ट्रिगर तथा अनिवार्य मासिक समीक्षाएँ शामिल हैं।

भारत में वायु प्रदूषण नियंत्रण उपायों की प्रभावशीलता में बाधा डालने वाले प्रमुख मुद्दे क्या हैं?

  • शहरी कार्यान्वयन क्षमता की कमज़ोरी: राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम के तहत स्पष्ट लक्ष्य निर्धारित होने के बावजूद, कई शहरों में प्रशिक्षित कर्मचारियों, तकनीकी विशेषज्ञता और परियोजना-प्रबंधन क्षमता की कमी का सामना करना पड़ रहा है।
    • MoEFCC/NCAP की समीक्षा रिपोर्टों के अनुसार, कई शहर समय पर केंद्रीय निधियों का पूरी तरह से उपयोग करने में असमर्थ रहे हैं, जिससे मशीनीकृत सड़क सफाई और प्रदूषण स्रोत निर्धारण अध्ययन जैसे उपायों में विलंब हुआ है। 
      • परिणामस्वरूप, धन की उपलब्धता के बावजूद, वार्षिक PM-कमी के लक्ष्य (प्रति वर्ष 3-15%) प्रायः पूरे नहीं हो पाते हैं।
  • खंडित शासन और अपर्याप्त क्षेत्रीय समन्वय: वायु प्रदूषण प्रशासनिक सीमाओं से परे है, लेकिन विनियमन राज्यों और एजेंसियों में खंडित बना हुआ है। 
    • उदाहरण के लिये, दिल्ली में सर्दियों में होने वाले स्मॉग पर पड़ोसी राज्यों से होने वाले उत्सर्जन का काफी प्रभाव पड़ता है, फिर भी प्रवर्तन का उत्तरदायित्व असमान है।
    • केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड जैसे निकाय भी मुख्य रूप से समन्वय और परामर्श की भूमिका निभाते हैं, जिससे एकसमान अनुपालन सुनिश्चित करने की उनकी क्षमता सीमित हो जाती है। इस कमज़ोर समन्वय के कारण GRAP जैसी क्षेत्रीय स्तर पर की गई प्रतिक्रियाओं की प्रभावशीलता कम हो जाती है।
  • मौसमी और आकस्मिक प्रदूषण चरम सीमाएँ: भारत में वायु प्रदूषण अत्यधिक मौसमी है। CPCB के आँकड़ों से पता चलता है कि तापमान व्युत्क्रमण, पराली दहन और उत्सर्जन में वृद्धि के कारण NCR में PM2.5 का स्तर अक्टूबर-दिसंबर के दौरान लगभग दोगुना हो जाता है।
    • उदाहरण के लिये, नवंबर 2024-25 में, पूरे वर्ष नियंत्रण उपायों के बावजूद, कई दिनों तक AQI 400 (गंभीर) स्तर को पार कर गया। 
    • निर्माण पर प्रतिबंध जैसे आपातकालीन उपाय अल्पकालिक राहत तो प्रदान करते हैं, लेकिन इन आवर्ती वृद्धि के पीछे के संरचनात्मक कारणों का समाधान नहीं करते हैं।
  • निगरानी और प्रवर्तन में विसंगति: भारत ने वास्तविक समय में वायु गुणवत्ता की निगरानी का तेज़ी से विस्तार किया है जहाँ देशभर में 900 से अधिक निरंतर निगरानी स्टेशन स्थापित किये गए हैं, लेकिन प्रवर्तन क्षमता में आनुपातिक वृद्धि नहीं हुई है। 
    • दिल्ली में चलाए गए ‘नो PUC, नो फ्यूल’ अभियान के कारण एक ही दिन में PUC की मांग में लगभग 46% की वृद्धि हुई, जिससे सिस्टम अस्थायी रूप से चरमरा गया और प्रवर्तन संबंधी बाधाएँ उजागर हुईं। 
    • इस प्रकार, डेटा का उत्पादन एजेंसियों की उल्लंघनों पर लगातार कार्रवाई करने की क्षमता से कहीं अधिक तेज़ी से होता है।
  • आर्थिक और आजीविका संबंधी बाधाएँ: प्रदूषण नियंत्रण उपायों से प्रायः तत्काल आर्थिक लागतें आती हैं। किसानों को फसल अवशेष प्रबंधन के लिये प्रति हेक्टेयर ₹2,000-3,000 का खर्च उठाना पड़ता है, जबकि बाज़ार से कोई सुनिश्चित संबंध नहीं होता, जिसके कारण सब्सिडी के बावजूद पराली दहन जारी रहता है। 
    • इसी प्रकार, पुराने वाहनों पर लगाए गए प्रतिबंध निजी परिवहन पर निर्भर अनौपचारिक श्रमिकों को असमान रूप से प्रभावित करते हैं। 
    • आजीविका संबंधी ये दबाव अनुपालन को कमज़ोर करते हैं और नियामक उपायों के प्रति प्रतिरोध उत्पन्न करते हैं।
  • सीमित व्यवहार परिवर्तन और सार्वजनिक अनुपालन: निजी वाहनों का उपयोग, खुले में अपशिष्ट दहन और पटाखे जैसे व्यवहारिक कारक महत्त्वपूर्ण योगदानकर्त्ता बने हुए हैं। 
    • CPCB के आकलन से पता चलता है कि कई शहरों में शहरी कणिका पदार्थ प्रदूषण में परिवहन और धूल दोनों का संयुक्त रूप से 40% से अधिक योगदान है।
    • केवल जागरूकता अभियान चलाने से स्थायी व्यवहार परिवर्तन नहीं हुआ है, जो अधिक मज़बूत प्रोत्साहन एवं प्रेरणाओं की आवश्यकता को दर्शाता है। 
  • औद्योगिक डेटा अंतर: हालाँकि भारत ने अत्यधिक प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों के लिये ऑनलाइन सतत उत्सर्जन निगरानी प्रणाली (OCEMS) को अनिवार्य कर दिया है, लेकिन यह प्रणाली डेटा विश्वसनीयता संबंधी समस्याओं से ग्रस्त है।
    • CEEW द्वारा हाल ही में किये गए एक आकलन में पाया गया कि निगरानी किये गए औद्योगिक चिमनियों में से लगभग 81% में प्रतिवर्ष 1,000 घंटे से अधिक का डेटा गायब था।
    • इसके अलावा, OCEMS डेटा का उपयोग प्रायः केवल ‘अलर्ट’ जारी करने के लिये किया जाता है। इसे अभी तक उद्योगों को दंडित करने के लिये न्यायालयों में प्राथमिक विधिक साक्ष्य के रूप में व्यापक रूप से स्वीकार नहीं किया गया है, जिसका अर्थ है कि राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (SPCB) अभी भी मैनुअल निरीक्षणों पर निर्भर हैं, जो अनियमित हैं।

भारत में वायु प्रदूषण की समस्या से प्रभावी ढंग से निपटने के लिये किन उपायों की आवश्यकता है?

  • शहर की कार्यान्वयन क्षमता का निर्माण: नगर निगमों में पूर्णकालिक इंजीनियरों, GIS/निगरानी विश्लेषकों और परियोजना प्रबंधकों के साथ समर्पित वायु गुणवत्ता प्रकोष्ठ (AQC) का गठन किया जाना चाहिये; NCAP/XVFC अनुदान से विज्ञापित पदों के लिये धन आवंटित किया जाना चाहिये, ताकि शहर तदर्थ संविदा कर्मचारियों को नियुक्त न करें।
    • परियोजनाओं के टेम्पलेट और खरीद पैकेज (सफाईकर्मियों, सेंसर, CHC मशीनों के लिये) को मानकीकृत किया जाना चाहिये, ताकि शहर विशेष निविदाओं में विलंब किये बिना तेज़ी से धन का उपयोग कर सकें। 
    • छोटे शहरों के लिये ‘क्षमता-निर्माण वाउचर’ (तृतीय पक्ष द्वारा परियोजना प्रबंधन/तकनीकी सहायता के लिये केंद्रीय वित्त पोषण) की पेशकश की जानी चाहिये, साथ ही अल्पकालिक सलाहकारों को DPR तैयार करने, खरीद प्रक्रिया चलाने एवं परिणामों की निगरानी करने के लिये नियुक्त किया जाना चाहिये।
      • उदाहरण के लिये, यूरोपीय संघ के संरचनात्मक कोष अवशोषण क्षमता के लिये तकनीकी सहायता से अनुदान को जोड़ते हैं।
  • क्षेत्रीय और अंतर-राज्यीय समन्वय को सुदृढ़ करना: महानगरीय क्षेत्रों (जैसे, NCR) के लिये बाध्यकारी कार्य योजनाओं (उत्सर्जन सूची, पारस्परिक रूप से सहमत लक्ष्य) के साथ अंतर-राज्यीय प्रदूषण-कमी समझौतों को औपचारिक रूप दिया जाना चाहिये। अनुपालन की निगरानी करने और सशर्त निधियों के वितरण के लिये कानूनी अधिकार प्राप्त सचिवालय का उपयोग किया जाना चाहिये।
    • CAQM की क्षेत्र-स्तरीय समीक्षाओं से पता चलता है कि जब राज्य समन्वय करते हैं तो आगजनी की घटनाओं में कमी आती है; इस दिशा में औपचारिक समझौते इसे नियमित बना सकते हैं।
    • एक क्षेत्रीय डेटा-साझाकरण मंच और संयुक्त GRAP ट्रिगर्स को अपनाया जाना चाहिये, ताकि राज्य A में एक हॉटस्पॉट स्वचालित रूप से राज्यों B/C में सहमत कार्यों (निर्माण रोक, परिवहन प्रतिबंध) को ट्रिगर करे। 
      • ग्लोबल मॉडल: यूरोप का सीमा पार वायु प्रदूषण पर सम्मेलन और गोथेनबर्ग दृष्टिकोण संयुक्त मॉडलिंग एवं सामान्य नियमों का उपयोग करता है।
  • सशर्त केंद्रीय वित्त पोषण का उपयोग: NCAP/XVFC अनुदान के कुछ हिस्सों को तभी जारी किया जाना चाहिये, जब संयुक्त लक्ष्य (जैसे: सीमा पार उत्सर्जन कटौती के लक्ष्य) पूरे हो जाएँ, यह सिद्ध हो चुका है कि जहाँ वित्तीय प्रोत्साहन मौजूद हैं, वहाँ सहयोग में सुधार होता है।
  • मौसमी/अस्थायी वृद्धि को रोकना और इसे कम करना: ज्ञात मौसमों से पहले निवारक उपायों को बढ़ाना (शीतकालीन पूर्व तैयारी): सड़क सफाईकर्मियों को पहले से तैनात किया जाना चाहिये, सार्वजनिक परिवहन की अतिरिक्त क्षमता बढ़ाई जानी चाहिये, अस्थायी विषम-सम या भीड़भाड़ मूल्य निर्धारण ट्रिगर सीमाएँ लागू की जानी चाहिये और पूर्वानुमानों में बढ़ते AQI के संकेत मिलने पर मुफ्त सार्वजनिक परिवहन दिवस घोषित किये जाने चाहिये। 
    • फसल कटाई से पहले पराली दहन को कम करने के लिये फसल अवशेषों के इन-सीटू समाधानों (कस्टम हायरिंग सेंटर, सब्सिडी वाले हैप्पी-सीडर, बायोमास एकत्रीकरण) का सक्रिय रूप से विस्तार किया जाना चाहिये।
  • निगरानी और प्रवर्तन के अंतर को कम करना: वास्तविक समय के मॉनिटर, PUC डेटाबेस और औद्योगिक सहमति को स्वचालित नोटिस-उत्पादन एवं जुर्माना संग्रह प्रणालियों से जोड़ना चाहिये, ताकि पता चले उल्लंघनों के लिये 24-72 घंटों के भीतर अनुवर्ती निरीक्षण शुरू हो सकें।
    • नो-PUC, नो-फ्यूल एक्सपोज्ड बैकएंड ओवरलोड्स, एक स्केलेबल IT आर्किटेक्चर और केंद्रीय अवरोध बिंदुओं के बजाय वितरित परीक्षण की विफलता से बचा जा सकता है।
    • NCAP द्वारा वित्त पोषित मोबाइल प्रवर्तन टीमों और त्वरित प्रतिक्रिया इकाइयों (ट्रक-माउंटेड सैम्पलर; मोबाइल PUC वैन) को व्यस्त महीनों के दौरान बड़े पैमाने पर तैनात किया जाना चाहिये, ताकि डेटा समय पर कार्रवाई करने में सहायक हो।
      • उदाहरण के लिये, लंदन में वाहनों के निष्क्रिय रहने/इंजन की जाँच के लिये चलाई गई मोबाइल प्रवर्तन प्रणाली ने सड़कों पर अनुपालन में सुधार किया।
  • आर्थिक और आजीविका संबंधी समझौतों का समाधान: कृषि समूहों के पास स्थित छोटे जैव-शोधन संयंत्रों, पेलेट संयंत्रों और बायोगैस इकाइयों का समर्थन (पूंजी अनुदान + खरीद गारंटी) किया जाना चाहिये, ताकि अवशेष अपशिष्ट के बजाय एक उपयोगी संसाधन बन जाए। 
    • पुराने वाहनों के मालिकों के लिये सेवानिवृत्ति भुगतान/वाउचर, लास्ट-माइल डिलीवरी वाले तीन पहिया वाहनों हेतु सब्सिडी वाले रेट्रोफिट कार्यक्रम तथा इलेक्ट्रिक वाहनों में संक्रमण करने वाले चालकों के लिये सीमित समय के लिये वित्तीय सहायता प्रदान की जानी चाहिये।
      • उदाहरण के लिये, स्टॉकहोम में भीड़-भाड़ संबंधी मूल्य निर्धारण प्रणाली ने राजस्व का उपयोग सार्वजनिक परिवहन को सब्सिडी देने और कम आय वाले यात्रियों की सुरक्षा के लिये किया।
  • जनता के व्यवहार में संधारणीय परिवर्तन लाना: वित्तीय प्रोत्साहन और हतोत्साहन: भीड़भाड़/कम उत्सर्जन वाले क्षेत्र, पार्किंग सुधार, अपशिष्ट जलाने पर अधिक जुर्माना तथा स्वच्छ घरेलू हीटिंग और कुकस्टोव के लिये सब्सिडी प्रदान की जानी चाहिये।
    • अनिवार्य 'स्वच्छ वायु दिवस' प्रोटोकॉल, संवेदनशील संस्थानों के लिये इनडोर वायु फिल्टर और गंभीर महामारी के दौरान टेली-वर्क को प्रोत्साहन दिया जाना चाहिये।
    • स्कूलों, आशा कार्यकर्त्ताओं और नगर निकायों को घर-घर जाकर एवं वार्ड स्तर पर जागरूकता अभियान चलाने के लिये शामिल किया जाना चाहिये। मोबाइल ऐप और सार्वजनिक प्रदर्शन बोर्डों के साथ अलर्ट को एकीकृत किया जाना चाहिये जो दैनिक व्यवहार परिवर्तनों (जैसे: अपशिष्ट दहन से बचना, उच्च वायु गुणवत्ता सूचकांक वाले दिनों में सार्वजनिक परिवहन का उपयोग) का सुझाव देते हैं। 
    • इस तरह के लक्षित, साक्ष्य-आधारित जागरूकता अभियान मात्र सूचना प्रसार के बजाय व्यवहारिक परिवर्तन लाते हैं।

निष्कर्ष: 

भारत की वायु प्रदूषण समस्या अब नीतियों के अभाव की नहीं, बल्कि कार्यान्वयन, समन्वय और सामाजिक संक्रमण की भी चुनौती बन चुकी है। वर्ष 2019 के बाद कणिका पदार्थ प्रदूषण में दर्ज की गई उल्लेखनीय कमी यह दर्शाती है कि यदि नियामक और प्रौद्योगिकीय हस्तक्षेपों को प्रभावी ढंग से लागू किया जाये, तो वे परिणाम दे सकते हैं। हालाँकि दीर्घकालिक और सतत सुधार के लिये केवल प्रवर्तन पर्याप्त नहीं है। इसके साथ शहरों की संस्थागत क्षमता का सुदृढ़ीकरण, अंतर-क्षेत्रीय सहयोग, आजीविका-संवेदनशील संक्रमण तथा व्यवहारगत परिवर्तन भी अनिवार्य हैं।

वायु गुणवत्ता प्रशासन को प्रकरण-आधारित संकट प्रबंधन से आगे बढ़ाकर निवारक और क्षेत्र-व्यापी शासन व्यवस्था की ओर निर्देशित करना आवश्यक है। निरंतर राजनीतिक इच्छाशक्ति और सक्रिय नागरिक सहभागिता के साथ स्वच्छ वायु एक आपातकालीन आकांक्षा से आगे बढ़कर एक संधारणीय सार्वजनिक हित में परिवर्तित हो सकती है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न

भारत में वायु प्रदूषण मौसमी पर्यावरणीय चिंता से हटकर एक दीर्घकालिक सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट बन गया है। शहरी भारत में वायु प्रदूषण के प्रमुख स्रोतों का अध्ययन प्रस्तुत कीजिये तथा NCAP और GRAP जैसी वर्तमान नीतिगत उपायों की प्रभावशीलता का समालोचनात्मक मूल्यांकन कीजिये।

 

प्रायः पूछे जाने वाले प्रश्न

प्रश्न 1. भारत में वायु प्रदूषण एक गंभीर चुनौती क्यों है?
भारत में वायु प्रदूषण का स्तर प्रायः सुरक्षित मानकों से अधिक रहता है, जिससे श्वसन तथा हृदय-संबंधी रोगों जैसे गंभीर स्वास्थ्य प्रभाव उत्पन्न होते हैं। इसका प्रभाव विशेष रूप से बच्चों, वृद्धों तथा आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्गों पर अधिक पड़ता है।

प्रश्न 2. राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (NCAP) क्या है?
राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम भारत की एक प्रमुख नीति पहल है, जिसे वर्ष 2019 में प्रारंभ किया गया। इसका उद्देश्य शहर-विशिष्ट लक्ष्यों, वित्तीय सहायता तथा निगरानी व्यवस्था में सुधार के माध्यम से कणिका पदार्थ प्रदूषण को कम करना है।

प्रश्न 3. GRAP क्या है और यह क्यों महत्त्वपूर्ण है?
ग्रेडेड रिस्पॉन्स एक्शन प्लान दिल्ली–NCR के लिये एक चरणबद्ध आपातकालीन कार्यढाँचा है, जिसके अंतर्गत वायु गुणवत्ता सूचकांक के स्तरों के आधार पर स्वतः प्रतिबंध लागू किये जाते हैं, ताकि चरम प्रदूषण की स्थितियों को रोका जा सके।

प्रश्न 4. नीतियों के बावजूद शीतकाल में प्रदूषण स्तर क्यों बढ़ जाता है?
शीतकाल में तापीय व्युत्क्रमण, पराली दहन, वाहनों से उत्सर्जन तथा धूल जैसे कारकों के कारण प्रदूषण स्तर में तीव्र वृद्धि होती है, जो नियमित नियंत्रण उपायों को विफल कर देता है।

प्रश्न 5. वायु प्रदूषण सामाजिक न्याय से जुड़े मुद्दे किस प्रकार उत्पन्न करता है?
वायु प्रदूषण का असमान प्रभाव निम्न-आय तथा असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों पर अधिक पड़ता है, जबकि प्रदूषण नियंत्रण से संबंधित उपाय प्रायः कमज़ोर वर्गों पर आजीविका की दृष्टि से अधिक भार डालते हैं।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ) 

प्रिलिम्स 

प्रश्न 1. निम्नलिखित में से कौन-से कारण/कारक बेंज़ीन प्रदूषण उत्पन्न करते हैं? (2020) 

  1. स्वचालित वाहन (Automobile) द्वारा निष्कासित पदार्थ
  2. तंबाकू का धुआँ 
  3. लकड़ी का जलना 
  4. रोगन किये गए लकड़ी के फर्नीचर का उपयोग 
  5. पॉलियूरिथेन से निर्मित उत्पादों का उपयोग

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1, 2 और 3

(b) केवल 2 और 4

(c) केवल 1, 3 और 4

(d) 1, 2, 3, 4 और 5

उत्तर: (d)


प्रश्न 2. प्रदूषण की समस्याओं का समाधान करने के संदर्भ में, जैवोपचारण (बायोरेमीडिएशन) तकनीक के कौन-सा/से लाभ है/हैं? (2017)

  1. यह प्रकृति में घटित होने वाली जैवनिम्नीकरण प्रक्रिया का ही संवर्द्धन कर प्रदूषण को स्वच्छ करने की तकनीक है।
  2. कैडमियम और लेड जैसी भारी धातुओं से युक्त किसी भी संदूषक को सूक्ष्मजीवों के प्रयोग से जैवोपचारण द्वारा सहज ही और पूरी तरह उपचारित किया जा सकता है।
  3. जैवोपचारण के लिये विशेषतः अभिकल्पित सूक्ष्मजीवों को सृजित करने के लिये आनुवंशिक इंजीनियरी (जेनेटिक इंजीनियरिंग) का उपयोग किया जा सकता है।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1

(b) केवल 2 और 3

(c)केवल 1 और 3

(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (c)


मेन्स 

प्रश्न 1. विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यू.एच.ओ.) द्वारा हाल हीमें जारी किये गए संशोधित वैश्विक वायु गुणवत्ता दिशानिर्देशों (ए.क्यू.जी.) के मुख्य बिंदुओं का वर्णन कीजिये। विगत 2005 के अद्यतन से, ये कार्यक्रम किस प्रकार भिन्न हैं ? इन संशोधित मानकों को प्राप्त करने के लिये, भारत के राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम में किन परिवर्तनों की आवश्यकता है? (2021)

प्रश्न 2. भारत सरकार द्वारा आरंभ किये गए राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (एन.सी.ए.पी.) की प्रमुख विशेषताएँ क्या है? (2020)

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