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भारतीय अर्थव्यवस्था

भारत के विकास इंजन के रूप में पर्यटन क्षेत्र

  • 20 Dec 2025
  • 145 min read

यह एडिटोरियल 18/12/2025 को द हिंदुस्तान टाइम्स में प्रकाशित “Why India’s tourism sector needs a regulatory rethink” शीर्षक वाले लेख पर आधारित है। भारत की प्रबल पर्यटन क्षमता, इसमें निवेश और प्रतिस्पर्द्धा को सीमित करने वाली नियामक बाधाओं के बीच के अंतर को दर्शाते हुए यह लेख विभिन्न पहलुओं को रेखांकित करता है, जिसमें यह तर्क दिया गया है कि इस क्षेत्र के पूर्ण आर्थिक एवं विकासात्मक प्रभाव को उजागर करने के लिये सुव्यवस्थित विनियमन आवश्यक है।

प्रिलिम्स के लिये: PRASHAD योजना, विरासत 2.0, प्रधान मंत्री मुद्रा योजना (PMMY), भारत में सतत पर्यटन

मेन्स के लिये: भारत में पर्यटन क्षेत्र, पर्यटन क्षेत्र की क्षमता और नियामक चुनौतियाँ तथा आवश्यक उपाय 

पर्यटन भारत के लिये उच्च रोज़गार सृजन और सेवा-आधारित विकास का एक प्रमुख क्षेत्र है। आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार, पर्यटन सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में लगभग 5% का योगदान देता है और लगभग 7.6 करोड़ रोज़गारों का समर्थन करता है, जिससे यह समावेशी एवं क्षेत्रीय विकास का एक प्रमुख चालक बन जाता है। अंतर्राष्ट्रीय पर्यटकों के आगमन में भारत का योगदान 1.5 % है। विश्व यात्रा एवं पर्यटन परिषद (WTTC) की सत्र 2024-25 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत 231.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर का योगदान देते हुए 8वीं सबसे बड़ी पर्यटन अर्थव्यवस्था है। केंद्रीय बजट में भी इस क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिये पर्यटन स्थलों के विकास और बुनियादी अवसंरचना के समर्थन पर ज़ोर दिया गया है। हालाँकि, मज़बूत मांग और नीतिगत उद्देश्यों के बावजूद, खंडित, अतिव्यापी एवं समय लेने वाले नियामक कार्यढाँचों के कारण भारत की पर्यटन क्षमता का पूरी तरह से उपयोग नहीं हो पा रहा है। इससे व्यापार सुगमता को बेहतर बनाने, निवेश आकर्षित करने और भारत को पर्यटन के क्षेत्र में वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्द्धी बनाने के लिये नियामक कार्यढाँचे पर पुनर्विचार की आवश्यकता है।

भारत अपने पर्यटन क्षेत्र में किस प्रकार सुधार और विनियमन कर रहा है? 

  • वीज़ा सुधार: केंद्रीय बजट 2025-26 में, सरकार ने भारत की वैश्विक पर्यटन प्रतिस्पर्द्धात्मकता को बढ़ाने के लिये चुनिंदा श्रेणियों के विदेशी पर्यटकों के लिये वीज़ा शुल्क माफी में छूट की घोषणा की है, ताकि भारत की वैश्विक पर्यटन प्रतिस्पर्धात्मकता को सशक्त किया जा सके।
    • इस सुधार का उद्देश्य प्रक्रियाओं को सरल बनाना, दस्तावेज़ीकरण की आवश्यकताओं को कम करना और वीज़ा आवेदनों के तेज़ी से प्रसंस्करण को सुनिश्चित करना है। 
      • अंतर्राष्ट्रीय आगंतुकों, विशेष रूप से अवकाश, चिकित्सा और सांस्कृतिक पर्यटन के लिये प्रवेश बाधाओं को कम करके, इन उपायों का उद्देश्य भारत की यात्रा को सुगम बनाना है। 
    • यह वीज़ा उदारीकरण महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि ऐतिहासिक रूप से प्रक्रियात्मक विलंब और लागत, भारत की समृद्ध सांस्कृतिक एवं प्राकृतिक आकर्षणों के बावजूद, संभावित पर्यटकों को हतोत्साहित करती रही हैं।
  • होमस्टे और MSME सहायता: ज़मीनी स्तर पर पर्यटन क्षेत्र को सुदृढ़ करने और समावेशी विकास को बढ़ावा देने के लिये, होमस्टे संचालकों एवं लघु पर्यटन उद्यमों को मुद्रा ऋण जैसे वित्तीय सहायता तंत्र प्रदान किये जा रहे हैं।
    • इस पहल का उद्देश्य भारत के पर्यटन पारिस्थितिकी तंत्र का आधार माने जाने वाले लघु एवं मध्यम उद्यमों (MSME) के लिये औपचारिककरण, ऋण तक अभिगम्यता एवं व्यवसाय की स्थिरता में सुधार करना है।
    • स्थानीय उद्यमियों, महिला नेतृत्व वाले उद्यमों और ग्रामीण परिवारों को पर्यटन में भाग लेने में सक्षम बनाकर, यह सुधार स्थानीय संस्कृति एवं परंपराओं को संरक्षित करते हुए पर्यटन आय के अधिक समान वितरण में सहायता करता है। औपचारिक प्रक्रिया में वृद्धि से सुरक्षा, गुणवत्ता और सेवा मानकों का अनुपालन भी बेहतर होता है।
  • ट्रैवल फॉर LiFE और सतत प्रमाणन: ट्रैवल फॉर लाइफ पहल के तहत, भारत आतिथ्य इकाइयों के लिये ग्रीन रैंकिंग और प्रमाणन शुरू करके पर्यटन के पर्यावरणीय प्रभाव को विनियमित कर रहा है। 
    • होटलों और रिसॉर्ट्स को अब शून्य अपशिष्ट प्रबंधन, वर्षा जल संचयन और नवीकरणीय ऊर्जा के उपयोग जैसी संधारणीय प्रथाओं को अपनाने के लिये प्रोत्साहित किया जा रहा है।
      • इस नियामकीय बदलाव से भारतीय पर्यटन उद्योग वैश्विक जलवायु लक्ष्यों के अनुरूप हो जाता है और उत्तरदायित्वपूर्ण यात्रा की बढ़ती अंतर्राष्ट्रीय मांग को पूरा करता है।
  • विशेष पर्यटन पुलिस और सुरक्षा मानक: सुरक्षा संबंधी चिंताओं को दूर करने के लिये, पर्यटन मंत्रालय प्रमुख पर्यटन स्थलों पर समर्पित पर्यटन पुलिस इकाइयों की तैनाती हेतु राज्य सरकारों के साथ मिलकर काम कर रहा है। इस सुधार को 24/7 उपलब्ध बहुभाषी टोल-फ्री हेल्पलाइन का समर्थन प्राप्त है, जो 10 अंतर्राष्ट्रीय भाषाओं सहित 12 भाषाओं में उपलब्ध है। 
    • इन उपायों का उद्देश्य राज्यों में सुरक्षा प्रोटोकॉल को मानकीकृत करना है, जिससे अधिक सुरक्षित वातावरण प्रदान किया जा सके, जो एकल यात्रियों और महिला अंतर्राष्ट्रीय यात्रियों को आकर्षित करने के लिये महत्त्वपूर्ण है। 
  • स्वदेश दर्शन 2.0 और थीम-आधारित सर्किट: सरकार ने अपनी प्रमुख योजना को स्वदेश दर्शन 2.0 में रूपांतरित किया है, जिसमें विखंडित परियोजनाओं से परे 50 चयनित स्थलों के लिये गंतव्य-केंद्रित दृष्टिकोण अपनाया गया है।
    • इस सुधार का मुख्य उद्देश्य आध्यात्मिक, घरेलू और पर्यावरण-पर्यटन जैसे एकीकृत विषयगत सर्किट विकसित करना है तथा यह सुनिश्चित करना है कि केवल अलग-थलग स्मारकों के बजाय पूरे क्षेत्र विश्व स्तरीय सुविधाओं से लैस हों।
      • यह डेटा-आधारित चयन प्रक्रिया दीर्घकालिक स्थल की व्यवहार्यता सुनिश्चित करने के लिये संधारणीयता और स्थानीय समुदाय की भागीदारी को प्राथमिकता देती है।

भारत के पर्यटन क्षेत्र के समक्ष प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?

  • खंडित और अतिव्यापी नियामक कार्यढाँचा: पर्यटन से जुड़े व्यवसायों पर केंद्र, राज्य तथा स्थानीय स्तर के अनेक कानून लागू होते हैं, जिनमें भूमि उपयोग, पर्यावरण, अग्नि सुरक्षा, श्रम, मदिरा, खाद्य सुरक्षा एवं नगरपालिका अनुमति शामिल हैं।
    • एक ही होटल या रेस्तरां को प्रायः 15–20 अलग-अलग लाइसेंस लेने पड़ते हैं, जिनमें से अनेक एक-दूसरे की पुनरावृत्ति करते हैं। इससे अनुपालन लागत बढ़ती है तथा औपचारिकीकरण हतोत्साहित होता है।
    • उदाहरण के लिये, तटीय विनियमन क्षेत्र (CRZ) अधिसूचना, 2019 के अनुसार पर्यावरण के अनुकूल रिसॉर्ट्स को बंदरगाहों के समान प्रतिबंधों का सामना करना पड़ता है।
  • परियोजना अनुमोदन और अनुमोदन में विलंब: पर्यटन अवसंरचना परियोजनाओं को अनुमोदन में लंबी समयसीमा का सामना करना पड़ता है, विशेष रूप से पर्यावरण, तटीय और विरासत से संबंधित अनुमोदन के लिये।
    • उदाहरण के लिये, पर्यटन परियोजनाएँ बड़े औद्योगिक परियोजनाओं के लिये निर्धारित पर्यावरण प्रभाव आकलन (EIA) प्रक्रियाओं के अधीन होती हैं, हालाँकि, मध्यम आकार के होटल, रिसॉर्ट एवं पर्यटन अवसंरचनाओं को भी जाँच, सार्वजनिक सुनवाई आदि की आवश्यकता हो सकती है।
  • लघु व्यवसायियों के लिये व्यापार सुगमता की कमी: छोटे होटल, होमस्टे और टूर ऑपरेटर अनुपालन, निरीक्षण तथा नवीनीकरण की जटिलताओं से जूझते हैं, जिसके कारण अनेक इकाइयाँ अनौपचारिक क्षेत्र में चली जाती हैं।
    • प्रतिबंधात्मक होमस्टे मानदंड, जैसे कम कमरों की सीमा और मालिक का उसी परिसर में निवास अनिवार्य होना, पैमाने और आय-वृद्धि को सीमित करते हैं।
    • अनुपालन लागत आकार से स्वतंत्र होती है, जिससे छोटी इकाइयाँ आर्थिक रूप से अव्यवहार्य बन जाती हैं।
      • उदाहरण के लिये, 5-10 कमरों वाले गेस्टहाउस को FSSAI लाइसेंस, फायर NOC, नगरपालिका व्यापार लाइसेंस आदि प्राप्त करना आवश्यक है।
  • तीव्र और अनियंत्रित पर्यटन वृद्धि: हिमालय और तटीय क्षेत्रों जैसे पारिस्थितिक रूप से सुभेद्य क्षेत्रों में अनियंत्रित पर्यटन वृद्धि अपरिवर्तनीय पर्यावरणीय क्षरण एवं संसाधन क्षय का कारण बन रही है। 
    • वहनीय क्षमता आकलन की कमी से अति-पर्यटन की स्थिति उत्पन्न होती है, जिससे स्थानीय जल आपूर्ति एवं अपशिष्ट प्रबंधन पर अत्यधिक दबाव पड़ता है और अंततः वही प्राकृतिक सौंदर्य नष्ट होता है, जो पर्यटकों को आकर्षित करता है।
      • उदाहरण के लिये, सत्र 2024-25 में, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में जल की भारी कमी देखी गई; इसके अलावा, रणथंभौर जैसे अभ्यारण्यों में अति-पर्यटन के कारण मानव-वन्यजीव संघर्ष की घटनाओं में वृद्धि हुई है।
  • लास्ट माइल कनेक्टिविटी और बुनियादी अवसंरचना की कमियाँ: जबकि अतुल्य भारत के प्रमुख केंद्र अच्छी तरह से जुड़े हुए हैं, निम्नस्तरीय सड़क गुणवत्ता और विश्वसनीय अंतिम-बिंदु परिवहन की कमी के कारण कई उच्च क्षमता वाले आध्यात्मिक, ग्रामीण एवं पर्यावरण-पर्यटन स्थल दुर्गम बने हुए हैं।
    • अपर्याप्त स्वच्छता और दूरस्थ क्षेत्रों में बिजली की अनियमित आपूर्ति जैसी खंडित अवसंरचना, निर्बाध यात्रा के आदी अंतर्राष्ट्रीय पर्यटकों के लिये यात्रा अनुभव को काफी हद तक कम कर देती है।
    • पर्यटन मंत्रालय के अनुमानों के अनुसार, वर्ष 2023 तक घरेलू पर्यटन मार्गों में से 30% से भी कम मार्गों में पर्याप्त एकीकृत सड़क संपर्क और विश्व स्तरीय स्वच्छता सुविधाएँ मौजूद होंगी। 
  • केंद्र-राज्य-स्थानीय समन्वय में कमियाँ: पर्यटन एक राज्य का विषय है, लेकिन यह केंद्रीय मंत्रालयों (MoEF&CC, मंत्रालय, संस्कृति मंत्रालय, नागरिक उड्डयन मंत्रालय) और शहरी स्थानीय निकायों पर काफी हद तक निर्भर करता है, जिससे समन्वय में विफलताएँ होती हैं।
    • यह विखंडन दर्शाता है कि किस प्रकार कई प्राधिकरण एक ही गतिविधि को विनियमित करते हैं, जिससे कार्यान्वयन और जवाबदेही धीमी हो जाती है।
      • उदाहरण के लिये, केरल के वर्कला में एक पहाड़ी की चोटी पर स्थित रिसॉर्ट में लगी आग की घटना, जहाँ अपर्याप्त सुरक्षा बुनियादी अवसंरचना और नगरपालिका अधिकारियों, वन/पर्यावरण नियामकों एवं आपातकालीन सेवाओं के बीच अस्पष्ट जिम्मेदारी ने प्रतिक्रिया को बुरी तरह बाधित किया।
    • राज्य पर्यटन को बढ़ावा देते हैं, लेकिन महत्त्वपूर्ण स्वीकृतियों को नियंत्रित नहीं कर सकते, जिससे समन्वय में विलंब होता है।
  • पर्यटन की रोज़गार क्षमता का कम उपयोग: श्रम-प्रधान होने के बावजूद, नियामक बाधाओं और निवेश की अनिश्चितता के कारण पर्यटन अपनी पूरी रोज़गार सृजन क्षमता तक नहीं पहुँच पाया है।
    • नियामकीय कठोरताएँ पर्यटन को बड़े पैमाने पर रोज़गार सृजनकर्त्ता बनने से रोकती हैं, विशेषकर ग्रामीण और पारिस्थितिक रूप से सुभेद्य क्षेत्रों में।
    • WTTC की एक रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि भारत को वर्ष 2035 तक यात्रा और पर्यटन क्षेत्र में 11 मिलियन श्रमिकों की कमी का सामना करना पड़ेगा।
  • वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता की कमी: भारत के प्रीमियम पर्यटन उत्पाद (विशेष रूप से धरोहर और समुद्र तट गंतव्य) दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों की तुलना में अधिक महंगे पड़ते हैं, जहाँ कम लागत में बेहतर लक्ज़री अनुभव उपलब्ध है।
    • घरेलू विमानन ईंधन पर लगने वाले उच्च कर और होटल GST की दरें (18% तक) गोवा या राजस्थान में छुट्टियाँ बिताने को किसी भारतीय या वैश्विक यात्री के लिये थाईलैंड या वियतनाम की ऑल-इन्क्लूज़िव यात्रा की तुलना में अधिक महंगा बना देती हैं।
    • इसी कारण, वैश्विक अंतर्राष्ट्रीय पर्यटक आगमन में भारत की हिस्सेदारी मात्र 1.5% है, जबकि थाईलैंड 90 से अधिक देशों को वीज़ा-मुक्त प्रवेश देता है, वहीं भारत में वीज़ा-मुक्त पारस्परिक सुविधा सीमित है।

भारत के पर्यटन क्षेत्र को मज़बूत करने के लिये किन उपायों की आवश्यकता है? 

  • नियामक कार्यढाँचे का युक्तिकरण और सामंजस्य: पर्यटन परियोजनाओं के लिये एक एकीकृत, एकल-खिड़की डिजिटल अनुमोदन प्रणाली स्थापित की जानी चाहिये, जिसमें भूमि उपयोग, पर्यावरण, अग्नि सुरक्षा, श्रम, खाद्य सुरक्षा, उत्पाद शुल्क एवं नगरपालिका अनुमतियों से संबंधित स्वीकृतियों को एकीकृत किया जाए। 
    • ओवरलैपिंग लाइसेंसों को मान्यता प्राप्त अनुमोदन और पारस्परिक मान्यता के माध्यम से विलय कर दिया जाना चाहिये, विशेषकर जहाँ अनुपालन आवश्यकताएँ समान हों। 
    • पर्यावरण के अनुकूल रिसॉर्ट्स, होमस्टे और छोटे होटलों को बंदरगाहों या भारी बुनियादी अवसंरचना के समान विनियमित न किया जाए, इसके लिये क्षेत्र-विशिष्ट वर्गीकरण लागू किया जाना चाहिये, जिसमें कम प्रभाव वाले पर्यटन परियोजनाओं के लिये CRZ मानदंडों का युक्तिकरण भी शामिल है। इससे अनुपालन लागत में काफी कमी आएगी और औपचारिकीकरण को प्रोत्साहन मिलेगा।
  • परियोजनाओं की अनुमोदन और स्वीकृति में तेज़ी लाना: पर्यटन अवसंरचना को भारी औद्योगिक परियोजनाओं से अलग, एक सरल और जोखिम-आधारित स्वीकृति कार्यढाँचे के अंतर्गत रखा जाना चाहिये। पर्यावरण प्रभाव आकलन (EIA) प्रक्रिया में मानक संचालन प्रक्रियाओं, निश्चित समयसीमाओं और मध्यम एवं छोटे पर्यटन परियोजनाओं के लिये आकार-आधारित छूटों को लागू करके सुधार की आवश्यकता है।
    • सार्वजनिक सुनवाई और विस्तृत मूल्यांकन केवल उन परियोजनाओं तक सीमित होने चाहिये जिनका पारिस्थितिक प्रभाव स्पष्ट रूप से प्रदर्शित हो, जबकि हरित-प्रमाणित या कम पर्यावरणीय प्रभाव वाली पर्यटन परियोजनाओं को स्वतः या त्वरित अनुमोदन प्राप्त होना चाहिये। डिजिटलीकरण एवं एक साथ कई स्वीकृतियाँ मिलने से विलंब और निवेशकों की अनिश्चितता को और कम किया जा सकता है।
  • छोटे व्यवसायियों के लिये व्यापार सुगमता में सुधार: छोटे होटलों, होमस्टे और टूर ऑपरेटरों के लिये आकार एवं जोखिम के आधार पर एक पृथक अनुपालन व्यवस्था अपनाई जानी चाहिये। कम क्षमता वाली इकाइयों को बार-बार निरीक्षण के बजाय स्व-प्रमाणन और आवधिक यादृच्छिक अंकेक्षण के दायरे में लाया जाना चाहिये।
    • होमस्टे संबंधी दिशानिर्देशों को उदार बनाने की आवश्यकता है, जिसके लिये कमरों की संख्या पर लगी सीमा में छूट दी जानी चाहिये, मालिक के निवास की अनिवार्य शर्तों को हटाया जाना चाहिये और राज्यों में मानदंडों को मानकीकृत किया जाना चाहिये।
    • अनुपालन लागत को आकार के अनुपात में बनाया जाना चाहिये, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि छोटे संचालक आर्थिक रूप से व्यवहार्य बने रहें और उन्हें औपचारिक प्रणाली के भीतर काम करने के लिये प्रोत्साहित किया जाए।
  • केंद्र-राज्य-स्थानीय समन्वय को सुदृढ़ बनाना: पर्यटन मंत्रालय, पर्यावरण एवं सामुदायिक विकास मंत्रालय, संस्कृति मंत्रालय, नागरिक उड्डयन मंत्रालय और शहरी विकास मंत्रालय को शामिल करते हुए एक अंतर-मंत्रालयी पर्यटन सुविधा परिषद के माध्यम से एक संस्थागत समन्वय तंत्र बनाया जाना चाहिये।
    • राज्यों को अपने अधिकार क्षेत्र में पर्यटन परियोजनाओं को प्रभावित करने वाली स्वीकृतियों पर अधिक परिचालन नियंत्रण या बाध्यकारी परामर्श शक्तियाँ दी जानी चाहिये। स्पष्ट जवाबदेही कार्यढाँचे और साझा डिजिटल डैशबोर्ड विभिन्न अधिकारियों के बीच दोहराव को कम कर सकते हैं तथा सरकार के सभी स्तरों पर समयबद्ध निर्णय लेने को सुनिश्चित कर सकते हैं।
  • पर्यटन की रोज़गार क्षमता को उजागर करना: सतत निजी निवेश को आकर्षित करने के लिये नियामक सरलीकरण और नीतिगत निश्चितता का लाभ उठाया जाना चाहिये, विशेष रूप से ग्रामीण, विरासत एवं पर्यावरण-पर्यटन समूहों में, जहाँ रोज़गार गुणक उच्च हैं। 
    • आतिथ्य सत्कार से संबंधित श्रम नियमों में मौसमी और अस्थायी रोज़गार को समायोजित करने के लिये लचीलेपन की आवश्यकता है, जबकि कौशल विकास कार्यक्रमों को स्थानीय पर्यटन आवश्यकताओं के अनुरूप होना चाहिये।
    • सुगम पंजीकरण व्यवस्था और ऋण उपलब्धता के माध्यम से समुदाय-आधारित पर्यटन को प्रोत्साहित करने से पर्यटन को स्थायित्व से समझौता किये बिना बड़े पैमाने पर रोज़गार सृजन के चालक में परिवर्तित किया जा सकता है।
  • वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता को बढ़ावा: भारत को अपने पर्यटन नियामक कार्यढाँचे की तुलना वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्द्धी गंतव्यों से करनी चाहिये और अनुमोदन की गति, लागत दक्षता तथा निवेशक सुविधा के संदर्भ में सर्वोत्तम प्रथाओं को अपनाना चाहिये।
    • समर्पित पर्यटन निवेश प्रकोष्ठ, समयबद्ध क्लीयरेंस और होटलों को अवसंरचना का दर्जा दिये जाने जैसे उपाय निवेशकों का विश्वास बढ़ा सकते हैं।
    • नियामक दक्षता में सुधार भारत की सांस्कृतिक और प्राकृतिक संसाधनों में निहित मज़बूत स्थिति का पूरक बन सकता है तथा इन परिसंपत्तियों को अधिक पर्यटक आगमन, लंबे प्रवास एवं अधिक व्यय में रूपांतरित करने में सहायक होगा।
  • वैज्ञानिक वहन क्षमता आधारित आगंतुक प्रबंधन: पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्रों में पर्यटन विकास को वैज्ञानिक वहन क्षमता आकलन के माध्यम से विनियमित किया जाना चाहिये, जो गंतव्यों की पारिस्थितिक, अवसंरचनात्मक और सामाजिक सीमाओं का मूल्यांकन करते हैं। 
    • इन आकलन के आधार पर, भीड़भाड़ को रोकने के लिये, विशेष रूप से व्यस्त मौसमों के दौरान, परमिट-आधारित प्रणालियाँ, दैनिक आगंतुक कोटा और समयबद्ध प्रवेश तंत्र लागू किये जाने चाहिये।
    • डिजिटल उपकरणों जैसे: रियल-टाइम आगंतुक ट्रैकिंग, GIS मैपिंग, ऑनलाइन परमिट और डेस्टिनेशन डैशबोर्ड के माध्यम से गतिशील रूप से इन सीमाओं का प्रवर्तन किया जाना चाहिये, जिससे पर्यटक प्रवाह, जल उपयोग एवं अपशिष्ट सृजन की निरंतर निगरानी करने में सहायता मिलेगी।
      • इस प्रकार का एकीकृत व प्रौद्योगिकी-सक्षम दृष्टिकोण, जिसे माचू पिचू जैसे गंतव्यों और विश्वभर के राष्ट्रीय उद्यानों में अपनाया गया है, यह सुनिश्चित कर सकता है कि पर्यटन सतत सीमाओं के भीतर विकसित हो तथा नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र एवं स्थानीय आजीविकाओं की रक्षा बनी रहे।

निष्कर्ष: 

भारत के पर्यटन क्षेत्र में नियामक और संस्थागत बाधाओं को दूर करना इसकी पूर्ण आर्थिक एवं सामाजिक क्षमता को उजागर करने के लिये आवश्यक है। अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत, जैव विविधता और जीवंत परंपराओं का लाभ उठाकर, पर्यटन भारत की सॉफ्ट पावर एवं वैश्विक सांस्कृतिक उपस्थिति को भी मज़बूत कर सकता है। सुसंगत नियमन और सतत् प्रथाओं के माध्यम से पर्यटन, समावेशी विकास, विरासत संरक्षण तथा विश्व के प्रति भारत की सभ्यतागत अभिगम्यता को सशक्त बनाने वाले उत्प्रेरक के रूप में उभर सकता है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न

समृद्ध सांस्कृतिक और प्राकृतिक संपदाओं से संपन्न होने के बावजूद, भारत ने अपनी पर्यटन क्षमता का पूर्ण उपयोग नहीं किया है। भारत के पर्यटन क्षेत्र के समक्ष मौजूद नियामक और संस्थागत चुनौतियों का विश्लेषण कीजिये तथा इसकी वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता को बढ़ाने के लिये सुधारों का सुझाव दीजिये।

 

प्रायः पूछे जाने वाले प्रश्न

प्रश्न 1. भारत की पर्यटन क्षमता को अल्प -प्रयुक्त क्यों माना जाता है?
समृद्ध सांस्कृतिक और प्राकृतिक संसाधनों के बावजूद नियामक जटिलताओं, मंद अनुमोदन प्रक्रियाओं तथा बुनियादी अवसंरचना की कमी के कारण भारत वैश्विक पर्यटकों का केवल लगभग 1.5% ही आकर्षित कर पाता है।

प्रश्न 2. खंडित विनियमन पर्यटन व्यवसायों को किस प्रकार प्रभावित करता है ?
विभिन्न प्राधिकरणों से प्राप्त कई अतिव्यापी लाइसेंस अनुपालन लागत को बढ़ाते हैं, परियोजनाओं में विलंब करते हैं और औपचारिकीकरण तथा निजी निवेश को हतोत्साहित करते हैं।

प्रश्न 3. पर्यटन परियोजनाओं के लिये पर्यावरण संबंधी अनुमोदन प्राप्त करना एक चुनौती क्यों है?
कम प्रभाव वाले होटल और रिसॉर्ट जैसी परियोजनाओं पर भी औद्योगिक स्तर के EIA मानदंड लागू कर दिये जाते हैं, जिससे अनावश्यक विलंब उत्पन्न होता है।

प्रश्न 4. छोटे होटलों और होमस्टे को किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है?
निश्चित अनुपालन लागत, बार-बार निरीक्षण तथा प्रतिबंधात्मक होमस्टे नियम मानदंड छोटे इकाइयों को आर्थिक रूप से अव्यवहार्य और उन्हें अनौपचारिकता बनाते हैं।

प्रश्न 5. केंद्र और राज्य के बीच अपर्याप्त समन्वय पर्यटन विकास को किस प्रकार प्रभावित करता है?
राज्य पर्यटन को बढ़ावा देते हैं, लेकिन प्रमुख केंद्रीय स्वीकृतियों पर उनका नियंत्रण नहीं होता, जिससे विलंब, पुनरावृत्ति और कमज़ोर जवाबदेही की स्थिति उत्पन्न होती है।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ) 

मेन्स 

प्रश्न 1. पर्वत पारिस्थितिकी तंत्र को विकास पहलों और पर्यटन के ऋणात्मक प्रभाव से किस प्रकार पुनःस्थापित किया जा सकता है? (2019)

प्रश्न 2. पर्यटन की प्रोन्नति के कारण जम्मू और काश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के राज्य अपनी पारिस्थितिक वाहन क्षमता की सीमाओं तक पहुँच रहे हैं? समालोचनात्मक मूल्यांकान कीजिये। (2015)

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