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भारतीय अर्थव्यवस्था

​माइक्रोफाइनेंस के ज़रिये समावेशी विकास को बढ़ावा

  • 08 Apr 2023
  • 13 min read

​​यह एडिटोरियल 05/04/2023 को ‘हिंदू बिज़नेसलाइन’ में प्रकाशित ​“Move microloans to formal sector, be it banks or MFIs”​ लेख पर आधारित है। इसमें भारत में माइक्रोफाइनेंस के उदय, महिला सशक्तीकरण एवं निर्धनता उन्मूलन पर इसके प्रभाव और भविष्य में इसके समक्ष प्रकट होने वाली चुनौतियों के बारे में चर्चा की गई है।​

​​13वीं सदी के ​​एक तेलुगू यात्रा-वृतांत में​ ​किसी गाँव में एक साहूकार, एक चिकित्सक, एक नदी और धर्मनिष्ठ लोगों के होने के महत्त्व का उल्लेख​​ किया गया है, और वर्तमान युग में सूक्ष्म वित्त या ‘माइक्रोफाइनेंस’ (microfinance) इन आवश्यक आवश्यकताओं की पूर्ति करने की कुंजी बन गया है।​

​​माइक्रोफाइनेंस भारत में समावेशी और सतत विकास के लिये एक महत्त्वपूर्ण उपकरण के रूप में​​ उभरा है। भारत का विशाल ग्रामीण परिदृश्य एक ऐसे वित्तीय पारिस्थितिकी तंत्र की मांग रखता है जो दूरदराज के क्षेत्रों में रहने वाले समुदायों की आवश्यकताओं के प्रति उत्तरदायी हो।​

​​माइक्रोफाइनेंस की अवधारणा ​स्वयं सहायता समूह बैंक लिंकेज कार्यक्रम (SHG-BLP)​ से उत्पन्न हुई थी, जो वर्ष 1989 में MYRADA द्वारा संचालित एक ‘एक्शन रिसर्च प्रोजेक्ट’ के परिणामस्वरूप उभरी, जिसे ​नाबार्ड ​(NABARD) द्वारा कमीशन किया गया था। ​भारतीय रिज़र्व बैंक​ (RBI) ने सूक्ष्म जमा और ऋण की सुविधा के लिये बैंकों के साथ अनौपचारिक समूहों को जोड़ने का प्रयास किया, जिसके कारण SHG-BLP साकार हुआ।​

​​भारत का ह्रदय इसके ग्रामीण क्षेत्रों में बसता है और यह भारत का आर्थिक इंजन भी है। वित्तीय समावेशन, महिला सशक्तीकरण और डिजिटल समावेशन लाकर ​माइक्रोफाइनेंस ​भारत को एक महाशक्ति के रूप में उभरने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगा​​।​

​​भारत में माइक्रोफाइनेंस की वर्तमान स्थिति ​

  • नेशनल काउंसिल ऑफ एप्लाइड इकोनॉमिक रिसर्च (NCAER)​ के अध्ययन के अनुसार, माइक्रोफाइनेंस लगभग ​​130 लाख नौकरियों और हमारे GVA के 2%​​ में योगदान देता है।​
  • ​​इसमें ​​सभी 6.3 करोड़ अनिगमित और गैर-कृषि उद्यमों तक पहुँचने की क्षमता​​ है। RBI ने हाल ही में ​​माइक्रोफाइनेंस ​​को 3 लाख रुपए तक की वार्षिक आय वाले परिवारों को प्रदत्त ​​संपार्श्विक मुक्त ऋण​​ (collateral free loans) के रूप में परिभाषित किया है।​
  • ​​बैंकों या माइक्रोफाइनेंस संस्थानों जैसे औपचारिक क्षेत्र में सभी सूक्ष्म ऋणों को हस्तांतरित कर माइक्रोफाइनेंस का भविष्य सुनिश्चित कर सकना संभव है।​

​​आर्थिक महाशक्ति के रूप में भारत के उद्भव में माइक्रोफाइनेंस किस प्रकार योगदान कर सकता है?​

  • ​​उद्यमिता को बढ़ावा:​
    • ​​माइक्रोफाइनेंस ​​संस्थान ​(MFIs) ​उन लोगों को लघु ऋण प्रदान करते हैं जिनकी पारंपरिक बैंकिंग सेवाओं तक पहुँच नहीं​​ है। यह भारत में उद्यमशीलता और लघु व्यवसाय विकास को बढ़ावा देने में मदद कर सकता है, जो आर्थिक विकास एवं रोज़गार सृजन के लिये महत्त्वपूर्ण है।​
  • ​​वित्तीय समावेशन:​
    • ​​MFIs उन लोगों को ​​क्रेडिट एवं अन्य वित्तीय सेवाएँ प्रदान कर भारत में ​वित्तीय समावेशन​ में सुधार लाने में मदद​​ कर सकते हैं जो पारंपरिक बैंकिंग प्रणाली से बाहर छूट गए हैं। इससे लोगों को बचत करने, शिक्षा एवं स्वास्थ्य सेवा में निवेश करने और अपना स्वयं का व्यवसाय शुरू करने में मदद मिल सकती है।​
  • ​​निर्धनता कम करना:​
    • ​​माइक्रोफाइनेंस उन ​​निर्धन लोगों को लघु ऋण प्रदान करके भारत में ​गरीबी ​को कम करने में मदद ​​कर सकता है जिनकी औपचारिक बैंकिंग सेवाओं तक पहुँच नहीं है। इससे उन्हें आय-अर्जक गतिविधियों को शुरू करने और अपने जीवन स्तर में सुधार लाने में मदद मिल सकती है।​
  • ​​महिला सशक्तीकरण:​
    • ​​माइक्रोफाइनेंस भारत में ​​महिलाओं के सशक्तीकरण में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका​​ निभा सकता है।​
    • ​​महिलाओं की प्रायः वित्तीय संसाधनों तक सीमित पहुँच होती है और वे गरीबी से असंगत रूप से प्रभावित होती हैं।​
    • ​​क्रेडिट और अन्य वित्तीय सेवाओं तक पहुँच प्रदान करके, माइक्रोफाइनेंस महिलाओं को आर्थिक रूप से अधिक स्वतंत्र बनने और उनकी सामाजिक स्थिति में सुधार लाने में मदद कर सकता है।​
  • ​​ग्रामीण विकास में सहयोग:​
    • ​​माइक्रोफाइनेंस ​​किसानों और अन्य ग्रामीण उद्यमियों को लघु ऋण प्रदान कर भारत में ग्रामीण विकास का भी समर्थन​​ कर सकता है। यह कृषि उत्पादकता में सुधार करने, रोज़गार सृजित करने और ग्रामीण क्षेत्रों में समग्र आर्थिक विकास का समर्थन करने में सहायता कर सकता है।​

​​भारत में माइक्रोफाइनेंस से संबद्ध चुनौतियाँ ​

  • ​​अति-ऋणग्रस्तता:​
    • ​​भारत में ​​माइक्रोफाइनेंस से संबद्ध प्रमुख चुनौतियों में से एक है अति-ऋणग्रस्तता​​ (Over-Indebtedness) की समस्या, जहाँ उधार​​कर्त्ता​​ विभिन्न माइक्रोफाइनेंस संस्थानों से लिये गए विविध ऋणों को चुका सकने में असमर्थ हैं।​
    • ​​इससे ​​‘डिफ़ॉल्ट’ की स्थिति​​ बन सकती है, ​​जो उधार​​कर्त्ता​​ की साख को प्रभावित करता है​​ और कुछ मामलों में आत्महत्या जैसे परिणाम उत्पन्न करता है।​
  • ​​उच्च ब्याज दरें:​
    • ​​माइक्रोफाइनेंस संस्थान छोटे ऋणों की उच्च लागत के कारण उच्च ब्याज दर वसूलते हैं। यह ​​ऋण लेने वालों के लिये एक ​ऋण जाल​ (debt trap) का निर्माण कर सकता है और उनके लिये ऋण चुकाना कठिन सिद्ध हो सकता है।​
  • ​​वित्तीय साक्षरता का अभाव:​
    • ​​भारत में अधिकांश ​​माइक्रोफाइनेंस उधार​​कर्त्ता​​ ग्रामीण क्षेत्रों के हैं और प्रायः ​वित्तीय साक्षरता​ की कमी रखते हैं​​ या वित्तीय रूप से निरक्षर होते हैं। इससे उनके लिये ऋण के नियमों और शर्तों को समझना कठिन सिद्ध हो सकता है, जिससे भ्रम एवं विवाद की स्थिति बन सकती है।​
  • ​​अवसंरचनात्मक चुनौतियाँ:​
    • ​​माइक्रोफाइनेंस संस्थान दूरस्थ और ग्रामीण क्षेत्रों में कार्य करते हैं, जहाँ प्रायः अवसंरचना की कमी होती है। इससे संचार, परिवहन और वित्तीय सेवाओं तक पहुँच संबंधी कठिनाइयाँ उत्पन्न हो सकती हैं।​
  • ​​राजनीतिक हस्तक्षेप:​
    • ​​माइक्रोफाइनेंस संस्थानों के कार्यकलाप में राजनीतिक हस्तक्षेप उनकी प्रभावशीलता को प्रभावित कर सकता है और उनके संचालन के लिये प्रतिकूल वातावरण का निर्माण कर सकता है।​
  • ​​बाह्य आघात:​
    • ​​माइक्रोफाइनेंस उधार​​कर्त्ता​ ​प्रायः बाह्य आघातों (External Shocks), जैसे प्राकृतिक आपदा, आर्थिक मंदी या महामारी के प्रति संवेदनशील ​​होते हैं। ये आघात ऋण चुकाने की उनकी क्षमता को प्रभावित कर सकते हैं, जिससे डिफ़ॉल्ट और वित्तीय तनाव की स्थिति बन सकती है।​
  • ​​विनियमन का अभाव:​
    • ​​जबकि माइक्रोफाइनेंस संस्थानों को भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा विनियमित किया जाता है, ​​राज्य स्तर पर विनियमन की कमी​​ है। इससे भारत के विभिन्न राज्यों में माइक्रोफाइनेंस संस्थानों के कार्यकरण में विसंगतियां उत्पन्न हो सकती हैं।​

​​आगे की राह

  • ​​नियामक ढाँचे को सुदृढ़ करना:​
    • ​​भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) को यह सुनिश्चित करने के लिये ​​माइक्रोफाइनेंस क्षेत्र की निगरानी और विनियमन जारी रखना चाहिये​​ कि यह निष्पक्ष एवं पारदर्शी तरीके से संचालित हो।​
    • ​​RBI को नए विनियमन लागू करने पर भी विचार करना चाहिये जो माइक्रोफाइनेंस संस्थानों द्वारा वसूल किये जाने वाले उच्च ब्याज दरों की समस्या को संबोधित कर सकें।​
  • ​​वित्तीय साक्षरता को बढ़ावा देना:​
    • ​​माइक्रोफाइनेंस उधार​​कर्त्ता​​ओं के बीच वित्तीय साक्षरता को बढ़ावा​​ देने की आवश्यकता है ताकि उन्हें उधार लेने और उसे चुकाने के बारे में सूचना-संपन्न निर्णय लेने में मदद मिल सके।​
    • ​​MFIs को अपने ग्राहकों को बचत, ऋण, बीमा और निवेश के बारे में शिक्षित करने के लिये नियमित रूप से वित्तीय साक्षरता कार्यक्रम आयोजित करने चाहिये।​
  • ​​नवाचार को प्रोत्साहित करना: ​
    • ​​भारत में ​​माइक्रोफाइनेंस क्षेत्र को उत्पाद विकास, वितरण तंत्र और प्रौद्योगिकी अंगीकरण में नवाचार को प्रोत्साहित करना चाहिये​​। मोबाइल बैंकिंग और डिजिटल लेंडिंग प्लेटफॉर्म जैसी प्रौद्योगिकी का उपयोग वित्तीय सेवाओं तक पहुँच को बढ़ाने और वितरण की लागत को कम करने में मदद कर सकता है।​
  • ​​साझेदारी को बढ़ावा देना:​
    • ​​सरकार, MFIs और अन्य हितधारकों को ​​साझेदारी को बढ़ावा देने के लिये मिलकर कार्य करना चाहिये​​ जो इस क्षेत्र के समक्ष विद्यमान चुनौतियों को संबोधित कर सकता है। उदाहरण के लिये, MFIs और बैंकों के बीच साझेदारी माइक्रोफाइनेंस ग्राहकों को बेहतर वित्तीय सेवाएँ प्रदान करने में मदद कर सकती है।​
  • ​​अति-ऋणग्रस्तता के मुद्दे को संबोधित करना:​
    • ​​माइक्रोफाइनेंस क्षेत्र में अत्यधिक ऋणग्रस्तता एक प्रमुख चिंता का विषय है। इस समस्या का समाधान करने के लिये एक ​​क्रेडिट सूचना प्रणाली विकसित करने की आवश्यकता है जो माइक्रोफाइनेंस ग्राहकों के उधार लेने के इतिहास को ट्रैक कर सके ​​और उन्हें ऋण चुकाने की उनकी क्षमता से अधिक उधार लेने से रोक सके। ​
  • ​​सामाजिक प्रभाव सुनिश्चित करना:​
    • ​​माइक्रोफाइनेंस को गरीबी कम करने और सामाजिक सशक्तीकरण के एक साधन के रूप में देखा जाना चाहिये। इस क्षेत्र को आबादी के सबसे गरीब और सबसे कमज़ोर वर्गों को वित्तीय सेवाएँ प्रदान करके सकारात्मक सामाजिक प्रभाव उत्पन्न करने पर ध्यान देना चाहिये।​

​​अभ्यास प्रश्न:​​ भारत में माइक्रोफाइनेंस संस्थानों के समक्ष विद्यमान प्रमुख चुनौतियाँ कौन-सी हैं और देश की निम्न आय वाली आबादी की वित्तीय आवश्यकताओं को प्रभावी ढंग से पूर्ति के लिये इन चुनौतियों को कैसे दूर कर सकते हैं?​

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