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कृषि

भारत में कृषि मशीनरी उद्योग पर NCAER की रिपोर्ट

  • 09 Feb 2023
  • 7 min read

प्रिलिम्स के लिये:

कृषि मशीनरी उद्योग, कृषि शक्ति, विज्ञान और प्रौद्योगिकी (S&T) क्लस्टर कार्यक्रम, मेक इन इंडिया, कृषि यंत्रीकरण योजना पर उप-मिशन।

मेन्स के लिये:

कृषि मशीनरी उद्योग से संबंधित प्रमुख चुनौतियाँ, कृषि मशीनरी उद्योग को पुनर्जीवित करने के तरीके।

चर्चा में क्यों?

राष्ट्रीय अनुप्रयुक्त आर्थिक अनुसंधान परिषद (National Council of Applied Economic Research- NCAER) द्वारा 'कृषि कार्य मशीनीकरण उद्योग में भारत को वैश्विक हब बनाने' पर नवीनतम रिपोर्ट जारी की गई।

  • NCAER ने गैर-ट्र्रैक्टर कृषि मशीनरी उद्योग से संबंधित मांग और आपूर्ति दोनों पक्षों का गहराई से विश्लेषण किया है। इस क्षेत्र की चुनौतियों को सामने रखने के साथ ही रिपोर्ट में वैश्विक प्रथाओं को बेंचमार्क मानते हुए उपायों और सुधारों की भी सिफारिश की गई है।

कृषि मशीनरी उद्योग:

  • कृषि मशीनरी उद्योग एक ऐसा उद्योग क्षेत्र है जो कृषि और खेती की गतिविधियों जैसे- जुताई, रोपण, कटाई आदि में उपयोग की जाने वाली मशीनरी, उपकरणों की एक शृंखला का उत्पादन तथा आपूर्ति करता है।
    • इन मशीनों को कृषि की उत्पादकता और दक्षता में सुधार करने के लिये डिज़ाइन किया जाता है तथा इसमें छोटे एवं बड़े पैमाने पर कृषि उपकरणों का निर्माण शामिल है।
  • इस उद्योग द्वारा पेश किये जाने वाले उत्पादों के कुछ उदाहरणों में ट्रैक्टर, कंबाइन हार्वेस्टर, सिंचाई प्रणाली, टिलर आदि शामिल हैं।

कृषि मशीनरी उद्योग से संबंधित प्रमुख चुनौतियाँ:

  • सीमित घरेलू मांग:
    • संगठित कृषि मशीनरी क्षेत्र के उत्पादन और छोटे तथा सीमांत भारतीय किसानों की जरूरतों के बीच सामंजस्य की कमी।
    • हालाँकि राज्य-स्तरीय भिन्नता अधिक है, वर्ष 2018-19 में भारत में बमुश्किल 4.4% किसान परिवारों के पास ट्रैक्टर था, 2.4% ने पावर टिलर का इस्तेमाल किया और 5.3% के पास चार मशीनरी वस्तुएँ थीं ।
  • गैर-ट्रैक्टर मशीनरी के लिये आयात पर निर्भरता:
    • ट्रैक्टर कृषि मशीनरी निर्यात को बढ़ावा देते हैं, जबकि गैर-ट्रैक्टर कृषि मशीनरी आयात को बढ़ावा देती है।
    • इसके अलावा व्यापार क्षेत्र में भी संतुलन की कमी है, 53% गैर-ट्रैक्टर कृषि मशीनरी का आयात चीन से हो रहा है।
  • पर्याप्त विद्युत का अभाव:
    • बोई जाने वाली फसलों की विविधता और सघनता में वृद्धि के साथ प्रतिवर्तन समय (Turnaround Time) काफी कम हो जाता है। उत्पादन एवं उत्पादकता बढ़ाने तथा घाटे को कम करने के लिये समय पर कृषि कार्यों के संचालन हेतु पर्याप्त विद्युत की उपलब्धता बहुत महत्त्वपूर्ण है।
    • हालाँकि वर्ष 2018-19 में देश में कृषि हेतु विद्युत की उपलब्धता 2.49 किलोवाट/हेक्टेयर रही जो कोरिया (+7 किलोवाट/हेक्टेयर), जापान (+14 किलोवाट/हेक्टेयर), अमेरिका (+7 किलोवाट/हेक्टेयर) की तुलना में बहुत कम है।

फार्म मशीनरी उद्योग का पुनर्विकास:

  • स्थानीय नवाचार को प्रोत्साहन:
    • स्थानीय शिक्षा संस्थानों में उद्यमिता पारिस्थितिकी तंत्र के निर्माण और प्रोत्साहन को बढ़ावा देने सहित फार्म मशीनरी फर्मों के साथ भी साझेदारी करने का अवसर प्रदान किया जाना चाहिये।
    • पेटेंट पर मदद हेतु ज़िला-स्तरीय पेटेंट कार्यालयों को खोलने और उन्हें मज़बूती प्रदान करने की आवश्यकता है, साथ ही राज्य कृषि विश्वविद्यालयों के पेटेंट कार्यालयों को स्थानीय समुदायों की ज़रूरतों को पूरा करने की आवश्यकता है।
      • लाइट फार्म मशीनरी और फ्यूचरिस्टिक सटीक खेती में नवाचारों हेतु अनुसंधान संबद्ध प्रोत्साहन (Research-Linked Incentive- RLI) की भी सिफारिश की गई है।
  • गैर-ट्रैक्टर कृषि मशीनरी क्लस्टर:
  • भारतीय विनिर्माताओं हेतु समान अवसर:
    • भारतीय विनिर्माताओं को जिस अनुचित प्रतिस्पर्द्धा का सामना करना पड़ रहा है, उसे देखते हुए यह अनिवार्य किया जाना चाहिये कि सरकारी सब्सिडी के तहत सरकारी DBT पोर्टल (केंद्रीय और राज्य दोनों) पर बेची जाने वाली कृषि मशीनरी 'मेक इन इंडिया' सामानों को प्राथमिकता देने के संबंध में संशोधित सार्वजनिक खरीद मानदंडों का पालन करे।
    • अंतर्राष्ट्रीय गुणवत्ता मानकों को बनाए रखते हुए स्थानीयकरण को भी बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
  • निर्यात हब हेतु विज़न:
    • कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय कृषि यंत्रीकरण योजना पर उप-मिशन जैसी विभिन्न योजनाओं और कार्यक्रमों के माध्यम से पहले से ही कृषि यंत्रीकरण को बढ़ावा दे रहा है लेकिन भारत को गैर-ट्रैक्टर कृषि मशीनरी हेतु खुद को उत्पादन और निर्यात केंद्र में बदलने के लिये अगले 15 वर्षों हेतु दीर्घकालिक विज़न की आवश्यकता है।

स्रोत: पी.आई.बी.

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